[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 23 May 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-I

  1. राजा राम मोहन राय

 

सामान्य अध्ययन-II

  1. IFC-IOR द्वारा चीन के अति-मत्स्यन किए जाने पर रोक

सामान्य अध्ययन-III

  1. आरबीआई अधिशेष अंतरण
  2. एस्ट्रोसैट
  3. ‘आनुवंशिक रूप से संवर्धित फसल अनुसंधान’ के लिए मानदंडों में शिथिलता
  4. असम में बाढ़

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. चर्चित स्थल: डोनबास
  2. चर्चित स्थल: रामबन सुरंग
  3. गेहूं की ‘भंडारण वृद्धि’
  4. चर्चित स्थल: सेंट-ट्रोपेज़
  5. विश्व मधुमक्खी दिवस
  6. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह
  7. ‘जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन’ पोर्टल

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

राजा राममोहन राय


संदर्भ:

इस वर्ष 22 मई को राजा राम मोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) की 250वीं जयंती मनाई गई।

 ‘राजा राममोहन राय’ के बारे में:

  • ‘राजा राममोहन राय’ को आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के जनक और एक अथक समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है।
  • उनका जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल प्रेसीडेंसी के ‘राधानगर’ नामक शहर में हुआ था।
  • राममोहन राय ने ‘अकबर द्वितीय’ के प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड में ब्रिटिश सरकार के समक्ष उसके लिए पेंशन और भत्तों के लिए मांग रखी।
  • ‘अकबर द्वितीय’ ने राममोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया।

सामाजिक योगदान:

  • राजा राममोहन राय, महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले अग्रणी समाज सुधारक थे।
  • वे सती प्रथा के मुखर विरोधी थे। वर्ष 1829 में पारित ‘सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम’ राजा राममोहन राय के प्रयासों का परिणाम था।
  • उन्होंने महिलाओं को ‘विरासत’ और ‘संपत्ति के अधिकार’ की मांग की।
  • उन्होंने, उस समय प्रचलित बहुविवाह और बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई संघर्ष किया था।
  • उन्होंने महिला शिक्षा का समर्थन किया, क्योंकि उनका मानना ​​था कि केवल शिक्षा ही महिलाओं को पुरुषों के समान सामाजिक दर्जा दिला सकती है।

संबद्ध संगठन:

  • राजा राममोहन राय ने मूर्ति पूजा, निरर्थक कर्मकांडों और अंधविश्वासों के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ने के लिए 1814 में ‘आत्मीय सभा’ की शुरुआत की। उन्होंने ‘एकेश्वरवादी आदर्शों’ (Monotheistic Ideals) का प्रसार किया।
  • इन्होने वर्ष 1817 में, ‘डेविड हेयर’ के साथ मिलकर कलकत्ता में ‘हिंदू कॉलेज’ की स्थापना की।
  • सितंबर 1821 में विलियम एडम और राममोहन रॉय द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित ‘कलकत्ता एकेश्वरवादी समिति’ (Calcutta Unitarian Committee) द्वारा ‘धार्मिक एकेश्वरवाद’ और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए रॉय के मित्र और उनके एजेंडे के समर्थक तत्कालीन प्रतिष्ठित ब्राह्मणों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया।
  • उन्होंने वर्ष 1828 में (देवेंद्रनाथ टैगोर के साथ स्थापित) ‘ब्रह्म सभा’ का गठन किया।
  • राजा राममोहन राय ने वर्ष 1822 में ‘एंग्लो-हिंदू स्कूल’ की स्थापना की, जिसमे यांत्रिकी और वोल्टेयर के दर्शन को पढ़ाया जाता था।
  • 1825 में, उन्होंने ‘वेदांत कॉलेज’ की शुरुआत की जहां भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी सामाजिक और भौतिक विज्ञान पढ़ाए जाते थे।
  • 1830 में, उन्होंने ‘एलेग्जेंडर डफ’ को जनरल असेंबली द्वारा निर्देशित एक संस्था स्थापित करने में सहायता की, बाद में यह संस्था ‘स्कॉटिश चर्च कॉलेज’ बन गयी।

साहित्यिक योगदान:

  1. ब्राह्मणवादी पत्रिका (1821)
  2. 1822 में शुरू एक बंगाली साप्ताहिक ‘संबाद कौमुदी’।
  3. एक फारसी पत्रिका ‘मिरात-उल-अकबर’।
  4. तुहफत-उल-मुवाहिदीन (1804)
  5. वेदांत गंथा (1815)
  6. वेदांत सार (1816) के संक्षिप्तीकरण का अनुवाद
  7. केनोपनिषद (1816)
  8. ईशोपनिषद (1816)
  9. कठोपनिषद (1817)

