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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. कराधान का संप्रभु अधिकार
2. अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे में लाने की सिफारिश
3. हिमाचल प्रदेश में ‘बल्क ड्रग पार्क’ की मांग
4. चीन-ताइवान संबंध
सामान्य अध्ययन-III
1. GSLV-F10 प्रक्षेपण और EOS-03 उपग्रह
2. हाथियों और बाघों की गणना करने हेतु सामूहिक सर्वेक्षण
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अल-मोहेद अल-हिंदी 2021
सामान्य अध्ययन- II
विषय: संघ एवं राज्यों के कार्य तथा उत्तरदायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय एवं चुनौतियाँ, स्थानीय स्तर पर शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसकी चुनौतियाँ।
कराधान का संप्रभु अधिकार
(Sovereign Right to Taxation)
संदर्भ:
हाल ही में, भारत सरकार द्वारा मार्च 2012 में लागू किए गए आईटी अधिनियम में ‘पूर्वव्यापी कराधान संशोधन’ (Retrospective Taxation Amendment) को वापस लेने का निर्णय किया गया है।
पृष्ठभूमि:
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2012 में आयकर अधिनियम में पूर्वव्यापी संशोधन किया गया था। यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले की प्रतिक्रिया में किया गया था। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, कि वोडाफोन पर वर्ष 2007 में किए गए लेनदेन के लिए कर नहीं लगाया जा सकता है। ज्ञात हो कि, वोडाफोन ने 11 अरब डॉलर में ‘हचिसन व्हामपोआ’ (Hutchison Whampoa) कंपनी में 67 प्रतिशत हिस्सेदारी की खरीदी थी, जिस पर भारतीय आयकर विभाग ने ‘कर’ की मांग की थी।
‘संप्रभुता’ (Sovereignty) का तात्पर्य:
संप्रभु शक्ति का क़ानून वह होता है, जिसे देश के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त किसी अन्य शक्ति द्वारा रोका या रद्द नहीं किया जा सकता है।
भारत में ‘कराधान का संप्रभु अधिकार’ क्या है?
भारतीय संविधान में, सरकार को व्यक्तियों और संगठनों पर कर लगाने का अधिकार प्रदान किया गया है, लेकिन साथ में यह भी स्पष्ट किया गया है, कि विधिक प्राधिकारी के अलावा किसी को भी कर लगाने या वसूलने का अधिकार नहीं है। किसी भी लगाए जाने वाले ‘कर’ का आधार विधायिका या संसद द्वारा पारित कानून होना चाहिए।
पूर्वव्यापी व्यवस्था को रद्द करने से लाभ:
- पूर्वव्यापी व्यवस्था को हटाने से, उन कंपनियों को एक ‘स्पष्ट एवं पूर्वानुमेय कराधान कानून’ और इरादे को दिखाया गया है, जो देश में कारोबार करते समय अपनी परिसंपत्तियों का निर्माण कर सकती हैं।
- सरकार का यह कदम, उन देशों की कंपनियों के लिए ‘सौदा’ करने के संदर्भ में भी स्पष्टता प्रदान करता है, जहाँ ये ‘सौदे’ किसी भी ‘कर संधि लाभ’ (Tax Treaty Benefits) के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- कंपनियां ‘मध्यस्थता’ अधिकरणों में दायर मुकदमों (2012 से पहले के मामलों के लिए) को वापस लेने से, अर्जित लाभ को अपने पास रख सकती हैं, और उनके द्वारा पहले से भुगतान की जा चुकी, या कर-मांग के संदर्भ में समायोजित की जा चुकी ‘कर-राशि’ को वापस कर दिया जाएगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि समवर्ती सूची के तहत, करों के संदर्भ में कोई पृथक प्रमुख नहीं है, अर्थात, संघ और राज्यों के पास कराधान की कोई समवर्ती शक्ति नहीं है?
प्रीलिम्स लिंक:
- पूर्वव्यापी कराधान क्या है?
- इसे भारत में कब लागू किया गया था?
- नए कर कौन लगा सकता है?
