[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 06 December 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनI

1. सहायक प्रजनन तकनीक एवं सरोगेसी विधेयक

 

सामान्य अध्ययन-II

1. सांसदों के प्रश्नों को स्वीकृत एवं अस्वीकृत किए जाने संबंधी प्रक्रिया

2. दलबदल वरोधी कानून

3. उत्तराखंड का चार धाम अधिनियम

4. ‘देशद्रोह’ की सीमाओं को परिभाषित करने का सही समय: उच्चतम न्यायालय

5. हांगकांग का प्रशासन

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. क्यह्युटिसुका सचिकारुम

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

सहायक प्रजनन तकनीक एवं सरोगेसी विधेयक


संदर्भ:

हाल ही में, लोकसभा द्वारा ‘सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक’, 2020 (Assisted Reproductive Technology Regulation Bill, 2020) पारित कर दिया गया है। विधेयक में, देश में ‘सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology – ART) सेवाओं के सुरक्षित और नीतिपरक तौर-तरीकों को अपनाने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं।

विधेयक का अवलोकन एवं इसके प्रमुख बिंदु:

  1. विधेयक में, ‘इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (IVF) क्लीनिक में काम करने वाले व्यक्तियों के लिए एक आचार संहिता बनाने और लागू करने हेतु एक राष्ट्रीय बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है।
  2. इसमें, ‘सहायक प्रजनन तकनीक’ (ART) क्लीनिकों और बैंकों द्वारा नियोजित किए जाने वाले विशेषज्ञों और भौतिक बुनियादी ढांचे, प्रयोगशाला, नैदानिक ​​उपकरण आदि के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किए गए हैं।
  3. विधेयक में, ART के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चे के लाभ हेतु ‘आरोपण’ (Implantation) से पहले भ्रूण के आनुवंशिक परीक्षण को अनिवार्य किया गया है।
  4. इसमें शुक्राणु (Sperm), अंडाणु (Oocytes) और भ्रूण (Embryos) के लिए अतिनिम्न-तापीय संरक्षण (Cryo-Preservation Processes) प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने हेतु प्रावधान किए गए हैं।
  5. विधेयक में, एक केंद्रीय डेटाबेस बनाए रखने और राष्ट्रीय बोर्ड को कामकाज में सहायता करने हेतु एक ‘राष्ट्रीय रजिस्ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण’ के गठन का भी प्रस्ताव किया गया है।
  6. इस विधेयक में ‘लिंग चयन, मानव भ्रूण या युग्मक की बिक्री और इस तरह के अन्य गैरकानूनी कार्यों के लिए एजेंसियों/रैकेट/संगठनों को चलाने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रस्ताव किया गया है।

इस संबंध में एक कानून की आवश्यकता:

संबंधित महिलाओं एवं बच्‍चों को शोषण से संरक्षण प्रदान करने हेतु ‘सहायक प्रजनन तकनीक’ (ART) सेवाओं को विनियमित करने की आवश्यकता है। वर्तमान में क्लीनकों के लिए ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद’ (ICMR) के साथ पंजीकरण कराना स्वैच्छिक है, जिसकी वजह से अधिकांश क्लीनिक पंजीकरण कराने की जहमत नहीं उठाते हैं, और बांझपन उपचार की पेशकश करते समय अस्पष्टता रखते हैं।

महत्व:

इस अधिनियम के लागू होने से, देश में ‘सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाएं’ विनियमित होंगी। जिसके परिणामस्वरूप, बांझ दंपति ‘एआरटी क्लीनिकों’ में नैतिक तौर-तरीकों के बारे में अधिक सुनिश्चित और आश्वस्त हो सकेंगे।

एआरटी के बारे में:

‘सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology – ART), में आमतौर पर इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF), इंट्रा-यूटेराइन इनसेमिनेशन (IUI), अंडाणु एवं शुक्राणु डोनेशन, अतिनिम्न-तापीय संरक्षण (Cryo-Preservation Processes) जैसी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं, इनके अलावा ‘सरोगेसी’ (Surrogacy) को भी इसमें शामिल किया जाता है।

निःसंतान होने के सामाजिक कलंक और गोद लेने की लंबी प्रक्रियाओं की वजह से भारत में ‘सहायक प्रजनन तकनीक (ART) की मांग में वृद्धि हुई है। अतः ART उद्योग में 10% की चक्रवृद्धि दर से वार्षिक वृद्धि होने की संभावना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

