[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 16 May 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

1. चार धाम यात्रा

 

सामान्य अध्ययन-II

  1. एंग्लो-इंडियन कोटा
  2. प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी
  3. ‘पिक एंड चूज़’ इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क
  4. विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार

सामान्य अध्ययन-III

  1. अंतरिक्ष मलबा
  2. वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट
  3. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भूमिका

 

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल
  2. तमिलनाडु में 4,200 साल पूर्व के ‘लौह युग’ के साक्ष्य
  3. देवासहायम पिल्लई फ्रांसिस द्वारा संत घोषित किए जाने वाले पहले आम भारतीय
  4. तीन इंसेफेलाइटिस विषाणुओं के खिलाफ विकसित टीका
  5. उझ बहुउद्देशीय परियोजना
  6. मैडसोइइडे सांप

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।

चारधाम यात्रा


(Char Dham Yatra)

संदर्भ:

3 मई को ‘चारधाम यात्रा’ (Char Dham Yatra) शुरू होने के बाद से उत्तराखंड में कम से कम 23 तीर्थयात्रियों की रास्ते में ही मौत हो चुकी है, इसके बाद से ‘चार धाम यात्रा’ को जोखिम भरी तीर्थयात्रा के रूप में देखा जाने लगा है।

इन तीर्थयात्रियों की मौत, मुख्य रूप से हृदय संबंधी बीमारियों जैसे दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप, या अन्य सहरुग्णताओं की वजह से हुई है।

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‘चारधाम यात्रा’ इतनी कठिन क्यों है?

  • दुर्गम इलाके, उच्च तुंगता और बदलते मौसम की स्थिति इस तीर्थयात्रा को, खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए अति कठिन बना देती है।
  • तीर्थयात्रियों को अचानक निम्न तापमान, कम आर्द्रता, बढ़ा हुआ पराबैंगनी विकिरण, निम्न वायुदाब और ऑक्सीजन के निम्न स्तर का सामना करना पड़ता है।
  • कम आर्द्रता के कारण, अधिक ऊंचाई पर पहुचने के बाद कुछ घंटों के भीतर, पानी की कमी भी होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप ‘निर्जलीकरण’ (Dehydration) प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

 

क्या आप ‘चार धाम परियोजना’ पर ‘सुप्रीम कोर्ट’ द्वारा गठित ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (High Powered Committee – HPC) के बारे में जानते हैं?

  1. इस समिति के कार्य;
  2. संरचना;
  3. इस परियोजना के कार्यान्वयन से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताएं;
  1. आवश्यक उपाय

संदर्भ: इस बारे में विस्तार से जानकारी के लिए पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. परियोजना का अवलोकन
  2. इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
  3. इन स्थानों से बहने वाली महत्वपूर्ण नदियाँ
  4. राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बीच अंतर

मेंस लिंक:

चारधाम परियोजना के महत्व की विवेचना कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

एंग्लो-इंडियन कोटा


(Anglo-Indian quota)

संदर्भ:

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में ‘संसद में नामनिर्देशन (Nomination)  के माध्यम से ‘एंग्लो-इंडियन’ समुदाय के प्रतिनिधित्व को बहाल करने की मांग की गयी है। अदालत ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए आदेश दिया है।

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा है, कि लोकसभा में मनोनयन या नामनिर्देशन के माध्यम से ‘एंग्लो-इंडियन’ (आंग्ल-भारतीय) प्रतिनिधित्व का प्रावधान समुदाय के सदस्यों को यह आश्वासन देने के लिए शामिल किया गया था कि, जब वे देश में वापस आएंगे तो उनकी रक्षा की जाएगी और उनकी बात सुनी जाएगी।

संबंधित प्रकरण:

  • अदालत द्वारा ‘संवैधानिक (एक सौ चार संशोधन) अधिनियम’, 2019 (Constitutional (One Hundred and Fourth Amendment) Act, 2019) को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई की जा रही है।
  • इस संशोधन के द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के नामांकन-आधारित प्रतिनिधित्व को समाप्त कर दिया गया था।

इस प्रावधान को समाप्त करने के पक्ष में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया तर्क:

केंद्र सरकार ने कहा, कि ‘एंग्लो-इंडियन समुदाय’ समय के साथ भारतीय आबादी में विलीन हो गया है। इसके अलावा, संवैधानिक योजना के अनुसार, यह प्रावधान सीमित अवधि के लिए था, और इसे अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता।

इस प्रावधान को समाप्त किए जाने के विरोध में दिए गए तर्क:

  • एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों की संख्या 2011 की जनगणना में सटीक रूप से परिलक्षित नहीं होती है। संसद में संशोधन विधेयक पेश करते समय तत्कालीन कानून मंत्री ने 2011 की जनगणना रिपोर्ट को आधार बनाया था।
  • अतः यह संशोधन ‘अल्पसंख्यकों के भीतर अल्पसंख्यक’ (minority within a minority) के ‘संवैधानिक वादे’ का उल्लंघन करता है और वस्तुतः यह संशोधन कुछ ही समय में ‘एंग्लो-इंडियन समुदाय’ के व्यवस्थित रूप से सांस्कृतिक-राजनीतिक विनाश के लिए ट्रिगर बन सकता है।