- नवीनतम संशोधन
मेंस लिंक:
भारत में पूर्वव्यापी कराधान से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे में लाने की सिफारिश
संदर्भ:
हाल ही में, ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) द्वारा देश में अल्पसंख्यक स्कूलों का आकलन करते हुए एक रिपोर्ट जारी की गई है। रिपोर्ट में अनुच्छेद 15(5) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को दी जाने वाली छूट के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।
अनुच्छेद 15(5) क्या है?
इस अनुच्छेद के अंतर्गत, देश में निजी तौर पर चलाए जा रहे और सरकार द्वारा सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के संबंध में आरक्षण प्रदान किए जाने का प्रावधान किया गया है। इस नियम से, केवल मदरसों जैसे अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा संचालित संस्थानों को छूट दी गई है।
पृष्ठभूमि:
कृपया ध्यान दें, अल्पसंख्यक स्कूलों को ‘शिक्षा का अधिकार नीति’ लागू करने से छूट दी गई है और यह सरकार के ‘सर्व शिक्षा अभियान’ के अंतर्गत भी नहीं आते हैं।
अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई और ‘सर्व शिक्षा अभियान’ से कैसे प्रकार छूट दी गयी है?
- वर्ष 2002 में, संविधान के 86वें संशोधन द्वारा ‘शिक्षा के अधिकार’ को मूल अधिकार के रूप में घोषित किया गया था।
- इसी संशोधन के तहत संविधान में अनुच्छेद 21A जोड़ा गया, जिसमे ‘छह से 14 साल’ की उम्र के बच्चों के लिए ‘शिक्षा का अधिकार’ (Right to Education – RTE) ‘मूल अधिकार’ बना दिया गया।
- संशोधन के पारित होने के बाद, सर्व शिक्षा अभियान (SSA) की शुरुआत की गयी, जिसका उद्देश्य छह से 14 साल के सभी बच्चों को “उपयोगी एवं प्रासंगिक प्रारंभिक शिक्षा” प्रदान करना था।
- वर्ष 2006 में, 93 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 में उपबंध (5) जोड़ा गया। जिसके अंतर्गत, राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे नागरिकों के किसी भी पिछड़े वर्ग की उन्नति हेतु, अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर, सभी सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण जैसे विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
’राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ की सिफारिश:
आयोग का विचार है, संविधान में, शिक्षा के संबंध में दो अलग-अलग नियमों का प्रावधान किया गया है, जैसे कि ‘अनुच्छेद 21A’ में सभी बच्चों को शिक्षा के मौलिक अधिकार की गारंटी तथा ‘अनुच्छेद 30’ में अल्पसंख्यकों को अपने नियमों के साथ अपने संस्थान स्थापित करने की अनुमति प्रदान की गयी है, इसके साथ ही अनुच्छेद 15 (5) में अल्पसंख्यक स्कूलों को ‘शिक्षा का अधिकार’ (RTE) से छूट प्रदान की गयी है। इन भिन्न नियमों की वजह से, बच्चों के मौलिक अधिकार और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार के बीच एक विरोधाभासी स्थिति बन जाती है।
अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे में लाने की आवश्यकता:
आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इन संस्थानों या स्कूलों में नामांकित कई बच्चे, अन्य बच्चों को मिलने वाले अधिकारों का लाभ लेने में सक्षम नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए, मिशनरी स्कूल एक ‘संभ्रांत कोकून’ (Elite Cocoons) की तरह है, इन स्कूलों में केवल कुछ निश्चित वर्ग के छात्रों को प्रवेश मिल पाता है और ये स्कूल वंचित वर्ग के बच्चों को सिस्टम से बाहर कर देते हैं। ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट में इन स्कूलों को ‘कुलीन वर्ग से भरे कोकून’ कहा है।
- साथ ही, मदरसों में छात्रों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ, विज्ञान जैसे सांसारिक पाठ्यक्रम नहीं चलाए जाते हैं, जिसकी वजह से यहाँ पढने वाले छात्र शिक्षा में पिछड़ जाते हैं और स्कूल से निकलने पर अलगाव और “हीनता” की भावना महसूस करते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि समग्र शिक्षा के तहत, समग्र शिक्षा, सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा (Teacher Education) की तीन योजनाओं को समेकित किया गया है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) – संरचना और कार्य।
- आरटीई अधिनियम के तहत NCPCR की शक्तियां।
- आरटीई अधिनियम की मुख्य विशेषताएं।
- आरटीई के दायरे में आने वाले बच्चे।
मेंस लिंक:
आरटीई अधिनियम की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
हिमाचल प्रदेश में ‘बल्क ड्रग पार्क’ की मांग
संदर्भ:
हाल ही में, कर्नाटक द्वारा केंद्र सरकार की ‘बल्क ड्रग पार्क योजना’ (Bulk Drug Parks Scheme) के तहत यादगीर जिले (Yadgir district) में ‘बल्क ड्रग पार्क’ स्थापित करने हेतु केंद्र से अनुमति मांगी गयी है।
‘बल्क ड्रग्स’ या API क्या हैं?
