[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 21 May 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. मोजाम्बिक में 30 वर्षों में पहले वाइल्ड पोलियो वायरस मामले की पुष्टि
  2. सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट
  3. विश्व शासन संकेतक

सामान्य अध्ययन-III

  1. स्पेसएक्स द्वारा 53 स्टारलिंक उपग्रहों का प्रक्षेपण
  2. नासा का वॉइअजर मिशन

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. विश्व मेट्रोलॉजी दिवस 2022
  2. नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र
  3. विश्व रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता सप्ताह (15 से 21 मई)
  4. WARDEC प्रोजेक्ट
  5. चाइल्ड ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट
  6. ‘भारत में असमानता की स्थिति’ रिपोर्ट

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

मोजाम्बिक में 30 वर्षों में पहले वाइल्ड पोलियो वायरस मामले की पुष्टि


(Mozambique confirms first wild poliovirus case in 30 years)

संदर्भ:

मोजाम्बिक में, एक बच्चे में इस बीमारी से संक्रमित होने बाद इस सप्ताह देश में ‘वाइल्ड पोलियोवायरस टाइप 1’ (wild poliovirus Type 1) के पहले मामले की पुष्टि की गयी है।

  • वर्ष 1992 के बाद मोजाम्बिक में इस बीमारी का पहला मामला है और इस साल दक्षिणी पूर्वी अफ्रीका में ‘वाइल्ड पोलियोवायरस’ का यह दूसरा आयातित मामला है।
  • इस साल की शुरुआत में, दक्षिणी पूर्वी अफ्रीका के ‘मलावी’ देश में इस बीमारी के प्रकोप की सूचना मिली थी।

नोट: अब तक, ‘वाइल्ड पोलियो वायरस’ केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान में पाया जाता (स्थानिक) था।

‘पोलियो’ (Polio) क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘पोलियो’ या ‘पोलियोमाइलाइटिस’ (Poliomyelitis) को ‘एक अत्यधिक संक्रामक विषाणुजनित रोग’ के रूप में परिभाषित किया गया है। यह बीमारी मुख्य रूप से छोटे बच्चों को प्रभावित करती है।

संचरण: पोलियो का विषाणु मुख्यत: मल मार्ग अथवा अन्य सामान्य वाहकों (जैसे दूषित जल अथवा भोजन) के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संचारित होता है। आँतों में पहुँचकर इस विषाणु की संख्या कई गुना हो जाती है और वहाँ से यह तंत्रिका तंत्र में पहुँचता है तथा अंगघात (Paralysis) का कारण बनता है।

 

किसी देश को पोलियो-मुक्त कब घोषित किया जाता है?

‘पोलियो वायरस’ के तीन प्रकार होते हैं, जिनकी संख्या 1 से 3 होती है। किसी देश को पोलियो मुक्त घोषित करने के लिए, तीनों प्रकार के वायरसों के अनियंत्रित संचरण को रोकना अनिवार्य होता है।

  • इसके अलावा, ‘पोलियो उन्मूलन’ के लिए, वाइल्ड और वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियो संक्रमण, दोनों प्रकार के मामलों को कम करके शून्य करना होता है।
  • लगातार तीन वर्षों तक वायरस के कोई साक्ष्य नहीं मिलने के बाद, जनवरी 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया था। इस उपलब्धि को व्यापक रूप से सफल ‘पल्स पोलियो अभियान’ द्वारा प्रेरित माना जाता है।

इस संबंध में भारत के प्रयास:

  • भारत में पोलियो वायरस के संचरण को रोकने के लिए, पल्स पोलियो कार्यक्रम के तहत, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने देश में किसी भी पोलियो प्रकोप से निपटने के लिए ‘रैपिड रिस्पांस टीम’ (Rapid Response Teams) का गठन किया गया है।
  • सरकार ने मार्च 2014 के बाद से भारत और पोलियो प्रभावित देशों, जैसे कि अफगानिस्तान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, इथियोपिया, केन्या, सोमालिया, सीरिया और कैमरून के मध्य यात्रा करने वालों के लिए ओरल पोलियो टीकाकरण (Oral Polio VaccinationOPV) अनिवार्य कर दिया है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि 1998 में विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) द्वारा ‘पोलियो उन्मूलन हेतु वैश्विक पहल’ का प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद, भारत में 1995 में ‘पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम’ शुरू किया गया था? इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. वर्तमान में वाइल्ड पोलियो से ग्रसित देश
  2. क्षीणीकृत टीका (attenuated vaccine) क्या है?
  3. किसी देश को वाइल्ड पोलियो मुक्त कब घोषित किया जाता है?
  4. ‘अफ्रीका क्षेत्रीय प्रमाणन आयोग’ की संरचना और कार्य