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राम मोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि किसने प्रदान की?
  2. वह किन संस्थाओं/संगठनों से जुड़े थे?
  3. उनकी महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियाँ।

मेंस लिंक:

राजा राम मोहन राय को “आधुनिक भारत का जनक” माना जाता है। भारत को प्रगतिशील और तर्कसंगत बनाने और हमारे देश को आधुनिकता के पथ पर स्थापित करने में उनके योगदान की चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

IFC-IOR द्वारा चीन के अति-मत्स्यन किए जाने पर रोक


(IFC-IOR to check China overfishing)

संदर्भ:

क्वाड राष्ट्रों – ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका – द्वारा इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थित विशेष आर्थिक क्षेत्रों को पर्यावरणीय क्षति से सुरक्षित करने के लिए एक ‘समुद्री निगरानी पहल’ (Maritime Surveillance Initiative) का अनावरण किए जाने की जानकारी प्राप्त हुई है।

  • इस पहल का उद्देश्य, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में विशेष रूप से ‘चीनी ट्रॉलरों’ (मत्स्यन / मछली पकड़ने वाले जहाजों) के अनियंत्रित और व्यापक रूप से गहरे पानी में मछली पकड़ने पर रोक लगाना है।
  • इसके लिए ‘क्वाड राष्ट्र’ भारतीय नौसेना के ‘सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र’ (IFC-IOR) का उपयोग कर सकते हैं।

‘समुद्री निगरानी पहल’ के बारे में:

इस पहल के तहत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘अवैध अनियंत्रित और बिना जानकारी के मछली पकड़ने’ (Illegal Unregulated and Unreported Fishing – IUUF) के लिए एक ‘ट्रैकिंग प्रणाली’ बनाने के लिए सिंगापुर, भारत और प्रशांत क्षेत्र में मौजूदा निगरानी केंद्रों को एक साथ लाया जाएगा।

आवश्यकता:

  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अधिकांशतः ‘अवैध अनियंत्रित और बिना जानकारी के मछली पकड़ने’ (IUUF) के लिए ‘चीनी ट्रॉलरों के बेड़े’ को जिम्मेदार माना जाता है, और समुद्री निगरानी पहल’ को चीन के खिलाफ ‘क्वाड प्रेशर पॉइंट’ के रूप में देखा जा सकता है।
  • हाल के वर्षों में, IUUF को अंतरराष्ट्रीय समुद्री डकैती की तुलना में समुद्रवर्ती देशों के लिए एक बड़े खतरे के रूप में विकसित होते देखा गया है।
  • अध्ययनों में कहा गया है, कि अवैध मछली पकड़ने की तुलना में ‘अनियमित और बिना जानकारी के मछली पकड़ना’ बड़ी चुनौतियां हैं, क्योंकि इससे संबंधित क्षेत्र में मछलियों का भंडार समाप्त हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप कमजोर क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएं महत्वपूर्ण खाद्य स्रोतों से वंचित हो जाती हैं।
  • इस संबंध में, चीन, विश्व का सबसे बड़ा अपराधी है, और माना जाता है कि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘अवैध-मत्स्यन’ के 80% से 95% के लिए जिम्मेदार है।

IFC-IOR के बारे में:

  • भारतीय नौसेना के ‘सूचना संलयन केंद्र – हिंद महासागर क्षेत्र’ (Information Fusion Centre for Indian Ocean Region: IFC-IOR) को वर्ष 2018 में समुद्री मुद्दों पर हिंद महासागर क्षेत्र में अवस्थित देशों के साथ समन्वय और समुद्री आंकड़ों के क्षेत्रीय भंडार के रूप में कार्य करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • वर्तमान में, IFC-IOR , विश्व भर में 21 भागीदार देशों और 22 बहु-राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ संबंध स्थापित कर चुका है।
  • यह केंद्र, भारत में हरियाणा राज्य के गुरुग्राम में स्थित है।
  • इस केंद्र की स्थापना हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सहयोग के लिए सरकार के ‘सागर फ्रेमवर्क’ अर्थात ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (Security and Growth For All in the Region – SAGAR) फ्रेमवर्क के हिस्से के रूप में की गई थी।
  • ‘सूचना संलयन केंद्र – हिंद महासागर क्षेत्र’ में भागीदार देशों- जिसमें हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के निकटवर्ती पड़ोसी देश और अन्य क्षेत्र दोनों शामिल हैं- के ‘अंतरराष्ट्रीय संपर्क अधिकारियों’ को तैनात किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप यू.के. कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (U.K. Carrier Strike Group – CSG) के बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. IFC- IOR क्या है?
  2. क्षेत्रीय समुद्री सूचना संलयन केंद्र (RMIFC) क्या है?
  3. EMASOH की स्थापना किसने की?
  4. फारस की खाड़ी तथा होर्मुज़ जलडमरूमध्य की अवस्थिति

