[ad_1]
विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
- राजा रवि वर्मा
सामान्य अध्ययन-II
- मृत्युदंड में सुधार
- राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) लिमिटेड
- भारत नेपाल सीमा विवाद
- श्रीलंका आर्थिक संकट
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- टाटा नियू
- शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं को विनियमित करने हेतु गुजरात का विधेयक
- डार्लोंग समुदाय
- भारत का पहला स्टील स्लैग रोड
- सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन
सामान्य अध्ययन–I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
राजा रवि वर्मा
(Raja Ravi Varma)
संदर्भ:
आमतौर पर आधुनिक भारतीय कला के जनक के रूप में प्रख्यात, ‘राजा रवि वर्मा’ (Raja Ravi Varma) व्यापक रूप से भारतीय देवी-देवताओं के यथार्थवादी चित्रण के लिए जाने जाते हैं।
6 अप्रैल को उनकी एक महत्वपूर्ण पेंटिंग ‘द्रौपदी वस्त्रहरण’ (Draupadi Vastraharan) को पहली बार नीलामी के लिए रखा जा रहा है। इस कैनवास में महाभारत के एक दृश्य में द्रौपदी के चीरहरण को दिखाया गया है, और इसकी नीलामी से 15 से 20 करोड़ रुपये के बीच हासिल होने का अनुमान है।
प्रमुख योगदान:
- उन्हें भारतीयों के लिए उनके हिंदू देवी-देवताओं का पश्चिमी एवं शास्त्रीय निरूपण देने के लिए याद किया जाता है।
- ‘राजा रवि वर्मा’ ने हिंदू देवी-देवताओं के ‘मानवीय चित्रण’ को महंगे कैनवस की सतहों से उठाकर, अपने लिथोग्राफिक प्रेस (Lithographic Press) के माध्यम से, कामगार वर्ग के घरों के प्रार्थना और निवास कक्षों तक पहुँचाया।
- उन्होंने गरीबों के लिए भी सुलभ ‘किफायती छापे’ / लिथोग्राफ (lithographs) बनाकर इस कार्य को अंजाम दिया।
- रवि वर्मा ने, पहले मुंबई में एक प्रिंटिंग प्रेस की शुरूआत की और बाद में इसे ‘लोनावाला’ के पास एक जगह पर स्थानांतरित कर दिया।
पुरुस्कार एवं सम्मान:
- वर्ष 1873 में बनाई गई इनकी पेंटिंग ने ‘अपने बालों को सजाती हुई नायर स्त्री’ (Nair Lady Adorning Her Hair) ने मद्रास प्रेसीडेंसी का गवर्नर स्वर्ण पदक, और वियना में आयोजित एक कला प्रदर्शनी में ‘सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट’ सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते।
- वर्ष 1904 में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की ओर से वायसराय लॉर्ड कर्जन ने राजा रवि वर्मा को कैसर-ए-हिंद गोल्ड मेडल (Kaiser-i-Hind Gold Medal) से सम्मानित किया।
- वर्ष 2013 में, राजा रवि वर्मा के सम्मान में ‘बुध ग्रह’ पर एक स्थित क्रेटर का नामकरण उनके नाम पर किया गया था।
उनकी प्रमुख कलाकृतियाँ:
एक भिखारी परिवार (A Family of Beggars), स्वरबत बजाती हुई एक महिला (A Lady Playing Swarbat), अर्जुन और सुभद्रा, एक हंस से बात कर रही दमयंती, जटायु (भगवान राम का एक पक्षी भक्त), यादों में खोयी महिला (Lady Lost in Thought), और शकुंतला आदि।
आलोचनाएं:
- राजा रवि वर्मा की अक्सर उनके चित्रों में बहुत अधिक दिखावटी होने के लिए आलोचना की जाती है। पारंपरिक भारतीय कला रूपों, विशेष रूप से हिंदू देवी-देवताओं को चित्रित करने वाले चित्रों को फीका कर देने के लिए भी, उनके चित्रों की भी निंदा की जाती है।
- कहा जाता है कि उनके दृष्टिकोण में, पारंपरिक चित्रों में देखी जाने वाली अभिव्यक्ति की गतिशीलता का अभाव है।
- आलोचकों द्वारा देवी-देवताओं की मॉडलिंग के लिए वेश्याओं के उपयोग करने पर उनकी आलोचना भी की जाती है, इन कहना है कि उनके द्वारा देवताओं के निरूपण ने, देवताओं को अनश्वर से नश्वर के स्तर तक पहुंचा दिया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘राजा रवि वर्मा’ को त्रावणकोर के तत्कालीन शासक ‘अय्यिलम थिरुनल’ ने संरक्षण दिया था? और रवि वर्मा ने शाही चित्रकार रामास्वामी नायडू से ‘वाटर कलर पेंटिंग’ भी सीखी और बाद में डच कलाकार ‘थियोडोर जेन्सेन’ से ऑइल पेंटिंग का प्रशिक्षण लिया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- राजा रवि वर्मा का काल-खंड
- उसके समयकाल के महत्वपूर्ण भारतीय और यूरोपीय शासक