मेंस लिंक:

भारत के लिए निकटवर्ती क्षेत्रों में पोलियो के कई प्रकोपों ​​​​का क्या मतलब है? क्या भारत को इससे चिंता करनी चाहिए? पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम द्वारा अब तक की गई उपलब्धियों की चर्चा कीजिए और आगे का रास्ता क्या होना चाहिए, इस पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट


(Global Report on Assistive Technology – GReAT)

संदर्भ:

हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और ‘संयुक्त राष्ट्र बाल कोष’ / ‘यूनिसेफ’ (United Nations Children’s Fund – UNICEF) द्वारा पहली ‘सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट’ (Global Report on Assistive Technology – GReAT) जारी की गयी है।

‘सहायक प्रौद्योगिकी’ के बारे में:

विकलांग व्यक्तियों को उनकी कार्यात्मक क्षमताओं को बढ़ाने, बनाए रखने या सुधारने में मदद करने के लिए काम आने वाली या उपयोग की जाने वाली किसी भी वस्तु, उपकरण का हिस्सा, सॉफ्टवेयर प्रोग्राम, या उत्पाद प्रणाली को ‘सहायक प्रौद्योगिकी या तकनीक’ (Assistive technology – AT) में शामिल किया जाता है।

उदाहरण: क्रत्रिम अंग या प्रोस्थेटिक्स (Prosthetics), दांतों को आकार देने वाले  ब्रेसिज़, वॉकर, अनुकूलित स्विच, विशेष-उद्देश्य वाले कंप्यूटर, स्क्रीन रीडर और विशेषज्ञ पाठ्यचर्या सॉफ़्टवेयर, आदि।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • 5 अरब से अधिक व्यक्तियों को एक या अधिक ‘सहायक वस्तुओं’ की आवश्यकता होती है।
  • एक अरब लोगों- खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में – की ‘सहायक उपकरणों’ तक पहुंच नहीं हो पाती है।
  • वर्ष 2050 तक, सहायक उपकरणों के जरूरतमंद व्यक्तियों की संख्या 5 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है।
  • इसका कारण, दुनिया भर में अधिक आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि और गैर-संचारी रोगों की बढ़ती घटनाएँ हैं।
  • अनुभूति, संचार और स्व-देखभाल के क्षेत्रों में, ‘सहायक प्रौद्योगिकी’ के लिए सेवा प्रावधानों और योग्य कर्मियों की काफी कमी है।

रिपोर्ट में की गयी प्रमुख अनुशंसाएं:

  1. शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल प्रणालियों तक पहुंच में सुधार।
  2. ‘सहायक उत्पादों’ की उपलब्धता, सुरक्षा, प्रभावशीलता और वहनीयता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  3. कार्यबल क्षमता में वृद्धि, विविधता और सुधार।
  4. ‘सहायक तकनीक’ उपयोगकर्ताओं और उनके परिवारों को सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
  5. जन जागरूकता बढ़ायी जानी चाहिए और ‘कलंक’ समझी जाने वाली इस समस्या का सामना किया जाना चाहिए।

‘भारत में विकलांगता – स्थिति, चुनौतियाँ और आगे की राह’: संदर्भ।

विकलांगों के लिए भारत सरकार द्वारा पहल:

  1. सुगम्य भारत अभियान: दिव्यांगजनों के लिए सुगम्य वातावरण का निर्माण।
  2. दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना।
  3. विकलांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप।
  4. विशिष्ट विकलांगता पहचान परियोजना।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट’ (GReAT), 2018 में आयोजित ‘विश्व स्वास्थ्य महासभा’ के 71वें प्रस्ताव की परिणति है। इस प्रस्ताव में सहायक प्रौद्योगिकी तक प्रभावी पहुंच पर एक वैश्विक रिपोर्ट तैयार किए जाने का प्रावधान किया गया था।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सहायक प्रौद्योगिकियां (Assistive Technologies) क्या हैं?
  2. सहायक प्रौद्योगिकी पर वैश्विक रिपोर्ट (GReAT)- प्रमुख निष्कर्ष।
  3. विकलांगों के लिए भारत सरकार द्वारा चलाए जा रही योजनाएं/कार्यक्रम।