भारत में ‘सरोगेसी’ बनाम ART:

  • ‘सरोगेसी (नियमन) विधेयक’ (Surrogacy (Regulation) Bill), बांझपन की समस्या के निदान हेतु ‘स्थानापन्न मातृत्व’ अर्थात ‘सरोगेसी’ (Surrogacy) से संबंधित है, जिसमे एक तीसरा व्यक्ति, अर्थात एक महिला, सरोगेट मां के रूप में कार्य करती है। ‘सहायक प्रजनन तकनीक (ART) प्रक्रिया में, संतान के आकांक्षी दंपत्ति स्वयं इस उपचार का लाभ उठा सकते हैं और इसमें किसी तीसरे व्यक्ति की प्रायः जरूरत नहीं पड़ती है।
  • सरोगेसी की अनुमति, केवल भारतीय विवाहित दम्पति के लिए है। जबकि, एआरटी प्रक्रियाएं विवाहित दंपतियों, लिव-इन पार्टनर्स, सिंगल महिलाओं और विदेशियों के लिए भी खुली हैं।
  • वर्ष 2015 में जारी एक अधिसूचना के माध्यम से विदेशियों या OCI या PIO कार्डधारकों को भारत में सरोगेसी प्रक्रिया शुरू करने से प्रतिबंधित किया गया है, किंतु भारतीय नागरिकता रखने वाले NRI सरोगेसी का लाभ उठा सकते हैं। जबकि एआरटी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, विदेशी नागरिक, चिकित्सा पर्यटन के तहत भारत आ सकते हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा हेतु एक और महत्वपूर्ण विधेयक – सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2019 – 5 अगस्त, 2019 – को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था। विधेयक के कई पहलुओं पर विचार करने हेतु इसे एक प्रवर समिति को भेजा गया, जिसने एआरटी विधेयक को पहले लाये जाने की सिफारिश की थी, जिससे बाद में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 में, सभी उच्च तकनीकी और चिकित्सा पहलुओं को संबोधित किया जा सके।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विनियमन विधेयक’ के बारे में
  2. मुख्य विशेषताएं
  3. लाभ
  4. सरोगेसी बिल
  5. प्रमुख प्रावधान

मेंस लिंक:

सरोगेसी विधेयक से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।

सांसदों के प्रश्नों को स्वीकृत एवं  अस्वीकृत किए जाने संबंधी प्रक्रिया


संदर्भ:

पिछले कुछ सत्रों के दौरान, कुछ सासंदों- विशेषकर विपक्ष के सांसदों द्वारा, अक्सर उनके प्रश्नों को संसद में पूछे जाने की अनुमति नहीं दिए जाने का आरोप लगाया जा रहा है।

जिन प्रश्नों को सदन में पूछे जाने की अनुमति नहीं दी गयी, उनमे निम्नलिखित मुख्य सवाल शामिल थे:

  • क्या अनिवासी भारतीयों (NRIs) को हवाई अड्डों पर परेशान किया गया और वापस भेज दिया गया?
  • क्या चीनी सनिक लद्दाख में ‘वास्तविक नियंत्रण सीमा’ (LAC) का अतिक्रमण करते हुए भारतीय सीमा में घुस गए हैं?

लोकसभा और राज्यसभा सचिवालयों ने इस सवालों को अनुमति न देने के कारण, समय की कमी और राष्ट्रीय सुरक्षा बताया है।

सांसदों का सवाल पूछने का अधिकार:

दोनों सदनों में, निर्वाचित सदस्यों को तारांकित प्रश्नों (Starred Questions), अतारांकित प्रश्नों (Unstarred Questions), अल्प सूचना प्रश्नों (Short Notice Questions) तथा ‘निजी सदस्यों के लिए प्रश्नों’ (Questions To Private Members) के रूप में विभिन्न विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होता है।

प्रश्नों की ग्राह्यता संबंधी प्रक्रिया:

आम तौर पर, सांसदों के प्रश्नों की एक लंबी सूची तैयार की जाती है, जो बाद में अनुमोदन की एक कठोर प्रक्रिया से गुजरती है।

