[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 25 April 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. दलबदल-रोधी कानून
  2. प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना
  3. फ़ॉकलैंड विवाद

 

सामान्य अध्ययन-III

  1. पंचायती राज मंत्रालय एवं यूएनडीपी के बीच ‘सतत विकास लक्ष्यों’ पर एक समझौता
  2. आक्रामक प्रजातियों से पश्चिमी घाट के वन्यजीव आवासों को खतरा
  3. अरुणाचल प्रदेश – असम सीमा विवाद

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा का निलंबन
  2. ऊर्जा प्रवाह
  3. लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार
  4. ‘जलवायु परिवर्तन’ को नकारने वाले विज्ञापनों पर ट्विटर की नई नीति
  5. गुजरात में भारत का पहला पोर्टेबल सोलर रूफटॉप सिस्टम
  6. रतले और क्वार विद्युत परियोजनाएं
  7. बनिहाल काजीगुंड सड़क सुरंग
  8. राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस
  9. घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण
  10. भारत की पहली कार्बन-न्यूट्रल पंचायत

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

दलबदल-रोधी कानून


(Anti-defection law)

संदर्भ:

हाल ही में, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा है, कि ‘दलबदल-रोधी कानून’ (Anti-defection law) की खामियों को दूर करने के लिए इसमें संशोधन करने का समय आ गया है।

चुनौतियां:

  • ‘दलबदल-रोधी कानून’ लागू होने के बावजूद, ‘विधि-निर्माताओं’ का एक राजनीतिक दल से राजनीतिक दूसरे दल में ‘दलबदल’ हमेशा की तरह हो रहा है।
  • स्पीकर, चेयरपर्सन और कोर्ट भी सालों से दलबदल-रोधी मामलों को घसीट रहे हैं।
  • मौजूदा कानून में, दल-बदल रोधी मामलों में सदन के सभापति या अध्यक्ष की कार्रवाई के लिए ‘समय सीमा’ के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है।

‘दलबदल-रोधी कानून’ के बारे में:

‘दलबदल-रोधी कानून’ (Anti-defection law) भारतीय संविधान की ‘दसवीं अनुसूची’ के अंतर्गत आता है।

  • संविधान में ‘दसवीं अनुसूची’ को 52 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा शामिल किया गया था थी।
  • इस क़ानून में उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिनके तहत, किसी ‘विधि-निर्माताओं’ द्वारा राजनीतिक दल बदलने पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
  • क़ानून में, किसी निर्दलीय ‘विधि-निर्माता’ द्वारा चुनाव जीतने के बाद किसी पार्टी में शामिल होने संबंधी परिस्थितियों को भी निर्धारित किया गया है।

इस क़ानून में किसी सांसद या विधायक द्वारा राजनीतिक दल बदलने के संबंध में निम्नलिखित तीन परिदृश्यों को निर्दिष्ट किया गया है:

  1. जब किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
  2. जब कोई सांसद या विधायक, जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी सीट जीत चुका है, चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। [उपरोक्त दो मामलों में, सांसद / विधायक, दल परिवर्तन करने (या शामिल होने) पर विधायिका में अपनी सीट खो देता है।]
  3. मनोनीत सदस्यों से संबंधित: मनोनीत सदस्यों (Nominated Member) के मामले में, कानून उन्हें मनोनीत किए जाने के बाद, किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए छह महीने का समय देता है। यदि वे इस समयावधि के बाद किसी पार्टी में शामिल होते हैं, तो वे सदन में अपनी सीट खो देते हैं।

निर्हरता से संबंधित मामले:

  • दल-बदल विरोधी कानून के तहत, किसी सांसद या विधायक की निर्हरता / अयोग्यता (Disqualification) के विषय में फैसला करने की शक्ति विधायिका के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
  • कानून में इस विषय पर निर्णय लेने हेतु कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गयी है।
  • पिछले वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल रोधी मामलों का फैसला तीन महीने की समयावधि के भीतर किया जाना चाहिए।

कानून के तहत अपवाद:

यद्यपि, सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना, अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।

  1. इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
  2. ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।

कानून में खामियां:

  1. इस क़ानून का विरोध करने वालों का कहना है, कि मतदाताओं द्वारा चुनाव में व्यक्तियों को चुना जाता है, न कि पार्टियों को और इसलिए दलबदल रोधी कानून निष्फल है।
  2. कई उदाहरणों में, सदन के अध्यक्ष (जोकि आमतौर पर सत्तारूढ़ दल से चुना जाता है) द्वारा ‘निर्हरता’ संबंधी मामलों पर निर्णय लेने में देरी की जाती है।
  3. क़ानून में किया गया संशोधन, ‘विधि-निर्माताओं’ के राजनीतिक दल में ‘विभाजन’ को मान्यता नहीं देता है, जबकि इसके बजाय ‘विलय’ को मान्यता देता है।

इस विषय में अदालत द्वारा हस्तक्षेप:

कुछ मामलों में न्यायालयों ने विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप किया है।

  1. 1992 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा था, कि अध्यक्ष के समक्ष ‘दलबदल-रोधी कानून’ से संबंधित कार्यवाही एक ‘अधिकरण’ के समान है और इस प्रकार, इसे न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत रखा जा सकता है।
  2. जनवरी 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने संसद से विधान सभा अध्यक्षों को प्राप्त ‘दलबदल-रोधी कानून के तहत विधायकों को अयोग्य घोषित करने अथवा नहीं करने’ का निर्धारण करने संबंधी विशेष शक्ति से वंचित करने हेतु संविधान में संशोधन करने के लिए कहा था।
  3. मार्च 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के मंत्री थौनाओजम श्यामकुमार सिंह की विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी और उनके लिए “अगले आदेश तक विधानसभा में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया। इनके खिलाफ निर्हरता याचिकाएं 2017 से स्पीकर के समक्ष लंबित थीं।

सुझाव:

  1. निर्वाचन आयोग द्वारा दलबदल संबंधी मामलों में ‘निर्णायक प्राधिकारी’ इसे अर्थात ‘निर्वाचन आयोग’ को बनाए जाने का सुझाव दिया गया है।
  2. अन्य लोगों ने तर्क दिया है, कि दलबदल संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा की जानी चाहिए।
  3. उच्चतम न्यायालय ने सुझाव दिया है, कि दल-बदल के मामलों का त्वरित और निष्पक्ष निर्णय करने के लिए संसद को उच्च न्यायपालिका के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ‘स्वतंत्र न्यायाधिकरण का गठन’ करना चाहिए।
  4. कुछ टिप्पणीकारों का कहना है कि, यह कानून विफल हो गया है और इनके द्वारा इस क़ानून को हटाने की सिफारिश की जा रही है। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सुझाव दिया है, कि यह क़ानून केवल ‘अविश्वास प्रस्ताव’ की स्थिति में सरकारों को बचाने के लिए लागू होता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि दलबदल रोधी कानून (1969, 1973) बनाने के शुरुआती प्रयासों में राजनीतिक दलों में शामिल होने वाले निर्दलीय विधायकों को शामिल नहीं किया गया था? फिर, उन्हें कानून के तहत कब शामिल किया गया? इसके बारे में जानकारी हेतु संक्षिप्त अवलोकन कीजिए।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. दल-बदल कानून संबधित विभिन्न समितियों और आयोगों के नाम
  2. समिति तथा आयोग में अंतर
  3. पीठासीन अधिकारी तथा न्यायिक समीक्षा का निर्णय
  4. राजनीतिक दलों के विलय तथा विभाजन में अंतर
  5. क्या पीठासीन अधिकारी पर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है?
  6. संबंधित मामलों में उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय

मेंस लिंक:

दलबदल रोधी कानून के प्रावधानों का परीक्षण कीजिए। क्या यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना


(Pradhan Mantri Jan-Aushadhi Yojana)

संदर्भ:

आम आदमी, विशेषकर गरीब जनता के लिए सस्ती दर पर गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, सरकार ने मार्च 2024 तक ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्रों’ (Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Kendras – PMBJKs) की संख्या को 10000 तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

पृष्ठभूमि:

देश में 31 मार्च 2022 तक जनऔषधि केंद्रों की संख्या बढ़कर 8610 हो चुकी है।

  • ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना’ (PM Bhartiya Janaushadhi Pariyojana – PMBJP) के तहत देश के सभी 739 जिलों को इस योजना में शामिल किया गया है।
  • सरकार ने, 406 जिलों के 3579 प्रखंडों को कवर करने के लिए नए आवेदन आमंत्रित किए हैं।

Current Affairs

PMBJP के बारे में:

‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना’ (PMBJP) रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अधीन ‘फार्मास्युटिकल्स विभाग’ द्वारा चलाया जा रहा एक अभियान है।

  • इस अभियान के तहत विशेष केंद्रों के माध्यम से आम लोगों को सस्ती कीमत पर गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराई जाती है।
  • इन विशेष केंद्रों को ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र’ के रूप में जाना जाता है।
  • इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2008 में की गयी थी, तथा वर्ष 2015 में इस योजना को फिर से नए रूप में किया शुरू गया।
  • इस योजना का कार्यान्वयन ‘फार्मास्युटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ़ इंडिया’ (PMBI) के द्वारा किया जाता है।

योजना के प्रमुख बिंदु:

  1. गुणवत्ता युक्त दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
  2. दवाओं पर होने वाले व्यय को कम करने हेतु गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं का कवरेज बढ़ाना, जिससे प्रति व्यक्ति उपचार की लागत को फिर से परिभाषित किया जा सके।
  3. शिक्षा और प्रचार के माध्यम से जेनेरिक दवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना, ताकि गुणवत्ता को केवल उच्च कीमत से न आँका जाए।
  4. एक सार्वजनिक कार्यक्रम, जिसमें सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठन, सोसायटी, सहकारी निकाय और अन्य संस्थान शामिल हैं।
  5. सभी चिकित्सीय श्रेणियों में, जहां भी आवश्यक हो, कम उपचार लागत और आसान उपलब्धता के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार करके जेनेरिक दवाओं की मांग पैदा करना।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि जीएमपी पर WHO का पहला मसौदा वर्ष 1968 में पारित किया गया था? वर्ष 1969 में, विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा वैश्विक बाजार में चल रहे फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता पर WHO प्रमाणन योजना के पहले संस्करण की सिफारिश करने के बाद WHO-GMP को स्वीकार किया गया था।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. इस योजना का आरंभ कब किया गया था?
  2. इसका नाम परिवर्तन कब किया गया?
  3. यह योजना किस मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी?
  4. BPPI के बारे में- स्थापना और कार्य
  5. जेनेरिक दवाएं क्या है?

मेंस लिंक:

प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना (PMBJP) की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

फ़ॉकलैंड विवाद


(Falklands Dispute)

संदर्भ:

हाल ही में, भारत और अर्जेंटीना द्वारा ‘फ़ॉकलैंड द्वीप समूह’ (Falkland Islands) पर यूनाइटेड किंगडम के साथ “वार्ता हेतु एक आयोग” का शुभारंभ किया गया।

इस आयोग का उद्देश्य ‘आइल्स माल्विनास’ (Islas Malvinas) पर क्षेत्रीय विवाद को निपटाने हेतु प्रयास करना है। ‘आइल्स माल्विनास’ को यूनाइटेड किंगडम में ‘फ़ॉकलैंड द्वीप समूह’ के रूप में जाना जाता है।

संबंधित प्रकरण:

  • ‘ब्रिटिश’, 1765 में वेस्ट फ़ॉकलैंड को बसाने वाले पहले लोग थे, लेकिन 1770 में स्पेनिश लोगों द्वारा इन्हें खदेड़ दिया गया था।
  • युद्ध की धमकी के बाद 1771 में वेस्ट फ़ॉकलैंड पर ब्रिटिश चौकी को बहाल कर दिया गया था, लेकिन बाद में फ़ॉकलैंड पर अपने दावे को त्यागे बिना, आर्थिक कारणों से ब्रिटिश 1774 में इस द्वीप से हट गए।
  • स्पेन ने 1811 तक पूर्वी फ़ॉकलैंड (जिसे इसे सोलेदाद द्वीप कहा जाता है) में एक बस्ती पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।
  • 1816 में स्पेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने के पश्चात् अर्जेंटीना सरकार ने 1820 में फ़ॉकलैंड पर अपनी संप्रभुता की घोषणा की।
  • हालांकि, 1841 में, ब्रिटेन द्वारा फ़ॉकलैंड के लिए एक ‘ब्रिटिश सिविल लेफ्टिनेंट गवर्नर’ को नियुक्त किया गया था।
  • फरवरी 1982 में, अर्जेंटीना की सैन्य सरकार ने फ़ॉकलैंड पर आक्रमण किया। इस हमले ने ‘फ़ॉकलैंड द्वीपसमूह युद्ध’ की शुरूआत कर दी।
  • इस युद्ध का अंत ‘स्टेनली’ में अर्जेंटीना की सेना के ब्रिटिश सैनिकों के समक्ष आत्मसमर्पण के साथ हुआ, और इन द्वीपों पर ब्रिटिश सैनिकों ने जबरन कब्जा कर लिया।
  • मार्च 2013 में आयोजित एक जनमत संग्रह में, द्वीपवासियों ने ‘ब्रिटिश विदेशी क्षेत्र’ बने रहने के लिए लगभग सर्वसम्मति से मतदान किया।

युद्धों और संयुक्त राष्ट्र में चर्चाओं के बावजूद, फ़ॉकलैंड द्वीपसमूह पर संप्रभुता का मुद्दा विवाद का विषय बना हुआ है।

अवस्थिति:

  • फ़ॉकलैंड द्वीप, दक्षिण अमेरिका के सबसे दक्षिणी बिंदु पर दक्षिण-पश्चिम अटलांटिक महासागर में स्थित, ‘यूनाइटेड किंगडम’ का एक ‘विदेशी क्षेत्र’ (Overseas Territory) है।
  • यह द्वीप समूह पृथ्वी के दक्षिणी और पश्चिमी दोनों गोलार्द्धों में विस्तारित है।
  • इन्हें ‘माल्विनास द्वीप समूह’ (Malvinas Islands) भी कहा जाता है।

Current Affairs

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. माल्विनास द्वीप समूह
  2. फ़ॉकलैंड द्वीप समूह
  3. फ़ॉकलैंड विवाद

मेंस लिंक:

फ़ॉकलैंड द्वीपसमूह से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।

पंचायती राज मंत्रालय एवं यूएनडीपी के बीच ‘सतत विकास लक्ष्यों’ पर एक समझौता


संदर्भ:

हाल ही में, भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme – UNDP) ने ‘सतत विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण’ (localisation of Sustainable Development Goals) पर एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।

‘सतत विकास लक्ष्यों के स्थानीयकरण’ की आवश्यकता:

  • पंचायती राज संस्थाएं (Panchayati Raj institutions), ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन का एक महत्वपूर्ण घटक रही हैं।
  • इन संस्थाओं ने विभिन्न विभागों/मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में अंतिम छोर तक को जोड़ने में सफलता हासिल की है। ‘सतत विकास लक्ष्यों’ (Sustainable Development Goals) को भी तभी हासिल किया जा सकता है जब हम ‘पंचायती राज संस्थाओं’ को सक्रिय रूप से इनके कार्यान्वयन में शामिल करें।
  • इसके अलावा, भारत की लगभग 65% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।

 

UNDP के बारे में:

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme – UNDP) द्वारा विकासशील देशों को विशेषज्ञ सलाह, प्रशिक्षण और अनुदान सहायता प्रदान की जाती है, और इसमें सबसे अल्प विकसित देशों को सहायता पर विशेष जोर दिया जाता है।

  • UNDP, राष्ट्रों के बीच तकनीकी और निवेश सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • ‘UNDP कार्यकारी बोर्ड’ में संपूर्ण विश्व से 36 देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जो बारी-बारी से बोर्ड में अपनी सेवा प्रदान करते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, पूरी तरह से ‘सदस्य राष्ट्रों के स्वैच्छिक योगदान’ से वित्त पोषित होता है।
  • यूएनडीपी को ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ (UNGA) के अधीन एक कार्यकारी बोर्ड के रूप में माना जाता है।

