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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–II
1. पश्चिम बंगाल में सीबीआई एवं प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव
2. मानहानि मामले को रद्द करने हेतु राहुल गांधी द्वारा उच्च न्यायालय में अपील
3. पाकिस्तान में नए कानून के तहत ‘कुलभूषण जाधव’ को अपील दायर करने की अनुमति
सामान्य अध्ययन–III
1. 7,287 गांवों में 4जी आधारित मोबाइल सेवाओं के लिए मंजूरी
2. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
3. विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. सेबी का निवेशक चार्टर
सामान्य अध्ययन–II
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
पश्चिम बंगाल में सीबीआई एवं प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव
संदर्भ:
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (Central Bureau of Investigation- CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के खिलाफ विधानसभा में ‘विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव’ (Breach of Privilege Motion) पेश किया गया है।
संबंधित प्रकरण:
नारडा मामले में चार्जशीट दाखिल करने से पहले ‘विधानसभा अध्यक्ष’ की मंजूरी नहीं लेने के लिए, जांच एजेंसियों के खिलाफ ‘विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव’ पेश किया गया है।
केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा ‘नारडा मामले’ में तीन विधानसभा सदस्यों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गयी है।
विधानसभा अध्यक्ष की सहमति की आवश्यकता:
यह मामला कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। उस समय ‘कलकत्ता उच्च न्यायालय’ ने सीबीआई को ‘विधानसभा अध्यक्ष’ की सहमति लेने का स्पष्ट निर्देश दिया था। हालांकि, सीबीआई, ‘विधानसभा अध्यक्ष’ की बजाय, सीधे राज्यपाल के पास उनकी सहमति के लिए पहुँच गई।
‘विशेषाधिकार’ क्या होते हैं?
‘विशेषाधिकार (Privileges), संसद सदस्यों / विधायकों को, व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियां होते हैं, ताकि वे “अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन” कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख किया गया है। ये हैं: संसद में वाक्-स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
- संविधान में विनिर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अतिरिक्त, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान तथा इसके आरंभ होने से चालीस दिन पूर्व और इसकी समाप्ति के चालीस दिन पश्चात तक सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों की गिरफ्तारी और उन्हें निरुद्ध किए जाने से स्वतंत्रता का उपबंध किया गया है।
विशेषाधिकार हनन के खिलाफ प्रस्ताव:
- सांसदों को प्राप्त किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना करने पर, इस अपराध को विशेषाधिकार हनन कहा जाता है, और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय होता है।
- किसी भी सदन के किसी भी सदस्य द्वारा विशेषाधिकार हनन के दोषी व्यक्ति के खिलाफ एक प्रस्ताव के रूप में एक सूचना प्रस्तुत की जा सकती है।
लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा अध्यक्ष की भूमिका:
विशेषाधिकार प्रस्ताव की जांच के लिए, लोकसभा अध्यक्ष / राज्य सभा अध्यक्ष, पहला स्तर होता है।
- लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा अध्यक्ष, विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकते हैं या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति के लिए संदर्भित कर सकते हैं।
- यदि लोकसभा अध्यक्ष / राज्यसभा अध्यक्ष, संगत नियमों के तहत प्रस्ताव पर सहमति देते हैं, तो संबंधित सदस्य को प्रस्ताव के संदर्भ में एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।
प्रयोज्यता:
- संविधान में, संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार सभी व्यक्तियों के लिए संसदीय विशेषाधिकार प्रदान किए गए है। इन सदस्यों में भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
- हालांकि, संसद का अभिन्न अंग होने बावजूद, राष्ट्रपति को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। राष्ट्रपति के लिए संविधान के अनुच्छेद 361 में विशेषाधिकारों का प्रावधान किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या ‘संसदीय विशेषाधिकारों’ को किसी कानून के तहत परिभाषित किया गया हैं? इस बारे में जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- संविधान के कौन से प्रावधान विधायिका के विशेषाधिकारों की रक्षा करते हैं?
- विधायिका के विशेषाधिकार के कथित उल्लंघन के मामलों में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या है?
- संसद और राज्य विधानमंडलों में विशेषाधिकार समितियों की संरचना और कार्य
- विधायिका के विशेषाधिकार हनन का दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति के लिए क्या सजा है?
