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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. संविधान की आठवीं अनुसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद ‘मतदाता द्वीपों’ के निर्माण की आशंका
2. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
3. प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना
4. भारत ने रूसी कार्रवाइयों की जांच के लिए मानवाधिकार परिषद के वोट से परहेज किया।
5. डेटा संरक्षण विधेयक।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. चर्चित स्थल: ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र
सामान्य अध्ययन-I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
संविधान की आठवीं अनुसूची
(Eighth schedule to the Constitution)
संदर्भ:
हाल ही में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है, कि उनकी सरकार ‘भोजपुरी’ को ‘संविधान की आठवीं अनुसूची’ (Eighth schedule to the Constitution) में शामिल करने संबंधी काफी समय से लंबित अपनी मांग को फिर से तेज करेगी। ‘आठवीं अनुसूची’ ने शामिल होने के बाद भोजपुरी को एक राजभाषा का दर्जा प्राप्त हो सकेगा।
राज्य मंत्रिमंडल द्वारा वर्ष 2017 में, इस संबंध में एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया था।
संविधान की आठवीं अनुसूची:
भारतीय संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 343 से अनुच्छेद 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
आठवीं अनुसूची से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 344: अनुच्छेद 344(1) में संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।
- अनुच्छेद 351: इसके तहत, हिंदी भाषा के विकास हेतु इसका प्रसार करने के संबंध में प्रावधान किये गए हैं, जिससे कि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
वर्तमान में, संविधान की आठवीं अनुसूची में, असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी, कुल 22 भाषाएँ शामिल है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि कासरगोड जिले को ‘सप्त भाषा संगम भूमि (सात भाषाओं का संगम)’ कहा जाता है, और तुलु इन सात भाषाओँ में से एक है? इस मुद्दे के बारे में और अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- भारत के किन राज्यों में अदालती कार्यवाही में हिंदी के वैकल्पिक उपयोग का प्रावधान है?
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची क्या है
- अनुच्छेद 348 किससे संबंधित है?
- उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी के उपयोग को अधिकृत करने के लिए राज्यपालों की शक्तियां
- आठवीं अनुसूची में भाषाओं को सम्मिलित करने अथवा हटाने की शक्ति
- राजभाषा अधिनियम 1963 का अवलोकन
मेंस लिंक:
सरकार को प्रशासन में हिंदी और अंग्रेजी भाषा तक सीमित नहीं रहते हुए, अन्य देशज भाषाओं को शामिल करने के लिए आधिकारिक भाषा अधिनियम, 1963 में संशोधन करने पर विचार करना चाहिए। चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएं, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद ‘मतदाता द्वीपों’ के निर्माण की आशंका
संदर्भ:
जम्मू-कश्मीर में जारी ‘परिसीमन प्रक्रिया’ (Delimitation Process) में भाग लेने वाले राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ स्वतंत्र पर्यवेक्षकों द्वारा केंद्र-शासित प्रदेश में “मतदाता द्वीप” (Voter islands) बनने की आशंका जताई जा रही है।
संबंधित प्रकरण:
‘परिसीमन अधिनियम’, 2002 (The Delimitation Act, 2002) के अनुसार, जनसंख्या के अलावा, सभी निर्वाचन-क्षेत्र यथासाध्य भौगोलिक रूप में संहृत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमन करते समय उनकी प्राकृतिक विशेषताओं, प्रशानिक इकाइयों की विद्यमान सीमाओं, संचार सुविधाओं और सार्वजनिक सुविधा को ध्यान में रखा जाना अनिवार्य होगा।
- पर्यवेक्षकों का कहना है कि मौजूदा ‘परिसीमन प्रक्रिया’ में इस सिद्धांत का पालन नहीं किया जा रहा है।
- उदाहरण के लिए, इस ‘परिसीमन प्रक्रिया’ में निर्धारित सीमाओं के अनुसार, किसी एक तहसील का एक गाँव, दूसरी तहसील के अन्य गाँवों से पूरी तरह घिरा होगा। यहां पर भौगोलिक-संबद्धता पर विचार नहीं किया जा रहा है, और इस प्रकार यह प्रक्रिया ‘मतदाता द्वीपों’ को जन्म दे रही है।
- ऐसा कहा जा रहा है, कि आयोग द्वारा “भौगोलिक द्वीपों को सीमांकित किया गया है और बिना किसी निकटता या संपर्क के अन्य विधानसभा क्षेत्रों के साथ जोड़ दिया गया है”।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया- घटनाक्रम:
- जम्मू-कश्मीर में पहली परिसीमन प्रक्रिया वर्ष 1951 में एक परिसीमन समिति द्वारा निष्पादित की गई थी, और इसके तहत, तत्कालीन राज्य को 25 विधानसभा क्षेत्रों में विभक्त किया गया था।
- इसके पश्चात, वर्ष 1981 में पहली बार एक पूर्ण परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन किया गया था और इस आयोग द्वारा वर्ष 1981 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1995 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गेन थी। इसके बाद से, राज्य में कोई अब तक कोई परिसीमन नहीं हुआ है।
- वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने के लिए, एक ‘परिसीमन आयोग’ का गठन किया गया। इस आयोग को संघ-शासित प्रदेश में सात अन्य सीटों को जोड़ने तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों को आरक्षण देने का आदेश दिया गया।
- नए परिसीमन के पश्चात, जम्मू-कश्मीर में सीटों की कुल संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी। ये सीटें ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) के लिए आरक्षित 24 सीटों के अतिरिक्त होंगी और इन सीटों को विधानसभा में खाली रखा जाएगा।
‘परिसीमन’ क्या होता है?
‘परिसीमन’ (Delimitation) का शाब्दिक अर्थ, ‘विधायी निकाय वाले किसी राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण प्रक्रिया’ होता है।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की आवश्यकता:
‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganisation Act, 2019) के प्रावधानों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल 6 मार्च को, केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के लिए जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। विदित हो कि, इस अधिनियम के तहत राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था।
‘परिसीमन प्रक्रिया’ का निष्पादन:
- परिसीमन प्रक्रिया, एक उच्च अधिकार प्राप्त आयोग द्वारा संपन्न की जाती है। इस आयोग को औपचारिक रूप से परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग (Boundary Commission) कहा जाता है।
- परिसीमन आयोग के आदेशों को ‘क़ानून के समान’ शक्तियां प्राप्त होती है, और इन्हें किसी भी अदालत के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि अगस्त 2019 तक, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन ‘जम्मू और कश्मीर संविधान’ और ‘जम्मू और कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम’, 1957 के अंतर्गत किया होता था?
प्रीलिम्स लिंक:
- पूर्ववर्ती परिसीमन आयोग- शक्तियाँ और कार्य
- आयोग की संरचना
- आयोग का गठन किसके द्वारा किया जाता है?
- आयोग के अंतिम आदेशों में परिवर्तन की अनुमति?
