[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 22 April 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के प्रतीक चिह्नों पर निर्णय
  2. अफ्रीकन स्वाइन फीवर
  3. जी20

 

सामान्य अध्ययन-III

  1. विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों के लिए नियामक ढांचा
  2. मानव-पशु संघर्ष
  3. नासा-इसरो निसार मिशन

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. यूरोपा
  2. ‘इंडिया आउट’ अभियान
  3. फिन्क्लुवेशन
  4. नागरिक / सिविल सेवा दिवस
  5. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के प्रतीक चिह्नों पर निर्णय


(How Election Commission decides on party symbols?)

संदर्भ:

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘नगर निगम चुनाव’ के लिए मतपत्रों से ‘चुनाव चिन्ह’ हटाने की मांग करने वाली जनहित याचिका खारिज कर दी है।

संबंधित प्रकरण:

  • याचिकाकर्ता ने तर्क देते हुए कहा है, कि नगरपालिका चुनावों के पीछे का उद्देश्य “स्थानीय स्वशासन” है। मतपत्रों पर राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों को दिखाए जाने से यह उद्देश्य अपने मूल लक्ष्य से दूर हट जाता है।
  • याचिका में तर्क दिया गया है, कि किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के मौजूदा प्रतीक वाले उम्मीदवार को किसी नए प्रतीक चिन्ह वाले उम्मीदवार पर अनुचित फायदा मिलता है।

राजनीतिक दलों को प्रतीक चिह्न आवंटन हेतु प्रक्रिया:

निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार- किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न का आवंटन करने हेतु निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:

  • नामांकन पत्र दाखिल करने के समय राजनीतिक दल / उम्मीदवार को निर्वाचन आयोग की प्रतीक चिह्नों की सूची में से तीन प्रतीक चिह्न प्रदान किये जाते हैं।
  • उनमें से, राजनीतिक दल / उम्मीदवार को ‘पहले आओ-पहले पाओ’ आधार पर एक चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है।
  • किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के विभाजित होने पर, पार्टी को आवंटित प्रतीक/चुनाव चिह्न पर निर्वाचन आयोग द्वारा निर्णय लिया जाता है।

निर्वाचन आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार- किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिह्न का आवंटन करने हेतु निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:

  1. नामांकन पत्र दाखिल करने के समय राजनीतिक दल / उम्मीदवार को निर्वाचन आयोग की प्रतीक चिह्नों की सूची में से तीन प्रतीक चिह्न प्रदान किये जाते हैं।
  2. उनमें से, राजनीतिक दल / उम्मीदवार को ‘पहले आओ-पहले पाओ’ आधार पर एक चुनाव चिह्न आवंटित किया जाता है।
  3. किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के विभाजित होने पर, पार्टी को आवंटित प्रतीक/चुनाव चिह्न पर निर्वाचन आयोग द्वारा निर्णय लिया जाता है।

निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ:

चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के अंतर्गत निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और प्रतीक चिह्न आवंटित करने का अधिकार दिया गया है।

  • आदेश के अनुच्छेद 15 के तहत, निर्वाचन आयोग, प्रतिद्वंद्वी समूहों अथवा किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के गुटों द्वारा पार्टी के नाम तथा प्रतीक चिह्न संबंधी दावों के मामलों पर निर्णय ले सकता है।
  • निर्वाचन आयोग, राजनीतिक दलों के किसी विवाद अथवा विलय पर निर्णय लेने हेतु एकमात्र प्राधिकरण भी है। सर्वोच्च न्यायालय ने ‘सादिक अली तथा अन्य बनाम भारत निर्वाचन आयोग’ मामले (1971) में इसकी वैधता को बरकरार रखा।

चुनाव चिह्नों के प्रकार:

चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) (संशोधन) आदेश, 2017 (Election Symbols (Reservation and Allotment) (Amendment) Order, 2017) के अनुसार, राजनीतिक दलों के प्रतीक चिह्न निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं:

