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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. जम्मू-कश्मीर में परिसीमन
2. राजद्रोह कानून के खिलाफ पत्रकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील
3. जीका वायरस
4. WHO की अहर्ता-पूर्व या आपातकालीन उपयोग सूची
5. केयर्न एनर्जी को भारतीय परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा करने का अधिकार
सामान्य अध्ययन-III
1. क़ानून तैयार होने तक व्हाट्सएप प्राइवेसी पॉलिसी के क्रियान्वयन पर रोक
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. भूमि पांडुगा
2. हिमालयी याक
3. इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (IILB)
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन
(Delimitation in J&K)
संदर्भ:
‘जम्मू एवं कश्मीर परिसीमन आयोग’ के अनुसार, इसकी अंतिम रिपोर्ट 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार की जाएगी और रिपोर्ट में भौगोलिक स्थिति, दुर्गम इलाकों तथा वर्तमान में जारी ‘परिसीमन प्रक्रिया’ (Delimitation Exercise) हेतु संचार के साधनों और उपलब्ध सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया- घटनाक्रम:
- जम्मू-कश्मीर में पहली परिसीमन प्रक्रिया वर्ष 1951 में एक परिसीमन समिति द्वारा निष्पादित की गई थी, और इसके तहत, तत्कालीन राज्य को 25 विधानसभा क्षेत्रों में विभक्त किया गया था।
- इसके पश्चात, वर्ष 1981 में पहली बार एक पूर्ण परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन किया गया था और इस आयोग द्वारा वर्ष 1981 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1995 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गेन थी। इसके बाद से, राज्य में कोई अब तक कोई परिसीमन नहीं हुआ है।
- वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने के लिए, एक ‘परिसीमन आयोग’ का गठन किया गया। इस आयोग को संघ-शासित प्रदेश में सात अन्य सीटों को जोड़ने तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों को आरक्षण देने का आदेश दिया गया।
- नए परिसीमन के पश्चात, जम्मू-कश्मीर में सीटों की कुल संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी। ये सीटें ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) के लिए आरक्षित 24 सीटों के अतिरिक्त होंगी और इन सीटों को विधानसभा में खाली रखा जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की आवश्यकता:
‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganisation Act, 2019) के प्रावधानों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल 6 मार्च को, केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के लिए जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। विदित हो कि, इस अधिनियम के तहत राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था।
‘परिसीमन’ क्या होता है?
‘परिसीमन’ (Delimitation) का शाब्दिक अर्थ, ‘विधायी निकाय वाले किसी राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण प्रक्रिया’ होता है।
‘परिसीमन प्रक्रिया’ का निष्पादन:
- परिसीमन प्रक्रिया, एक उच्च अधिकार प्राप्त आयोग द्वारा संपन्न की जाती है। इस आयोग को औपचारिक रूप से परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग (Boundary Commission) कहा जाता है।
- परिसीमन आयोग के आदेशों को ‘क़ानून के समान’ शक्तियां प्राप्त होती है, और इन्हें किसी भी अदालत के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
आयोग की संरचना:
‘परिसीमन आयोग अधिनियम’, 2002 के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग में तीन सदस्य होते हैं: जिनमे अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, तथा पदेन सदस्य के रूप में मुख्य निर्वाचन आयुक्त अथवा इनके द्वारा नामित निर्वाचन आयुक्त एवं राज्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते है।
संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है।
- अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि अगस्त 2019 तक, जम्मू-कश्मीर में लोकसभा सीटों का परिसीमन भारत के संविधान द्वारा नियमित होता था, किंतु, राज्य की विधानसभा सीटों का परिसीमन ‘जम्मू और कश्मीर संविधान’ और ‘जम्मू और कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम’, 1957 द्वारा नियमित होता था?
प्रीलिम्स लिंक:
- पूर्ववर्ती परिसीमन आयोग- शक्तियाँ और कार्य
- आयोग की संरचना
- आयोग का गठन किसके द्वारा किया जाता है?
- आयोग के अंतिम आदेशों में परिवर्तन की अनुमति?
