[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 19 November 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनI

1. रेजांग ला की लड़ाई

 

सामान्य अध्ययन-II

1. केंद्र सरकार के नए अध्यादेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

2. सदन के अध्यक्ष की शक्तियों को सीमित करने पर सर्वसम्मति नहीं

3. म्यांमार की जुंटा सरकार के शिखर सम्मेलन में भाग लेने पर आसियान को आपत्ति

 

सामान्य अध्ययन-III

1. पूर्वव्यापी करों के संदर्भ में केयर्न के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की स्वीकृति

2. आरबीआई समिति द्वारा डिजिटल ऋण को विनियमित करने हेतु कानून बनाने का सुझाव

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. जिरकोन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

रेजांग ला की लड़ाई


संदर्भ:

18 नवंबर, 2021 को ‘रेजांग ला’ की लड़ाई (Battle of Rezang La) को 59 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर रक्षा मंत्री द्वारा लद्दाख के चुशुल में पुनर्निर्मित रेजांग ला स्मारक का उद्घाटन किया गया।

‘रेजांग ला’ की अवस्थिति:

‘रेजांग ला’ (Rezang La) लद्दाख में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control – LAC) पर स्थित एक पहाड़ी दर्रा है।

  • यह दर्रा ‘चुशुल’ गाँव और स्पैंग्गुर त्सो (Spanggur Tso) झील के बीच अवस्थित है। स्पैंग्गुर त्सो झील, भारतीय और चीनी दोनों क्षेत्रों में फैली हुई है।
  • ‘रेजांग ला’ में 18 नवंबर 1962 को एक वीरतापूर्ण युद्ध लड़ा गया था।

इस लड़ाई के बारे में:

1962 के भारत-चीन युद्ध में 13 कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिकों ने ‘रेजांग ला’ में हुई लड़ाई में चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ को कई मुठभेड़ों में हराया था।

संख्या में काफी कम होने के बाबजूद, रेजीमेंट के सैनिकों ने अत्यधिक कम तापमान और सीमित गोला-बारूद के साथ लड़ाई लड़ी और आख़िरी सैनिक के जीवित रहने तक युद्ध जारी रखा।

इस क्षेत्र का महत्व:

रेजांग ला, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ‘चुशुल घाटी’ की सुरक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है। किसी आक्रमणकारी के इस स्थान तक पहुचने के बाद, उसे ‘लेह’ तक का खुला मार्ग मिल सकता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत-चीन सीमा विवाद (Indo- China border dispute) के बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘रेजांग ला की लड़ाई’ के बारे में
  2. ‘एलओसी’ (LoC) क्या है और इसे किस प्रकार निर्धारित किया जाता है, इसका भौगोलिक विस्तार और महत्व?
  3. ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) क्या है?
  4. नाथू ला कहाँ है?
  5. पैंगोंग त्सो कहाँ है?
  6. अक्साई चिन पर नियंत्रण

मेंस लिंक:

भारत के लिए ‘रेजांग ला’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

केंद्र सरकार के नए अध्यादेशों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका


संदर्भ:

हाल ही में, केंद सरकार द्वारा लागू किए गए दो अध्यादेशों को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। इन अध्यादेशों के द्वारा केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के निदेशकों के कार्यकाल को दो साल से बढ़ाकर पांच साल करने की शक्ति प्रदान की गयी है।

संबंधित प्रकरण:

  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि, इन अध्यादेशों की वजह से दोनों शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुख अपने कार्यकाल के बारे में असुरक्षित हो जाएंगे, और इससे उनकी पेशेवर स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
  • इसके अलावा, इन अध्यादेशों में ‘सार्वजनिक हित’ के अस्पष्ट संदर्भ के अलावा कोई मानदंड प्रदान नहीं किया गया है। वास्तव में ये सरकार की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर आधारित है। इसका प्रत्यक्ष और स्पष्ट प्रभाव जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता को नष्ट करने का है।
  • सरकार के इस कदम की विपक्षी दलों ने भी कड़ी आलोचना की है। विपक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा है, आगामी संसद सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है, इसके बावजूद भी सरकार ने यह क़ानून लागू करने किए ‘अध्यादेश’ का मार्ग चुना है।

‘अध्यादेशों’ के बारे में:

हाल ही केंद्र सरकार द्वारा दो अध्यादेश लाए गए हैं, जिनमे ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के निदेशकों के दो साल के निर्धारित कार्यकाल को बढ़ाकर अधिकतम पांच साल तक बढाए जाने का प्रावधान किया गया है।

शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुखों के कार्यकाल में ,एक बार में केवल एक वर्ष का विस्तार दिया जा सकता है। अर्थात, दो साल के एक निश्चित कार्यकाल के बाद उन्हें वार्षिक रूप से, तीन बार एक्सटेंशन मिल सकता है।

इन अध्यादेशों को किन आधारों पर चुनौती दी गई है?

