INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 25 June 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

1. चुनावी ट्रस्ट द्वारा चुनावी बांड के जरिए 3 करोड़ रुपये के दान की घोषणा

2. मिशन कर्मयोगी हेतु कार्य बल

3. पीटर पैन सिंड्रोम

4. ‘शंघाई सहयोग संगठन’ सम्मलेन

 

सामान्य अध्ययन-III

1. चंद्रयान-2

2. अंटार्कटिक संधि प्रणाली

 

प्रारम्भिक परिक्षा हेतु तथ्य

1. काला सागर

2. पोसोन उत्सव

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।

चुनावी ट्रस्ट द्वारा चुनावी बांड के जरिए 3 करोड़ रुपये के दान की घोषणा


संदर्भ:

एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘परिबर्तन इलेक्टोरल ट्रस्ट’ (Paribartan Electoral Trust) द्वारा ‘चुनावी बांड्स’ के माध्यम से वर्ष 2019-20 में बिड़ला कॉरपोरेशन से प्राप्त 3 करोड़ रुपये गुमनाम रूप से वितरित किए गए।

  • पहली बार किसी चुनावी ट्रस्ट द्वारा अज्ञात रूप से राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट्स चंदा (corporate donations) का वितरण करने हेतु ‘चुनावी बांड्स’ का मार्ग अपनाया गया है।
  • हालांकि, एक स्वतंत्र चुनाव निगरानी करने वाली संस्था, ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) के अनुसार, ‘चुनावी बांड्स’ के उपयोग करने का यह तरीका ‘इलेक्टोरल ट्रस्ट्स स्कीम’, 2013 और इनकम टैक्स रूल्स, 1962 की “भावना के खिलाफ” है।

 वर्तमान में विवाद का विषय:

  • सभी न्यासों (Trusts) के लिए, उनको प्राप्त होने वाले सभी अनुदानों व अनुदान-कर्ताओं, तथा न्यास द्वारा किए जाने वाले अनुदानों के वितरण के बारे में, सभी और प्रत्येक विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
  • किंतु, ‘परिबर्तन इलेक्टोरल ट्रस्ट’ का कहना है, कि चूंकि उन्होंने राजनीतिक दलों को ‘चुनावी बांड’ के माध्यम से दान दिया था, और चुनावी बांड योजना के अनुसार, “दान प्राप्तकर्ता के संबंध में जानकारी का खुलासा करना आवश्यकता नहीं है”

चिंता का विषय:

तो अब मुख्य चिंता यह है, कि यदि ‘इलेक्टोरल ट्रस्ट’, चुनावी बांड्स के माध्यम से दान करने की इस मिसाल को अपनाना शुरू कर देते हैं, जिसमे दान प्राप्त-कर्ताओं के बारे में खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होती है, और पारदर्शिता संबंधी नियमों/कानूनों पर विशेष जोर नहीं दिया जाता है, तो यह ‘चुनावी ट्रस्ट योजना’, 2013 (Electoral Trusts Scheme, 2013) को लागू करने से पहले जैसी स्थितियां बन जाएंगी।

  • ऐसे परिदृश्य में, पूरी तरह से अनुचित तरीकों का अफरा-तफरी भरा दौर शुरू हो जाएगा, अर्थात, पूर्ण गुमनामी, अनियंत्रित और असीमित धन, काले धन का मुक्त प्रवाह, भ्रष्टाचार, विदेशी धन, कॉर्पोरेट दान और संबंधित हितों का टकराव आदि।
  • इस तरह के तरीके, ‘चुनावी ट्रस्ट योजना’ अर्थात इलेक्टोरल ट्रस्ट्स स्कीम’, 2013 और इनकम टैक्स रूल्स, 1962 के नियम 17CA की स्थापना के उद्देश्य को पूरी तरह से महत्वहीन कर देते हैं।

चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 के बारे में:

  1. इलेक्टोरल ट्रस्ट, भारत में भारत में गठित एक गैर-लाभकारी संगठन है जो किसी भी व्यक्ति से व्यवस्थित रूप से योगदान प्राप्त करने का कार्य करता है।
  2. चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 को ‘केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड’ (CBDT) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
  3. योजना के उद्देश्य: स्वैच्छिक अनुदान प्राप्त करने वाले तथा इसे राजनीतिक दलों को वितरित करने वाले चुनावी ट्रस्ट के लिए अनुमोदन प्रदान करने की प्रक्रिया निर्धारित करना।
  4. इलेक्टोरल ट्रस्ट का एकमात्र उद्देश्य, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को, उसके लिए प्राप्त अनुदान का वितरण करना है।
  5. इन ‘इलेक्टोरल ट्रस्ट कंपनियों’ को विदेशी नागरिकों या कंपनियों से अनुदान स्वीकार करने की अनुमति नहीं है।
  6. न्यास (ट्रस्ट) के लिए, अनुदान देने वाले व्यक्तियों तथा जिनके लिए यह अनुदान वितरित किया गया, सभी की सूची तैयार करना अनिवार्य है।

चुनावी ट्रस्ट, निम्नलिखित से स्वैच्छिक अनुदान प्राप्त करने की अनुमति होती है:

  1. भारत के नागरिक से।
  2. भारत में पंजीकृत किसी एक कंपनी से।
  3. कोई फर्म या अविभाजित हिंदू परिवार या भारत में निवासी व्यक्तियों का कोई संघ या संस्था ।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि कौन से राजनीतिक दल, चुनावी बांड प्राप्त करने के पात्र हैं? विस्तार से समझने के लिए इस लेख को पढ़ें:

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. चुनावी बांड क्या हैं?
  2. पात्रता
  3. मूल्यवर्ग
  4. विशेषताएं
  5. ये बांड कौन जारी कर सकता है?
  6. चुनावी ट्रस्ट योजना के बारे में

मेंस लिंक:

पारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण सुनिश्चित करने में चुनावी बांड की प्रभावशीलता की आलोचनात्मक जांच कीजिएऔर विकल्प सुझाइए?

स्रोत: द हिंदू

 

विषय: लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका।

मिशन कर्मयोगी हेतु कार्य बल


(Task force for Mission Karmayogi)

संदर्भ:

इंफोसिस के पूर्व सीईओ एस डी शिबू लाल को बुधवार को महत्वाकांक्षी योजना मिशन कर्मयोगी के तहत नौकरशाही में व्यापक सुधार लाने में सरकार की मदद करने के लिए गठित तीन सदस्यीय टास्क फोर्स का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

इस कार्य बल / टास्क फ़ोर्स को, ‘कर्मयोगी भारत’ मिशन के दिशा-निर्देशन एवं संचालन हेतु एक एक स्पष्ट रोड मैप तथा एक ‘विशेष उद्देश्य संवाहक’ (Special Purpose Vehicle- SPV) तैयार करने का कार्य सौंपा गया है।

‘मिशन कर्मयोगी’ के बारे में:

“मिशन कर्मयोगी” – राष्ट्रीय सिविल सेवा क्षमता विकास कार्यक्रम, सरकारी सेवाओं के लिए नागरिक अनुभवों में वृद्धि करने दक्षतापूर्ण कार्यबल की उपलब्धता में सुधार करने के उद्देश्य से, देश में सभी सिविल सेवाओं के लिए ‘नियम आधारित प्रशिक्षण’ को ‘भूमिका-आधारित क्षमता विकास’ में परिवर्तित करने के लिए आरंभ किया गया था।

कार्यक्रम के मुख्य मार्गदर्शक सिद्धांत:

  1. ‘ऑफ साइट सीखने की पद्धति’ को बेहतर बनाते हुए ‘ऑन साइट सीखने की पद्धति’ पर बल देना।
  2. शिक्षण सामग्री, संस्थानों तथा कार्मिकों सहित साझा प्रशिक्षण अवसंरचना परितंत्र का निर्माण करना।
  3. सिविल सेवा से संबंधित सभी पदों को भूमिकाओं, गतिविधियों तथा दक्षता के ढांचे (Framework of Roles, Activities and Competencies- FRACs) संबंधी दृष्टिकोण के साथ अद्यतन करना और प्रत्येक सरकारी निकाय में चिन्हित FRAC के लिए प्रासंगिक अधिगम विषय-वस्तु का सृजन करना और प्रदान करना।
  4. सभी सिविल सेवकों को आत्म-प्रेरित एवं अधिदेशित सीखने की प्रक्रिया पद्धति में अपनी व्यवहारात्मक, कार्यात्मक और कार्यक्षेत्र से संबंधित दक्षताओं को निरंतर विकसित एवं सुदृढ़ करने का अवसर उपलब्ध कराना।

संस्थागत ढांचा और कार्यक्रम का कार्यान्वयन:

  1. सिविल सेवा क्षमता विकास योजनाओं को अनुमोदन प्रदान करने एवं निगरानी करने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मानव संसाधन परिषद (Public Human Resources Council)।
  2. क्षमता विकास आयोग (Capacity Building Commission) द्वारा प्रशिक्षण मानकों में सामंजस्य बनाना, साझा संकाय और संसाधन बनाना तथा सभी केंद्रीय प्रशिक्षण संस्थानों के लिए पर्यवेक्षी भूमिका निभाना
  3. ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफार्म के स्वामित्व और संचालन तथा विश्वस्तरीय लर्निंग विषयवस्तु बाजार स्थल को सुविधाजनक बनाने के लिए पूर्ण स्वामित्व वाला विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle-SPV)
  4. मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में समन्वयन इकाई (Coordination Unit)।

इस कार्यक्रम का महत्व:

‘मिशन कर्मयोगी’ का लक्ष्य भारतीय सिविल सेवकों को और भी अधिक रचनात्मक, सृजनात्मक, विचारशील, नवाचारी, अधिक क्रियाशील, प्रोफेशनल, प्रगतिशील, ऊर्जावान, सक्षम, पारदर्शी और प्रौद्योगिकी-समर्थ बनाते हुए भविष्य के लिए तैयार करना है। विशिष्ट भूमिका-दक्षताओं से युक्त सिविल सेवक उच्चतम गुणवत्ता मानकों वाली प्रभावकारी सेवा प्रदायगी सुनिश्चित करने में समर्थ होंगे।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि वर्ष 2017 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा वामपंथी उग्रवाद से निपटने हेतु ‘समाधान’ (SAMADHAN) रणनीति घोषित की गयी थी? इसके बारे में और अधिक जानने के लिए पढ़ें:

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मिशन कर्मयोगी के बारे में
  2. उद्देश्य
  3. कार्यान्वयन

मेंस लिंक:

मिशन कर्मयोगी की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

पीटर पैन सिंड्रोम (PPS)


(Peter Pan Syndrome)

संदर्भ:

हाल ही में, एक नाबालिग बालिका का यौन शोषण करने के आरोपी व्यक्ति ने, मुंबई की एक विशेष अदालत में, खुद को ‘पीटर पैन सिंड्रोम’ (Peter Pan Syndrome) से पीड़ित बताया और अदालत ने अंततः विभिन्न आधारों को देखते हुए आरोपी को जमानत दे दी।

‘पीटर पैन सिंड्रोम’ क्या है?