- उनके चित्रों की अनूठी विशेषताएं
- सम्मान और खिताब
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
मृत्युदंड
(Death Penalty)
संदर्भ:
एक विशिष्ट मामले में उठाए गए मुद्दों की जांच करते हुए, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए ‘अदालतों द्वारा मौत की सजा का फैसला सुनाने वाली प्रक्रिया’ की समीक्षा किए जाने का निर्णय किया गया है।
संबंधित प्रकरण:
सितंबर 2021 से मौत की सजा की अपीलों पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार इस बात पर चिंता व्यक्त की है, कि ‘ट्रायल कोर्ट’ और उच्च न्यायालयों द्वारा बहुत कम (प्रासंगिक) जानकारी के साथ मौत की सजा सुनाई जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई हालिया टिप्पणियां:
बचन सिंह मामले (1980) के फैसले से संकेत लेते हुए, मार्च 2022 में न्यायमूर्ति ललित ने ‘मौत की सजा के मामलों’ पर एक व्याख्यान श्रृंखला में कहा था, कि ऐसे मामलों में अदालत की “पूर्ण सहायता” के लिए न केवल मामले से संबंधित सबूत पेश करने की आवश्यकता होती है, बल्कि कैदी के मानसिक स्वास्थ्य की नवीनतम स्थिति को भी प्रस्तुत की जानी चाहिए।
बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) में सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
इस फैसले में, किसी मृत्युदंड की सजा केवल “दुर्लभतम” (Rarest of Rare) अपराध के मामले में दिए जाने के सिद्धांत को स्थापित किया गया था, और सजा सुनाते समय अभियुक्तों के संबंध में ‘उत्तेजक’ तथा ‘गंभीरता कम करने वाली’ परिस्थितियों के तुलनात्मक विश्लेषण को अनिवार्य किया गया था।
- इस निर्णय में यह निर्धारित किया गया, कि अदालत के लिए अपराध एवं अपराधी दोनों की जांच करनी चाहिए, और फिर यह तय करना चाहिए कि मामले से संबंधित तथ्यों के प्रकाश में मृत्युदंड ही एकमात्र उपयुक्त सजा है अथवा नहीं।
- इसके साथ ही, मामले से संबंधित ‘उत्तेजक’ तथा ‘गंभीरता कम करने वाले’ तथ्यों और परिस्थितियों पर पर निर्भरता बढ़ाने वाले कारकों पर जोर दिया गया था।
माची सिंह बनाम पंजाब राज्य मामला (1983):
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा “दुर्लभतम” अपराध के सिद्धांत को स्पष्ट किया गया और मौत की सजा के मामलों में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए गए।
- उत्तेजक या भड़काऊ परिस्थितियों (Aggravating Circumstances) में, अपराध करने का तरीका, अपराध करने का मकसद, अपराध की गंभीरता और अपराध से पीड़ित को शामिल किया गया था।
- ‘गंभीरता कम करने वाली परिस्थितियों’ (Mitigating Circumstances) में, किसी आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना, उसका मानसिक स्वास्थ्य और उसके पिछले जीवन को शामिल किया गया था।
सुप्रीमकोर्ट के हालिया फैसले में मृत्युदंड की प्रयोज्यता और अधिरोपण पर दिए गए सुझाव:
- सुनवाई कर रहे न्यायाधीशों को, महज अपराध की भयानक प्रकृति और समाज पर इसके हानिकारक प्रभाव, को देखते हुए ‘मृत्युदंड’ की सजा के पक्ष में नहीं जाना चाहिए। न्यायाधीशों को ऐसे मामलों में, ऐसे कारकों पर भी समान रूप से विचार करना चाहिए, जिसकी वजह से ‘मृत्युदंड’ की सजा को कम करते हुए ‘आजीवन कारावास’ की सजा सुनाई जा सकती है।
- उच्चतम न्यायालय ने अपने इस फैसले में ‘दंडशास्त्र के सिद्धांतों के विकास’ (evolution of the principles of penology) का हवाला देते हुए कहा, कि हालांकि, ‘मृत्युदंड’ एक निवारक एवं “उपयुक्त मामलों में उचित सजा के लिए समाज की मांग की प्रतिक्रिया” के रूप में कार्य करता है। किंतु, ‘दंडशास्त्र’ (Penology) के सिद्धांत “समाज के अन्य दायित्वों को संतुलित करने के लिए विकसित हुए हैं”।
- अर्थात, इन सिद्धांतों के अनुसार, मानव जीवन- चाहे वह अभियुक्त ही क्यों न हो – को संरक्षित किया जाना चाहिए, जब तक कि अभियुक्त को मृत्युदंड देना अपरिहार्य न हो जाए और इससे अन्य सामाजिक कारणों और समाज के सामूहिक विवेक की संतुष्टि का सवाल सामने न आ जाए”।
‘मौत की सजा को लंबा करने’ और ‘पुनर्विचार याचिकाओं’ पर अदालत की टिप्पणी:
2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा, कि बिना किसी स्पष्ट कारण के फांसी देने में देरी को ‘मृत्युदंड’ को कम करने का आधार माना जा सकता है, और कैदी या उसके रिश्तेदार, या यहां तक कि लोक-भावना से भरा कोई उत्साही नागरिक, इस तरह की सजा के लघुकरण किए जाने की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर कर सकता है।
- फैसले में यह कहा गया है, कि मौत की सजा के निष्पादन को लंबे समय तक रोकने का ‘सजायाफ्ता कैदियों’ पर “अमानवीय प्रभाव” पड़ता है। इन कैदियों को, उनकी दया याचिका के लंबित रहने के दौरान मौत की छाया में वर्षों तक इंतजार करने की पीड़ा का सामना करना पड़ता है। और इस तरह की अत्यधिक देरी से निश्चित रूप से उनके शरीर और दिमाग पर एक दर्दनाक प्रभाव पड़ेगा।
- इसी वर्ष, उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ ने यह भी कहा कि, मौत की सजा प्राप्त अपराधी की ‘पुनर्विचार याचिका’ पर खुली अदालत में तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जाएगी। इससे पहले, ऐसे मामलों पर, बिना किसी मौखिक बहस के जजों के चैंबर में दो जजों की बेंचों द्वारा विचार किया जाता था।
आगे की चुनौतियां:
- सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कार्य की विशालता को इस तथ्य से समझा जा सकता है, कि भारत में निचली अदालतों द्वारा 2022 में पहले ही 50 से अधिक लोगों को मौत की सजा सुनाई जा चुकी है और इनमें अक्सर प्रक्रियात्मक और मूल कानूनों का उल्लंघन किया गया होता है।
- सुप्रीम कोर्ट के लिए भारत में सभी अदालतों में मौत की सजा सुनाए जाने में निष्पक्षता और अनुकूलता में संतुलन लाना आसान नहीं होगा, लेकिन अदालत द्वारा इस मामले को सीधा समाधान करने हेतु चुना जाना निश्चित रूप से उल्लेखनीय एवं सराहना योग्य है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘सामूहिक विवेक’ (Collective consciousness) क्या है?
सामूहिक चेतना (सामूहिक विवेक या चेतना) एक मौलिक समाजशास्त्रीय अवधारणा है, जो किसी सामाजिक समूह या समाज के लिए सामान्य साझा विश्वासों, विचारों, दृष्टिकोणों और जानकारी के ‘समुच्चय’ को संदर्भित करती है।
‘सामूहिक चेतना’ का विकास:
मृत्युदंड को सही ठहराने के लिए एक आधार के रूप में ‘समाज के सामूहिक विवेक अथवा चेतना’ (Collective conscience of society) का इस्तेमाल पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में ‘माछी सिंह बनाम पंजाब राज्य’ मामले में फैसला सुनाते हुए किया था। इस मामले में, अदालत ने फैसला सुनाते कहा कि जब “समाज की सामूहिक चेतना को झटका लगता है, तो वह न्यायिक शक्ति धारकों से अभियुक्त को मौत की सजा देने की उम्मीद करती है”।
प्रीलिम्स लिंक:
- उच्चतम न्यायालय की विभिन्न पीठें
- विधि आयोग- संरचना, उद्देश्य और कार्य
- मृत्युदंड के खिलाफ अपील
- राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां
- सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले।
मेंस लिंक:
‘सामूहिक विवेक या चेतना’ क्या होती है? यह न्यायालयों के निर्णयों को कैसे प्रभावित करता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) लिमिटेड
(National Film Development Corporation (NFDC) Ltd)
संदर्भ:
हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा, वृत्तचित्रों और लघु फिल्मों के निर्माण; फिल्म समारोहों का आयोजन; फिल्मों के संरक्षण संबंधी अधिदेश ‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (National Film Development Corporation – NFDC) के लिए सौंप दिए गए हैं। ‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (NFDC), ‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ क अधीन कार्यरत एक इकाई है।
इन इकाईयों के पास उपलब्ध संपत्तियों का स्वामित्व केंद्र सरकार के पास रहेगा।
महत्व:
इन सभी गतिविधियों को एक प्रबंधन के अंतर्गत लाने से, विभिन्न गतिविधियों का अतिव्यापन / ओवरलैप कम होगा और सार्वजनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा।
पृष्ठभूमि:
- दिसंबर, 2020 में, केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (NFDC) का विस्तार करते हुए, इसके साथ अपनी चार मीडिया इकाइयों – फिल्म डिवीजन, फिल्म समारोह निदेशालय, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार और बाल फिल्म सोसायटी- के विलय का निर्णय लिया गया था।
- मंत्रालय द्वारा जनवरी में इस संबंध में पूर्व सूचना एवं प्रसारण सचिव बिमल जुल्का की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को सार्वजनिक किया गया था।
फिल्म मीडिया निकायों की भूमिकाएँ:
फिल्म प्रभाग / डिवीजन (Films Division): भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा चल-चित्र संग्रह (मूविंग-इमेज रिपोजिटरी) और ऑडियो-विजुअल रिकॉर्ड ‘फिल्म प्रभाग’ की स्थापना 1948 में, लोक सेवा जागरूकता फिल्में बनाने, राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया को फिल्माने तथा न्यूज़रील और वृत्तचित्र फिल्मों का निर्माण और वितरण करने के उद्देश्य से की गयी थी। और ‘फिल्म सलाहकार बोर्ड’, ‘भारतीय सूचना फिल्म’, ‘भारतीय समाचार परेड’, और ‘सेना फिल्म’ और ‘फोटोग्राफिक यूनिट’ जैसी औपनिवेशिक एजेंसियों को ‘फिल्म प्रभाग’ के लिए सौंप दिया गया था।
इसके अभिलेखागार में, भारतीय फिल्म प्रभाग ने अमूल्य INRS (भारतीय समाचार समीक्षा), वृत्तचित्रों, लघु एवं एनीमेशन फिल्मों के 8000 से अधिक संकलन रखे हैं।
बाल चित्र समिति, भारत (Children’s Film Society, India – CFSI): 1955 में गठित, ‘बाल चित्र समिति, भारत’ (CFSI) को छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में, तथा वंचित बच्चों के लिए, बाल फिल्मों और मूल्य-आधारित मनोरंजन का निर्माण करने का काम सौंपा गया था।
भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (National Film Archive of India – NFAI): 1964 में प्रसिद्ध संग्रहालय अध्यक्ष ‘पी के नायर’ की अध्यक्षता में स्थापित, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (NFAI) को भारत में फिक्शन सिनेमा की विरासत का पता लगाने, प्राप्त करने और संरक्षित करने का काम सौंपा गया था।
फ़िल्म समारोह निदेशालय (Directorate of Film Festivals – DFF): वर्ष 1973 में स्थापित ‘फ़िल्म समारोह निदेशालय’ (DFF) को सांस्कृतिक आदान-प्रदान, दुनिया भर में भारतीय सिनेमा को बढ़ावा देने, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव और गोवा में भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन करने का काम सौंपा गया है।
‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (NFDC): यह 1975 में स्थापित एक सार्वजनिक उपक्रम है, और इसके पूर्व संस्करण को ‘फिल्म वित्त निगम’ के नाम से जाना जाता था। इसका काम फीचर फिल्मों का वित्त पोषण, निर्माण और वितरण करना और मुख्यधारा से बाहर के फिल्म निर्माताओं को बढ़ावा देनाहै। अपनी ‘फिल्म बाजार वर्क-इन-प्रोग्रेस’ (Work-in-Progress – WIP) लैब के माध्यम से, NFDC युवा प्रतिभाओं को परस्पर अंतःक्रिया करने और सीखने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
इन इकाइयों के विलय के विरोध का कारण:
- पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी, और विलय प्रक्रिया को मनमाने तरीके से अंजाम दिया गया है।
- कर्मचारियों और स्वतंत्र और वृत्तचित्र फिल्म निर्माताओं के भविष्य तथा अभिलेखीय फुटेज – जिनको सरकार राष्ट्रीय विरासत घोषित करना चाहती है- के बारे में आशंकाएं।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (NFDC) के बारे में।
- ‘फ़िल्म समारोह निदेशालय’ (DFF)
- ‘बाल चित्र समिति, भारत’ (CFSI)
- फिल्म प्रभाग
- भारत में फिल्मों का प्रमाणन।
मेंस लिंक:
‘राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम’ (NFDC) के अधीन फिल्म मीडिया इकाइयों के विलय से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
भारत और नेपाल सीमा विवाद
(India and Nepal Border Dispute)
संदर्भ:
भारत और नेपाल द्वारा, हाल ही में, दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बैठक में ‘कालापानी सीमा विवाद’ (Kalapani border dispute) पर चर्चा की गयी।
