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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1. पुरी हेरिटेज कॉरिडोर
2. सिकंदर एवं चंद्रगुप्त मौर्य
3. गुरु नानक देव जयंती
सामान्य अध्ययन-II
1. PESA अधिनियम
2. किसी कानून को निरसित करने की प्रक्रिया
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. ऑपरेशन संकल्प
सामान्य अध्ययन–I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
पुरी हेरिटेज कॉरिडोर
संदर्भ:
ओडिशा में 800 करोड़ रुपये की लागत से ‘पुरी धरोहर गलियारा’ / ‘पुरी हेरिटेज कॉरिडोर’ (Puri Heritage Corridor) विकसित किया जा रहा है।
पुरी हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना:
- वर्ष 2016 में परिकल्पित, इस परियोजना का उद्देश्य धार्मिक शहर ‘पुरी’ को एक अंतरराष्ट्रीय धरोहर स्थल में रूपांतरित करना है।
- इसके लिए, कुल 22 विभिन्न परियोजनाओं को चरणबद्ध तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा।
- ‘पुरी’ के लिए राज्य की ‘मूलभूत सुविधाओं के संवर्धन एवं विरासत और वास्तुकला का विकास’ (Augmentation of Basic Amenities and Development of Heritage and Architecture – ABADHA) योजना तहत धनराशि का आवंटन किया गया है।
- इस परियोजना में ‘पुरी झील’ का पुनर्विकास और ‘मूसा नदी’ का जीर्णोद्धार योजना भी शामिल है।
‘जगन्नाथ पुरी मंदिर’ के बारे में:
यह ओडिशा के तटवर्ती शहर ‘पुरी’ में स्थित, भगवान् श्रीकृष्ण के एक स्वरूप ‘जगन्नाथ’ को समर्पित, वैष्णव संप्रदाय का एक महत्वपूर्ण मंदिर है।
- माना जाता है, कि इस मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में पूर्वी गंग राजवंश के राजा अनन्तवर्मन चोडगंग देव द्वारा करवाया गया था।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर को ‘यमनिका तीर्थ’ (Yamanika Tirtha) भी कहा जाता है, जहां हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण ‘पुरी’ में मृत्यु के देवता ‘यम’ की शक्ति समाप्त हो जाती है।
- इस मंदिर को “श्वेत शिवालय” / “सफेद पैगोडा” (White Pagoda) भी कहा जाता है और यह ‘चार धाम तीर्थ’ (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम) का एक भाग है।
- जगन्नाथ पुरी मंदिर, अपनी वार्षिक रथ यात्रा या ‘रथ उत्सव’ के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें तीन प्रमुख देवताओं को विशाल और विस्तृत रूप से सजाए गए मंदिर के आकार में निर्मित रथों पर बिठाकर यात्रा कराई जाती है, इन विशाल रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि जगन्नाथ की प्रतिमा काष्ठ-निर्मित होती है और प्रति बारह से उन्नीस वर्षों में पवित्र वृक्षों की लकड़ी का उपयोग करके इसे औपचारिक रूप से बदल दिया जाता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- जगन्नाथ मंदिर, पुरी के बारे में
- नागर वास्तुकला
- पुरी रथ यात्रा
- पुरी हेरिटेज कॉरिडोर
मेंस लिंक:
पुरी हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
सिकंदर एवं चंद्रगुप्त मौर्य
संदर्भ:
हाल ही में, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने वाले ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ ने युद्ध में ‘मकदूनिया / मैसेडोनिया के सिकंदर’ (Alexander of Macedonia) को पराजित किया था – और फिर भी, इतिहासकारों ने ‘सिकंदर’ को महान बताया है।
‘सिकंदर’ बनाम ‘चंद्रगुप्त’
सिकंदर:
सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस के ‘पेला’ (Pella) नामक शहर में हुआ था। सिकंदर अपने पिता, राजा फिलिप द्वितीय की मृत्यु के पश्चात्, 20 वर्ष की आयु सिंहासन पर बैठा।
- कई युद्धों में उसकी शानदार सैन्य विजयों के कारण उसे ‘महान’ कहा जाने लगा।
- उसने 30 वर्ष की आयु से पहले, दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित कर लिया था, जोकि ग्रीस से लेकर भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक, आधुनिक पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया तक फैला हुआ था।
- बाद में, ‘चंगेज खान’ (1162-1227) ने एशिया और यूरोप के एक बड़े क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया, इसके अलावा, तैमूरलंग (Tamerlane), अत्तिला हूण (Atilla the Hun), शारलेमेन (Charlemagne) जैसे अन्य विजेताओं तथा अशोक, अकबर और औरंगजेब ने अपने बहुत बड़े साम्राज्य का निर्माण किया था।