  • लगभग एक साल पहले, ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) निदेशक को दो साल का निश्चित कार्यकाल पूरा करने के बाद पूर्वव्यापी प्रभाव से एक साल का सेवा-विस्तार दिया गया था। सरकार के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और इसमें अदालत ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि इस तरह के कड़े कदम कभी-कभार ही उठाए जाने चाहिए।
  • याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और ‘विनीत नारायण बनाम भारत संघ’ (1997) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए दोनों अध्यादेशों को मनमाना और असंवैधानिक बताया है। 1997 के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, कि ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के प्रमुखों का न्यूनतम कार्यकाल दो साल का होना चाहिए।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सीबीआई और इसकी स्थापना
  2. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
  3. आम सहमति क्या होती है?
  4. राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने के प्रभाव

मेंस लिंक:

क्या आम सहमति वापस लेने तात्पर्य यह हो सकता है कि सीबीआई अब किसी मामले की जांच नहीं कर सकती? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

सदन के अध्यक्ष की शक्तियों को सीमित करने पर सर्वसम्मति नहीं


संदर्भ:

हाल ही में संपन्न हुए ‘अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन’ (All-India Presiding Officers’ Conference – AIPOC) में शामिल प्रतिनिधियों में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ (Anti-Defection Law) के तहत ‘सदन के अध्यक्ष’ (Speaker) की शक्तियों को सीमित करने पर आम सहमति नहीं बन सकी।

हालांकि, प्रतिभागियों ने पहले से पारित एक संकल्प को दोहराते हुए कहा, कि ‘प्रश्नकाल’ और ‘सदन में राष्ट्रपति और राज्यपाल के अभिभाषण’ के दौरान कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए।

अनुशंसाएं:

संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत ‘दल-बदल’ के आधार पर सदस्यों की ‘निरर्हता’ के मामलों में अध्यक्ष की भूमिका की जांच हेतु, वर्ष 2019 में सी.पी.जोशी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था।

इस समिति द्वारा, दल-बदल विरोधी कानून के तहत सांसदों और विधायकों को अयोग्य ठहराने की शक्ति, केवल लोकसभा और विधानसभा अध्यक्षों की शक्ति तक सीमित रखने के बजाय, राजनीतिक दलों को भी दिए जाने की सिफारिश की गयी थी।

समीक्षा की आवश्यकता:

दल-बदल विरोधी कानून बनाए जाने के समय राजनीतिक स्थिति वर्तमान से काफी अलग थी, और राजनीतिक स्थिति में बदलाव को ध्यान में रखते हुए इस कानून की समीक्षा की जानी चाहिए।

‘दलबदल विरोधी कानून’ क्या है?

(Anti-defection law)

संविधान में, 52वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा एक नयी अनुसूची (दसवीं अनुसूची) जोड़ी गई थी।

  • इसमें सदन के सदस्यों द्वारा एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में सम्मिलित होने पर ‘दल-बदल’ के आधार पर निरर्हता (Disqualification) के बारे में प्रावधान किया गया है।
  • इसमें उस प्रक्रिया को निर्धारित किया गया है, जिसके द्वारा विधायकों तथा सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य की याचिका के आधार पर सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा ‘दल-बदल’ के आधार पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  • दल-बदल कानून लागू करने के सभी अधिकार सदन के अध्यक्ष या सभापति को दिए गए हैं एवं उनका निर्णय अंतिम होता है।

यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर समान रूप से लागू होता है।

निरर्हता (Disqualification) के आधार:

यदि किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य:

  1. स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा
  2. यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
  3. यदि चुनाव के बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  4. यदि विधायिका का सदस्य बनने के छह महीने बाद कोई नामित सदस्य (Nominated Member) किसी पार्टी में शामिल होता है।

कानून के तहत अपवाद:

सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।

  • इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
  • ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।

पीठासीन अधिकारी के निर्णय की न्यायिक समीक्षा:

  • इस विधान के प्रारम्भ में कहा गया है कि पीठासीन अधिकारी का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होगा। वर्ष 1992 में उच्चत्तम न्यायालय ने इस प्रावधान को खारिज कर दिया तथा इस संदर्भ में पीठासीन अधिकारी के निर्णय के विरूद्ध उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में अपील की अनुमति प्रदान की।
  • हालाँकि, यह तय किया गया कि पीठासीन अधिकारी के आदेश के बिना कोई भी न्यायिक हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा।

पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्णय लेने के लिए समय-सीमा:

कानून के अंतर्गत, पीठासीन अधिकारियों को अयोग्यता की याचिका पर फैसला करने के लिए कोई समय सीमा नहीं निर्धारित नहीं की गयी है।

‘दल-बदल’ के मामलें में कोई भी अदालत केवल पीठासीन अधिकारी द्वारा निर्णय लेने के बाद ही हस्तक्षेप कर सकती हैं, अतः याचिकाकर्ता के पास एकमात्र विकल्प, मामले पर निर्णय होने तक इंतजार करना होता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. दल-बदल कानून संबधित विभिन्न समितियों और आयोगों के नाम
  2. समिति तथा आयोग में अंतर
  3. पीठासीन अधिकारी तथा न्यायिक समीक्षा का निर्णय
  4. राजनीतिक दलों के विलय तथा विभाजन में अंतर
  5. क्या पीठासीन अधिकारी पर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है?
  6. संबंधित मामलों में उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय

मेंस लिंक:

दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों का परीक्षण कीजिए। क्या यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

 म्यांमार की जुंटा सरकार के शिखर सम्मेलन में भाग लेने पर आसियान को आपत्ति


संदर्भ:

चीन के राष्ट्रपति द्वारा आयोजित किए जाने वाले एक क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में, म्यांमार के सैन्य शासक / जुंटा (JUNT) को शामिल करने हेतु, चीन के प्रतिनिधि द्वारा ‘दक्षिण पूर्व एशियाई देशों’ से पैरवी की जा रही है, जिसका अन्य नेताओं ने कड़ा विरोध किया है।

संबंधित प्रकरण:

म्यांमार में 1 फरवरी को हुए तख्तापलट के पश्चात्, ‘दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ’ (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) अर्थात ‘आसियान’ के सदस्य के रूप में इसकी सुर्खियों में आ गई है। इस सैन्य तख्तापलट में म्यांमार की सेना ने खूनी कार्रवाई करते हुए, नोबेल पुरस्कार विजेता ‘आंग सान सू की’ की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

  • म्यांमार के सैन्य प्रमुख, सीनियर जनरल ‘मिन आंग हलिंग’ (Min Aung Hlaing) ने ‘आसियान’ के प्रतिनिधि मंडल को, तख्तापलट के दौरान सत्ता से बाहर कर दिए गए सांसदों से मिलने की अनुमति देने से मना कर दिया।
  • इसके पश्चात्, आसियान के नेताओं ने म्यांमार के सैन्य प्रमुख, को आसियान शिखर सम्मेलन में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया।
  • बाद में, आसियान नेताओं द्वारा म्यांमार से एक गैर-राजनीतिक व्यक्ति को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए कहा गया था। अंत में, म्यांमार ने शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया।

आसियान (ASEAN) के बारे में:

दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) अर्थात ‘आसियान’ एक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना एशिया-प्रशांत क्षेत्र के उत्तर-औपनिवेशिक देशों के मध्य बढ़ते हुए तनाव के बीच राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु की गई थी।

  • आसियान का आदर्श वाक्य “एक दृष्टि, एक पहचान, एक समुदाय” (One Vision, One Identity, One Community) है।
  • आसियान का सचिवालय –जकार्ता, इंडोनेशिया में है।

उत्पत्ति (Genesis):

आसियान का गठन वर्ष 1967 में इसके संस्थापक सदस्यों द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर करने के साथ हुआ था।

  • आसियान के संस्थापक सदस्य: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड।
  • आसियान के दस सदस्य: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम।

भारत के लिए आसियान का महत्व:

लद्दाख गतिरोध सहित चीन के आक्रामक रवैए की पृष्ठभूमि में, भारत द्वारा ‘आसियान’ को ‘भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (India’s Act East policy) के केंद्र में रखा गया है। भारत का मानना है, कि इस क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास हेतु एक संसक्त एवं उत्तरदायी ‘आसियान’ का होना आवश्यक है।

