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विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम, 2016
2. वर्ष 2003 का युद्धविराम समझौता
3. ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’
सामान्य अध्ययन-III
1. पटाखों में प्रयोग हेतु प्रतिबंधित रसायन
2. चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. मिलन सैन्याभ्यास
2. मणिपुर में ड्रोन आधारित वैक्सीन डिलीवरी मॉडल का आरंभ
सामान्य अध्ययन- II
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम, 2016
(Real Estate Regulatory Authority (RERA) Act of 2016)
संदर्भ:
प्रायः बिल्डरों के द्वारा खरीदारों को मकान का कब्ज़ा देने में देरी की जाती है और कई बार डिलीवरी शेड्यूल को फिर से तैयार किया जाता है। इसे देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने घर-खरीदारों को बिल्डरों के शोषण से बचाने के लिए हस्तक्षेप करने का फैसला किया है।
आवश्यकता:
हाल ही में, बिल्डरों, एजेंटों और खरीदारों के बीच किए जाने वाले ‘करारनामों’ के लिए कोई ‘एकसमान या मॉडल’ फॉर्म नहीं होने के संबंध में एक याचिका दायर की गई थी।
- याचिका में कहा गया है, कि ‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम, 2016’ (Real Estate Regulatory Authority (RERA) Act of 2016) को शायद ही कभी लागू किया जाता है।
- अपना घर बनाने के आकांक्षी आम नागरिक अपनी मेहनत की कमाई को प्रायः रियल एस्टेट में निवेश कर देते हैं। लेकिन, कई परिवार बिल्डरों के वादों पर विश्वास करके अपने सिर पर छत होने के इंतजार में दरिद्र हो चुके हैं।
याचिकाकर्ता द्वारा ‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण अधिनियम (RERA) की धारा 41 और 42 की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि:
- अधिनियम की धारा 41 में एक ‘केंद्रीय सलाहकार परिषद’ की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- धारा 42 में कहा गया है, कि यह परिषद ‘अधिनियम’ के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगी, प्रमुख नीतिगत बदलाव करेगी, तथा बिल्डरों और प्रमोटरों द्वारा उपभोक्ता हितों को बाधित नहीं किए जाने के लिए आश्वस्त करेगी। साथ ही ‘केंद्रीय सलाहकार परिषद’ रियल एस्टेट क्षेत्र के तेजी से विकास के लिए कार्य करेगी।
रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016:
रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 (Real Estate (Regulation and Development) Act 2016) का उद्देश्य पारदर्शिता लाना और विभिन्न हितधारकों के बीच संबंधों को पुनः परिभाषित करना है।
अधिनियम के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान:
- डेवलपर्स के लिए, किसी भी परियोजना के विज्ञापन और बिक्री से पहले इसे ‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण अधिनियम (RERA) के समक्ष पंजीकृत कराना आवश्यक होगा।
- डेवलपर्स से, परियोजनाओं की बिक्री शुरू करने से पहले, सभी अनुशास्ति योजनाओं के लिए अनुमोदन और विनियामक से स्वीकृति हासिल करने की भी अपेक्षा की जाती है। अनुशास्ति योजनाओं में बाद में होने वाले परिवर्तनों के लिए, खरीदारों के बहुमत और विनियामक द्वारा अनुमोदित किया जाना आवशयक होगा।
- अधिनियम में महत्वाकांक्षी रूप से RERA की वेबसाइट पर बनाए गए इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को जोड़ा गया है, जहां पर डेवलपर्स को तिमाही आधार पर अपनी परियोजनाओं की स्थिति को अपडेट करने और नियमित ऑडिट और आर्किटेक्चरल रिपोर्ट जमा करना होगा।
- अधिनियम में सभी डेवलपर्स को प्रत्येक परियोजना के संबंध में अलग-अलग ‘निलंब लेखा’ (Escrow Accounts) तैयार करने और इस तरह के खाते में ‘संग्रह-राशि का 70%’ जमा करने के लिए अनिवार्य किया गया है। इसका उद्देश्य एकत्रित धन का उपयोग केवल विशिष्ट परियोजना के लिए किया जाना सुनिश्चित करना है।
- अधिनियम में ‘रियल एस्टेट’ दलालों और एजेंटों को विनियामक के समक्ष खुद को पंजीकृत करना भी अनिवार्य किया गया है।