- परिसीमन आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
मेंस लिंक:
निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार और क्यों किया जाता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
राजद्रोह कानून के खिलाफ पत्रकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील
संदर्भ:
हाल ही में, एक वरिष्ठ पत्रकार शशि कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करते हुए कहा है कि, सरकार द्वारा पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, फिल्म निर्माताओं और ‘नागरिक समाज’ के खिलाफ ‘राजद्रोह कानून’ (Sedition Law) का एक ‘राजनीतिक रंग देते हुए’ इस्तेमाल किया जा रहा है।
चिंता का विषय:
सरकार द्वारा ,कोविड-19 प्रबंधन के बारे में, महामारी की दूसरी लहर के दौरान, अपनी शिकायतों को व्यक्त करने और चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच, उपकरण, दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए मदद मांगने पर, आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ, राजद्रोह कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है।
‘राजद्रोह’ (Sedition) क्या होता है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा, शब्दों द्वारा, लिखित अथवा बोलने के माध्यम से, अथवा संकेतों द्वारा, या दृश्य- प्रदर्शन द्वारा, या किसी अन्य तरीके से, विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ, घृणा या अवमानना दिखाने, उत्तेजित होने अथवा उत्तेजना भड़काने का प्रयास करने पर उसे, आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना, या तीन साल तक की कैद और साथ में जुर्माना, या मात्र जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।
यथोचित परिभाषा की आवश्यकता:
राजद्रोह कानून लंबे समय से विवादों में रहा है। अक्सर सरकारों के ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-A’ कानून का उपयोग करने पर, उनकी नीतियों के मुखर आलोचकों द्वारा आलोचना की जाती है।
इसलिए, इस धारा को व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है, और एक प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत आती है।
इस क़ानून को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा 1860 के दशक में लागू किया गया था, उस समय से लेकर आज तक यह क़ानून बहस का विषय रहा है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित स्वतंत्रता आंदोलन के कई शीर्ष नेताओं पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए थे।
- महात्मा गांधी द्वारा इस क़ानून को “नागरिक की स्वतंत्रता का हनन करने हेतु तैयार की गई भारतीय दंड संहिता की राजनीतिक धाराओं का राजकुमार” बताया था।
- नेहरू ने इस कानून को “अत्यधिक आपत्तिजनक और निंदनीय” बताते हुए कहा, कि “हमारे द्वारा पारित किसी भी कानूनों प्रावधानों में इसे कोई जगह नहीं दी जानी चाहिए” और “जितनी जल्दी हम इससे छुटकारा पा लें उतना अच्छा है।”
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले:
केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामला (1962):
- आईपीसी की धारा 124A के तहत अपराधों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले (1962) में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए थे।
- अदालत ने फैसला सुनाया था, कि सरकार के कार्यों की चाहें कितने भी कड़े शब्दों में नापसंदगी व्यक्त की जाए, यदि उसकी वजह से हिंसक कृत्यों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं होती है, तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा।
बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामला:
- इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था, कि केवल नारे लगाना, इस मामले में जैसे कि ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, राजद्रोह नहीं है।
जाहिर है, राजद्रोह कानून को गलत तरीके से समझा जा रहा है और असहमति को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि ‘के.एम. मुश्शी’ (K.M. Mushshi) संशोधन द्वारा संविधान से ‘राजद्रोह’ को हटा दिया था और सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से भारत में राजद्रोह कानून को किस प्रकार वापस लाया गया?
प्रीलिम्स लिंक:
- राजद्रोह को किस क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है?
- आईपीसी की धारा 124A किससे संबंधित है?
- आईपीसी की धारा 153 किससे संबंधित है?
- इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19
मेंस लिंक:
भारत में राजद्रोह कानून लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
जीका वायरस
(Zika Virus)
संदर्भ:
अपने पड़ोसी राज्य केरल में ‘जीका वायरस’ (Zika Virus) संक्रमण के मामले पाए जाने से चिंतित, कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य में इस बीमारी को फैलने से रोकने हेतु दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
जीका वायरस किस प्रकार फैलता है?
