[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 07 December 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनII

1. NDPS विधेयक, 2021

2. भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन

 

सामान्य अध्ययन-III

1. CAMPA फंड

2. ‘ग्रेटर टिपरालैंड’

3. सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक

2. व्यापार करने की स्वतंत्रता

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

NDPS विधेयक, 2021


संदर्भ:

हाल ही में, लोकसभा में ‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (संशोधन) विधेयक’ 2021 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (Amendment) Bill, 2021) / ‘NDPS विधेयक’ पेश किया गया था।

यह संशोधन विधेयक, इसी वर्ष 30 सितंबर को प्रख्यापित एक अध्यादेश को प्रतिस्थापित करेगा।

विधेयक का उद्देश्य:

सरकार द्वारा यह विधेयक, ‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (एनडीपीएस) की धारा 27 के एक प्रावधान में पाई गयी त्रुटि को सुधारने के लिए पेश किया गया है। इस त्रुटि की वजह से अधिनियम की धारा 27 के – अवैध तस्करी के लिए वित्तपोषण करने वालों को दंडित करने संबंधी प्रावधान अप्रभावी हो जाता था।

  • वर्ष 2014 में चिकित्सा संबंधी जरूरतों के लिए ’स्वापक औषधियों’ / ‘मादक दवाओं’ के उपयोग को आसान बनाने के लिए ‘अधिनियम’ में संशोधन किया गया था, किंतु दंड प्रावधान में तदनुसार संशोधन नहीं किए जाने से यह ‘त्रुटि’ उत्पन्न हो गयी थी।
  • जून 2021 में, त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने कानून का निरीक्षण करने पर इस त्रुटि को चिह्नित किया और केंद्रीय गृह मंत्रालय को अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों में संशोधन करने का निर्देश दिया।

इस संशोधन की आवश्यकता:

अधिनयम के प्रारूप में इस त्रुटि का पता तब चला, जब एक आरोपी ने त्रिपुरा में एक विशेष अदालत में अपील दायर करते हुए कहा कि, उस पर अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि ‘धारा 27 A’ एक ‘खाली सूची  से संबंधित है। त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने, बाद में केंद्र सरकार को कानून में संशोधन करने का निर्देश दिया।

Current affairs

एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27 में त्रुटि:

’स्वापक औषधियों’ (Narcotic Drugs) तक बेहतर चिकित्सा पहुंच की अनुमति दिए जाने के लिए वर्ष 2014 में ‘स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम’ में एक संशोधन किया गया, जिसके तहत “आवश्यक स्वापक औषधियों” के परिवहन और लाइसेंस में राज्य द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया गया था। इसी संसोधन के मसौदे में एक विसंगति भी तैयार हो गयी थी।

  • 2014 के संशोधन से पहले, अधिनियम की धारा 2 के खंड (viiia) में उप-खंड (i) से (v) शामिल थे, जिसमें ‘अवैध यातायात’ शब्द को परिभाषित किया गया था।
  • इस खंड को ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (संशोधन) अधिनियम’, 2014 द्वारा खंड (viiib) के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया गया था, क्योंकि “आवश्यक स्वापक औषधियों” को परिभाषित करते हुए अधिनियम की धारा 2 में एक नया खंड (viiiia) जोड़ा गया था। हालांकि, अनजाने में इस परिणामी परिवर्तन के अनुरूप ‘एनडीपीएस अधिनियम’ की धारा 27A को संसोधित नहीं किया गया था।

विधेयक को लेकर आलोचनाएं:

  • कुछ विशेषज्ञों का कहना है, कि विधेयक में, संबंधित प्रावधान वर्ष 2014 से होने वाले अपराधों पर ‘पूर्वव्यापी प्रभाव’ से लागू किए जाने का प्रस्ताव किया गया है, अतः यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • यह क़ानून, अनुच्छेद 21 में प्रद्दत मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है, क्योंकि किसी व्यक्ति को केवल उसी अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है, जिसके लिए अपराध किए जाने के समय कानून मौजूद है।

current affairs

 