संवैधानिक प्रावधान:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में, लोक सभा में और राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण संबंधी, और नामनिर्देशन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व संबंधी प्रावधान किए गए हैं। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, यदि इन प्रावधानों को संसद द्वारा आगे नहीं बढाया जाता है, तो 25 जनवरी 2020 के बाद प्रभावी नहीं रहेंगे ।

भारत में ‘एंग्लो इंडियन’ से तात्पर्य:

एंग्लो इंडियन शब्द को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (2) में परिभाषित किया गया है; जिसके अनुसार, ‘आंग्ल-भारतीय’ से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसका पिता या पितृ-परंपरा में कोई अन्य पुरूष जनक यूरोपीय उद्भव का है या था, किन्तु जो भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवासी है और जो ऐसे राज्यक्षेत्र में ऐसे माता-पिता से जन्मा है या जन्मा था जो वहाँ साधारणतया निवासी रहे हैं।

संसद और विधानसभाओं में ‘एंग्लो इंडियन’:

  • अनुच्छेद 331 के अंर्तगत किए गए प्रावधानों के अनुसार, यदि लोकसभा के 543 सदस्यों में इस समुदाय का कोई सदस्य नहीं चुना जाता है, तो भारत के राष्ट्रपति, लोकसभा में ‘एंग्लो इंडियन समुदाय’ के 2 सदस्यों को नामनिर्दिष्ट कर सकते हैं।
  • इसी तरह राज्य के राज्यपाल को राज्य विधानमंडल के निचले सदन में इस समुदाय का प्रतिनिधित्व कम रहने पर, ‘एंग्लो इंडियन समुदाय’ के 1 सदस्य को नामनिर्दिष्ट करने का अधिकार है।

संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार, कोई भी एंग्लो-इंडियन सदस्य नामांकन के 6 महीने के भीतर किसी भी पार्टी की सदस्यता ले सकता है। सदस्यता के बाद; वे पार्टी व्हिप से बंधे होते हैं और उन्हें पार्टी के एजेंडे के अनुसार सदन में काम करना होता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘एंग्लो इंडियन’ के नामनिर्देशन का विचार ‘फ्रैंक एंथोनी’ से जुड़ा हुआ है?  ‘फ्रैंक एंथोनी’ अखिल भारतीय एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष थे, इन्होने ही जवाहरलाल नेहरू को संविधान में अनुच्छेद 331 जोड़ने का सुझाव दिया था।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 331 के बारे में
  2. लोकसभा और विधानसभा में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व
  3. भारतीय संविधान के अंतर्गत आरक्षण से संबंधित प्रावधान।

मेंस लिंक:

अनुच्छेद 331 के महत्व की विवेचना कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)


Pradhan Mantri Awas Yojana (URBAN)

संदर्भ:

केंद्र सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री आवास योजना– शहरी’ (Pradhan Mantri Awas Yojana – URBAN: PMAY-U) के लिए 2.01 लाख करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है, जिसमें से 1.18 लाख करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं और 1.10 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

इस योजना के तहत अब तक 1.21 करोड़ मकान स्वीकृत किए जा चुके हैं।

योजना के बारे में:

  • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) को ‘आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय’ (Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation – MoHUPA) द्वारा मिशन मोड में शुरू किया गया था।
  • इसके तहत, राष्ट्र की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर वर्ष 2022 तक ‘सभी के लिए आवास’ की परिकल्पना की गयी है।

इस मिशन का उद्देश्य, निम्नलिखित कार्यक्रम- घटकों के माध्यम से झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों सहित शहरी गरीबों की आवास आवश्यकता को पूरा करना है:

  1. संसाधन के रूप में भूमि का उपयोग करते हुए निजी विकासकर्ताओं (developers) की भागीदारी से झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों निवासियों का ‘स्लम पुनर्वास’।
  2. ‘क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी’ के माध्यम से दुर्बल वर्ग के लिए किफायती आवासों को बढ़ावा देना।
  3. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के साथ साझेदारी में किफायती आवासों का निर्माण।
  4. लाभार्थी द्वारा बनवाए जाने वाले निजी आवास के निर्माण/विस्तार के लिए सब्सिडी।

‘क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी’ घटक को ‘केंद्रीय क्षेत्र की योजना’ के रूप में लागू किया जाएगा, जबकि अन्य तीन घटकों को केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) के रूप में लागू किया जाएगा।

मकानों का स्वामित्व:

  • योजना के तहत निर्मित आवास को परिवार की वयस्क महिला सदस्य के नाम या संयुक्त नाम से आवंटित किया जाएगा।
  • सभी घरों में शौचालय तथा पेयजल की सुविधा, और बिजली की आपूर्ति उपलब्ध होगी।
  • योजना के अंतर्गत, विकलांग व्यक्तियों, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और ट्रांसजेंडर को वरीयता दी जाती है।