- जीका वायरस, मुख्य रूप से एडीज प्रजाति (Aedes genus) के संक्रमित मच्छरों, मुख्यतः एडीज एजिप्टी (Aedes aegypti) के द्वारा फैलता है।
- इन एडीज मच्छरों की वजह से डेंगू, चिकनगुनिया और ‘पीला बुखार’ (Yellow Fever) भी फैलता है। ये मच्छर, आमतौर पर दिन के समय, ज्यादातर प्रातः काल में या दोपहर के बाद, काटते हैं।
- मच्छरों के अलावा, यह वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा भी फैल सकता है। जीका वायरस, किसी गर्भवती महिला से उसके भ्रूण में, यौन संपर्क से, रक्त एवं रक्त उत्पादों के आधान (Transfusion) से और अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से भी फ़ैल सकता है।
जीका वायरस को सबसे पहले वर्ष 1947 में युगांडा के बंदरों में देखा गया था। इसके बाद, वर्ष 1952 में यह वायरस, युगांडा और संयुक्त गणराज्य तंजानिया में मनुष्यों में पाया गया।
जीका वायरस संक्रमण के लक्षण:
हालांकि जीका वायरस संक्रमण के लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन यदि यह लक्षण ज्यादा खराब दिखते हैं, तो तत्काल चिकित्सा करने की सलाह दी जाती है। इसके लक्षणों में, आम तौर पर, बुखार, दाने, आँखों में जलन और सूजन (conjunctivitis) , मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द या सिरदर्द की शिकायत होती है। यह लक्षण दो से सात दिनों तक रहते हैं। कभी-कभी संक्रमित होने वाले अधिकांश लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं होते हैं।
उपचार:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, जीका वायरस का अभी कोई इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है। WHO द्वारा इस बीमारी से शीघ्र से ठीक होने के लिए दर्द और बुखार की दवाओं के साथ-साथ बहुत सारे तरल पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘जूनोटिक रोगों’ के उद्भव और प्रसार का अध्ययन करने हेतु ‘वन हेल्थ’ नामक एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है? “
प्रीलिम्स लिंक:
- जीका वायरस के बारे में
- प्रसार
- लक्षण
- रोकथाम
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
WHO की अहर्ता-पूर्व या आपातकालीन उपयोग सूची
संदर्भ:
किसी भी वैक्सीन उत्पादक कंपनी द्वारा ‘कोवक्स’ (COVAX) अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय अधिप्राप्ति’ (International Procurement) जैसी वैश्विक सुविधाओं के लिए टीकों की आपूर्ति करने हेतु, उन टीकों का विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ‘अहर्ता-पूर्व’ (pre-qualification) या ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (Emergency Use Listing – EUL) में शामिल होना अनिवार्य है।
- अब तक आठ टीकों को WHO की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ ( EUL) में शामिल किया जा चुका है।
- WHO द्वारा शीघ्र ही ‘भारत बायोटेक’ द्वारा निर्मित ‘कोवैक्सिन’ को EUL सूची में शामिल करने पर निर्णय लिया जाएगा।
WHO की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (EUL) के बारे में:
विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ (Emergency Use Listing- EUL), गैर- लाइसेंसशुदा टीकों, चिकित्सा-विधानों (Therapeutics) तथा ‘परखनली में किए गए निदानों’ (in vitro diagnostics) का आकलन करने और सूचीबद्ध करने के लिए एक जोखिम-आधारित प्रक्रिया है।
इसका प्रमुख उद्देश्य, किसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान प्रभावित लोगों के लिए इन उत्पादों को उपलब्ध कराने संबंधी प्रकिया को तेज करना होता है।
- यह सूची, उपलब्ध गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता और प्रदर्शन आंकड़ों के आधार पर विशिष्ट उत्पादों का उपयोग करने संबंधी स्वीकार्यता निर्धारित करने में संयुक्त राष्ट्र की इच्छुक खरीद एजेंसियों और सदस्य देशों की सहायता करती है।
WHO सूची में शामिल होने के लिए निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना आवश्यक है:
- जिस बीमारी के लिए किसी उत्पाद को ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ में शामिल करने हेतु आवेदन किया गया है, वह बीमारी, गंभीर, जीवन के लिए तत्काल संकट उत्पन्न करने वाली, प्रकोप, संक्रामक रोग या महामारी फैलाने में सक्षम होनी चाहिए। इसके अलावा, उत्पाद को ‘आपातकालीन उपयोग सूची’ मूल्यांकन हेतु विचार करने हेतु उचित आधार होने चाहिए, जैसेकि बीमारी से निपटने, अथवा आबादी के किसी उपभाग (जैसेकि, बच्चे) के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त उत्पाद उपलब्ध नहीं है।
- मौजूदा उत्पाद (टीके और दवाईयां), बीमारी को खत्म करने या प्रकोप को रोकने में विफल रहे हैं।