‘स्वापक ओषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम’ / एनडीपीएस अधिनियम:

‘एनडीपीएस अधिनियम’ (NDPS Act) के तहत, किसी व्यक्ति को, किसी भी ‘स्वापक औषधि’ (narcotic Drug) या ‘मनःप्रभावी पदार्थ’ (Psychotropic Substance) के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन करने, भंडारण करने और/या उपभोग करने से प्रतिबंधित किया गया है।

  • NDPS एक्ट, 1985 में अब तक तीन बार- वर्ष 1988, 2001 और 2014 में संशोधन किए जा चुके हैं।
  • यह अधिनियम पूरे भारत में लागू है, और यह भारत के बाहर के सभी भारतीय नागरिकों तथा भारत में पंजीकृत जहाजों और विमानों पर सवार सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है।

मादक पदार्थों की तस्करी की समस्या से निपटने हेतु भारत सरकार की नीतियाँ और पहलें:

  1. विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर, देश के 272 जिलों में नशा मुक्त भारत अभियान या ड्रग्स-मुक्त भारत अभियान को 15 अगस्त 2020 को हरी झंडी दिखाई गई।
  2. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018-2025 की अवधि के लिए ‘नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना’ (National Action Plan for Drug Demand Reduction- NAPDDR) का कार्यान्वयन शुरू किया गया है।
  3. सरकार द्वारा नवंबर, 2016 में नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन किया गया है।
  4. सरकार द्वारा नारकोटिक ड्रग्स संबंधी अवैध व्यापार, व्यसनी / नशेड़ियों के पुनर्वास, और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ जनता को शिक्षित करने आदि में होने वाले व्यय को पूरा करने हेतु “नशीली दवाओं के दुरुपयोग नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कोष” (National Fund for Control of Drug Abuse) नामक एक कोष का गठन किया गया है ।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

7 दिसंबर, 1987 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 26 जून के लिए नशीली दवाओं के सेवन और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में चुना गया था। इसे क्यों चुना गया? इसके उद्देश्य क्या थे?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. UNODC के बारे में
  2. “नारकोटिक्स नियंत्रण के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता” की योजना का अवलोकन
  3. नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) की संरचना
  4. नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कोष
  5. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के बारे में
  6. नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस और इस वर्ष की थीम

मेंस लिंक:

भारत, मादक पदार्थों की तस्करी की चपेट में है। इसके कारणों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। नशीली दवाओं की समस्या से निपटने में सरकार की भूमिका पर भी टिप्पणी करिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन


संदर्भ:

हाल ही में, भारत और रूस के 21वें वार्षिक शिखर सम्मेलन’ (India-Russia summit) का आयोजन किया गया था। इस शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भाग लिया।

  • इस के साथ ही दोनों देशों के मध्य पहली बार 2+2 मंत्रिस्तरीय बैठक भी आयोजित की गई।
  • शिखर सम्मलेन में ‘रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष अन्वेषण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारी इंजीनियरिंग, व्यापार और निवेश आदि क्षेत्रों में 28 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

प्रमुख बिंदु:

  1. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने वर्ष 2022 में 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए पीएम मोदी को रूस आने का निमंत्रण दिया।
  2. दोनों नेताओं ने, कोविड द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, दोनों देशों के मध्य ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ में निरंतर प्रगति पर संतोष व्यक्त किया।
  3. शिखर बैठक में ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ (International North South Transport Corridor– INSTC) और प्रस्तावित ‘चेन्नई-व्लादिवोस्तोक ईस्टर्न मैरीटाइम कॉरिडोर’ (Chennai-Vladivostok Eastern Maritime Corridor) के माध्यम से कनेक्टिविटी की भूमिका पर चर्चा हुई।
  4. दोनों नेताओं ने रूस के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से रूसी सुदूर पूर्व और भारतीय राज्यों के मध्य अधिक अंतर-क्षेत्रीय सहयोग की आशा वयक्त की।
  5. दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमत व्यक्त की, कि अफगानिस्तान के संदर्भ में दोनों देशों का दृष्टिकोण और चिंताए एक समान है, और दोनों ने अफगानिस्तान पर परामर्श और सहयोग के लिए NSA स्तर पर तैयार किए गए द्विपक्षीय रोडमैप की सराहना की।

