[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 18 September 2021 – INSIGHTSIAS

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विषय सूची:

सामान्य अध्ययनII

1. मॉडल किरायेदारी अधिनियम

2. माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007

3. शंघाई सहयोग संगठन

 

सामान्य अध्ययनIII

1. ग्रीन बांड

2. 27वां वैश्विक ओजोन दिवस

3. शून्य अभियान

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. सूर्य किरण सैन्याभ्यास

2. विश्व रोगी सुरक्षा दिवस 2021

3. कुशीनगर हवाई अड्डा

4. स्ट्रोफोडस जैसलमेरेंसिस

5. बैजयंत पांडा समिति

6. प्रो. एस.के. जोशी प्रयोगशाला उत्कृष्टता पुरस्कार

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

 मॉडल किरायेदारी अधिनियम (MTA)


(Model Tenancy Act)

संदर्भ:

असम, ‘मॉडल किरायेदारी अधिनियम’ (Model Tenancy Act) अपनाने वाला पहला राज्य बन गया है। राज्य में इस अधिनियम को ‘असम शहरी क्षेत्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1972’ के स्थान पर लागू किया गया है।

प्रभाव:

यह नया क़ानून, पारदर्शी और जवाबदेह किरायेदारी बाजार की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देगा तथा किरायेदारों और भू-स्वामियों के हितों को संतुलित करेगा। साथ ही, विवादों के शीघ्र समाधान हेतु परितंत्र भी प्रदान करेगा।

पृष्ठभूमि:

जून 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘मॉडल किरायेदारी अधिनियम’ (Model Tenancy Act- MTA) को मंजूरी दी गई थी।

साथ ही, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को, नए कानून बनाकर ‘मॉडल किरायेदारी अधिनियम’ लागू करने अथवा अपने मौजूदा किरायेदारी कानूनों में अपने हिसाब से संशोधन करने की शक्ति भी दी गयी थी।

current affairs

मॉडल किरायेदारी कानून के प्रमुख बिंदु:

  1. ये क़ानून उत्‍तरव्यापी प्रभाव से लागू होंगे तथा मौजूदा किरायेदारी को प्रभावित नहीं करेंगे।
  2. सभी नई किरायेदारिर्यों के लिए लिखित अनुबंध जरूरी होगा। इस अनुबंध को संबंधित जिला किराया प्राधिकरण’ के पास जमा करना होगा।
  3. इस कानून में मकान मालिक और किरायेदारों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में भी स्पष्ट किया गया है।
  4. कोई भी मकान मालिक या संपत्ति प्रबंधक, किरायेदार के कब्जे वाले परिसर हेतु किसी भी आवश्यक आपूर्ति को रोक नहीं सकता है।
  5. किरायेदारी का नवीनीकरण नहीं किये जाने पर, पुराने अनुबंध के नियमों और शर्तों सहित किरायेदारी को मासिक आधार पर, अधिकतम छह महीने की अवधि तक, नवीनीकृत मान लिया जाएगा।
  6. मकान खाली नहीं करने के मामले में मुआवजा: तय किरायेदारी अवधि के बाद छह महीने पूरे हो जाने पर अथवा किसी आदेश या नोटिस से किरायेदारी समाप्त करने पर, किरायेदार एक ‘बकाया किरायेदार’ (Tenant in Default) बन जाएगा, और उसे अगले दो महीने के लिए निर्धारित किराए का दोगुना, तथा इससे आगे के महीनों के लिए मासिक किराए का चार गुना भुगतान करना होगा।
  7. कोई मकान मालिक या संपत्ति प्रबंधक, किरायेदार के परिसर में, घुसने के कम से कम चौबीस घंटे पहले इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से लिखित सूचना या नोटिस देने के बाद ही प्रवेश कर सकता है।

महत्व:

यह, दीवानी अदालतों पर भार कम करने, कानूनी विवादों में फंसी किराये की संपत्तियों को खोलने और किरायेदारों और मकान-मालिकों के हितों को संतुलित करके भविष्य की उलझनों को रोकने का वादा करने वाला एक महत्वपूर्ण कानून।

इस संबंध में ‘कानून’ की आवश्यकता:

  1. बड़े महानगरों में प्रवास करने वाले युवा, नौकरी की खोज में शिक्षित व्यक्ति, अक्सर किराए पर रहने के लिए जगह के लिए, किरायेदारी की दुष्कर शर्तों और सुरक्षा-जमा के रूप में बेहिसाब रकम मांगे जाने की शिकायत करते हैं। कुछ शहरों में, किरायेदारों को 11 महीने के किराए के बराबर सुरक्षा-जमा राशि का भुगतान करने के लिए कहा जाता है।
  2. इसके अलावा, कुछ मकान मालिक नियमित रूप से विविध मरम्मत कार्यों के लिए अघोषित रूप से किरायेदारों के परिसर में जाकर उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
  3. किराए में मनमानी बढ़ोतरी भी किरायेदारों के लिए एक और समस्या है, जिनमें से कई “बंदी ग्राहक” की तरह निचोड़े जाने की शिकायत करते हैं।
  4. इसके अलावा, किरायेदारों पर अक्सर किराए के परिसर में “अवैध रूप से रहने” या संपत्ति हथियाने की कोशिश करने का आरोप लगाया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं, कि मकान-मालिक और किराएदार के संबंध, किराएदारी अवधि और किराए का संग्रह, भारतीय संविधान की राज्य सूची (7वीं अनुसूची) का विषय हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘मॉडल किरायेदारी कानून’ के बारे में- प्रमुख बिंदु
  2. राज्यों की भूमिका

मेंस लिंक:

‘मॉडल किरायेदारी कानून’ के महत्व और प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।

स्रोत: पीआईबी

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007


(Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007)

संदर्भ:

हाल ही में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुजुर्ग माता-पिता की सहायता के लिए, एक व्यक्ति और उसके परिवार को 10 दिनों के भीतर एक फ्लैट खाली करने का निर्देश दिया है, ऐसा नहीं करने पर पुलिस के द्वारा उन्हें जबरन बेदखल कर दिया जाएगा।

संबंधित प्रकरण:

एक बुजुर्ग दम्पति ने अंतिम उपाय के रूप में, ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007’  (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के प्रावधानों का उपयोग करते हुए अपने बेटे और उसके परिवार के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था।

पृष्ठभूमि:

कुछ समय पूर्व, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा था, कि ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के प्रावधानों के अनुसार वृद्धाश्रम स्थापित करने संबंधी अपने वैधानिक दायित्व का पालन करने में राज्य सरकार अपनी ओर से पूरी तरह से विफल रही है।

‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 का अवलोकन:

  • इस अधिनियम के तहत, वयस्क बच्चों एवं उत्तराधिकारियों के लिए, माता-पिता को मासिक भत्ता के रूप में भरण-पोषण प्रदान करना, कानूनी रूप से बाध्य बनाया गया है।
  • इस अधिनियम में ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के लिए मासिक भरण-पोषण का दावा करने के लिए एक सस्ती और त्वरित प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है।
  • इस अधिनियम के अनुसार, माता-पिता का अर्थ जैविक, दत्तक या सौतेले माता-पिता हो सकता है।
  • इस अधिनियम के तहत ऐसे व्यक्तियों (बुजुर्गों) के जीवन और संपत्ति की रक्षा के प्रावधान भी किए गए हैं।

क्या कानून के अनुसार, राज्य के लिए ‘वृद्धाश्रम’ स्थापित करना अनिवार्य है?

