INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 4 August 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

1. राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां, ‘CrPC’ की धारा 433-A का अध्यारोहण करती है: सुप्रीमकोर्ट

2. आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021

3. अधिकरण सुधार विधेयक, 2021

4. दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021

 

सामान्य अध्ययन-III

1. डीप ओशन मिशन

2. ‘नेट-जीरो’ कार्बन लक्ष्य जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु अपर्याप्त: ऑक्सफैम

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. मिनरवेरिया पेंटाली मेंढक प्रजाति

2. ‘टैलिसमैन सेबर’ सैन्याभ्यास

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां, ‘CrPC’ की धारा 433A का अध्यारोहण करती है: सुप्रीमकोर्ट


संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है, कि ‘संविधान के अनुच्छेद 161’ के अंतर्गत राज्यपाल को प्राप्त क्षमादान शक्तियां या सजा को कम करने संबंधी शक्तियां, ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (Criminal Procedure Code – CrPC) की धारा 433-A के तहत लगाए गए प्रतिबंधों पर अध्यारोहण कर सकती हैं।

संबंधित प्रकरण:

हरियाणा सरकार द्वारा लागू की गयी ‘परिहार नीतियों’ (Remission Policies) की व्यवहार्यता पर विचार करने के दौरान उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त टिप्पणी की गई थी। अदालत में इस बात पर विचार किया जा रहा था, कि क्या राज्य किसी आजीवन कारावास सजायाफ्ता अपराधी को न्यूनतम 14 साल का कारावास पूरा करने से पहले, समय-पूर्व रिहा करने के लिए कोई नीति बना सकता है या राज्य सरकार के लिए ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) का सख्ती से पालन करना अनिवार्य है, जिसके तहत यह निर्दिष्ट किया गया है कि न्यूनतम 14 साल का कारावास पूरा करने से पहले सजा का परिहार नहीं किया जा सकता है?

हरियाणा सरकार की सजा-परिहार नीति:

हरियाणा सरकार द्वारा लागू नीति के अनुसार, जो अपराधी आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं और जिनकी उम्र 75 वर्ष से अधिक (पुरुष अपराधियों के मामले में) है तथा वास्तविक सजा के 8 वर्ष पूरे कर चुके हैं, वे सजा में परिहार का लाभ पाने के पात्र हैं।

अदालत द्वारा की गई टिप्पणियां:

  1. राज्यपाल के लिए, किसी भी व्यक्ति को दी गयी सजा को क्षमा, प्रविलंबन (Reprieve), विराम (Respite) या परिहार (Remission) करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण (Commutation) करने की शक्ति है, भले ही किसी कैदी ने 14 साल या उससे अधिक समय का वास्तविक कारावास पूरा नहीं किया हो।
  2. तथापि, राज्यपाल के लिए प्रदत्त क्षमादान शक्तियों का प्रयोग, राज्य-सरकार की सहायता और सलाह पर किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में, उपयुक्त सरकार की सलाह राज्य के प्रमुख, अर्थात राज्यपाल के लिए बाध्यकारी होती है।
  3. इस प्रकार, सरकारी फैसले के आधार पर, सजा-लघुकरण और रिहाई की कार्रवाई की जा सकती है और इस हेतु राज्यपाल की मंजूरी के बिना भी आदेश जारी किया जा सकता है। हालाँकि, यदि इस प्रकार की कोई रिहाई संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत की जाती है, तो कार्य-नियमावली के अंतर्गत और संवैधानिक शिष्टाचार के रूप में, राज्यपाल की अनुमति ली जा सकती है।

राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां:

संविधान के अनुच्छेद 161 में राज्यपाल को क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है।

इसके तहत, किसी राज्य के राज्यपाल को राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अंतर्गत आने वाले विषयों के संदर्भ में, किसी विधि विरुद्ध अपराध के लिए दोष-सिद्ध ठहराये गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्रदान की गयी है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों के मध्य अंतर:

अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा, अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है:

यह निम्नलिखित दो आधारों पर भिन्न होता है:

  1. कोर्ट मार्शल: राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियाँ, सेना न्यायालय द्वारा दिए गई सजा अथवा दंडों (कोर्ट मार्शल) से संबंधित मामलों तक विस्तारित होती हैं, जबकि, अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।
  2. मृत्युदंड: राष्ट्रपति, मृत्युदंड से सबंधित सभी मामलों में क्षमा प्रदान कर सकता है, जबकि, राज्यपाल की क्षमादान शक्ति मृत्युदंड से सबंधित मामलों पर विस्तारित नहीं है।