रिपोर्ट:

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के ‘मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय’ द्वारा प्रतिवर्ष ‘मानव विकास रिपोर्ट’ (Human Development Report – HDR) शीर्षक से एक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. SDGs बनाम MDGs- समानताएं, अंतर और समय अवधि
  2. इन लक्ष्यों को अपनाना और इनका प्रशासन
  3. संयुक्त राष्ट्र मानव पर्यावरण अभिसमय बनाम ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’
  4. UNCED बनाम UNCSD
  5. रियो+20 बनाम एजेंडा 21.
  6. आदिस अबाबा एक्शन
  7. गरीबी और पर्यावरण से संबंधित लक्ष्य
  8. राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अभीष्ट योगदान (INDC)

मेंस लिंक:

‘सतत विकास लक्ष्यों’ के तहत निर्धारित प्रमुख उद्देश्यों और लक्ष्यों को सूचीबद्ध कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

आक्रामक प्रजातियों से पश्चिमी घाट के वन्यजीव आवासों को खतरा


संदर्भ:

सेन्ना स्पेक्टबिलिस (Senna Spectabilis), ज्यादातर ‘नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व’ (NBR) के वन क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक आक्रामक प्रजाति (Invasive Species) का पौधा है।

इन आक्रामक पौधों के बड़े पैमाने पर हो रहे विकास को रोकने के लिए प्रभावी कदमों की कमी, पश्चिमी घाट के वन्यजीव आवासों के संरक्षण के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

संबंधित चिंताएं:

  • यह आक्रामक प्रजातियां अब पश्चिमी घाट के सबसे प्रमुख वन्यजीव आवासों में फैल गई हैं और देशी वनस्पतियों को हटाते हुए हाथियों, हिरणों, गौर और बाघों के आवासों को नष्ट कर रही हैं।
  • इस प्रजाति के ‘ऐलेलोपैथिक लक्षण’ (Allelopathic Traits), इस पौधों के तहत अन्य पौधों को बढ़ने -पनपने से रोक देते हैं। एलेलोपैथी (Allelopathy) एक जैविक घटना होती है, जिसके द्वारा कोई जीवधारी एक या एक से अधिक जैव रसायन उत्पन्न करता है, जो अन्य जीवों के अंकुरण, विकास, अस्तित्व और प्रजनन को प्रभावित करता है।
  • एलेलोपैथी, जमीनी स्तर पर प्राथमिक उत्पादकता को अत्यधिक प्रभावित करती है। जिन क्षेत्रों में ये आक्रामक प्रजातियां पायी जाती हैं, उनके नीचे जंगलों की सतह लगभग नग्न हो जाती है। घास और जड़ी-बूटियाँ पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं और शाकाहारी जीवों को अपना भोजन नहीं मिल पाता है।
  • वन्य जीवों के भरण-पोषण हेतु जंगलों की वहन क्षमता इन आक्रमक प्रजातियों की वजह से काफी कम हो रही है, जिससे ‘मानव-पशु संघर्ष’ और तीव्र होता जा रहा है।

इन आक्रामक प्रजातियों को नष्ट करने हेतु प्रयास :

केरल वन विभाग द्वारा, इन पेड़ों को उखाड़ने, इन वृक्षों के चारो ओर खाई बनाने, काटने, पेड़ की शाखाओं को काटने और यहां तक ​​​​कि रसायनों के प्रयोग का परीक्षण करके, इन आक्रामक प्रजातियों को नष्ट करने का प्रयास किया जा चुका है। हालाँकि, सभी प्रयास व्यर्थ रहे। और नष्ट होने के बजाय, प्रत्येक कटे हुए वृक्षों के तनों से कई शाखाएं निकलने लगी। कर्नाटक और तमिलनाडु में भी यही स्थिति है।

‘आक्रामक प्रजातियों’ के बारे में:

‘आक्रामक विदेशी प्रजातियों’ (Invasive alien species – IAS) में वे पौधे, जानवर, रोगजनक और अन्य जीव शामिल होते हैं, जो एक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गैर-स्थानिक होते हैं, तथा आर्थिक या पर्यावरणीय नुकसान पहुंचा सकते हैं या मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