मेंस लिंक:

हिंद महासागर आयोग में पर्यवेक्षक की स्थिति भारत को अपने रणनीतिक उद्देश्यों को सुरक्षित करने में किस प्रकार सहायक होगी? चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।

आरबीआई अधिशेष का अंतरण


(RBI Surplus Transfer)

संदर्भ:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के बोर्ड ने लेखा वर्ष 2021-22 के लिए केंद्र सरकार को अधिशेष (Surplus) के रूप में ₹30,307 करोड़ के अंतरण को मंजूरी दे दी है।

बोर्ड द्वारा राशि की मात्रा निर्धारित किए बिना ‘आकस्मिक जोखिम बफर’ (Contingency Risk Buffer) को 5.50% पर बनाए रखने का भी निर्णय लिया है।

इस संबंध में प्रावधान:

1934 में स्थापित आरबीआई का संचालन ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम’ 1934 के अनुसार होता है। अधिनियम में, केंद्रीय बैंक द्वारा अपने कार्यों/गतिविधियों/ संचालन से अर्जित लाभ को केंद्र सरकार के लिए अंतरित किए जाने का प्रावधान किया गया है।

  • वित्त प्रबंधक के रूप में, आरबीआई, हर साल अपने अधिशेष या लाभ से सरकार की वित्तीय सहायता के लिए लाभांश भुगतान करता है।
  • आरक्षित निधि की पर्याप्तता और अधिशेष वितरण नीति की समीक्षा करने के लिए वर्ष 2013 में ‘वाई एच मालेगाम’ (Y H Malegam) की अध्यक्षता में गठित आरबीआई बोर्ड की एक तकनीकी समिति ने सरकार को अधिक राशि का अंतरण किए जाने संबंधी सिफारिश की थी।

आरबीआई की आय:

  • अपनी विदेशी मुद्रा आस्तियों पर अर्जित लाभ। ये लाभ अन्य केंद्रीय बैंकों के बांड और ट्रेजरी बिल या शीर्ष-स्तर की प्रमाणित प्रतिभूतियों, और अन्य केंद्रीय बैंकों के पास जमाओं के रूप में हो सकता है।
  • स्थानीय मुद्रा के सरकारी बांड या प्रतिभूतियों की अपनी जमाओं पर ब्याज, और बैंकों को अत्याल्प अवधि, जैसेकि रात भर के लिए, दिए जाने वाले ऋणों पर ब्याज।
  • राज्य सरकारों और केंद्र सरकार की उधारी को संभालने के लिए प्रबंधन कमीशन।

आरबीआई का व्यय:

नोटों की छपाई और कर्मचारियों पर होने वाला व्यय।

इसके अलावा रिज़र्व बैंक, बैंकों के लिए देश भर में सरकार की ओर से लेनदेन करने हेतु तथा बैंकों और प्रमुख डीलरों को इनमें से कुछ ऋणों का जोखिम-अंकन (underwriting) करने के लिए कमीशन देता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जाने हैं?

  • अंतिम ऋणदाता के रूप में आरबीआई के कार्य को देखते हुए, इसे वित्तीय स्थिरता संकट के किसी भी जोखिम के खिलाफ अर्थव्यवस्था को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कुछ ‘आकस्मिक जोखिम बफर’ (CRB) बनाए रखना आवश्यक होता है।
  • ‘जालान समिति’ की सिफारिशों के अनुसार, ‘सीआरबी’ को आरबीआई की बैलेंस शीट के 5.5% से 6.5% की सीमा में बनाए रखना आवश्यक है।

प्रारंभिक लिंक:

  1. आरबीआई के बारे में।
  2. अधिशेष का प्रबंधन।
  3. आरबीआई की आय और व्यय।

मेंस लिंक:

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकार को अधिशेष राशि अंतरित किए जाने संबंधी प्रक्रिया पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

