[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 23 September 2021 – INSIGHTSIAS

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विषय सूची:

सामान्य अध्ययन-II

1. संसदीय विशेषाधिकार

2. सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी

3. इबोला से ठीक हुए लोगों से वर्षों बाद ‘प्रकोप’ फ़ैलने की संभावना

4. मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार

5. अफ्रीकन स्वाइन फीवर

 

सामान्य अध्ययन-III

1. सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. WHO वैश्विक वायु प्रदूषण मानक

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

संसदीय विशेषाधिकार


(Parliamentary Privileges)

संदर्भ:

हाल ही में, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा है, कि संसदीय कार्यवाही को बाधित करना सदन की अवमानना ​​करने के समान है, और इसे विशेषाधिकार नहीं माना जा सकता है।

यह पहली बार है, कि देश में किसी विधायिका के पीठासीन अधिकारी ने ‘संसद में व्यवधान’ संबंधी मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से अपना वक्तव्य दिया है।

राज्यसभा की उत्पादिता:

  • वर्ष 1978 से ‘राज्य सभा की उत्पादिता’ (Productivity of Rajya Sabha) का परिमाण निर्धारित किया जा रहा है। शुरुआती 19 वर्षों के दौरान वर्ष 1996 तक, सदन की उत्पादिता 100 प्रतिशत से अधिक रही है, किंतु इसके बाद से उत्पादिता में गिरावट होना शुरू हो गया।
  • शुरुआती 19 वर्षों के 16 वर्षों में सदन की उत्पादिता प्रतिवर्ष 100 प्रतिशत से अधिक रही, इसके बाद पिछले 24 वर्षों में, केवल वर्ष 1998 और 2009 में सदन की 100 प्रतिशत उत्पादिता रही। राज्यसभा में पिछले 12 वर्षों में एक बार भी 100 प्रतिशत उत्पादिता नहीं रही है।

संसदीय विशेषाधिकार’ क्या होते हैं?

संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges), संसद सदस्यों को, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियां होते हैं, ताकि वे “अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन” कर सकें।

  1. संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये हैं: संसद में वाक्-स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
  2. संविधान में विनिर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान तथा इसके आरंभ होने से चालीस दिन पूर्व और इसकी समाप्ति के चालीस दिन पश्चात सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों की गिरफ्तारी और उन्हें निरुद्ध किए जाने से स्वतंत्रता का उपबंध किया गया है।

विशेषाधिकार हनन के खिलाफ प्रस्ताव:

सांसदों को प्राप्त किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करने पर, इस अपराध को विशेषाधिकार हनन कहा जाता है, और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय होता है।

  • किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा विशेषाधिकार हनन के दोषी व्यक्ति के खिलाफ एक प्रस्ताव के रूप में एक सूचना प्रस्तुत की जा सकती है।

लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा अध्यक्ष की भूमिका:

विशेषाधिकार प्रस्ताव की जांच के लिए, लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा अध्यक्ष, पहला स्तर होता है।

  • लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा अध्यक्ष, विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकते हैं या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति के लिए संदर्भित कर सकते हैं।
  • यदि लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा अध्यक्ष, संगत नियमों के तहत प्रस्ताव पर सहमति देते हैं, तो संबंधित सदस्य को प्रस्ताव के संदर्भ में एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।

प्रयोज्यता:

  1. संविधान में, उन सभी व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किए गए है, जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार हैं। इन सदस्यों में भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
  2. हालांकि, संसद का अभिन्न अंग होने बावजूद, राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। राष्ट्रपति के लिए संविधान के अनुच्छेद 361 में विशेषाधिकारों का प्रावधान किया गया है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. संविधान के कौन से प्रावधान विधायिका के विशेषाधिकारों की रक्षा करते हैं?
  2. विधायिका के विशेषाधिकार के कथित उल्लंघन के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?
  3. संसद और राज्य विधानमंडलों में विशेषाधिकार समितियों की संरचना और कार्य
  4. विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए क्या सजा है?
  5. क्या राज्य विधानसभाओं के विशेषाधिकार हनन से जुड़े मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं?

