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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
1. गुरु रविदास
2. भारतीय उपमहाद्वीप पर ला नीना का प्रभाव
सामान्य अध्ययन–II
1. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी और विद्युत् बाजार रिपोर्ट
2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
सामान्य अध्ययन–III
1. पीएम गतिशक्ति – राष्ट्रीय मास्टर प्लान
2. राजद्रोह कानून
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. पंडित बिरजू महाराज
सामान्य अध्ययन-I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
गुरु रविदास
(Guru Ravidas)
संदर्भ:
पंजाब में विधानसभा चुनाव 20 फरवरी तक स्थगित करना राज्य में रविदासिया समुदाय के महत्व को रेखांकित करता है।
संबंधित प्रकरण:
निर्वाचन आयोग द्वारा पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मतदान तिथि 14 फरवरी निर्धारित की गयी थी। इस वर्ष इसी दिन रविदास जयंती भी है, और इस अवसर पर हर साल बड़ी संख्या में लोग पंजाब से वाराणसी की यात्रा करते हैं। इनमे से अधिकांश लोग जालंधर स्थित रविदासियों के सबसे बड़े डेरा सचखंड बल्लां द्वारा व्यवस्थित की गयी एक विशेष ट्रेन में सवार होते हैं। इसे देखते हुए कई राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग से चुनाव की तिथि में परिवर्तन करने का आग्रह किया था।
‘रविदासिया’ कौन हैं?
रविदासिया (Ravidassias), एक दलित समुदाय हैं, जिनमें से अधिकांशतः – लगभग 12 लाख – पंजाब के दोआब क्षेत्र में रहते हैं। बाबा संत पीपल दास द्वारा 20 वीं शताब्दी में डेरा सचखंड बल्लां (Dera Sachkhand Ballan) की स्थापना की गयी थी, जोकि इनका सबसे बड़ा डेरा है और पूरे विश्व में इसके 20 लाख से अधिक अनुयायी हैं।
- पहले इस डेरा के सिख धर्म के साथ घनिष्ट संबंध थे, फिर वर्ष 2010 में डेरा ने इन दशकों पुराने संबंधों को तोड़ दिया, और ‘रविदासिया धर्म’ का पालन करने की घोषणा की थी। डेरा सचखंड बल्लां द्वारा यह घोषणा वाराणसी में गुरु रविदास जयंती के अवसर पर की थी।
- वर्ष 2010 से, डेरा सचखंड बल्लां ने रविदासिया मंदिरों और गुरुद्वारों में ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के स्थान पर अपने स्वयं के ग्रंथ, ‘अमृतबानी’ (Amritbani) का पठन-पाठन करना आरंभ कर दिया। ‘अमृतबानी’ में गुरु रविदास के 200 भजन संकलित हैं।
‘गुरु रविदास’ के बारे में:
- ‘गुरु रविदास’ भक्ति आंदोलन के उत्तर भारतीय रहस्यवादी कवि थे।
- जबकि उनके जन्म का सही वर्ष ज्ञात नहीं है, ऐसा माना जाता है कि संत का जन्म 1377 ई. में हुआ था। हिंदू कैलेंडर माह के अनुसार, प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के दिन ‘गुरु रविदास जयंती’ मनाई जाती है।
- गुरु रविदास की साहित्यिक रचनाओं के दो सबसे पुराने प्रलेखित स्रोत, सिखों के ‘आदि ग्रंथ’ तथा ‘पंचवाणी’ हैं।
- संत रविदास, एक अश्पृश्य / अछूत मानी जाने वाली जाति से संबंधित थे और इसके परिणामस्वरूप उन्हें बहुत सारे अत्याचारों का सामना करना पड़ा।
- फिर भी, संत रविदास ने आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने का मार्ग चुना और कई भक्ति गीतों की रचना की, जिन्होंने 14 वीं से 16 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान भक्ति आंदोलन में एक बड़ा प्रभाव डाला।
- उन्हें, भक्ति संत-कवि रामानंद का शिष्य और भक्ति संत-कवि कबीर का समकालीन माना जाता है।
- मीराबाई उनके प्रसिद्ध शिष्यों में से एक थीं।
- रविदास की नैतिक और बौद्धिक उपलब्धियां “बेगमपुरा” की अवधारणा परिलक्षित होती हैं, इसकी कल्पना एक ऐसे नगर के रूप में की गयी हैं जिसमे किसी को कोई दुख नहीं है; और एक ऐसा समाज है, जहां जाति और वर्ग का कोई महत्व नहीं रह गया है।
गुरु रविदास के उपदेश:
गुरु रविदास ने जाति विभाजन के खिलाफ बात की और समाज में एकता को बढ़ावा देने के लिए इसे दूर करने पर जोर दिया। उनकी शिक्षाओं का लोगों पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ा, और उनकी शिक्षाओं के आधार पर एक धर्म का जन्म हुआ जिसे रविदासिया धर्म या रविदासिया धर्म कहा जाता है।
उन्होंने ईश्वर की सर्वव्यापीता के बारे में शिक्षा दी और मानव की आत्मा को ईश्वर का एक अंश बताया। संत रविदास ने इस विचार को खारिज कर दिया कि निचली जाति के लोग भगवान से नहीं मिल सकते। उन्होंने अपनी शिक्षाओं में कहा कि ईश्वर से मिलने का एकमात्र तरीका मन को द्वैत से मुक्त करना है।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।
भारतीय उपमहाद्वीप पर ला नीना का प्रभाव
संदर्भ:
भारत के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से उत्तर भारत को, भीषण शीत लहर का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर भारत के कई राज्यों में भीषण शीत लहर की चेतावनी जारी की गई है।
‘शीत लहर’ क्या होती है?