मेंस लिंक:

यद्यपि,‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम’, 2016 एक ऐतिहासिक कदम है, किंतु विकलांगों के लिए समावेशिता और पहुंच हासिल करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। परीक्षण कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।

विश्व शासन-प्रणाली संकेतक


(World Governance Indicators)

संदर्भ:

वित्त मंत्रालय में तत्कालीन प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल द्वारा 2020 में पेश की गयी एक प्रस्तुति के अनुसार, विश्व बैंक के ‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतक’ (World Governance Indicators – WGI) संबंधी इनपुट एकपक्षीय हैं।

यह प्रस्तुति, भारत के संबंध में की गयी ‘नकारात्मक टिप्पणी’ का मुकाबला करने के लिए सरकार के भीतर आंतरिक संचलन के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की गई थी।

‘शासन-प्रणाली’ क्या होती है?

‘शासन-प्रणाली’ या ‘शासन’ (Governance) में वे संभी परंपराएँ और संस्थाएँ शामिल होती हैं जिनके द्वारा किसी देश में प्राधिकारों का प्रयोग किया जाता है। इसमें सरकारों के चयन, निगरानी और प्रतिस्थापन करने संबंधी प्रक्रियाओं; ठोस नीतियों को प्रभावी ढंग से तैयार करने और लागू करने के लिए सरकार की क्षमता; और नागरिकों तथा उनके बीच आर्थिक और सामाजिक संबंधों को नियंत्रित करने वाली संस्थाओं के लिए राज्य का सम्मान आदि को शामिल किया जाता है।

‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतक’ (WGI) के बारे में:

WGI, ‘विश्व बैंक’ द्वारा जारी किए गए हैं।

‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतकों’ द्वारा शासन-प्रणाली के निम्नलिखित छह आयामों के आधार पर 215 देशों की रैंकिंग की गयी है:

  1. ‘अभिव्यक्ति तथा जवाबदेही’;
  2. ‘राजनीतिक स्थिरता एवं हिंसा की अनुपस्थिति’;
  3. ‘सरकार की प्रभावशीलता’;
  4. ‘विनियामक गुणवत्ता’;
  5. ‘विधि का शासन’ एवं
  6. ‘भ्रष्टाचार पर नियंत्रण’।

स्रोत: ये समग्र संकेतक, विभिन्न सर्वेक्षण संस्थानों, थिंक टैंक, गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र की फर्मों जैसे ‘इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट’ (EIU),’ वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी’ (V-Dem) प्रोजेक्ट और फ्रीडम हाउस, आदि द्वारा तैयार किए गए 30 से अधिक व्यक्तिगत डेटा स्रोतों पर आधारित हैं।

महत्व: WGI किसी भी देश की ‘सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग’ तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत सरकार के लिए चिंता का विषय:

  • भारत सरकार के अनुसार, ‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतक’ (WGI) पश्चिमी देशों की प्रेस या गैर सरकारी संगठनों के लघु सर्वेक्षणों और मुट्ठी भर शिक्षाविदों के प्रकाशनों पर आधारित हैं, जिनमें से कई में कोई भारत संबंधी मामलों का विशेषज्ञ भी नहीं है।
  • भारत के प्रति इन संस्थानों की आलोचनात्मक टिप्पणियों के परिणामस्वरूप WGI परिणामों में गिरावट आएगी। इसके परिणामस्वरूप भारत की सॉवरेन रेटिंग भी नीचे आ सकती है।

नवीनतम ‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतक’ में भारत का स्कोर:

भारत का WGI स्कोर सभी छह संकेतकों पर ‘बीबीबी माध्यिका’ (BBB Median) से काफी नीचे है।

  • ‘बीबीबी’, ‘स्टैंडर्ड एंड पुअर’ तथा ‘फिच’ जैसी वैश्विक रेटिंग एजेंसियों द्वारा जारी एक निवेश-ग्रेड रेटिंग है।
  • ‘बीबीबी माध्यिका’ से नीचे WGI स्कोर का तात्पर्य है, कि जब सूची में शामिल देशों के स्कोर को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तो भारत की स्थिति ‘मध्य’ से नीचे है।

भारत की WGI रैंक को अत्यधिक प्रभावित करने वाली प्रमुख घटनाएं:

  1. कश्मीर मुद्दा।
  2. कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न।
  3. राजद्रोह कानून।
  4. एनजीओ लाइसेंसों को रद्द किया जाना।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘विश्व शासन-प्रणाली संकेतक’ (WGI) के बारे में।
  2. रैंकिंग मानदंड।
  3. नवीनतम रिपोर्ट में भारत का प्रदर्शन।

मेंस लिंक:

सुशासन (Good Governance) क्या है? भारत में सुशासन के विभिन्न आयामों की विवेचना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

स्पेसएक्स द्वारा 53 स्टारलिंक उपग्रहों का प्रक्षेपण


संदर्भ:

हाल ही में, स्पेसएक्स (SpaceX) द्वारा कैलिफोर्निया से ‘फाल्कन 9 प्रक्षेपण यान’ रॉकेट’ द्वारा ‘स्टारलिंक इंटरनेट कान्स्टलैशन के लिए 53 उपग्रहों को ले जाने वाला एक रॉकेट लॉन्च किया गया।

स्पेसएक्स द्वारा अब तक 2,500 से अधिक स्टारलिंक उपग्रहों (Starlink satellites) को लॉन्च किया जा चुका है, और अभी कई अन्य  उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने की योजना है।

‘स्टारलिंक प्रोजेक्ट’ क्या है?

‘स्टारलिंक नेटवर्क’ (Starlink network), अंतरिक्ष से डेटा संकेतों को भेजने के लिए वर्तमान में जारी कई प्रयासों में से एक है।

  • इस प्रोजेक्ट के तहत, कंपनी का उद्देश्य लगभग 12,000 उपग्रहों का एक समूह तैयार करना है।
  • इसका उद्देश्य, दुनिया को कम लागत वाली और विश्वसनीय अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट सेवाएं प्रदान करना है।

LEO उपग्रह आधारित इंटरनेट के लाभ:

  1. पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में स्थित उपग्रह, पृथ्वी से लगभग 36,000 किमी की दूरी पर स्थित भू-स्थैतिक कक्षा उपग्रहों की तुलना में, लगभग 500 किमी से 2000 किमी की दूरी पर स्थित होते हैं।
  2. LEO उपग्रह पृथ्वी का नजदीक से परिक्रमण करते हैं अतः ये, पारंपरिक स्थिर-उपग्रह प्रणालियों की तुलना में सशक्त सिग्नल और तेज गति प्रदान करने में सक्षम होते हैं।
  3. चूंकि, सिग्नल, फाइबर-ऑप्टिक केबल प्रणाली की तुलना में, अंतरिक्ष के माध्यम से अधिक तेजी से गति करते हैं, इसलिए भले ही ये मौजूदा जमीन-आधारित नेटवर्क से आगे न निकल सकें, फिर भी इसका मुकबला करने में सक्षम होंगे।

चुनौतियां:

LEO उपग्रह 27,000 किमी प्रति घंटा की गति से यात्रा करते हैं और 90-120 मिनट में पृथ्वी का एक पूर्ण परिपथ पूरा कर लेते हैं। नतीजतन, एक उपग्रह, पृथ्वी पर स्थापित ट्रांसमीटर के साथ बहुत कम ले लिए संपर्क स्थापित कर पाता है, अतः इस प्रणाली को सफलतापूर्वक कार्य करने हेतु LEO उपग्रहों के एक विशाल बेड़े की आवश्यकता होती है और इसके लिए बड़े पूंजी निवेश की जरूरत होती है।

LEO उपग्रहों की आलोचनाएँ:

  1. चूंकि, इन परियोजनाओं को अधिकांशतः निजी कंपनियों द्वारा संचालित किया जा रहा है, अतः शक्ति संतुलन, देशों से हटकर कंपनियों में स्थानांतरित हो गया है। इन निजी परियोजनाओं में कई राष्ट्रों की भागेदारी भी होती है, इसे देखते हुए इन कंपनियों को नियंत्रित करने से संबंधित सवाल उत्पन्न हो रहे हैं।
  2. जटिल नियामक ढांचा: इन कंपनियों में विभिन्न देशों के हितधारक शामिल होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक देश में इन सेवाओं के संचालन हेतु अपेक्षित लाइसेंस प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  3. प्राकृतिक उपग्रहों को कभी-कभी रात के समय आसमान में देखा जा सकता है, इन कृत्रिम उपग्रहों की वजह से खगोलविदों के लिए मुश्किलें हो सकती हैं।
  4. निचली कक्षा में भ्रमण करने वाले उपग्रह, अपने ऊपर परिक्रमा करने वाले उपग्रहों की आवृत्तियों को बाधित कर सकते हैं।
  5. बोलचाल की भाषा में ‘स्पेस जंक’ कहे जाने वाले पिंडों से अंतरिक्ष यानो को क्षति पहुंचने या अन्य उपग्रहों से टकराने की संभावना रहती है।