मेंस लिंक:

विधायिका के विशेषाधिकारों से आप क्या समझते हैं? भारत में समय-समय पर देखी जाने वाली विधायिका विशेषाधिकारों की समस्या पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC)


(Central bank digital currency)

संदर्भ:

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ (Central Bank Digital Currency – CBDC) को चरणबद्ध तरीके से शुरू करने संबंधी कार्यान्वयन रणनीति पर कार्य किया जा रहा है, और इस डिजिटल मुद्रा को इस साल के अंत तक प्रायोगिक तौर पर लॉन्च किया जा सकता है।

वित्तीय सलाहकार सेवा फर्म द्वारा भारतीय संदर्भ में सीबीडीसी (CBDC) के चार प्रमुख उपयोगों को सूचीबद्ध किया है। इनमे शामिल है:

  1. किसी देश में सामाजिक लाभ और अन्य लक्षित भुगतानों के लिए उपयोग हेतु उद्देश्य के लिए उपयुक्त’ धन (‘Fit-for-Purpose’ Money)। ऐसे मामलों में, केंद्रीय बैंक द्वारा आशयित लाभार्थीयों के लिए पूर्व-क्रमादेशित (Pre-Programmed) सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) का भुगतान किया जा सकता है, जो केवल एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए मान्य होगी।
  2. विदेशों से देश में शीघ्रता से रकम भेजने के लिए (Remittance Payments), CBDC का उपयोग किया जा सकता है। भारत सहित दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से ‘सीबीडीसी’ के हस्तांतरण और परिवर्तन हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचा और तंत्र का निर्माण किया जा सकता है।
  3. ‘सीबीडीसी’ के माध्यम से किए जाने वाले भुगतान के लेनदेन हेतु ‘भुगतान उपकरण’ उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इसके अलावा, सीबीडीसी तक सार्वभौमिक रूप से पहुँच बनाने के लिए, इसकी कार्य-प्रणाली में ‘ऑफ़लाइन भुगतान’ को भी शामिल किया जा सकता है।
  4. सीबीडीसी की मदद से भारत में ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) को तत्काल ऋण देना भी संभव हो सकता है।

सीबीडीसी की आवश्यकता:

  1. एक आधिकारिक डिजिटल मुद्रा, बिना किसी इंटर-बैंक सेटलमेंट के ‘रियल-टाइम भुगतान’ को सक्षम करते हुए मुद्रा प्रबंधन की लागत को कम करेगी।
  2. भारत का काफी उच्च मुद्रा-जीडीपी अनुपात, सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) का एक और लाभ है- इसके माध्यम से, काफी हद तक नकदी के उपयोग को CBDC द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है तथा कागज़ी मुद्रा की छपाई, परिवहन और भंडारण की लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  3. चूंकि, इस व्यवस्था के तहत, व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को मुद्रा-अंतरण केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी होगी, अतः ‘अंतर-बैंक निपटान’ / ‘इंटर-बैंक सेटलमेंट’ की जरूरत समाप्त हो जाएगी।

CBDC या ‘राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा’ क्या है?

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC), या राष्ट्रीय डिजिटल करेंसी, किसी देश की साख मुद्रा का डिजिटल रूप होती है। इसके लिए, कागजी मुद्रा या सिक्कों की ढलाई करने के बजाय, केंद्रीय बैंक इलेक्ट्रॉनिक टोकन जारी करता है। इस सांकेतिक टोकन को, सरकार का पूर्ण विश्वास और साख का समर्थन हासिल होता है।

एस सी गर्ग समिति की सिफारिशें (2019)

  1. किसी भी रूप में क्रिप्टोकरेंसी का खनन, स्वामित्व, लेन-देन या सौदा करने को प्रतिबंधित किया जाए।
  2. समिति के द्वारा, डिजिटल मुद्रा में विनिमय या व्यापार करने पर एक से 10 साल तक के कारावास का दंड की सिफारिश की गयी थी।
  3. समिति ने, सरकारी खजाने को हुए नुकसान या क्रिप्टोकरेंसी उपयोगकर्ता द्वारा अर्जित किए गए लाभ, जो भी अधिक हो, के तीन गुना तक मौद्रिक दंड का प्रस्ताव किया गया था।
  4. हालांकि, समिति ने सरकार से ‘भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा क्रिप्टोकरेंसी जारी करने की संभवना’ पर अपना दिमाग खुला रखने की सलाह भी दी गयी थी।