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. क्या आप जानते हैं कि PMAY-U दिशानिर्देशों के तहत, राज्य सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि योजना के तहत बनाए गए सभी घरों को भुवन एचएफए (सभी के लिए आवास) एप्लीकेशन (Bhuvan HFA – ‘Housing for All’ App) पर जियोटैग किया जाए। भुवन एचएफए एप्लीकेशन को सरकार द्वारा इस योजना की निगरानी के लिए विकसित किया गया है। संदर्भ: इसे पढ़ें।
  2. केंद्र प्रायोजित योजनाओं और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के मध्य अंतर जानने हेतु पढ़िए

प्रीलिम्स लिंक:

  1. प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) बनाम ‘प्रधान मंत्री आवास योजना’ (ग्रामीण)
  2. प्रमुख विशेषताएं
  3. कार्यान्वयन
  4. पात्रता

मेंस लिंक:

प्रधान मंत्री आवास योजना (शहरी) पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

‘पिक एंड चूज़’ इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क


(Pick-and-choose Indo-Pacific economic framework)

संदर्भ:

संयुक्त राज्य अमेरिका ‘भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचे’ / ‘इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क’ (Indo-Pacific economic framework – IPEF) में भारत की भागीदारी को “बहुत महत्वपूर्ण” मानता है।

  • अतएव, वाशिंगटन द्वारा “अनुकूलन और समावेशन” को प्राथमिकता देने के लिए ‘रूपरेखा’ / फ्रेमवर्क तैयार किया जा रहा है।
  • इसके तहत, भाग लेने वाले देश, फ्रेमवर्क के सभी चार स्तंभों में शामिल हुए बिना IPEF में शामिल हो सकते हैं। यह एक ‘पिक-एंड-चूज़’ व्यवस्था होगी, जिससे ‘इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क’ में भारत के शामिल होने की संभावना बढ़ जाएगी।

‘इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क’ (IPEF) के बारे में:

वर्ष 2021 में घोषित, ‘इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क’ (IPEF) का उद्देश्य परस्पर सहयोग के लिए ‘क्षेत्रीय मानक’ निर्धारित करना, तथा इसमें ‘दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ’ (ASEAN) अर्थात ‘आसियान’ के सदस्य देशों को शामिल करना हैं।

  • यह फ्रेमवर्क, ‘महत्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक प्रतिबद्धता के बारे में उठने वाले सवालों का बिडेन प्रशासन द्वारा दिया जाने वाला जवाब है।
  • IPEF का निर्माण, क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखलाओं की ओर ले जाकर, चीन की बाजार से “अलग” होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए किया गया है।

‘इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क’ के चार “स्तंभ”:

  1. निष्पक्ष और अनुकूलित व्यापार (श्रम, पर्यावरण और डिजिटल मानकों सहित सात उप-विषयों को शामिल करते हुए)
  2. आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन
  3. इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छ ऊर्जा और डीकार्बोनाइजेशन
  4. कर और भ्रष्टाचार-रोधी

भारत के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का सामरिक महत्व:

  • सामरिक महत्व: इंडो-पैसिफिक एक बहुध्रुवीय क्षेत्र है, और यह क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद और विश्व की आधी से अधिक जनसंख्या के लिए जिम्मेदार है।
  • खनिज संसाधन: समुद्री क्षेत्र भी, महत्पूर्ण संसाधनों जैसेकि मछली, खनिज, और अपतटीय तेल और गैस के लिए महत्वपूर्ण भंडारण क्षेत्र बन गए हैं।
  • आर्थिक विकास: ‘भारत-प्रशांत क्षेत्र’ का सकल घरेलू उत्पाद’, कुल ‘विश्व सकल घरेलू उत्पाद’ का लगभग 60% है, जोकि इसे वैश्विक विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बनाता है।
  • वाणिज्य: वैश्विक व्यापार के लिए दुनिया के कई सबसे महत्वपूर्ण ‘चोक पॉइंट’ इस क्षेत्र में स्थित हैं, जिनमें वैश्विक आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण ‘मलक्का जलडमरूमध्य’ भी शामिल है।

इंस्टा जिज्ञासु:

यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने 2021 में, एशिया-प्रशांत में एक ऐतिहासिक ‘सुरक्षा समझौते’ की घोषणा की थी, जिसे चीन का मुकाबला करने के प्रयास के रूप में देखा जाता है। इसे AUKUS संधि और AUKUS गठबंधन कहा जाता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बारे में
  2. हिंद महासागर क्षेत्र का अवलोकन
  3. इन क्षेत्रों में अवस्थित महत्वपूर्ण जलडमरूमध्य, खाड़ियाँ और दर्रे

मेंस लिंक:

भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सामरिक महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार


(WHO Reforms)

संदर्भ:

महामारी के तीसरे वर्ष में दूसरे वैश्विक कोविड-19 सम्मेलन में देशों के प्रमुखों से बात करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार’ (WHO Reforms) के बहुचर्चित मामले को उठाया।

WHO सुधारों के लिए भारत की मांग का, विशेष रूप से कोविड -19 महामारी के शुरुआती दौर में इस संस्था द्वारा किए गए प्रबंधन के बाद, दुनिया भर के देशों ने समर्थन किया है।

WHO में सुधारों की आवश्यकता:

  • कोरोनावायरस बीमारी (कोविड -19) के विकास और प्रसार ने, क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य सहयोग बढ़ाने, विशेष रूप से डब्ल्यूएचओ में सुधार किए जाने संबंधी अनुरोधों को प्रेरित किया है।
  • WHO भी ‘वैश्विक शक्ति-खेल’ के प्रति निरापद / प्रतिरक्षित नहीं है। अमेरिका और चीन जैसे शक्तिशाली देश, इसके निर्णयों को प्रभावित करते हैं।
  • वित्त पोषण संबंधी मुद्दे: WHO के बजट का मात्र ‘एक चौथाई’ संयुक्त राष्ट्र के सदस्य-देशों के योगदान से आता है, और इसके कार्यों को संचालित करने के लिए ‘वास्तविक धन’ सदस्य देशों और संगठनों द्वारा स्वैच्छिक वित्त पोषण से प्राप्त होता है।
  • डब्ल्यूएचओ की संस्थागत व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य में वैश्विक सहयोग को मजबूती से आगे बढ़ाने और विकासशील देशों को वास्तविक समय में समर्थन देने में सक्षम होनी चाहिए।
  • WHO या कोई अन्य बहुपक्षीय संगठन ‘ड्रग्स रिसर्च’ में शामिल नहीं है।

सुझाए गए सुधार:

  • WHO के कार्यकारी बोर्ड (Executive Board) को एक स्थायी निकाय बनाया जाना चाहिए, जिसमें निर्वाचित देशों के जिनेवा में तैनात ‘स्थायी प्रतिनिधि’ शामिल हों।
  • आवश्यकता पड़ने पर कार्यकारी बोर्ड को बैठक करनी चाहिए और डब्ल्यूएचओ द्वारा सीधी कार्रवाई करनी चाहिए।
  • कार्यकारी बोर्ड को केवल भौगोलिक प्रतिनिधित्व से आगे जाने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रमुख हितधारक जैसे कि सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और सर्वाधिक आबादी वाले देश इस निकाय में हमेशा बने रहें।
  • डब्ल्यूएचओ को नई दवाओं की शुरुआत करने और विकसित देशों में दवा अनुसंधान को शुरू करने में शामिल होना चाहिए।
  • संकट के समय में, ‘विश्व व्यापार संगठन’ जैसे अन्य निकायों के साथ डब्ल्यूएचओ को प्रमुख दवाओं तक सस्ती पहुंच बनाने के तरीके खोजने चाहिए।
  • सदस्य देशों द्वारा संगठन के अनिवार्य वित्त पोषण में वृद्धि की जानी चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सुधारों के लिए भारत की नौ सूत्री योजना में शामिल हैं:

  1. सीमा पार करने में सक्षम ‘स्वास्थ्य आपात स्थितियों’ की निगरानी के लिए तंत्र में परिवर्तन।
  2. इस संयुक्त राष्ट्र निकाय के प्रमुख को अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के लिए अधिक शक्ति दी जानी चाहिए।
  3. निकाय के वित्त पोषण और शासन में परिवर्तन और सुधार।
  4. निधियों के उपयोग में पारदर्शिता।
  5. कोविड-19 टीकों के लिए उचित, वहनीय और न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने में विश्व निकाय के लिए एक बड़ी भूमिका।
  6. डब्ल्यूएचओ के नियमित बजट को भी बढ़ाया जाना चाहिए ताकि विकासशील देशों पर भारी वित्तीय बोझ डाले बिना मुख्य गतिविधियों को “इसके द्वारा वित्तपोषित किया जा सके”।
  7. चूंकि डब्ल्यूएचओ के पास इन फंडों का उपयोग करने में लचीलापन बहुत कम है, इसलिए स्वैच्छिक योगदान “यह सुनिश्चित करने के लिए चिह्नित होना चाहिए कि डब्ल्यूएचओ के पास उन क्षेत्रों में इसके उपयोग के लिए आवश्यक लचीलापन हो, जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
  8. डब्ल्यूएचओ को अपना तकनीकी फोकस बनाए रखना चाहिए, और साथ ही राजनीतिक वैज्ञानिकों, शहरी डिजाइनरों, वकीलों, तर्कशास्त्रियों, या सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों से अधिक इनपुट शामिल करने के लिए अपनी विशेषज्ञता का विस्तार करना चाहिए।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ को किस प्रकार वित्त पोषित किया जाता है?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. WHO का प्रशासन
  2. WHO में योगदान के प्रकार
  3. सबसे बड़ा योगदानकर्ता
  4. विश्व स्वास्थ्य दिवस का महत्व

मेंस लिंक:

विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में WHO की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

अंतरिक्षीय मलबा


(Space debris)

संदर्भ:

चीन के कक्षीय प्रक्षेपण यान – चांग झेंग 3बी सीरियल Y86 (Chang Zheng 3B serial Y86) – के पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश से उत्पन्न ‘अंतरिक्षीय मलबा’ (Space debris) गुजरात में विभिन्न स्थानों पर गिरने का संदेह है।

‘चांग झेंग 3बी सीरियल Y86’ के बारे में:

चांग झेंग 3बी (Chang Zheng 3B), जिसे आमतौर पर सीजेड 3बी (CZ 3B) के नाम से जाना जाता है, भारत के जीएसएलवी या पीएसएलवी की तरह, चीन का कक्षीय प्रक्षेपण यान है।

  • यह यान अपने ‘तीसरे चरण’ में, उपग्रह को निर्धारित कक्षा में प्रक्षेपित करने के बाद ‘उप-कक्षीय उड़ान’ मोड में रहता है। जिसमे यह ‘मानव हस्तक्षेप से नियंत्रित होने के दायरे से बाहर रहता है और अंततः पृथ्वी के वातावरण में फिर से प्रवेश करता है।
  • ‘लॉन्ग मार्च 3बी वाई 86’ (Long March 3B Y 86) रॉकेट लॉन्च के तीसरे चरण में, पृथ्वी के वातावरण में फिर से प्रवेश करने पर, इस रॉकेट का मलबा गुजरात में गिरने का संदेह व्यक्त किया रहा है।

Current Affairs

 

‘अंतरिक्षीय कचरा’ क्या होता है?

  • अंतरिक्षीय कचरा अथवा अंतरिक्षीय मलबा (Space debris) में प्राकृतिक अंतरिक्ष मलबे जैसे उल्कापिंड, या मानव निर्मित निष्क्रिय अंतरिक्ष यान और उपग्रह, रॉकेट के विभिन्न चरणों में भेजे गए पेलोड, मृत उपग्रह, उपग्रह विस्फोट और टकराव आदि शामिल हो सकते हैं।
  • अंतरिक्षीय मलबा संचार, परिवहन, मौसम और जलवायु निगरानी, ​​रिमोट सेंसिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के निष्पादन में सहयोग करने वाली, अंतरिक्ष में स्थित प्रौद्योगिकियों के समक्ष, एक वैश्विक खतरा उत्पन्न करता है।

अंतरिक्ष में मलबे की मात्रा:

  • चूंकि, वर्तमान सेंसर तकनीक छोटे आकार के पिंडों का पता लगाने में सक्षम नहीं है, फिर भी इसके द्वारा प्रदान किये गए आंकड़ों के आधार पर माना जाता है, कि अंतरिक्षीय मलबे में 500,000 से एक मिलियन टुकड़े / खंड शामिल हैं।
  • ये सभी खंड 17,500 मील प्रति घंटे (28,162 किमी प्रति घंटे) की गति से भ्रमण कर रहे है, तथा कक्षीय मलबे का एक छोटा सा टुकड़ा भी किसी उपग्रह या अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुंचाने के लिए पर्याप्त है।

भविष्य में इस समस्या से निपटने हेतु प्रौद्योगिकियां:

किसी पिंड की कक्षा में परिवर्तन करके उसे मार्ग से हटाना, एक संभावित दुर्घटना को टालने का एक तरीका है, किंतु, इसके लिए अंतरिक्ष में मलबे की भारी मात्रा होने की वजह से इसका निरंतर अवलोकन और अनुमानित मार्ग निर्धारित करना आवश्यक होता है।

  1. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगा हुआ नासा का ‘अंतरिक्षीय मलबा संवेदक’ (Space Debris Sensor), पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है। यह सेंसर, दिसंबर 2017 में अंतरिक्ष स्टेशन के यूरोपीय कोलंबस मॉड्यूल पर बाहर से जोड़ा गया था। यह न्यूमतम दो वर्षों तक ‘मलबे’ के मिलीमीटर आकार के टुकड़ों का पता लगाएगा तथा इन टुकड़ों के आकार, घनत्व, वेग, कक्षा और किसी भी संभावित टकराव से संबंधित जानकारी प्रदान करेगा। इसके अलावा, यह सेंसर यह भी निर्धारित करेगा, कि टकराने वाला पिंड अंतरिक्ष में गतिमान कोई पिंड है या मानव निर्मित अंतरिक्ष मलबे का कोई टुकड़ा है।
  2. रिमूव डेब्रिस (REMOVEdebris), इस उपग्रह के माध्यम से, दो क्यूबसैट द्वारा अंतरिक्ष में कृत्रिम मलबे को छोड़ा जाएगा और इस मलबे को पुनर्प्राप्त करने के कई तरीकों का प्रदर्शन किया जाएगा।
  3. डीऑर्बिट मिशन (Deorbit mission): नासा द्वारा दो उभरती हुई प्रौद्योगिकियां विकसित की जा रही हैं, जिन्हें ‘डीऑर्बिट मिशन’ के रूप में जाना जाता है। इन तकनीकों का उपयोग अंतरिक्ष कबाड़ को मार्ग से हटाने अथवा इसे पकड़ने के लिए किया जाएगा।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘एंटी-सैटेलाइट हथियार’ एक हाई-टेक मिसाइल होते हैं जोकि मात्र कुछ देशों के पास हैं? वर्तमान में यह तकनीकी क्षमता किन देशों के पास हैं?