‘बल्क ड्रग’ (Bulk Drug) को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ (active pharmaceutical ingredients- API) भी कहा जाता है।
- यह किसी औषधि अथवा ड्रग के प्रमुख संघटक होते है, जो औषधि को वांछित चिकित्सीय प्रभाव देने में सक्षम बनाते है अथवा वांछित औषधीय अभिक्रियाओं को सक्रिय करते है।
- उदाहरण के लिए, पैरासिटामोल एक बल्क ड्रग है, जो शरीर में दर्द और बुखार से राहत देता है। इसे रोगियों के सेवन हेतु ‘अंतिम रूप से औषिधीय उत्पाद’, अर्थात ‘गोली, कैप्सूल या सिरप, के रूप में तैयार करने के लिए ‘बाइंडिंग एजेंट्स अथवा ‘विलायकों’ (Solvents) के साथ मिश्रित किया जाता है।
API किस प्रकार निर्मित किये जाते हैं?
सक्रिय दवा संघटक अर्थात API, विभिन्न रसायनों और विलायकों द्वारा कई अभिक्रियाओं से तैयार किये जाते हैं।
- API तैयार करने की प्रक्रिया में विभिन्न अभिक्रियाओं से होकर गुजरने वाले प्राथमिक रासायन या आधारभूत कच्चे माल को मुख्य शुरुआती सामग्री (key starting material- KSM) कहा जाता है।
- इन अभिक्रियाओं के मध्यवर्ती चरणों के दौरान निर्मित होने वाले रासायनिक यौगिकों को मध्यवर्ती दवा (drug intermediates or DIs) कहा जाता है।
भारत में बल्क ड्रग्स पार्क को प्रोत्साहन दिए जाने संबंधी कारण:
भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग का विश्व में तीसरा स्थान है।
किंतु, यह उद्योग सक्रिय दवा संघटकों (APIs), मध्यवर्ती दवाओं (DIs) और मुख्य शुरुआती सामग्री (KSM) के आयात हेतु अन्य देशों, विशेषकर चीन पर निर्भर है।
- अतः इन देशों में होने वाले किसी व्यवधान से भारत का दवा उद्योग प्रभावित हो सकता है।
- उदाहरण के लिए, इस वर्ष, भारत में दवा निर्माताओं को कोविड-19 के कारण आयात में व्यवधान होने से कई परेशानियों का सामना करना पड़ा।
- भारत और चीन के मध्य सीमा संघर्ष से स्थिति और भी ख़राब हुई।
भारत द्वारा इस संदर्भ में उठाए जा रहे कदम:
अधिक आत्मनिर्भरता की आवश्यकता: इसी वर्ष जून में, फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा देश में तीन बल्क ड्रग्स पार्कों को बढ़ावा देने के लिए एक योजना की घोषणा की गयी।
- बल्क ड्रग पार्क में, विशिष्ट रूप से सक्रिय दवा संघटकों (APIs), मध्यवर्ती दवाओं (DIs) और मुख्य शुरुआती सामग्री (KSM) के निर्माण हेतु सामूहिक अवस्थापना सुविधाओं सहित एक संस्पर्शी क्षेत्र निर्धारित किया जायेगा, इसके अलावा इसमें एक सामूहिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली भी होगी।
- इन पार्कों से देश में बल्क ड्रग्स की विनिर्माण लागत कम होने और घरेलू बल्क ड्रग्स उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद है।
बल्क ड्रग पार्क योजना की प्रमुख विशेषताएं:
- यह योजना, सामूहिक अवसंरचना सुविधाओं के निर्माण हेतु एकमुश्त अनुदान सहायता प्रदान करते हुए देश में तीन बल्क ड्रग पार्कों की स्थापना में सहयोग करेगी।
- सामूहिक अवसंरचना सुविधाओं के निर्माण में व्यय होने वाली कुल राशि का 70 प्रतिशत अनुदान सहायता के रूप में प्रदान किया जायेगा, तथा हिमाचल प्रदेश और अन्य पहाड़ी राज्यों के मामले में, अनुदान सहायता राशि 90 प्रतिशत होगी।
- केंद्र सरकार द्वारा प्रति पार्क अधिकतम 1,000 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की जाएगी।
- कोई राज्य, बल्क ड्रग पार्क के निर्माण हेतु केवल एक स्थल का प्रस्ताव कर सकता है, जिसका क्षेत्रफल एक हजार एकड़ से कम नहीं होना चाहिए है। पहाड़ी राज्यों के मामले में न्यूनतम सीमा 700 एकड़ निर्धारित की गयी है।