विशेष रूप से, ‘आक्रामक विदेशी प्रजातियां’ जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, जिसके तहत – प्रतिस्पर्धा, शिकार, या रोगजनकों के संचरण के माध्यम से – देशी प्रजातियों की कमी या उन्मूलन हो जाता है, और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों में व्यवधान उपस्थित हो जाता है।

‘आक्रामक प्रजातियों’ के प्रभाव:

  1. जैव विविधता में कमी।
  2. प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और गुणवत्ता में कमी।
  3. पानी की कमी।
  4. जंगल की आग और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि।
  5. संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए रसायनों के अति प्रयोग से होने वाला प्रदूषण।

इस संबंध में किए गए प्रयास:

  1. जैव विविधता अभिसमय (CBD) के अनुसार, ‘आक्रामक प्रजातियों’ के प्रभाव का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता है।
  2. आइची जैव विविधता लक्ष्य संख्या 9 (Aichi Biodiversity Targets 9) और ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य संख्या 15’ के एक अनुच्छेद ‘स्थल पर जीवन’ में विशेष रूप से इस मुद्दे को संबोधित किया गया है।
  3. ‘आईयूसीएन एसएससी इनवेसिव स्पीशीज स्पेशलिस्ट ग्रुप’ (ISSG) का उद्देश्य ‘आक्रामक विदेशी प्रजातियों’ (Invasive alien species – IAS) को रोकने, नियंत्रित करने या मिटाने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर पारिस्थितिक तंत्र और उसकी मूल प्रजातियों के लिए खतरों को कम करना है।
  4. इसके लिए IUCN द्वारा ‘ग्लोबल इनवेसिव स्पीशीज़ डेटाबेस’ (GISD) और ‘ग्लोबल रजिस्टर ऑफ़ इंट्रोड्यूस्ड एंड इनवेसिव स्पीशीज़’ (GRIIS) नामक ‘जानकारी मंच’ विकसित किए गए हैं।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।

अरुणाचल प्रदेश – असम सीमा विवाद


(Arunachal Pradesh – Assam border dispute)

संदर्भ:

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ‘पेमा खांडू’ और उनके असम के मुख्यमंत्री ‘हिमंत बिस्वा सरमा’ ने, हाल ही में, अपने अंतर-राज्यीय सीमा विवादों को निपटाने के लिए ‘जिला स्तरीय समितियां’ बनाने का फैसला किया है।

हाल ही में, केंद्र सरकार ने ‘असम-मेघालय सीमा’ पर विवादित क्षेत्रों को आंशिक रूप से हल करने के लिए एक समझौते को मंजूरी पर अपनी मुहर लगायी थी।

असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद की उत्पत्ति:

असम का, उससे अलग करके गठित किए गए पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों के साथ सीमा विवाद रहा है।

  • अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को असम से 1972 में केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में अलग किया गया था, और बाद में, 1987 में इनको राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था।
  • इन नवगठित किसी भी राज्य ने अपनी “संवैधानिक सीमा” को स्वीकार नहीं किया। इनका कहना है, कि इनके राज्यों की सीमा अविभाजित असम के पक्षपातपूर्ण प्रशासन द्वारा आदिवासी हितधारकों से परामर्श किए बगैर तय की गयी थी।
  • अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे का संबंध, 1951 की असम के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता में गठित एक उप-समिति द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट से है।

संबंधित विवाद:

अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच 804 किलोमीटर की सीमा पर स्थित लगभग 1,200 बिंदुओं पर विवाद है।

विवाद को सुलझाने के प्रयास:

शीर्ष अदालत द्वारा 2006 में अपने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ‘स्थानीय सीमा आयोग’ की नियुक्ति की गयी थी।

