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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. विशेषाधिकार प्रस्ताव
2. आसियान
3. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
सामान्य अध्ययन-III
1. परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी
2. भारत के लिए ‘जीवाश्म ईंधन’ से हटकर एक परिवर्तन रणनीति की आवश्यकता
3. भारत में ड्रोन के आयात पर प्रतिबंध
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. खैबर-बस्टर
2. रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन
सामान्य अध्ययन-II
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
विशेषाधिकार प्रस्ताव
(Privilege Motion)
संदर्भ:
राज्यसभा में ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति’ (TRS) के चार सदस्यों ने, हाल ही में, ‘आंध्र प्रदेश पुनर्गठन विधेयक’ के बारे में 8 फरवरी को उच्च सदन में की गयी टिप्पणी के संबंध में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक ‘विशेषाधिकार प्रस्ताव’ (Privilege Motion) प्रस्तुत किया है।
संबंधित प्रकरण:
पीएम मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान, वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश के तेलंगाना और आंध्र राज्यों में विभाजन के लिए अपनाई गई संसदीय प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। पीएम मोदी के कहा था, कि कानून पारित करने के लिए सदन कक्ष के दरवाजे बंद कर दिए गए गए थे, ‘पेपर स्प्रे’ का इस्तेमाल किया गया और माइक के स्विच ऑफ कर दिए गए थे।
सदस्यों द्वारा उठाए गए मुद्दे:
- पीएम मोदी का बयान, संसद भवन को सबसे खराब और तिरस्कारपूर्ण तरीके से दिखाने का प्रयास करने वाला, सदन की प्रक्रियाओं और कार्यवाही और उसके कामकाज को बदनाम और अपमानित करने वाला था।
- पीएम मोदी का वक्तव्य, संसद सदस्यों और पीठासीन अधिकारियों के सदन में उनके आचरण में दोष खोजने के बराबर था।
- यहां तक कि, कुछ सदस्यों द्वारा किए जाने वाले विधि-विरुद्ध आचरण अथवा हंगामे को रोकने के लिए पीठासीन अधिकारी के सदन के दरवाजे बंद करने के निर्णय पर भी सवाल उठाया गया।
यह वक्तव्य सदन की अवमानना के समान है, और विशेषाधिकार पर प्रश्न-चिह्न लगाता है।
‘संसदीय विशेषाधिकार’ क्या होते हैं?
संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges), संसद सदस्यों को, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियां होते हैं, ताकि वे “अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन” कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये हैं: संसद में वाक्-स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
- संविधान में विनिर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान तथा इसके आरंभ होने से चालीस दिन पूर्व और इसकी समाप्ति के चालीस दिन पश्चात सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों की गिरफ्तारी और उन्हें निरुद्ध किए जाने से स्वतंत्रता का उपबंध किया गया है।
विशेषाधिकार उल्लंघन के खिलाफ प्रस्ताव:
सांसदों को प्राप्त किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करने पर, इस अपराध को विशेषाधिकार हनन कहा जाता है, और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय होता है।
- किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा ‘विशेषाधिकार हनन’ (Breach of Privilege) के दोषी पाए जाने वाले सदस्य के खिलाफ एक प्रस्ताव के रूप में एक सूचना (नोटिस) प्रस्तुत की जा सकती है।
लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा सभापति की भूमिका:
विशेषाधिकार प्रस्ताव की जांच के लिए, लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा सभापति, पहला स्तर होता है।
- लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा सभापति, विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकते हैं या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति के लिए संदर्भित कर सकते हैं।
- यदि लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा सभापति, संगत नियमों के तहत प्रस्ताव पर सहमति देते हैं, तो संबंधित सदस्य को प्रस्ताव के संदर्भ में एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।
प्रयोज्यता:
- संविधान में, उन सभी व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किए गए है, जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार हैं। इन सदस्यों में भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
- हालांकि, संसद का अभिन्न अंग होने बावजूद, राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। राष्ट्रपति के लिए संविधान के अनुच्छेद 361 में विशेषाधिकारों का प्रावधान किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या ‘संसदीय विशेषाधिकारों’ को किसी कानून के तहत परिभाषित किया गया हैं? इस बारे में जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- संविधान के कौन से प्रावधान विधायिका के विशेषाधिकारों की रक्षा करते हैं?