  • प्रश्नों की ग्राह्यता को शासित करने वाली शर्तें राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 47-50 में दी गई हैं।
  • ग्राह्यता संबंधी शर्तों को पूरा करने वाला कोई प्रश्न, प्राप्त होने के बाद सचिवालय उसे संबंधित मंत्रालय को भेजता है। मंत्रालय से तथ्य प्राप्त होने के बाद, ‘स्वीकार्यता’ के लिए प्रश्न की आगे जांच की जाती है।
  • प्रश्नों की अंतिम सूची मंत्रियों के लिए भेज दी जाती है, जिसके आधार पर वे अपने उत्तर तैयार करते हैं।

तारांकित, अतारांकित एवं अन्य श्रेणियों के प्रश्नों के बारे में:

तारांकित प्रश्न (Starred Questions): यह वह सवाल होते हैं, जिसका सदस्य, सभा में मंत्री से मौखिक उत्तर चाहते हैं और पहचान के लिए इन प्रश्नों पर तारांक बना रहता है। ऐसे प्रश्न के उत्तर के पश्चात् सदस्यों द्वारा उस पर अनुपूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

अतारांकित प्रश्न (Unstarred Questions): इन प्रश्नों का लिखित उत्तर मंत्रियों द्वारा दिया जाता है जिन्हें प्रश्न काल के अंत में सभा पटल पर रखे गये मान लिया जाता है। इस प्रकार इसे मौखिक उत्तर के लिए नहीं पुकारा जाता है और इस पर कोई अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।

अल्प सूचना प्रश्न (Short Notice Questions): ऐसे प्रश्नों को तारांकित और अतारांकित प्रश्नों के लिए निर्धारित समय से कम समय पर प्रश्न काल के पश्चात् अथवा प्रश्न काल न हो तो कार्यसूची के प्रथम मुद्दे के रूप में सभा में मौखिक रूप से पूछा जा सकता है।

इन प्रश्नों को ऐसी विषय-वस्तु से संबंधित होना चाहिए जिन्हें सभापति अत्यावश्यक लोक महत्व का समझे। सदस्य द्वारा मौखिक उत्तर हेतु पाने के लिए, अविलम्बनीय लोक महत्व से संबंधित प्रश्न की सूचना दी जा सकती है और जिसे एक सामान्य प्रश्न हेतु विनिर्दिष्ट 10 दिन की सूचनावधि से कम अवधि के भीतर पूछा जा सकता है। ऐसे प्रश्न को ‘अल्प सूचना प्रश्न’ के नाम से जाना जाता है।

‘निजी सदस्यों के लिए प्रश्नों’ (Questions To Private Members): लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के नियम 40 के तहत या राज्य सभा के नियम 48 के तहत एक निजी सदस्य को एक प्रश्न को संबोधित किया जा सकता है, बशर्ते कि उस प्रश्न की विषयवस्तु किसी विधेयक, संकल्प या सभा में कार्य संचालन से संबंधित अन्य मामले से संबंधित हो जिसके लिए वह सदस्य उत्तरदायी है।

किस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं?

  • राज्य सभा में, विभिन्न मानदंडों के अतिरिक्त, प्रश्न ‘सटीक, विशिष्ट और केवल एक मुद्दे के लिए सीमित होने चाहिए; उसमें कोई ऐसा नाम या कथन नहीं होगा जो प्रश्न को सुबोध बनाने के लिये सर्वथा आवश्यक न हो; यदि उसमें कोई कथन हो तो सदस्य को उस कथन की परिशुद्धता के लिये उत्तरदायी होना पड़ेगा; और उसमें तर्क, अनुमान, व्यंग्यात्मक पद, अभ्यारोप, विशेषण या मानहानिकारक कथन नहीं होने चाहिए।
  • लोकसभा में, ऐसे प्रश्नों स्वीकार नहीं किया जाता है, जिनके उत्तर पहले दिये जा चुके हों या जिनका उत्तर देना अस्वीकार कर दिया गया हो; अथवा ऐसे मामले जो किसी न्यायालय या संसदीय समिति के समक्ष विचाराधीन निर्णय के लिए लंबित हैं।

इंस्टा जिज्ञासु:

दोनों सदनों में, प्रत्येक बैठक का पहला घंटा आमतौर पर प्रश्न पूछने और उत्तर देने के लिए समर्पित होता है, और इसे ‘प्रश्नकाल’ कहा जाता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘प्रश्नकाल’ क्या है?
  2. ‘शून्यकाल’ क्या है?
  3. ‘तारांकित प्रश्न’ क्या होते हैं?
  4. ‘अतारांकित प्रश्न’ क्या हैं?