‘दंड प्रक्रिया संहिता’ (CrPC) की धारा 433-A:

यह धारा, कुछ मामलों में सजा के परिहार या लघुकरण करने की शक्तियों पर प्रतिबंध से संबंधित है।

इसके अनुसार, ‘दंड प्रक्रिया संहिता’ की धारा 432 में किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए, जिसके लिए विधि द्वारा उपबंधित सजाओं में ‘मृत्यु-दंड’ की सजा भी दी जा सकती है, आजीवन कारावास का दंडादेश दिया गया है, अथवा धारा 433 के अधीन किसी व्यक्ति को दिए गए मृत्यु-दंड की सजा का आजीवन कारावास के रूप में लघुकरण किया गया है, तब ऐसे व्यक्ति को चौदह वर्ष का कारावास पूरा करने से पहले रिहा नहीं किया जाएगा।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

हालाँकि, किसी राज्य के राज्यपाल को कुछ स्थितियों में अपने विवेकानुसार कार्य करने की शक्ति प्राप्त होती है। क्या आप उन स्थितियों के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारत में राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों में अंतर
  2. संबंधित संवैधानिक प्रावधान
  3. इन फैसलों के खिलाफ अपील
  4. क्या न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं?
  5. ऐसे मामलों में मंत्रिमंडल की भूमिका।

मेंस लिंक:

भारत में राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों की विस्तार से तुलना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक


(Essential Defence Services Bill)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘अनिवार्य रक्षा सेवा विधेयक’, 2021 (Essential Defence Services Bill, 2021) लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया है।

इसका उद्देश्य, सरकारी स्वामित्व वाले ‘आयुध कारखानों’ (Ordnance Factories) के कर्मचारियों द्वारा हड़ताल करने पर रोक लगाना है।

विधेयक के प्रमुख बिंदु:

  1. यह विधेयक, “अनिवार्य रक्षा सेवाओं’ को जारी रखने के सबंध में प्रावधान करता है।
  2. विधेयक में आवश्यक रक्षा सेवाओं को परिभाषित किया गया है: इसमें, रक्षा संबंधी उद्देश्यों के लिए जरूरी वस्तुओं या उपकरणों का निर्माण करने वाला कोई संस्थान या उपक्रम, यासशस्त्र बलों या इनसे जुड़ा हुआ कोई संस्थान या रक्षा संबंधी संस्थान को शामिल किया गया है।
  3. विधेयक में, सरकार को इसमें उल्लिखित सेवाओं को ‘अनिवार्य रक्षा सेवाओं’ के रूप में घोषित करने की शक्ति प्रदान की गई है।
  4. इसमें, “अनिवार्य रक्षा सेवाओं में संलग्न किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान या इकाई” में हड़ताल और तालाबंदी पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  5. विधेयक के द्वारा, आवश्यक रक्षा सेवाओं को लोक उपयोगी सेवाओं में शामिल करने हेतु ‘औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन किया गया है।
  6. इसके अलावा, विधेयक में ‘हड़ताल’ तथा इसके उल्लंघन के लिए दंड को भी परिभाषित किया गया है।

विधेयक की आवश्यकता:

  • जून, 2021 में केंद्र सरकार द्वारा ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (Ordnance Factory Board – OFB) का ‘निगमीकरण’ करने संबंधी घोषणा की गयी थी।
  • सरकार के अनुसार, इस कदम का उद्देश्य इन कारखानों की दक्षता और जवाबदेही में सुधार करना है।
  • हालांकि, सरकार के इस फैसले के बाद नौकरी छूटने के डर से, कई संघों द्वारा अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू करने की घोषणा की गई थी।
  • और, इस पर रोक लगाने के लिए सरकार द्वारा 30 जून को ‘अनिवार्य रक्षा सेवा अध्यादेश’ (Essential Defence Services Ordinance) लागू कर दिया गया। यह विधेयक इस अध्यादेश की जगह लेगा।

इस विधेयक का प्रभाव:

यह विधेयक, देश भर के 41 आयुध कारखानों के लगभग 70,000 कर्मचारियों पर प्रत्यक्ष रूप से असर डालेगा। ये कार्मिक ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) का ‘निगमीकरण’ किए जाने से असंतुष्ट है, और इनको आशंका है कि इससे उनकी सेवा और सेवानिवृत्ति की शर्तों पर प्रभाव पड़ेगा।

‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ एवं इसके द्वारा उत्पादन का महत्व:

आयुध कारखाने रक्षा हार्डवेयर और उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन के लिए एक एकीकृत आधार बनाते हैं, आयुध कारखाने, रक्षा मशीनरी और उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन हेतु एक समेकित आधार हैं, और इनका प्रधान उद्देश्य सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक युद्धक्षेत्रक उपकरणों से लैस करना है।

अतः, अनिवार्य रक्षा सेवाओं को जारी रखने हेतु, ताकि राष्ट्र की सुरक्षा और अधिकांश जन-जीवन और संपत्ति को सुरक्षित रखने और इससे संबद्ध या आनुषांगिक विषयों के लिए एक क़ानून बनाना आवश्यक है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘औद्योगिक विवाद अधिनियम,’ 1957 की धारा 22(1)(ए) के तहत भारत में हड़ताल का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है?  यह अधिकार, संविधान में उल्लखित किस मौलिक अधिकार से आधार प्राप्त करता है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) क्या है?
  2. विधेयक के प्रमुख बिंदु
  3. विधेयक के अंतर्गत केंद्र को प्राप्त शक्तियां

मेंस लिंक:

‘आयुध निर्माणी बोर्ड’ (OFB) के निगमीकरण से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) विधेयक, 2021


(Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Bill, 2021)

संदर्भ:

हाल ही में, अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) विधेयक, 2021 (Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Bill, 2021) को लोकसभा में ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। यह विधेयक अप्रैल 2021 में प्रख्यापित एक अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश को पुरःस्थापित करेगा।

  • विधेयक में, ‘अधिकरण’ (ट्रिब्यूनल) के विभिन्न सदस्यों हेतु समान नियम और सेवा-शर्तों का प्रावधान किया गया है।
  • इसके अलावा, विधेयक में, अधिकरणों को युक्तिसंगत बनाने हेतु प्रयास के रूप में कुछ अधिकरणों को समाप्त करने प्रस्ताव किया गया है।

पृष्ठभूमि:

विधेयक के माध्यम से किए जाने वाले प्रस्तावित बदलाव, ‘मद्रास बार एसोसिएशन मामले’ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों पर आधारित हैं।

मुख्य परिवर्तन:

  • विधेयक में, कुछ मौजूदा अपीलीय निकायों को भंग करने और उनके कार्यों (जैसे अपीलों पर न्यायिक निर्णय लेना) को दूसरे मौजूदा न्यायिक निकायों को अंतरित करने का प्रावधान किया गया है।
  • विधेयक के तहत, केंद्र सरकार को अधिकरणों के सदस्यों की योग्यता, नियुक्ति, पदावधि, वेतन और भत्ते, त्यागपत्र, पद-मुक्ति और अन्य नियमो व सेवा-शर्तों हेतु नियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • विधेयक के अनुसार, केंद्र सरकार ‘खोज एवं चयन समिति’ (Search-cum-Selection Committee) के सुझाव पर अधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति करेगी। इस समिति की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
  • राज्य प्रशासनिक अधिकरणों (State Tribunals) के लिए, एक पृथक ‘खोज समिति’ होगी।
  • केंद्र सरकार को ‘खोज एवं चयन समितियों’ के सुझावों पर तीन महीने के भीतर ‘अधिमान्य रूप से’ फैसला लेना लेना होगा।
  • कार्यकाल: अधिकरण का अध्यक्ष, 4 साल की अवधि या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, तक पद धारण करेगा। अधिकरण के अन्य सदस्य, 4 साल की अवधि या 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, तक पद धारण करेंगे।

अपीलीय अधिकरणों का उन्मूलन:

विधेयक के तहत, पांच अधिकरणों – ‘फिल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण’,  ‘हवाईअड्डा अपीलीय अधिकरण’, ‘अग्रिम निर्णय प्राधिकरण’, ‘बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड’ और ‘पादप प्रजाति संरक्षण अपीलीय अधिकरण’ – को समाप्त करने तथा उनके कार्यों को मौजूदा न्यायिक निकायों के लिए अंतरित किया जाने का प्रस्ताव किया गया है।

विधेयक के संदर्भ में अदालत का निर्णय:

  • ‘मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ’ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने किसी अधिकरण के अध्यक्ष एवं सदस्यों के के रूप में नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष और चार साल का कार्यकाल, निर्धारित करने वाले प्रावधानों को रद् कर दिया था।
  • अदालत के अनुसार- इस प्रकार की शर्तें, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, विधि के शासन और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।

संबंधित विवाद:

विधेयक के द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निष्प्रभावी करने का प्रयास किया गया है:

  1. विधेयक में आवश्यक न्यूनतम आयु को 50 वर्ष रखा गया है।
  2. अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष का प्रस्तावित किया गया है।
  3. प्रत्येक पद पर नियुक्ति के लिए ‘खोज एवं चयन समिति’ द्वारा दो नामों की सिफारिश और सरकार द्वारा तीन महीने के भीतर निर्णय लेने की अपेक्षा की गयी है।

‘अधिकरण’ क्या होते हैं?

‘अधिकरण’ (Tribunal), एक अर्ध-न्यायिक संस्था होते है, जिन्हें प्रशासनिक विवादों अथवा कर-संबंधी विवादों को हल करने जैसी समस्याओं का निपटारा करने के लिए गठित किया जाता है। यह, विवादों का फैसला करने, दावा करने वाले पक्षों के मध्य अधिकारों का निर्धारण करने, प्रशासनिक निर्णय लेने, मौजूदा प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा करने, जैसे आदि कार्य करते हैं।

संवैधानिक प्रावधान:

‘अधिकरण’, मूल रूप से संविधान का भाग नहीं थे।

‘स्वर्ण सिंह समिति’ की सिफारिशों के आधार पर, 42 वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से इन प्रावधानों को संविधान में शामिल किया गया।

इस संशोधन के अंतर्गत, संविधान में ‘अधिकरणों’ से संबंधित ‘भाग XIV-A जोड़ा गया तथा इसमें दो अनुच्छेद शामिल किये गए:

  1. अनुच्छेद 323A: प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है। प्रशासनिक अधिकरण, लोक-सेवा में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित विवादों को हल करने वाली अर्ध-न्यायिक संस्थाएं हैं।
  2. अनुच्छेद 323B: अन्य विषयों जैसे कि कराधान, औद्योगिक एवं श्रम विवाद, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, भूमि सुधार, खाद्य सामग्री, नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा, संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये निर्वाचन, किराया और किराएदार के अधिकार, आदि का समाधान करने हेतु अधिकरणों के गठन से संबंधित है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या राज्य सरकारों के लिए ‘अधिकरणों’ का गठन करने की शक्ति प्राप्त है? ‘अधिकरणों’ के गठन के संबंध में राज्यों की शक्तियाँ और सीमाएँ क्या हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अधिकरण क्या होते हैं?
  2. इस संबंध में संवैधानिक प्रावधान।
  3. संरचना और कार्य।
  4. नवीनतम अध्यादेश का अवलोकन।

मेंस लिंक:

क्या ‘अधिकरण’, न्यायिक दक्षता के लिए रामबाण के समान होते हैं? क्या ‘न्याय’ हेतु अधिकरणों का गठन करना हमारे संविधान में निर्धारित सिद्धांतों को कमजोर करता है? जांच कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।

दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021


(Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill, 2021)

संदर्भ:

हाल ही में, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021 (Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill, 2021), राज्यसभा ने पारित कर दिया गया।

नोट: पिछले सप्ताह ही इस ‘लेख’ को हम विस्तार से कवर कर चुके हैं, कुछ दिन पूर्व ही इस विधेयक को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।

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सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

‘डीप ओशन मिशन’


संदर्भ:

हाल ही में, सरकार द्वारा राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, ‘डीप ओशन मिशन’ (Deep Ocean Mission – DOM) के कार्यान्वयन हेतु पांच वर्ष के लिए 4077 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है, और वर्ष 2021 में ही इस मिशन के सभी घटक अपना कार्य शुरू कर देंगे।

भारत का ‘डीप ओशन मिशन’

यह मिशन, गहरे समुद्र में खनन, समुद्री जलवायु परिवर्तन संबंधी सलाहकारी सेवाओं, अन्तर्जलीय वाहनों एवं अन्तर्जलीय रोबोटिक्स संबंधी प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित होगा।