- क्या राज्य विधानसभाओं के विशेषाधिकार हनन से जुड़े मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं?
मेंस लिंक:
विधायिका के विशेषाधिकारों से आप क्या समझते हैं? भारत में समय-समय पर देखी जाने वाली विधायिका विशेषाधिकारों की समस्या पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
मानहानि मामले को रद्द करने हेतु राहुल गांधी द्वारा उच्च न्यायालय में अपील
संदर्भ:
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक स्थानीय भाजपा नेता द्वारा दायर ‘मानहानि’ (Defamation) के मामले को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है।
संबंधित प्रकरण:
एक स्थानीय भाजपा नेता ‘महेश श्रीश्रीमल’ द्वारा वर्ष 2018 में गिरगांव मजिस्ट्रेट कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ ‘मानहानि’ का मामला दायर किया किया था। मामले का अनुसार, श्री गांधी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को ‘चोरों का कमांडर’ कहा था और श्रीश्रीमल, भारतीय जनता पार्टी के सदस्य होने के नाते, खुद को बदनाम महसूस कर रहे थे।
राहुल गांधी ने इस मामले को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमे कहा गया है कि मानहानि का मामला, पक्षकार को व्यक्तिगत और सीधे तौर पर बदनाम करने पर दायर किया जा सकता है।
‘मानहानि’ क्या होती है?
‘मानहानि’ (Defamation), किसी व्यक्ति, व्यवसाय, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म अथवा राष्ट्र की प्रतिष्ठा को हानि पहुचाने वाले गलत व्यक्तव्यों का संप्रेषण होती है।
- भारत में, मानहानि सिविल और क्रिमिनल दोनों प्रकार की होती है। मानहानि के दोनों प्रकारों में अंतर उनके उद्देश्यों में निहित होता है।
- सिविल प्रकार की मानहानि में अपराधी को निवारण के रूप में क्षतिपूर्ति देनी पड़ती है तथा क्रिमिनल / आपराधिक प्रकार की मानहानि के सन्दर्भ में अपराधी को दण्डित किया जाता है, और इस प्रकार दूसरों को इस तरह का कार्य न करने का संदेश दिया जाता है।
विधिक प्रावधान:
आपराधिक मानहानि को, विशेष रूप से, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 499 के तहत अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है।
सिविल मानहानि, अपकृत्य क़ानून (Tort law) पर आधारित है। अपकृत्य क़ानून:, कानून का वह क्षेत्र है, जो किसी गलती को परिभाषित करने के लिए किसी विधान अथवा क़ानून पर निर्भर नहीं होता है, परन्तु, ‘क्या करना गलत हो सकता है?’ इसकी व्याख्या करने के लिए विभिन्न कानूनों का उपयोग करता है।
- IPC की धारा 499 के अनुसार, मानहानि, बोले गए अथवा पढ़े जाने योग्य शब्दों के माध्यम से, संकेतों के माध्यम से तथा दृश्यमान अभिव्यक्ति के माध्यम से भी हो सकती है।
- धारा 499 में अपवादों का भी हवाला दिया गया है। इनमें ‘लोक हित’ में आवश्यक ‘सत्य बात का लांछन’ लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना मानहानि के अंतर्गत नहीं आता है।
- मानहानि के लिए सजा के संबंध में आईपीसी की धारा 500, के अनुसार, किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की मानहानि करने पर, दो वर्ष तक का साधारण कारावास या जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
मानहानि कानून का दुरुपयोग तथा संबंधित चिंताएँ:
- इसके अंतर्गत, आपराधिक प्रावधानों को प्रायः विशुद्ध रूप से उत्पीड़न के माध्यम में रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
- भारतीय विधिक प्रक्रियाओं की बोझिल प्रकृति को देखते हुए, मामले की गंभीरता पर ध्यान दिए बिना ही, प्रक्रिया ही सजा के समान हो जाती है।
- आलोचकों का तर्क है कि मानहानि कानून वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों से टकराते हैं।
- आपराधिक मानहानि का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है: उदाहरण के लिए, राज्य इसे, मीडिया और राजनीतिक विरोधियों को आलोचना करने से रोकने तथा अनुचित संयम अपनाने के लिए विवश करता है।
उच्चत्तम न्यायालय द्वारा की गयी टिप्पणियाँ:
- सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ मामले 2014 में, न्यायालय द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) की संवैधानिक वैधता की अभिपुष्टि की गयी तथा यह कहा गया कि, किसी व्यक्ति के ‘गरिमा तथा सम्मान के साथ जीने के अधिकार’ को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मात्र इसलिए भंग नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसको स्वतंत्रता प्राप्त है।
- अगस्त 2016 में, न्यायालय ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता पर ‘लोकतंत्र का दम घोटने’ के लिए आपराधिक मानहानि कानून का दुरुपयोग करने के लिए सख्त आलोचना करते हुए कहा कि ‘सार्वजनिक हस्तियों’ को आलोचनाओं का सामना करना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- आपराधिक और सिविल मानहानि के मध्य अंतर
- आईपीसी की धारा 499 और 500 किससे संबंधित हैं?