- विधायिका के विशेषाधिकार के कथित उल्लंघन के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?
- संसद और राज्य विधानमंडलों में विशेषाधिकार समितियों की संरचना और कार्य
- विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए क्या सजा है?
- क्या राज्य विधानसभाओं के विशेषाधिकार हनन से जुड़े मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं?
मेंस लिंक:
विधायिका के विशेषाधिकारों से आप क्या समझते हैं? भारत में समय-समय पर देखी जाने वाली विधायिका विशेषाधिकारों की समस्या पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
आसियान समूह
(ASEAN)
संदर्भ:
भारत की घरेलू उत्पादों के लिए बाजार तक अधिक पहुंच की सुनिश्चित करने हेतु, भारत एवं आसियान क्षेत्रों के बीच ‘वस्तु व्यापार’ हेतु ‘मुक्त व्यापार समझौता’ (Free -Trade Agreement – FTA) की समीक्षा शुरू करने के लिए 10 देशों के संगठन ‘आसियान’ (ASEAN) के साथ वार्ता जारी है।
मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
- ‘मुक्त व्यापार समझौता’ दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने के लिए एक समझौता होता है।
- एक मुक्त व्यापार नीति के तहत, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार- वस्तुओं और सेवाओं को बिना किसी बाधा के बहुत कम या बिना किसी सरकारी शुल्क, कोटा, सब्सिडी के खरीदा और बेचा जा सकता है।
- मुक्त व्यापार की अवधारणा, व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत होती है।
आसियान के बारे में:
दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) अर्थात ‘आसियान’ एक क्षेत्रीय संगठन है। इसकी स्थापना एशिया-प्रशांत क्षेत्र के उत्तर-औपनिवेशिक देशों के मध्य बढ़ते हुए तनाव के बीच राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देने हेतु की गई थी।
- आसियान का आदर्श वाक्य: “एक दृष्टि, एक पहचान, एक समुदाय” (One Vision, One Identity, One Community)
- आसियान का सचिवालय: जकार्ता, इंडोनेशिया।
उत्पत्ति (Genesis):
आसियान का गठन वर्ष 1967 में इसके संस्थापक सदस्यों द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर करने के साथ हुआ था।
- आसियान के संस्थापक सदस्य: इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड।
- आसियान के दस सदस्य: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम।
भारत के लिए आसियान का महत्व:
लद्दाख गतिरोध सहित चीन के आक्रामक रवैए की पृष्ठभूमि में, भारत द्वारा ‘आसियान’ को ‘भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी (India’s Act East policy) के केंद्र में रखा गया है। भारत का मानना है, कि इस क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास हेतु एक संसक्त एवं उत्तरदायी ‘आसियान’ का होना आवश्यक है।
- ‘क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास’ (Security And Growth for All in the Region– SAGAR) अर्थात ‘सागर’ विजन की सफलता के लिए आसियान की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
- कोविड-19 महामारी का अंत होने के बाद, आर्थिक सुधार हेतु आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण और लचीलेपन के लिए यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है।
- आसियान, भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, तथा इसके साथ लगभग 9 बिलियन अमरीकी डालर का व्यापार होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत वर्ष 1992 में आसियान का ‘क्षेत्रीय भागीदार’ (Sectoral Partner) बना था।
प्रीलिम्स लिंक:
- आसियान देशों की भौगोलिक अवस्थिति
- आसियान देशों की कुल जनसंख्या
- आसियान की अध्यक्षता
- आसियान शिखर सम्मेलन कब और कहाँ आयोजित किए जाते हैं?
- मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) क्या हैं?
मेंस लिंक:
भारत की आर्थिक, भू-रणनीतिक और सुरक्षा अनिवार्यताओं के लिए आसियान के महत्व का परीक्षण कीजिए?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
(Indo-Pacific region)
संदर्भ:
हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने कहा है कि, यूक्रेन के ऊपर रूसी हमले की आशंकाओं के बावजूद उसका ध्यान दीर्घकालिक रूप से ‘हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र’ (Indo-Pacific region) पर केंद्रित है। अमेरिका का यह दृष्टिकोण ‘हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र’ / इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के महत्व और इस क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के संबंध में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
‘इंडो-पैसिफिक’ क्या है?