- परिसीमन आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेंस लिंक:
निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार और क्यों किया जाता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
संदर्भ:
हाल ही में, ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (National Commission for Protection of Child Rights – NCPCR) द्वारा अपना 17वां स्थापना दिवस मनाया गया।
NCPCR के बारे में:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की स्थापना, दिसंबर 2005 में पारित संसद के एक अधिनियम ‘बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम’ 2005 (Commissions for Protection of Child Rights (CPCR) Act, 2005) के अंतर्गत मार्च 2007 में की गई थी।
- आयोग ने 5 मार्च 2007 से अपना कार्य आरंभ किया।
- ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
अधिदेश:
आयोग का अधिदेश यह सुनिश्चित करना है, कि समस्त विधियाँ, नीतियां, कार्यक्रम तथा प्रशासनिक तंत्र, भारत के संविधान तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार सम्मेलन में प्रतिपाादित बाल अधिकारों के संदर्श के अनुरूप हो।
‘बालक’ की परिभाषा:
‘बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम’ 2005 (CPCR Act) के तहत, ‘बालक’ अथवा ‘बच्चे’ (Child) को 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में शामिल व्यक्ति के रूप में पारिभाषित किया गया है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के कार्य:
‘शिक्षा के अधिकार अधिनियम’ 2009 के तहत NCPCR:
- कानून के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों की जांच कर सकता है।
- किसी व्यक्ति को पूछतांछ करने हेतु बुलाना तथा साक्ष्यों की मांग कर सकता है।
- न्यायायिक जांच का आदेश दे सकता है।
- हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकता है।
- अपराधी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से संपर्क कर सकता है।
- प्रभावित लोगों को अंतरिम राहत देने की सिफारिश कर सकता है।
‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ का गठन:
- इस आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिनमें से कम से कम दो महिलाएँ होना आवश्यक है।
- सभी सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है, तथा इनका कार्यकाल तीन वर्ष का होता है।
- आयोग के अध्यक्ष की अधिकतम आयु 65 वर्ष तथा सदस्यों की अधिकतम आयु 60 वर्ष होती है।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
प्रधानमंत्री जन-औषधि योजना
(Pradhan Mantri Jan-Aushadhi Yojana)
संदर्भ:
फार्मास्युटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइस ब्यूरो ऑफ इंडिया (PMBI) द्वारा 1 मार्च से 7 मार्च 2022 तक जनऔषधि दिवस सप्ताह मनाया जा रहा है।
- चौथे जन-औषधि दिवस का विषय है “जन औषधि-जन उपयोगी”
- फार्मास्युटिकल विभाग के अंतर्गत ‘फार्मास्युटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइस ब्यूरो ऑफ इंडिया’ (PMBI) ‘प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना’ (PM Bhartiya Janaushadhi Pariyojana – PMBJP) की कार्यान्वयन एजेंसी है।
योजना का प्रदर्शन:
- प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत देश के सभी जिलों को कवर किया गया है।
- सभी केंद्रों पर दवाओं का रियल टाइम वितरण सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी आईटी तकनीक से लैस लॉजिस्टिक्स और सप्लाई चेन शुरू की गई है।
- PMBJP के उत्पाद समूह में वर्तमान में 1,451 दवाएं और 240 सर्जिकल उपकरण शामिल हैं।
PMBJP के बारे में:
यह रसायन और उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा चलाया गया एक अभियान है।
- इस अभियान के तहत विशेष केंद्रों के माध्यम से आम लोगों को सस्ती कीमत पर गुणवत्ता वाली दवाएं उपलब्ध कराई जाती है।
- इन विशेष केंद्रों को प्रधान मंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र के रूप में जाना जाता है।
- इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2008 में की गयी थी, तथा वर्ष 2015 में इस योजना को फिर से नए रूप में किया शुरू गया।
- इस योजना का कार्यान्वयन ‘फार्मास्युटिकल्स एंड मेडिकल डिवाइसेस ब्यूरो ऑफ़ इंडिया’ (PMBI) के द्वारा किया जाता है।
योजना की प्रमुख विशेषताएं:
- गुणवत्ता युक्त दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- दवाओं पर होने वाले व्यय को कम करने हेतु गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं का कवरेज बढ़ाना, जिससे प्रति व्यक्ति उपचार की लागत को फिर से परिभाषित किया जा सके।
- शिक्षा और प्रचार के माध्यम से जेनेरिक दवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करना, ताकि गुणवत्ता को केवल उच्च कीमत से न आँका जाए।
- एक सार्वजनिक कार्यक्रम, जिसमें सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, निजी क्षेत्र, गैर सरकारी संगठन, सोसायटी, सहकारी निकाय और अन्य संस्थान शामिल हैं।
- सभी चिकित्सीय श्रेणियों में, जहां भी आवश्यक हो, कम उपचार लागत और आसान उपलब्धता के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार करके जेनेरिक दवाओं की मांग पैदा करना।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि जीएमपी पर WHO का पहला मसौदा वर्ष 1968 में पारित किया गया था? वर्ष 1969 में, विश्व स्वास्थ्य सभा द्वारा वैश्विक बाजार में चल रहे फार्मास्युटिकल उत्पादों की गुणवत्ता पर WHO प्रमाणन योजना के पहले संस्करण की सिफारिश करने के बाद WHO-GMP को स्वीकार किया गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- इस योजना का आरंभ कब किया गया था?