राष्ट्रीय डिजिटल मुद्रा शुरू करने में चुनौतियाँ:

  1. संभावित साइबर सुरक्षा खतरा
  2. आबादी में डिजिटल साक्षरता का अभाव
  3. डिजिटल मुद्रा की शुरूआत से, विनियमन, निवेश और खरीद पर नज़र रखने, व्यक्तियों पर कर लगाने आदि से संबंधित विभिन्न चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं।
  4. निजता के लिए खतरा: डिजिटल मुद्रा के लिए किसी व्यक्ति की कुछ बुनियादी जानकारी एकत्र करनी आवश्यक होती है, ताकि व्यक्ति यह साबित कर सके कि वह उस डिजिटल मुद्रा का धारक है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने ‘IOTA उलझन’ (IOTA Tangle) के बारे में सुना है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ब्लॉकचेन क्या है?
  2. क्रिप्टोकरेंसी क्या हैं?
  3. किन देशों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी जारी की गई है?
  4. बिटकॉइन क्या है?

मेंस लिंक:

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के लाभ और हानियों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: लाइवमिंट।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

इबोला से ठीक हुए लोगों से वर्षों बाद ‘प्रकोप’ फ़ैलने की संभावना


संदर्भ:

एक नए शोध के अनुसार, इबोला से ठीक हुए लोग, संक्रमण होने के कम से कम पांच साल बाद फिर से बीमार हो सकते हैं, और इससे पुनः महामारी फ़ैल सकती है। इस विनाशकारी प्रसार को रोकने के लिए संक्रमण से ठीक हुए पूर्व-रोगियों पर लंबे समय तक नजर रखे जाने की आवश्यकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति, आने वाले वर्षों में वायरस को पुनः सक्रिय करने और संक्रमण फ़ैलाने में सक्षम ‘वायरस के भंडार’ के समान प्रतीत होते हैं।

इबोला संक्रमण से ठीक हुए व्यक्तियों की देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु इसके निहितार्थ:

  1. दीर्घकालिक इबोला वायरस ‘भंडार’ और महामारी फ़ैलाने में सक्षम, ‘मध्यवर्ती पोषकों’ (Intermediate Hosts) की सूची में अब मनुष्यों को भी शामिल किया जा सकता है।
  2. स्वास्थ्य कर्मियों को टीकाकरण के लिए प्राथमिकता दिए जाने और ‘प्रकोप’ फैलने का संकेत हांसिल करने के लिए इबोला से ठीक हुए लोगों की निगरानी किए जाने की आवश्यकता है।
  3. “इबोला सर्वाइवर” की व्यापक परिभाषा निर्धारित किए जाने की जरूरत है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2014-2016 में फैले इबोला के प्रकोप में 11,300 व्यक्तियों की मौत हो गयी थी, जिनमें से ज्यादातर मौतें अफ्रीकी देशों- गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया में हुई थी।

एक अन्य अफ्रीकी देश, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) ने मई 2021 में, आधिकारिक तौर पर 12वें इबोला प्रकोप के अंत की घोषणा की थी।

‘इबोला’ के बारे:

इबोला विषाणु रोग (Ebola virus disease– EVD), मनुष्यों में फैलने वाली एक घातक बीमारी है। इसके लिए पहले ‘इबोला रक्तस्रावी बुखार’ (Ebola haemorrhagic fever) के रूप में जाना जाता था।

इबोला का प्रसरण: यह विषाणु, वन्यजीवों से मनुष्यों में फैलता है और फिर मानव आबादी में मानव-से-मानव संचरण के माध्यम से फैलता है।

औसतन इबोला विषाणु रोग (EVD) मामलों में मृत्यु दर लगभग 50% होती है। इस बीमारी के पिछले प्रकोपों ​​के दौरान संक्रमित मामलों में मृत्यु दर 25% से 90% तक परिवर्तित होती रही है।