मैदानी इलाकों और पहाड़ों इलाकों के लिए ‘शीत लहर’ (Cold Wave) निर्धारित करने के मानदंड अलग होते हैं।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब सामान्य तापमान के 10 डिग्री से नीचे चले जाता है और न्यूनतम तापमान 5 डिग्री तक पहुँच जाता है, तो मैदानी इलाकों के लिए ‘शीत लहर’ की स्थिति होती है। पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तापमान के 0 डिग्री पर पहुंच जाने पर ‘शीत लहर’ माना जाता है।
- यदि तापमान सामान्य से 4 डिग्री नीचे पहुँच जाता है, अथवा 2 डिग्री तक गिर जाता है, तो इसे मैदानी इलाकों में एक ‘गंभीर शीत लहर’ (Severe Cold Wave) कहा जाता है।
IMD के अनुसार, “वायु-तापमान की यह स्थिति, मानव शरीर के संपर्क में आने पर घातक बन जाती है।”
शीत लहर की तीव्रता का कारण:
संक्षिप्त उत्तर:
उत्तरी मेखला (Northern Belt) में, पश्चिमी विक्षोभ के साथ प्रवाहित होने वाली तेज हवाएं इसका कारण बन रही हैं।
जटिल उत्तर: ला नीना।
इस क्षेत्र में शीत का कारण, निरंतर बहने वाली प्रचंड ‘उत्तर-पश्चिमी हवाएं’ (North-Westerly Winds) होती हैं, जो अपने साथ उच्च अक्षांशों से भारत-गंगा के मैदानों में सर्द हवाएं लाती हैं। हालांकि, एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभ के गुजरने से वायु की दिशा, ‘ठंडी उत्तर-पश्चिमी हवाओं’ से बदलकर ‘गर्म और आर्द्र पूर्वी हवाओं’ में परिवर्तित हो जाती है। हालांकि, ला नीना (La Niña) की स्थित होने की वजह से, इस क्षेत्र में सर्दियों की बारिश होने की उम्मीद कम है, और इस प्रकार, उत्तर पश्चिमी भारत में बर्फीली ठंडी हवाएं लगातार चलती रहेंगी, जिससे तापमान में गिरावट आएगी।
पृष्ठभूमि:
‘अल नीनो’ (El Niño) और ला नीना (La Niña) परिघटनाएं ‘अल-नीनो दक्षिणी दोलन (El Niño Southern Oscillation- ENSO)’ चक्र का एक हिस्सा हैं।
- वर्ष 2020 में, अगस्त महीने के दौरान ‘ला नीना’ की स्थिति विकसित हुई थी और फिर अप्रैल 2021 में ENSO-तटस्थ स्थिति (ENSO-neutral conditions) के वापस विकसित होने पर यह समाप्त हो गई।
- दिसंबर 2021 से फरवरी 2022 तक रहने वाले आगामी सर्दियों के मौसम में ‘ला नीना’ परिघटना दोबारा होने की 87% संभावना है।
‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ क्या हैं?