  • क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास’ (Security And Growth for All in the Region– SAGAR) अर्थात ‘सागर’ विजन की सफलता के लिए आसियान की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
  • कोविड-19 महामारी का अंत होने के बाद, आर्थिक सुधार हेतु आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण और लचीलेपन के लिए यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है।
  • आसियान, भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, तथा इसके साथ लगभग 9 बिलियन अमरीकी डालर का व्यापार होता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत वर्ष 1992 में आसियान का ‘क्षेत्रीय भागीदार’ (Sectoral Partner) बना था।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. आसियान देशों की भौगोलिक अवस्थिति
  2. आसियान देशों की कुल जनसंख्या
  3. आसियान की अध्यक्षता
  4. आसियान शिखर सम्मेलन कब और कहाँ आयोजित किए जाते हैं?
  5. मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) क्या हैं?

मेंस लिंक:

भारत की आर्थिक, भू-रणनीतिक और सुरक्षा अनिवार्यताओं के लिए आसियान के महत्व का परीक्षण कीजिए?

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

पूर्वव्यापी करों के संदर्भ में केयर्न के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार की स्वीकृति


संदर्भ:

भारत को अपना सबसे बड़ा तेल क्षेत्र देने वाली एक फर्म के साथ ‘पूर्वव्यापी कर विवाद’ को समाप्त करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ते हुए, सरकार ने ‘केयर्न एनर्जी पीएलसी की ‘करों की वापसी’ से संबंधित  सभी बातों स्वीकार कर लिया है।

कंपनी को अब ₹7,900 करोड़ का रिफंड जारी किया जाएगा।

संबंधित प्रकरण:

दिसंबर 2020 में, नीदरलैंड स्थित ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (Permanent Court of Arbitration -PCA) में तीन सदस्यीय ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण’ (International Arbitral Tribunal) द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा, कि भारत सरकार द्वारा ‘ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि’ (India-UK Bilateral Investment Treaty) और ‘निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान की गारंटी’ उल्लंघन किया गया है, और इसकी वजह से ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी को नुकसान पहुंचा है।

  • इसके अलावा मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने भारत सरकार को ‘केयर्न एनर्जी’ के लिए 2 अरब डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया था।
  • भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश समझौते का हवाला देते हुए वर्ष 2012 में लागू पूर्वव्यापी कर कानून (retrospective tax law) के तहत आंतरिक व्यापार पुनर्गठन पर करों (taxes) की मांग की गयी थी, जिसे केयर्न एनर्जी ने चुनौती दी थी।
  • वर्ष 2014 में, भारतीय कर विभाग द्वारा ‘केयर्न एनर्जी’ से ‘कर’ के रूप में 10,247 करोड़ रुपये की मांग की थी।
  • वर्ष 2015 में, केयर्न एनर्जी पीएलसी ने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की।

इसके आगे का घटनाक्रम:

कृपया ध्यान दें, हाल ही में भारत सरकार द्वारा ‘कराधान कानून (संशोधन) अधिनियम’ पारित किया गया था, जिसके अंतर्गत, जनवरी 2016 में केयर्न के खिलाफ मूल रूप से लगाए जाने वाले ‘करों’ के निर्धारण को रद्द कर दिया गया, और साथ ही केयर्न से वसूले गए 7,900 करोड़ रुपये को वापस किए जाने आदेश भी दिया गया है।

‘पूर्वव्यापी कराधान’ के बारे में:

‘पूर्वव्यापी कराधान’ (Retrospective Taxation) के तहत, किसी देश को, कानून पारित होने की तारीख से पहले से, कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं और सौदों पर, पूर्वव्यापी कर लगाने तथा कंपनियों पर पूर्वव्यापी दंड लगाने की अनुमति होती है।

  • विभिन्न देशों द्वारा अपनी कराधान नीतियों में उन विसंगतियों को ठीक करने के लिए इस मार्ग का उपयोग किया जाया हैं, जिनके तहत अतीत में ‘कंपनियों’ को ऐसी खामियों का लाभ उठाने का अवसर मिल गया था।
  • ‘पूर्वव्यापी कराधान’ से उन कंपनियों को नुकसान पहुँचाता है जिनके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में देश के कर नियमों की अलग-अलग व्याख्या की गई थी।

स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’

(Permanent Court of Arbitration – PCA)

‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (PCA) की स्थापना 1899 में हुई थी और इसका मुख्यालय ‘द हेग’, नीदरलैंड्स में है।