  1. आरक्षित (Reserved): देश भर में आठ राष्ट्रीय दलों और 64 राज्य दलों को ‘आरक्षित’ प्रतीक चिह्न प्रदान किये गए हैं।
  2. स्वतंत्र (Free): निर्वाचन आयोग के पास लगभग 200 ‘स्वतंत्र’ प्रतीक चिह्नों का एक कोष है, जिन्हें चुनावों से पहले अचानक नजर आने वाले हजारों गैर-मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दलों को आवंटित किया जाता है।

पार्टी का विभाजन होने पर ‘चुनाव चिह्न संबंधी विवाद में निर्वाचन आयोग की शक्तियां:

विधायिका के बाहर किसी राजनीतिक दल का विभाजन होने पर, ‘निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आबंटन) आदेश’, 1968 के पैरा 15 में कहा गया है:

“निर्वाचन आयोग जब इस बात इस संतुष्ट हो जाता है, कि किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल में दो या अधिक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह हो गए हैं और प्रत्येक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह, उस ‘राजनीतिक दल’ पर दावा करता है, तो ऐसी स्थिति में, निर्वाचन आयोग को, इनमे से किसी एक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह को ‘राजनीतिक दल’ के रूप में मान्यता देने, अथवा इनमे से किसी को भी मान्यता नहीं देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति होगी, और आयोग का निर्णय इन सभी प्रतिद्वंद्वी वर्गों या समूहों के लिए बाध्यकारी होगा”।

  • यह प्रावधान ‘मान्यता प्राप्त’ सभी राष्ट्रीय और राज्यीय दलों (इस मामले में लोजपा की तरह) में होने वाले विवादों पर लागू होता है।
  • पंजीकृत, लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन होने पर, निर्वाचन आयोग आमतौर पर, संघर्षरत गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या अदालत जाने की सलाह देता है।

कृपया ध्यान दें, कि वर्ष 1968 से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा ‘चुनाव आचरण नियम’, 1961 के तहत अधिसूचना और कार्यकारी आदेश जारी किए जाते थे।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप एक मान्यता प्राप्त ‘राष्ट्रीय राजनीतिक दल’ और एक ‘राज्य राजनीतिक दल’ के बीच अंतर जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने हेतु प्रक्रिया।
  1. राज्य दल और राष्ट्रीय दल क्या हैं?
  2. मान्यता प्राप्त दलों को प्राप्त लाभ।
  3. पार्टी प्रतीक चिह्न किसे कहते हैं? प्रकार क्या हैं?
  4. राजनीतिक दलों के विलय से जुड़े मुद्दों पर निर्णय कौन करता है?
  5. अनुच्छेद 226 किससे संबंधित है?

मेंस लिंक:

राजनीतिक दलों को प्रतीक चिह्नों का आवंटन किस प्रकार किया जाता हैं? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर


(African swine fever)

संदर्भ:

त्रिपुरा में सिपाहीजाला जिले (Sepahijala district) जिले के एक प्रजनन फार्म में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (African swine fever – ASF) के मामले सामने आने के बाद, ‘त्रिपुरा सरकार’ ने बाड़े (फार्म) में पाले जाने वाले संक्रमित सूअरों को बड़े पैमाने पर मारने का फैसला किया है।

अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:

  • ASF एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण होने पर सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित हो जाते है।
  • इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
  • इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है, और इस बुखार का कोई इलाज नहीं है।
  • इसके लिए अभी तक किसी मान्यता प्राप्त टीके की खोज नहीं की गयी है, इसी वजह से, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए, संक्रमित जानवरों को मार दिया जाता है।

Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ और ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ में अंतर जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. क्या स्वाइन फीवर मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है?
  2. क्या यह एक वायरल बीमारी है?
  3. इसकी खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी?
  4. 2020 में कौन से देश इससे प्रभावित हुए हैं?
  5. क्या इसके खिलाफ कोई टीका उपलब्ध है?