- यह अधिनियम, विवादों के त्वरित समाधान के लिए एक न्यायनिर्णायक तंत्र स्थापित करने का भी प्रावधान करता है। इसके तहत, RERA और अपीलीय अधिकरण द्वारा 60 दिनों की अवधि के भीतर संबंधित शिकायतों पर फैसला दिया जाएगा।
महत्त्व:
- केंद्र सरकार द्वारा इस अधिनियम के लिए ‘रियल एस्टेट क्षेत्र की सफाई, पारदर्शिता, जवाबदेही और हितधारकों के बीच निष्पक्षता’ लाने के प्रयास के रूप में वर्णित किया गया है।
- यह कानून, डेवलपर्स की विश्वसनीयता को बढ़ाते हुए उपभोक्ता को सशक्त बनाएगा।
- ऐसा माना जा रहा है कि यह अधिनियम ‘आवास की मांग को’, कम से कम तत्काल अवधि में ‘रियल एस्टेट क्षेत्र के संगठित पेशेवरों की ओर स्थानांतरित कर देगा, क्योंकि ये लोग अधिनियम की विभिन्न शर्तों को पूरा करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हैं। अधिकांश ऐसे पेशेवरों ने अधिनियम का स्वागत करते हुए कहा है कि इस नए क़ानून से ‘विश्वास की कमी’ दूर होगी।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण अधिनियम’ (RERA) के तहत प्रमोटर के विभिन्न कार्यों और कर्तव्यों के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण अधिनियम’ (RERA) के बारे में।
- प्रमुख प्रावधान
- इसके तहत स्थापित महत्वपूर्ण निकाय
मेंस लिंक:
‘भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण अधिनियम’ की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
वर्ष 2003 का युद्धविराम समझौता
संदर्भ:
हाल ही में, जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में ‘नियंत्रण रेखा’ (Line of Control – LoC) पर भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच कुछ देर के लिए गोलीबारी होने की जानकारी मिली है।
इस साल फरवरी के बाद, भारत और पाकिस्तान के मध्य वास्तविक सीमा के ‘कश्मीर घाटी’ के हिस्से में युद्धविराम समझौते के उल्लंघन की यह पहली घटना है।
पृष्ठभूमि:
भारत और पाकिस्तान द्वारा फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा (LoC) पर वर्ष 2003 के संघर्ष विराम समझौते (2003 Ceasefire agreement) का सख्ती से पालन करने के लिए एक संयुक्त बयान जारी किया गया था।
‘वर्ष 2003 के युद्धविराम समझौते’ के बारे में:
कारगिल युद्ध के चार साल बाद, दोनों देशों के मध्य नवंबर 2003 एक युद्धविराम समझौता हुआ था।
- यह युद्धविराम समझौता, 26 नवंबर, 2003 को भारत-पाकिस्तान के बीच पूरी सीमा पर लागू किया गया।
- इस समझौते के तहत, श्रीनगर-मुज़फ़्फ़राबाद और पुंछ-रावलकोट मार्गो पर आवागमन शुरू किया गया, जिससे पिछले छह दशकों में पहली बार कश्मीर के दोनों भागों को जोड़ने वाले वाली बस और ट्रक सेवाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ और सीमा-पार परस्पर संपर्को, आदान-प्रदान, यात्रा और व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया गया।
- इस युद्धविराम से, पाकिस्तान की ओर से कश्मीर में आतंकवादियों की होने वाली घुसपैठ को रोकने हेतु, भारत को नियंत्रण रेखा (LoC) के नजदीक एक बाड़ का निर्माण पूरा करने का अवसर मिला। यह परियोजना, कुछ दशक पहले शुरू की गयी थी, लेकिन पाकिस्तान की ओर से होने वाली गोलाबारी की वजह से लंबित पड़ी हुई थी।
इस युद्धविराम समझौते का महत्व:
- चूँकि, 2003 के युद्धविराम समझौते से नियंत्रण रेखा पर शांति स्थापित की गयी थी, इसलिए इसे एक ‘मील के पत्थर’ के रूप में देखा जाता है। हालांकि यह शांति वर्ष 2006 तक ही कायम रही। 2003 और 2006 के बीच, भारत और पाकिस्तान के जवानों द्वारा एक भी गोली नहीं चलाई गई।
- लेकिन 2006 के बाद से, संघर्ष विराम उल्लंघन एक आम बात बन गया। वर्ष 2018 में एक बार फिर से 2003 के युद्धविराम समझौते का पालन करने पर सहमति हुई थी, फिर भी, हाल के वर्षों में युद्धविराम उल्लंघन की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है।
संबंधित चिंताएं:
एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि, दोनों देश, नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम हेतु की गयी हालिया प्रतिबद्धताओं पर कितनी देर तक कायम रहेंगे, विशेषकर जब गर्मियों का मौसम आ रहा है। जैसा कि हमेशा होता रहा है, कि कश्मीर घाटी में गर्मियों के शुरू होने के साथ ही पाकिस्तान की ओर से होने वाली आतंकी घुसपैठ के मामले बढ़ जाते है। गर्मियों में ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ पिघलने से पाकिस्तान को घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने का मौका मिल जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत में विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों के बारे में संक्षिप्त जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- LoC क्या है और इसका निर्धारण, भौगोलिक सीमा और महत्व?
- LAC क्या है?
- ‘नाथू ला’ कहाँ है?
- ’पैंगोंग त्सो’ कहाँ है?
- ‘अक्साई चिन’ का प्रशासन कौन करता है?
- ‘नाकु ला’ कहाँ अवस्थिति है?
- पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र में किसका नियंत्रण है?
मेंस लिंक:
भारत और चीन के लिए पैंगोंग त्सो के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
हेग स्थित ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) हेतु ‘बाह्य लेखा परीक्षक’
(External auditor for Hague-based OPCW)
संदर्भ:
स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ (Conference on Disarmament – CD) का आयोजन किया जा रहा है।
- सम्मेलन में, भारत ने सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार और शांति और सुरक्षा को खतरे में डालने वाली उनकी वितरण प्रणालियों पर गहरी चिंता व्यक्त की है, और साथ ही इस तरह के हथियार आतंकवादियों के हाथों में पहुचने की संभावना को देखते हुए वैश्विक समुदाय को इस गंभीर खतरे से निपटने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
- भारत ने ‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ (Chemical Weapons Convention) के पूर्ण और प्रभावी कार्यान्वयन का समर्थन किया है और ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) को इसके महत्वपूर्ण अधिदेश को पूरा करने के लिए इसे सशक्त किए जाने पर जोर दिया है।
‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ के बारे में:
निशस्त्रीकरण सम्मेलन (Conference on Disarmament – CD) संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) द्वारा मान्यता प्राप्त एक बहुपक्षीय निशस्त्रीकरण वार्ता मंच है।
इसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा जिनेवा में ‘पैले डेस नेशंस’ (Palais des Nations) पर आधारित ‘हथियारों के नियंत्रण और निरस्त्रीकरण समझौतों’ पर वार्ता करने के लिए स्थापित किया गया है। इस सम्मेलन के जिनेवा में प्रतिवर्ष तीन अलग-अलग सत्र आयोजित किए जाते हैं।
- यह सम्मेलन, पहली बार वर्ष 1979 में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के एकल बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण वार्ता मंच के तौर पर ‘निरस्त्रीकरण समिति’ (Committee on Disarmament) के रूप में स्थापित किया गया था। वर्ष 1984 में इसे ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ का नाम दिया गया।
- गठन: 1984।
- सदस्यता: 65 देश।
सम्मेलन की स्थापना एक स्थायी एजेंडा के साथ की गयी थी, जिसे “डिकालॉग” (Decalogue) के रूप में भी जाना जाता है, और इसमें निम्नलिखित विषय शामिल हैं:
- सभी रूपों में परमाणु हथियार
- सामूहिक विनाश के अन्य हथियार
- पारंपरिक हथियार
- सैन्य बजट में कटौती
- सशस्त्र बलों में कटौती
- निरस्त्रीकरण और विकास
- निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा
संयुक्त राष्ट्र और ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ के मध्य संबंध:
‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वतंत्र निकाय है। यद्यपि यह औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था नहीं है, किंतु विभिन्न तरीकों से इससे सम्बद्ध है।
- सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, जिनेवा में ‘संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के महानिदेशक’, ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ के महासचिव के रूप में कार्य करते हैं।