- इसका नाम परिवर्तन कब किया गया?
- यह योजना किस मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी?
- BPPI के बारे में- स्थापना और कार्य
- जेनेरिक दवाएं क्या है?
मेंस लिंक:
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना (PMBJP) की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
मानवाधिकार परिषद में रूसी कार्रवाइयों की जांच हेतु कराए गए मतदान में भारत की अनुपस्थिति
संदर्भ:
हाल ही में, ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UN Human Rights Council – UNHRC) में प्रस्तुत किए गए एक संकल्प पर होने वाले मतदान में भारत ने भाग नहीं लिया। इस संकल्प में, रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने की “कड़ी निंदा” की गई थी।
‘संकल्प’ के बारे में:
- इस संकल्प में ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) से यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों की जांच के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आयोग गठित करने की मांग की गयी थी।
- ‘संकल्प प्रस्ताव’ के अनुसार, कि यह रूसी बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन, नागरिक हताहतों और आबादी वाले क्षेत्रों में रूसी “बमबारी और गोलाबारी” के कारण 6,60,000 शरणार्थियों के जबरन विस्थापन की आने वाली रिपोर्ट “गंभीर चिंता” का विषय है।
‘संकल्प’ पर समर्थन:
‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ के दो-तिहाई सदस्य देशों, या 32 देशों ने इस प्रस्ताव / संकल्प के पक्ष में मतदान किया।
प्रस्ताव के खिलाफ मतदान / अनुपस्थित:
भारत सहित, संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से गठित 47 सदस्यीय ‘मानवाधिकार परिषद’ के 13 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव पर हुए मतदान में भाग नहीं लिया।
- मतदान से अनुपस्थित रहने वाले अन्य प्रमुख देशों में चीन, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, सूडान, उज्बेकिस्तान और वेनेजुएला शामिल थे।
- केवल रूस और इरिट्रिया ने इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।
- रूस ने यूक्रेन के नागरिक क्षेत्रों को लक्षित करने से इनकार किया है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन में सैन्य अभियानों को सही ठहराने के लिए, यूक्रेन सरकार पर पूर्वी डोनबास क्षेत्र में हमलों और मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था।
यूक्रेन मामले पर भारत की स्थिति:
- ‘मानवाधिकार परिषद’ में भारत की स्थिति, 24 फरवरी को यूक्रेन में रूसी सैन्य अभियानों की शुरुआत के बाद से संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय संगठनों में होने वाले मतदानों से अनुपस्थित रहने की श्रंखला में कड़ी जोड़ती है। जबकि यूक्रेन में जारी रूसी सैन्य हमलों की बढ़ोत्तरी को देखते हुए, मास्को की आलोचना करने वाले प्रस्तावों के पक्ष में अधिक से अधिक देशों द्वारा मतदान किया जा रहा है।
- भारत सरकार द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में तीन, न्यूयॉर्क स्थित ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ में दो, जिनेवा स्थित ‘मानवाधिकार परिषद’ में दो, और वियना स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी’ (IAEA) के एक प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहने का फैसला किया गया।
UNHRC के बारे में:
‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) का पुनर्गठन वर्ष 2006 में इसकी पूर्ववर्ती संस्था, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UN Commission on Human Rights) के प्रति ‘विश्वसनीयता के अभाव’ को दूर करने में सहायता करने हेतु किया गया था।
इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है।
संरचना:
- वर्तमान में, ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) में 47 सदस्य हैं, तथा समस्त विश्व के भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु सीटों का आवंटन प्रतिवर्ष निर्वाचन के आधार पर किया जाता है।