संभावनाएं:

जिन स्थानों पर फाइबर और स्पेक्ट्रम सेवाओं की पहुँच नहीं होती है, वहां LEO सैटेलाइट ब्रॉडबैंड बेहतर कार्य करने में सक्षम हो सकते हैं। अतः इसके लिए लक्षित बाजार, ग्रामीण आबादी और शहरी क्षेत्रों से दूर तैनात सैन्य इकाइयाँ होंगी।

इस प्रकार की अन्य परियोजनाएं:

  1. वनवेब (One Web)
  2. जिओ सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं (Jio satellite broadband services)

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने ‘SWARM’ – एक अंतरिक्ष अन्वेषण अवधारणा के बारे में सुना है?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. LEO के बारे में।
  2. स्टारलिंक परियोजना
  3. LEO उपग्रह आधारित इंटरनेट के लाभ

मेंस लिंक:

उपग्रह आधारित इंटरनेट सेवाओं से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: एनडीटीवी।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

नासा का वॉइअजर मिशन


संदर्भ:

नासा का वॉइअजर- 1 (Voyager- 1) अंतरिक्ष यान लॉन्च होने के 45 साल बाद भी हमारे सौर मंडल से आगे अपनी यात्रा जारी रखे हुए है। लेकिन अब ये पुराना और अनुभवी अंतरिक्ष यान अपने इंजीनियरों को हैरान करते हुए अजीबोगरीब डेटा वापस भेज रहा है। इसके कारण एक गड़बड़ी बताई जा रही है।

  • इस गड़बड़ी का संबंध ‘वॉइअजर- 1’ के ‘एटीट्यूड आर्टिक्यूलेशन एंड कंट्रोल सिस्टम’ (Attitude Articulation and Control System, or AACS) से है।  AACS, अंतरिक्ष यान और उसके एंटीना को उचित दिशा में रखता है।
  • प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है, कि यह यान अंतरिक्ष में अपनी अवस्थिति के बारे में अस्पष्ट हो गया है।

‘वॉइअजर मिशन’ के बारे में:

नासा का ‘वॉइअजर मिशन’ (Voyager Mission) 1970 के दशक में लॉन्च किया गया था। इस मिशन में नासा द्वारा अंतरिक्ष में बाहरी ग्रहों का केवल पता लगाने के ‘प्रोब’ भेजे गए थे – लेकिन ये दोनों प्रोब बस अगाध अंतरिक्ष में आगे की ओर बढ़ते जा रहे हैं।

  • मिशन के तहत, ‘वॉइअजर 1’ ने 5 सितंबर 1977 को पृथ्वी से प्रस्थान किया और इसके कुछ दिनों बाद वायेजर 2 को पृथ्वी से छोड़ा गया था। इस दोनों अंतरिक्ष यानों ने 2013 में हमारे सौर मंडल को पीछे छोड़ दिया।
  • वॉइअजर अंतरतारकीय / इंटरस्टेलर मिशन (Voyager Interstellar Mission – VIM) का मिशन उद्देश्य, नासा के सौर मंडल अन्वेषण को, बाह्य ग्रहों के निकटवर्ती क्षेत्रों से परे / आगे, हमारे सूर्य के प्रभाव क्षेत्र की बाहरी सीमाओं तक और संभवतः उससे आगे तक विस्तारित करना है।
  • वॉइअजर (VOYAGER) अंतरिक्ष यान, हमारे सौर मंडल के सभी ग्रहों से आगे उड़ान भरने वाले क्रमशः तीसरे और चौथे मानव अंतरिक्ष यान है। इससे पहले ‘पायनियर 10’ और ‘पायनियर 11’ सूर्य के गुरुत्वाकर्षण आकर्षण सीमा से आगे निकल गए थे, किंतु 17 फरवरी, 1998 को, वॉइअजर 1, पायनियर 10 को पार करते हुए अंतरिक्ष में सबसे दूर तक पहुँचने वाली मानव निर्मित वस्तु बन गई।