  • इस अभियान को चरणबद्ध तरीके से लागू करने के लिए 5 वर्ष की अवधि की अनुमानित लागत 4,077 करोड़ रुपए होगी।
  • इस बहु-संस्थागत महत्वाकांक्षी अभियान को लागू करने हेतु पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) नोडल मंत्रालय होगा।

मिशन के प्रमुख घटक:

इस गहरे समुद्र अभियान में निम्नलिखित छह प्रमुख घटक शामिल हैं:

  1. गहरे समुद्र में खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास: तीन लोगों को समुद्र में 6,000 मीटर की गहराई तक ले जाने के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जाएगी। मध्य हिंद महासागर में इस गहराई से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स के खनन के लिए एक एकीकृत खनन प्रणाली भी विकसित की जाएगी।
  2. महासागर जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं का विकास
  3. गहरे समुद्र में जैव विविधता की खोज और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार: सूक्ष्म जीवों सहित गहरे समुद्र की वनस्पतियों और जीवों की जैव-पूर्वेक्षण और गहरे समुद्र में जैव-संसाधनों के सतत उपयोग पर अध्ययन करना।
  4. गहरे समुद्र में सर्वेक्षण और अन्वेषण: इस घटक का प्राथमिक उद्देश्य हिंद महासागर के मध्य-महासागरीय भागों के साथ बहु-धातु हाइड्रोथर्मल सल्फाइड खनिज के संभावित स्थलों का पता लगाना और उनकी पहचान करना है।
  5. महासागर से ऊर्जा और मीठा पानी: अपतटीय महासागर थर्मल ऊर्जा रूपांतरण (ओटीईसी) विलवणीकरण संयंत्र के लिए अध्ययन और विस्तृत इंजीनियरिंग डिजाइन तैयार करना।
  6. महासागर जीवविज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशनः इस घटक का उद्देश्य महासागरीय जीव विज्ञान और इंजीनियरिंग में मानव क्षमता और उद्यम का विकास करना है। यह घटक ऑन-साइट बिजनेस इन्क्यूबेटर सुविधाओं के माध्यम से अनुसंधान को औद्योगिक अनुप्रयोग और उत्पाद विकास में परिवर्तित करेगा।

महत्व:

  • यह मिशन भारत के विशाल विशेष आर्थिक क्षेत्र और महाद्वीपीय शेल्फ में अन्वेषण करने संबंधी प्रयासों को बढ़ावा देगा।
  • यह योजना भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (Central Indian Ocean Basin- CIOB) में संसाधनों का दोहन करने की क्षमता विकसित करने में सक्षम बनाएगी।

संभावनाएं:

भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में पॉली-मेटैलिक नॉड्यूल्स (Polymetallic nodules- PMN) अन्वेषण के लिये ‘संयुक्त राष्ट्र सागरीय नितल प्राधिकरण’ (UN International Sea Bed Authority for exploration) द्वारा 75,000 वर्ग किलोमीटर का आवंटन किया गया है।

  • मध्य हिंद महासागर बेसिन क्षेत्र में लोहा, मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट जैसी धातुओं के भण्डार हैं।
  • अनुमानित है कि, इस विशाल भण्डार के मात्र 10% दोहन से भारत की अगले 100 वर्षों के लिए ऊर्जा आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं।

पॉली-मेटैलिक नॉड्यूल्स (PMN)

  • पॉली-मेटैलिक नॉड्यूल्स (जिन्हें मैंगनीज नॉड्यूल्स भी कहा जाता है) आलू के आकारनुमा तथा प्रायः छिद्रयुक्त होते हैं। ये विश्व महासागरों में गहरे समुद्र तलों पर प्रचुर मात्रा में बिछे हुए पाए जाते हैं।
  • अवगठन: पॉली-मेटैलिक नॉड्यूल्स में मैंगनीज और लोहे के अलावा, निकल, तांबा, कोबाल्ट, सीसा, मोलिब्डेनम, कैडमियम, वैनेडियम, टाइटेनियम पाए जाते है, जिनमें से निकल, कोबाल्ट और तांबा आर्थिक और सामरिक महत्व के माने जाते हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘ओ-स्मार्ट’ (O-SMART) के बारे में जानते हैं? यह एक अम्ब्रेला योजना है, जिसका उद्देश्य सतत विकास हेतु महासागरों, समुद्री संसाधनों का विनियमित उपयोग करना है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘गहरे समुद्र में खनन’ क्या होता है?
  2. PMN क्या हैं?
  3. मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) की अवस्थिति
  4. संयुक्त राष्ट्र सागरीय नितल प्राधिकरण के कार्य