- प्रत्येक सदस्य तीन वर्षों के कार्यकाल के लिए निर्वाचित होता है।
- किसी देश को एक सीट पर लगातार अधिकतम दो कार्यकाल की अनुमति होती है।
UNHRC के कार्य:
- परिषद द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों की ‘सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा’ (Universal Periodic Review- UPR) के माध्यम से मानव अधिकार संबंधी विषयों पर गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव पारित करता है।
- यह विशेष देशों में मानवाधिकार उल्लंघनों हेतु विशेषज्ञ जांच की देखरेख करता है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष चुनौतियाँ तथा इसमें सुधारों की आवश्यकता:
- ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सदस्य-देशों जैसे सऊदी अरब, चीन और रूस के मानवाधिकार रिकॉर्ड इसके उद्देश्य और मिशन के अनुरूप नहीं हैं, जिसके कारण आलोचकों द्वारा परिषद की प्रासंगिकता पर सवाल उठाये जाते है।
- UNHRC में कई पश्चिमी देशों द्वारा निरंतर भागीदारी के बावजूद भी ये मानव अधिकारों संबंधी समझ पर गलतफहमी बनाये रखते हैं।
- UNHRC की कार्यवाहियों के संदर्भ में गैर-अनुपालन (Non-compliance) एक गंभीर मुद्दा रहा है।
- अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्रों की गैर-भागीदारी।
वर्तमान ने चिंता का विषय:
कुछ लोगों का कहना है, कि भारत का मतदान से दूर रहने का निर्णय किसी राष्ट्र के पक्ष अथवा विपक्ष में नहीं है, बल्कि यह अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित में हैं।
- हालांकि, इन निर्णयों को अधिकांश भारतीय टिप्पणीकारों द्वारा एक ‘ख़राब स्थिति को सर्वश्रेष्ठ बनाने’ के प्रयास के रूप में माना जाना रहा है।
- हमारे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में, रूस एक भरोसेमंद सहयोगी रहा है। इनका कहना है, कि 1971 में बांग्लादेश के निर्माण का उल्लेख नहीं करके, कश्मीर मुद्दे पर रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का बचाव किया है।
- इसके अलावा, रूस के खिलाफ मतदान करने से, रूस के चीन के अधिक नजदीक जाने की बढ़ जाएगी, जिससे भारत के लिए देश की सुरक्षा का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा।
भारत को रूस पर पूरी तरह निर्भर क्यों नहीं होना चाहिए?
ऊपर दिए गए तर्क तीन दशक पहले शीत युद्ध की समाप्ति और 20 साल पहले व्लादिमीर पुतिन के उदय से पहले के हैं। और भी खतरनाक रूप से, उपरोक्त तर्क भारत के अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के प्रति एक नियतिवाद को प्रकट करते हैं, जो समय बीतने के साथ हमें और नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- हां यह सच है, कि रूस हमारे लिए सबसे बड़ा हथियार प्रदाता देश है और अगर हम इसके खिलाफ मतदान करते हैं तो हमारी आपूर्ति प्रभावित होगी। किंतु, अब रूस एक विश्वसनीय हथियार प्रदाता देश नहीं है; पुतिन के सत्ता में आने के बाद से इसकी विश्वसनीयता कभी साबित नहीं हुई है।
- रूस से आने वाले हथियारों की आपूर्ति में अक्सर देरी होती है, और पुतिन द्वारा कीमतों को बढ़ाने के लिए ‘देरी करने की तरकीब’ का इस्तेमाल भी किया गया, और कभी-कभी तो कीमतों को दोगुना भी कर दिया गया। इसके विपरीत, राफेल जेट विमानों की फ्रांसीसी डिलीवरी तुलनात्मक रूप से काफी तेज रही है।
- हमारी मदद करना तो दूर, पुतिन ने चीन की भारत के खिलाफ आक्रामकता के कई कृत्यों पर आंखें मूंद ली हैं।
- रूस की वजह से ही, भारत को, हाल के दिनों में अफगान शांति वार्ता से दूर रखा गया था।
- 2019 और 2020 में जब चीन ने UNSC में कश्मीर को उठाया तो रूस ने हमारी मदद करने के लिए बहुत कम प्रयास किए। उस समय अमेरिका और यूरोपीय देशों ने- अपने स्वयं के मानवाधिकार सिद्धांतों के खिलाफ जाकर- हमारी मदद की थी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘संयुक्त राष्ट्र न्यासी परिषद’ (United Nations Trusteeship Council) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- UNHRC के बारे में
- संरचना
- कार्य
- ‘सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा’ (UPR) क्या है?