- इसके अलावा, ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ द्वारा अपने प्रकार्य-नियमों और एजेंडा खुद तैयार किए जाते हैं, फिर भी, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा, ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ के लिए विशिष्ट विषयों की सिफारिश करने वाले प्रस्ताव पारित किए जा सकते है।
- अंत में, ‘निरस्त्रीकरण सम्मेलन’ द्वारा अपनी गतिविधियों की एक रिपोर्ट वार्षिक रूप से, या अधिक बार, जैसा उपयुक्त हो, संयुक्त राष्ट्र महासभा को पेश की जाती है।
‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) के बारे में:
यह,‘परमाणु अप्रसार संधि’ (Non-Proliferation Treaty- NPT) की शर्तों को लागू करने और इनका कार्यान्वयन करने हेतु ‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ (Chemical Weapons Convention- CWC), 1997 के द्वारा स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है।
- OPCW को हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा ‘समझौते’ के अनुपालन को सत्यापित करने हेतु निरीक्षण करने की शक्ति प्राप्त है।
- OPCW और संयुक्त राष्ट्र के बीच संबंध समझौते के तहत, वर्ष 2001 तक OPCW, अपने निरीक्षण और अन्य कार्रवाईयों के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र को रिपोर्ट करती थी।
- इस संगठन को रासायनिक हथियारों को खत्म करने संबंधी व्यापक प्रयासों के लिए वर्ष 2013 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ द्वारा निम्नलिखित कृत्यों को निषिद्ध किया गया है:
- रासायनिक हथियारों का विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, संग्रहण, या प्रतिधारित रखना।
- रासायनिक हथियारों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण।
- रासायनिक हथियारों का उपयोग अथवा सैन्य उपयोग के लिए तैयारी।
- CWC -निषिद्ध गतिविधियों में शामिल होने के लिए अन्य राज्यों की सहायता करना, प्रोत्साहित करना या प्रेरित करना।
- ‘युद्ध की एक विधि के रूप में’ दंगा नियंत्रण एजेंटों का उपयोग।
हेग स्थित ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) हेतु ‘बाह्य लेखा परीक्षक’:
अप्रैल 2021 में, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) को तीन वर्ष के कार्यकाल हेतु ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons- OPCW) का बाह्य लेखा परीक्षक चुना गया है। इनका कार्यकाल वर्ष 2021 से शुरू होगा।
- हाल ही में आयोजित OPCW सम्मेलन में एक चुनाव प्रक्रिया के माध्यम से यह नियुक्ति की गई।
- OPCW सम्मेलन के दौरान, भारत को एशिया समूह के प्रतिनिधि के रूप में एक अन्य दो-वर्षीय कार्यकाल के लिए OPCW की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में भी चुना गया है।
‘कार्यकारी परिषद’ के बारे में:
यह ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (OPCW) का शासी निकाय (governing body) है।
- इस ‘कार्यकारी परिषद’ में 41 OPCW सदस्य देश शामिल होते हैं, जिन्हें सदस्य देशों के परामर्श से चुना जाता है, और ये प्रति दो वर्षो में परिवर्तित होते रहते हैं।
- यह परिषद, तकनीकी सचिवालय के कार्यक्रमों का पर्यवेक्षण करती है और कन्वेंशन के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुपालन को बढ़ावा देने हेतु उत्तरदायी है।
- प्रत्येक सदस्य देश को कार्यकारी परिषद में क्रमिक आधार पर चुने जाने का अधिकार होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप नोविचोक (Novichok) के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- OPCW के बारे में
- CWC क्या है
- सदस्य
- कार्यकारी परिषद के कार्य
- OPCW के बाह्य लेखा परीक्षक की भूमिका और कार्य
मेंस लिंक:
‘रासायनिक हथियार अभिसमय’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
पटाखों में प्रयोग हेतु प्रतिबंधित रसायन