‘आनुवंशिक रूप से संवर्धित फसल अनुसंधान’ के लिए मानदंडों में शिथिलता  


(Norms eased for genetically modified crop research)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘जैव प्रौद्योगिकी विभाग’ (DBT) द्वारा ‘आनुवंशिक रूप से संवर्धित फसलों’ (Genetically Modified Crops – GM Crops) में अनुसंधान के लिए निर्धारित मानदंडों को आसान बनाने और फसलों की रूपरेखा (प्रोफाइल) को बदलने के लिए विदेशी जीन का उपयोग करने संबंधी चुनौतियों को दूर करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए गए हैं।

ये दिशानिर्देश ‘आनुवंशिक संवर्धित पादपों’ (GM plants) के अनुसंधान, विकास और प्रबंधन में शामिल सभी सार्वजनिक/निजी संगठनों पर लागू होंगे।

 

जीनोम संशोधित पादपों के सुरक्षा आकलन हेतु दिशानिर्देश, 2022′: अवलोकन

(Guidelines for Safety Assessment of Genome Edited Plants, 2022)

छूट: पौधे के जीनोम को संशोधित करने के लिए ‘जीन-संशोधन तकनीक’ (Gene-Editing Technology) का उपयोग करने वाले शोधकर्ताओं को ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग आंकलन समिति’ (Genetic Engineering Appraisal Committee -GEAC) से अनुमोदन प्राप्त करने से छूट दी गई है।

  • हालाँकि, इस संदर्भ में अंतिम निर्णय पर्यावरण मंत्री तथा उन राज्यों द्वारा लिया जाएगा जहाँ इस प्रकार की कृषि की जा सकती है।
  • शोधकर्ताओं के लिए ‘ट्रांसजेनिक बीजों’ को विकसित करने हेतु सभी आवश्यक शर्ते – GEAC की आनिवार्य अनुमति संबंधी अनुच्छेदों को छोड़कर- ‘जीन-संशोधित बीजों’ पर लागू होंगी।

पर्यावरणविद् समूहों द्वारा उठाई गई चिंताएं:

पर्यावरणवादी समूहों ने ‘जीन-संशोधित फसलों’ के लिए दी गयी इस छूट का विरोध किया है।

  • इनका कहना है, कि आनुवंशिक इंजीनियरिंग में ‘जीन संशोधन’ शामिल होता है। इसलिए विशेष प्रकार के ‘जीनोम संशोधित पादपों’ को नियामक के दायरे से छूट देने का सवाल ही नहीं उठता।
  • जीन संशोधन तकनीकों में ‘जीन के कार्य को बदलना’ शामिल होता है, जिसके “बड़े और अनपेक्षित परिणाम” हो सकते हैं।

 

‘जीन संवर्द्धित फसलें’ क्या होती हैं?

जीन संवर्द्धित (Genetically Modified-GM)  अथवा ‘जीएम फसल’ उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को ट्रांसजेनिक तकनीक से रूपांतरित किया जाता है। जेनेटिक इजीनियरिंग के ज़रिये किसी भी जीव या पौधे के जीन को अन्य पौधों में प्रविष्ट कराकर एक नई फसल प्रजाति विकसित की जाती है।

उदाहरण के लिए बीटी-कॉटन (BT-cotton), जिसमे पौधे को कीट के हमले से बचाने के लिए ‘मृदा में मौजूद जीवाणु’ (Soil Bacterium) के एक जीन का उपयोग किया जाता है।

 

जीएम फसलों से संबंधित मुद्दे:

इस पद्धति के बारे में चिंता की बात यह है, कि ये जीन उन पड़ोसी पौधों में फैल सकते हैं, जिनमे इस तरह के प्रभाव अपेक्षित नहीं होते हैं और इसलिए इस तकनीक का अनुप्रयोग विवादास्पद रहता है।

‘जीनोम एडिटिंग’ क्या है?

जीनोम सशोधन (Genome editing) में उन तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, जिनके माध्यम से किसी जीनोम में विशेष स्थान पर आनुवंशिक सामग्री को प्रविष्ट कराया जा सकता है अथवा हटाया या परिवर्तित किया जा सकता है।

  • जीनोम सशोधन के लिए कई पद्धतियाँ विकसित की गयी हैं।
  • जिनमे से एक पद्धति ‘CRISPR-Cas9’ है, जोकि (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats and CRISPR-Associated Protein 9) का संक्षिप्त रूप है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग आंकलन समिति:

‘जेनेटिक इंजीनियरिंग आंकलन समिति’ (Genetic Engineering Appraisal Committee -GEAC), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के अधीन कार्य करती है।

  • यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित एक ‘वैधानिक निकाय’ है।
  • नियम, 1989 के अनुसार, यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से अनुसंधान और औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के बड़े पैमाने पर उपयोग से संबंधित गतिविधियों के मूल्यांकन के लिए जिम्मेदार है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. GEAC- स्थापना, संरचना और कार्य
  2. क्या यह एक वैधानिक निकाय है?
  3. भारत में बीटी फसलों की अनुमति

मेंस लिंक:

COVID -19 के भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक परिणाम क्या हो सकते हैं? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

एस्ट्रोसैट


(AstroSat)

संदर्भ:

भारत के ‘एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष दूरबीन’ ने 500वीं बार अंतरिक्ष में एक ‘ब्लैक होल’ को उत्पन्न होते हुए देखा है।

‘ब्लैक होल’ (Black Hole) अंतरिक्ष में एक ऐसा स्थान होते है, जहां गुरुत्वाकर्षण इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है।

‘ब्लैक होल’ / ‘कृष्ण विवर’ के बारे में:

ब्लैक होल अंतरिक्ष में पाए जाने ऐसे पिंड होते है, जिनका घनत्व तथा गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है। अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण, कोई भी पदार्थ अथवा प्रकाश इनके खिंचाव से बच नहीं सकता है। चूंकि,प्रकाश इनसे होकर नहीं गुजर पाता है, इसीलिये यह काले और अदृश्य होते है।

  • नासा के अनुसार, ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है, कि कोई भी पदार्थ अथवा प्रकाश ब्लैक होल के केंद्र में समाहित होकर अनंत घनत्व वाले एक बिंदु में संकुचित हो जाता है, जिसे सिंगलुरिटी (singularity) कहा जाता है।
  • ब्लैक होल का निर्माण या उत्पत्ति किसी तारे के मरने / नष्ट होने से होता है।

 

एस्ट्रोसैट के बारे में:

  • एस्ट्रोसैट’ (ASTROSAT) भारत की पहली समर्पित बहु तरंगदैर्घ्य अंतरिक्ष वेधशाला (Multi-Wavelength Space Telescope) है। इसमें पांच दूरबीन लगे हुए है, जिनके माध्यम से एस्ट्रोसैट एक ही समय में ऑप्टिकल, पराबैंगनी, निम्न और उच्च ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के एक्स-रे क्षेत्रों में ब्रह्मांड का अवलोकन करता।
  • एस्ट्रोसैट में लगा हुआ पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (UltraViolet Imaging Telescope- UVIT), दृश्य, पराबैंगनी और सुदूर पराबैंगनी विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम के क्षेत्रों के पास आकाश को अवलोकन करने में सक्षम है।
  • एस्ट्रोसैट को 28 सितंबर 2015 को इसरो (ISRO) द्वारा पृथ्वी के निकट भू-स्थिर कक्षा में प्रक्षेपित किया गया था।
  • यह एक बहु-संस्थान सहयोग परियोजना है, जिसमें IUCAA, इसरो, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) मुंबई, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (बेंगलुरु), और भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (अहमदाबाद) शामिल हैं।
  • एस्ट्रोसैट ‘गामा-किरणों के प्रस्फुटन’ (Gamma-Ray Bursts – GRB) का अध्ययन कर रहा है।

‘गामा-किरण प्रस्फुटन’ के बारे में:

‘गामा-किरण प्रस्फुटन’ या ‘गामा-रे बर्स्ट’ (Gamma-Ray Bursts – GRB), सुदूर आकाशगंगाओं में देखे जाने वाले अत्यधिक ऊर्जावान विस्फोट होते हैं।

  • वे ब्रह्मांड में होने वाली सबसे चमकदार और सबसे ऊर्जावान विद्युत चुम्बकीय घटनाएं होती हैं।
  • ‘गामा-किरण प्रस्फुटन’ (GRB), एक सामान्य सुपरनोवा की तुलना में सैकड़ों गुना अधिक प्रदीप्त /चमकदार होते हैं और सूर्य की तुलना में लगभग एक मिलियन ट्रिलियन गुना अधिक चमकयुक्त होते हैं।
  • जब कोई ‘गामा-किरण प्रस्फुटन’ होता है, तो उस समय यह देखे जा सकने योग्य ब्रह्मांड में कॉस्मिक गामा-किरण फोटॉनों का सबसे दीप्तमान स्रोत होता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. एस्ट्रोसैट के बारे में
  2. गामा किरणों के बारे में
  3. ब्लैक होल और इनकी उत्पत्ति