मेंस लिंक:

संसद में ‘शून्यकाल’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

दलबदलरोधी कानून


(Anti-defection law)

संदर्भ:

कांग्रेस पार्टी ने मेघालय विधानसभा के अध्यक्ष को पत्र के माध्यम से, हाल ही में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AITMC) में शामिल होने के लिए कांग्रेस पार्टी छोड़ने वाले कुल 12 विधायकों में से 10 विधायकों को ‘निरर्हक’ / ‘अयोग्य’ घोषित करने की मांग की है।

उक्त प्रकरण में 10वीं अनुसूची क्यों लागू नहीं हो सकती है?

भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची को आमतौर पर ‘दलबदल रोधी अधिनियम’ के रूप में जाना जाता है। इन क़ानून के अनुसार, किसी राजनीतिक दल में विभाजन होने की स्थिति में दलबदल के आधार पर अयोग्यता का प्रावधान लागू नहीं होगा।

  • जहां सदन का कोई सदस्य यह दावा करता है, कि उसने और उसके विधायक दल के अन्य सदस्यों ने, अपने मूल राजनीतिक दल में विभाजन के परिणामस्वरूप उत्पन्न नए गुट का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह का गठन कर लिया है और उसके समूह में उसके मूल राजनीतिक दल के सदन में कुल सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई सदस्य से अधिक सदस्य शामिल है, तो इन सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
  • इस तरह के विभाजन के पश्चात्, संबंधित समूह को, जिस राजनीतिक दल ने वह वर्तमान में जुड़ा है, उसी का भाग माना जाएगा।

भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची: प्रासंगिकता

  • भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची, ‘दल-बदल रोधी कानून’ के रूप में लोकप्रिय है।
  • इसमें उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट किया गया है, जिनके तहत सांसदों / विधायकों द्वारा राजनीतिक दलों को बदलने पर कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।
  • इस अनुसूची को 52वें संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में जोड़ा गया था।
  • इसमें निर्दलीय विधायकों के चुनाव के बाद किसी पार्टी में शामिल हो जाने संबंधी स्थितियों के बारे में भी प्रावधान किए गए हैं।

इस क़ानून में किसी सांसद या विधायक द्वारा राजनीतिक दल बदलने के संबंध में निम्नलिखित तीन परिदृश्यों को निर्दिष्ट किया गया है:

  1. जब किसी राजनीतिक दल से संबंधित सदन का सदस्य स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, अथवा यदि वह सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है अथवा मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा अपने राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिनों के भीतर क्षमादान न पाया हो।
  2. जब कोई विधायक, जो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी सीट जीत चुका है, चुनाव के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है। [उपरोक्त दो मामलों में, सांसद / विधायक, दल परिवर्तन करने (या शामिल होने) पर विधायिका में अपनी सीट खो देता है।]
  3. मनोनीत सदस्यों से संबंधित: मनोनीत सदस्यों (Nominated Member) के मामले में, कानून उन्हें मनोनीत किए जाने के बाद, किसी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए छह महीने का समय देता है। यदि वे इस समयावधि के बाद किसी पार्टी में शामिल होते हैं, तो वे सदन में अपनी सीट खो देते हैं।

निर्हरता से संबंधित मामले:

  • दल-बदल विरोधी कानून के तहत, किसी सांसद या विधायक की निर्हरता / अयोग्यता के विषय में फैसला करने की शक्ति विधायिका के पीठासीन अधिकारी के पास होती है।
  • कानून में इस विषय पर निर्णय लेने हेतु कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं की गयी है।
  • पिछले वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दलबदल रोधी मामलों का फैसला तीन महीने की समयावधि में किया जाना चाहिए।

कानून के तहत अपवाद

सदन के सदस्य कुछ परिस्थितियों में निरर्हता के जोखिम के बिना अपनी पार्टी बदल सकते सकते हैं।