‘अल नीनो’ (El Niño) और ला नीना ‘(La Niña)’, उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होने वाली दो प्राकृतिक जलवायु परिघटनाएं हैं, और ये संपूर्ण विश्व में मौसमी स्थितियों को प्रभावित करती हैं।
- ‘अल नीनो’ परिघटना के दौरान, ‘मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर’ में सतहीय तापमान में वृद्धि हो जाती है, और ‘ला नीना’ की स्थिति में, पूर्वी प्रशांत महासागर का सतहीय तापमान सामान्य से कम हो जाता है।
- संयुक्त रूप से इन दोनों परिघटनाओं को ‘ENSO’ या ‘अल-नीनो दक्षिणी दोलन’ (El Niño Southern Oscillation) कहा जाता है।
‘अल नीनो’ परिघटना की उत्पत्ति संबंधी कारण:
- अल नीनो की स्थिति, जलवायु प्रतिरूप (Climate Pattern) में कोई विसंगति होने पर निर्मित होती है।
- पश्चिम की ओर बहने वाली व्यापारिक हवाएं भूमध्य रेखा के समीप आने पर क्षीण हो जाती हैं और परिणामस्वरूप वायुदाब में परिवर्तन के कारण, सतही जल पूर्व दिशा में उत्तरी दक्षिण अमेरिका के तट की ओर बहने लगता है।
- मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों में छह महीने से अधिक समय तक तापमान अधिक रहता हैऔर इसके परिणामस्वरूप ‘अल नीनो’ की स्थिति पैदा हो जाती है।
ला-नीना के कारण मौसम में होने वाले बदलाव:
- ला-नीना के कारण, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका और मध्य एशिया में औसत से कम वर्षा होगी।
- पूर्वी अफ्रीका को सामान्य स्थितियों से अधिक सूखे का सामना करना पड़ सकता है, इसके साथ ही इस क्षेत्र में रेगिस्तान टिड्डियों के हमलों के कारण खाद्य सुरक्षा की स्थिति भयावह हो सकती है।
- ला-नीना के आने से दक्षिणी अफ्रीका में सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है।
- इससे दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में कमी हो सकती है, जिससे इस क्षेत्र में मौसम व्यापक रूप से प्रभावित होगा।
- इसके आने से दक्षिण पूर्व एशिया, कुछ प्रशांत द्वीप समूहों और दक्षिण अमेरिका के उत्तरी क्षेत्र में औसत से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है।
- ला-नीना के आने से भारत में सामान्य से अधिक वर्षा होगी, जिससे देश के विभिन्न भागों में बाढ़ की प्रवणता में वृद्धि होगी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन’ (National Supercomputing Mission– NSM) के अंतर्गत निर्मित सुपरकंप्यूटर ‘परम शिवाय’ के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- अल-नीनो क्या है?
- ला-नीना क्या है?
- ENSO क्या है?
- ये परिघटनाएँ कब होती हैं?
- एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ENSO का प्रभाव।
मेंस लिंक:
ला-नीना मौसमी परिघटना के भारत पर प्रभाव संबंधी चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
सामान्य अध्ययन-II
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी एवं विद्युत् बाजार रिपोर्ट
संदर्भ:
हाल ही में, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency – IEA) द्वारा साल में दो बार प्रकाशित की जाने वाली ‘विद्युत बाजार रिपोर्ट’ (Electricity Market Report) का वर्ष 2022 के लिए प्रारंभिक संस्करण जारी किया गया है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- कोविड -19 लॉकडाउन प्रतिबंधों को हटाए जाने के साथ ही, विभिन्न देश अपनी बिजली की मांग में वृद्धि को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन की ओर रुख कर रहे हैं।
- 2021 में वैश्विक बिजली की मांग में ‘पिछले सालों की तुलना’ में (Year-on-Year: YOY) 6% की वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2008 की वित्तीय दुर्घटना के बाद से ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ (IEA) द्वारा दर्ज की गई, ‘पिछले सालों की तुलना में’ (YOY) अब तक सबसे तेज वृद्धि है।
- ‘वैश्विक ऊर्जा गहनता’ (Global energy intensity) में ‘पिछले सालों की तुलना में’ (Year-on-Year) 9% की गिरावट आई है, जोकि वर्ष 2050 तक नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल करने हेतु आवश्यक स्तर से मात्र आधी है।
- यद्यपि वर्ष 2021 में अक्षय ऊर्जा से बिजली उत्पादन ‘पिछले सालों की तुलना में’ 6% अधिक था, फिर भी इस दौरान, चीन और भारत सहित बाजारों के नेतृत्व में कोयले से होने वाले विद्युत् उत्पादन में 9% की वृद्धि हुई। ऊर्जा-मांग में होने वाली आधे से अधिक की वृद्धि की आपूर्ति कोयले-आधारित विद्युत् से की गयी।