मेंस लिंक:

क्वासर (Quasar) से आप क्या समझते हैं ? क्वासर का ब्लैक होल से क्या संबंध है? समझाइए।

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।

असम में बाढ़


(Assam Floods)

संदर्भ:

पिछले कुछ दिनों में हुई मूसलाधार बारिश और भूस्खलन की वजह से असम में सड़कों और रेलवे पटरियों के कुछ हिस्सों को नष्ट हो गए हैं।

मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि आने वाले दिनों में “अत्यधिक भारी बारिश” जारी रहेगी, और राज्य ‘रेड अलर्ट’ जारी है।

असम में बाढ़ आने के प्रमुख कारण:

  1. ब्रह्मपुत्र नदी कुछ स्थानों को छोड़कर शेष असम में कई शाखाओं में विभाजित है, तथा अपनी प्रकृति में अस्थिर है। नदी की अस्थिरता का मुख्य कारण नदी में गाद का भारी मात्रा में जमाव तथा खड़ी ढलान हैं।
  2. बाढ़ प्रवण क्षेत्र का उच्च प्रतिशत: राज्य के कुल 523 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल का 31.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बाढ़ का खतरा बना रहता है। इस उच्च बाढ़ प्रवणता का कारण मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों ही हैं।
  3. भूकंप/ भूस्खलन: असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुछ अन्य हिस्सों में प्रायः भूकंप आते रहते हैं, जिससे काफी मात्रा में भूस्खलन होता है। भूकंप तथा परिणामी भूस्खलन से नदियों में बहुत अधिक मलबा पहुँचता हैं, जिस कारण नदी का तल ऊँचा हो जाता है।
  4. तट अपरदन (Bank Erosion): असम को ब्रह्मपुत्र तथा बराक नदियों के साथ-साथ उनकी सहायक नदियों के तटीय कटाव का सामना करना पड़ता है। अनुमानतः प्रतिवर्ष लगभग 8000 हेक्टेयर भूमि कटाव से नष्ट हो जाती है।
  5. बाँध (Dams): मानव निर्मित कारणों में, ऊंचाई पर निर्मित किये गए बांधो से पानी का छोड़ा जाना, असम क्षेत्र में बाढ़ का प्रमुख कारण है। अनियमित रूप से पानी छोड़े जाने से असम के मैदानी इलाकों में प्रतिवर्ष हजारों लोग बेघर हो जाते हैं।
  6. गुवाहाटी की स्थलाकृति– इसकी आकृति एक कटोरे के समान है – यह जल भराव के लिए अतिसंवेदनशील स्थिति है।
  7. शहरी क्षेत्रों के अनियोजित विस्तार: इससे गंभीर रूप से आर्द्र-भूमियों, निचले इलाकों, पहाड़ियों तथा वन क्षेत्रों का अतिक्रमण हुआ है जिससे वन आवरण क्षेत्र में कमी आयी है।
  8. नदियों का मार्ग परिवर्तन: असम राज्य में नदियाँ अक्सर मार्ग परिवर्तित करती रहती हैं, तथा पानी के भारी दबाव के कारण इन्हें तटबंधो में सीमित करना असंभव हो जाता है।

बाढ़ नियंत्रण हेतु सरकारों द्वारा किए जाने वाले प्रयास:

मानसून के दौरान असम में बार-बार बाढ़ आना एक सामान्य घटना है। पारिस्थितिकीविदों का कहना है कि बाढ़ के पानी से राज्य के जलोढ़ क्षेत्रों में फसली और उपजाऊ मृदा पुनर्युवनित (rejuvenated) हुई है।

  • परन्तु, यह भी एक तथ्य है कि पिछले 60 वर्षो से अधिक की अवधि में, केंद्र तथा राज्य सरकारें बाढ़ की विभीषिका को कम करने के उपाय नहीं खोज सकी हैं।
  • राज्य, मुख्य रूप से बाढ़-नियंत्रण के लिए तटबंधों पर निर्भर रहते है। बाढ़ नियंत्रण का यह उपाय, असम में 1950 के दशक की शुरुआत में पेश किया गया था, उस समय तक ब्रह्मपुत्र तथा अधिकांश भारतीय नदियों के जल-विज्ञान (Hydrology) को समुचित रूप से नहीं समझा गया था।
  • इस वर्ष, अब तक राज्य के कई तटबंध बाढ़ की चपेट में आकर टूट चुके हैं।

क्या किया जाना चाहिए?