  1. इस विधान में किसी दल के द्वारा किसी अन्य दल में विलय करने करने की अनुमति दी गयी है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
  2. ऐसे परिदृश्य में, अन्य दल में विलय का निर्णय लेने वाले सदस्यों तथा मूल दल में रहने वाले सदस्यों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।

कानून में खामियां:

इस क़ानून का विरोध करने वालों का कहना है, कि मतदाताओं द्वारा चुनाव में व्यक्तियों को चुना जाता है, न कि पार्टियों को और इसलिए दलबदल रोधी कानून निष्फल है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि दलबदल रोधी कानून (1969, 1973) बनाने के शुरुआती प्रयासों में राजनीतिक दलों में शामिल होने वाले निर्दलीय विधायकों को शामिल नहीं किया गया था? फिर, उन्हें कानून के तहत कब शामिल किया गया? इसके बारे में जानकारी हेतु संक्षिप्त अवलोकन कीजिए।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. दल-बदल कानून संबधित विभिन्न समितियों और आयोगों के नाम
  2. समिति तथा आयोग में अंतर
  3. पीठासीन अधिकारी तथा न्यायिक समीक्षा का निर्णय
  4. राजनीतिक दलों के विलय तथा विभाजन में अंतर
  5. क्या पीठासीन अधिकारी पर दलबदल विरोधी कानून लागू होता है?
  6. संबंधित मामलों में उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय

मेंस लिंक:

दलबदल विरोधी कानून के प्रावधानों का परीक्षण कीजिए। क्या यह कानून अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहा है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

उत्तराखंड का चार धाम अधिनियम


संदर्भ:

हाल ही में, उत्तराखंड सरकार द्वारा ‘चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम’ (Char Dham Devasthanam Management Act) को वापस लेने की घोषणा की गयी है। इस निर्णय के पश्चात्, उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को समाप्त कर दिया जाएगा। इस अधिनियम का उत्तराखंड के चार मंदिरों और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के पुजारियों और अन्य हितधारकों के विरोध किया जा रहा है।

परियोजना के बारे में पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:

  • इस परियोजना की वजह से 55,000 पेड़ों सहित लगभग 690 हेक्टेयर वन भूमि के नष्ट होने का संकट उत्पन्न हो सकता है और लगभग 20 मिलियन क्यूबिक मीटर मिट्टी खोदे जाने का अनुमान है।
  • सड़कों को चौड़ा करने हेतु पेड़ों की निर्मम कटाई या वनस्पति को उखाड़ना, जैव विविधता और क्षेत्रीय पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

‘चारधाम परियोजना’ के बारे में:

  • ‘चारधाम परियोजना’ (Chardham Project) में 889 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास और सुधार किया जाना सम्मिलित है।
  • इस परियोजना के द्वारा बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम, गंगोत्री, यमुनोत्री और कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए जाने वाले मार्ग को जोड़ा जाएगा।

chardham

 

राष्ट्रीय सुरक्षा में भूमिका:

यह परियोजना, भारत-चीन सीमा को देहरादून और मेरठ में सेना के शिविरों से जोड़ने वाली सामरिक फीडर सड़क मार्गों के रूप में कार्य कर सकती है जो जोड़ती है। इन स्थानों पर भारतीय सेना का मिसाइल बेस है और भारी मशीनरी तैनात रहती है।

परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट के विचार:

सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2020 में, भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली ‘चारधाम परियोजना’ (CharDham Project – CDP) सड़कों का विस्तार करने संबंधी अनुरोध के संदर्भ में, पर्यावरणीय मुद्दों और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को संतुलित करने की आवश्यकता की बात कही थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. परियोजना का अवलोकन
  2. इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
  3. इन स्थानों से बहने वाली महत्वपूर्ण नदियाँ
  4. राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बीच अंतर

मेंस लिंक:

चारधाम परियोजना के महत्व पर विवेचना कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

‘देशद्रोह’ की सीमाओं को परिभाषित करने का सही समय: उच्चतम न्यायालय


संदर्भ:

हाल ही में, असम पुलिस द्वारा एक स्थानीय समाचार पोर्टल के संपादक और सह-मालिक पर, राज्य के असमिया और बंगाली भाषी नागरिकों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला एक संपादकीय लिखने का आरोप लगाते हुए ‘देशद्रोह’ (124A के तहत) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