भारत के लिए उसका अभियान:
327 ईसा पूर्व में, सिकंदर ने पुराने फारस साम्राज्य की सबसे दूरस्थ सीमा पर बहने वाली ‘सिंधु नदी’ को पार किया और अपना भारतीय अभियान शुरू किया जोकि लगभग दो वर्ष तक जारी रहा।
- इसी अभियान के दौरान ‘तक्षशिला’ के शासक ने सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
- इसके बाद झेलम नदी के तट पर हुए युद्ध में सिकंदर ने भारतीय राजा पोरस के खिलाफ जीत हासिल की। इस लड़ाई को ‘हाईडेस्पीज’ (Hydaspes) का युद्ध भी कहते हैं।
- पोरस को हराने के पश्चात्, सिकंदर का मंतव्य गंगा की घाटी में आगे बढ़ना था – लेकिन, पंजाब की पांच नदियों में से अंतिम नदी- ब्यास नदी – तक पहुँचते-पहुँचते, उसके सेनापतियों ने आगे जाने से इनकार कर दिया।
- सिकंदर को वापस मुड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, और उसने सिंधु नदी के जलमार्ग से दक्षिण की ओर इसके मुहाने डेल्टा तक यात्रा की, फिर वहीं से उसने अपनी सेना के एक हिस्सा को समुद्र के रास्ते मेसोपोटामिया भेज दिया, और दूसरे हिस्से के साथ ‘मकरान तट’ से होते हुए स्थल मार्ग से वापस लौट पड़ा और रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गयी।
विरासत:
यद्यपि उसने अपने भारतीय अभियान को बीच में ही छोड़ दिया था, इसके बावजूद ऐसा माना जाता है कि, वह अपनी मृत्यु तक किसी भी युद्ध में अपराजित रहा- उसके बारे में ‘विश्व-विजेता’ बनने की भविष्यवाणी की गयी थी, भारत अभियान के दौरान तक ऐसा प्रतीत होता है कि वह भविष्यवाणी को सही साबित कर रहा था।
- सिकंदर ने मैसेडोनिया से अपनी विजय यात्रा शुरू करते हुए सात राष्ट्रों और 2,000 से अधिक शहरों पर विजय हासिल की, जिसमे उसमे लगभग 1,000 मील की यात्रा की।
- सिकंदर, समुद्र तक पहुचने और फिर समुद्री मार्ग से होकर नए राज्यों को अपने अधीन करने के लिए मार्ग खोजने संबंधी, ग्रीक दार्शनिकों के समक्ष उपस्थित समस्या को हल करने की उम्मीद कर रहा था।
चंद्रगुप्त मौर्य:
चंद्रगुप्त मौर्य, एक ऐसे विशाल साम्राज्य का निर्माता था, जोकि सिंधु और गंगा नदियों के मैदानों से लेकर मध्य भारत तक फैला था, और उसके साम्राज्य की सीमाएं पूर्वी और पश्चिमी महासागरों को छूती थीं।
- मौर्य साम्राज्य का प्रशासनिक केंद्र पाटलिपुत्र था, और चंद्रगुप्त मौर्य, पहली बार अधिकांश दक्षिण एशिया को एकीकृत करने वाला शासक था।
- चंद्रगुप्त ने केंद्रीकृत प्रशासन और कर-संग्रह की एक व्यापक और कुशल प्रणाली की नींव रखी, यह उसके साम्राज्य का आधार थी।
- उसने, व्यापक स्तर पर बुनियादी ढांचे का निर्माण, बाट और माप का मानकीकरण, व्यापार और कृषि में सुधार कार्य किए और इनकों विनियमित किया, और साथ ही एक बड़ी स्थायी सेना के लिए प्रावधान किए।
कुछ यूनानी स्रोतों से पता चलता है, कि चंद्रगुप्त, सिकंदर के भारतीय अभियान के दौरान, सिकंदर के संपर्क में रहा होगा।
विरासत:
चंद्रगुप्त ने नंदवंश के अलोकप्रिय अंतिम शासक, धनानंद को उखाड़ फेंका और उनकी राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्जा कर लिया।
- कौटिल्य के छल एवं रणनीति, और अपनी विशाल सैन्य शक्ति के बल पर, चंद्रगुप्त ने अपनी साम्राज्य संबंधी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का अभियान शुरू किया।
- गंगा के मैदानी इलाकों पर अपना अधिपात्य स्थापित करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने, सिकंदर की सेना के पीछे हटने से रिक्त हुई सत्ता पर अपना अधिकार जमाने के लिए उत्तर-पश्चिम की ओर अभियान शुरू किए।
- सिंधु और गंगा के मैदानों और सीमावर्ती क्षेत्रों पर नियंत्रण करने के साथ ही, चंद्रगुप्त ने विशाल मौर्य साम्राज्य की नींव रखी – और यह किसी भी मानक से एक दुर्जेय साम्राज्य था।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि चंद्रगुप्त के राजनीतिक गुरु और मुख्य सलाहकार चाणक्य थे, जिन्हें कौटिल्य और विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य को राजनीति विज्ञान, राज्य कला, सैन्य रणनीति और अर्थव्यवस्था पर अग्रणी भारतीय ग्रंथ, ‘अर्थशास्त्र’ की रचना करने का श्रेय दिया जाता है?