प्रीलिम्स लिंक:
- उपर्युक्त योजना की प्रमुख विशेषताएं।
- अनुदान सहायता
- लक्ष्य
- सक्रिय दवा संघटक (API) क्या होती है?
- फिक्स्ड-डोज़ दवाओं बनाम सिंगल-डोज़ दवा संयोजनों में API
- औषधियों में एक्ससिपिएंट्स (excipients) क्या होते हैं?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
चीन-ताइवान संबंध
संदर्भ:
चीन द्वारा ताइवान पर डाले जा रहे दबाव का प्रतिरोध करने के लिए अमेरिका और अन्य देशों द्वारा उठाए जा रहे कदमों के बीच, हाल ही में, ताइवान और अमेरिकी अधिकारियों के बीच एक बैठक आयोजित की गई थी।
बीजिंग द्वारा ताइवान पर चीन का दृष्टिकोण स्वीकार करने हेतु दबाव डालने का अभियान चलाया जा रहा है। चीन चाहता है, कि ताइवान यह स्वीकार करे कि उसका द्वीपीय भू-भाग चीन का हिस्सा है।
संबंधित प्रकरण:
- ताइवान के नागरिकों द्वारा चीनी मुख्य भूमि के साथ राजनीतिक एकीकरण की बीजिंग की मांग को जोरदार तरीके से खारिज कर दिया है। इसके बाद से, चीन ने ताइवान पर राजनयिक, आर्थिक और सैन्य दबाव बढ़ा दिया है।
- चीन ने काफी लंबे समय से ताइवान को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भाग लेने से अवरुद्ध किया हुआ है और वर्ष 2016 में ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के चुनाव के बाद से, इस तरह का दबाव और अधिक बढ़ा दिया है।
चीन- ताइवान संबंध: पृष्ठभूमि
चीन, अपनी ‘वन चाइना’ (One China) नीति के जरिए ताइवान पर अपना दावा करता है। सन् 1949 में चीन में दो दशक तक चले गृहयुद्ध के अंत में जब ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ के संस्थापक माओत्से तुंग ने पूरे चीन पर अपना अधिकार जमा लिया तो विरोधी राष्ट्रवादी पार्टी के नेता और समर्थक ताइवान द्वीप पर भाग गए। इसके बाद से ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ ने ताइवान को बीजिंग के अधीन लाने, जरूरत पड़ने पर बल-प्रयोग करने का भी प्रण लिया हुआ है।
- चीन, ताइवान का शीर्ष व्यापार भागीदार है। वर्ष 2018 के दौरान दोनों देशों के मध्य 226 बिलियन डॉलर के कुल व्यापार हुआ था।
- हालांकि, ताइवान एक स्वशासित देश है और वास्तविक रूप से स्वतंत्र है, लेकिन इसने कभी भी औपचारिक रूप से चीन से स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की है।
- “एक देश, दो प्रणाली” (one country, two systems) सूत्र के तहत, ताइवान, अपने मामलों को खुद संचालित करता है; हांगकांग में इसी प्रकार की समान व्यवस्था का उपयोग किया जाता है।
वर्तमान में, चीन, ताइवान पर अपना दावा करता है, और इसे एक राष्ट्र के रूप में मान्यता देने वाले देशों के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखने की बात करता है।
भारत-ताइवान संबंध
- यद्यपि भारत-ताइवान के मध्य औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, फिर भी ताइवान और भारत विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर सहयोग कर रहे हैं।
- भारत ने वर्ष 2010 से चीन की ‘वन चाइना’ नीति का समर्थन करने से इनकार कर दिया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
चीन द्वारा “एक देश, दो प्रणाली“ सूत्र के तहत किन क्षेत्रों का प्रशासन किया जाता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ताइवान की अवस्थिति और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि।
- वन चाइना नीति के तहत चीन द्वारा प्रशासित क्षेत्र।
- क्या ताइवान का WHO और संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व किया गया है?