भारत ने नेपाल से सीमा विवाद का “राजनीतिकरण” किए जाने से बचने का भी आग्रह किया है।
पृष्ठभूमि:
नवंबर 2019 में, भारत के संशोधित राजनीतिक मानचित्र में ‘कालापानी-लिपुलेक-लिंपियाधुरा’ के त्रिकोणीय क्षेत्र को उत्तराखंड के क्षेत्र के भीतर दर्शाया जाने के पश्चात् उत्पन्न कालापानी सीमा विवाद के बाद, नेपाल के नेता की यह पहली भारत यात्रा है।
‘कालापानी’ की अवस्थिति:
‘कालापानी’ (Kalapani), उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के पूर्वी छोर पर स्थित है।
- यह, उत्तर में चीन के अधीन तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ तथा पूर्व और दक्षिण में नेपाल के साथ सीमा बनाता है।
- यह लिंपियाधुरा (Limpiyadhura), लिपुलेख और कालापानी’ के बीच में स्थित है।
- ‘कालापानी क्षेत्र’ नेपाल और भारत के बीच सबसे बड़ा क्षेत्रीय विवाद है। इस क्षेत्र के अंतर्गत उच्च हिमालय में कम से कम 37,000 हेक्टेयर भूमि शामिल है।
‘कालापानी क्षेत्र’ पर नियंत्रण:
- यह क्षेत्र भारत के नियंत्रण में है लेकिन नेपाल ऐतिहासिक और मानचित्रक (कार्टोग्राफिक) कारणों से इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है।
विवाद की वजह:
‘कालापानी क्षेत्र’ का नाम इससे होकर बहने वाली ‘काली नदी’ के नाम पर पड़ा है। इस क्षेत्र पर नेपाल का दावा इसी नदी पर आधारित है। 1814-16 में हुए ‘गोरखा युद्ध’ / ‘एंग्लो-नेपाल युद्ध’ के पश्चात् काठमांडू के गोरखा शासकों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हस्ताक्षरित ‘सुगौली की संधि’ में ‘काली नदी’ को नेपाल की सीमा के रूप में निर्धारित किया गया था। सन् 1816 में संधि की पुष्टि की गई।
- संधि के अंतर्गत, नेपाल को पश्चिम में कुमाऊं-गढ़वाल और पूर्व में सिक्किम के अपने क्षेत्रों को खोना पड़ा था।
- संधि के अनुच्छेद 5 के अनुसार, नेपाल के राजा ने काली नदी के पश्चिम में स्थित क्षेत्र पर अपना दावा छोड़ दिया। काली नदी, उच्च हिमालय से निकलती है और भारतीय उपमहाद्वीप के विस्तृत मैदानों से होकर प्रवाहित होती है।
- संधि के अनुसार, ब्रिटिश शासकों ने काली नदी के पूर्व में पड़ने वाले क्षेत्र पर नेपाल के अधिकार को मान्यता दी थी।
विवाद की उत्पत्ति के ऐतिहासिक कारण:
- नेपाल के विशेषज्ञों के अनुसार, काली नदी के पूर्वी क्षेत्र की शुरुआत, नदी के उद्गम स्थल से मानी जानी चाहिए। इनके अनुसार नदी का उद्गम स्रोत ‘लिंपियाधुरा’ के समीप पहाड़ों में है, जोकि नदी के शेष प्रवाह क्षेत्र की तुलना में अधिक ऊंचाई पर है।
- नेपाल का दावा है, लिंपियाधुरा से नीचे की ओर बहती हुए नदी की संपूर्ण धारा के पूर्व में स्थित उच्च-पर्वतीय क्षेत्र उनका है।
- दूसरी ओर भारत का कहना है, नदी का उद्गम कालापानी से होता है, और यही से उसकी सीमा शुरू होती है।
- दोनों देशों के मध्य यह विवाद, मुख्य रूप से काली नदी के उद्गम स्थल और पहाड़ों से होकर बहने वाली इसकी कई सहायक नदियों की अलग-अलग व्याख्या के कारण है।
- काली नदी के पूर्व में स्थित क्षेत्र पर नेपाल का दावा, नदी के लिंपियाधुरा उद्गम पर आधारित है, जबकि भारत का कहना है, कि नदी वास्तव में कालापानी के पास निकलती है और इसीलिए इसका नाम ‘काली’ पड़ा है।
भारत का लिपुलेख (Lipulekh) पर नियंत्रण:
- 1962 के युद्ध में, तिब्बती पठार से लगे हिमालयी दर्रों का महत्व भलीभांति स्पष्ट हो गया था।
- उस युद्ध के दौरान, चीनी सेना ने तवांग में स्थित ‘से ला’ (Se La) दर्रे का इस्तेमाल किया और पूर्व में ब्रह्मपुत्र के मैदानों तक पहुंच गई थी।
- पूर्व में सैन्य हार ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर दिया कि, ‘अपर्याप्त रूप से सुरक्षित दर्रे’ चीन के खिलाफ भारतीय सैन्य तैयारियों की एक बड़ी कमजोरी थे।
- ‘से ला’ दर्रा – जिसकी कुछ हद तक किलेबंदी भी की गयी थी- की तुलना में ‘लिपुलेख’ दर्रा एकदम असुरक्षित था।
- इसे देखते हुए, नेपाली राजा महेंद्र ने दिल्ली के साथ एक समझौता किया और इस क्षेत्र को सुरक्षा उद्देश्यों के लिए भारत को सौंप दिया।
- 1969 में, द्विपक्षीय वार्ता के तहत ‘कालापानी’ को छोड़कर सभी चौकियों को हटा दिया गया था।
नेपाल और भारत ने कहां चूक की है?