मेंस लिंक:

अफ्रीकी स्वाइन स्वाइन फीवर, इसके लक्षण और प्रसरण पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

G20 समूह


संदर्भ:

हाल ही में, ‘जी -20 फाइनेंस बोफिन सेशन’ (G20 finance boffins session) के दौरान जैसे ही रूसी अधिकारियों ने बोलना शुरू किया, अमेरिकी ट्रेजरी सचिव ‘जेनेट येलेन’ और पश्चिमी ब्लॉक के उनके अधिकांश समकक्ष जारी सत्र से बाहर चले गए।

  • इस प्रकार, अमेरिका और इन देशों ने ‘यूक्रेन पर मास्को के युद्ध का विरोध करने के लिए’ एक प्रकार से रूस का बहिष्कार किया था।
  • हालांकि, बहिष्कार करने वाले इन देशों में, इंडोनेशिया, चीन, भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब सहित कम से कम दस अन्य देशों के अधिकारी शामिल नहीं हुए थे।

संबंधित प्रकरण:

इन देशों ने, रूसी आक्रमण और इसके द्वारा किए जा रहे युद्ध अपराधों का विरोध करना जारी रखा है।

  • इनका कहना है, कि रूस का यूक्रेन पर अवैध आक्रमण ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा’ है।
  • इनकी मांग है, कि रूस को इस प्रकार की बैठकों में भाग नहीं लेना चाहिए या शामिल नहीं करना चाहिए।

G20 समूह के बारे में:

जी20, विश्व की सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है।

  • इस समूह इस समूह का विश्व की 85 प्रतिशत जीडीपी पर नियंत्रण है, तथा यह विश्व की दो-तिहाई जनसख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
  • G20 शिखर सम्मेलन को औपचारिक रूप से ‘वित्तीय बाजार तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था शिखर सम्मेलन’ के रूप में जाना जाता है।

स्थापना:

वर्ष 1997-98 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद, यह स्वीकार किया गया था कि उभरती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर चर्चा के लिए भागीदारी को आवश्यकता है। वर्ष 1999 में, G7 के वित्त मंत्रियों द्वारा G20 वित्त मंत्रियों तथा केंद्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक के लिए सहमत व्यक्त की गयी।

अध्यक्षता (PRESIDENCY):

G20 समूह का कोई स्थायी स्टाफ नहीं है और न ही इसका कोई मुख्यालय है। G20 समूह की अध्यक्षता क्रमिक रूप से सदस्य देशों द्वारा की जाती है।

  • अध्यक्ष देश, अगले शिखर सम्मेलन के आयोजन तथा आगामी वर्ष में होने वाली छोटी बैठकें के आयोजन के लिए जिम्मेवार होता है।
  • G20 समूह की बैठक में गैर-सदस्य देशों को मेहमान के रूप में आमंत्रित किया जा सकता हैं।
  • पूर्वी एशिया में वित्तीय संकट ने समूचे विश्व के कई देशों को प्रभावित करने के बाद G20 की पहली बैठक दिसंबर, 1999 में बर्लिन में हुई थी।

G20 के पूर्ण सदस्य:

अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।

Current Affairs

 

बदलते समय में G20 समूह की प्रासंगिकता:

  • वैश्वीकरण में वृद्धि और विभिन्न मुद्दों की जटिलता के मद्देनजर, हाल के G20 शिखर सम्मेलनों में वृहत् अर्थव्यवस्थाओं और व्यापार पर ध्यान केंद्रित किए जाने के साथ-साथ, वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक प्रभाव डालने वाले – विकास, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद विरोधी, प्रवासन और शरणार्थी जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • G20 समूह द्वारा, इन वैश्विक मुद्दों को हल करने की दिशा में अपने योगदान के माध्यम से एक समावेशी और संधारणीय विश्व बनाने का प्रयास किया जाता रहा है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘शेरपा’ (Sherpas) के बारे में जानते हैं?