- दक्षिण चीन सागर में स्थित देश।
- कुइंग राजवंश (Qing dynasty)।
मेंस लिंक:
भारत- ताइवान द्विपक्षीय संबंधों पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
GSLV-F10 प्रक्षेपण और EOS-03 उपग्रह
संदर्भ:
हाल ही में, रॉकेट के क्रायोजेनिक ऊपरी चरण में खराबी आ जाने के कारण GSLV-F10 के साथ भेजे जाने वाले एक ‘भू-प्रेक्षण उपग्रह’ EOS-03 का प्रक्षेपण असफल हो गया है।
‘जीएसएलवी-एफ10’, स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के साथ ISRO की आठवीं उड़ान, GSLV की 14वीं उड़ान और श्रीहरिकोटा से 79 वां प्रक्षेपण था।
EOS-03 क्या है?
- ई.ओ.एस.-03 (EOS-3) अत्याधुनिक कुशल भू-प्रेक्षण उपग्रह (Earth Observation Satellite – EOS) है, जिसे GSLV-F10 के द्वारा भूतुल्यकाली अंतरण कक्षा (geo-synchronous orbit) में स्थापित किया जाना था।
- यह उपग्रह पृथ्वी का वास्तविक-समय प्रेक्षण एवं चित्रण करने में सक्षम है, जिसका उपयोग प्राकृतिक आपदाओं, प्रासंगिक घटनाओं और किसी भी अल्पकालिक घटनाओं की त्वरित निगरानी के लिए किया जा सकता है।
- इस उपग्रह को 10 वर्ष तक सेवा देने के लिए डिजाईन किया गया था।
जीएसएलवी रॉकेट क्या है?
जीएसएलवी (GSLV) का तात्पर्य ‘भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle – GSLV) है।
- जीएसएलवी मार्क II (GSLV Mark II), भारत द्वारा निर्मित सबसे बड़ा प्रक्षेपण यान है।
- जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह पृथ्वी की कक्षा के साथ समकालिक कक्षाओं में भ्रमण करने वाले उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
- यह 2,500 किलोग्राम तक भार वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकता है और GSLV के द्वारा उपग्रहों को पहले, पृथ्वी से निकटतम दूरी अर्थात 170 किमी, पर अंतरण कक्षाओं में प्रक्षेपित किया जाता है, इसके बाद उपग्रह को पृथ्वी से अधिकतम दूरी अर्थात 35,975 किमी पर स्थित भू-समकालिक कक्षा में स्थापित किया जाता है।
PSLV और GSLV के मध्य अंतर:
वर्तमान में, भारत के पास दो प्रक्षेपण यान हैं: ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ / ’पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल’ (PSLV) और ‘भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन’ / जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV)।
- PSLV को ‘पृथ्वी की निचली कक्षा में परिभ्रमण करने वाले उपग्रहों’ (low-Earth Orbit satellites) को ‘ध्रुवीय एवं सूर्य तुल्यकालिक कक्षाओं’ में प्रक्षेपित करने के लिए विकसित किया गया था। बाद में, इस राकेट ने, भू-तुल्यकालिक, चंद्र यानों और अंतर-ग्रहीय अंतरिक्ष यानों को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके अपनी बहुमुखी उपयोग क्षमता साबित की है।