क्या आप जानते हैं, कि भारतीय इतिहास में, अन्य शासकों के साथ, सम्राट अशोक, राजराजा और राजेंद्र चोल और अकबर के लिए ‘महान’ प्रत्यय का उपयोग किया जाता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में।
- सिकंदर के बारे में।
- पाटलिपुत्र।
- मौर्य वंश।
- ‘हाईडेस्पीज’ की लड़ाई।
मेंस लिंक:
चन्द्रगुप्त मौर्य और सिकंदर की विरासतों पर टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
गुरु नानक देव जयंती
संदर्भ:
गुरु नानक देव जी जयंती को सिखों के पहले गुरु, ‘गुरु नानक’ के जन्म-उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे गुरु नानक के प्रकाश उत्सव और गुरुपरब के रूप में भी जाना जाता है।
- गुरु नानक जयंती, कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस साल 19 नवंबर, 2021 को गुरु नानक जयंती मनायी जाएगी।
- इस वर्ष सिखों के दस गुरुओं में, पहले गुरु ‘नानक देव जी’ की 552वीं जयंती है।
‘गुरु नानक देव जी’ के बारे में:
गुरु नानक देव (1469-1539) का जन्म लाहौर के निकट ‘तलवंडी राय भोई’ (Talwandi Rai Bhoe) नामक गाँव में हुआ था (बाद में इसका नाम बदलकर ननकाना साहिब कर दिया गया)।
- उन्होंने 16वीं शताब्दी में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के साथ वार्तालाप करना शुरू किया और अपने समय के अधिकांश धार्मिक संप्रदायों के साथ चर्चाएँ की।
- उनकी लिखित रचनाओं को सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव (1563-1606) द्वारा संकलित ‘आदि ग्रंथ’ में शामिल किया गया है।
- सिखों के दसवें गुरु ‘गुरु गोबिंद सिंह’ (1666-1708) द्वारा ‘आदि ग्रंथ’ में जोड़ी गयी रचनाओं के पश्चात इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के रूप में जाना जाता है।
गुरु नानक की शिक्षाएँ: सभी के लिए शांति और सद्भाव
- गुरु नानक, समानता के महान पक्षधर थे। उनका उद्देश्य एक जातिविहीन समाज का निर्माण करना था जिसमें कोई वर्गीकरण न हो।
- उनके लिए, जाति, पंथ, धर्म और भाषा के आधार पर मतभेद और विभिन्न पहचाने अप्रासंगिक थीं।
- उन्होंने कहा था, “जाति निराधार है, जन्म का भेद व्यर्थ है। भगवान सभी प्राणियों को आश्रय देते हैं।”
- महिलाओं का उल्लेख करते हुए, गुरु नानक कहते हैं: “जब वे पुरुषों को जन्म देती हैं तो वे हीन कैसे हो सकती हैं? भगवान की कृपा, महिलाओं और पुरुषों पर समान रूप से होती है और अपने कार्यों से ईश्वर के प्रति समान रूप से जिम्मेदार होते हैं।”
- एक साथ रहने और एक साथ मिलकर काम करने की भावना, गुरु नानक के भजनों में विचारों का एक अनवरत धागा है।
- उन्होंने सिख धर्म के तीन स्तंभों- नाम जपना, कीरत करनी और वंद चकना- की स्थापना की।
- उन्होंने, अपने दो साथियों ‘भाई बाला’ जोकि एक एक हिंदू थे, और ‘भाई मरदाना’ जोकि एक मुस्लिम थे, के साथ विभिन्न संतों और सूफियों तथा कुछ आध्यात्मिक शक्तियों का दावा करने वाले मायावी धोखेबाजों के साथ के साथ चर्चा करने के लिए दूर-दूर के स्थानों की यात्रा की। इन यात्राओं को ‘उदासी’ (Uddasian) कहा जाता है।
उनकी शिक्षाओं का महत्व और प्रासंगिकता:
गुरु नानक देव जी, महान संत और आध्यात्मिक विभूतियों में से एक हैं। उनके विचार और शिक्षाएं आज के समय में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं और दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं।
स्रोत: पीआईबी।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
PESA अधिनियम
संदर्भ:
आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में ‘पेसा अधिनियम’ (PESA Act) के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996’ (Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996) पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
‘पेसा अधिनियम, 1996’ के बारे में:
‘पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996’ या ‘पेसा अधिनियम’ भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिए, पारंपरिक ग्राम सभाओं के माध्यम से, स्वशासन सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा अधिनियमित एक कानून है।
- यह क़ानून 1996 में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था और 24 दिसंबर 1996 को लागू हुआ था।
- ‘पेसा अधिनियम’ को भारत में आदिवासी कानून की रीढ़ माना जाता है।
- इस क़ानून के तहत, निर्णय लेने की प्रक्रिया की पारंपरिक प्रणाली को मान्यता दी गयी है और और लोगों की स्वशासन की भागीदारी सुनिश्चित की गयी है।
पृष्ठभूमि:
ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने हेतु, वर्ष 1992 में 73वां संविधान संशोधन किया गया। इस संशोधन के माध्यम से त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था को एक कानून बनाया गया।