एकल रणनीतिक क्षेत्र के रूप में ‘इंडो-पैसिफिक’ (Indo- Pacific) की अवधारणा, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिणाम है। यह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के मध्य परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा और वाणिज्य के लिए महासागरों के महत्व का प्रतीक है।
‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ का महत्व:
- क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने हेतु।
- भारत की रणनीतिक स्थिति में बढ़त के लिए, अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों को एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।
- राष्ट्रीय हितों के लिए दीर्घकालिक परिकल्पना।
- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की तेजी से बढ़ती उपस्थिति, व्यापार और सेना के माध्यम से एशिया त्तथा उससे आगे भूराजनीतिक पहुंच का विस्तार करने के चीनी प्रयास।
- नौ-परिवहन की स्वतंत्रता, क़ानून-आधारित व्यवस्था का पालन करने तथा व्यापार हेतु सुव्यवस्थित माहौल का निर्माण करने हेतु।
- मुक्त समुद्र एवं मुक्त हवाई मार्गो तथा कनेक्टिविटी के लिए; और अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों को बनाए रखने के लिए।
भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ की भूमिका एवं निहितार्थ:
- इंडो-पैसिफिक / हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जैसा कि, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में वर्णित है, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से गतिमान हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। यह, भारत के पश्चिमी तट से संयुक्त राज्य के पश्चिमी तट तक विस्तृत है।
- भारत, सदैव से गंभीर राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं वाला देश रहा है और “इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी” अवधारणा का सबसे महत्वपूर्ण पैरोकार है।
- मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ, भारत, हिंद महासागर में आने निकटवर्ती देशों और विश्व की प्रमुख समुद्री शक्तियों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘प्रशांत क्षेत्र’ के बारे में।
- ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ का अवलोकन।
- इन क्षेत्रों में अवस्थित महत्वपूर्ण जलडमरूमध्य, खाड़ियाँ और मार्ग।
मेंस लिंक:
भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ के सामरिक महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
परमाणु संलयन प्रौद्योगिकी
(Nuclear Fusion Technology)
संदर्भ:
हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिकों ने ‘परमाणु संलयन ऊर्जा’ (Nuclear Fusion Energy) के उत्पादन, अथवा ‘सूर्य में होने वाली ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया’ की नक़ल करने में एक नया मील का पत्थर हासिल करने का दावा किया है।
नया रिकॉर्ड:
- मध्य इंग्लैंड में ऑक्सफ़ोर्ड के नजदीक ‘जॉइंट यूरोपियन टोरस’ (JET) केंद्र में वैज्ञानिकों के दल ने दिसंबर माह में एक ‘प्रयोग’ के दौरान 59 मेगाजूल की लगातार ऊर्जा उत्पन्न करने में सफलता हासिल की, जोकि वर्ष 1997 में बनाए गए रिकॉर्ड के दोगुने से अधिक थी।
- संलयन ईंधन की एक किलो मात्रा में कोयले, तेल या गैस के एक किलोग्राम की तुलना में लगभग 10 मिलियन गुना अधिक ऊर्जा होती है।
प्रयोग (The experiment):