- अपकृत्य क़ानून (Tort law) क्या है?
- इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- धारा 499 के तहत अपवाद
मेंस लिंक:
क्या आपको लगता है कि भारत में मानहानि को गैर-अपराध घोषित किया जाना चाहिए? क्या मानहानि तथा अवमानना कानून पुराने समय के क़ानून हो चुके है? उपयुक्त उदाहरणों सहित उचित साबित कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
पाकिस्तान में नए कानून के तहत ‘कुलभूषण जाधव’ को अपील दायर करने की अनुमति
संदर्भ:
पाकिस्तान की संसद द्वारा, मृत्युदंड की सजा सुनाए गए भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव को ‘सैन्य अदालत द्वारा उसको दोषी साबित किए जाने के खिलाफ’ समीक्षा अपील दायर करने का अधिकार देने हेतु एक कानून बनाया गया है।
पृष्ठभूमि:
51 वर्षीय सेवानिवृत्त भारतीय नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को अप्रैल 2017 में जासूसी और आतंकवाद के आरोप में एक पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी।
अब तक का घटनाक्रम:
- भारत ने कुलभूषण जाधव को ‘वकील उपलब्ध कराने’ (वियना कन्वेंशन) पर रोक लगाने तथा ‘मौत की सजा’ को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) में अपील की।
- हेग स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ द्वारा जुलाई 2019 में इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, पाकिस्तान, जाधव की दोष-सिद्धि तथा सुनाई गयी सजा की ‘प्रभावी समीक्षा तथा पुनर्विचार’ करे तथा बिना देरी किए भारत के लिए जाधव को वकील की सेवा उपलब्ध कराने की अनुमति प्रदान करे।
‘प्रभावी समीक्षा तथा पुनर्विचार’ के भारत के लिए निहितार्थ:
प्रभावी समीक्षा तथा पुनर्विचार (Effective Review and Reconsideration) एक वाक्यांश है, जोकि घरेलू संदर्भो में प्रचलित ‘समीक्षा’ (Review) से भिन्न होता है।
- इसमें, कुलभूषण जाधव को ‘वकील उपलब्ध कराने’ और अपने बचाव हेतु तैयारी करने में मदद करना अंतर्निहित है।
- इसका मतलब है, कि पाकिस्तान को जाधव पर लगाए सभी आरोपों और उन सबूतों का भी खुलासा करना होगा जिनके बारे में वह अब तक पूरी तरह से अपारदर्शी रहा है।
- पाकिस्तान को उन परिस्थितियों का भी खुलासा करना होगा, जिनमें सेना ने जाधव से अपराध का कबूलनामा हासिल किया था।
- इसका तात्पर्य है, कि जाधव को मामले की सुनवाई करने वाले किसी भी मंच या अदालत में अपना बचाव करने का अधिकार होगा।
वियना संधि (Vienna Convention):
‘राजनयिक संबंधों पर विएना अभिसमय’ / ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ (Vienna Convention on Consular Relations) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसके तहत स्वतंत्र राष्ट्रों के मध्य बीच ‘राजनयिक संबंधों’ को परिभाषित किया गया है।
- ‘वियना कन्वेंशन’ के अनुच्छेद 36 के अनुसार, मेज़बान देश में गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों को, उनके ‘दूतावास या वाणिज्य दूतावास को गिरफ्तारी के बारे में सूचित करने संबंधी उनके अधिकार’ के बारे में तत्काल नोटिस दिया जाना चाहिए।
- हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिक के अनुरोध पर, पुलिस द्वारा उस नोटिस को संबंधित व्यक्ति के दूतावास या वाणिज्य दूतावास को फैक्स के माध्यम से, उस व्यक्ति का सत्यापन किया जा सकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘अतिरिक्त देशीयता’ (Extraterritoriality) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ICJ और ICC के बीच अंतर।
- इन संगठनों की भौगोलिक अवस्थिति स्थिति और आसपास के देशों का अवलोकन।
- यूएस और तालिबान के बीच दोहा समझौता।
- रोम संविधि क्या है?