शिखर बैठक का महत्व:

भारत और रूस के मध्य ‘शांति, मित्रता और सहयोग संधि, 1971’ (The 1971 Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) को 5 दशक तथा ‘सामरिक साझेदारी घोषणा’ (Declaration on Strategic Partnership) के 2 दशक पूरे हो चुके हैं। यह पारस्परिक विश्वास, एक-दूसरे के मूल राष्ट्रीय हितों के लिए सम्मान और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर दृष्टिकोणों की समानता सहित दीर्घकालीन और समय के साथ परखे जा चुके ‘भारत-रूस संबंधों’ का प्रतीक है।

2+2 वार्ता:

‘2+2 वार्ता’ (2+2 dialogue), दो देशों के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच आयोजित की जाती है। आम तौर पर इसका उद्देश्य रक्षा, सुरक्षा और खुफिया तंत्र के अधिक समेकन सहित द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक रूप से प्रगाढ़ करने हेतु एक तंत्र का निर्माण करने के लिए किया जाता है।

भारत के लिए रूस का महत्त्व:

  • भले ही भारत अपने रक्षा व्यापार भागीदारों में विविधता ला रहा है, किंतु भारतीय रक्षा सूची में लगभग 70 प्रतिशत की भागीदारी के साथ रूस अभी भी महत्वपूर्ण बना हुआ है।
  • रूस, भारत का एकमात्र ऐसा रक्षा भागीदार है, जो अभी भी भारत को परमाणु पनडुब्बी जैसी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियां देने के लिए तैयार है।
  • रूस और चीन में मध्य उभरते हुए सामरिक संबंधों का भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण परिणाम हो सकते हैं।
  • रूस ने विस्तारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत के लिए अपने “दृढ़ समर्थन” को पुनः दोहराया है।
  • रूस ने ‘परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह’ में भारत की सदस्यता के लिए अपना समर्थन भी व्यक्त किया है।
  • आतंकवाद, अफगानिस्तान, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष का समर्थन करने में दोनों देशों के पारस्परिक लाभ हैं; SCO, BRICS, G-20 और ASEAN जैसे संगठन।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘पारस्परिक लॉजिस्टिक्स आदान-प्रदान समझौता’ (Reciprocal Exchange of Logistics Agreement – RELOS) के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा’ (INSTC)
  2. RELOS समझौता
  3. CAATSA समझौता
  4. आसियान
  5. ‘शांति, मित्रता और सहयोग संधि, 1971’
  6. सामरिक साझेदारी घोषणा

मेंस लिंक:

भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

 CAMPA फंड


संदर्भ:

‘प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि एवं प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण’ (Compensatory Afforestation Fund and Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority) द्वारा अब तक 32 राज्यों को ₹48,606 करोड़ की राशि वितरित की जा चुकी है।

CAMPA फंड के तहत, छत्तीसगढ़ और ओडिशा को अधिकतम राशि हस्तांतरित की गई है, जिसमें प्रत्येक राज्य को लगभग 5,700 करोड़ रुपये दिए गए है। इनके बाद झारखंड और महाराष्ट्र का स्थान आता है, जिनके लिए प्रत्येक को लगभग 3,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं।

CAMPA फंड क्या हैं?