  • सितंबर 2014 में प्रस्तुत की गयी अपनी रिपोर्ट में, इस आयोग ने सिफारिश की थी कि अरुणाचल प्रदेश को 1951 में स्थानांतरित किए गए कुछ क्षेत्रों को असम के लिए वापस सौंप देना चाहिए, और इसके अलावा दोनों राज्यों को वार्ता के माध्यम से बीच का रास्ता खोजने की सलाह दी जानी चाहिए।
  • इस आयोग की सिफारिशों पर कोई सहमति नहीं बनी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि 1873 में ब्रिटिश सरकार ने मैदानी इलाकों को सीमांत पहाड़ियों से अस्पष्ट रूप से अलग करते हुए ‘इनर-लाइन रेगुलेशन’ लागू किया था, और इस सीमांकन को बाद में 1915 में ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट्स’ के रूप में निर्दिष्ट कर दिया गया?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद के बारे में।
  2. पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक स्थिति और सीमाएं।
  3. 1873 का बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट।
  4. लुशाई पहाड़ियाँ और कछार के मैदान।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा का निलंबन

हाल ही में, भारत ने चीनी नागरिकों को जारी किए गए ‘पर्यटक वीजा’ को निलंबित कर दिया है।

  • भारत सरकार का यह कदम, चीनी विश्वविद्यालयों में नामांकित 22,000 भारतीय छात्रों को अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए चीन वापस जाने में बाधा उत्पन्न करने वाले चीन द्वारा उठाए गए कदम की प्रतिक्रिया प्रतीत होता है।
  • 2020 की शुरुआत में COVID-19 महामारी शुरूआत में इन छात्रों को चीन में अपनी पढ़ाई छोड़कर भारत आना पड़ा था।

‘पर्यटक वीजा’ के बारे में:

पर्यटन के उद्देश्य से भारत आने के लिए विदेशों नागरिको को ‘पर्यटक वीजा’ (Tourist Visa) जारी किया जाता है। यह वीजा ‘गैर-विस्तार योग्य’ और ‘गैर-परिवर्तनीय’ होता है। और इसके तहत, देश में आने के उद्देश्य में परिवर्तन करने की अनुमति नहीं होती है।

ऊर्जा प्रवाह

  • हाल ही में, भारतीय तटरक्षक बल द्वारा अपने बेड़े में एक ‘ऊर्जा प्रवाह’ (Urja Pravaha) नामक एक नया पोत शामिल किया गया है।
  • इस पोत को गुजरात के भरूच में, भारतीय तटरक्षक बल में शामिल किया गया था।

Current Affairs

 

लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार

हाल ही में, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी मुंबई में मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार समारोह में शामिल हुए।

  • इस अवसर पर प्रधानमंत्री को प्रथम लता दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  • पात्रता: भारत रत्न लता मंगेशकर की स्मृति में स्थापित किया गया यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष सिर्फ एक व्यक्ति को राष्ट्र निर्माण में अनुकरणीय योगदान के लिए दिया जाएगा।
  • मास्टर दीनानाथ मंगेशकर, भारत रत्न लता मंगेशकर के पिता हैं।

‘जलवायु परिवर्तन’ को नकारने वाले विज्ञापनों पर ट्विटर की नई नीति

सोशल मीडिया दिग्गज ‘ट्विटर’ ने जलवायु परिवर्तन पर भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने संबंधी घोषणा की है।

  • भ्रामक करने (Misleading) से, ट्विटर तात्पर्य ‘जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक सहमति का “विरोधाभास” करने वाले विज्ञापनों से है।
  • ट्विटर का कदम, अपने नेटवर्क पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रचार अभियानों को रोकने का एक प्रयास है।

गुजरात में भारत का पहला पोर्टेबल सोलर रूफटॉप सिस्टम

  • हाल ही में, देश का पहला ‘पोर्टेबल सोलर रूफटॉप सिस्टम’ गुजरात के गांधीनगर में स्थापित किया गया है।
  • यह नया 10 पीवी पोर्ट सिस्टम, अत्यधिक लागत प्रभावी होने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसके लिए कम रखरखाव की आवश्यकता होगी, और इसे एक ही व्यक्ति द्वारा स्थापित किया जा सकता है।

 

रतले और क्वार विद्युत परियोजनाएं

(Ratle and Kwar Power Projects)