कानून की धारा 19 के अनुसार-

  • राज्य सरकार, चरणबद्ध रीति से, सुलभ स्थानों पर, जितने वह आवश्यक समझे, उतने वृद्धाश्रम स्थापित करेगी और उनका अनुरक्षण करेगी और आरंभ में प्रत्येक जिले में कम-से-कम एक वृद्धाश्रम स्थापित करेगी।
  • राज्य सरकार, वृद्धाश्रमों के प्रबंधन के लिए एक योजना भी निर्धारित करेगी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ ठीक ही मानता है, आबादी की आयु में वृद्धि होना, मानवता की सबसे बड़ी जीतों में से एक है”। इसका क्या अभिप्राय है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अधिनियम के अनुसार ‘निर्धन वरिष्ठ नागरिक’ कौन हैं?
  2. अधिनियम के अनुसार राज्यों की भूमिका
  3. अधिनियम की अन्य प्रमुख विशेषताएं
  4. प्रस्तावित संशोधन

मेंस लिंक:

बुढ़ापा एक बड़ी सामाजिक चुनौती बन गया है। टिप्पणी कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO)


संदर्भ:

17 सितंबर 2021 को ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे में, ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (Shanghai Cooperation Organisation – SCO) के सदस्य देशों के प्रमुखों की परिषद की 21 वीं बैठक आयोजित की गई थी।

बैठक की अध्यक्षता ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति एमोमली रहमान ने की।

SCO के बारे में:

‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है।

  • SCO के गठन की घोषणा 15 जून 2001 को शंघाई (चीन) में की गई थी।
  • जून 2002 में, सेंट पीटर्सबर्ग SCO राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के दौरान ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए थे, और यह चार्टर 19 सितंबर 2003 को प्रभावी हुआ।
  • SCO का पूर्ववर्ती संगठन ‘शंघाई-5’ था, जिसमे ‘कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान’ पांच सदस्य थे।
  • SCO की आधिकारिक भाषाएँ, रूसी और चीनी हैं।

शंघाई सहयोग संगठन’ के संस्थापक राष्ट्र-

  1. कजाकिस्तान गणराज्य,
  2. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना,
  3. किर्गिस्तान गणराज्य,
  4. रूसी संघ,
  5. ताजिकिस्तान गणराज्य,
  6. उज्बेकिस्तान गणराज्य।

पृष्ठभूमि:

SCO की स्थापना से पहले, वर्ष 2001 में कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान, ‘शंघाई फाइव’ समूह के सदस्य थे।

  • ‘शंघाई फाइव’ (1996) की उत्पत्ति, चार पूर्व सोवियत गणराज्यों और चीन के मध्य, सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आयोजित सीमा सीमांकन और विसैन्यीकरण वार्ता श्रृंखला से हुई थी।
  • वर्ष 2001 में ‘उज्बेकिस्तान’ के ‘शंघाई फाइव’ संगठन में शामिल होने के बाद इसका नाम बदलकर ‘शंघाई सहयोग संगठन’ (SCO) कर दिया गया।
  • वर्ष 2017 में, भारत और पाकिस्तान को ‘शंघाई सहयोग संगठन’ की सदस्यता प्रदान की गयी।

 

 

SCO के सदस्य देश:

वर्तमान में,  SCO में आठ सदस्य देश शामिल हैं।

  1. कजाकिस्तान
  2. चीन
  3. किर्गिस्तान
  4. रूस
  5. ताजिकिस्तान
  6. उज्बेकिस्तान
  7. भारत
  8. पाकिस्तान

SCO के उद्देश्य:

  • सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और पड़ोसियों को मजबूत करना।
  • राजनीति, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और संस्कृति के साथ-साथ शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण और अन्य क्षेत्रों में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने और सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त प्रयास करना।
  • एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत, नई अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की ओर बढ़ना।

भारत के लिए ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का महत्व:

भारत के लिए ‘शंघाई सहयोग संगठन’ का महत्व, यूरेशियन राज्यों के साथ आर्थिक और भू-राजनीतिक संबंधों में निहित है।

