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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1. अल्लूरी सीताराम राजू और रम्पा विद्रोह।
सामान्य अध्ययन-II
1. कॉलेजियम सिस्टम
2. विशेषाधिकार प्रस्ताव
3. संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि
सामान्य अध्ययन-III
1. मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. लॉग4शेल
2. तब्लीगी और दा’वाह
3. बाल्टिक सागर
सामान्य अध्ययन–I
विषय: अठारहवीं शताब्दी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
अल्लूरी सीताराम राजू एवं रंपा विद्रोह
संदर्भ:
निर्देशक एसएस राजमौली की अगली पीरियड ड्रामा फिल्म ‘रौद्रम, रणं, रुधिरं’ रिलीज़ होने के लिए तैयार है, इस फिल्म को आधिकारिक तौर पर ‘आरआरआर’ (RRR) नाम दिया गया है।
1920 के दशक की पृष्ठभूमि पर निर्मित ‘आरआरआर’ फिल्म को आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ और ‘कोमाराम भीम’ के जीवन पर आधारित एक काल्पनिक कहानी बताया जा रहा है।
‘अल्लूरी सीताराम राजू’ के बारे में:
वर्ष 1922 में, भारतीय क्रांतिकारी ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ (Alluri Sitaram Raju) ने मद्रास वन अधिनियम, 1882 को लागू किए जाने पर ब्रिटिश राज के खिलाफ ‘रम्पा विद्रोह’ (Rampa Rebellion) का नेतृत्व किया था। इस कानून के तहत आदिवासियों की उनके ही वनों में मुक्त आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे।
- इस अधिनियम के लागू होने की वजह से, आदिवासी समुदाय ‘पारंपरिक पोडु कृषि पद्धति’ के तहत खेती नहीं कर पा रहे थे। ‘पोडु कृषि पद्धति’ (Podu agricultural system) में ‘झूम खेती’ शामिल होती है।
- इस सशस्त्र संघर्ष का अंत वर्ष 1924 में एक हिंसक कारवाई के साथ हुआ, जिसमे ‘सीताराम राजू’ को ब्रिटिश सिपाहियों के पकड़ कर पेड़ से बांध दिया, और एक फायरिंग दस्ते द्वारा उसे गोली मार दी गई।
- ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ को वीरता के लिए उन्हें ‘मान्यम वीरुडु’ (Manyam Veerudu), या ‘जंगल के नायक’ की उपाधि दी गयी है।
‘कोमाराम भीम’ (Komaram Bheem) के बारे में:
- कोमाराम भीम (कोमुरम भीम) का जन्म वर्ष 1901 में तेलंगाना के आदिलाबाद जिले में ‘गोंड समुदाय’ में हुआ था, और वह ‘चंदा’ और ‘बल्लालपुर’ रियासतों के जंगलों में बसी आबादी के बीच पले-बढ़े थे।
- युवावस्था में ‘कोमाराम भीम’ जेल से भागकर असम के एक चाय बागान में काम करने चले गए। यहां, उन्होंने ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ के नेतृत्व में जारी विद्रोह के बारे में सुना, और अपनी गोंड जनजाति की रक्षा हेतु विद्रोह में कूद पड़े।
रंपा (रम्पा) विद्रोह:
वर्ष 1922 का ‘रम्पा विद्रोह’, जिसे ‘मान्यम विद्रोह’ (Manyam Rebellion) के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश भारत के अधीन ‘मद्रास प्रेसीडेंसी’ की गोदावरी शाखा में ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ के नेतृत्व में एक शुरू किया गया आदिवासी विद्रोह था। यह विद्रोह अगस्त 1922 में शुरू हुआ और मई 1924 में ‘राजू’ को कैद करने और उसकी हत्या किए जाने तक जारी रहा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ब्रिटिश राज के दौरान, देश भर में करीब 40 प्रमुख आदिवासी विद्रोह हुए थे, जिनमें से पहला विद्रोह 1774-79 में, छत्तीसगढ़ के बस्तर में ‘हाल्बा जनजाति’ द्वारा ‘डोंगर’ में कंपनी शासन के खिलाफ विद्रोह किया गया था?