CAMPA फंड, उद्योगों द्वारा अपनी व्यावसायिक योजनाओं के लिए वन भूमि को नष्ट करने पर पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में लगभग एक दशक की अवधि में एकत्र की गई 54,000 करोड़ रुपए की राशि, ‘प्रतिकरात्मक वनीकरण निधि’ (Compensatory Afforestation Fund – CAF) के दीर्घकालीन लंबित बकाया, से निर्मित ‘कोष’ है।

CAMPA के बारे में:

‘प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि अधिनियम’, 2016 (Compensatory Afforestation Fund Act, 2016) या सीएएफ अधिनियम 2016 (The CAF Act 2016) के अंतर्गत ‘CAMPA फंड’ को निष्पादित करने के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण – ‘प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण’ (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning AuthorityCAMPA) की स्थापना की गयी है।

हालांकि, पिछले अगस्त तक इस फंड के प्रबंधन को नियंत्रित करने संबंधी नियमों को अंतिम रूप नहीं दिया गया था।

‘प्रतिकरात्मक वनरोपण’ क्या है?

‘प्रतिकरात्मक वनरोपण’ (Compensatory Afforestation) का अर्थ है, कि हर बार जब वन भूमि का खनन या उद्योग जैसे गैर-वन उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है, तो उपयोगकर्ता एजेंसी को इस वन-भूमि के बराबर क्षेत्रफल में गैर-वन भूमि में वनरोपण के लिए भुगतान करना होता है, या जब इसके लिए गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं होती है, तो अवक्रमित वन भूमि क्षेत्र के दोगुने का भुगतान करना होता है।

निधि वितरण:

नियमों के अनुसार, ‘प्रतिकरात्मक वनीकरण निधि’ (CAF) की 90% राशि राज्यों को वितरित की जाती है तथा 10% राशि केंद्र अपने पास रखता है।

इस राशि का उपयोग जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार, प्राकृतिक रूप से उत्पत्ति में सहायता, वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों से गांवों को हटाकर उनका पुनर्वासन, मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन, प्रशिक्षण और जागरूकता, लकड़ी बचाने वाले उपकरणों की आपूर्ति और संबद्ध गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण’ (CAMPA)
  2. ‘प्रतिकरात्मक वनीकरण निधि’ (CAF)
  3. CAF के तहत फंडिंग

मेंस लिंक:

‘प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण’ और प्रतिकरात्मक वनरोपण के महत्व पर चर्चा  कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।

‘ग्रेटर टिपरालैंड’


संदर्भ:

हाल ही में, राज्य में हुई हत्याओं के बाद, त्रिपुरा में कई आदिवासी संगठनों ने इस क्षेत्र में देशी समुदायों के लिए ‘एक अलग राज्य की मांग’ को आगे बढ़ाने के लिए हाथ मिलाया है। इनका तर्क है, कि राज्य में देशी समुदायों का “जीवन और अस्तित्व” दांव पर लग चुका है।

इनकी मांग:

आदिवासी संगठन, उत्तर-पूर्वी राज्य के देशी समुदायों के ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ (Greater Tipraland) नाम से एक अलग राज्य बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। इनकी मांग है, कि केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के तहत देशी समुदायों के लिए एक अलग राज्य गठित करे।

current affairs

 

‘ग्रेटर टिपरालैंड’ क्या है?

  • ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ (Greater Tipraland), मूल रूप से एक सत्तारूढ़ सहयोगी जनजातीय दल- इंडीजनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) द्वारा ‘टिपरालैंड’ की मांग का विस्तार है, जिसके तहत त्रिपुरा के आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
  • इस नई मांग में, ‘त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद’ (TTAADC) के बाहर स्थानीय क्षेत्रों या गाँवों में रहने वाले प्रत्येक आदिवासी को प्रस्तावित मॉडल के अंतर्गत शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • हालांकि, यह विचार केवल त्रिपुरा के आदिवासी परिषद क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारत के विभिन्न राज्यों जैसे असम, मिजोरम आदि में निवास करने वाले, यहां तक ​​कि बंदरबन, चटगांव, खगराचारी तथा बांग्लादेश के अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले त्रिपुरियों के ‘टिपरासा’ (Tiprasa) को भी शामिल करने तक फैला हुआ है।