- दूसरी ओर, ‘भू-तुल्यकाली उपग्रह प्रक्षेपण वाहन’ (GSLV), को इन्सैट श्रेणी के ‘भारी उपग्रहों’ को भू-तुल्यकालिक कक्षाओं में लॉन्च करने के लिए विकसित किया गया था। अपने तीसरे और अंतिम चरण में, जीएसएलवी में स्वदेशी रूप से विकसित ऊपरी चरण के क्रायोजेनिक का उपयोग उपयोग करता है।
भू-तुल्यकालिक एवं सूर्य तुल्यकालिक उपग्रहों में अंतर:
- पृथ्वी की सतह से लगभग 36, 000 किमी दूर पहुचने पर उपग्रह, पृथ्वी की उच्च कक्षा (High Earth orbit) में प्रवेश करते करते हैं। इस कक्षा में उपग्रह, पृथ्वी के घूर्णन के साथ समकालिक हो जाते हैं, जिससे यह आभास होता है कि उपग्रह एक ही जगह या देशांतर पर स्थिर है। इन उपग्रहों को ‘भू-तुल्यकालिक’ / जियोसिंक्रोनस (Geosynchronous) कहा जाता है।
- जिस तरह भू-समकालिक उपग्रहों का भूमध्य रेखा पर एक स्थान निश्चित हो जाता है, जिससे वे पृथ्वी से एक ही स्थान पर स्थिर दिखायी देते है, उसी तरह ध्रुवीय-परिक्रमा (polar-orbiting) करने वाले उपग्रहों का भी एक स्थान निश्चित होता है और ये भी एक स्थान पर दिखाई देते है। इनकी कक्षा सूर्य तुल्यकालिक / सूर्य-समकालिक (Sun-synchronous) होती है, अर्थात इस कक्षा में स्थित उपग्रह जब भी और जहाँ भी, भूमध्य रेखा को पार करता है, पृथ्वी पर स्थानीय सौर समय हमेशा एक समान होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘थ्री-स्टेज हैवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल’ का क्या अर्थ है? विभिन्न चरणों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन कौन से होते?
प्रीलिम्स लिंक:
- भू-स्थैतिक कक्षा क्या है?
- भू-तुल्यकालिक कक्षा क्या है?
- ध्रुवीय कक्षा क्या है?
- अंतरण कक्षा क्या है?
- पीएसएलवी के बारे में
मेंस लिंक:
‘संचार उपग्रह’ क्या होते हैं? भारत के लिए इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
हाथियों और बाघों की गणना करने हेतु सामूहिक सर्वेक्षण
संदर्भ:
हाल ही में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2022 में हाथियों और बाघों की अखिल भारतीय गणना का आकलन करने हेतु होने वाली प्रक्रिया में अपनाए जाने वाले गणना अनुमान प्रोटोकॉल को जारी किया किया गया है।
नए प्रोटोकॉल के अनुसार, भारत में एक ऐसी प्रणाली शुरू की जाएगी, जिसमे ‘सामूहिक सर्वेक्षण’ के एक भाग के रूप में हाथियों और बाघों की गणना एक साथ की जाएगी।
नई विधि के लाभ:
आमतौर पर, हाथियों और बाघों की आबादी वाला 90% क्षेत्र एक ही होता है, इसे देखते हुए जब आकलन विधियों के मानदंड तय हो जाएंगे, फिर ‘सामूहिक सर्वेक्षण’ किए जाने से इनकी गणना पर होने व्यय में काफी बचत हो सकती है।
वर्तमान में हाथियों और बाघों की गणना किस प्रकार की जाती है?