- उत्पाद का निर्माण, दवाओं और टीकों के मामले में वर्तमान अच्छी विनिर्माण पद्धतियों (Good Manufacturing Practices- GMP) का अनुपालन करते हुए और ‘इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स’ (IVD) के मामले में कार्यात्मक ‘गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली’ (QMS) के तहत किया गया होना चाहिए।
- आवेदक को उत्पाद के विकास (IVD के मामले में उत्पाद की पुष्टि और सत्यापन) को पूरा करने के लिए वचनबद्ध होना तथा लाइसेंस प्राप्त होने के बाद उत्पाद के लिए WHO से पूर्व-योग्यता (prequalification) हासिल करने हेतु आवेदन करना आवश्यक है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप टीकाकरण (Vaccination) और प्रतिरक्षण (Immunisation) के बीच अंतर जानते हैं? Read here
प्रीलिम्स लिंक:
- यूरोपीय संघ- संरचना और उद्देश्य।
- WHO की आपातकालीन उपयोग सूची (EUL) के बारे में।
- लाभ
- पात्रता
मेंस लिंक:
WHO की आपातकालीन उपयोग सूची (EUL) पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
केयर्न एनर्जी को भारतीय परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा करने का अधिकार
संदर्भ:
ब्रिटेन की ‘केयर्न एनर्जी पीएलसी’ (Cairn Energy Plc) द्वारा एक फ्रांसीसी अदालत से, पेरिस में 20 मिलियन यूरो से अधिक मूल्य की 20 भारतीय सरकारी परिसंपत्तियों को फ्रीज करने का अधिकार दिए जाने संबंधी, आदेश हासिल कर लिया है।
यह, भारत सरकार के खिलाफ ‘पूर्वव्यापी कर कानून’ (retrospective tax law) मामले में 1.2 अरब डॉलर के मध्यस्थता निर्णय को लागू करने वाला पहला अदालती आदेश है। इस निर्णय को
संबंधित प्रकरण:
दिसंबर 2020 में, नीदरलैंड स्थित ‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’ (Permanent Court of Arbitration -PCA) में तीन सदस्यीय ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण’ (International Arbitral Tribunal) द्वारा सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए कहा, कि भारत सरकार द्वारा ‘ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि’ (India-UK Bilateral Investment Treaty) और ‘निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान की गारंटी’ उल्लंघन किया गया है, और इसकी वजह से ब्रिटिश ऊर्जा कंपनी को नुकसान पहुंचा है।
- इसके अलावा मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने भारत सरकार को ‘केयर्न एनर्जी’ के लिए 2 अरब डॉलर का मुआवजा देने का आदेश दिया था।
- भारत सरकार ने अभी तक इस मध्यस्थता निर्णय को स्वीकार नहीं किया है। केयर्न एनर्जी इस मुआवजे की वसूली के लिए विदेशों में मौजूद भारतीय परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा करने का प्रयास कर रही है।
भारत के पास आगे के लिए उपलब्ध विकल्प:
- हालांकि, केयर्न एनर्जी के लिए यह पहली सफलता है, किंतु फ्रांसीसी अदालत के इस आदेश ने अन्य न्यायालयों में केयर्न की जीत की संभावना बढ़ा दी है।
- इन निर्णयों से विदेशों में मौजूद भारतीय परिसंपत्ति कानूनी विवाद में उलझ जाएगी और, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जिनकी परिसंपत्तियां विदेशों में जब्त की जा चुकी हैं।
- यदि भारत द्वारा अपनी अपील में इन मध्यस्थता निर्णयों को दुर्भावनापूर्ण साबित नहीं किया जाता, तो इन निर्णयों को विदेशी क्षेत्राधिकारों में लागू किया जा सकता है। हालांकि दोनों पक्षों के बीच कोई समझौते भी किया जा सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश समझौते का हवाला देते हुए वर्ष 2012 में लागू किए गए पूर्वव्यापी कर कानून (retrospective tax law) के तहत आंतरिक व्यापार पुनर्गठन पर करों (taxes) की मांग की गयी थी, जिसे केयर्न एनर्जी ने चुनौती दी थी।
- वर्ष 2014 में, भारतीय कर विभाग द्वारा कर के रूप में 10,247 करोड़ रुपए ($ 4 बिलियन) की मांग की गयी थी।
- 2015 में, केयर्न एनर्जी पीएलसी ने भारत सरकार के खिलाफ ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही’ शुरू कर दी।
‘स्थायी मध्यस्थता न्यायालय’
(Permanent Court of Arbitration – PCA)
- स्थापना: वर्ष 1899।
- मुख्यालय: हेग, नीदरलैंड्स।
- यह एक अंतर सरकारी संगठन है जो विवाद समाधान क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सेवा करने और देशों के बीच ‘मध्यस्थता’ और विवाद समाधान के अन्य तरीकों की सुविधा प्रदान करने के लिए समर्पित है।
- इसके सभी निर्णय, जिन्हें ‘अवार्ड’ (Award) कहा जाता है, विवाद में शामिल सभी पक्षों के लिए बाध्यकारी होते हैं और तत्काल लागू किए जाते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
मध्यस्थता (arbitration), मध्यगता या बीचबचाव (mediation) और सुलह (conciliation) एक दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं? Click here
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘मध्यस्थता’ क्या है?