मेंस लिंक:
‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (ICJ) पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
7,287 गांवों में 4जी आधारित मोबाइल सेवाओं के लिए मंजूरी
संदर्भ:
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पांच राज्यों के ‘आकांक्षी जिलों’ (Aspirational Districts) के जो गांव मोबाइल सेवा के दायरे में नहीं हैं, उन गांवों में मोबाइल सेवा के प्रावधान के लिए मंजूरी दे दी है।
इस परियोजना के तहत आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा के 44 आकांक्षी जिलों के 7,287 गांव, जो मोबाइल सेवा के दायरे में नहीं हैं, उन गांवों में 4जी मोबाइल सेवाएं देने की परिकल्पना की गई है, जिसकी अनुमानित लागत 6,466 करोड़ रुपये है। इस धनराशि में पांच वर्षों का परिचालन व्यय भी शामिल है।
कार्यान्वयन:
इस परियोजना का वित्तपोषण ‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (Universal Service Obligation Fund – USOF) से किया जायेगा, और परियोजना को समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद 18 महीने के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (USOF) क्या है?
‘यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड’ / ‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ की स्थापना 2002 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य, सार्वभौमिक रूप से दूरसंचार सेवाएं प्रदान करना और तथा देश के ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों के लोगों के लिए समावेशी विकास का लाभ सुनिश्चित करना है।
- ‘भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम,’ 2003 के अंतर्गत ‘यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड’ (USOF) को वैधानिक दर्जा दिया गया है।
- ‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ के प्रमुख, USOF प्रशासक होते है, जो दूरसंचार विभाग (DoT) के सचिव को रिपोर्ट करते है।
वित्तपोषण:
‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (USOF) के अंतर्गत धनराशि, ‘यूनिवर्सल सर्विस लेवी’ (Universal Service Levy – USL) से जमा की जाती है। सभी दूरसंचार ऑपरेटरों से उनके ‘समायोजित सकल राजस्व’ (Adjusted Gross Revenue – AGR) पर ‘यूनिवर्सल सर्विस लेवी’ (USL) वसूल की जाती है। इस राशि को भारत की संचित निधि में जमा किया जाता है, और इसके व्यय हेतु ‘संसद के पूर्व अनुमोदन’ की आवश्यकता होती है।
देश के समावेशी विकास में USOF का योगदान:
- ‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (USOF), ग्रामीण भारतीयों को, उनकी पहुंच और उनके साधनों के भीतर, एक विश्वसनीय और सर्वव्यापी दूरसंचार नेटवर्क के माध्यम से प्रभावी ढंग से जोड़कर, अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप कार्य करने और राष्ट्र के विकास में उत्पादक रूप से भाग लेने में सक्षम बनाती है।
- यह ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में लोगों तक वहन योग्य कीमतों पर गैर-भेदभावपूर्ण गुणवत्तापूर्ण ‘सूचना और संचार प्रौद्योगिकी’ (Information and Communication Technology – ICT) सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करती है।
- यह देश के ग्रामीण और दूरदराज के हिस्सों की आबादी को मुख्यधारा में लाने हेतु भीतरी इलाकों में एक प्रभावी और शक्तिशाली संपर्क सुविधा भी प्रदान करती है।
- विश्वसनीय, मजबूत और तीव्र गति वाली दूरसंचार और ब्रॉडबैंड सुविधाओं की मौजूदगी, उपभोक्ताओं के नजरिये के साथ-साथ, रणनीतिक और शासन कारणों से भी अनिवार्य होती है।
- उपग्रह के माध्यम से प्रदान की जा रही 4जी मोबाइल सेवाएं, सीमित बैकहॉल बैंडविड्थ (Backhaul Bandwidth) के कारण प्रायः बाधित होती रहती है, इनमे भी एक बड़ा सुधार देखने को मिलेगा।
- दूरस्थ, ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल सेवाओं के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण।
- गांवों में चरणबद्ध तरीके से ब्रॉडबैंड की व्यवस्था।
- ग्रामीण क्षेत्रों में ‘राष्ट्रीय ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क’ जैसी नई प्रोद्योगिकियों को शामिल किया जाना।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने ‘इंटरनेट साथी’ (Internet Saathi) कार्यक्रम के बारे में सुना है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (USOF) के बारे में
- भारतनेट परियोजना के बारे में
- ऑप्टिकल फाइबर क्या है?