यह ऊर्जा ‘डॉनट’ आकार के उपकरण (doughnut-shaped apparatus) ‘टोकामक’ (Tokamak) नामक मशीन में उत्पन्न की गयी थी और ‘जॉइंट यूरोपियन टोरस’ केंद्र, दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा क्रियाशील ‘टोकामक’ है।
- प्लाज्मा का निर्माण करने हेतु, हाइड्रोजन के समस्थानिक, ड्यूटेरियम और ट्रिटियम को सूर्य के केंद्र के तापमान से 10 गुना अधिक गर्म तापमान पर गर्म किया गया।
- चूंकि, टोकामक मशीन चक्कर काटती हुई तेजी से घूमती है, समस्थानिकों को फ़्यूज़ करती है और ऊष्मा के रूप में अत्यधिक उर्जा उत्सर्जित करती है, अतः इसे सुपरकंडक्टर इलेक्ट्रोमैग्नेट्स का उपयोग करके विशालकाय कुंड जैसे बर्तन में रखा जाता है।
इस उपलब्धि का महत्व:
- मानव लंबे समय से ‘परमाणु संलयन’ के माध्यम ऊर्जा उत्पन्न करने की कोशिश में लगा हुआ है, क्योंकि इस प्रकार से उत्पन्न उर्जा में कार्बन की मात्र काफी निम्न होती है, और परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करने की तुलना में काफी सुरक्षित है और साथ ही तकनीकी रूप से 100% से भी अधिक कार्यक्षम हो सकती है।
- इसके अलावा, इन महत्वपूर्ण प्रयोगों का रिकॉर्ड और वैज्ञानिक डेटा, ‘अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर’ (International Thermonuclear Experimental Reactor – ITER) के लिए महत्वपूर्ण रूप से उपयोगी हो सकते हैं।
- ITER, जॉइंट यूरोपियन टोरस’ (Joint European Torus – JET) का बड़ा और अधिक उन्नत संस्करण है।
‘अंतर्राष्ट्रीय थर्मोन्यूक्लियर प्रायोगिक रिएक्टर’ के बारे में:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय ताप-नाभिकीय प्रायोगिक रिएक्टर’ (International Thermonuclear Experimental Reactor – ITER) संलयन ऊर्जा की वैज्ञानिक और तकनीकी व्यवहार्यता के बारे में अनुसंधान एवं प्रदर्शन करने हेतु लिए फ्रांस के दक्षिण में स्थित एक संलयन अनुसंधान मेगा-प्रोजेक्ट है।
- ITER परियोजना सात सदस्यों – यूरोपीय संघ, चीन, भारत, जापान, रूस, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वित्त पोषित तथा संचालित की जा रही है।
ITER के कार्य:
- 500 मेगावाट संलयन ऊर्जा का उत्पादन करना।
- संलयन ऊर्जा संयंत्र (fusion power plant) के लिए प्रौद्योगिकियों के एकीकृत परिचालन का प्रदर्शन करना।
- ड्यूटेरियम-ट्रिटियम प्लाज्मा को हासिल करना, जिसमें आंतरिक ताप के माध्यम से सतत अभिक्रिया होती है।
- ट्रिटियम ब्रीडिंग (Tritium Breeding) का परीक्षण करना।
- संलयन उपकरण (Fusion Device) की सुरक्षा विशेषताओं का प्रदर्शन करना।
संलयन क्या होता है?
संलयन (Fusion), सूर्य तथा अन्य तारों का ऊर्जा स्रोत है। इन तारकीय निकायों के केंद्र में अत्याधिक ऊष्मा तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण, हाइड्रोजन नाभिक परस्पर टकराते हैं, इसके परिणामस्वरूप हाइड्रोजन नाभिक संलयित होकर भारी हीलियम अणुओं का निर्माण करते हैं जिससे इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा निर्मुक्त होती हैं।
प्रयोगशाला में संलयन अभिक्रिया के लिए आवश्यक तीन शर्तें:
- बहुत उच्च तापमान (150,000,000 डिग्री सेल्सियस से अधिक)
- उचित प्लाज्मा अणु घनत्व (अणुओं के परस्पर टकराव की संभावना में वृद्धि के लिए)
- उपयुक्त परिरोध समय (प्लाज्मा को रोकने के लिए)
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘हेलियोफिजिक्स मिशन’ (Heliophysics Missions) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ITER कितने देशों द्वारा वित्त पोषित है? क्या भारत इसका एक हिस्सा है?
- टोकामक क्या है?
- पदार्थ की विभिन्न अवस्थाएं
- संलयन क्या है?