संबंधित प्रकरण:

क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का कहना है, कि त्रिपुरा में NRC को संशोधित करने की मांग अधूरी रहने और पिछले दिनों हुआ CAA का विरोध, ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ की मांग उठने का कारण है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि संविधान का अनुच्छेद 2 नए राज्यों को शामिल करने या गठन करने से संबंधित है?  इसके अनुसार, संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकती है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के बारे में।
  2. NRC के बारे में।
  3. CAA क्या है?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।

सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम


संदर्भ:

हाल ही में, नागालैंड में 14 नागरिकों की हत्या के बाद, मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने ‘सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम’ (Armed Forces (Special Powers) Act – AFSPA) को निरस्त करने की मांग की है।

  1. श्री रियो ने हर साल नागालैंड के लिए “अशांत क्षेत्र” टैग का विस्तार करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना भी की है।
  2. उन्होंने केंद्र सरकार का, इस “कठोर अधिनियम” की वजह से विश्व स्तर पर होने वाली भारत की आलोचना की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

संबंधित प्रकरण:

हाल ही में, नागालैंड में अपने गांव लौट रहे दिहाड़ी मजदूरों का एक समूह, 21 पैरा कमांडो यूनिट के जवानों द्वारा मार दिया गया था। बताया जाता है, कि सेना को इस क्षेत्र से NSCN(K) आतंकवादियों के गुजरने की सूचना मिली थी।

पृष्ठभूमि:

जून 2021 में, गृह मंत्रालय ने, पूरे नागालैंड राज्य को सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (Armed Forces (Special Powers) Act – AFSPA) के तहत अगले छह महीने के लिए लिए अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया है।

गृह मंत्रालय के अनुसार, संपूर्ण नागालैंड राज्य की सीमा के भीतर आने वाला क्षेत्र ऐसी अशांत और खतरनाक स्थिति में है जिससे वहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है।

AFSPA का तात्पर्य:

साधारण शब्दों में, सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) के तहत सशस्त्र बलों के लिए ‘अशांत क्षेत्रों’ में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति प्राप्त होती है।

सशस्त्र बलों को प्राप्त शक्तियां:

  • इसके तहत सशस्त्र बलों को किसी क्षेत्र में पाँच या अधिक व्यक्तियों के जमावड़े को प्रतिबंधित करने अधिकार होता है, इसके अलावा, इन्हें किसी व्यक्ति द्वारा कानून का उल्लंघन करने संबंधी शंका होने पर उचित चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग करने अथवा गोली चलाने की भी शक्ति प्राप्त होती है।
  • यदि उचित संदेह होने पर, सेना किसी व्यक्ति को बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है; बिना वारंट के किसी भी परिसर में प्रवेश और जांच कर सकती है, तथा आग्नेयास्त्र रखने पर प्रतिबंध लगा सकती है।
  • गिरफ्तार किए गए या हिरासत में लिए गए किसी भी व्यक्ति को एक रिपोर्ट तथा गिरफ्तारी के कारणों से संबधित विवरण के साथ निकटतम पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को सौंपाजा सकता है।

अशांत क्षेत्र’ और इसे घोषित करने की शक्ति

  • अशांत क्षेत्र (disturbed area) को सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) की धारा 3 के तहत अधिसूचना द्वारा घोषित किया जाता है। विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच मतभेद या विवाद के कारण किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जा सकता है।
  • केंद्र सरकार, या राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के पूरे या हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।

AFSPA अधिनियम की समीक्षा:

19 नवंबर, 2004 को केंद्र सरकार द्वारा उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा करने के लिए न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की गयी थी।

समिति ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 2005 में प्रस्तुत की, जिसमें निम्नलिखित सिफारिशें शामिल थीं:

  1. AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए और विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act), 1967 में उचित प्रावधान सम्मिलित किये जाने चाहिए;
  2. सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने के लिए विधिविरूद्ध क्रियाकलाप अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिए और
  3. सशस्त्र बलों को तैनात किए जाने वाले प्रत्येक जिले में शिकायत सेल स्थापित किए जाने चाहिए।

लोक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की 5 वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गयी है।

नागा हत्याओं से AFSPA के खतरों की ओर संकेत:

सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA), सशस्त्र बलों को हत्या करने का लाइसेंस देता है। और जब सशस्त्र बल, स्थानीय पुलिस को शामिल किए बगैर, जैसा कि लंबे समय से चल रहा है, इस तरह के शर्मनाक ऑपरेशन करते हैं, तो यह संदेश देता है कि केंद्र को नागालैंड में शांति प्रक्रिया की कोई परवाह नहीं है।

AFSPA के उपयोग के लिए दिशानिर्देश:

‘नागा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1997 के फैसले में AFSPA के उपयोग के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए गए है:

  • संविधान पीठ ने 1997 के फैसले में कहा है, कि AFSPA की धारा 4(a) के तहत घातक बल का उपयोग करने की शक्ति, केवल “कुछ परिस्थितियों” में ही प्रयुक्त की जानी चाहिए।
  • अदालत ने कहा कि “मृत्यु कारित करने की शक्ति, किसी अशांत क्षेत्र में सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव से संबंधित है और इसका निश्चित परिस्थितियों में ही प्रयोग किया जाना चाहिए”।
  • इन पूर्व-शर्तों में एक उच्च-स्तरीय प्राधिकरण द्वारा किसी क्षेत्र को “अशांत” करने की घोषणा शामिल है। संबंधित अधिकारी इस बात का निर्णय करेगा, कि सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर घातक बल प्रयोग करना “आवश्यक” है। लेकिन उसे घातक बल का प्रयोग करने से पहले “उचित चेतावनी” देनी होगी।
  • जिन व्यक्तियों के खिलाफ सशस्त्र बलों द्वारा कार्रवाई की जाने वाली हो, उनके द्वारा घोषित “अशांत क्षेत्र में कुछ समय के लिए लागू किसी भी कानून या व्यवस्था का उल्लंघन किया होन चाहिए”।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि पूर्वोत्तर में, असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग जिलों, और असम की सीमा से लगे राज्य के आठ पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में AFSPA लागू है?

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक

‘अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक’ (Bank For International Settlements – BIS), भारत सहित दुनिया भर के देशों का प्रतिनिधित्व करने वाला 62 सदस्यीय, केंद्रीय बैंकों के स्वामित्व वाला एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन है।

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक’ (BIS), की स्थापना वर्ष 1930 में जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, इटली, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका और स्विटजरलैंड के मध्य एक अंतर सरकारी समझौते के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय बासेल (Basel), स्विटजरलैंड में स्थित है।
  • यह अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देता है और केंद्रीय बैंकों के लिए एक बैंक के रूप में कार्य करता है।
  • यह अपनी बैठकों, कार्यक्रमों और बेसल प्रक्रिया के माध्यम से- वैश्विक वित्तीय स्थिरता का अनुसरण करने वाले अंतरराष्ट्रीय समूहों की मेजबानी करना और उनकी बातचीत को सुविधाजनक बनाना- जैसे अपने कार्य करता है।

 

व्यापार करने की स्वतंत्रता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान ‘पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट’ (PPE) किट के निर्यात पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा लगाया गया प्रतिबंध का उद्देश्य ‘वैध’ था, जोकि ‘व्यापार करने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार’ की अवहेलना करने के लिए पर्याप्त आधार रखता है।

  • पृष्ठभूमि: आरबीआई ने अदालत के लिए, देश में महामारी की स्थिति और पीपीई उत्पादों के पर्याप्त स्टॉक को सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में विस्तार से बताया गया था।
  • ‘व्यवसाय और व्यापार की स्वतंत्रता’ का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है।

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