- UNHRC का मुख्यालय
- हाल ही में UNHRC की सदस्यता त्यागने वाले देश
मेंस लिंक:
‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद’ (UNHRC) के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
डेटा संरक्षण विधेयक
संदर्भ:
सरकार द्वारा प्रदान की गयी जानकारी के अनुसार, ‘डेटा संरक्षण विधेयक’ (Data Protection Bill) के मसौदे पर प्राप्त सलाहों / इनपुट का अध्ययन किया जा रहा है, और सरकार ध्यानपूर्वक यह सुनिश्चित करेगी कि डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी कानून, विकास की गति को बढ़ावा देने के लिए एक प्रवर्तक के रूप में कार्य करने वाला बने।
16 दिसंबर, 2021 को ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ (Personal Data Protection (PDP) Bill) पर गठित ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (Joint Parliamentary Committee – JPC) द्वारा विभिन्न प्रावधानों पर अपने विचार देते हुए संसद के दोनों सदनों में अपनी रिपोर्ट सौंप दी गयी थी।
पृष्ठभूमि:
11 दिसंबर 2019 को ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ 2019 पर भाजपा सांसद पी.पी. चौधरी की अध्यक्षता में गठित ‘संयुक्त संसदीय समिति’ द्वारा अपने गठन के लगभग दो साल बाद 16 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में आगामी विधेयक पर अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश की गयी थी।
‘संयुक्त संसदीय समिति’ की प्रमुख अनुशंसाएं:
- ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ के मौजूदा शीर्षक से ‘निजी’(Personal) शब्द को हटाया जाए। इसका उद्देश्य यह दर्शाना है, कि निजता को बेहतर ढंग से सुनिश्चित करने हेतु इस विधेयक में, अनामक किए जा चुके (anonymised) ‘निजी डेटा’ जैसे, ‘गैर-निजी डेटा’ से भी संबंधित प्रावधान किए गए है।
- भारत के बाहर ‘निजी डेटा के हस्तांतरण’ को प्रतिबंधित करने वाले अनुभाग में संशोधन किया जाए और इसमें यह जोड़ा जाए कि “संवेदनशील निजी डेटा को, केंद्र सरकार के अनुमोदन के बगैर, किसी भी विदेशी सरकार या एजेंसी के साथ साझा नहीं किया जाएगा।
- भारत में किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को, उसकी मूल कंपनी (जो इसकी सेवाओं के लिए प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करती है) द्वारा देश में अपना कार्यालय स्थापित नहीं करने तक, संचालन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- ‘संयुक्त संसदीय समिति’ ने मीडिया को विनियमित करने के लिए एक अलग नियामक निकाय की स्थापना का प्रस्ताव किया है।
- किसी व्यक्ति द्वारा ‘अज्ञात’ (de-identified) किए जा चुके डेटा को फिर से ‘अभिज्ञात’ (Identified) किए जाने पर, उसे तीन साल तक का कारावास, अथवा 2 लाख रुपये का जुर्माना या दोनों, की सजा हो सकती है।
- विधेयक के नाम से ‘निजी’ शब्द हटा दिया जाना चाहिए।
- केंद्र सरकार, किसी भी सरकारी एजेंसी को विशेष परिस्थितियों में ही कानून से छूट दे सकती है।
इन सिफारिशों एवं यूरोपीय संघ के विनियमों की तुलना:
‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ पर ‘संयुक्त संसदीय समिति’ की सिफारिशें कुछ पहलुओं पर ‘यूरोपीय संघ के सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन’ (European Union’s General Data Protection Regulation – GDPR) जैसे वैश्विक मानकों के समान हैं।
समानताएं:
- सहमति: उपयोगकर्ताओं को उनके डेटा को संसाधित करने के तरीके के बारे में भलीभांति जानकारी देना चाहिए ताकि वे संबंधित मामलों में ‘सहमति’ देने अथवा बाहर निकलने पर निर्णय ले सकें।