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष अक्टूबर में तथाकथित ‘हरित और उन्नत पटाखों के इस्तेमाल’ पर दायर एक हलफनामे की संवीक्षा करने हेतु पूरी तरह से तैयार है। इस मामले की सुनवाई से, इस दीवाली में आतिशबाजी होने अथवा नहीं होने पर फैसला हो सकेगा।
संबंधित प्रकरण:
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने अदालत को सूचित करते हुए कहा है कि अदालत द्वारा अक्टूबर 2018 में दिए गए फैसले के बाद इस क्षेत्र में बहुत सारे शोध और विकास हुए हैं। मंत्रालय ने अक्टूबर 2020 में अदालत के समक्ष दायर अपने हलफनामे में पेश किए गए, हरित / उन्नत पटाखों पर विभिन्न प्रस्तावों और तरीकों पर अदालत से विचार करने का आग्रह किया है।
सुप्रीमकोर्ट का निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर, 2018 को सुनाए गए अपने फैसले में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री और उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया था और देश भर में पटाखों के उपयोग को विनियमित किया था।
- ‘बेरियम’ आधारित पटाखों पर विशेष रूप से प्रतिबंध लगाया गया था।
- पटाखों की ऑनलाइन बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।
- अदालत ने यह फैसला, वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने हेतु देश भर में पटाखों के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया था।
पटाखों के उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल की टिप्पणियां:
- पटाखों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह “कुछ लोगों के रोजगार की आड़ में” अन्य नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकता है।
- रोजगार, बेरोजगारी और जीवन के अधिकार के मध्य ‘संतुलन’ बनाना होगा।
पटाखों की क्रियाविधि:
पटाखों (Firecrackers) में एक दहन प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए ‘ईंधन’ और ‘ऑक्सीकारकों’ (oxidisers) का प्रयोग किया जाता है, और इनके दहन से होने वाले परिणामी विस्फोट में पटाखों में भरी हुई सामग्री अत्यधिक गर्म अवस्था में, वातावरण में विखर जाती है। विस्फोटक मिश्रण में मिलाए गए धातु के कण ‘संदीप्त’ होकर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।
संबंधित विवाद:
पटाखों के विस्फोटक मिश्रण में मिलाए गए धात्विक कणों में इनके नाभिक के बाह्य आवरण में इलेक्ट्रॉनों की एक अलग व्यवस्था होती है। पटाखों को जलाए जाने की प्रतिक्रिया में प्रकाश की विभिन्न तरंग दैर्ध्य उत्पन्न होती हैं, जिससे शानदार रंग निकलते हैं। लेकिन, जैसा कि कई अध्ययनों से पता चलता है, पटाखों का जलना, कणों और गैसों से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण का एक असामान्य और चरम स्रोत है।
- इटली के मिलान शहर में किए गए एक अध्ययन में, पटाखों जलाए जाने पर पर वायु में एक घंटे के दौरान कई तत्वों की मात्रा के स्तर में – स्ट्रोंटियम का 120 गुना, मैग्नीशियम का 22 गुना, बेरियम का 12 गुना, पोटेशियम का 11 गुना और कॉपर का छह गुना- वृद्धि निर्धारित की गयी।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वर्ष 2016 में दिल्ली में एक अध्ययन किया गया, जिसके अनुसार- दीपावली की रात को वायु में एल्युमिनियम, बेरियम, पोटेशियम, सल्फर, आयरन और स्ट्रोंटियम के स्तर में ‘निम्न से अत्यधिक उच्च तक’ तेजी से वृद्धि हुई थी।
- चीन और यूनाइटेड किंगडम में भी इसी तरह की प्रासंगिक बढ़त दर्ज की गयी है। पटाखों से होने वाला प्रदूषण, लोगों और जानवरों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, और भारतीय शहरों में पहले से ही खराब परिवेशी वायु गुणवत्ता को और ख़राब करता है।
इसके परिणामस्वरूप अदालत में दायर की गयी याचिकाओं में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है, और अदालत द्वारा अपने आदेश में, पटाखों में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों के प्रकार के साथ-साथ उनकी मात्रा को भी प्रतिबंधित किया गया है। कई पटाखे, ध्वनि के संबंध में निर्धारित की गयी कानूनी सीमा का भी उल्लंघन करते हैं।
क्या ग्रीन पटाखों से कोई फर्क पड़ सकता है?