- ‘समायोजित सकल राजस्व’ (AGR) क्या है?
- आकांक्षी जिलों के कार्यक्रम के बारे में
मेंस लिंक:
‘सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि’ (USOF) के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
संदर्भ:
‘आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति’ (Cabinet Committee on Economic Affairs) ने सड़कों और पुलों के निर्माण के शेषकार्यों को पूरा करने के लिए ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’-I और II को सितंबर, 2022 तक जारी रखने हेतु अपनी मंजूरी दे दी है।
समिति द्वारा ‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों’ (Left Wing Extremism) के लिए ‘सड़क संपर्क परियोजना’ को मार्च, 2023 तक जारी रखने के लिए भी मंजूरी दी गई है।
तीन योजनाओं के तहत परिकल्पित कार्यों को पूरा करने के लिए समय-सीमा बढ़ा दी गई है।
आवश्यकता:
उत्तर-पूर्व और पर्वतीय राज्यों में कोविड लॉकडाउन, ज्यादा समय तक बारिश होने,सर्दी, वन संबंधी मुद्दों के कारण ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’-I (PMGSY-I) और ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’-II (PMGSY- II) के तहत के तहत अधिकांश कार्य लंबित हैं।
साथ ही, ये राज्य केंद्र सरकार से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से संबंधित इन महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करने के लिए समय बढ़ाने का अनुरोध करते रहे हैं।
‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ (PMGSY) के बारे में:
‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ (PMGSY), 25 दिसंबर, 2000 को लॉन्च की गयी थी।
उद्देश्य: सड़क मार्गो से बिना जुड़े हुए आवासीय क्षेत्रों को सभी मौसमों के अनुकूल सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करना।
पात्रता: जनगणना-2001 के अनुसार, मैदानी क्षेत्रों में 500 से अधिक जनसंख्या वाली और उत्तर-पूर्व तथा हिमालयी राज्यों में 250 से अधिक जनसंख्या वाली सड़क से वंचित बस्तियां।
अनुदान: पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में योजना के तहत स्वीकृत परियोजनाओं के संबंध में, केंद्र सरकार द्वारा परियोजना लागत का 90% वहन किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों के लिए केंद्र सरकार लागत का 60% वहन करती है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना: चरण –I
- PMGSY-I को दिसंबर, 2000 में 100% केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया था।
- योजना के तहत 1,35,436 बसावटों को सड़क संपर्क प्रदान करने और खेतों से बाजार तक संपर्क सुनिश्चित करने के लिए 3.68 लाख किमी मौजूदा ग्रामीण सड़कों के उन्नयन का लक्ष्य रखा गया था।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना- चरण II:
बाद में, भारत सरकार द्वारा अपनी समग्र दक्षता में सुधार हेतु मौजूदा ग्रामीण सड़क नेटवर्क के 50,000 किलोमीटर का उन्नयन करने के लिए वर्ष 2013 में ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’- चरण II (PMGSY-II) शुरू किया गया।
हालाँकि, PMGSY – I के तहत भी कार्य जारी रहा, और ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ के दूसरे चरण के तहत, ग्रामीण संपर्क के लिए पहले से ही बनाई गई सड़कों को ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए अपग्रेड किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
चुनौतियां:
- समर्पित धनराशि की कमी
- पंचायती राज संस्थाओं की सीमित भागीदारी
- अपर्याप्त निष्पादन और अनुबंध क्षमता
- विशेष रूप से पहाड़ी राज्यों में ‘कामकाजी मौसम’ की कमी और दुर्गम इलाके
- निर्माण सामग्री की कमी
- ‘वामपंथी उग्रवाद क्षेत्रों’ में सुरक्षा संबंधी चिंताएं
‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना’:
इस योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में की गयी।
- इसके तहत, 9 राज्यों, अर्थात आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के 44 जिलों में 11,725 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ सामरिक महत्व के 5,412 किलोमीटर लंबी सड़कों और 126 पुलों के निर्माण/उन्नयन का कार्य शुरू किया गया।