- इसके अतिरिक्त, गैस-आधारित विद्युत् उत्पादन में 2% की वृद्धि हुई, जोकि समग्र रूप से विद्युत् क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन में ‘पिछले सालों की तुलना में’ 7% की वृद्धि का कारण बना।
- इसका अर्थ है, कि दो साल से उत्सर्जन में गिरावट दर्ज करने के बाद, बिजली क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन अब रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुँच गया है।
संबंधित चिंताएं:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ (IEA) द्वारा ‘नेट जीरो’ आंदोलन के जोर-शोर के बावजूद, राष्ट्रों द्वारा ‘बढ़ी हुई बिजली की मांग’ तथा ‘बढ़ते हुए उत्सर्जन’ को एक-दूसरे से अलग करने विफल रहने पर चिंता व्यक्त की गयी है।
- IEA द्वारा अगले तीन वर्षों तक बिजली क्षेत्र द्वारा होने वाले उत्सर्जन का स्तर ‘वर्तमान उत्सर्जन स्तर के लगभग बराबर’ रहने का अनुमान किया जा रहा है।
- इसके विपरीत, 2050 तक आईईए का ‘नेट-जीरो परिदृश्य’, क्षेत्रीय रूप से होने वाले उत्सर्जन में, 2019 आधार वर्ष के मुकाबले वर्ष 2030 तक, 55% की कमी होने को दर्शाता है।
- रिपोर्ट में, वैश्विक स्तर पर थोक स्तर पर गैस और बिजली की कीमतों में “अभूतपूर्व” वृद्धि के साथ-साथ कोयले की कीमतों में “अस्थिर” वृद्धि को भी दर्शाया गया है।
पृष्ठभूमि:
भारत, मार्च 2017 में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) का सहयोगी सदस्य बना था।
‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ के बारे में:
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), एक अंतर-सरकारी स्वायत्त संगठन है। इसकी स्थापना आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation of Economic Cooperation and Development- OECD) फ्रेमवर्क के अनुसार वर्ष 1974 में की गई थी।
- इसके कार्यों का फोकस मुख्यतः चार मुख्य क्षेत्रों पर होता है: ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास, पर्यावरण जागरूकता और वैश्विक सहभागिता।
- इसका मुख्यालय (सचिवालय) पेरिस, फ्रांस में है।
भूमिकाएँ और कार्य:
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की स्थापना वर्ष 1973-1974 के तेल संकट के दौरान सदस्य देशों के लिए तेल आपूर्ति व्यवधानों का सामना करने में मदद करने के लिए की गयी थी। IEA द्वारा यह भूमिका वर्तमान में भी निभाई जा रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अधिदेश में समय के साथ विस्तार किया गया है। इसके कार्यों में वैश्विक रूप से प्रमुख ऊर्जा रुझानों पर निगाह रखना और उनका विश्लेषण करना, मजबूत ऊर्जा नीतियों को बढ़ावा देना और बहुराष्ट्रीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी सहयोग को बढ़ावा देना शामिल किया गया है।
IEA की संरचना एवं सदस्यता हेतु पात्रता:
वर्तमान में ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ में 30 सदस्य देश तथा में आठ सहयोगी देश शामिल हैं। इसकी सदस्यता होने के लिए किसी देश को आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) का सदस्य होना अनिवार्य है। हालांकि OECD के सभी सदस्य आईईए के सदस्य नहीं हैं।
किसी देश को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का सदस्यता के लिए निम्नलिखित शर्ते पूरा करना आवश्यक है:
- देश की सरकार के पास पिछले वर्ष के 90 दिनों में किए गए निवल आयात के बराबर कच्चे तेल और / अथवा उत्पाद भण्डार मौजूद होना चाहिए। भले ही यह भण्डार सरकार के प्रत्यक्ष स्वामित्व में न हो किंतु वैश्विक तेल आपूर्ति में व्यवधान को दूर करने के इसका उपयोग किया जा सकता हो।
- देश में राष्ट्रीय तेल खपत को 10% तक कम करने के लिए एक ‘मांग नियंत्रण कार्यक्रम’ लागू होना चाहिए।
- राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित आपातकालीन प्रतिक्रिया उपाय (CERM) लागू करने के लिए क़ानून और संस्था होनी चाहिए।
- मांग किये जाने पर देश की सीमा में कार्यरत सभी तेल कंपनियों द्वारा जानकारी दिए जाने को सुनिश्चित करने हेतु क़ानून और उपाय होने चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के सामूहिक कार्रवाई में अपने योगदान को सुनिश्चित करने के लिए देश में क़ानून अथवा उपाय होने चाहिए।
आइईए द्वारा प्रकाशित की जाने वाली रिपोर्ट्स:
- वैश्विक ऊर्जा और CO2 स्थिति रिपोर्ट
- विश्व ऊर्जा आउटलुक
- विश्व ऊर्जा सांख्यिकी
- विश्व ऊर्जा संतुलन
- ऊर्जा प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने भारत को, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, अपना पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया है?
यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो नई दिल्ली को रणनीतिक तेल भंडार को 90 दिनों की आवश्यकता की आपूर्ति करने तक बढ़ाने की आवश्यकता होगी। भारत का वर्तमान सामरिक तेल भंडार 9.5 दिनों की अपनी आवश्यकता की आपूर्ति करने के बराबर है।
प्रीलिम्स लिंक:
- IEA द्वारा जारी की जाने वाली विभिन्न रिपोर्ट्स
- ओईसीडी और ओपेक की संरचना? सदस्यता हेतु पात्रता?
- वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के शीर्ष उत्पादक और आयातक?
- IEA के सहयोगी सदस्य
- भारत, IEA में किस प्रकार का सदस्य है?
मेंस लिंक:
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के उद्देश्यों और कार्यों पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
संदर्भ:
उत्तर कोरिया द्वारा एक श्रृंखला कई मिसाइल प्रक्षेपण किए जाने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा उत्तर कोरिया पर अधिक प्रतिबंध लगाए जाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (United Nations Security Council – UNSC) पर दवाब दिया जा रहा है।
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मिसाइल प्रक्षेपणों पर पहले ही एकतरफा प्रतिबंध लगाया जा चुका है। अमेरिका ने उत्तर कोरिया की छह फर्मों, रूस की एक फर्म तथा एक रूसी कारोबारी को, रूस और चीन से मिसाइल कार्यक्रमों के लिए सामान खरीदने का आरोप लगाते हुए ब्लैकलिस्ट कर दिया है।
हालिया घटनाएं:
छह महीने के अंतराल के बाद, उत्तर कोरिया ने सितंबर में, परमाणु-सक्षम हथियारों सहित नई विकसित मिसाइलों को लॉन्च करते हुए ‘मिसाइल परीक्षण’ फिर से शुरू कर दिया था। ये मिसाइलें, दक्षिण कोरिया और जापान तक मार करने में सक्षम हैं।
- उत्तर कोरिया ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) को चेतावनी देते हुए कहा है, कि यदि ‘परिषद्’ द्वारा उत्तर कोरिया की संप्रभुता का अतिक्रमण करने की कोशिश की जाएगी तो उसे भविष्य में इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
- साथ ही, उत्तर कोरिया ने संयुक्त राष्ट्र निकाय पर “दोहरे व्यवहार के मानक” अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा है, कि ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’, अमेरिका और उसके सहयोगियों देशों द्वारा ‘समान हथियारों के परीक्षण करने पर समान रूप से मुद्दा नहीं उठाता है।
वर्तमान परिदृश्य:
चूंकि उत्तर कोरिया द्वारा अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों को परमाणु हथियारों से लैस किया जा रहा था, इसे देखते हुए ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के कई प्रस्तावों के तहत, उत्तर कोरिया के लिए किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल गतिविधियों में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) के बारे में:
- ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर’ द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) सहित संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों की स्थापना की गई है।
- चार्टर के तहत, सुरक्षा परिषद को निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, और इसके निर्णय सदस्य-राष्ट्रों के लिए बाध्यकारी होते है।
- स्थायी और गैर-स्थायी सदस्य: ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमे 5 सदस्य स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते है।
- ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ द्वारा हर साल, दो वर्ष के कार्यकाल हेतु पांच अस्थायी सदस्यों का चुनाव किया जाता है।
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ की अध्यक्षता के बारे में:
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ की अध्यक्षता (Security Council Presidency), सदस्य राष्ट्रों द्वारा अपने नामों के अंग्रेजी वर्णानुक्रमानुसार बारी-बारी से एक महीने के लिए की जाती है।
- ‘सुरक्षा परिषद’ 15 सदस्य-राष्ट्रों के मध्य मासिक रूप से यह क्रम जारी रहता है।
- सदस्य-देश के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख को ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के अध्यक्ष के रूप में जाना जाता है।
- ‘सुरक्षा परिषद’ का अध्यक्ष, परिषद के कार्यों का समन्वय करने, नीतिगत विवादों पर निर्णय करने और कभी-कभी परस्पर विरोधी समूहों के बीच एक राजनयिक या मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्तावित सुधार:
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाँच प्रमुख मुद्दों पर सुधार किया जाना प्रस्तावित है:
- सदस्यता की श्रेणियां,
- पांच स्थायी सदस्यों को प्राप्त वीटो पॉवर का प्रश्न,
- क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व,
- विस्तारित परिषद का आकार और इसकी कार्यप्रणाली, और,
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं संयुक्त राष्ट्र महासभा के मध्य संबंध।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु प्रमुख बिंदु:
- भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि विभिन्न अभियानों में तैनात, भारत के शांति सैनिकों की संख्या, P5 देशों की तुलना में लगभग दोगुनी है।
- भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश भी है।
- मई 1998 में भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (Nuclear Weapons State – NWS) का दर्जा प्राप्त हुआ था, और वह मौजूदा स्थायी सदस्यों के समान परमाणु हथियार संपन्न है, इस आधार पर भी भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का स्वभाविक दावेदार बन जाता है।
- भारत, तीसरी दुनिया के देशों का निर्विवाद नेता है, और यह ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ और जी-77 समूह में भारत द्वारा नेतृत्व की भूमिका से सपष्ट परिलक्षित होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने “कॉफी क्लब” के बारे में सुना है? यह 40 सदस्य देशों का एक अनौपचारिक समूह है। इसके क्या उद्देश्य हैं?