इस सिंड्रोम का नाम 19 सदी में रचित ‘पीटर पैन’ नामक एक काल्पनिक चरित्र के नाम पर रखा गया है। ‘पीटर पैन’ एक बेफिक्र एवं लापरवाह युवा लड़का है, जो कभी बड़ा नहीं होता है। यह चरित्र, एक स्कॉटिश उपन्यासकार ‘जेम्स मैथ्यू बैरी’ द्वारा रचा गया था।

  • जिन व्यक्तियों में इसी तरह की प्रवृत्तियाँ- जैसेकि लापरवाही भरा जीवन जीना, वयस्कता में चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारियों को ढूंढना, और मुख्यतः “कभी बड़े नहीं होना” – विकसित होने लगती हैं उन्हें ‘पीटर पैन सिंड्रोम’ से पीड़ित माना जाता हैं।
  • कृपया ध्यान दें; इस सिंड्रोम को WHO द्वारा ‘स्वास्थ्य विकार’ के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।

संबंधित चिंताएं:

  • इसे “सामाजिक-मनोवैज्ञानिक दृग्विषय” (social-psychological phenomenon) के रूप में देखा जाता है। यह एक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थिति है, जो किसी के भी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है।
  • यह किसी की दैनिक दिनचर्या, रिश्तों, कार्य-नैतिकता को प्रभावित कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप अभिवृत्‍तिक परिवर्तन (attitudinal changes) हो सकते हैं।

इस सिंड्रोम का प्रभाव:

यह सिंड्रोम,उन लोगों को प्रभावित करता है जो बड़ा नहीं होना चाहते या बड़ा महसूस नहीं करते हैं, या जिनका शरीर वयस्क हो जाता है, लेकिन दिमाग एक बच्चे का ही रहता है।

  • इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति, यह नहीं समझ पाते या समझना ही नहीं चाहते हैं कि किस तरह से बड़ा बना जाए, और माता-पिता की भूमिका निभाई जाए।
  • यह सिंड्रोम, लैंगिक, प्रजाति, या संस्कृति की परवाह किए बगैर किसी को भी प्रभावित कर सकता है। हालाँकि, यह आमतौर पर पुरुषों में अधिक प्रतीत होता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि पीटर पैन सिंड्रोम की तरह ही ‘वेंडी सिंड्रोम’ भी होता है? इसके बारे में जानने के लिए देखें:

 

प्रीलिम्स और मेंस लिंक:

पीटर पैन सिंड्रोम का तात्पर्य, लक्षण और संबंधित चिंताएं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

‘शंघाई सहयोग संगठन’ सम्मलेन


(SCO meet)

संदर्भ:

हाल ही में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल, ताजिकिस्तान में आयोजित  में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) के सदस्य राष्ट्रों के ‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों’ की बैठक में शामिल हुए। बैठक में, अजीत डोभाल ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के खिलाफ एक कार्य योजना का प्रस्ताव पेश किया है।

पृष्ठभूमि:

  • लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद, भारत में, खासकर केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में, होने वाले कई आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार हैं।
  • पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी के सहयोग से गठित किया गया संगठन ‘जैश-ए-मोहम्मद’ पुलवामा में हुए आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार था, इस हमले में 40 भारतीय सैनिक मारे गए थे।

प्रस्तावित कार्य योजना:

  1. संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और लक्षित प्रतिबंधों का पूर्ण कार्यान्वयन।
  2. SCO और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के मध्य एक समझौता ज्ञापन सहित, आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को लागू करना।
  3. आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली नई तकनीकों की निगरानी करना। इसमें ड्रोन का इस्तेमाल और डार्क वेब, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और सोशल मीडिया का दुरुपयोग शामिल है।

‘शंघाई सहयोग संगठन’ के बारे में:

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।

  • SCO के गठन की घोषणा, 15 जून 2001 को शंघाई (चीन) में कजाकिस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, किर्गिज गणराज्य, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उजबेकिस्तान गणराज्य द्वारा की गयी थी।
  • इसकी स्थापना ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के स्थान पर की गई थी।
  • जून 2002 में सेंटपीटर्सबर्ग में हुई SCO देशों के प्रमुखों की बैठक के दौरान शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए तथा यह 14 अप्रैल 2003 से प्रभावी हुआ।
  • SCO की आधिकारिक भाषाएं रूसी और चीनी हैं।

शंघाई सहयोग संगठन के प्रमुख लक्ष्य:

  • सदस्य राज्यों के मध्य परस्पर विश्वास और सद्भाव को मज़बूत करना।
  • राजनैतिक, व्यापार, अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बनाए रखने और सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त प्रयास करना।
  • एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक एवं आर्थिक प्रणाली की स्थापना करना।

SCO के सदस्य:

SCO में आठ सदस्य देश शामिल हैं – भारत गणराज्य, कजाकिस्तान गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना, किर्गिज़ गणराज्य, इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान, रूसी संघ, ताजिकिस्तान गणराज्य और उज़्बेकिस्तान गणराज्य।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप SCO RATS के बारे में जानते हैं? इसकी भूमिकाओं और कार्यों को समझने के लिए इसे पढ़ें

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. शंघाई फाइव क्या है?
  2. SCO चार्टर पर कब हस्ताक्षर किए गए और यह कब लागू हुआ?
  3. SCO संस्थापक सदस्य।
  4. भारत SCO में कब शामिल हुआ?
  5. SCO के पर्यवेक्षक और संवाद सहयोगी।
  6. SCO के तहत स्थायी निकाय।
  7. SCO की आधिकारिक भाषाएं।

मेंस लिंक:

शंघाई सहयोग संगठन के उद्देश्यों और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

चंद्रयान-2


(Chandrayaan-2)

संदर्भ:

चंद्रमा के ऊपर चक्कर काट रहे चंद्रयान-2 को सूर्य की अत्यधिक गर्म सबसे बाह्य परत ‘कोरोना’ के विषय में नई जानकारियों के बारे में पता चला है। इनमे शामिल है:

  1. सौर कोरोना में मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम और सिलिकॉन की प्रचुर मात्रा।
  2. लगभग 100 सूक्ष्म सौर-लपटों (microflares) का प्रेक्षण किया गया, जिससे कोरोना-द्रव्यमान के गर्म होने के बारे में नई अंतर्दृष्टि मिलती है।

कोरोना की हीटिंग समस्या के कारण:

कोरोना से ‘पराबैंगनी’ किरणों तथा ‘एक्स-रे’ (X-rays) का उत्सर्जन होता है, और यह 2 मिलियन डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक तापमान पर आयनित (ionised) गैसों से निर्मित हुआ है।

  1. इसके मात्र 1,000 मील नीचे स्थित सतह को ‘फोटोस्फीयर’ कहा जाता है, और इसका तापमान मात्र 10,000 डिग्री फ़ारेनहाइट है।
  2. तापमान में रहस्यमयी भिन्नता को कोरोना की हीटिंग समस्या या ‘कोरोनल हीटिंग प्रॉब्लम’ (Coronal Heating Problem) कहा जाता है।

नवीनतम निष्कर्षों के अनुसार, इस उच्च तापमान का कारण, सनस्पॉट (सूर्य की दृश्यमान छवियों में दिखाई देने वाले काले धब्बे) के ऊपर मौजूद शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र हो सकते हैं।

चंद्रयान-2 मिशन:

वर्ष 2019 में चंद्रमा के अँधेरे भाग पर ‘हार्ड लैंडिंग’ करने के बाद से ‘चंद्रयान-2 मिशन’ से संपर्क टूट गया था, किंतु यह अभी भी अपने ऑर्बिटर के रूप में सक्रिय है और चंद्रमा के ऊपर परिभ्रमण कर रहा है।

वैज्ञानिकों द्वारा, सूर्य का अध्ययन करने के लिए, चंद्रयान-2 पर लगे हुए ‘सोलर एक्स-रे मॉनिटर’ (XSM) का इस्तेमाल किया गया है।