  • ‘शंघाई सहयोग संगठन’, भारत की ‘मध्य एशिया संपर्क नीति’ (Connect Central Asia policy) को आगे बढ़ाने के लिए एक सशक्त मंच है। SCO के सदस्य देश, भारत के पड़ोसी क्षेत्रों की सीमाओं से सटे विशाल भूभाग में अवस्थित है, इन क्षेत्रों से भारत के आर्थिक और सामरिक, दोनों तरह के हित जुड़े हैं।
  • अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए ‘शंघाई सहयोग संगठन-अफगानिस्तान’ संपर्क समूह काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। ‘शंघाई सहयोग संगठन’ की सदस्यता भारत के लिए, कुछ अन्य संगठनों में, जिनका वह सदस्य है, एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करती है।
  • SCO, भारत के लिए अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ से संबंध सुधारने के लिए एकमात्र बहुपक्षीय मंच प्रदान करता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की ‘क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना’ (RATS) की कार्यकारी समिति के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. शंघाई फाइव क्या है?
  2. SCO चार्टर कब हस्ताक्षरित किया गया और कब लागू हुआ?
  3. SCO संस्थापक सदस्य।
  4. भारत समूह में कब शामिल हुआ?
  5. SCO के पर्यवेक्षक और वार्ता सहयोगी।
  6. SCO के तहत स्थायी निकाय।
  7. SCO की आधिकारिक भाषाएं।

मेंस लिंक:

शंघाई सहयोग संगठन के उद्देश्यों और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

ग्रीन बांड


(Green bond)

संदर्भ:

हाल ही में, विद्युत् क्षेत्र में अग्रणी एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (NBFC), ‘पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (PFC) द्वारा अपना पहला ‘यूरो ग्रीन बांड’ (Euro Green Bonds) सफलतापूर्वक जारी किया गया है।

  • यह भारत की ओर से ‘यूरो मूल्यवर्ग’ में पहला ग्रीन बांड जारी करने वाली कंपनी है।
  • इसके अलावा, किसी भारतीय NBFC द्वारा पहली बार ‘यूरो बांड’ (Euro Bond) जारी किया गया है, और वर्ष 2017 के बाद से भारत से जारी होने वाला पहला यह यूरो बांड है।

 

‘ग्रीन बॉन्ड’ क्या है?

‘ग्रीन बॉन्ड’ (Green Bond), एक प्रकार का ‘निश्चित आय’ उपकरण है, जिसे विशेष रूप से जलवायु और पर्यावरण संबंधित परियोजनाओं के लिए धन जुटाने के लिए निर्धारित किया जाता है।

  • ये बांड, आम तौर पर किसी परिसंपत्ति से संबद्ध होते हैं, और जारीकर्ता इकाई की बैलेंस शीट द्वारा समर्थित होते हैं, इसलिए इन बांड्स को प्रायः जारीकर्ता के अन्य ऋण दायित्वों के समान ‘क्रेडिट रेटिंग’ दी जाती है।
  • निवेशकों को आकर्षित करने हेतु ‘ग्रीन बांड’ में निवेश करने पर प्रोत्साहन के रूप में ‘करों’ आदि से कुछ छूट के साथ भी जारी किया जाता सकता है।
  • विश्व बैंक, ‘हरित बांड’ / ग्रीन बांड’ जारी करने वाली एक प्रमुख संस्था है। इसके द्वारा वर्ष 2008 से अब तक 164 ‘ग्रीन बांड’ जारी किए गए हैं, जिनकी कीमत संयुक्त रूप से 4 बिलियन डॉलर है। ‘क्लाइमेट बॉन्ड इनिशिएटिव’ के अनुसार, वर्ष 2020 में, लगभग 270 बिलियन डॉलर कीमत के ग्रीन बॉन्ड जारी किए गए थे।

 

‘ग्रीन बॉन्ड’ की कार्य-प्रणाली:

ग्रीन बॉन्ड, किसी भी अन्य कॉरपोरेट बॉन्ड या सरकारी बॉन्ड की तरह ही काम करते हैं।

  • ऋणकर्ताओं द्वारा इन प्रतिभूतियों को, पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली या प्रदूषण को कम करने जैसे ‘सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव’ डालने वाली परियोजनाओं के ‘वित्तपोषण’ को सुरक्षित करने के लिए जारी किया जाता है।
  • इन बांडों को खरीदने वाले निवेशक, इनके परिपक्व होने या अवधि पूरी होने पर, उचित लाभ अर्जित करने की उम्मीद कर सकते हैं।
  • इसके अलावा, ग्रीन बॉन्ड में निवेश करने पर अक्सर ‘कर’ संबंधी लाभ भी प्राप्त होते हैं।

ग्रीन बॉन्ड बनाम ब्लू बॉन्ड:

‘ब्लू बॉन्ड’ (Blue Bonds), समुद्र और संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हेतु परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जारी किए जाने वाले ‘संधारणीयता बांड’ होते हैं।

  • यह बांड, संवहनीय मत्स्य पालन, प्रवाल भित्तियों और अन्य संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा, अथवा प्रदूषण और अम्लीकरण को कम करने वाली परियोजनाओं के लिए जारी किए जा सकते हैं।
  • सभी ब्लू बॉन्ड, ‘ग्रीन बॉन्ड’ होते हैं, लेकिन सभी ‘ग्रीन बॉन्ड’, ब्लू बॉन्ड नहीं होते हैं।

‘ग्रीन बांड बनाम जलवायु बांड’

“ग्रीन बॉन्ड्स” और “क्लाइमेट बॉन्ड्स” को कभी-कभी एक-दूसरे के पर्यायवाची की तरह इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ‘क्लाइमेट बॉन्ड्स’ शब्द को कुछ अधिकारी, विशेष रूप से कार्बन उत्सर्जन को कम करने या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने पर केंद्रित परियोजनाओं के लिए उपयोग करते हैं।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘ग्रीन बांड’ के बारे में
  2. कार्य-प्रणाली
  3. विशेषताएं
  4. ये ब्लू बांड से किस प्रकार भिन्न होते हैं।

मेंस लिंक:

ग्रीन बॉन्ड के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

27वां वैश्विक ओजोन दिवस


(Global Ozone Day)

संदर्भ:

‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ (Montreal Protocol) पर हस्ताक्षर किए जाने की यादगार में प्रति वर्ष 16 सितंबर को ‘वैश्विक ओजोन दिवस’ / ‘विश्व ओजोन दिवस’ (World Ozone Day) मनाया जाता है।

  • ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संधि वर्ष 1987 में 16 सितंबर को लागू हुई थी।
  • यह दिवस हर साल, ओजोन परत के क्षरण और इसे संरक्षित करने के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।

विश्व ओजोन दिवस 2021 का विषय: “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल – हमें, हमारे भोजन और टीकों को ठंडा रखना” (Montreal Protocol – Keeping us, our food and vaccines cool) है।

‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ के बारे में:

‘ओजोन परत क्षयकारी पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ (Montreal Protocol on Substances that Deplete the Ozone Layer), जिसे संक्षेप में ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ कहा जाता है, वर्ष 1987 में हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

  • इस संधि को, ओजोन क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और आयात को रोकने और पृथ्वी की ओजोन परत की सुरक्षा में सहायता करने हेतु वातावरण में इन पदार्थों के संकेंद्रण को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ‘ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना कन्वेंशन’ (वियना अभिसमय) के अंर्तगत कार्य करता है।

किगाली संशोधन’ क्या है?