नेत्र (NETRA):

पिछले दिसंबर में, इसरो द्वारा, अंतरिक्ष मलबे से अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए, बेंगलुरु में ‘नेत्र’ (NETRA) नामक ‘स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस’ (SSA) नियंत्रण केंद्र स्थापित किया गया था।

  • ‘नेत्र’ का मुख्य उद्देश्य, राष्ट्रीय अंतरिक्ष परिसंपत्तियों की देखरेख, निगरानी और सुरक्षा करना तथा सभी SSA गतिविधियों के केंद्र के रूप में कार्य करना है।
  • केवल अमेरिका, रूस और यूरोप में पास, अंतरिक्ष पिंडों पर नज़र रखने और टकराव संबंधी चेतावनियों को साझा करने वाली, इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अंतरिक्ष मलबा
  2. नेत्र
  3. भारत की ए-सैट मिसाइल
  4. डीऑर्बिट मिशन

मेंस लिंक:

अंतरिक्ष मलबे से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट


संदर्भ:

हाल ही में, ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (international Food Policy Research Institute – IFPRI) द्वारा ‘वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणाली’ (Global Food Policy Report: Climate Change & Food Systems) जारी की गयी है।

भारत संबंधी प्रमुख निष्कर्ष:

  1. जलवायु परिवर्तन के कारण 2030 तक भारत के खाद्य उत्पादन में 16% तक की गिरावट हो सकती है और भुखमरी के जोखिम का सामना करने वाले लोगों की संख्या 23% बढ़ सकती है।
  2. 2030 में भुखमरी से पीड़ित भारतीयों की संख्या 73.9 मिलियन होने की उम्मीद है और यदि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित आबादी को शामिल किया जाए, तो यह संख्या बढ़कर 90.6 मिलियन हो जाएगी।
  3. हालांकि, जलवायु परिवर्तन भारतीयों की औसत कैलोरी खपत को प्रभावित नहीं करेगा और जलवायु परिवर्तन परिदृश्य में भी, वर्ष 2030 तक यह खपत प्रति व्यक्ति प्रति दिन लगभग 2,600 किलो कैलोरी रहने का अनुमान है।

रिपोर्ट में वैश्विक परिदृश्य:

  1. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, वैश्विक खाद्य उत्पादन 2010 के स्तर से 2050 तक लगभग 60% बढ़ जाएगा।
  2. इस वृद्धि के बावजूद, विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति खपत का स्तर विकसित देशों की तुलना में आधे से भी कम रहेगा।
  3. जनसंख्या और आय में अनुमानित वृद्धि के कारण, विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में, विशेष रूप से अफ्रीका में, उत्पादन और मांग अधिक तेजी से बढ़ने का अनुमान है।
  4. उच्च आय वाले देशों के बाहर एनी देशों में भी आहार में अधिक फल और सब्जियां, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, और पशु-स्रोत खाद्य पदार्थों सहित उच्च मूल्य वाले खाद्य पदार्थ शामिल किए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

रिपोर्ट में की गयी सिफारिशें:

  1. नवाचार के लिए अनुसंधान एवं विकास में निवेश।
  2. संसाधनों का बेहतर प्रशासन।
  3. स्वस्थ आहार और अधिक सतत उत्पादन।
  4. सशक्त मूल्य श्रृंखला।
  5. जलवायु-स्मार्ट वित्त।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ


(Chief of Defence Staff)

संदर्भ:

सरकार द्वारा सिस्टम में ओवरलैप को ठीक करने और प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (Chief of Defence Staff – CDS) और ‘सैन्य मामलों के विभाग’ (Department of Military Affairs – DMA) की अवधारणा का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है, जिसकी वजह से नए CDS की नियुक्ति में देरी हो रही है।

पृष्ठभूमि:

दिसंबर 2019 में, सरकार द्वारा ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (CDS) के पद के सृजन को मंजूरी दी गयी थी। ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’, रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार और ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ (Chiefs of Staff Committee – CoSC) के स्थायी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करेगा।

इसके अलावा, ‘सैन्य मामलों के विभाग’ (DMA) को रक्षा मंत्रालय में पांचवें विभाग के रूप में गठित किया गया था। इसके सचिव ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ होंगे।

संबंधित प्रकरण:

  1. अब तक, रक्षा सचिव की अध्यक्षता वाले DMA और रक्षा विभाग (DoD) के बीच कार्य वितरण को लेकर पुराने मुद्दे जारी है।
  2. दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत कोई मानकीकृत समन्वय तंत्र नहीं हैं।
  3. भूमिकाओं और जिम्मेदारियों का ओवरलैप होता है।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के बारे में:

वर्ष 1999 में गठित कारगिल समीक्षा समिति द्वारा सुझाए गए अनुसार, ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (CDS), सरकार के एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार (single-point military adviser) होंगे।

  • इनके लिए ‘चार सितारा जनरल’ (Four-star General) का दर्जा प्राप्त होगा।
  • CDS, ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं। इस कमेटी में तीनो सशत्र- बालों के प्रमुख सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।
  • ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ का मुख्य कार्य, भारतीय सेना के तीनो सशत्र-बलो के मध्य अधिक से अधिक परिचालन तालमेल को बढ़ावा देना और अंतर-सेवा संघर्ष को न्यूनतम करना होगा।