प्रीलिम्स लिंक:
- रम्पा विद्रोह के बारे में
- अल्लूरी सीताराम राजू
- कोमाराम भीम
- मान्यम विद्रोह
मेंस लिंक:
ताम्पा विद्रोह (Tampa Rebellion) के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।
कॉलेजियम प्रणाली
संदर्भ:
हाल ही में सरकार ने कहा है, कि जजों की नियुक्ति के लिए ‘कॉलेजियम सिस्टम’ (Collegium System) को बदलने के लिए न्यायपालिका के अंदर से, और सांसदों के द्वारा मांग की जा रही है।
‘कॉलेजियम प्रणाली’ में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए ‘प्रक्रिया का एक मसौदा ज्ञापन’ सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत किया जा चुका है, जो अदालत में अभी लंबित है।
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्तियां, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के उपबंध (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।
- सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त किए जाने हेतु नामों की सिफारिश की जाती है।
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने हेतु अहर्ता:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति हेतु पात्रता से संबंधित मानदंडों का उल्लेख किया गया है।
- उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है।
- आयु की दृष्टि से, व्यक्ति की आयु 65 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- व्यक्ति को किसी एक या एक से अधिक उच्च न्यायालय (निरंतर) के न्यायाधीश के रूप में न्यूनतम पांच साल तक सेवा का अनुभव या उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में न्यूनतम 10 वर्ष का अनुभव या प्रतिष्ठित न्यायविद होना चाहिए।
‘कॉलेजियम प्रणाली’:
‘कॉलेजियम प्रणाली’ (Collegium System), न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण संबंधी एक पद्धति है, जो संसद के किसी अधिनियम अथवा संविधान के किसी प्रावधान द्वारा गठित होने के बजाय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जाती है, और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम के अध्यक्ष संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते हैं और इसमें संबंधित अदालत के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
क्या कॉलेजियम द्वारा की गयी सिफारिशें अंतिम और बाध्यकारी होती है?
कॉलेजियम द्वारा अपनी अंतिम रूप से तैयार सिफारिशों को अनुमोदन के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेजी जाती हैं। राष्ट्रपति के लिए इन सिफारिशों को स्वीकार करने अथवा अस्वीकार करने की शक्ति प्राप्त होती है। यदि राष्ट्रपति द्वारा इन सिफारिशों को खारिज कर दिया जाता है, तो इनके लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज दिया जाता है। किंतु, यदि कॉलेजियम द्वारा राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश दोबारा भेजी जाती हैं, तो राष्ट्रपति उन सिफारिशों पर स्वीकृति देने के लिए बाध्य होता है।
कॉलेजियम पद्धति के खिलाफ आम आलोचना:
- अपारदर्शिता और पारदर्शिता की कमी
- भाई-भतीजावाद की गुंजाइश
- सार्वजनिक विवादों में फंसना
- कई प्रतिभाशाली कनिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं को अनदेखा किया जाता है।
आवश्यक सुधार:
- उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु, अधिमान्य रूप से एक स्वतंत्र व्यापक-आधार सहित संवैधानिक निकाय द्वारा क्रियान्वयित एक पारदर्शी और भागीदारी प्रक्रिया होनी चाहिए। इस प्रक्रिया में न्यायिक विशिष्टता की बजाय न्यायिक प्रधानता की गारंटी दी जानी चाहिए।
- न्यायाधीशों का चयन करते समय स्वतंत्रता की सुनिश्चितता, विविधता का प्रतिबिंबन, पेशेवर क्षमता और सत्यनिष्ठा का प्रदर्शन होना चाहिए।
- एक निश्चित संख्या में रिक्तियों को भरने के लिए आवश्यक न्यायाधीशों का चयन करने के बजाय, कॉलेजियम को वरीयता और अन्य वैध मानदंडों के क्रम में राष्ट्रपति को नियुक्ति हेतु संभावित नामों का एक पैनल प्रस्तुत करना चाहिए।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ (NJAC) विधेयक के बारे में जानते हैं? इस विधेयक को वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘अधिकारातीत’ (Ultra Vires) अर्थात, ‘संसद के अधिकार-क्षेत्र से बाहर’ घोषित कर दिया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- कॉलेजियम प्रणाली’ क्या है?
- सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
- उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को किस प्रकार नियुक्त और हटाया जाता है?
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेंस लिंक:
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
विशेषाधिकार प्रस्ताव
संदर्भ:
हाल ही में तृणमूल कांग्रेस पार्टी के दो सांसदों और कांग्रेस पार्टी के तीन सांसदों ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राज्यसभा सदस्य ‘रंजन गोगोई’ के खिलाफ ‘विशेषाधिकार उल्लंघन प्रस्ताव’ (Privilege Motion) पेश किया है। श्री रंजन गोगोई ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, कि “उन्होंने जब उनका मन हुआ तब सदन में भाग लिया”।
मार्च 2020 में सदन में मनोनीत किए जाने होने के बाद से, श्री गोगोई सदन की कार्यवाही में केवल छह बार शामिल हुए हैं।
संबंधित नियम:
नियमों के अनुसार, प्रत्येक सदस्य को ‘सत्र के दौरान’ कम से कम एक दिन उपस्थित होना आवश्यक होता है और यदि वह सदन की कारवाई में शामिल नहीं होते है, तो उसे छुट्टी के लिए आवेदन करना होगा, जिस पर सदन की स्वीकृति आवश्यक होती है।
संबंधित प्रकरण:
हाल ही में, एक न्यूज़ चैनल ‘एनडीटीवी’ को दिए गए एक साक्षात्कार के दौरान, रंजन गोगोई से संसद में उनकी उपस्थिति के बारे में पूछा गया था। जिसके जबाब में, पूर्व सीजेआई ने ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘बैठने की व्यवस्था’ में कमी के प्रति असुविधा और ‘कोविड-प्रतिबंधों’ का हवाला दिया था।
‘विशेषाधिकार प्रस्ताव’ में कहा गया है, कि संसद सदस्य के यह बयान सदन की गरिमा का उल्लंघन करते हैं और उसे अनदेखा करते है।
‘संसदीय विशेषाधिकार’ क्या होते हैं?
संसदीय विशेषाधिकार (Parliamentary Privileges), संसद सदस्यों को, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियां होते हैं, ताकि वे “अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन” कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये हैं: संसद में वाक्-स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
- संविधान में विनिर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान तथा इसके आरंभ होने से चालीस दिन पूर्व और इसकी समाप्ति के चालीस दिन पश्चात सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों की गिरफ्तारी और उन्हें निरुद्ध किए जाने से स्वतंत्रता का उपबंध किया गया है।
विशेषाधिकार उल्लंघन के खिलाफ प्रस्ताव:
सांसदों को प्राप्त किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करने पर, इस अपराध को विशेषाधिकार हनन कहा जाता है, और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय होता है।
- किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा ‘विशेषाधिकार हनन’ के दोषी व्यक्ति के खिलाफ एक प्रस्ताव के रूप में एक सूचना प्रस्तुत की जा सकती है।
लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा सभापति की भूमिका:
विशेषाधिकार प्रस्ताव की जांच के लिए, लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा सभापति, पहला स्तर होता है।
- लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा सभापति, विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकते हैं या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति के लिए संदर्भित कर सकते हैं।
- यदि लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा सभापति, संगत नियमों के तहत प्रस्ताव पर सहमति देते हैं, तो संबंधित सदस्य को प्रस्ताव के संदर्भ में एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।
प्रयोज्यता:
- संविधान में, उन सभी व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किए गए है, जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार हैं। इन सदस्यों में भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
- हालांकि, संसद का अभिन्न अंग होने बावजूद, राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। राष्ट्रपति के लिए संविधान के अनुच्छेद 361 में विशेषाधिकारों का प्रावधान किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या ‘संसदीय विशेषाधिकारों’ को किसी कानून के तहत परिभाषित किया गया हैं? इस बारे में जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- संविधान के कौन से प्रावधान विधायिका के विशेषाधिकारों की रक्षा करते हैं?
- विधायिका के विशेषाधिकार के कथित उल्लंघन के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?