क्या आप जानते हैं कि:
- हाल ही में, भारत ने अगस्त माह के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) की क्रमिक अध्यक्षता (rotating Presidency) ग्रहण की थी।
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के अध्यक्ष के रूप में, भारत का यह दसवां कार्यकाल था।
- भारत, वर्तमान में 2021-22 कार्यकाल के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ का एक ‘गैर-स्थायी सदस्य’ भी है, और इस दौरान भारत, पहली बार UNSC का अध्यक्ष बना था।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के बारे में।
- सदस्य
- चुनाव
- कार्य
- UNSC प्रेसीडेंसी के बारे में
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के बारे में
मेंस लिंक:
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में सुधारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
पीएम गतिशक्ति – राष्ट्रीय मास्टर प्लान
संदर्भ:
भारत में एजेंसियों के बीच समन्वय और सहयोग की बड़े पैमाने पर अनुपस्थिति, समयबद्ध बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए एक बड़ी चुनौती रही है।
कई इन परियोजनाओं में बहुत अधिक समय लग जाता है, जिससे इनकी लागत में महत्वपूर्ण वृद्धि हो जाती है।
देश में लंबित परियोजनाओं का अवलोकन:
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI), भारत सरकार के अनुसार, वर्ष 2021 की शुरुआत में, 21.45 लाख करोड़ रुपये से अधिक लागत की केंद्र सरकार की 1,687 परियोजनाओं के कार्यान्वयन में मुख्यतः देरी होने की वजह से, इनकी लागत में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है।
- मूल परियोजना लागत का कम आंकलन, भूमि अधिग्रहण की बढ़ती लागत, पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव स्वीकृति में देरी, और औद्योगिक लाइसेंसिंग अनुमति, सड़क मार्गो के आर-पार पाइपलाइन / ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाना, उपयोगिताओं का स्थानांतरण, परियोजना वित्तपोषण के टाई-अप में देरी, विस्तृत इंजीनियरिंग को अंतिम रूप देने में देरी आदि, इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी के कारण हैं।
- इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण और अतिक्रमणों को हटाने, राहत और पुनर्वास योजना और कार्यान्वयन, अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने, आवश्यक बिजली और पानी की आपूर्ति, और कार्य आदेश से संबंधित मुद्दे, जैसी राज्य सरकार के स्तर पर कई बाधाएं भी कार्यान्वयन में देरी के कारण हैं।
समाधान:
हाल ही में देश में ‘बुनियादी ढांचे के विकास’ हेतु ‘पीएम गतिशक्ति-राष्ट्रीय मास्टर प्लान’ (PM GatiShakti — National Master Plan) का शुभारंभ किया गया है। इस ‘मास्टर प्लान’ का उद्देश्य ‘मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी’ को बढ़ावा देना और लॉजिस्टिक लागत को कम करना है।
यह कार्यक्रम, वृहत् योजनाओं (macro planning) और सूक्ष्म कार्यान्वयन के मध्य मौजूद भारी अंतर को पाटने में सक्षम है।
‘पीएम गतिशक्ति’ के बारे में:
‘पीएम गतिशक्ति’ (PM GatiShakti), एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जिसके तहत बुनियादी ढांचा कनेक्टिविटी परियोजनाओं की एकीकृत योजना और समन्वित कार्यान्वयन हेतु रेलवे और सड़क मार्ग मंत्रालय सहित 16 मंत्रालयों को एक साथ लाया जाएगा।
इसका उद्देश्य, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं हेतु समग्र योजना और इनका निष्पादन सुनिश्चित करना है।
प्रद्दत सेवाएँ:
- इस पोर्टल पर 200 से अधिक परतों में भू-स्थानिक आंकड़े उपलब्ध होंगे, जिसमे सड़कों, राजमार्गों, रेलवे और टोल प्लाजा जैसे मौजूदा बुनियादी ढांचे के साथ-साथ जंगलों, नदियों और जिले की सीमाओं के बारे में भौगोलिक जानकारी शामिल होगी, जिससे योजना बनाने और मंजूरी प्राप्त करने में सहायता मिल सकेगी।
- ‘पीएम गतिशक्ति’ पोर्टल पर विभिन्न सरकारी विभागों के लिए वास्तविक समय में और एक केंद्रीकृत स्थान पर, विभिन्न परियोजनाओं, विशेष रूप से बहु-क्षेत्रीय और बहु-क्षेत्रीय प्रभाव वाली परियोजनाओं की प्रगति को ट्रैक करने की सुविधा होगी।
महत्व:
पीएम गतिशक्ति का उद्देश्य, सभी विभाग के लिए ‘एक केंद्रीकृत पोर्टल के जरिए एक-दूसरे की परियोजनाओं पर गहरी नजर रखने और परियोजनाओं के व्यापक नियोजन और निष्पादन के क्रम में महत्वपूर्ण डेटा का आदान – प्रदान करते हुए प्रत्येक विभाग को एक-दूसरे की गतिविधियों से अवगत रहने को सुनिश्चित करना है।
- इसके माध्यम से विभिन्न विभाग विविध क्षेत्रों से संबंधित पारस्परिक व्यवहार के जरिए अपनी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने में सक्षम होंगे।
- मल्टी- मॉडल कनेक्टिविटी, परिवहन के एक साधन से दूसरे साधन में लोगों, वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही के लिए एकीकृत और निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। यह कदम बुनियादी ढांचे को अंतिम मील तक कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान करेगा और यात्रा में लोगों को लगने वाले समय को भी कम करेगा।
आवश्यकता:
भारत में अवसंरचना या बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के निर्माण में पिछले कई दशकों से अनगिनत समस्याएं आड़े आती रही थीं। विभिन्न विभागों के बीच समन्वय का घोर अभाव देखा जाता था।
- उदाहरण के लिए, एक बार कोई सड़क बन जाने के बाद अन्य एजेंसियां भूमिगत केबल, गैस पाइपलाइन, इत्यादि बिछाने जैसी गतिविधियों के लिए निर्मित सड़क को फिर से खोद देती थीं। इससे देश की सड़क अवसंरचना और आवाजाही बुरी तरह प्रभावित हुई है।
- इसके अलावा, भारत में लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी का लगभग 13-14% है जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह जीडीपी का लगभग 7-8% रहती है। लॉजिस्टिक्स की उच्च लागत, अर्थव्यवस्था के भीतर ‘लागत संरचनाओं’ को प्रभावित करती है, और निर्यातकों के लिए खरीदारों को माल भेजने के लिए इसे और अधिक महंगा बनाती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- पीएमगतिशक्ति परियोजना के बारे में
- प्रमुख विशेषताएं
- प्रमुख घटक
मेंस लिंक:
पीएम गतिशक्ति परियोजना के महत्व के बारे में चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
राजद्रोह कानून
संदर्भ:
देशद्रोह / राजद्रोह संबंधी कानून (Sedition law) को खत्म करने की मांग करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने सरकार की आलोचना करने वालों पर ‘देशद्रोह’ का आरोप लगाए जाने पर चिंता व्यक्त की है।
पूर्व न्यायाधीश ने कहा है, कि यह देशद्रोह कानूनों को पूरी तरह से समाप्त करने और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को अनुमति देने का समय है, बशर्ते यह किसी को हिंसा के लिए प्रोत्साहित नहीं करता हो।
पूर्व न्यायधीश द्वारा देशद्रोह क़ानून के दुरुपयोग पर व्यक्त की गई चिंता:
जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने वालों पर, अधिकारियों द्वारा कड़े राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जा रहा है, वहीं हेट स्पीच देने वालों से निपटा नहीं जा रहा है।
देशद्रोह / राजद्रोह कानून (Sedition law) क्या है?
सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के बारे में अपनी शिकायतों को आवाज देने पर अथवा महामारी की दूसरी लहर के दौरान, चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच, उपकरण, दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर हासिल करने के लिए मदद मांगने के लिए आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ राजद्रोह कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा, शब्दों द्वारा, लिखित अथवा बोलने के माध्यम से, अथवा संकेतों द्वारा, या दृश्य- प्रदर्शन द्वारा, या किसी अन्य तरीके से, विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ, घृणा या अवमानना दिखाने, उत्तेजित होने अथवा उत्तेजना भड़काने का प्रयास करने पर उसे, आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना, या तीन साल तक की कैद और साथ में जुर्माना, या मात्र जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।
इस क़ानून के दुरुपयोग से संबंधित मुद्दे:
राजद्रोह कानून लंबे समय से विवादों में रहा है। अक्सर सरकारों के ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-A’ कानून का उपयोग करने पर, उनकी नीतियों के मुखर आलोचकों द्वारा आलोचना की जाती है।
- इसलिए, इस धारा को व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है, और एक प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत आती है।
- इस क़ानून को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा 1860 के दशक में लागू किया गया था, उस समय से लेकर आज तक यह क़ानून बहस का विषय रहा है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित स्वतंत्रता आंदोलन के कई शीर्ष नेताओं पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए थे।
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले:
केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामला (1962):
- आईपीसी की धारा 124A के तहत अपराधों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले (1962) में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए थे।
- अदालत ने फैसला सुनाया था, कि सरकार के कार्यों की चाहें कितने भी कड़े शब्दों में नापसंदगी व्यक्त की जाए, यदि उसकी वजह से हिंसक कृत्यों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं होती है, तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा।
बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामला:
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था, कि केवल नारे लगाना, इस मामले में जैसे कि ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, राजद्रोह नहीं है।
जाहिर है, राजद्रोह कानून को गलत तरीके से समझा जा रहा है और असहमति को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
समय की मांग:
शीर्ष अदालत ने इस संदर्भ में एक टिप्पणी करते हुए कहा है, कि “विशेष रूप से समाचार, सूचना को संप्रेषित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के अधिकार, तथा देश के किसी भी हिस्से में जारी शासन की आलोचना करने वालों के संदर्भ में, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124A, 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या की आवश्यकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘जस्टिस नरीमन’ द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण फैसलों के बारे में जानते हैं?
उनके प्रमुख फैसलों में ‘श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ’ का 2015 का ऐतिहासिक निर्णय शामिल है, जिसमें अदालत ने ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A’ को मनमाना और असंवैधानिक प्रावधान बताते हुए रद्द कर दिया था। इस क़ानून का इस्तेमाल प्रायः सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के लिए व्यक्तियों को आरोपित करने के लिए किया जाता था।
प्रीलिम्स लिंक:
- राजद्रोह को किस क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है?
- आईपीसी की धारा 124A किससे संबंधित है?
- आईपीसी की धारा 153 किससे संबंधित है?
- इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19
मेंस लिंक:
भारत में राजद्रोह कानून लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
पंडित बिरजू महाराज
हाल ही में, पारंपरिक भारतीय नृत्य शैली ‘कथक’ को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध कथक नर्तक बिरजू महाराज का निधन हो गया।
- वह भारत के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय कलाकारों में से एक थे।
- ‘बिरजू महाराज’ शास्त्रीय कथक नृत्य के लखनऊ के कालका-बिंदादिन घराना से ताल्लुक रखते थे। इनका जन्म 4 फरवरी, 1938 को लखनऊ में हुआ था।
पुरस्कार: 1983 में पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और कालिदास सम्मान।
‘कथक’ के बारे में:
‘कथक’ (Kathak), हिंदुस्तानी या उत्तर भारतीय संगीत से संबंधित शास्त्रीय नृत्य का एकमात्र रूप है। उन हिंदुस्तानी संगीत तथा कथक नृत्य का समानांतर विकास हुआ है, और एक दूसरे को पूरकता और समृद्धता प्रदान करते हैं। (ओडिसी नृत्य में ‘ओडिसी संगीत’ का उपयोग किया जाता है, जोकि हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत का मिश्रण है)।
- कथक शब्द की उत्पत्ति कथा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ एक कहानी से है।
- कथाकार या कहानी सुनाने वाले वह लोग होते हैं, जो प्राय: दंतकथाओं, पौराणिक कथाओं और महाकव्यों की उपकथाओं के विस्तृत आधार पर कहानियों का वर्णन करते हैं।
- यह एक मौखिक परंपरा के रूप में शुरू हुआ। कथन को ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें स्वांग और मुद्राएं कदाचित बाद में जोड़ी गईं।
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