अक्टूबर, 2016 को रवांडा की राजधानी ‘किगाली’ आयोजित ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों’ की 28 वीं बैठक में किगाली संशोधन (Kigali Amendment) को अपनाया गया था।

  • किगाली संशोधन के तहत; मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकार देशों द्वारा, आम तौर पर HFCs के रूप में पहचाने जाने वाले ‘हाइड्रोफ्लोरोकार्बन’ के उत्पादन और खपत को कम किए जाने का प्रावधान किया गया है।
  • ‘किगाली संशोधन’ से पहले ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ में किए गए सभी संशोधनों और समायोजनों को सार्वभौमिक समर्थन प्राप्त है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन में भारत की उपलब्धियां:

  • भारत, जून 1992 से ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ के पक्षकार सदस्य के रूप में, इसके प्रावधानों के अनुरूप परियोजनाओं और गतिविधियों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित कर रहा है।
  • भारत द्वारा भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुरूप, नियंत्रित उपयोग के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन्स, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया है।
  • वर्तमान में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुसार हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है।
  • ‘हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन के उपयोग को समाप्त करने की प्रबंध योजना’ (HPMP) चरण- I को 2012 से 2016 तक सफलतापूर्वक लागू किया गया और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन के उपयोग को समाप्त करने की प्रबंध योजना (HPMP) चरण- II वर्तमान में 2017 से लागू किया जा रहा है और यह चरण वर्ष 2023 तक पूरा हो जाएगा।
  • भारत सरकार ने हाल ही में ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ में ‘किगाली संशोधन’ की पुष्टि करने का निर्णय भी लिया है।

किगाली संशोधन की पुष्टि करने के लाभ:

  • HFC के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से बंद करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलेगी और इससे लोगों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
  • गैर- HFC और कम ग्लोबल वार्मिंग संभावित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के अंतर्गत तय समय-सीमा के अनुसार हाइड्रोफ्लोरोकार्बन का उत्पादन और खपत करने वाले उद्योग हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करेंगे।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि 2019 में जारी 20 वर्षीय ‘इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान’ (ICAP) में ‘कुलिंग’ अर्थात शीतलन को “विकासात्मक आवश्यकता” के रूप में वर्णित किया गया है? ICAP के बारे में अधिक जानने हेतु पढ़िए

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. किगाली संशोधन के बारे में
  2. लक्ष्य
  3. ‘हाइड्रोफ्लोरोकार्बन’ (HFCs) बनाम ‘हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन’ (HCFCs)
  4. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के बारे में
  5. अन्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) के बारे में

मेंस लिंक:

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

‘शून्य’ अभियान


(Shoonya Campaign)

संदर्भ:

हाल ही में, नीति आयोग द्वारा रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (RMI) और आरएमआई इंडिया (RMI India) के सहयोग से ‘शून्य’ अभियान (Shoonya Campaign) का आरंभ किया गया है। ‘रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट’ वर्ष  1982 में स्थापित एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन है।

अभियान के बारे में:

  • यह उपभोक्ताओं और उद्योग के साथ मिलकर शून्य-प्रदूषण वाले डिलीवरी वाहनों को बढ़ावा देने वाली की एक पहल है।
  • इस अभियान का उद्देश्य, शहरी क्षेत्र में डिलीवरी संबंधी कार्यो में इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles) को अपनाने में तेजी लाना और इलेक्ट्रिक वाहनों के स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक लाभों के बारे में उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता पैदा करना है।
  • इस अभियान के हिस्से के रूप में, फाइनल माइल की डिलीवरी के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने की दिशा में उद्योग जगत के प्रयासों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए कॉर्पोरेट ब्रांडिंग और प्रमाणन संबंधी एक कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है।

भारत में EV क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहलें:

  1. सरकार का लक्ष्य ‘नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 के तहत वर्ष 2020 तक 6 मिलियन इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को सड़कों पर देखना है।
  2. इलेक्ट्रिक परिवहन में सुधार करने हेतु, ‘भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण’ योजना (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles in IndiaFAME India Scheme) की शुरुआत की गयी है।
  3. स्मार्ट सिटी के क्रियान्वयन से इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।

आगे की चुनौतियां:

  1. वर्तमान में, भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार की आम लोगों में पहुँच शेष विश्व की तुलना में काफी कम है।
  2. पूंजीगत लागत काफी अधिक है और इस पर लाभ और अदायगी अनिश्चित है।
  3. हाल के महीनों में रुपये का नाटकीय मूल्यह्रास होने के कारण भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  4. इलेक्ट्रिक वाहनों में स्थानीय निवेश, कुल निवेश का मात्र लगभग 35% है।
  5. निवेश के संदर्भ में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा।
  6. भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण’ (फेम इंडिया) योजना को बार-बार आगे बढ़ाया गया है।
  7. ‘अनिश्चित नीतिगत माहौल’ और ‘सहायक बुनियादी ढांचे की कमी’ इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में प्रमुख बाधाएं हैं।
  8. भारत के पास लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है, जिसकी वजह से भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार, जापान और चीन से लिथियम-आयन बैटरी के आयात पर निर्भर है।

समय की मांग:

  1. इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रभावी ढंग से शुरू करने के लिए, हमें एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए सहगामी प्रयास करने की आवश्यकता है।
  2. वाहनों को सब्सिडी देने की बजाय बैटरियों को सब्सिडी देने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है क्योंकि बैटरी की कीमत, इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत का लगभग आधी होती है।
  3. इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि देश में कुल वाहनों में टू-व्हीलर्स की हिस्सेदारी 76 फीसदी है और ये ईंधन की ज्यादा खपत करते है।
  4. निवेश आकर्षित करने के लिए चार्जिंग स्टेशनों का एक विस्तृत नेटवर्क स्थापित किया जाना आवश्यक है।
  5. टेक पार्क, सार्वजनिक बस डिपो और मल्टीप्लेक्स में कार्यस्थल, चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने हेतु उपयुक्त स्थान हैं। बैंगलोर में, कुछ मॉल में पार्किंग स्थल में चार्जिंग पॉइंट स्थापित किए गए हैं।
  6. बड़े व्यापारी ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी कंप्लायंस’ के रूप में चार्जिंग स्टेशनों में निवेश कर सकते हैं।
  7. भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाने के लिए कच्चे माल की जरूरत है, अतः बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया और चिली में ‘लिथियम फ़ील्ड’ हासिल करना, तेल क्षेत्रों को खरीदने जितना महत्वपूर्ण हो सकता है।

स्रोत: पीआईबी।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


सूर्य किरण सैन्याभ्यास

भारत-नेपाल संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास सूर्य किरण का 15वां संस्करण 20 सितंबर 2021 से पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) में शुरू हो रहा है।

  • यह संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा और दोनों देशों के बीच पारंपरिक दोस्ती को और मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
  • सूर्य किरण सैन्याभ्यास का पिछला संस्करण 2019 में नेपाल में आयोजित किया गया था।

 

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस 2021

‘रोगी सुरक्षा’ के बारे में विश्व स्तर पर समझ पैदा करने, स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा में सार्वजनिक जुड़ाव बढ़ाने, आदि के लिए ‘विश्व रोगी सुरक्षा दिवस’ (World Patient Safety Day) प्रतिवर्ष 17 सितंबर को मनाया जाता है।

  • विश्व रोगी सुरक्षा दिवस 2021 का विषय: “माता और नवजात की सुरक्षित देखभाल” (Safe maternal and newborn care)।
  • इस दिन का नारा: “सुरक्षित और सम्मानजनक प्रसव के लिए अभी कार्य करें!”