आवश्यक शर्तेँ:

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद पर नियुक्त व्यक्ति, सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी सरकारी पद को धारण करने का पात्र नहीं होगा।
  • CDS के पद से सेवानिवृत्ति के 5 वर्षों बाद तक बिना पूर्व अनुमोदन के किसी भी निजी रोज़गार की अनुमति भी नहीं होगी।

भूमिकाएं और कार्य:

  • CDS, सरकार को ‘सिंगल-पॉइंट सैन्य सलाह’ प्रदान करेगा तथा सशस्त्र बलों के मध्य योजना बनाने, खरीद करने और रसद के संबंध में तालमेल स्थापित करेगा।
  • यह थिएटर कमांड के गठन के माध्यम से स्थल-वायु-समुद्र कार्यवाहियों का समेकन सुनिश्चित करेगा।
  • CDS, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में ‘परमाणु कमान प्राधिकरण’ के सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करेगा, साथ ही अंतरिक्ष और साइबर स्पेस जैसे नए युद्ध क्षेत्रों को संभालने के लिए त्रि-सेवा संगठनों की कमान का नेतृत्व भी करेगा।
  • वह, रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (Chiefs of Staff Committee – COSC) के स्थायी अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करेगा।
  • CDS, ‘रक्षा अधिग्रहण परिषद’ और ‘रक्षा योजना समिति’ के सदस्य भी होगा।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘थिएटर ऑफ़ वॉर’ और ‘थिएटर ऑफ़ ऑपरेशंस’ के बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ के बारे में
  2. भूमिकाएं और कार्य
  3. शक्तियां
  4. थिएटर कमांड क्या हैं?

मेंस लिंक:

थिएटर कमांड्स की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल

  • भारत उच्च रक्तचाप नियंत्रण पहल (India Hypertension Control Initiative – IHCI) को 2017 में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य ‘रक्तचाप’ (Blood Pressure) में वृद्धि के प्रसार में सापेक्षिक रूप से 25% की कमी लानी के लक्ष्य को हासिल करना था।
  • इस परियोजना का लक्ष्य 15 करोड़ से अधिक लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण ‘उच्च रक्तचाप’ उपचार के कार्यान्वयन में तेजी लाना है।
  • यह पहल, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Reasearch- ICMR), राज्य सरकारों, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शुरू की गयी है।

‘उच्च रक्तचाप’ (हाइपरटेंशन) के बारे में:

हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) को, प्रकुंचक / सिस्टोलिक रक्तचाप स्तर (Systolic Blood Pressure Level) के 140 mmHg से अधिक या उसके बराबर होने अथवा डायस्टोलिक रक्तचाप स्तर (Diastolic Blood Pressure Level) के 90 mmHg से अधिक या उसके बराबर होने या/और ‘रक्तचाप’ को कम करने के लिए ‘उच्च रक्तचाप रोधी’ दवा लेने’ के रूप में परिभाषित किया गया है।

क्या आप जानते हैं?

  1. 1 मिलियन भारतीयों में से लगभग 23% का रक्तचाप अनियंत्रित है।
  2. भारत, “25 तक 25” लक्ष्य (“25 by 25” goal) के लिए प्रतिबद्ध है, जिसका उद्देश्य 2025 तक गैर-संचारी रोगों (NCDs) के कारण समय से पहले मृत्यु दर को 25% तक कम करना है।

तमिलनाडु में 4,200 साल पूर्व के ‘लौह युग’ के साक्ष्य

तमिलनाडु सरकार के अनुसार, राज्य में उत्खनित कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग एवं पुरातात्विक आकलन के आधार पर भारत में 4,200 साल पूर्व ‘लोहे का उपयोग’ किए जाने के साक्ष्य मिले हैं, जोकि देश में ‘लौह युग’ के सबसे प्राचीन साक्ष्य हैं।

उत्खनन स्थल: तमिलनाडु में कृष्णागिरी के पास मयिलादुम्पराई।

निकटवर्ती पुरातात्विक स्थल: तोगरापल्ली, गंगावरम, संदूर, वेदारथट्टक्कल, गुट्टूर, गिदलुर, सप्पमुत्लु और कप्पलवाड़ी।

देश के अन्य भागों में लोहे का उपयोग:

  • 1979 में, राजस्थान के अहर में 1300 ईसा पूर्व में ‘लोहे के उपयोग’ का पता चला था।
  • बाद में, कर्नाटक के बुक्कासागर में मिले ‘लोहे के उत्पादन’ का संकेत देने वाले नमूने 1530 ईसा पूर्व के थे।
  • मध्य-गंगा घाटी में रायपुरा में लोहे के गलाने के प्रमाण खोजने वाले उत्खनन के बाद, ‘लोहे के उपयोग’ की तारीख को 1700-1800 ईसा पूर्व का निर्धारित किया गया था।
  • वाराणसी के पास मल्हार और उत्तरी कर्नाटक में ब्रह्मगिरी में पुरातात्विक स्थलों की जांच के आधार पर इस तारीख को 1900-2000 ईसा पूर्व तक बढ़ा दिया गया था।

नवीनतम निष्कर्षों का महत्व:

  • यह खोज, 4000 साल पहले कृषि गतिविधियों के अस्तित्व को इंगित करती है।
  • वैज्ञानिकों का अनुमान है, कि चूंकि लोहा तांबे की तुलना में अधिक मजबूत होता है, अतः मानव द्वारा लोहे का उपयोग शुरू करने के बाद ही वनों की कटाई शुरू हुई।

 

देवासहायम पिल्लई फ्रांसिस द्वारा संत घोषित किए जाने वाले पहले आम भारतीय

2004 में वेटिकन द्वारा बीटिफिकेशन (Beatification) की प्रक्रिया के लिए देवासहायम के नाम की सिफारिश की गई थी।

इस प्रक्रिया के पूरा होने के साथ, देवासहायम पिल्लई,  वेटिकन में एक प्रभावशाली विमोचन समारोह के दौरान पोप फ्रांसिस द्वारा संत घोषित किए जाने वाले पहले भारतीय आम आदमी बन गए हैं।

देवासहायम पिल्लई के बारे में:

देवासहायम पिल्लई (Devasahayam Pillai) का जन्म 23 अप्रैल, 1712 को तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य के भाग कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में नीलकांत पिल्लई के रूप में हुआ था।

18वीं शताब्दी में इन्होने ईसाई धर्म अपना लिया था और उन्होंने 1745 में अपना नाम बदलकर ‘लेज़ारूस’ (Lazarus) रख लिया।

जब उन्हें एक डच नौसेना कमांडर द्वारा कैथोलिक धर्म में दीक्षित किया गया था, उस समय वह त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा के दरबार में एक अधिकारी थे,।

  • ईसाई धर्म अपनाने का फैसला करने के बाद, उन्हें पहली बार फरवरी 2020 में “बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने” के लिए ‘संत’ की उपाधि के लिए मंजूरी दी गई थी।
  • कहा जाता है, कि देवासहायम को ईसाई धर्म अपनाने का फैसला करने के बाद कठोर उत्पीड़न और कारावास झेलना पड़ा, और अंततः 1752 में उनकी हत्या कर दी गई।
  • मलयालम में “लाजर” या “देवसहायम”, का अनुवाद “भगवान मेरे सहायक है” है।

 

तीन इंसेफेलाइटिस विषाणुओं के खिलाफ विकसित टीका

ईस्टर्न इक्वाइन इंसेफेलाइटिस वायरस (EEEV), वेस्टर्न इक्वाइन इंसेफेलाइटिस वायरस (WEEV), और वेनेज़ुएला इक्वाइन एन्सेफलाइटिस वायरस (VEEV) के लिए एक टीका वयस्क स्वयंसेवकों पर परीक्षण में सुरक्षित, अच्छी तरह से सहनीय और एक तटस्थ एंटीबॉडी प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करने वाला पाया गया है।

इंसेफेलाइटिस के बारे में:

  • इंसेफेलाइटिस (Encephalitis), एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें मस्तिष्क के ऊतकों में सूजन आ जाती है।
  • यह बीमारी, आमतौर पर एक वायरल संक्रमण के कारण होती है और यह बैक्टीरिया या परजीवी संक्रमण, कैंसर या कुछ दवाओं या विषाक्त पदार्थों के कारण भी हो सकती है।
  • EEEV, WEEV और VEEV संक्रमित मच्छरों के काटने से इंसानों में फैलते हैं।
  • घोड़े भी इस संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं, लेकिन घोड़े वायरस को सीधे मनुष्यों तक नहीं पहुंचा सकते हैं।

 

उझ बहुउद्देशीय परियोजना

उझ (Ujh), रावी नदी की एक सहायक नदी है। ‘सिंधु जल संधि’ के तहत भारत के अधिकारों के उपयोग पर कार्यवाई करने के लिए ‘उझ बहुउद्देशीय परियोजना’ की योजना बनाई गई है।

  • यह परियोजना, सिंधु जल संधि के अनुसार भारत को साझा की जाने वाली पूर्वी नदियों के पानी के उपयोग को बढ़ाएगी।
  • इसका निर्माण जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले में बहने वाली उझ नदी पर किया जाएगा।

 

मैडसोइइडे सांप

(MADTSOIIDAE)

वैज्ञानिकों ने पहली बार लद्दाख हिमालय के शीरे के निक्षेपों से एक मैडसोइइडे सांप (MADTSOIIDAE snakes) के जीवाश्म की खोज की सूचना दी है। यह अध्ययन यह बताता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में सांपों की प्रजाति अब तक की जानकारी से काफी पहले से रही है।

  • ‘मैडसोइइडे’ सांप मध्यम आकार से लेकर विशाल आकार का होता है। यह सांपों का एक विलुप्त समूह है। इसे पहली बार क्रेतेसियस अवधि के दौरान देखा गया, जो 145 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ और 66 मिलियन वर्ष पहले समाप्त हुआ।
  • जीवाश्म रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है कि ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर अधिकांश गोंडवान महाद्वीपों में मध्य-पीलेओजीन काल (56 मिलियन से 33.9 मिलियन वर्ष पूर्व) में पूरा समूह गायब हो गया है।

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