- हालिया संशोधन।
- अन्तर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के बारे में।
- भारतीय मध्यस्थता परिषद के बारे में।
- 1996 अधिनियम के तहत मध्यस्थों की नियुक्ति।
- स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA)- संरचना, कार्य और सदस्य।
मेंस लिंक:
मध्यस्थता एवं सुलह (संशोधन) अधिनियम के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
क़ानून तैयार होने तक व्हाट्सएप प्राइवेसी पॉलिसी के क्रियान्वयन पर रोक
संदर्भ:
हाल ही में, व्हाट्सएप ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित करते हुए कहा, कि व्हाट्सएप ‘डेटा सुरक्षा विधेयक’ (Data Protection Bill) लागू होने तक उपयोगकर्ताओं को अपनी ‘नई निजता नीति’ (New Privacy Policy) चुनने के लिए बाध्य नहीं करेगा।
संबंधित प्रकरण:
दिल्ली उच्च न्यायालय में, फेसबुक और व्हाट्सएप द्वारा, एकल-न्यायाधीश पीठ के, प्रतिस्पर्धा नियामक ‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ (Competition Commission of India- CCI) के आदेश पर रोक लगाने से मना करने संबंधी आदेश, के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई की जा रही है। विदित हो कि, ‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ (CCI) ने व्हाट्सएप की नई निजता नीति की जांच का निर्देश दिया था।
पृष्ठभूमि:
- व्हाट्सएप द्वारा अपनी मूल कंपनी, फेसबुक के साथ उपभोक्ताओं का डेटा साझा किए जाने संबंधी चिंताओं को लेकर, भारत सहित विश्व स्तर पर उपयोगकर्ताओं द्वारा इसकी कड़ी आलोचना की गयी है।
- व्हाट्सएप के अनुसार, प्लेटफॉर्म पर भेजे जाने वाले या प्राप्त होने वाले सभी संदेश ‘एंड-टू-एंड’ एन्क्रिप्टेड हैं और व्हाट्सएप के प्लेटफॉर्म पर निजी संदेशों को न तो व्हाट्सएप और न ही फेसबुक देख सकता है।
निजी डेटा संरक्षण विधेयक:
(Personal Data Protection Bill)
- विचाराधीन निजी डेटा संरक्षण विधेयक का उद्देश्य सरकारी और निजी कंपनियों द्वारा किसी व्यक्ति के डेटा का उपयोग किए जाने को विनियमित करना है।
- विधेयक में, संस्थाओं को निजी डेटा की सुरक्षा हेतु संरक्षोपाय बनाए रखना तथा डेटा सुरक्षा दायित्वों, पारदर्शिता और जवाबदेही संबंधी उपायों के एक सेट को पूरा करना होगा।
- विधेयक में उपयोगकर्ताओं को उनके निजी डेटा पर अधिकार और उन अधिकारों का प्रयोग करने का साधन प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
- विधेयक में, ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (Data Protection Authority – DPA) नामक एक स्वतंत्र और शक्तिशाली नियामक बनाने का प्रवाधान है। यह ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’, शासन व्यवस्था का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु डेटा प्रोसेसिंग गतिविधियों की निगरानी और विनियमन करेगा।
निजी डेटा की सुरक्षा हेतु विधेयक लाने की आवश्यकता:
- अगस्त 2017 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले में कहा गया कि, “निजता, संविधान के अनुच्छेद 21 में उल्लिखित ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार’ के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार है।
- न्यायालय के अनुसार, निजी डेटा और तथ्यों की गोपनीयता ‘निजता के अधिकार’ का एक अनिवार्य पहलू है।
- जुलाई 2017 में, भारत में डेटा संरक्षण से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जांच के लिए न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया गया था।
- इस समिति द्वारा, जुलाई 2018 में, ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ 2018 के मसौदा सहित अपनी रिपोर्ट ‘इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ को सौंप दी गई।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप श्रीकृष्ण समिति द्वारा की गयी सिफारिशों के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘निजता का अधिकार’ क्या है?