 

अब तक की उपलब्धियां:

  • ‘वॉइअजर 2’, ग्रहों की उड़ान के दौरान नेपच्यून और यूरेनस का अध्ययन करने वाला एकमात्र प्रोब है।
  • यह हमारे ग्रह से बाहर जाने वाली मानव निर्मित दूसरी वस्तु है।
  • वॉइअजर 2, सभी चार गैसीय विशालकाय ग्रहों – बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून- का भ्रमण करने तथा 16 चंद्रमाओं की खोज करने वाला और साथ ही, नेप्च्यून के रहस्यमयी क्षणिक ग्रेट डार्क स्पॉट, यूरोपा के बर्फ के खोल में दरारें, और प्रत्येक ग्रह पर छल्लों जैसी विशेषताएं जैसी घटनाओं का पता लगाने वाला एकमात्र अंतरिक्ष यान है।

 

इंटरस्टेलर स्पेस’ क्या है?

‘अंतरतारकीय अंतरिक्ष’ / इंटरस्टेलर स्पेस (Interstellar Space) कहां से शुरू होता है, इसे चिह्नित करने के लिए वैज्ञानिक ‘हेलियोपॉज’ (HELIOPAUSE) का उपयोग करते हैं।  हालांकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप हमारे ‘सौर मंडल’ को कैसे परिभाषित करते हैं- जोकि सूर्य से पृथ्वी की कक्षीय दूरी की तुलना में, 1,000 गुना दूर से आरंभ होने वाले ‘ऊर्ट क्लाउड’ (Oort Cloud) तक विस्तारित हो सकता है।

हेलिओस्फीयर:

हेलिओस्फीयर (Heliosphere) सूर्य के चारों ओर फैला हुआ एक बुलबुला है, जोकि सौर हवाओं के सूर्य के केंद्र से बाहर की ओर प्रवाह, तथा अंतरतारकीय हवाओं के सूर्य की ओर आने वाले प्रवाह को रोकने से निर्मित होता है। ‘हेलिओस्फीयर’, सौर हवाओं के साथ आने वाले सूर्य की गत्यात्मक विशेषताओं- जैसेकि चुंबकीय क्षेत्र, ऊर्जायुक्त कण और सौर पवन प्लाज्मा आदि- से प्रभावित क्षेत्र है। ‘हेलिओपॉज़’, हेलिओस्फीयर के अंत और ‘इंटरस्टेलर स्पेस’ की शुरुआत की निशानी होते हैं।

 प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘वॉइअजर मिशन’ (Voyager Mission)
  2. वॉइअजर 1
  3. वॉइअजर 2
  4. हेलियोस्फीयर

मेंस लिंक:

‘वॉइअजर मिशन’ (Voyager Mission) के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडिया टुडे।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 विश्व मेट्रोलॉजी दिवस 2022

(World Metrology Day)

20 मई को विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष ‘विश्व माप- विज्ञान दिवस’ या ‘विश्व मेट्रोलॉजी दिवस’ (World Metrology Day) मनाया जाता है।

  • यह दिवस, वर्ष 1875 में फ्रांस के पेरिस शहर में ‘प्रसिद्ध मीटर कन्वेंशन’ (Metre Convention) पर हस्ताक्षर करने की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • विश्व मेट्रोलॉजी दिवस 2022 के लिए थीम: डिजिटल युग में मेट्रोलॉजी।
  • इस दिवस का आयोजन ‘द इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ लीगल मेट्रोलॉजी’ (OIML) और ‘ब्यूरो इंटरनेशनल डेस पॉयड्स एट मेसर्स’ (Bureau International des Poids et Mesures – BIPM) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।

मीटर कन्वेंशन:

20 मई 1875 को 17 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा पेरिस में ‘मीटर कन्वेंशन’ (Metre Convention) पर हस्ताक्षर किए गए थे।

  • इस संधि के द्वारा ‘इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट एंड मेजर्स’ (BIPM) की स्थापना की गयी थी। BIPM एक अंतरसरकारी संगठन है, जो ‘भार एवं माप महासभा’ (General Conference on Weights and Measures – CGPM) के प्राधिकार के तहत और ‘इंटरनेशनल कमेटी फॉर वेट एंड मेजर्स’ (CIPM) की देखरेख में कार्य करता है।
  • ‘मीटर कन्वेंशन’ का उद्देश्य ‘विश्व स्तर पर विज्ञान और मापन में सहयोग के लिए एक ढांचा’ तैयार करना है।