  1. चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य, चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंड करने और सतह पर रोबोटिक रोवर को संचालित करने की क्षमता का प्रदर्शन करना था।
  2. इस मिशन में, एक ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल थे और चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए सभी वैज्ञानिक उपकरणों से लैस था।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘सोलर मिनिमम’ (solar minimum) की स्थिति में, सूर्य पर ‘सनस्पॉट’ की संख्या तथा सक्रिय क्षेत्र काफी कम होते है और सूर्य अत्यंत शांत होता है। पिछली शताब्दी में, ‘सोलर मिनिमम’ के दौरान सौर-गतिविधियां निम्नतम स्तर पर थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. चंद्रयान-2 के बारे में
  2. उद्देश्य
  3. यान पर लगे हुए उपकरण
  4. चंद्रयान-1

मेंस लिंक:

चंद्रयान-2 मिशन के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडिया टुडे

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

अंटार्कटिक संधि


(Antarctic Treaty)

संदर्भ:

23 जून 2021 को ‘अंटार्कटिक संधि’ (Antarctic Treaty) के लागू होने (23 जून 1961) की 60 वीं वर्षगांठ मनाई गयी।

इस संधि का महत्व:

  1. शीत युद्ध के दौरान, अंटार्कटिक में अपना हित रखने वाले 12 देशों द्वारा हस्ताक्षरित की गई यह संधि, किसी संपूर्ण महाद्वीप पर लागू होने वाली एकमात्र एकल संधि का उदाहरण है।
  2. यह किसी अस्थाई आबादी वाले महाद्वीप के लिए नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की नींव भी है।

इस संधि पर एक अत्यंत भिन्न समय-काल पर हस्ताक्षर किए गए थे; क्या वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता है?

  • हालांकि, 1950 के दशक की तुलना में 2020 के दशक में परिस्थितियां मौलिक रूप से भिन्न हैं, फिर भी अंटार्कटिक संधि कई चुनौतियों का सफलतापूर्वक जवाब देने में सक्षम है।
  • अंटार्कटिका, कुछ हद तक प्रौद्योगिकी तथा जलवायु परिवर्तन के कारण काफी सुगम्य एवं सुलभ है।
  • इस महाद्वीप से मूल 12 देशों के अलावा कई अन्य देशों के वास्तविक हित जुड़ चुके हैं।
  • कुछ वैश्विक संसाधन, विशेषकर तेल, काफी दुर्लभ होते जा रहे हैं।
  • अंटार्कटिका के विषय में चीन की मंशा को लेकर भी अनिश्चितता है। चीन इस संधि में वर्ष 1983 में शामिल हुआ था और वर्ष 1985 में एक सलाहकार सदस्य बन गया।
  • परिणामस्वरूप, भविष्य में किसी समय अंटार्कटिक में खनन की संभावनाओं पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।
  • इसलिए, ‘अंटार्कटिक में खनन पर प्रतिबंधों’ पर फिर से विचार करना अपरिहार्य प्रतीत होता है।

‘अंटार्कटिक संधि’ के बारे में:

अंटार्कटिक महाद्वीप को केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिये संरक्षित करने एवं असैन्यीकृत क्षेत्र बनाए रखने हेतु 1 दिसंबर 1959  को वाशिंगटन में 12 देशों द्वारा अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।

  • इन बारह मूल हस्ताक्षरकर्ता देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्रांस, जापान, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
  • यह संधि 1961 में लागू हुई और वर्तमान में इसमें 54 देश शामिल हैं। भारत, वर्ष 1983 में इस संधि का सदस्य बना था।
  • मुख्यालय: ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना।

इस संधि के सभी प्रयोजनों के लिए, अंटार्कटिका को 60 °S अक्षांश के दक्षिण में स्थित बर्फ से आच्छादित भूमि के रूप में परिभाषित किया गया है।

संधि के प्रमुख प्रावधान:

  1. अंटार्कटिका का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाएगा (अनुच्छेद -I)।
  2. अंटार्कटिका में वैज्ञानिक शोध की स्वतंत्रता और इस दिशा में सहयोग जारी रहेगा (अनुच्छेद-II)।
  3. अंटार्कटिका से वैज्ञानिक प्रेक्षणों और परिणामों का आदान-प्रदान किया जाएगा और इन्हें स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराया जाएगा (अनुच्छेद – III)।
  4. अनुच्छेद IV के द्वारा, क्षेत्रीय संप्रभुता को निष्प्रभावी रहेगी अर्थात् किसी देश द्वारा इस पर कोई नया दावा करने या मौजूदा दावे का विस्तार नहीं किया जाएगा।
  5. इस संधि के द्वारा इस महाद्वीप पर किसी भी देश द्वारा किए जाने वाले दावेदारी संबंधी सभी विवादों पर रोक लगा दी गई।

अंटार्कटिक संधि प्रणाली:

अंटार्कटिक महाद्वीप को लेकर वर्षों से विवाद उत्पन्न होते रहे हैं, लेकिन विभिन्न समझौतों और संधि के फ्रेमवर्क में विस्तार के माध्यम से अधिकाँश विवादों को हल किया गया है। इस संपूर्ण ढाँचे को अब अंटार्कटिक संधि प्रणाली (Antarctic Treaty System) के रूप में जाना जाता है।

अंटार्कटिक संधि प्रणाली, मुख्यतः चार प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समझौतों से बनी है:

  1. 1959 की अंटार्कटिक संधि
  2. अंटार्कटिक सील मछलियों के संरक्षण हेतु 1972 अभिसमय
  3. अंटार्कटिक समुद्री जीवन संसाधनों के संरक्षण पर 1980 का अभिसमय
  4. अंटार्कटिक संधि के लिये पर्यावरण संरक्षण पर 1991 का प्रोटोकॉल

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि अंटार्कटिक संधि के लिए पर्यावरण संरक्षण पर 1991 के प्रोटोकॉल को मैड्रिड प्रोटोकॉल के रूप में भी जाना जाता है?

भारत के अंटार्कटिका में ‘मैत्री’ और ‘भारती’ नामक दो अनुसंधान केंद्र कार्यरत हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि दक्षिण गंगोत्री, अंटार्कटिका में स्थित भारत का पहला वैज्ञानिक बेस स्टेशन था। इसके बारे में और अधिक पढ़ें,

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अंटार्कटिक संधि के बारे में
  2. अंटार्कटिक संधि प्रणाली के बारे में
  3. आर्कटिक और अंटार्कटिक में भारत के मिशन

मेंस लिंक:

अंटार्कटिक संधि के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए। क्या यह आज भी प्रासंगिक है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


काला सागर

  • काला सागर (Black Sea) एक अंतर्देशीय समुद्र है, जो सुदूर-दक्षिण-पूर्वी यूरोप और एशिया महाद्वीप के सुदूर-पश्चिमी किनारों तथा तुर्की देश के बीच स्थित है।
  • सीमावर्ती देश: रोमानिया, बुल्गारिया, यूक्रेन, रूस, जॉर्जिया और तुर्की।
  • यह पहले, बोस्पोरस जलडमरूमध्य के माध्यम से फिर मरमरा सागर और डार्डानलीज़ जलडमरूमध्य के माध्यम से भूमध्य सागर से जुड़ता है। यह दक्षिण में एजियन सागर और क्रेत सागर से जुड़ हुआ है।
  • काला सागर, केर्च जलडमरूमध्य (Kerch Strait) द्वारा आज़ोव सागर से भी जुड़ा हुआ है।

पोसोन उत्सव

(Poson festival)

‘पोसोन पोया’ (Poson Poya) के रूप में लोकप्रिय, यह श्रीलंकाई बौद्धों द्वारा तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में श्रीलंका में बौद्ध धर्म के आगमन का जश्न मनाने वाला एक वार्षिक उत्सव है।

इस धार्मिक उत्सव का केंद्र-स्थल, मिहिंताले पर्वत पर स्थित बौद्ध मठ परिसर होता है। इसी स्थान पर अरहत महिंदा थेरो ने श्रीलंका के राजा को बौद्ध धर्म का उपदेश दिया था।


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