क्या आप जानते हैं कि 2021 का G20 शिखर सम्मेलन रोम, इटली में आयोजित किया गया था?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. G20 बनाम G20 + बनाम G7 बनाम G8
  2. G20 के उद्देश्य तथा इसके उप-समूह
  3. सदस्य देशों के भौगोलिक स्थिति का अवलोकन

मेंस लिंक:

क्या आपको लगता है कि हाल ही में जी 20 शिखर सम्मेलन मात्र वार्ता हेतु मंच बन कर रह गए हैं? आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों’ के लिए नियामक ढांचा


(Regulatory framework for ‘special purpose acquisition companies’ SPACs)

संदर्भ:

सरकार द्वारा कथित तौर पर ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों’ (Special Purpose Acquisition Company – SPAC) के लिए एक नियामक ढांचे की स्थपाना किए जाने पर विचार किया जा रहा है।

SPAC के बारे में:

‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनी’ (SPAC), या एक ‘ब्लैंक-चेक कंपनी’ (Blank-Cheque Company), खास तौर पर, किसी विशेष क्षेत्र में एक फर्म का अधिग्रहण करने के उद्देश्य से स्थापित की गयी एक ‘कंपनी’ होती है।

  • SPAC का उद्देश्य ‘शुरुआती सार्वजनिक प्रस्ताव या पेशकश’ (Initial Public Offering – IPO) में बिना किसी संचालन या राजस्व के धन जुटाना है।
  • जनता से जुटाई गई राशि को एक ‘निलंब लेखा’ (escrow account) में रखा जाता है, जिसका अधिग्रहण करते समय उपयोग किया जा सकता है।
  • यदि IPO जारी किए जाने के दो साल के भीतर फर्म का अधिग्रहण नहीं किया जाता है, तो ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनी’ (SPAC) को हटा दिया जाता है और निवेशकों को पैसा वापस कर दिया जाता है।

SPAC के प्रति आकर्षण का कारण:

हालाँकि, ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियां’ (SPACs) मुख्यतः शेल कंपनियां (Shell Companies) होती हैं, किंतु, निवेशकों के इनके प्रति आकर्षण का एक महत्वपूर्ण कारक वे लोग होते हैं जो उन्हें प्रायोजित करते हैं।

विश्व स्तर पर, प्रमुख हस्तियां ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों’ में भाग ले चुकी हैं।

संबंधित चिंताएं:

  • पिछले साल मार्च में, अमेरिकी ‘सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन’ (SEC) द्वारा SPACs को लेकर एक निवेशकों के लिए एक चेतावनी / अलर्ट जारी की गयी थी, जिसमें निवेशकों को “केवल सेलिब्रिटी की भागीदारी के आधार पर SPACs से संबंधित निवेश करने का निर्णय न लेने” के लिए चेतावनी दी गई थी।
  • फ़र्म के विलय के बाद, खुदरा निवेशकों के लिए कम लाभ हो सकता है।
  • SPAC के कुछ उपबंध, संभावित रूप से निवेशकों को अपना पैसा वापस पाने से रोक सकते हैं।

भारत की स्थिति:

  • 2009 से ब्लैंक-चेक कंपनियों द्वारा जारी किए गए 1,145 आईपीओ में से, 2020 में 248, 2021 में 613 और 2022 में अब तक 58 आईपीओ जारी किए गए हैं।
  • SPACs द्वारा जुटाई गई सकल आय 2020 में 83 बिलियन डॉलर, और 2021 में 162 बिलियन डॉलर से अधिक थी। वर्ष 2022 में यह आय 10 बिलियन डॉलर को पहले ही पार कर चुकी है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि वर्ष 2019 में भारत में व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा देने हेतु सिफारिशें करने के लिए गठित की गयी ‘कंपनी कानून समिति’ द्वारा सरकार को ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियाँ’ (SPACs) स्थापित करने का सुझाव दिया गया है?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियां’ (SPACs)
  2. कंपनी कानून समिति
  3. शेल कंपनियां
  4. कंपनी अधिनियम