- संसद और राज्य विधानमंडलों में विशेषाधिकार समितियों की संरचना और कार्य
- विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए क्या सजा है?
- क्या राज्य विधानसभाओं के विशेषाधिकार हनन से जुड़े मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं?
मेंस लिंक:
विधायिका के विशेषाधिकारों से आप क्या समझते हैं? भारत में समय-समय पर देखी जाने वाली विधायिका विशेषाधिकारों की समस्या पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि
संदर्भ:
केंद्र सरकार द्वारा, हाल ही में, ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on Law of Seas – UNCLOS) के प्रति अंपने समर्थन को दोहराते हुए संसद को सूचित किया कि, भारत इस ‘अंतरराष्ट्रीय कानून’ में निहित एक स्वतंत्र, खुली और नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और किसी प्रकार के दबाव के प्रति अविचलित है।
हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में समुद्री हितों की रक्षा और सुरक्षा को सशक्त करने हेतु भारत द्वारा किए गए प्रयास:
- भारत, नौ-परिवहन और समुद्री क्षेत्र के ऊपर से उड़ानों / ओवरफ्लाइट (overflight), और विशेष रूप से UNCLOS 1982 में परिलक्षित ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों’ के आधार पर अबाधित वाणिज्य का समर्थन करता है।
- ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ ( UNCLOS) का एक सदस्य देश होने के नाते, भारत ‘समुद्रों और महासागरों में अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था’ का निर्माण करने वाले UNCLOS का पूरा सम्मान करता है, और इसे बढ़ावा देता है।
- भारत ने ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (Security and Growth for All in the Region – SAGAR) के सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप क्षेत्रीय भागीदारों के साथ समुद्री सहयोग विकसित किया है।
- समुद्री हितों की रक्षा और सुरक्षा हेतु उठाए गए कदमों में, समुद्री प्रक्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने, समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने और उत्पन्न होने वाली आकस्मिकताओं का समाधान करने हेतु नौसेना के जहाजों और विमानों की ‘मिशन आधारित तैनाती’ शामिल है।
‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के बारे में:
संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया गया था, किंतु यह नवंबर 1994 से प्रभाव में आया।
- ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS) के द्वारा प्रादेशिक सागर (Territorial Sea) और सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone), महाद्वीपीय शेल्फ, खुले सागर (High Seas), ‘खुले सागर में मत्स्यन एवं जीवित संसाधनों के संरक्षण’ से संबंधित, अप्रैल, 1958 में हस्ताक्षरित चार ‘जिनेवा संधियों’ को प्रतिस्थापित किया गया था।
- वर्तमान में, यह संधि, जहाज़ी और समुद्री गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा बन गया है।
- इसके लिए ‘समुद्री क़ानून’ (Law of the Sea) के रूप में भी जाना जाता है, और यह समुद्री क्षेत्र को पांच मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है, अर्थात्- आंतरिक जल, प्रादेशिक सागर, सन्निहित क्षेत्र, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और खुला सागर।
- UNCLOS, समुद्री क्षेत्रों में किसी देश के अधिकार क्षेत्र हेतु एक रूपरेखा निर्धारित करने वाला एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता है। इसके तहत, विभिन्न समुद्री क्षेत्रों के लिए अलग कानूनी-दर्जा प्रदान किया गया है।
UNCLOS के द्वारा ‘अंतरराष्ट्रीय मामलों’ पर तीन नए संस्थान गठित किए गए हैं:
- समुद्री कानूनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (International Tribunal for the Law of the Sea)
- अंतर्राष्ट्रीय सागर-नितल प्राधिकरण (International Seabed Authority)
- महाद्वीपीय शेल्फ सीमा आयोग (Commission on the Limits of the Continental Shelf)
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप खुले सागर से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधि के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- महाद्वीपीय शेल्फ के बारे में
- अंतर्राष्ट्रीय सागर-नितल प्राधिकरण के बारे में
- UNCLOS के बारे में
- EEZ के बारे में
- स्थायी मध्यस्थता अदालत (PCA) क्या है?