- विधेयक की मुख्य विशेषताएं
- ‘व्हाट्सएप की निजता नीति’ के बारे में
मेंस लिंक:
व्हाट्सएप की निजता नीति से संबंधित चिंताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
भूमि पांडुगा
(Bhumi Panduga)
यह आंध्र प्रदेश में कोया जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला उत्सव है।
- यह उत्सव हर साल कृषि कार्यों को शुरू करने के प्रतीक रूप में मनाए जाता है।
- पुरुषों के लिए, त्योहार के एक भाग के रूप में शिकार करना अनिवार्य होता है। हर शाम एक दावत के दौरान गांव के सभी परिवारों में समान रूप से ‘शिकार’ को वितरित किया जाता है।
- यह त्यौहार, आमतौर पर जून के महीने में मनाया जाता है।
हिमालयी याक
(Himalayan yaks)
अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के दिरांग में स्थित ‘राष्ट्रीय याक अनुसंधान केंद्र’ (National Research Centre on Yak – NRCY) द्वारा ‘याक’ का बीमा करने के लिये नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (NICL) के साथ एक करार किया है।
- यह बीमा पॉलिसी याक मालिकों को मौसम की आपदाओं, बीमारियों, आवागमन दुर्घटनाओं, सर्जिकल ऑपरेशनों और हड़तालों या दंगों के जोखिमों से बचाएगी।
- पॉलिसी के अनुसार, मालिकों को अपने याक के कान पर एक ‘चिह्न’ (Tag) लगाना होगा और अपने पशुओं का बीमा कराने के लिए उनका उचित विवरण देना होगा।
हिमालयन याक के बारे में:
- याक अत्यधिक शीत तापमान में रहने के अभ्यस्त होते है और माइनस 40 डिग्री तक का तापमान सहन करने में सक्षम होते हैं।
- लद्दाख, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश में याक पालन मुख्यतः दो प्रमुख खानाबदोश समुदायों, ‘चांगपा’ और ‘डोकपा’ द्वारा किया जाता है।
- वर्तमान में, याक को IUCN द्वारा असुरक्षित (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है।
- वर्ष 2012 और 2019 के बीच, देश भर में याकों की संख्या में लगभग 7% की गिरावट आई है।
- भारत में याक की आबादी, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड तथा केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर में पाई जाती है।
इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (IILB)
आईआईएलबी एक जीआईएस- आधारित पोर्टल है जिस पर सभी औद्योगिक बुनियादी ढांचे से संबंधित सूचनाओं की एक ही स्थान पर जानकारी (वन-स्टॉप रिपोजिटरी) – सम्पर्क (कनेक्टिविटी), आधारभूत रचनाओं (इन्फ्रा), प्राकृतिक संसाधन और इलाके, खाली भूखंडों पर प्लॉट-स्तरीय जानकारी, कार्य प्रणाली और संपर्क विवरण उपलब्ध कराए गए हैं।
- यह दूरस्थ जगहों पर बैठकर भूमि की तलाश करने वाले निवेशकों के लिए ‘निर्णय सहयोग प्रणाली’ के रूप में कार्य करता है।
- वर्तमान में आईआईएलबी के पास 5 लाख हेक्टेयर भूमि के क्षेत्र में लगभग 4,000 औद्योगिक पार्क हैं।
- इस प्रणाली को 17 राज्यों के उद्योग आधारित जीआईएस व्यवस्था (सिस्टम) के साथ एकीकृत करके जोड़ दिया गया है ताकि वास्तविक समय के आधार पर इस पोर्टल पर जानकारियों को अद्यतन किया जा सकेI
- दिसंबर 2021 तक अखिल भारतीय स्तर पर एकीकरण हासिल कर लिया जाएगा।
- यह ‘उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग’ (DPIIT) के अधीन कार्य करेगा।
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