मेंस लिंक:

भारत द्वारा शुरू किए जाने वाले ‘डीप ओशन मिशन’ की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

‘नेट-जीरो कार्बन लक्ष्य जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु अपर्याप्त: ऑक्सफैम


संदर्भ:

एक स्वतंत्र चैरिटबल संगठन ‘ऑक्सफैम’ (Oxfam) के अनुसार, ‘नेट-जीरो’ (Net-Zero) कार्बन लक्ष्य, कार्बन उत्सर्जन में कटौती को प्राथमिकता देने की बजाय ‘हानिकारक विकर्षण’ (Dangerous Distraction) साबित हो सकते हैं। विदित हो कि, कई देशों द्वारा नेट-जीरो’ कार्बन लक्ष्य घोषित भी किए जा चुके हैं।

इसकी वजह:

  1. ऑक्सफैम’ द्वारा कुछ समय पूर्व ‘टाईटनिंग द नेट’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, कि यदि जलवायु परिवर्तन की चुनौती से केवल अधिक पेड़ लगाकर ही निपटा जा सकता है, तो वर्ष 2050 तक दुनिया के अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन को हटाने के लिए लगभग 6 बिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में नए वन लगाने की जरूरत होगी।
  2. इसके अलावा, इस तरह की ‘जमीन की भूखी ‘नेट जीरो’ योजनाओं’ की वजह से वैश्विक खाद्य कीमतों में 80 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, और अमीर देशों और कॉरपोरेट्स को “हमेशा की तरह गंदा व्यापार” जारी रखने का अवसर मिलता रहेगा।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु विकल्प:

ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने और जलवायु परिवर्तन से अपरिवर्तनीय क्षति को रोकने हेतु, संपूर्ण विश्व को एक साथ ‘ट्रैक’ पर आना चाहिए और वर्ष 2030 तक वर्ष 2010 के उत्सर्जन-स्तर में 45  प्रतिशत की कटौती करने का लक्ष्य निर्धारित किया जाना चाहिए, जिसमे सर्वाधिक उत्सर्जन करने वाले देशों को सबसे अधिक कटौती करनी चाहिए।

‘नेट-जीरो लक्ष्य घोषित करने वाले राष्ट्र:

  1. वर्ष 2019 में न्यूजीलैंड सरकार द्वारा ‘जीरो कार्बन अधिनियम’ पारित किया गया और इसके तहत देश को वर्ष 2050 तक ‘जीरो कार्बन उत्सर्जन’ का लक्ष्य हासिल करने करने हेतु प्रतिबद्ध किया गया।
  2. ब्रिटेन की संसद द्वारा एक कानून पारित किया गया है, जिसके तहत सरकार को यूनाइटेड किंगडम में ग्रीनहाउस गैसों के शुद्ध उत्सर्जन को 100 प्रतिशत तक कम करने का दायित्व सौंपा गया है।
  3. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा वर्ष 2030 तक देश के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वर्ष 2005 के स्तर से न्यूनतम 50 प्रतिशत की कटौती करने की घोषणा की गयी है।
  4. जलवायु परिवर्तन पर अनिच्छुक सहयोगियों को एक साथ लाने और वर्ष 2050 तक देश में ‘नेट-जीरो’ कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचने के साथ वर्ष 2019 में ‘वर्ल्ड वॉर जीरो की शुरुआत की गई।
  5. यूरोपीय संघ की ‘फिट फॉर 55’ योजना: इसके तहत, यूरोपीय आयोग ने अपने सभी 27 सदस्य देशों को अपने उत्सर्जन में 2030 तक 1990 के उत्सर्जन स्तर से 55 प्रतिशत तक कटौती करने के लिए कहा है।
  6. चीन ने वर्ष 2060 तक ‘नेट-जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने की घोषणा की है और अपने उत्सर्जन को वर्ष 2030 के स्तर तक सीमित करने की बात कही है।

भारत और ‘नेट-ज़ीरो’ लक्ष्य:

  • अमेरिका और चीन के बाद, भारत, ग्रीनहाउस गैसों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है, और ‘नेट-ज़ीरो’ लक्ष्य से बाहर रहने वाला एकमात्र प्रमुख देश है।
  • भारत का तर्क है, कि ‘पेरिस समझौते’ फ्रेमवर्क से अलग नेट-जीरो लक्ष्यों पर समानांतर चर्चा शुरू करने के बजाय, सभी देशो को उन लक्ष्यों को पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए, जिनके लिए वे पहले से वादा कर चुके है।