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के ‘राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान’ (CSIR-NEERI), नागपुर द्वारा पटाखों का एक विकल्प पेश किया गया है, जिसमें उत्सर्जित होने वाले प्रकाश और ध्वनि की मात्रा कम होती है और ऑक्सीडेंट के रूप में पोटेशियम नाइट्रेट की कम मात्रा का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से उत्सर्जित पार्टिकुलेट पदार्थों की मात्रा 30% तक कम हो जाती है।
इन पटाखों को ‘सेफ वाटर रिलीजर’ (Safe Water Releaser) नाम दिया गया है, और इनमे पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर का कम उपयोग किया जाता है, लेकिन इनसे निकलने वाली आवाज, पारंपरिक पटाखों की ध्वनि तीव्रता के समान ही होती है। इनमे एल्युमीनियम का इस्तेमाल भी काफी कम और सुरक्षित सीमा के भीतर किया जाता है, और यह पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर की कम मात्रा वाले सुरक्षित थर्माइट पटाखे होते हैं।
समय की आवश्यकता:
पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लेते समय, पटाखा निर्माताओं के ‘आजीविका के मौलिक अधिकार’ और देश के 1.3 बिलियन से अधिक लोगों के ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप पटाखों से विभिन्न रंग निकलने के कारणों के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘हरित पटाखे’ क्या होते हैं?
- इनके निर्माण में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख तत्व
- पटाखों में विभिन्न रंगों के कारक
मेंस लिंक:
‘हरित पटाखे’ क्या होते हैं? इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव।
चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार
संदर्भ:
अमेरिकी वैज्ञानिक डेविड जूलियस (David Julius) और अर्डेम पटापाउटियन (Ardem Patapoutian) ने ‘तापमान और स्पर्श के लिए अभिग्राही’ (receptors for temperature and touch) पर खोजों के लिए चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार (Nobel Medicine Prize) जीता है। इनके लिए संयुक्त रूप से 10 मिलियन स्वीडिश क्रोनर ($1.1 मिलियन) का नोबेल पुरस्कार चेक प्रदान किया जाएगा।
इस वैज्ञानिक-जोड़ी के शोध का उपयोग, पुराने दर्द सहित बीमारियों और विभिन्न स्थितियों के लिए उपचार विकसित करने के लिए किया जा रहा है।
इनकी खोजों के बारे में:
इस वैज्ञानिक-जोड़ी ने, मानव शरीर में ‘ऊष्मा’ और ‘यांत्रिक दबाव’ के प्रति संवेदनशील तथा हमें गर्म या ठंडे, या हमारी त्वचा पर किसी नुकीली वस्तु के स्पर्श का “अनुभव” कराने वाले ‘आणविक संवेदकों’ (Molecular Sensors) की खोज की है।
- डेविड जूलियस द्वारा मानव शरीर में ‘प्रथम ऊष्मा ग्राही’ (first heat receptor) की खोज की गयी है। उन्होंने अपने कार्य में, त्वचा के बाहरी भाग में मौजूद तंत्रिकाओं में ऊष्मा / गर्मी के प्रति प्रतिक्रिया देने वाले संवेदक (Sensor) की पहचान करने के लिए, तीखी मिर्च में तीखेपन के लिए जिम्मेदार पदार्थ ‘कैप्सेइसिन’ (capsaicin) के साथ प्रयोग किए थे।
- अर्डेम पटापाउटियन ने ‘शीत’ और यांत्रिक बल या ‘तापमान’ के प्रति संवेदन के आधार का रहस्य उजागर किया है। इन्होने त्वचा और आंतरिक अंगों में यांत्रिक चुभन के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले एक अद्भुत वर्ग के ‘संवेदकों’ की खोज के लिए ‘दबाव’ के प्रति संवेदनशील कोशिकाओं का उपयोग किया है।