मेंस लिंक:

‘विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों’ (SPACs) से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

मानव-वन्यजीव संघर्ष


(Human Animal Conflict)

संदर्भ:

राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश की अध्यक्षता में गठित ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन’ पर गठित स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट सौंप राज्यसभा सभापति को दी है।

इस रिपोर्ट में दिसंबर 2021 में लोकसभा में पेश किए गए ‘वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक’, 2021 का विश्लेषण किया गया है।

महत्व:

यद्यपि, विधेयकों का विश्लेषण करने हेतु गठित स्थायी समितियों की रिपोर्ट्स आम तौर पर ‘विधेयक के पाठ्य भाग की आलोचना से जुड़ी होती है, किंतु इस रिपोर्ट में ‘मानव-पशु संघर्ष’ (Human Animal Conflict – HAC) के प्रश्न को स्थान दिया गया है, क्योंकि यह “शिकार की भांति एक जटिल मुद्दा” था और इसके लिए “विधायी समर्थन” की आवश्यकता है। जबकि, ‘मानव-पशु संघर्ष’ विषय का उल्लेख प्रस्तावित संशोधनों में नहीं किया गया था।

‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ को कम करने के लिए प्रमुख सिफारिशें:

  • रिपोर्ट में ‘मुख्य वन्य जीव वार्डन’ की अध्यक्षता में एक ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष सलाहकार समिति’ (HAC Advisory Committee) का गठन किए जाने की सिफारिश की गई है। ‘मुख्य वन्य जीव वार्डन’ उचित रूप से कार्य करने के लिए समिति से परामर्श कर सकता है।
  • फसल प्रतिरूप बदलने पर सिफारिशों, अल्प सूचना पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने, तथा प्रभावी स्थान-विशिष्ट योजनाओं/शमन रणनीतियों को विकसित करने, और कुछ सदस्यों और गहन तकनीकी ज्ञान रखने वाली, इस प्रकार की कानून के तहत अधिकार प्राप्त एक समिति आवश्यक है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष पर WWF और UNEP की रिपोर्ट:

‘प्रकृति संरक्षण हेतु विश्व वन्यजीव कोष’ (Worldwide Fund for Nature – WWF) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UN Environment Programme – UNEP) द्वारा जुलाई 2021 में ‘सभी के लिये बेहतर भविष्य- मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व की आवश्यकता’ (A future for all – the need for human-wildlife coexistence) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई थी।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  1. मनुष्यों और जानवरों के मध्य संघर्ष, विश्व की कुछ सर्वाधिक ‘अनुप्रतीकात्मक प्रजातियों’ (iconic species) के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए मुख्य खतरों में से एक है।
  2. विश्व स्तर पर, मानव-वन्यजीव संघर्षों में होने वाली मौतें, विश्व की 75 प्रतिशत से अधिक जंगली बिल्ली-प्रजातियों को प्रभावित करती है। इस संघर्ष से, धुर्वीय भालू, भूमध्यसागरीय मोंक सील (monk seals) और हाथियों जैसे बड़े शाकाहारी जीव भी प्रभावित होते हैं।
  3. 1970 के बाद से वैश्विक वन्यजीव आबादी में औसतन 68 प्रतिशत की गिरावट आई है।

भारतीय परिदृश्य:

  • वर्ष 2014-2015 और 2018-2019 के बीच 500 से अधिक हाथी मारे जा चुके है। इनमे से अधिकाँश मौतें मानव-हाथी संघर्ष के कारण हुईं हैं।
  • इसी अवधि के दौरान मानव-हाथी संघर्ष के परिणामस्वरूप 2,361 लोग मारे गए।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष से भारत सर्वाधिक प्रभावित होगा, क्योंकि इसमें विश्व दूसरी सर्वाधिक मानव निवास करती है, और साथ ही बाघों, एशियाई हाथियों, एक सींग वाले गैंडों, एशियाई शेरों और अन्य प्रजातियों की बड़ी आबादी पायी जाती है।