- गृह मंत्रालय ने राज्यों और सुरक्षा बलों के परामर्श से इस योजना के तहत सड़कों और पुलों के कार्यों का चयन किया गया है।
- योजना के तहत, सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण ‘अन्य जिला सड़कें’ (Other District Roads), ग्रामीण सड़कें (Village Roads) और मौजूदा प्रमुख जिला सड़कों (Major District Roads) का उन्नयन किया जाएगा।
- इसके अलावा, सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण इन सड़कों पर 100 मीटर तक की लंबाई वाले पुलों को भी वित्त पोषित किया जाएगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना- lll (PMGSY-III) की प्रमुख विशेषताओं के बारे में जानिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ (PMGSY) के बारे में
- ‘वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क परियोजना’ के बारे में
- वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों के बारे में
- ‘आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति’ (CCEA) के बारे में
मेंस लिंक:
ग्रामीण भारत के विकास के लिए सड़क अवसंरचना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)
संदर्भ:
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण की अगुवाई में उच्चतम न्यायालय की एक विशेष पीठ द्वारा, हाल ही में त्रिपुरा पुलिस द्वारा ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ (Unlawful Activities (Prevention) Act – UAPA) के तहत आरोपित किए गए दो वकीलों और एक पत्रकार के लिए, किसी भी “जबरदस्ती कार्रवाई” से सुरक्षा प्रदान की गयी है।
संबंधित प्रकरण:
त्रिपुरा में, अक्टूबर महीने के दौरान हुई कुछ घटनाओं की जांच के लिए इन वकीलों द्वारा ‘तथ्यों की खोज’ के लिए एक अभियान का नेतृत्व किया गया था, और इनके द्वारा “राज्य में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ लक्षित राजनीतिक हिंसा” पर एक रिपोर्ट जारी की गयी थी। UAPA के तहत आरोपित पत्रकार ने एक ट्वीट किया था, जिसमे लिखा था कि “त्रिपुरा जल रहा है”। इसके बाद इन वकीलों और पत्रकार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
वर्तमान में चिंता का विषय:
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है, कि त्रिपुरा राज्य द्वारा “प्रभावित क्षेत्रों से आने वाली सूचनाओं और तथ्यों पर एकाधिकार किया जा रहा है, और राज्य में हुई लक्षित हिंसा के संबंध में सूचनाओं और तथ्यों सार्वजनिक क्षेत्र में लाने का प्रयास कर रहे अधिवक्ताओं और पत्रकारों सहित नागरिक समाज के सदस्यों के खिलाफ UAPA लगाया जा रहा है।
समय की मांग:
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से UAPA के तहत “गैरकानूनी गतिविधि / विधिविरूद्ध क्रियाकलाप” के लिए दी गई अस्पष्ट और व्यापक परिभाषा को प्रतिबंधित करने के लिए कहा है। इन्होने तर्क दिया है, कि UAPA की अस्पष्ट परिभाषा ने, राज्य को ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ का भय दिखाकर असंतोष और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को कुचलने के लिए एक मुक्त अधिकार दे दिया है।
साथ ही, UAPA के तहत ‘अग्रिम जमानत’ पर रोक लगा दी गई है, और जमानत की संभावना बहुत कम जाती है।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के बारे में:
1967 में पारित, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधि समूहों की प्रभावी रोकथाम करना है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके द्वारा केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैरकानूनी घोषित कर सकती है।
- इसके अंतर्गत अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
UAPA के तहत, भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को आरोपित किया जा सकता है।
- यह अधिनियम भारतीय और विदेशी अपराधियों पर समान रूप से लागू होता है, भले ही अपराध भारत के बाहर विदेशी भूमि पर किया गया हो।