- भारत और चीन के बीच 2015 के लिपुलेख समझौते- जिसके तहत भारत के मानसरोवर तीर्थयात्रा संबंधों को नवीनीकृत किया गया था – के दौरान भारत और चीन ने नेपाल की चिंताओं को स्पष्ट रूप से अनदेखा कर दिया था।
- तीर्थयात्रा और तिब्बत में व्यापार को बढ़ावा देने वाले इस समझौते से पहले, भारत या चीन, किसी भी पक्ष ने नेपाल से कोई परामर्श अथवा राय नहीं ली।
वर्तमान स्थिति:
- कुछ समय पूर्व, नेपाल द्वारा संशोधित आधिकारिक नक्शा प्रकाशित किया गया था, जिसमे काली नदी के उद्गम स्रोत लिंपियाधुरा से लेकर त्रिकोणीय क्षेत्र के उत्तर-पूर्व में कालापानी और लिपुलेख दर्रे तक के क्षेत्र को अपने क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।
- पिछले साल प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मानचित्र को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संविधान संशोधन प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था।
- भारतीय पर्यवेक्षकों का कहना है, कि नेपाल सरकार का यह कदम ‘कालापानी मुद्दे’ पर भविष्य में किसी भी समाधान को लगभग असंभव बना सकता है, क्योंकि इस प्रस्ताव को संवैधानिक गारंटी मिलने से इस विषय पर ‘काठमांडू’ की स्थिति दृढ़ हो जाएगी।
इंस्टा जिज्ञासु:
नाकू ला कहाँ है और इस पर क्या विवाद है?
प्रीलिम्स लिंक:
- लिपुलेख कहाँ है?
- काली नदी का स्रोत
- भारत और नेपाल सीमा
- कालापानी कहाँ है?
- कैलाश पर्वत और मानसरोवर के लिए मार्ग
- चीन और भारत से होकर बहने वाली नदियाँ
मेंस लिंक:
कालापानी विवाद को कैसे सुलझाया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
श्रीलंका आर्थिक संकट
(Sri Lanka economic crisis)
संदर्भ:
वर्तमान में श्रीलंका एक कठिन आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
मौजूदा स्थिति:
- देश में विदेशी मुद्रा की भारी कमी हो चुकी है।
- श्रीलंका सरकार, ईंधन सहित अन्य आवश्यक वस्तुओं के आयात हेतु भुगतान करने में असमर्थ है।
- इसकी वजह से देश में 13 घंटे तक की बिजली कटौती की जा रही है।
- श्रीलंका के आम नागरिक भी आवश्यक वस्तुओं की कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं।
- बीते माह अर्थात फरवरी तक देश का कुल मुद्रा भंडार केवल 2.31 बिलियन डॉलर ही बचा था, जबकि इसको 2022 में लगभग 4 बिलियन डॉलर के ऋण चुकाना बाकी है। इस ऋण में जुलाई में परिपक्व होने वाला $ 1 बिलियन का ‘अंतर्राष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड’ (international sovereign bond – ISB) भी शामिल है।
श्रीलंका को इस स्थिति की ओर ले जाने वाले कारक:
क्रमिक सरकारों द्वारा आर्थिक कुप्रबंधन: एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने एक दोहरा घाटे – बजट की कमी तथा चालू खाता घाटा – की स्थितियां उत्पन्न की और इसे जारी भी रखा।
वर्तमान सरकार की लोकलुभावन नीतियां: उदाहरण के लिए करों में कटौती।
महामारी का प्रभाव: देश की महत्वपूर्ण ‘पर्यटन अर्थव्यवस्था’ में नुकसान और साथ ही विदेशी श्रमिकों द्वारा देश में भेजे जाने वाले धन की कमी।
चावल उत्पादन में कमी: वर्ष 2021 में वर्तमान सरकार द्वारा सभी रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने प्रस्ताव किया गया था, जिससे देश में चावल उत्पादन में भारी कमी हुई, हालंकि बाद में इस फैसले को उलट दिया गया था।
भारत से सहयोग:
- भारत के साथ हस्ताक्षरित 500 मिलियन डॉलर की ‘क्रेडिट लाइन’ के अंतर्गत, एक डीजल शिपमेंट के जल्द ही श्रीलंका पहुंचने की उम्मीद है।
- श्रीलंका और भारत ने भोजन और दवा सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए $1 बिलियन की क्रेडिट लाइन पर हस्ताक्षर किए हैं।
- श्रीलंका सरकार ने, नई दिल्ली से कम से कम एक अरब डॉलर की मांग भी की है।
श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में क्यों है?