- संलयन और विखंडन के बीच अंतर।
- ITER का अवस्थिति तथा महत्व।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
भारत के लिए ‘जीवाश्म ईंधन’ से हटकर एक परिवर्तन रणनीति की आवश्यकता
संदर्भ:
रूस और सऊदी अरब जैसे ऊर्जा-संपन्न देश, भारत के उर्जा क्षेत्र के बढ़ते बाजार में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं।
- ‘पेट्रोलियम-निर्यातक देशों के संगठन’ (Organisation of the Petroleum-Exporting Countries – OPEC) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक रूप से तेल की मांग 44 मिलियन बैरल प्रति दिन (mb/d) थी जोकि वर्ष 2022 में बढ़कर 100.59 मिलियन बैरल प्रति दिन हो जाएगी।
- अतः, बढ़ती कीमतों का मुकाबला करने और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, भारत को ‘जीवाश्म ईंधन’ से हटकर एक परिवर्तन रणनीति की आवश्यकता है।
भारत को ‘जीवाश्म ईंधन’ का विकल्प तलाशने की आवश्यकता:
- भारत, 85% तेल और अपनी ईंधन संबंधी आधी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर रहता है। वर्तमान में भारत अपने मौजूदा क्षेत्रों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करके तेल उत्पादन में 20% तक की वृद्धि कर सकता है, लेकिन इससे अधिक के लिए, अन्य महत्वपूर्ण खोजों की आवश्यकता है, जोकि लंबे समय से नहीं हुई हैं।
- खपत में होने वाली वृद्धि को देखते हुए, खाना पकाने का ईंधन भारत के लिए नया अतिसंवेदनशील नया विषय हो सकता है। लेकिन इसकी वैश्विक आपूर्ति निकट भविष्य में बढ़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि नए रिफाइनर ‘पेट्रोकेमिकल्स’ के निर्माण को प्राथमिकता दे सकते हैं।
इसलिए, भारत को एलपीजी के बदले इलेक्ट्रिकल, फोटो वोल्टाइक, ईंधन या बायोगैस जैसे विकल्पों की खोज करनी चाहिए।
मुख्य चिंता:
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की नवीनतम ‘प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत सहित शीर्ष 15 जीवाश्म ईंधन उत्पादक देश 2015 के ‘पेरिस जलवायु समझौते’ की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार नहीं हैं।
- ‘पेरिस समझौते’ के तहत ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से “2 डिग्री से नीचे” रखने का प्रयास किया गया है।
आवश्यकता:
पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु, विश्व के लिए “वैश्विक कोयला, तेल और गैस उत्पादन (और खपत) को – उष्मन को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के – अनुरूप करने के लिए तत्काल कटौती शुरू करनी होगी।”
भारत की योजनाएँ बनाम लक्ष्य:
भारत 15 जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों में ‘जीवाश्म ईंधन’ का सातवां सबसे बड़ा उत्पादक है।
- पेरिस समझौते के तहत, भारत ने 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की “उत्सर्जन तीव्रता” में 33%-35% की कटौती करने का वादा किया है।
- हालांकि, आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत, सरकार ने कोयले का आत्मनिर्भर उत्पादक बनने का संकल्प लिया है और कोयला निष्कर्षण के लिए 500 अरब रुपये के अवसंरचना निवेश की योजना बनाई है।
भारत के समक्ष चुनौतियां:
भारत में जीवाश्म ईंधन के उत्पादन को कम करने, या नवीकरणीय ऊर्जा में उचित परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए अभी तक संघीय स्तर पर कोई नीति नहीं है।
जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सीमित करने की आवश्यकता:
- जीवाश्म ईंधन से होने वाले वायु प्रदूषण की उच्च वैश्विक लागत: यह प्रति वर्ष लगभग 9 ट्रिलियन डॉलर या प्रति दिन 8 बिलियन डॉलर है, जोकि तात्कालिक विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत है।
- भारत द्वारा जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाले वायु प्रदूषण से $150 बिलियन की लागत वहन किए जाने का अनुमान है।
आगे की कुल चुनौतियां:
- अब तक, मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तापमान, पूर्व-औद्योगिक स्तर (1950-1900) से लगभग 1 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ चुका है।
- वर्तमान में, देशों के उत्सर्जन लक्ष्य ग्लोबल वार्मिंग को 5 डिग्री से कम तक सीमित करने के अनुरूप नहीं हैं।
भारत के लिए समय की मांग:
- जीवश्म ईंधन की देश में खोज पर कम जोर देना चाहिए।
- उत्पादक क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ानी चाहिए।
- सामरिक भंडार में वृद्धि की जानी चाहिए।
- सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों का पुनर्गठन और पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए।
- सीमित सोच से बचना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- पेरिस समझौता क्या है?