- UAPA के तहत, जांच एजेंसी के लिए, गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल करने के लिए अधिकतम 180 दिनों का समय दिया जाता है, हालांकि, अदालत को सूचित करने के बाद इस अवधि को और आगे बढ़ाया जा सकता है।
वर्ष 2019 में किए गए संशोधनों के अनुसार:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को, एजेंसी द्वारा मामले की जांच के दौरान, आतंकवाद से होने वाली आय से निर्मित संपत्ति पाए जाने पर उसे ज़ब्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह अधिनियम राज्य में डीएसपी अथवा एसीपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के अतिरिक्त, आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करने हेतु ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को जांच का अधिकार प्रदान करता है।
- अधिनियम में किसी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में अभिहित करने का प्रावधान भी शामिल है।
आलोचना:
नागरिक समाज द्वारा ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम’ (UAPA) को, ‘असहमति की संवैधानिक स्वतंत्रता’, ‘कानून के शासन’ और ‘निष्पक्ष सुनवाई के विपरीत’ क़ानून के रूप में बताते हुए आलोचना की जाती है।
UAPA से संबद्ध मुद्दे:
- आतंकवादी अधिनियम की अस्पष्ट परिभाषा
- जमानत दिए जाने से मनाही
- लंबित सुनवाई
- राज्य का अतिरेक
- यह क़ानून संघवाद को कमजोर करता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित UAPA की रूपरेखा:
जून 2021 में, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA), 1967 की एक अन्य रूप से “अस्पष्ट” धारा 15 की रूपरेखा को परिभाषित करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा, अधिनियम की धारा 18, 15, 17 को लागू करने पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए गए थे।
UAPA की धारा 15, 17 और 18:
- अधिनियम की धारा 15, ‘आतंकवादी कृत्यों’ से संबंधित अपराधों को आरोपित करती है।
- धारा 17 के तहत आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने पर दण्डित करने का प्रावधान किया गया है।
- धारा 18, के अंतर्गत ‘आतंकवादी कृत्य करने हेतु साजिश आदि रचने’ या आतंकवादी कृत्य करने हेतु तैयारी करने वाले किसी भी कार्य’ संबंधी अपराधों के लिए आरोपित किया जाता है।
अदालत द्वारा की गई प्रमुख टिप्पणियां:
- “आतंकवादी अधिनियम” (Terrorist Act) को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
- अदालत ने ‘हितेंद्र विष्णु ठाकुर मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि, ‘आतंकवादी गतिविधियां’ वे होती है, जिनसे निपटना, सामान्य दंड कानूनों के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता से बाहर होता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- विधिविरूद्ध क्रियाकलाप की परिभाषा
- अधिनियम के तहत केंद्र की शक्तियां
- क्या ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा लागू है?
- 2004 और 2019 में संशोधन द्वारा किए गए बदलाव।
- क्या विदेशी नागरिकों को अधिनियम के तहत आरोपित किया जा सकता है?
मेंस लिंक:
क्या आप सहमत हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता का बलिदान करना न्यायसंगत है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
सेबी का निवेशक चार्टर
हाल ही में, बाजार नियामक ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (SEBI) ने प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से एक निवेशक चार्टर (Investor Charter) जारी किया है।
- निवेशक चार्टर को तैयार करने का उद्देश्य, निवेशकों के हितों को सुरक्षित करना और उन्हें निष्पक्ष, पारदर्शी एवं सुरक्षित बाजार में निवेश में मदद पहुंचाना है।
- निवेशक चार्टर में, निवेशकों द्वारा SCORES पोर्टल पर दायर शिकायतों का तय समय पर निष्पक्ष तरीके से समाधान किया जाना भी शामिल है।
- इस चार्टर के अनुसार, निवेशकों के अधिकारों में सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर संस्थानों, सेबी रजिस्टर्ड मध्यस्थों, रेगुलेटेड संस्थाओं और एसेट मैनेजमेंट कंपनियों से गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्राप्त करना भी शामिल है।
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