- महत्वपूर्ण रूप से, श्रीलंका का चीन के साथ में कोई भी मोहभंग, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पार्ल्स’ (String of Pearls) के खेल से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को बाहर रखने के भारत के प्रयास को आसान बनाता है।
- इस क्षेत्र में चीनी उपस्थिति और प्रभाव को नियंत्रित करना, भारत के हित में है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप दुनिया के सबसे बड़े मानवीय संगठन ‘संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (UN World Food Programme) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- श्रीलंका के आर्थिक संकट के बारे में।
- क्रेडिट लाइन।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
- जुड़वां घाटा
- भुगतान संतुलन।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
(International Solar Alliance)
संदर्भ:
हाल ही में, नेपाल ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ (International Solar Alliance – ISA) के फ्रेमवर्क समझौते’ पर हस्ताक्षर करने वाला 105वां सदस्य देश बन गया है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के बारे में:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की परिकल्पना भारत और फ्रांस द्वारा ‘सौर ऊर्जा समाधानों’ के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रयासों को संगठित करने संबंधी संयुक्त प्रयास के रूप में की गई थी।
- इसे 2015 में पेरिस में आयोजित ‘संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ (UNFCCC) में पार्टियों के 21वें सम्मेलन (COP21) में दोनों देशों के नेताओं द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- आईएसए, सौर ऊर्जा का उपयोग से ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने हेतु ‘कर्क रेखा’ और ‘मकर रेखा’ के बीच पूर्ण या आंशिक रूप से अवस्थित, सौर संसाधन समृद्ध देशों का गठबंधन है।
- पेरिस घोषणापत्र में ‘आईएसए’ को अपने सदस्य देशों के मध्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित गठबंधन के रूप में घोषित किया गया है।
- एक क्रियान्मुख संगठन के रूप में, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) वैश्विक मांग में वृद्धि हेतु, सौर क्षमता समृद्ध देशों को एक साथ लाता है, जिससे ऊर्जा की थोक खरीद से कीमतों में कमी आती है तथा मौजूदा सौर प्रौद्योगिकियों को विस्तार की सुविधा प्राप्त होती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मौजूदा सौर प्रौद्योगिकियों के बड़े पैमाने पर परिनियोजन की सुविधा प्रदान करता है, और सहयोगी सौर अनुसंधान एवं विकास और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है।
सचिवालय:
- भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से ‘गुरुग्राम’ में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ मुख्यालय की आधारशिला रखी गयी।
- इनके द्वारा हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित ‘राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान परिसर’ में आईएसए के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया गया था।
उद्देश्य:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के प्रमुख उद्देश्यों में 1,000GW से अधिक सौर उत्पादन क्षमता को वैश्विक रूप से परिनियोजित करना तथा वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश जुटाना शामिल है।
- आईएसए के तहत, प्रौद्योगिकी, आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता और विकास, और भंडारण प्रौद्योगिकी के विकास, बड़े पैमाने पर विनिर्माण और नवाचार के लिए पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाने की परिकल्पना की गयी है।
आवश्यकता:
- कम लागत की प्रौद्योगिकी से अधिक महत्वाकांक्षी सौर ऊर्जा कार्यक्रमों को शुरू किया जा सकता है।
- सौर ऊर्जा, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।
- परियोजना का सफल कार्यान्वयन, सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच लक्ष्य (SDG 7) को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के छह प्रमुख कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण के लिए एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकते हैं।
- कृषि उपयोग के लिए सौर अनुप्रयोग,
- व्यापक स्तर पर वहनीय वित्त,
- मिनी ग्रिड,
- सौर छत (Solar Rooftops)
- ‘सौर ई-गतिशीलता’ और भंडारण
- बड़े पैमाने पर सौर पार्कों का निर्माण
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप प्रथम ‘विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन’ के बारे में जानते हैं?
क्या आप जानते हैं कि संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 2021 में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ (आईएसए) को पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया गया था?
प्रीलिम्स लिंक:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
- आईएसए सचिवालय
- OSOWOG पहल- उद्देश्य
- इसका आरंभ कब किया गया था?