- इस समझौते पर किन देशों ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं?
- इसके लक्ष्य
- पेरिस समझौते के तहत घोषित वित्त पोषण तंत्र
मेंस लिंक:
पेरिस जलवायु समझौते के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
भारत में ड्रोन के आयात पर प्रतिबंध
(India bans import of drones)
संदर्भ:
सरकार ने अनुसंधान और विकास, रक्षा और सुरक्षा उद्देश्यों को छोड़कर ड्रोन के आयात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है।
- इस कदम का उद्देश्य ‘मेड इन इंडिया ड्रोन’ को बढ़ावा देना है।
- हाल ही में, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के ‘विदेश व्यापार महानिदेशालय’ ने इस संबंध में ‘भारतीय व्यापार वर्गीकरण (सामंजस्यपूर्ण प्रणाली), 2022’ (Indian Trade Classification (Harmonised System), 2022) को अधिसूचित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- अनुसंधान एवं विकास, रक्षा और सुरक्षा, उद्देश्यों हेतु ड्रोन आयात करने के लिए छूट प्रदान की गयी है, किंतु इसके लिए “उपयुक्त मंजूरी” लेना आवश्यक होगा।
- हालांकि, ड्रोन के पुर्जों के आयात के लिए किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
भारत में ड्रोन उद्योग को प्रोत्साहन:
- पिछले वर्ष, सरकार द्वारा उदारीकृत ड्रोन नियमों को अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने और भारत को ड्रोन हब के रूप में बनाने के उद्देश्य से कई अनुमोदनो की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया।
- सरकार द्वारा तीन वित्तीय वर्षों के लिए ₹120 करोड़ के आवंटन के साथ ड्रोन और उनके पुर्जों के लिए एक उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को भी मंजूरी दी गयी।
- पिछले महीने, नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को विभिन्न क्षेत्रों में ड्रोन के उपयोग पर एक नोट भेजा गया है।
ड्रोन का प्रभावी ढंग से उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र:
- गृह मंत्रालय: निगरानी, स्थितिजन्य विश्लेषण, अपराध नियंत्रण, वीवीआईपी सुरक्षा, आपदा प्रबंधन आदि के लिए।
- रक्षा मंत्रालय: युद्ध कार्यों हेतु, दूरदराज के इलाकों में संचार, ड्रोन-प्रत्युत्तर समाधान आदि हेतु।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय: दवाओं की डिलीवरी, दूरस्थ या महामारी प्रभावित क्षेत्रों से नमूने एकत्र करने हेतु।
- पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, और विद्युत मंत्रालय: परिसंपत्तियों एवं ट्रांसमिशन लाइनों की रियल टाइम निगरानी, चोरी की रोकथाम, दृश्यक निरीक्षण / रखरखाव, निर्माण योजना और प्रबंधन, आदि।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय: अवैध शिकार-रोधी कार्रवाई, वन और वन्य जीवन की निगरानी, प्रदूषण आंकलन, और साक्ष्य एकत्र करने हेतु।
- सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय: अंशतः लागत और आवश्यक अनुमोदन हासिल करने के उपरांत घटनाओं / कार्यक्रमों और दुर्गम स्थानों की उच्च गुणवत्ता युक्त वीडियोग्राफी करने हेतु। इस निर्णय से, बिना शोर-शराबे के निम्न ऊंचाई से शूटिंग करने की सुविधा उपलब्ध होगी और धूल प्रदूषण तथा दुर्घटनाओं संबंधी जोखिम को रोका जा सकेगा।
- अन्य क्षेत्र: आपदा प्रबंधन, आपातकालीन प्रतिक्रिया, निरीक्षण/रखरखाव कार्य और परियोजना निगरानी आदि।
महत्व:
ड्रोन प्रौद्योगिकी से राष्ट्रीय सुरक्षा, कृषि, कानून प्रवर्तन और मानचित्रण आदि सहित अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में जबरदस्त लाभ उठाया जा सकता है।
भारत में ड्रोन प्रबंधन:
- 15 सितंबर को केंद्र सरकार द्वारा तीन वित्तीय वर्षों में 120 करोड़ रुपये की राशि आवंटित करते हुए ‘ड्रोन’ और ‘ड्रोन घटकों’ के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive – PLI) योजना को मंजूरी दी गयी थी।
- 25 अगस्त को मंत्रालय द्वारा ‘ड्रोन नियम, 2021’ अधिसूचित किए गए। जिसके तहत भारत में ड्रोन संचालन के नियमन को आसान बनाते हुए, संचालन-अनुमति के लिए भरे जाने वाले फॉर्मों की संख्या को 25 से घटाकर 5 कर दी गयी और ऑपरेटर से वसूले जाने वाले 72 प्रकार के शुल्कों कम करके चार प्रकार का कर दिया गया।
ड्रोन प्रबंधन हेतु कड़े नियमों और विनियमन की आवश्यकता:
- हाल ही में, जम्मू में वायु सेना स्टेशन के तकनीकी क्षेत्र में एक विस्फोट हुआ था। इसके लिए विस्फोटकों को गिराने में पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था।
- पिछले दो वर्षों में, भारतीय क्षेत्र में हथियारों, गोला-बारूद और नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए पाकिस्तान स्थित संगठनों द्वारा नियमित रूप से ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है।
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 में पाकिस्तान से लगी सीमा पर 167 ड्रोन देखे गए और वर्ष 2020 में 77 ड्रोन देखे गए।
- हालिया वर्षों के दौरा ‘ड्रोन प्रौद्योगिकी’ के तेजी से प्रसार और वैश्विक बाजार इसका तीव्र विकास होने से, विश्व के सबसे सुरक्षित शहरों में भी ड्रोन हमले की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
- वर्तमान में ड्रोन, विशेष रूप से, उन संघर्ष क्षेत्रों में जहां ‘गैर-राज्य अभिकर्ता’ (Non State Actors – NSA) सक्रिय हैं और प्रौद्योगिकी तक आसान पहुंच रखते हैं, सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि विश्व में कुछ देशों के पास खुद के सशस्त्र बल नहीं हैं? इन देशों के बारे में जानने हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- नए नियमों का अवलोकन
- नए नियम बनाम पुराने नियम
- छूट
- लाइसेंस की आवश्यकता
मेंस लिंक:
नए ड्रोन नियमों के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
खैबर-बस्टर
(Khaibar- Buster)
हाल ही में, ईरान ने ‘खैबर-बस्टर’ (Khaibar- Buster) नामक एक नई मिसाइल का अनावरण किया है। यह मिसाइल अपने कट्टर दुश्मन इजरायल के भीतर के अमेरिकी ठिकानों और लक्ष्यों को मारने में सक्षम है।
- मिसाइल के लिए ‘खैबर-बस्टर’ नाम, इस्लाम के शुरुआती दिनों में मुस्लिम योद्धाओं द्वारा एक यहूदी महल पर कब्जा करने के एक संदर्भ में दिया गया है।
- इसकी मारक क्षमता 900 मील है और यह ठोस ईंधन से संचालित होती है।
- मध्य पूर्व में ईरान के पास मिसाइलों का सबसे बड़ा शस्त्रागार है।
रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन
भारतीय सेना ने अपनी गोला-बारूद सूची की ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन’ (Radio Frequency Identification – RFID) टैगिंग करना शुरू कर दिया है।
कार्यविधि:
- ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन’ (RFID) एक विशिष्ट प्रकार की रेडियो तकनीक है, जो किसी वस्तु से जुड़े टैग की पहचान करने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करती है और वस्तु की पहचान करती है।
- टैग में एक ‘ट्रांसीवर चिप’ (Transceiver Chip) होता है जो RFID रीडर से विद्युत चुम्बकीय तरंग द्वारा ट्रिगर होता है और एक पहचान संख्या को वापस ‘पढने वाले’ तक पहुंचाता है।
- इसके बाद पहचान संख्या का उपयोग टैग के साथ वस्तुओं की विस्तृत सूची के लिए किया जाता है।
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