  1. राज्य में प्रतिवर्ष बाढ़ आने के कारणों को जानने के लिए नदियों का अध्ययन तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने की आवश्यकता है।
  2. चीन, भारत के साथ ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह की जानकारी साझा करता है, भारत, इसके लिए चीन को एक निश्चित राशि का भुगतान करता है। इस जानकारी को जनता के साथ साझा किया जाना चाहिए। इससे नदी को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी तथा लोग बाढ़ से निपटने के लिए तैयारी कर सकेंगे।
  3. वर्षा का सटीक तथा विकेन्द्रीकृत पूर्वानुमान, बाढ़ से निपटने की तैयारियों में सहायक हो सकते है। मौसम की रिपोर्ट्स को जिला स्तर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए तथा वे जनता के लिए सुलभ होनी चाहिए।

 

इन उपायों की आवश्यकता:

असम की अर्थव्यवस्था, काफी हद तक प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है। कृषि और जंगलों को प्रभावित करने वाली घटनाओं से लोगों की आजीविका पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बाढ़ के दौरान, पानी दूषित हो जाता है तथा जलवायु परिवर्तन का जल संसाधन क्षेत्रों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। परिणामतः क्षेत्र के निवासियों को ताजे मीठे पाने की कमी का सामना करना पड़ता है।

 

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 चर्चित स्थल: डोनबास

रूसी सेना ने ‘औद्योगिक डोनबास क्षेत्र’ को “पूरी तरह से नष्ट” कर दिया है।

  • ‘डोनबास’ (Donbas), दक्षिणपूर्वी यूक्रेन का एक क्षेत्र है।
  • यह दक्षिण-पूर्वी यूरोप का एक बड़ा खनन और औद्योगिक क्षेत्र है और अपने विशाल कोयला भंडार के लिए जाना जाता है।
  • डोनबास औद्योगिक क्षेत्र में ‘डोनेट्स्क’ और ‘लुहान्स्क’ के अधिकांश यूक्रेनी ओब्लास्टी (प्रांत) शामिल हैं।

 

चर्चित स्थल: रामबन सुरंग

केंद्र सरकार द्वारा, जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर ‘रामबन’ (Ramban) में निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के हाल ही में ढह जाने के कारणों की जांच करने और उपचारात्मक उपायों का सुझाव देने के लिए तीन स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया गया है।

  • ‘रामबन’ जम्मू और कश्मीर के ‘रामबन जिले’ का एक कस्बा है।
  • यह राष्ट्रीय राजमार्ग -1 ए (अब एनएच- 44) पर ‘चिनाब घाटी’ में चिनाब नदी के तट पर जम्मू से लगभग 150 किमी और श्रीनगर से लगभग 150 किमी दूर स्थित है।
  • इसकी अवस्थिति, इसे जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगभग केंद्रीय बिंदु बनाती है।

गेहूं की ‘भंडारण वृद्धि’

गेहूं को ‘सजीव अनाज’ (living grain) माना जाता है, और भंडारण के दौरान इसके भार में कुछ वृद्धि हो जाती है। इसे ‘भंडारण वृद्धि’  (Storage Gain) के रूप में जाना जाता है और यह ज्यादातर ‘नमी के अवशोषण’ के कारण होती है।

ये नमी ज्यादातर भ्रूणपोषों (Endosperm) द्वारा अवशोषित की जाती है।

चर्चा का कारण:

पंजाब की ‘राज्य खरीद एजेंसियां’ ​​( State Procurement Agencies) ‘भंडारण वृद्धि’ के लिए छूट की मांग कर रही हैं। यह छूट इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस वर्ष खरीदा गया अनाज मुरझाया हुआ और टूटा हुआ दोनों है और इसलिए इसके वजन में वृद्धि नहीं होगी।

चर्चित स्थल: सेंट-ट्रोपेज़

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने हाल ही में सेंट-ट्रोपेज़ (Saint-Tropez) में एलार्ड स्क्वायर का दौरा किया।

  • जनरल ‘जीन-फ्रांस्वा एलार्ड’ (Jean-François Allard) का जन्म सेंट-ट्रोपेज़ में हुआ था।
  • उन्होंने नेपोलियन की सेना में सेवा की और वाटरलू की लड़ाई में लड़ाई लड़ी। नेपोलियन के पतन के बाद निर्वासन में मजबूर होकर, उन्होंने पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सेवा की थी।

सेंट-ट्रोपेज़ के बारे में:

यह फ्रांस में ‘फ्रेंच रिवेरा’ पर स्थित एक तटीय शहर है।

  • यह 20वीं सदी की शुरुआत तक एक सैन्य गढ़ और मछली पकड़ने वाला गांव था।
  • ‘ऑपरेशन ड्रैगन’ के भाग के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ‘फ्रेंच रिवेरा’ तट पर आजाद होने वाला यह पहला शहर था।
  • युद्ध के बाद, यह सिनेमा में ‘फ्रेंच न्यू वेव’ के कलाकारों की आमद के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने वाला समुद्र तटीय सैरगाह बन गया।
  • बाद में, यह यूरोपीय और अमेरिकी जेट-सेटर्स और पर्यटकों के लिए एक रिसॉर्ट बन गया।

 

विश्व मधुमक्खी दिवस

  • 20 मई को प्रतिवर्ष ‘विश्व मधुमक्खी दिवस’ (World Bee Day) के रूप में मनाया जाता है।
  • आज ही के दिन वर्ष 1734 में ‘मधुमक्खी पालन’ के प्रणेता एंटोन जानसा (Anton Janša) का जन्म हुआ था।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2017 में 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस के रूप में घोषित किया। यह प्रस्ताव स्लोवेनिया (Slovenia) द्वारा पेश किया गया था।

विश्व मधुमक्खी दिवस 2022 का विषय- ‘बी एंगेज्ड: सेलिब्रेटिंग द डायवर्सिटी ऑफ बीज़ एंड बीकीपिंग सिस्टम्स’ है।

सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास:

  • सरकार, किसानों की आय दोगुनी करने के अपने लक्ष्य के अंतर्गत, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दे रही है।
  • सरकार द्वारा ‘आत्मनिर्भर अभियान’ के तहत मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
  • ‘राष्ट्रीय मधुमक्खीपालन व शहद मिशन’ (National Beekeeping and Honey Mission- NBHM) के एक भाग के रूप में प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु ‘राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड’ द्वारा चार मॉड्यूल बनाए गए हैं और 30 लाख किसानों को मधुमक्खी पालन में प्रशिक्षित किया गया है। इनको सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी प्रदान की जा रही है।
  • सरकार द्वारा ‘मीठी क्रांति’ के भाग के रूप में हनी मिशन शुरू किया गया है।
  • भारत, विश्व के शीर्ष पांच शहद उत्पादक देशों में शामिल है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2013-14 से 2019-20 के बीच शहद के निर्यात में लगभग 110 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह

वित्त वर्ष 2021-22 में ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment – FDI) ने 83.57 बिलियन डॉलर के “उच्चतम” आंकड़े को छू लिया है।

  • वित्तीय वर्ष 2003-04 के बाद से भारत का ‘विदेशी निवेश अंतर्वाह’ (FDI Inflows) 20 गुना बढ़ गया है। वर्ष 2003-04 में यह केवल 4.3 बिलियन डॉलर दर्ज किया गया था।
  • भारत के FDI प्रवाह में शीर्ष योगदानकर्ताओं में, सिंगापुर 27% की हिस्सेदारी के साथ सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद अमेरिका (18%) और मॉरीशस का 16% का स्थान है।
  • कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, निवेश के लिए शीर्ष क्षेत्र बना रहा, और इस क्षेत्र में लगभग 25% हिस्सेदारी के साथ एफडीआई प्राप्त की। इसके बाद सेवा क्षेत्र और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में प्रत्येक को 12% विदेशी निवेश प्राप्त हुआ।
  • पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान रिपोर्ट किए गए कुल एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 38% हिस्सेदारी के साथ कर्नाटक शीर्ष प्राप्तकर्ता राज्य रहा, इसके बाद महाराष्ट्र (26%) और दिल्ली (14%) का स्थान है।

 

‘जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन’ पोर्टल

  • हाल ही में बायोटेक शोधकर्ताओं और स्टार्ट-अप्‍‍स के लिए एकल राष्ट्रीय पोर्टल – ‘जैविक अनुसंधान नियामक अनुमोदन पोर्टल’ (Biological Research Regulatory Approval Portal – BioRRAP) – लॉन्च किया गया।
  • ‘’बायोआरआरएपी’’ पोर्टल देश में जैविक अनुसंधान और विकास गतिविधियों के लिए नियामक अनुमोदन की मांग करने वाले सभी लोगों की जरूरत पूरी करेगा और इस प्रकार ‘’ईज ऑफ साइंस के साथ-साथ ईज ऑफ बिजनेस’’ के लिए भी एक बड़ी राहत प्रदान करेगा।

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