- दक्षिण चीन सागर विवाद के बारे में
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण
संदर्भ:
भारत की खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) नवंबर में लगातार दूसरे महीने में बढ़ती हुई 4.91% तक पहुंच गई है, अक्टूबर में यह 4.48% दर्ज की गयी थी।
नवंबर माह में, भारत के शहरी हिस्सों में, कीमतों में 5.54% की तेज वृद्धि और सब्जियों की कीमतों में, पिछले महीने की तुलना में, 7.45% की बढ़ोतरी हुई है।
संबंधित चिंताएं:
इससे पता चलता है कि ‘निवेश और वस्तुओं की लागत में वृद्धि’ होने की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव बना रहता है, यह अक्टूबर माह में, थोक मूल्य मुद्रास्फीति के पांच महीने के उच्च स्तर 12.54% तक पहुचने से स्पष्ट होता है। ‘खुदरा मुद्रास्फीति’ में लगातार हो रही वृद्धि के कारण आरबीआई द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति लक्ष्य प्रभावित होंगे।
‘मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण’ क्या है?
यह एक निर्दिष्ट वार्षिक मुद्रास्फीति दर प्राप्त करने हेतु मौद्रिक नीति के संयोजन पर आधारित केंद्रीय बैंक की एक नीति होती है।
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting) का सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित होता है कि दीर्घकालीन आर्थिक वृद्धि, सर्वोत्तम रूप से, कीमतों की स्थिरता बनाए रखने के माध्यम से हासिल की जा सकती है तथा ‘कीमतों की स्थिरता’, मुद्रास्फीति नियंत्रित करके हासिल की जा सकती है।
मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण फ्रेमवर्क:
वर्ष 2016 में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अधिनियम, 1934 में संशोधन के बाद से भारत में एक ‘लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण फ्रेमवर्क’ (Flexible Inflation Targeting Framework) लागू है।
भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्य कौन निर्धारित करता है?
संशोधित भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, भारत सरकार, प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार, रिजर्व बैंक के परामर्श से मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करती है।
वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य:
केंद्र सरकार द्वारा, 5 अगस्त, 2016 से 31 मार्च, 2021 की अवधि के लिए 4 प्रतिशत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति को अधिसूचित किया गया है। इसके साथ ही, 6 प्रतिशत की ऊपरी गुंजाइश सीमा तथा 2 प्रतिशत की निचली गुंजाइश सीमा निर्धारित की गयी है।
प्रीलिम्स लिंक:
- वर्तमान मुद्रास्फीति लक्ष्य क्या है?
- मुद्रास्फीति लक्ष्य कौन निर्धारित करता है?
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) क्या है?
- कार्य
- संरचना
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
लॉग4शेल
हाल ही में, इंटरनेट पर ‘लॉग4शेल’ (Log4Shell) नामक एक भेद्यता (vulnerability) का पता चला है, इसे अब तक खोजे गए सबसे खराब ‘साइबर सुरक्षा दोषों’ में से एक बताया जा रहा है।
- यह भेद्यता, एक ओपन-सोर्स लॉगिंग लाइब्रेरी पर आधारित है जिसका उपयोग उद्यमों और यहां तक कि सरकारी एजेंसियों द्वारा अधिकांश अनुप्रयोगों / एप्लिकेशंस में किया जाता है।
- यह कमजोरी, हैकर्स को किसी भी एप्लिकेशन तक पहुंच प्रदान करती है, और संभावित रूप से उन्हें डिवाइस या सर्वर पर हानिकारक सॉफ़्टवेयर इंस्टाल करने का अवसर दे सकती है।
तब्लीगी और दा’वाह
हाल ही में, सऊदी अरब ने ‘तब्लीगी’ और दा’वाह समूह (Da’wah group) को ‘समाज के लिए खतरा’ बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। दा’वाह समूह को ‘अल अहबाब’ (Al Ahbab) के नाम से भी जाना जाता है।
बाल्टिक सागर
बाल्टिक सागर (Baltic Sea) उत्तरी यूरोप में अवस्थित है और स्वीडन (स्कैंडिनेवियाई प्रायद्वीप का एक हिस्सा), फिनलैंड, रूस, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड, जर्मनी और डेनमार्क और इसके कई द्वीपों से घिरा है।
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