निवारण / रोकथाम: इस बीमारी के प्रकोप को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी अति महत्वपूर्ण है। प्रकोप पर अच्छे तरीके से नियंत्रण, संक्रमित मामलों का प्रबंधन, निगरानी और संपर्क में आने वाले लोगों की पहचान करना, उपयुक्त प्रयोगशाला सेवाएँ, और सामाजिक जागरूकता पर निर्भर करता है।

उपचार: पुनर्जलीकरण (rehydration) सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ प्रारंभिक सहायक देखभाल और लाक्षणिक उपचार, रोगी के जीवित रहने में अवसरों में सुधार करता है। अभी तक, इस विषाणु को निष्प्रभावी करने के कोई भी प्रमाणिक उपचार उपलब्ध नहीं है। हालांकि, रक्त- चिकित्सा, प्रतिरक्षा और ड्रग थेरेपी आदि रोगोपचार विकसित किए जा रहे हैं।

Ebola

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘अंतर्राष्ट्रीय चिंताजनक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (Public Health Emergency of International Concern – PHEIC)  वास्तव में क्या है? अब तक कितनी बार PHEIC की घोषणाएं की जा चुकी हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘इबोला’ बीमारी किस प्रकार फैलती है?
  2. ‘ज़ूनोटिक रोग’ क्या होते हैं?
  3. वायरस, बैक्टीरिया और अन्य रोगजनकों के मध्य अंतर
  4. ‘कांगो’ की अवस्थिति?
  5. इबोला प्रकोप से ग्रसित होने वाले अफ्रीकी क्षेत्र?

मेंस लिंक:

कांगो गणराज्य द्वारा इबोला महामारी पर किस प्रकार नियंत्रण पाया गया? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार


संदर्भ:

हाल ही में, ‘यूरोपीय आयोग’ द्वारा ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार’ (Monoclonal Antibody Treatment) की आपूर्ति के लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए है।

‘यूरोपीय आयोग’ के 18 सदस्य देशों ने 220,000 ट्रीटमेंट्स की खरीद करने हेतु एक ‘संयुक्त अधिप्राप्ति’ पर हस्ताक्षर किए हैं।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ के बारे में:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal antibodies- mAbs) कृत्रिम रूप से निर्मित एंटीबॉडी होती हैं, जिनका उद्देश्य शरीर की ‘प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली’ की सहायता करना होता है।

ये  एक विशेष एंटीजन को लक्षित करती हैं। यह विशेष एंटीजन, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रेरित करने वाले रोगाणु का ‘प्रोटीन’ होता है।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी’ किस प्रकार निर्मित की जाती हैं?

प्रयोगशाला में, श्वेत रक्त कोशिकाओं को एक विशेष एंटीजन के संपर्क में लाने पर ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ का निर्माण किया जा सकता है।

  • ‘एंटीबॉडीज़’ को अधिक मात्रा में निर्मित करने के लिए, एकल श्वेत रक्त कोशिका का प्रतिरूप (Clone) बनाया जाता है, जिसे एंटीबॉडी की समरूप प्रतियां तैयार करने में प्रयुक्त किया जाता है।
  • कोविड -19 के मामले में, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ तैयार करने के लिए वैज्ञानिक प्रायः SARS-CoV-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन का उपयोग करते है। यह ‘स्पाइक प्रोटीन’ मेजबान कोशिका में वायरस को प्रविष्ट कराने में सहायक होता है।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की आवश्यकता:

एक स्वस्थ शरीर में, इसकी ‘प्रतिरक्षा प्रणाली’ (Immune System), एंटीबॉडीज़ अर्थात ‘रोग-प्रतिकारकों का निर्माण करने में सक्षम होती है।

  • ये एंटीबॉडीज़, हमारे रक्त में वाई-आकार (Y-shape) के सूक्ष्म प्रोटीन होते हैं, जो सूक्ष्मजीव रोगाणुओं की पहचान करके उन्हें जकड़ लेते हैं तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को इन रोगाणुओं पर हमला करने का संकेत करते है।
  • यद्यपि, जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली, इन एंटीबॉडीज़ को पर्याप्त मात्रा में निर्मित करने में असमर्थ होती हैं, उनकी सहायता के लिए वैज्ञानिकों द्वारा ‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़’ की खोज की गई है।

इतिहास:

किसी बीमारी के इलाज के लिए एंटीबॉडी दिए जाने का विचार 1900 के दशक प्रचलित हुआ था, जब  नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन प्रतिरक्षा विज्ञानी (Immunologist) ‘पॉल एर्लिच’ (Paul Ehrlich) द्वारा जाबरक्युग्ल’ (Zauberkugel) अर्थात ‘मैजिक बुलेट’ का विचार प्रतिपादित किया गया था। ‘जाबरक्युग्ल’, चुनिंदा रूप से किसी रोगाणु को लक्षित करने वाला योगिक है।

  • तब से, मानवों में नैदानिक ​​उपयोग हेतु स्वीकृत होने वाली विश्व की पहली मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, ‘म्युरोमोनाब-सीडी3 (Muromonab-CD3) तैयार होने तक आठ दशकों का समय लगा।
  • ‘म्युरोमोनाब-सीडी3’, एक प्रतिरक्षादमनकारी (Immunosuppressant) दवा है। इसे ‘अंग प्रत्यारोपण’ किए गए रोगियों में तीव्र अस्वीकृति (Acute Rejection) को कम करने के लिए दी जाती है।

अनुप्रयोग:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ अब अपेक्षाकृत आम हो चुकी हैं। इनका उपयोग इबोला, एचआईवी, त्वचा-रोगों (psoriasis) आदि के इलाज में किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी’ के बारे में जानते हैं? इस बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. एंटीबॉडीज़ क्या होती हैं?
  2. मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ क्या होती हैं?
  3. ये किस प्रकार निर्मित की जाती हैं?
  4. अनुप्रयोग
  5. एंटीजन बनाम एंटीबॉडी

मेंस लिंक:

मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ क्या होती हैं? इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर


संदर्भ:

भारत में, ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (African swine fever – ASF) एक बार फिर से चर्चा में है। पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ का प्रकोप फैलने के बाद, हाल ही में ‘त्रिपुरा’ राज्य में इस बीमारी के मामले देखे गए हैं।

कार्यवाही:

प्रकोप फैलने के बाद, पूर्वोत्तर राज्यों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है और लोगों, विशेष रूप से सुअर- पालकों से, अन्य राज्यों और पड़ोसी देशों, विशेष रूप से म्यांमार से सूअर लाने से बचने को कहा गया है।

अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:

  • ASF एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित होते है।
  • इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
  • इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है, और इस बुखार का कोई इलाज नहीं है।
  • इसके लिए अभी तक किसी मान्यता प्राप्त टीके की खोज नहीं की गयी है, इसी वजह से, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए, संक्रमित जानवरों को मार दिया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ और ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ में अंतर जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. क्या स्वाइन फीवर मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है?
  2. क्या यह एक वायरल बीमारी है?
  3. इसकी खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी?
  4. 2020 में कौन से देश इससे प्रभावित हुए हैं?
  5. क्या इसके खिलाफ कोई टीका उपलब्ध है?

मेंस लिंक:

अफ्रीकी स्वाइन स्वाइन फीवर, इसके लक्षण और प्रसरण पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रतिस्थानिक विकल्प


(substitute for Single-Use Plastics)

संदर्भ:

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने ‘सिंगल-यूज प्लास्टिक’ (Single-Use Plastics) का विकल्प तैयार करने का तरीका खोज लिया है।

‘अखाद्य तेलों’ और ‘कृषि पराली’ से निकाले गए सेल्यूलोज को मिलाकर, शोधकर्ताओं द्वारा एक जैव-अपघट्य (Biodegradable) बहु-उपयोगी ‘पॉलिमर शीट’ तैयार की गयी है।

महत्व:

यह ‘पॉलिमर शीट’, ‘एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक’ का विकल्प बन सकती है, जोकि सैद्धांतिक रूप से, पर्यावरण में प्लास्टिक अपशिष्ट के जमा होने की समस्या को कम करने में मदद कर सकती है।

पृष्ठभूमि:

2019 में, केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को ‘एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक’ से मुक्त करने के लिए, देश भर में ‘सिंगल-यूज प्लास्टिक’ के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए एक बहु-मंत्रालयी योजना तैयार की थी।

रणनीति:

एक सरकारी समिति द्वारा ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ (SUP) निर्मित वस्तुओं को, उनकी उपयोगिता और पर्यावरणीय प्रभाव सूचकांक के आधार पर, प्रतिबंधित करने के लिए चिह्नित किया गया है। समिति ने इसके लिए तीन चरणों में प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव पेश किया है:

  1. चरणबद्ध तरीके से हटाये जाने हेतु प्रस्तावित ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ निर्मित वस्तुओं की पहली श्रेणी में, गुब्बारे, झंडे, कैंडी, आइसक्रीम और ‘इअर बड्स’ (ear buds) में प्रयुक्त प्लास्टिक की डंडियां तथा सजावट में प्रयुक्त होने वाले थर्मोकोल को शामिल किया गया है।
  2. दूसरी श्रेणी में, प्लेट, कप, गिलास और छुरी-काँटा, चम्मच, स्ट्रॉ और ट्रे जैसी कटलरी; मिठाई के डिब्बों की पैकिंग में प्रयुक्त झिल्लियों (films); निमंत्रण पत्र; सिगरेट के पैकेट और 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैनर शामिल होंगे। इस श्रेणी की वस्तुओं को 1 जुलाई, 2022 से प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव किया गया है।
  3. प्रतिबंधित ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ की तीसरी श्रेणी में, 240 माइक्रोन से कम मोटाई के गैर-बुनाई दार थैलियों को शामिल किया गया है। इसे अगले साल सितंबर से शुरू करने का प्रस्ताव है।

आने वाली चुनौतियां:

  • संपूर्ण भारत में प्रति दिन लगभग 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमे से 10,000 टन से अधिक कचरे को एकत्र नहीं किया जाता है; इसे देखते हुए ‘सिंगल यूज़ प्लास्टिक’ को प्रतिबंधित करना, कोई आसान काम नहीं होगा।
  • काफी बड़ी मात्रा में प्लास्टिक को नदियों, महासागरों और अपशिष्ट भरावक्षेत्र में फेंक दिया जाता है।

आवश्यकता:

  1. सरकार के लिए इससे निपटने हेतु, पहले आर्थिक और पर्यावरणीय लागत-लाभ का संपूर्ण विश्लेषण करना चाहिए।
  2. इस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध की सफलता के लिए योजना को सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए।
  3. चूंकि, हमारे पास संसाधनों कमी है, अतः हमें बेहतर पुनर्चक्रण नीतियों की आवश्यकता है और इसके अलावा, एक व्यापक रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘प्लास्टिक खाने वाले बैक्टीरिया’ के बारे में जानते हैं? क्या इससे प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या का समाधान हो सकता है? इस संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ क्या होती है?
  2. उपयोग
  3. भारत का लक्ष्य
  4. ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना बना रहे अन्य देश

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


WHO वैश्विक वायु प्रदूषण मानक

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा, विज्ञान की नई खोजों को मान्यता देते हुए, वर्ष 2005 के बाद से पहली बार अपडेट किए जा रहे ‘वैश्विक वायु प्रदूषण मानकों’ को अधिक सख्त बना दिया गया है। नई जानकारी के अनुसार, ‘स्वास्थ्य’ पर वायु प्रदूषण का प्रभाव, पहले लगाए गए अनुमानों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर है।

नवीनतम मानकों के अनुसार:

  1. वर्ष 2005 के मानकों के अनुसार वार्षिक 5 की ऊपरी सीमा, वर्तमान में सभी देशों द्वारा जिसका पालन किया जाता है, 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। इसे अब संशोधित कर पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कर दिया गया है।
  2. पहले 24 घंटे में 5 की सीमा 25 माइक्रोग्राम हुआ करती थी, इसे अब घटाकर 15 माइक्रोग्राम कर दिया गया है।
  3. PM10 या 10 माइक्रोग्राम से अधिक आकार के ‘पार्टिकुलेट मैटर’ की ऊपरी सीमा,20 माइक्रोग्राम थी, जिसे अब संशोधित कर 15 माइक्रोग्राम कर दिया गया है, जबकि 24 घंटे के मान को 50 माइक्रोग्राम से घटाकर 45 माइक्रोग्राम कर दिया गया है।

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