बराक घाटी में बंगालियों का और ब्रह्मपुत्र घाटी में असमिया भाषी जनता का वर्चस्व है।

पृष्ठभूमि:

सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के बारे में अपनी शिकायतों को आवाज देने पर अथवा महामारी की दूसरी लहर के दौरान, चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच, उपकरण, दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर हासिल करने के लिए मदद मांगने के लिए आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ राजद्रोह कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है।

देशद्रोह’ (Sedition) क्या होता है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा, शब्दों द्वारा, लिखित अथवा बोलने के माध्यम से, अथवा संकेतों द्वारा, या दृश्य- प्रदर्शन द्वारा, या किसी अन्य तरीके से, विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ, घृणा या अवमानना दिखाने, उत्तेजित होने अथवा उत्तेजना भड़काने का प्रयास करने पर उसे, आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना, या तीन साल तक की कैद और साथ में जुर्माना, या मात्र जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।

एक यथोचित परिभाषा की आवश्यकता:

देशद्रोह कानून लंबे समय से विवादों में रहा है। अक्सर सरकारों के ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-A कानून का उपयोग करने पर, उनकी नीतियों के मुखर आलोचकों द्वारा आलोचना की जाती है।

इसलिए, इस धारा को व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है, और एक प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत आती है।

इस क़ानून को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा 1860 के दशक में लागू किया गया था, उस समय से लेकर आज तक यह क़ानून बहस का विषय रहा है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित स्वतंत्रता आंदोलन के कई शीर्ष नेताओं पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए थे।

  1. महात्मा गांधी द्वारा इस क़ानून को “नागरिक की स्वतंत्रता का हनन करने हेतु तैयार की गई भारतीय दंड संहिता की राजनीतिक धाराओं का राजकुमार” बताया था।
  2. नेहरू ने इस कानून को “अत्यधिक आपत्तिजनक और निंदनीय” बताते हुए कहा, कि “हमारे द्वारा पारित किसी भी कानूनों प्रावधानों में इसे कोई जगह नहीं दी जानी चाहिए” और “जितनी जल्दी हम इससे छुटकारा पा लें उतना अच्छा है।”

इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले:

केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामला (1962):

  1. आईपीसी की धारा 124A के तहत अपराधों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले (1962) में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए थे।
  2. अदालत ने फैसला सुनाया था, कि सरकार के कार्यों की चाहें कितने भी कड़े शब्दों में नापसंदगी व्यक्त की जाए, यदि उसकी वजह से हिंसक कृत्यों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं होती है, तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा।

बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामला:

  1. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था, कि केवल नारे लगाना, इस मामले में जैसे कि ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, देशद्रोह नहीं है।

जाहिर है, देशद्रोह कानून को गलत तरीके से समझा जा रहा है और असहमति को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।

current affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘के.एम. मुश्शी संशोधन’ (K.M. Mushshi’s Amendment) के द्वारा संविधान से ‘देशद्रोह’ को हटा दिया था और बाद में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले द्वारा भारत में राजद्रोह कानून को वापस लागू किया गया था?

इतने सारे नकारात्मक तत्व होने के बावजूद, हमारे देश में अभी भी यह कानून प्रचलन में क्यों है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. देशद्रोह को किस क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है?
  2. आईपीसी की धारा 124A किससे संबंधित है?
  3. आईपीसी की धारा 153 किससे संबंधित है?
  4. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
  5. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19

मेंस लिंक:

भारत में देशद्रोह कानून लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

हांगकांग का प्रशासन


संदर्भ:

हांगकांग के अधिकारी, अपनी बीजिंग-गठबंधन सरकार की आलोचना करने वाले सार्वजनिक विमर्श पर नगर-राज्य की पकड़ को मजबूत करने हेतु नए कानूनों का अनुकरण कर रहे हैं।

आवश्यकता:

नगर-राज्य के निवासी, अपने विचारों पर खुद ही सेंसरशिप लगा रहे हैं, और कई लोगों को लगता है कि उनके शहर की प्रगतिशील पहचान स्थायी रूप से खो गई है।

हांगकांग की प्रशासन-विधि:

हांगकांग, ‘एक देश दो प्रणाली’ (One Country Two Systems) पद्धति से प्रशासित होता है। ‘हांगकांग’ और ‘मकाऊ’ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र हैं और दोनों पूर्व उपनिवेश रह चुके हैं।

नीति के अनुसार,  ‘हांगकांग’ और ‘मकाऊ’, चीनी जनवादी गणराज्य का हिस्सा होने के बावजूद, चीन की मुख्य भूमि की नीतियों से भिन्न आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था अपना सकते हैं।

  • हांगकांग, 1 जुलाई, 1997 से वापस चीन के नियंत्रण में आ गया था, और 20 दिसंबर, 1999 को ‘मकाऊ’ की संप्रभुता चीन को स्थानांतरित कर दी गई थी।
  • इन क्षेत्रों की अपनी मुद्राएं, आर्थिक और कानूनी प्रणालियां हैं, किंतु रक्षा और कूटनीति बीजिंग द्वारा तय की जाती है।
  • उनके लघु-संविधान 50 वर्षों तक – अर्थात हांगकांग के लिए 2047 तक और मकाऊ के लिए 2049 तक वैध है। इस अवधि के बाद की व्यवस्था अभी स्पष्ट नहीं है।

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विदेशी प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए हांगकांग में चीनी कानून:

विदेशी प्रतिबंधों का जवाब देने के लिए हांगकांग में चीन की मुख्य भूमि के एक क़ानून लागू किए जाने पर कार्य किया जा रहा है।

इस कानून को, बीजिंग की विधायिका के बजाय हांगकांग की विधायिका के माध्यम से पेश किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस क़ानून को हांगकांग के ‘लघु-संविधान’ (mini-constitution) की परिशिष्ट में जोड़ा जाएगा। हांगकांग के ‘मिनी-कान्स्टिटूशन’ को ‘बेसिक लॉ’ के रूप में भी जाना जाता है।

‘प्रस्तावित कानून’ क्या है?

  1. बीजिंग द्वारा जून माह में एक कानून पारित किया गया था, जिसके तहत चीनी नागरिकों या संस्थाओं के खिलाफ भेदभाव करने या विभेदकारी तरीके लागू करने वाले व्यक्तियों या इकाईयों को चीनी सरकार की ‘प्रतिबंध-रोधी सूची’ (anti-sanctions list) में रखा जा सकता है।
  2. चीन के कानून के तहत, इस सूची में शामिल व्यक्तियों को चीन में प्रवेश से वंचित किया जा सकता है या देश से निष्कासित किया जा सकता है।
  3. क़ानून के तहत, चीन में ऐसे व्यक्तियों की संपत्ति को जब्त या निष्क्रय किया जा सकता है। इनके लिए चीन की संस्थाओं या नागरिकों के साथ कारोबार करने से भी प्रतिबंधित किया जा सकता है।

इस क़ानून को लागू करने की आवश्यकता:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा, चीन पर व्यापार, हांगकांग और झिंजियांग के सुदूर पश्चिमी क्षेत्र को लेकर दबाव डालने की वजह से इस क़ानून को लाया गया है।

इस कानून से जुड़ी चिंताएं और मुद्दे:

  • आलोचकों ने चेतावनी देते हुए कहा है, कि हांगकांग द्वारा इस कानून को लागू करने से ‘वैश्विक वित्तीय केंद्र’ के रूप में इसकी प्रतिष्ठा कम हो सकती है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. हांगकांग के बारे में
  2. यह कब स्वतंत्र हुआ?
  3. ‘एक देश दो प्रणाली’ पद्धति के बारे में
  4. प्रस्तावित कानून की मुख्य विशेषताएं

मेंस लिंक:

प्रस्तावित कानून के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 क्यह्युटिसुका सचिकारुम

हाल ही में, शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने एक नए समुद्री सरीसृप की खोज की है। एक मीटर लंबे खोपड़ी के इस नमूने का नामकरण ‘क्यह्युटिसुका सचिकारुम’ (Kyhytysuka Sachicarum) किया गया है।

यह जीवाश्म, जीवित स्वॉर्डफिश की तरह दिखने वाले प्राचीन जीव ‘इचथ्योसोर’ (Ichthyosaur) की अंतिम जीवित प्रजातियों में से एक है।

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