आवश्यकता:

मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूर्ण रूप से समाप्त करना संभव नहीं है। लेकिन इसके प्रबंधन हेतु सुनियोजित, एकीकृत दृष्टिकोण, इन संघर्षों को कम कर सकता है, और मनुष्यों और जानवरों के बीच सह-अस्तित्व स्थापित करने में सफल हो सकता है।

शोणितपुर मॉडल:

  1. असम के शोणितपुर जिले में, जंगलों के विनाश से हाथी फसलों पर हमला करने के लिए मजबूर हो गए थे, जिसमे हाथी और मनुष्य दोनों मारे जाते थे।
  2. इसके समाधान हेतु, WWF इंडिया ने वर्ष 2003-2004 के दौरान एक ‘शोणितपुर मॉडल’ विकसित किया, जिसमे विभिन्न समुदायों के सदस्यों को राज्य वन विभाग से जोड़ा गया।
  3. इन लोगों को, हाथियों को फसलों से सुरक्षित रूप से दूर भगाने के लिए प्रशिक्षण दिया गया।
  4. WWF इंडिया ने हाथियों से फसलों की सुरक्षा को आसान बनाने हेतु एक कम लागत वाली, इकहरी (single strand), गैर-घातक बिजली की बाड़ भी विकसित की थी।
  5. इस मॉडल को लागू करने के बाद, चार साल में हाथियों द्वारा फसलों को किया जाने वाला नुकसान शून्य हो गया। और इससे, संघर्ष में होने वाले मानव तथा हाथियों की मौत में भी काफी कमी आई है।

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति (SC-NBWL) द्वारा अनुमोदित मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) के प्रबंधन हेतु सलाहकारी निर्देश:

  • वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसार समस्याग्रस्त जंगली जानवरों से निपटने के लिए ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) के कारण होने वाली फसल-क्षति के लिए फसल मुआवजे के लिए प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के तहत ऐड-ऑन कवरेज का उपयोग किया जाए।
  • वन क्षेत्रों के भीतर चारा और जल स्रोतों को बढाया जाना चाहिए।
  • अन्य उपाय: एडवाइजरी में स्थानीय/राज्य स्तर पर अंतर-विभागीय समितियों, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को अपनाने, अवरोधकों का निर्माण करने, 24X7 कार्य करने वाले टोल फ्री हॉटलाइन नंबरों सहित समर्पित सर्कल-वार कंट्रोल रूम बनाने के लिए कहा गया है।

इंस्टा जिज्ञासु:

राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL), वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत गठित एक “वैधानिक बोर्ड” है। क्या आप जानते हैं कि बोर्ड का अध्यक्ष कौन होता है? इसके बारे में यहां पढ़ें

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

नासा-इसरो का निसार मिशन


(NASA-ISRO NISAR Mission)

संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन’ (National Aeronautics and Space Administration – NASA) द्वारा संयुक्त रूप से पृथ्वी के वैज्ञानिक अध्ययन हेतु  ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह’ (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar satellite – NISAR)  अर्थात ‘निसार’  नामक एक उपग्रह मिशन को साकार करने के लिए कार्य किया जा रहा है।

NISAR मिशन के वर्ष 2023 में लॉन्च होने की संभावना है।

NISAR के बारे में:

  • ‘निसार उपग्रह’, खतरों और वैश्विक पर्यावरण परिवर्तन के अध्ययन के लिए अनुकूलित है और प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और इसकी गति को बेहतर ढंग से समझने के लिए वैज्ञानिकों को जानकारी प्रदान कर सकता है।
  • यह उपग्रह अपने तीन-वर्षीय मिशन के दौरान प्रत्येक 12 दिनों में पूरे ग्लोब की बारीकी से जांच (scan) करेगा। यह उपग्रह अपने मिशन के दौरान पृथ्वी पर भूमि, बर्फ की चादर और समुद्री बर्फ की चित्रण कर ग्रह की एक ‘अभूतपूर्व’ दृश्य प्रदान करेगा।
  • यह सॅटॅलाइट, टेनिस कोर्ट के आधे आकार के किसी भी क्षेत्र में ग्रह की सतह से 4 इंच की ऊंचाई पर किसी भी गतिविधि का पता लगाने में सक्षम होगा।
  • नासा द्वारा इस उपग्रह के लिए रडार, विज्ञान आंकड़ो हेतु हाई-रेट कम्युनिकेशन सब-सिस्टम, जीपीएस रिसीवर और एक पेलोड डेटा सबसिस्टम प्रदान किये जाएंगे।
  • इसरों (ISRO) द्वारा स्पेसक्राफ्ट बस, दूसरे प्रकार के राडार (S- बैंड रडार), प्रक्षेपण यान और प्रक्षेपण संबंधी सेवाएं प्रदान की जाएंगी।
  • निसार (NISAR) उपग्रह में नासा द्वारा अब तक लॉन्च किया गया सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर एंटीना लगाया जाएगा, और इसका मुख्य उद्देश्य, पृथ्वी की सतह पर होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों पर नज़र रखना, ज्वालामुखी विस्फोट होने बारे में चेतावनी संकेत भेजना, भूजल आपूर्ति निगरानी में मदद करना और बर्फ की चादरों के पिघलने की ‘दर’ का पता लगाना है।

‘सिंथेटिक एपर्चर रडार’:

  • निसार (NISAR), ‘नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार [NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar satellite (SAR)] का संक्षिप्त रूप है। नासा द्वारा ‘सिंथेटिक एपर्चर रडार’ का उपयोग पृथ्वी की सतह में होने वाले परिवर्तन को मापने हेतु किया जाएगा।
  • सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR), मुख्यतः उच्च विभेदन छवियां (High-Resolution Images) खीचने की तकनीक को संदर्भित करता है। उच्च सटीकता के कारण, यह रडार, बादलों और अंधेरे को भी भेद सकता है, अर्थात यह किसी भी मौसम में चौबीसो घंटे आंकड़े एकत्र करने में सक्षम है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) के बारे में
  2. निसार (NISAR) के बारे में
  3. उद्देश्य

मेंस लिंक:

निसार मिशन पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 यूरोपा

(Europa)

शोधकर्ताओं के अनुसार, बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा ‘यूरोपा’ (Europa) पर दोहरी कटकों जैसी दिखाई देने वाली संरचनाओं के नीचे ‘जल’ की प्रचुर मात्रा हो सकती है।

  • ‘यूरोपा’ की सतह ज्यादातर ‘ठोस पानी की बर्फ’ है।
  • ये दोहरी कटकें (double ridges) यूरोपा की सतह पर पायी जाने वाली सबसे आम संरचनाएं हैं और पृथ्वी की ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पर देखी गई संरचनाओं के समान हैं।

‘यूरोपा’ के बारे में:

  • बृहस्पति ग्रह का चंद्रमा ‘यूरोपा’ आकार में पृथ्वी के ‘चंद्रमा’ से थोड़ा छोटा है और इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का लगभग एक चौथाई है।
  • ‘यूरोपा’ में वायुमंडल में ऑक्सीजन काफी कम है।
  • दिलचस्प बात यह है कि, जबकि इसका व्यास पृथ्वी से कम है, फिर भी ‘यूरोपा’ पर पानी की मात्रा संभवतः पृथ्वी के सभी महासागरों में पानी की मात्रा की दोगुनी है।