  • प्रधान मंत्री ने, हाल ही में, जम्मू-कश्मीर में 850 मेगावाट की ‘रतले विद्युत परियोजना’ (Ratle Power Project) और 540 मेगावाट की ‘क्वार जलविद्युत परियोजना’ (Ratle and Kwar Hydro Project) की आधारशिला रखी।
  • इन परियोजनाओं के लिए बांधों का निर्माण ‘किश्तवाड़ जिले’ में चिनाब नदी पर किया जाएगा।

बनिहाल काजीगुंड सड़क सुरंग

  • बनिहाल काजीगुंड सड़क सुरंग (Banihal-Qazigund Road Tunnel) यह जम्मू और कश्मीर में स्थित है।
  • 45 किमी लंबी सुरंग बनिहाल और काजीगुंड के बीच सड़क की दूरी को 16 किमी कम कर देगी और यात्रा के समय को लगभग डेढ़ घंटे कम करेगी।

 

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस

पूरे देश में हर साल 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।

  • पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस 2010 में मनाया गया था।
  • भारत में पंचायती राज व्यवस्था को नियमबद्ध करते हुए 24 अप्रैल 1993 को ‘संविधान (73 वां संशोधन) अधिनियम’ लागू किया गया था।
  • इसी कारण, इस दिन को देश में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत में पंचायती राज:

संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया और अनुच्छेद 246 में राज्य विधायिका को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय के संबंध में कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है।

पंचायती राज मंत्रालय द्वारा, हर साल सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली पंचायतों/राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को पुरस्कार प्रदान किए जाते है। इन पुरुस्कारों को विभिन्न श्रेणियों के तहत प्रदान किया जाता है अर्थात्:

  1. दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार (DDUPSP)।
  2. नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार (NDRGGSP)।
  3. बाल हितैषी ग्राम पंचायत पुरस्कार (CFGPA)।
  4. ग्राम पंचायत विकास योजना (GPDP) पुरस्कार।
  5. ई-पंचायत पुरस्कार (केवल राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को दिया जाता है)।

बलवंत राय समिति:

बलवंत राय समिति द्वारा देश में ‘पंचायती राज व्यवस्था’ की स्थापना की सिफारिश की गई थी।

 

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

(Household consumer spending survey)

आमतौर पर हर पांच साल में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा ‘अखिल भारतीय घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण’ आयोजित किया जाता है।

  • यह सर्वेक्षण शहरी और ग्रामीण, दोनों में देश भर के घरों के उपभोग व्यय पैटर्न के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • इस सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा से माल (खाद्य और गैर-खाद्य) और सेवाओं पर औसत व्यय का पता चलता है।
  • एक लंबे अंतराल के बाद, इस साल इस सर्वेक्षण फिर से शुरू किए जाने की तैयारी की जा रही है।
  • इसका उपयोग, देश के विभिन्न हिस्सों में गरीबी के स्तर का अनुमान लगाने और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जैसे आर्थिक संकेतकों की समीक्षा करने के लिए किया जाता है।
  • 2011-12 के बाद से, प्रति व्यक्ति घरेलू व्यय के संबंध में भारत का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है।

‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ (NSO) के बारे में:

सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय’ (NSSO), कंप्यूटर केंद्र और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) को मिलाकर एक ‘व्यापक निकाय’ ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ (NSO) का गठन किया गया है।

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) द्वारा निर्धारित सांख्यिकीय मानकों को लागू करने और इनके निगरानी करने तथा केंद्रीय और राज्य एजेंसियों की सांख्यिकीय गतिविधियों के समन्वय के लिए ‘रंगराजन आयोग’ द्वारा पहली बार NSO की परिकल्पना की गई थी।
  • मूल मंत्रालय: यह सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की सांख्यिकीय शाखा है।
  • ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’, हर महीने ‘त्वरित अनुमान’ के रूप में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) को संकलित और जारी करता है और उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI) करता है।

 

भारत की पहली कार्बन-न्यूट्रल पंचायत

जम्मू के सांबा जिले का ‘पल्ली गांव’ कार्बन न्यूट्रल बनने वाला देश की पहली ग्राम पंचायत बन गया है। यह पंचायत पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित है और इसके सभी रिकॉर्ड डिजीटल हैं और पंचायत के सभी लोगों को सभी केंद्रीय योजनाओं के लाभ मिल रहे हैं।


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