- सुरक्षा उल्लंघन: डेटा-लीक होने के 72 घंटों के भीतर अधिकारियों को ‘सुरक्षा उल्लंघन’ के बारे में सूचित किया जाना चाहिए।
- परिवर्तन अवधि (Transition period): ‘सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन’ (GDPR) के प्रावधानों को लागू करने के लिए दो साल की ‘परिवर्तन अवधि’ का निर्धारण।
- डेटा न्यासी (Data fiduciary): यूरोपीय संघ के कानून के तहत, डेटा प्रोसेसिंग के उद्देश्य और पद्धति निर्धारित करने हेतु, कोई भी प्राकृतिक या कानूनी व्यक्ति, सार्वजनिक प्राधिकरण, एजेंसी या निकाय ‘डेटा न्यासी’ हो सकता है। भारत में ‘डेटा न्यासी’ के रूप में ‘गैर-सरकारी संस्थाएं’ (NGOs) को भी शामिल किया गया है।
डेटा संरक्षण प्राधिकरण:
संयुक्त संसदीय समिति ने ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (Data Protection Authority – DPA) का गठन किए जाने की सिफारिश की है:
- डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी (DPA), निजता एवं निजी डेटा के साथ-साथ गैर-निजी डेटा से भी संबंधित मामलों का समाधान करेगी।
- संरचना: ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति, कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी।
- समिति के अन्य सदस्यों में ‘भारत के महान्यायवादी, सूचना एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय के सचिव तथा और विधि मंत्रालय के सचिव’ शामिल होंगे।
- नामित सदस्य: केंद्र द्वारा एक स्वतंत्र विशेषज्ञ और आईआईटी तथा आईआईएम से एक-एक निदेशक नामित किया जाएगा।
विधेयक के अन्य प्रमुख बिंदु:
- विधेयक में निजी डेटा के प्रवाह और उपयोग को निर्दिष्ट करने तथा जिन व्यक्तियों के निजी डेटा को संसाधित किया जाए, उनके अधिकारों की रक्षा करने का प्रस्ताव किया गया है। इस विधेयक में, निजी डेटा के सीमा पार हस्तांतरण, डेटा संसाधित करने वाली संस्थाओं की जवाबदेही और अनधिकृत एवं हानिकारक प्रसंस्करण को रोकने के लिए फ्रेमवर्क तैयार किया गया है।
- विधेयक में, सरकार को अपनी जांच एजेंसियों को ‘कानून के प्रावधानों से छूट’ देने की शक्ति प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान का विपक्षी सांसदों ने कड़ा विरोध किया है और अपनी असहमति दर्ज कराई गयी थी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि निजी डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक की उत्पत्ति का स्रोत, न्यायमूर्ति बी.एन. श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में देखा जा सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- डेटा संरक्षण विधेयक
- प्रमुख प्रावधान
- संसदीय समिति
- पुट्टस्वामी फैसला
- निजता का अधिकार
मेंस लिंक:
निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के विवादास्पद प्रावधानों पर टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
चर्चित स्थल: ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र
‘ज़ापोरिज्जिया परमाणु ऊर्जा संयंत्र’ (Zaporizhzhia Nuclear Power Plant) यूक्रेन में अवस्थित है।
- यह यूरोप के सबसे बड़ा ‘परमाणु ऊर्जा संयंत्र’ है।
- यह दुनिया के 10 सबसे बड़े ‘परमाणु ऊर्जा संयत्रों’ में से एक है।
- इसका निर्माण सोवियत संघ द्वारा करवाया गया था।
- यह ‘नीपर नदी’ पर ‘काखोवका जलाशय’ के दक्षिणी किनारे पर स्थित है।
चर्चा में कारण:
हाल ही में, रूस ने इस परमाणु संयंत्र पर कब्ज़ा कर लिया गया है।
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