  • यह एक अंतर सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सेवा करने और देशों के बीच ‘मध्यस्थता’ और विवाद समाधान के अन्य तरीकों की सुविधा प्रदान करने के लिए समर्पित है।
  • इसके सभी निर्णय, जिन्हें ‘अवार्ड’ (Award) कहा जाता है, विवाद में शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होते हैं और तत्काल लागू किए जाते हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

मध्यस्थता (arbitration), मध्यगता या बीचबचाव (mediation) और सुलह (conciliation) एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘मध्यस्थता’ क्या है?
  2. हालिया संशोधन।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के बारे में।
  4. भारतीय मध्यस्थता परिषद के बारे में।
  5. 1996 अधिनियम के तहत मध्यस्थों की नियुक्ति।
  6. स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) – संरचना, कार्य और सदस्य।

मेंस लिंक:

मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

आरबीआई समिति द्वारा डिजिटल ऋण को विनियमित करने हेतु कानून बनाने का सुझाव


संदर्भ:

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप के माध्यम से ऋण देने सहित ‘डिजिटल ऋण’ के विनियमन हेतु गठित भारतीय रिजर्व बैंक के कार्यकारी समूह (Reserve Bank of India Working Group (WG) on digital lending) द्वारा अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गयी हैं।

प्रमुख सिफारिशें:

  1. इस प्रकार के ऋणों की निगरानी के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए।
  2. डिजिटल ऋण प्रदान करने वाली एप्लीकेशंस (Digital Lending Apps) जांच के लिए एक नोडल एजेंसी की जाए।
  3. डिजिटल ऋण पारितंत्र में में प्रतिभागियों के लिए एक ‘स्व-नियामक संगठन’ स्थापित किया जाना चाहिए।
  4. कुछ आधारभूत प्रौद्योगिकी मानकों का विकास, एवं डिजिटल ऋण समाधान को प्रस्तुत करने के लिए पूर्व शर्त के रूप में उन मानकों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
  5. ऋणों का संवितरण सीधे उधारकर्ताओं के बैंक खातों में किया जाना चाहिए और ऋणों का संवितरण एवं सर्विसिंग केवल डिजिटल ऋणदाताओं के बैंक खातों के माध्यम से की जानी चाहिए।
  6. सत्यापन योग्य ऑडिट ट्रेल्स के साथ उधारकर्ताओं की पूर्व और स्पष्ट सहमति के साथ डेटा संग्रह किया जाए और सभी डेटा भारत में स्थित सर्वरों में संग्रहीत किया जाना चाहिए।

डिजिटल ऋण के लाभ:

  • डिजिटल उधार में, वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक अधिक निष्पक्ष, कुशल और समावेशी पहुँच बनाने की क्षमता है।
  • फिनटेक के नेतृत्व में यह नवाचार, कुछ साल पहले गौण सहायक भूमिका से आगे बढ़कर, अब वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के डिजाइन, मूल्य निर्धारण और वितरण के लिए मूल भूमिका निभा रहा है।

समय की मांग:

नियामक संस्थाओं द्वारा, डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, गोपनीयता और उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, इस नवाचार का समर्थन करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण का पालन करने की आवश्यकता है।

डिजिटल ऋण देने वाले ऐप्स से संबंधित मुद्दे

  1. ये ऋणकर्ताओं को शीघ्र और परेशानी मुक्त तरीके से ऋण देने का वादा करते हैं।
  2. लेकिन, बाद में ऋणकर्ताओं से ब्याज की अत्याधिक दरों और छिपे हुए अतिरिक्त शुल्क की मांग की जाती है।
  3. इस तरह के प्लेटफॉर्म ऋणों की बसूली के लिए अमान्य और कठोर विधियाँ अपनाते हैं।
  4. ये ऋणकर्ताओं के मोबाइल फोन डेटा का उपयोग करने संबंधी समझौतों का दुरुपयोग करते हैं।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


जिरकोन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल

हाल ही में, रूस ने अपनी ‘जिरकोन हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल’ (Zircon hypersonic cruise missile) का एक और सफल परीक्षण किया है। यह राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा “अजेय” कहे जाने वाले हथियारों के शस्त्रागार में शामिल किए गया नया शस्त्र है।

हाइपरसोनिक मिसाइल, ध्वनि की गति से पांच गुना से तेज यात्रा कर सकती हैं और उड़ान के बीच में ही पैंतरेबाज़ी करने में सक्षम होती हैं, जिससे अन्य पारंपरिक मिसाइलों की तुलना में इनको ट्रैक करना और नष्ट करना बहुत कठिन हो जाता है।


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