- हालांकि, अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में इस कानून को लागू करना प्रतिबंधित था।
- वर्ष 1995 में ‘भूरिया समिति’ की सिफारिशों के बाद, भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिये स्व-शासन सुनिश्चित करने हेतु ‘पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम,1996 लागू किया गया।
- 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद, भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए आदिवासी स्व-शासन सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (पेसा) अधिनियम 1996 अस्तित्व में आया।
- PESA क़ानून के तहत, ग्राम सभा को पूर्ण शक्तियाँ प्रदान की गयी है, जबकि राज्य विधायिका को पंचायतों और ग्राम सभाओं के समुचित कार्य को सुनिश्चित करने के लिए एक सलाहकार की भूमिका दी गई है।
- ग्राम सभा को प्रत्यायोजित शक्तियों में, किसी उच्च स्तर की संस्था के द्वारा कटौती नहीं की जा सकती है, और इन्हें अपने निर्धारित कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता रहेगी।
ग्राम सभाओं को दी गई शक्तियाँ और कार्य:
- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार
- पारंपरिक आस्था और आदिवासी समुदायों की संस्कृति का संरक्षण
- लघु वन उत्पादों पर स्वामित्व
- स्थानीय विवादों का समाधान
- भूमि अलगाव की रोकथाम
- ग्रामीण बाजारों का प्रबंधन
- शराब के उत्पादन, आसवन और निषेध को नियंत्रित करने का अधिकार
- साहूकारों पर नियंत्रण का अधिकार
- अनुसूचित जनजातियों से संबंधित अन्य अधिकार
PESA क़ानून से संबंधित मुद्दे:
राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है, कि वे ‘पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, एक राष्ट्रीय कानून, के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य स्तर पर कानून बनाएँ। इसके परिणामस्वरूप राज्यों में PESA क़ानून का आंशिक रूप से कार्यान्वयन हुआ है।
- इस आंशिक कार्यान्वयन की वजह से आदिवासी क्षेत्रों में, जैसे- झारखंड में, स्वशासन व्यवस्था खराब हुई है।
- कई विशेषज्ञों का दावा है, कि ‘स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही की उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रतिरोध आदि के कारण, PESA क़ानून सफल नहीं हो सका है।
- राज्य भर में किये गए सोशल ऑडिट से पता चला है, कि विभिन्न विकास योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा केवल कागज़ पर अनुमोदित किया जा रहा था और वास्तव में चर्चा और निर्णय लेने के लिये कोई बैठक नहीं हुई थी।
प्रीलिम्स लिंक:
- PESA क़ानून के बारे में
- मुख्य विशेषताएं
- अधिनियम के तहत अधिकार
- ग्राम सभाओं की भूमिका
- सोशल ऑडिट
मेंस लिंक:
‘पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा अधिनियम) के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
किसी कानून को निरसित करने की प्रक्रिया
संदर्भ:
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरसित (Repeal) करने की घोषणा की गयी है।
उन्होंने, इन कानूनों का विरोध कर रहे किसान समूहों को, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में निरसन की विधायी प्रक्रिया पूरी करने का आश्वासन दिया है।
निरसित किए जाने वाले कृषि कानून:
- कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम’, 2020 (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020): इसका उद्देश्य मौजूदा ‘कृषि उपज बाजार समिति’ (Agricultural Produce Market Committee – APMC) मंडियों के बाहर, कृषि उपज व्यापार की अनुमति देना है।
- ‘कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम’, 2020’ (Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Act, 2020): इसमें अनुबंध खेती के लिए एक ढांचा प्रदान करने संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
- ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020’ (Essential Commodities (Amendment) Act, 2020): इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाना है।
किसी कानून को निरसित किए जाने का तात्पर्य:
कानून को निरसित करना, किसी कानून को रद्द करने का एक तरीका होता है। जब संसद को ऐसा प्रतीत होता है, कि किसी कानून के बने रहने आवश्यकता समाप्त हो चुकी है, तब उस क़ानून को वापस ले लिया जाता है।
क़ानून में एक “सूर्यास्त” (Sunset) अनुच्छेद को भी शामिल किया जा सकता है, जिसके तहत, एक विशेष तिथि के बाद, उस क़ानून का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
कृषि कानून को किस प्रकार निरसित किया जा सकता है?