NASA द्वारा 2024 में अपना ‘यूरोपा क्लिपर’ (Europa Clipper) लॉन्च किए जाने की उम्मीद है। यह मॉड्यूल बृहस्पति की परिक्रमा करेगा और इसके चंद्रमा के वातावरण, सतह और इसके आंतरिक भाग पर डेटा एकत्र करने के लिए कई बार ‘यूरोपा’ के नजदीक से उड़ान भरेगा।

Current Affairs

 

इंडिया आउट’ अभियान

हाल ही में, मालदीव ने ‘इंडिया आउट’ कैंपेन (‘India Out’ campaign) पर प्रतिबंध लगाने का फरमान जारी किया है।

  • मालदीव में विपक्षी दल और मीडिया का एक वर्ग, भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए नए सिरे से प्रयास कर रहा है।
  • इस संबंध में पिछले साल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पहली बार “इंडिया आउट” स्लोगन का इस्तेमाल किया गया था।
  • इस अभियान में आरोप लगाया जा रहा है, कि दोनों देशों की सरकारों के बीच सहयोग – मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को कमजोर कर रहा है।

 

फिन्क्लुवेशन

(Fincluvation)

हाल ही में, ‘डाक विभाग’ (डीओपी) के तहत एक 100 प्रतिशत सरकारी स्वामित्व वाले निकाय ‘इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक’ (IPPB) ने ‘फिन्क्लुवेशन’(Fincluvation) – वित्तीय समावेशन के लिए समाधानों के सह-सृजन तथा नवोन्मेषण के लिए फिनटेक स्टार्टअप समुदाय के साथ सहयोग करने के लिए एक संयुक्त पहल- लॉन्च करने की घोषणा की है।

  • वित्तीय समावेशन के लिए लक्षित सार्थक वित्तीय उत्पादों के निर्माण की दिशा में स्टार्टअप समुदाय को प्रोत्साहित करने के लिए एक शक्तिशाली मंच की स्थापना करने की यह उद्योग की प्रथम पहल है।
  • ‘फिनक्लुवेशन सहभागी स्टार्टअप्स के साथ समावेशी वित्तीय समाधानों को सह-सृजित करने के लिए आईपीपीबी का एक स्थायी प्लेटफॉर्म होगा।

 

नागरिक / सिविल सेवा दिवस

  • प्रति वर्ष, 21 अप्रैल को भारत सरकार द्वारा ‘नागरिक सेवा दिवस’ (Civil Services Day) के रूप में मनाया जाता है।
  • इस तिथि का चुनाव, स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री, सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा वर्ष 1947 में मेटकाफ हाउस, दिल्ली में प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के परिवीक्षकों को संबोधित करने की स्मृति को ताजा करने के लिए किया गया है।
  • यह दिवस, सिविल सेवकों के लिए, नागरिकों के कार्यों हेतु खुद को फिर से समर्पित करने और सार्वजनिक सेवा और काम में उत्कृष्टता के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को दोहराने, के लिए एक अवसर के रूप में मनाया जाता है।

 

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay), एक महान बंगाली कवि और लेखक थे।

  • उन्होंने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की रचना की।
  • उनका प्रसिद्द उपन्यास आनंदमठ – सन्यासी विद्रोह (18 वीं शताब्दी के अंत में हुआ विद्रोह) की पृष्ठभूमि पर आधारित – को बंगाल के राष्ट्रवाद पर प्रमुख कृतियों में से एक माना जाता है।
  • उनका पहला बंगाली उपन्यास वर्ष 1865 में प्रकाशित ‘दुर्गेश नंदिनी’ है।
  • उन्होंने वर्ष 1866 में कपालकुंडला, 1869 में मृणालिनी, 1873 में विषवृक्ष, 1877 में चंद्रशेखर, 1877 में रजनी, 1881 में राजसिम्हा और 1884 में देवी चौधुरानी जैसे अन्य प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की।
  • उन्होंने 1872 में बंगदर्शन नामक एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन किया।
  • उनका पहला प्रकाशित उपन्यास अंग्रेजी भाषा में लिखित ‘राजमोहन की पत्नी’ था।

Current Affairs


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