इन खोजों का महत्व:
शरीर क्रिया विज्ञान में सफलताओं के परिणामस्वरूप, अक्सर बीमारियों और विकारों से लड़ने की क्षमता में सुधार होता है।
इन ग्राहियों /रिसेप्टर्स की पहचान, इनके कार्य-पद्धति को विनियमित करने की संभावना खोलती है। उदाहरण के लिए, कुछ रिसेप्टर्स हमें दर्द का अहसास कराते हैं। यदि इन रिसेप्टर्स का शमन किया जा सकता है, या कम प्रभावी बनाया जा सकता है, तो व्यक्ति को कम दर्द महसूस होगा।
नोबेल पुरस्कार के बारे में:
प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार में एक स्वर्ण पदक और 10 मिलियन स्वीडिश क्रोनर ($ 1.14 मिलियन से अधिक) की राशि प्रदान की जाती है।
- यह पुरस्कार राशि, नोबेल पुरस्कार के संस्थापक, स्वीडिश आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल द्वारा छोड़ी गई वसीयत से आती है। इनकी मृत्यु वर्ष 1895 में हुई थी।
- फिजियोलॉजी या मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार, जीवन विज्ञान या चिकित्सा में प्रमुख महत्व की खोज के लिए दिया जाता है।
- पुरुस्कार विजेता का चयन ‘करोलिंस्का इंस्टिट्यूट’ (करोलिंस्का इंस्टिट्यूट (Karolinska Institutet) की नोबेल असेंबली) द्वारा किया जाता है।
- मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार के पात्र उम्मीदवारों को, नोबेल समिति द्वारा पुरस्कार के लिए विचार किए जाने हेतु नाम प्रस्तुत करने के लिए निमंत्रित व्यक्तियों द्वारा नामित किया जाता है। कोई भी व्यक्ति ‘पुरुस्कार हेतु’ स्वंय अपने लिए नामित नहीं कर सकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि वैज्ञानिक डेविड जूलियस और अर्देम पटापाउटियन को पिछले वर्ष न्यूरोसाइंस के लिए प्रतिष्ठित कावली पुरस्कार (Kavli Award for Neuroscience) संयुक्त रूप से प्रदान किया गया था?
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
मिलन सैन्याभ्यास
भारत, अगले साल की शुरुआत में अपने सबसे बड़े नौसैनिक अभ्यास- मिलन सैन्याभ्यास (Exercise Milan) – की मेजबानी करने के लिए तैयार है।
- इस सैन्याभ्यास के लिए 46 देशों को आमंत्रित किया गया है।
- इस सैन्याभ्यास में सभी क्वाड देश भाग लेंगे।
- अब तक, मिलन सैन्याभ्यास का आयोजन ‘पोर्ट ब्लेयर’ में किया जाता रहा है, लेकिन अब इसे अधिक स्थान और सुविधा-जनक ‘विशाखापत्तनम’ में स्थानांतरित किया जा रहा है।
मणिपुर में ड्रोन आधारित वैक्सीन डिलीवरी मॉडल का आरंभ
हाल ही में, भारतीय आयुर्विज्ञान अनसुंधान परिषद (ICMR) की ‘ड्रोन रेस्पांस एंड आउटरीच इन नॉर्थ ईस्ट’ (I-Drone) पहल का शुभारंभ किया गया है।
- यह एक डिलीवरी मॉडल है जिसका काम जीवन-रक्षक टीके को सभी तक पहुचाना सुनिश्चित करना है।
- यह पहली बार है कि दक्षिण एशिया में 15 किलोमीटर की हवाई दूरी पर कोविड टीके के परिवहन के लिए “मेक इन इंडिया ‘ड्रोन का उपयोग किया गया है। ये टीके प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में दिए जाने के लिए मणिपुर के बिष्णुपुर जिला अस्पताल से लोकतक झील, करंग द्वीप तक 12-15 मिनट में पहुंचाए गए।
- इन स्थानों के बीच वास्तविक सड़क दूरी 26 किमी है।
- यह वितरण मॉडल दूरदराज के क्षेत्रों और दुगम इलाकों तक जीवन-रक्षक टीके पहुंचने में मदद करेगा।
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