‘माप-विज्ञान’ या ‘मेट्रोलॉजी’ (Metrology) को माप का वैज्ञानिक अध्ययन कहा जाता है।

 

नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र

नागोर्नो-काराबाख़ क्षेत्र (Nagorno-Karabakh region) वर्षों से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच विवाद का विषय बना हुआ है।

  • इसे आर्त्शाख़ (Artsakh) नाम से भी जाना जाता है। यह काराबाख़ पर्वत श्रेणी में स्थित दक्षिण काकेशस का स्थलरुद्ध क्षेत्र है।
  • यह क्षेत्र अज़रबैजान का हिस्सा है, लेकिन इसकी बहुसंख्यक आबादी अर्मेनियाई है।

 

विश्व रेटिनोब्लास्टोमा जागरूकता सप्ताह (15 से 21 मई)

  • रेटिनोब्लास्टोमा (Retinoblastoma) छोटे बच्चों में आंख में होने वाला सबसे आम कैंसर (घातक ट्यूमर) है।
  • यह ट्यूमर एक या दोनों आँखों में हो सकता है और वंशानुगत या कभीकभार भी हो सकता है।
  • अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा हो सकता है और साथ ही बच्चे की दृष्टि भी छीन सकता है।

लक्षण:

  • आँख में सफेद छाया: आँख की पुतली पर प्रकाश डालने से यह लाल के बजाय सफेद या पीली दिखती है।
  • भेंगापन (Squinting)।
  • डब्ल्यूआर के साथ या उसके बिना खराब दृष्टि।

भारत में इस बीमारी का भार: भारत में हर साल लगभग 1,500-2,000 बच्चों में रेटिनोब्लास्टोमा का निदान किया जाता है।

WARDEC प्रोजेक्ट

WARDEC नई दिल्ली में विकसित किए जाने वाले ‘वारगेम रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर’ को दिया गया एक प्रोटोटाइप नाम है।

  • यह भारत में अपनी तरह का पहला सिमुलेशन-आधारित प्रशिक्षण केंद्र होगा, जिसमे वर्चुअल रियलिटी वॉरगेम्स को डिजाइन करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग किया जाएगा।
  • इसे, सेना प्रशिक्षण कमान और गांधीनगर स्थित ‘राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय’ (RRU) द्वारा विकसित किया जाएगा।
  • इसका उपयोग सेना द्वारा अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने और “मेटावर्स-सक्षम गेमप्ले” के माध्यम से उनकी रणनीतियों का परीक्षण करने के लिए किया जाएगा।

 

चाइल्ड ऑनलाइन सुरक्षा टूलकिट

  • ब्रिटेन स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘5राइट्स’ (5Rights) द्वारा लिखित और तैयार की गयी ‘चाइल्ड ऑनलाइन सेफ्टी टूलकिट’ को हाल ही में जारी किया गया है।
  • यह टूलकिट, डिजिटल दुनिया में बच्चों के अधिकारों और जरूरतों को प्राथमिकता दिए जाने को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है।
  • यह टूलकिट, बच्चों और युवाओं के लिए एक “सुरक्षित और संतुष्ट’ डिजिटल दुनिया बनाने के लिए एक व्यावहारिक और सुलभ रोडमैप बनाती हैं।

 

‘भारत में असमानता की स्थिति’ रिपोर्ट

हाल ही में, प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा ‘भारत में असमानता की स्थिति’ (State of Inequality in India) रिपोर्ट जारी की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • शुरुआती 1% कमाने वाले लोग, कुल मिलाकर कुल आय का 6-7% कमाते हैं, जबकि शुरुआती 10% कमाऊ लोगों का कुल अर्जित आय में एक तिहाई हिस्सा है।
  • 2019-20 में भिन्न रोजगार वर्गों में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी स्वरोजगार कर्मियों (45.78%), नियमित वेतनकर्मी (33.5%) और अनौपचारिक कर्मचारी (20.71%) की थी।
  • देश की बेरोजगारी दर 4.8% (2019-20) है और कामगार-आबादी का अनुपात 46.8% है।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना के क्षेत्र में, अवसंरचना क्षमता में काफी विकास हुआ है, जिसमें ग्रामीण इलाकों पर ध्यान अधिक केंद्रित रहा है।

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