वर्तमान में, ‘बाघ सर्वेक्षण’ आमतौर पर चार साल में एक बार होता है, और हाथियों की गिनती पांच साल में एक बार की जाती है।
- पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध ‘भारतीय वन्यजीव संस्थान’ (WII), देहरादून द्वारा, वर्ष 2006 में, बाघों की गणना हेतु एक प्रोटोकॉल मानदंड तैयार किए गए थे। बाघों की संख्या का अनुमान लगाने के लिए, राज्यों द्वारा इन मानदंडो का उपयोग किया जाता है। ‘कैमरा ट्रैप’ और ‘अप्रत्यक्ष आकलन विधियों’ द्वारा देखे जाने के आधार पर, बाघों की गणना की जाती है।
- हाथियों की गणना, मुख्य रूप से राज्यों पर निर्भर करती है। हाल के वर्षों में, हाथियों में जन्म दर और जनसंख्या प्रवृत्तियों का अनुमान लगाने के लिए ‘हाथियों की लीद के नमूनों का विश्लेषण’ करने जैसी तकनीकों को भी लागू किया गया है।
देश में बाघ और हाथियों की संख्या:
सबसे नवीनतम 2018-19 के सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में बाघों की संख्या 2,997 थी। वर्ष 2017 में की गई अंतिम गणना के अनुसार भारत में हाथियों की संख्या 29,964 थी।
हाथियों और उनके गलियारों के संरक्षण के उद्देश्य से अखिल भारतीय स्तर पर प्रयास:
- वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस के अवसर पर, हाथियों की सुरक्षा हेतु एक राष्ट्रव्यापी अभियान, ‘गज यात्रा’ का आरंभ किया गया था।
- इस अभियान में हाथी रेंज के 12 राज्यों को शामिल करने की योजना है।
- इस अभियान का उद्देश्य अपने अदिवासों में मुक्त आवागमन को प्रोत्साहित करने हेतु ‘हाथी गलियारों’ के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन हेतु वन मंत्रालय के दिशा-निर्देश:
- हाथियों को उनके प्राकृतिक आवासों में रखने हेतु जल स्रोतों का निर्माण तथा जंगलों की आग को नियंत्रित करना।
- तमिलनाडु में हाथियों के लिए अभेद्द्य खाइयाँ (Elephant Proof trenches) ।
- कर्नाटक में लटकती बाड़ और छोटे-छोटे पत्थरों की दीवारें (Hanging fences and rubble walls)।
- उत्तर बंगाल में मिर्च के धुएं और असम में मधुमक्खियों अथवा मांसाहारी जीवों की आवाज़ का उपयोग।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: दक्षिण बंगाल में हाथियों की पहचान, और निगरानी तथा हाथियों की उपस्थिति संबंधी चेतावनी हेतु एसएमएस अलर्ट भेजना।
इस संबंध में निजी संगठनों के प्रयास:
- एशियाई हाथी गठबंधन (Asian Elephant Alliance), पाँच NGO की एक संयुक्त छाता पहल है। इसकी स्थापना, पिछले साल, भारत के 12 राज्यों में हाथियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले 101 मौजूदा गलियारों में से 96 को सुरक्षित करने के लिए की गयी थी।
- NGO हाथी परिवार, अंतर्राष्ट्रीय पशु कल्याण कोष, IUCN नीदरलैंड और विश्व भूमि ट्रस्ट द्वारा भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट (WTI) के साथ मिलकर ‘हाथी कोरिडोर’ संरक्षण हेतु कार्य किया जा रहा है।
‘एशियाई हाथियों’ के बारे में:
- संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट में एशियाई हाथियों को “लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- विश्व की 60% से अधिक हाथी आबादी भारत में है।
- हाथी भारत का प्राकृतिक विरासत पशु है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि 1992 में भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा जंगली एशियाई हाथियों की आबादी हेतु ‘वन्यजीव प्रबंधन’ प्रयासों के लिए, राज्यों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए ‘प्रोजेक्ट हाथी’ शुरू किया गया था?
क्या आपने एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह (Asian Elephant Specialist Group) के बारे में सुना है?
प्रीलिम्स लिंक:
- एशियाई हाथी की IUCN संरक्षण स्थिति
- भारत में हाथी गलियारे।
- हाथियों का प्रजनन काल
- भारत का विरासत पशु
- गज यात्रा के बारे में
- हाथी झुंड का नेतृत्व किसके द्वारा किया जाता है?
- भारत में हाथियों की सर्वाधिक आबादी वाला राज्य
मेंस लिंक:
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन के लिए सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अल-मोहेद अल-हिंदी 2021
(Al-Mohed Al-Hindi 2021)
- यह भारत और सऊदी अरब के बीच पहला द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है।
- अल-मोहेद अल-हिंदी 2021, सऊदी में आयोजित किया जा रहा है।
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