भारत की चिंताएं:

चूंकि, भारत अपने देश के लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने हेतु उच्च विकास दर हासिल करने के लिए प्रयास कर रहा है, जिसकी वजह से अगले दो से तीन दशकों में, भारत का उत्सर्जन विश्व में सर्वाधिक तेज गति से बढ़ने की संभावना है। कितना भी वनीकरण या पुनर्वनीकरण इस उत्सर्जन-वृद्धि की भरपाई करने में सक्षम नहीं होगा। इसके अलावा, कार्बन-मुक्त करने के लिए उपलब्ध अधिकांश प्रौद्योगिकियां अभी तक या तो अविश्वसनीय हैं या बहुत महंगी हैं।

‘नेट-ज़ीरो’ क्या है?

‘नेट-ज़ीरो’  (Net-Zero), जिसे ‘कार्बन-तटस्थता’ (carbon-neutrality) भी कहा जाता है, का मतलब यह नहीं है, कि कोई देश अपने सकल उत्सर्जन को शून्य तक ले जाएगा।

  • बल्कि, ‘नेट-ज़ीरो’ एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें किसी देश के उत्सर्जन को, ‘वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण तथा निराकरण’ के द्वारा क्षतिपूरित (compensated) किया जाता है।
  • उत्सर्जन का अवशोषण करने में वृद्धि करने हेतु अधिक संख्या में कार्बन सिंक, जैसे कि जंगल, तैयार किये जा सकते हैं, जबकि वायुमंडल से गैसों का निराकरण करने अथवा निष्कासित करने के लिए कार्बन कैप्चर और भंडारण जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की आवश्यकता होती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आपने ‘कार्बन सिंक’ के बारे में सुना है? कुल कार्बन उत्सर्जन का लगभग 25% समुद्र द्वारा अवशोषित किया जाता है, और यह विश्व का सबसे बड़ा ‘कार्बन सिंक’ बन जाता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘जलवायु नेताओं’ के शिखर सम्मेलन के बारे में।
  2. नेट-ज़ीरो क्या है?
  3. नेट-ज़ीरो के लिए प्रतिबद्ध देश।
  4. पेरिस समझौते के बारे में।

मेंस लिंक:

‘कार्बन सिंक’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


मिनरवेरिया पेंटाली मेंढक प्रजाति

(Minervarya Pentali)

हाल ही में पश्चिमी घाट में मेंढक की एक नई प्रजाति की खोज की गई है और यह प्रजाति दक्षिणी पश्चिमी घाट (केरल और तमिलनाडु) के लिए स्थानिक है।

  • यह प्रजाति सबसे छोटे ज्ञात ‘मिनरवेरिया’ (प्रजाति) मेंढकों में से एक है।
  • नई मेंढक प्रजाति ‘डिक्रोग्लोसिडे’ (Dicroglossidae) परिवार से संबंधित है।
  • इस प्रजाति का नामकरण, दिल्ली विश्वविद्यालय में सिस्टेमैटिक्स लैब की स्थापना हेतु सहयोग और प्रोत्साहन देने के लिए, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और पादप-आनुवंशिकीविद् प्रो. ‘दीपक पेंटल’ के नाम पर रखा गया है।

टैलिसमैन सेबर’ सैन्याभ्यास

(Exercise Talisman Sabre)

ऑस्ट्रेलिया, भारत को 2023 में होने वाले अपने सबसे बड़े युद्धाभ्यास ‘एक्सरसाइज टैलिसमैन सेबर’ में शामिल होने का इच्छुक है। शीघ्र ही, इस संबंध में भारत को एक औपचारिक निमंत्रण दिया जाएगा।

  • हाल ही संपन्न हुआ ‘टैलिसमैन सेबर’ 2021, ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल (ADF) और अमेरिकी सेना के मध्य सबसे बड़ी द्विपक्षीय संयुक्त प्रशिक्षण कार्रवाही थी।
  • इसमें स्थल, वायु और समुद्र में सात देशों के लगभग 17,000 सैन्य कर्मियों से भाग लिया।
  • इस सैन्याभ्यास में कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और यू.के. भाग लेने वाले अन्य देश थे।

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