- कार्यान्वयन एजेंसी।
- गैर-जीवाश्म ईंधन क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
मेंस लिंक:
‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ (OSOWOG) पहल के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
टाटा नियू
(Tata Neu)
टाटा नियू (Tata Neu) टाटा समूह का सुपर ऐप है, जो अपनी सभी डिजिटल सेवाओं और ऐप्स को एक प्लेटफ़ॉर्म पर एक साथ लाता है।
- इस ऐप को 7 अप्रैल को लॉन्च किया जाएगा।
- टाटा नियू ऐप के माध्यम से विभिन्न टाटा समूह की डिजिटल सेवाएं जैसे फ्लाइट टिकट बुक करना, होटल बुक करना, किराने का सामान और दवाएं ऑर्डर करना संभव होगा।
शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं को विनियमित करने हेतु गुजरात का विधेयक
(Gujarat’s Bill to regulate stray cattle in urban areas)
हाल ही में, शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं को नियंत्रित करने के लिए गुजरात सरकार के विधेयक को विधानसभा में बहुमत से पारित किया गया था।
- यह विधेयक 8 शहरों में लागू किया जाएगा।
- प्रस्तावित कानून में भैंस, गाय, उनके बछड़े और बछिया, बैल, बैल, बकरी, भेड़ और गधों को रखने के लिए स्थानीय प्राधिकरण (नगर निगम या नगर पालिका) से लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य होगा।
- लाइसेंस यह सुनिश्चित करने के लिए है कि मालिकों के पास गायों के लिए पर्याप्त जगह हो।
- इस तरह का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए, एक पशु-मालिक को एक ‘मवेशी-शेड’- जहाँ वह अपने मवेशियों को रखेगा- का विवरण प्रस्तुत करना होगा। इसके अलावा प्रत्येक पशु को टैग करवाने और उसका विवरण ‘स्थानीय प्राधिकरण’ (Local Authority) को प्रस्तुत करना होगा। लाइसेंसशुदा पशु-शेड के बाहर पाए जाने वाले किसी भी मवेशी को जब्त कर लिया जाएगा।
- इसके अलावा, प्रस्तावित कानून ‘स्थानीय प्राधिकरण’ और राज्य सरकार को पूरे शहरी क्षेत्र या उसके हिस्से को मवेशियों के लिए निषिद्ध क्षेत्र के रूप में अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
आवश्यकता:
लगभग सभी बड़े शहर और कस्बे आवारा पशुओं की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले आठ वर्षों में, राजकोट नगर निगम (RMC) द्वारा शहर की सड़कों पर भटक रहे 72,000 मवेशियों को जब्त कर लिया है। शहर की सड़कों पर मवेशियों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं में मानव जीवन और आघातों के नुकसान के अलावा, यह समस्या से निपटने के लिए भारी वित्तीय निवेश की आवश्यकता है।
डार्लोंग समुदाय
(Darlong community)
लोकसभा द्वारा संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किए जाने के बाद, त्रिपुरा में लगभग 11,000 लोगों का एक छोटा समुदाय – डार्लोंग (Darlong Community) को आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल किया गया था।
- अब तक, इनको कुकी समुदाय के तहत एक ‘सामान्य जनजाति’ माना जाता था और उन्हें ‘कुकी‘ समुदाय के सदस्यों के रूप में उनके आदिवासी प्रमाण पत्र सौंपे जाते थे।
- इस समुदाय के बीच पहचान संकट बाद में, विशेष रूप से आधुनिक शिक्षा से युक्त डार्लोंग युवाओं द्वारा 1995 में अपनी खुद की एक अलग वैधानिक पहचान की मांग में परिणत हो गया।
भारत का पहला स्टील स्लैग रोड
(India’s first steel slag road)
सूरत, प्रोसेस्ड स्टील स्लैग (औद्योगिक कचरा) से सड़क बनाने वाला देश का पहला शहर बन गया है।
- यह प्रोजेक्ट ‘वेस्ट टू वेल्थ एंड क्लीन इंडिया’ कैंपेन की पहल के अंतर्गत आता है।
- यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI), केंद्रीय इस्पात मंत्रालय, सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग और हजीरा में ‘आर्सेलर-मट्टल-निप्पॉन स्टील’ (AM/NS) द्वारा एक संयुक्त उद्यम परियोजना का एक हिस्सा है।
- स्लैग (SLAG), अशुद्धता के रूप में पिघली हुई फ्लक्स सामग्री के लगभग 1,500-1,600 डिग्री सेंटीग्रेड पर एक स्टील की भट्टी / फर्नेस में दहन होने से उत्पन्न होता है।
सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन
(Solu Corridor Transmission Line)
- हाल ही में, नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा और पीएम मोदी द्वारा संयुक्त रूप से 132 केवी की ‘सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन’ (Solu Corridor Transmission Line) का उद्घाटन किया गया।
- सोलू कॉरिडोर ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण सोलुखुम्बु तथा इसके आसपास ओखलधुंगा और उदयपुर में स्थित जलविद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली को वितरित करने और इसे शेष राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ने के लिए किया गया है।
[ad_2]