इतिहास:

‘विश्व रोगी सुरक्षा दिवस’ का निर्धारण ‘विश्व स्वास्थ्य महासभा’ द्वारा वर्ष 2019 में “रोगी सुरक्षा पर वैश्विक कार्रवाई” विषय पर एक संकल्प के माध्यम से की गई थी, और इसे सालाना 17 सितंबर को मनाया जाता है।

 

कुशीनगर हवाई अड्डा

  • हाल ही में, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) द्वारा कुशीनगर हवाई अड्डे को एक सीमा शुल्क अधिसूचित हवाई अड्डा (Customs notified airport) के तौर पर घोषित किया गया है।
  • इस कदम से बौद्ध तीर्थयात्रियों सहित अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की आवाजाही को सहूलियत भी मिलेगी।

सीमा शुल्क हवाई अड्डा’ (Customs airport), देश में उपयुक्त ‘सीमा शुल्क प्राधिकरण’ द्वारा अधिसूचित हवाई अड्डे होता है। इन हवाई अड्डों से आयातित माल को उतारने और निर्यात की वस्तुओं या इस वर्ग के अन्य सामानों को हवाई जहाजों पर चढाने की अनुमति एवं सुविधा होती है।

‘कुशीनगर’ के बारे में:

  • यह एक महत्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है, जहां गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था।
  • कुशीनगर के आसपास कई अन्य बौद्ध स्थल जैसे श्रावस्ती (238 किमी), कपिलवस्तु (190 किमी) और लुंबिनी (195 किमी) अवस्थित है।

 

स्ट्रोफोडस जैसलमेरेंसिस

स्ट्रोफोडस जैसलमेरेंसिस (Strophodus Jaisalmerensis), जुरासिक युग से संबंधित ‘हाइबोडॉन्ट शार्क’ (वर्तमान में विलुप्त) की नई प्रजाति है।

  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की एक टीम ने पहली बार राजस्थान के जैसलमेर से जुरासिक युग के ‘हाइबोडॉन्ट शार्क’ (Hybodont Sharks) की नई प्रजाति के दांतों की खोज की है। यह नमूना लगभग 160-168 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है।
  • भारतीय उपमहाद्वीप से पहली बार जीनस स्ट्रोफोडस की पहचान की गई है और यह एशिया से केवल तीसरा ऐसा मामला है।
  • इसके पहले जापान और थाईलैंड में ऐसी प्रजाति पाई गई थी। न
  • हाईबोडॉन्ट शार्क का विलुप्त समूह, ट्राइसिक और प्रारंभिक जुरासिक युग के दौरान समुद्र और नदी के दोनों वातावरणों में पाए जाने वाली मछलियों का एक प्रमुख समूह था। 65 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस युग के अंत तक हाइबोडॉन्ट विलुप्त हो गईं थी।

 

बैजयंत पांडा समिति

यह राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC) की व्यापक समीक्षा के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति है।

समिति के उद्देश्य:

  • एनसीसी कैडेटों को राष्ट्र निर्माण की दिशा में अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए सशक्त बनाने के उपायों का सुझाव देना।
  • संगठन की बेहतरी के लिए एनसीसी के पूर्व छात्रों की लाभदायक भागीदारी के तरीकों का प्रस्तावित करना।
  • एनसीसी पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए इसी तरह के अंतर्राष्‍ट्रीय युवा संगठनों की सर्वोत्तम प्रथाओं की सिफारिश करना।

 

प्रो. एस.के. जोशी प्रयोगशाला उत्कृष्टता पुरस्कार

  • इस पुरुस्कार को हाल ही में, भारतीय गुणवत्ता परिषद द्वारा शुरू किया गया है।
  • यह देश का अपनी तरह का पहला ‘प्रयोगशाला उत्कृष्टता’ पुरस्कार है। यह पुरस्कार देश में प्रयोगशाला गुणवत्ता और प्रदर्शन में सुधार को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया है।
  • इस पुरस्कार के लिए भारत में मौजूद परीक्षण करने वाली प्रयोगशालाओं, उससे जुड़ी सेवाएं देने और चिकित्सा से संबंधित परीक्षण सेवाएं और मेटेरियल का उत्पादन करने वाले उत्पादक भी आवेदन कर सकेंगे।
  • प्रो. एस.के. जोशी, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में प्रख्यात विद्वान् थे।

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