सरकार द्वारा कृषि कानूनों को दो तरीकों से निरसित किया जा सकता है – एक, सरकार द्वारा तीनों तीन कानूनों को निरसित करने के लिए एक विधेयक लाया जा सकता है, अथवा, दूसरे, सरकार इसके अध्यादेश ला सकती है, जिसे बाद में छह महीने के भीतर एक विधेयक के रूप में पारित करना होगा।
- किसी क़ानून को निरसित करने के, संसद की शक्ति, संविधान के तहत कानून बनाने के समान ही होती है।
- संविधान का अनुच्छेद 245, जो संसद को कानून बनाने की शक्ति देता है, विधायी निकाय को निरसन और संशोधन अधिनियम के माध्यम से इनको निरसित करने की शक्ति भी देता है।
- इस संबंध में पहली बार 1950 में एक अधिनियम पारित किया गया और 72 कानूनों को निरसित कर दिया गया था।
- किसी कानून को या तो पूरी तरह से अथवा आंशिक रूप से, या किन्ही अन्य कानूनों के उल्लंघन करने की सीमा तक भी निरसित किया जा सकता है।
कानून को निरसित करने की प्रक्रिया:
किसी कानून को दो तरीकों से निरसित या रद्द किया जा सकता है – एक अध्यादेश के माध्यम से, या एक कानून के माध्यम से।
अध्यादेश के माध्यम से:
- यदि किसी कानून को निरसित करने के लिए ‘अध्यादेश’ का उपयोग किया जाता है, तो उसे छह महीने के भीतर संसद द्वारा पारित कानून से प्रतिस्थापित करना होगा।
- यदि अध्यादेश, संसद द्वारा अनुमोदित नहीं होने के कारण व्यपगत हो जाता है, तो निरसित कानून को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
कानून के माध्यम से:
कृषि कानूनों को निरसित करने के लिए, सरकार एक कानून भी ला सकती है।
- इस क़ानून को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित करना होगा, और इसके प्रभाव में आने से पहले इस पर राष्ट्रपति की सहमति भी हासिल करनी होगी।
- ‘तीनों कृषि कानूनों’ को एक ही कानून द्वारा भी निरस्त किया जा सकता है।
- आमतौर पर, इस उद्देश्य के लिए ‘निरसन एवं संशोधन’ शीर्षक से विधेयक पेश किए जाते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘कृषि उपज बाजार समिति’ (APMC) क्या हैं? इनके लिए किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
- ‘मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट’ का अवलोकन
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 में मूल्य सीमा में उतार-चढ़ाव की अनुमति है?
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 के तहत स्टॉक सीमा विनियमन किसके लिए लागू नहीं होगा?
- कृषि विधेयकों के अन्य प्रमुख प्रावधान
मेंस लिंक:
क्या आपको लगता है, कि आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत कृषि क्षेत्र के लिए प्रस्तावित सुधार, किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करते हैं? टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
ऑपरेशन संकल्प
आईएनएस त्रिकंद (ऑपरेशन संकल्प) को वर्तमान में ऑपरेशन संकल्प के अंतर्गत फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी में तैनात किया गया है।
- ऑपरेशन संकल्प की शुरुआत, जून 2019 में ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच ओमान की खाड़ी में दो तेल टैंकर जहाजों में विस्फोट होने के बाद की गयी थी।
- यह ऑपरेशन व्यापार संबंधी सुरक्षित आवाजाही, सामुद्रिक समुदाय में विश्वास की बहाली तथा क्षेत्रीय सामुद्रिक सुरक्षा में योगदान देने के लिए अग्रिम जहाजों को क्षेत्र में तैनात करने की भारतीय नौसेना की मुहिम का हिस्सा है।
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