[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 14 May 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. मानसून की ‘शुरुआत’
  2. जुड़वां चक्रवात

 

सामान्य अध्ययन-II

  1. राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित करने संबंधी केंद्र की शक्ति
  2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त
  3. कर्नाटक का धर्मांतरण-रोधी विधेयक

सामान्य अध्ययन-III

  1. इवेंट हराइज़न के द्वारा ‘सैजिटेरीअस ए*’ के वास्तविक रंगो की जानकारी
  2. पुलिस सुधार

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. अमलथिया
  2. भारत टैप पहल
  3. उत्कर्ष समारोह
  4. मैकॉलिन कन्वेंशन
  5. INSACOG
  6. ब्रह्मोस मिसाइल

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।

मानसून की ‘शुरुआत’


(‘Onset’ of the monsoon)

संदर्भ:

केरल में 27 मई को ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ (Southwest Monsoon) आने की संभावना है, जोकि इस वर्ष, अपने आगमन की सामान्य तिथि 1 जून से काफी पहले आ रही है।

यदि पूर्वानुमान सही साबित होता है, तो वर्ष 2009 के बाद, केरल में मानसून की यह सबसे जल्दी शुरुआत होगी।

‘मानसून’ की शुरुआत की घोषणा:

भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ की शुरुआत की घोषणा निम्नलिखित मापदंडों के पूरा होने के बाद ही की जाती है:

वर्षा (Rainfall): यदि 10 मई के बाद किसी भी समय, केरल और लक्षद्वीप में स्थापित 14 निर्दिष्ट ‘मौसम विज्ञान केंद्रों’ में से कम से कम 60% केंद्रों के द्वारा लगातार दो दिनों तक न्यूनतम 2.5 मिमी बारिश रिकॉर्ड की जाती है, तो भारतीय मौसम विभाग (IMD) द्वारा ‘मानसून की शुरुआत’ (‘Onset’ of the monsoon) की घोषणा कर दी जाती है।

पवन क्षेत्र (Wind field): भूमध्य रेखा से 10ºN अक्षांश और 55º पूर्वी देशांतर से 80º पूर्वी देशांतर के मध्य सीमित क्षेत्र में ‘पछुआ हवाओं’ की गहराई ‘600 हेक्टोपास्कल’ (1 hPa = 1 मिलीबार दबाव) तक होनी चाहिए। 5º उत्तरी अक्षांश -10º उत्तरी अक्षांश और 70º पूर्वी देशांतर – 80º पूर्वी  देशांतर के मध्य के क्षेत्र में ‘आंचलिक हवा’ की गति 925 hPa पर 15-20 समुद्री मील (28-37 kph) के बीच होनी चाहिए।

उष्मा (Heat): ‘निर्गामी दीर्घतरंगीय विकरण’ (Outgoing Longwave Radiation – OLR) का मान 5-10ºउत्तरी अक्षांश और 70-75º पूर्वी देशांतर  के मध्य क्षेत्र में 200 वाट प्रति वर्ग मीटर (wm2) से कम होना चाहिए। ‘निर्गामी दीर्घतरंगीय विकरण’ (OLR), पृथ्वी की सतह, महासागरों और वायुमंडल द्वारा अंतरिक्ष में निर्गमित ऊर्जा का एक माप होता है।

‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ की शुरुआत को प्रभावित करने वाले कारक:

‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ की शुरुआत के लिए समुद्र तट के निकट ‘मौसम प्रणाली’ के रूप में एक उत्प्रेरक / ट्रिगर की आवश्यकता होती है। समुद्र में उत्पन्न होने वाली ‘मौसमी परिघटनाएं’, मानसून की शुरुआत के सामान्य समय के आसपास अधिक सक्रिय हो जाती है, जोकि मानसून की शुरुआत का कारण बन जाती है।

इन ‘मौसमी परिघटनाओं’ में शामिल है:

  1. मई के अंतिम दिनों या जून की शुरुआत के दौरान बंगाल की खाड़ी में ‘निम्नदाब (Depression) क्षेत्र का निर्माण।
  2. लगभग इसी समय अरब सागर में भी इसी तरह की ‘मौसम प्रणालियाँ’ विकसित होती हैं जिसके परिणामस्वरूप मुख्य भूमि पर मानसून की शुरुआत होती है।
  3. इसके अलावा, केरल और लक्षद्वीप क्षेत्र तट के समीप ‘दक्षिणपूर्व अरब सागर’ में विकसित होने वाले ‘चक्रवातीय भंवर’ (Cyclonic Vortex) भी ‘मानसून की शुरुआत’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये ‘चक्रवातीय भंवर’ देश के पश्चिमी तट के साथ-साथ आगे बढ़कर ‘मानसून के प्रवाह’ को आगे धकेलते हैं।
  4. स्थल और समुद्र के बीच तापमान के अंतर के कारण देश के पश्चिमी तट से दूर ‘अति निम्नदाब क्षेत्र’ अर्थात ‘गर्त’ (Trough) का बनना। यह स्थिति में मानसून की हल्की शुरुआत और कमजोर प्रगति हो सकती है।
  5. अंत में, ‘पूरे भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वायु प्रवाह’ (Cross-Equatorial Flow), जिसमे दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध तक चलने वाली ‘व्यापारिक हवाएं’, भारतीय मुख्य भूमि की ओर एक सशक्त मानसून लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

भारत में मानसून- प्रमुख तथ्य:

  1. आम तौर पर, दुनिया भर में, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में लगभग 20 डिग्री उत्तर और 20 डिग्री दक्षिण अक्षांशों के बीच ‘मानसून’ का प्रभाव देखा जाता है।
  2. भारत के कुल 4 मौसमी डिवीजनों में से, केवल दो डिवीजनों में मानसून का विस्तार पाया जाता है, अर्थात्- दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम और ‘निर्वतनी मानसून का मौसम’ (Retreating Monsoon Season)।
  3. भारत में, देश की कुल वार्षिक वर्षा की 70 प्रतिशत से अधिक वर्षा ‘दक्षिण-पश्चिम मानसून’ का मौसम के दौरान होती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘दक्षिण पश्चिम मानसून’ के गठन (शुरुआत नहीं) को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं? पढ़िए

क्या आप जानते हैं, कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में हर साल 15 मई से 20 मई के बीच मानसूनी बारिश होने लगती है। यह, केरल में मानसून की शुरुआत से पहले ही शुरू हो जाती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अल नीनो क्या है?
  2. ला नीना क्या है?
  3. ENSO क्या है?
  4. ये घटनाएँ कब घटित होती हैं?
  5. एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ENSO का प्रभाव।
  6. हिंद महासागर द्विध्रुव क्या है?
  7. दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर मानसून के बीच अंतर।
  8. दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत को प्रभावित करने वाले कारक।

मेंस लिंक:

भारत पर ‘ला नीना’ मौसमी परिघटना के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।

जुड़वां चक्रवात


(Twin Cyclones)

संदर्भ:

हाल ही में, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का युग्म – ‘चक्रवात असानी’ तथा ‘चक्रवात करीम’ –  भूमध्य रेखा के दोनों ओर एक उत्तरी गोलार्ध में और एक दक्षिणी गोलार्ध में विकसित हुए हैं।

  • ये दोनों चक्रवात, एक ही देशांतर में उत्पन्न हुए थे, किंतु बाद में इनका मार्ग अलग-अलग हो गया है।
  • ‘चक्रवात असानी’ (Cyclone Asani) की उत्पत्ति ‘बंगाल की खाड़ी’ में हुई है।
  • ‘चक्रवात करीम’ (Cyclone Karim), ऑस्ट्रेलिया के पश्चिम में खुले समुद्र में आगे बढ़ रहा है।

‘जुड़वां चक्रवात’ के बारे में:

हवा और मानसून प्रणाली की परस्पर क्रिया, पृथ्वी प्रणाली के साथ मिलकर ‘जुड़वां चक्रवातों’ (Twin Cyclones) को जन्म देती है।

  • ‘जुड़वां चक्रवातों’ की उत्पत्ति, मूल रूप से भूमध्यरेखीय रॉस्बी तरंगों के कारण होती है।
  • ‘रॉस्बी तरंगों’ (Rossby waves) का नामकरण प्रसिद्ध मौसम विज्ञानी ‘कार्ल-गुस्ताफ रॉस्बी’ के नाम पर किया गया है, जिन्होंने सबसे पहले यह समझाया था कि पृथ्वी के घूर्णन के कारण ये तरंगें उत्पन्न होती है।
  • ‘रॉस्बी तरंगों’ की वजह से समुद्र में विशाल लहरें बनती हैं जिनकी तरंगदैर्घ्य लगभग 4,000-5,000 किलोमीटर होती है।
  • इस प्रणाली में, उत्तरी गोलार्ध में और दक्षिणी गोलार्ध में एक-एक भंवर (vortex) का निर्माण होता है, और ये दोनों एक दूसरे की ‘दर्पण छवि’ अर्थात ‘समान’ किंतु ‘विपरीत’ होते हैं।
  • उत्तरी गोलार्ध में निर्मित ‘भंवर’ में घूर्णन गति वामावर्त होती है और जबकि दक्षिणी गोलार्ध में निर्मित ‘भंवर’ दक्षिणावर्त दिशा में घूर्णन करता है।
  • दोनों भवरों में ‘भ्रमिलता’ (Vorticity) का मान धनात्मक होता है। ‘भ्रमिलता’, घूर्णन का एक माप होती है।

‘जुड़वां चक्रवातों’ का निर्माण:

  • जब, उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्द्धों में ‘भ्रमिलता’ (Vorticity) ‘सकारात्मक’ या पॉजिटिव होती है, जैसा कि रॉस्बी तरंगों के मामले में होता है, तो भंवर की बाह्य परत में मौजूद आद्र या नम हवा थोड़ी ऊपर उठती है। और यह आगे की प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिए पर्याप्त होती है।
  • जब वायु थोड़ा ऊपर उठती है, तो जलवाष्प संघनित होकर बादल का निर्माण करती है। और संघनित होते ही, वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा को बाहर निकालती है।
  • वातावरण गर्म होता है, हवा का यह भाग ऊपर की ओर उठता है, और इस प्रक्रिया से ‘सकारात्मक प्रतिक्रिया’ उत्पन्न होती है।
  • आसपास की हवा से हल्का होने की बजह से, हवा का यह गर्म भाग और ऊपर उठता है, और यह गहरे बादल बनाता है।
  • इस बीच, दोनों तरफ से वायु ‘आद्र’ हो जाती है और जिसके परिणामस्वरूप कुछ स्थितियों के मौजूद होने पर ‘चक्रवात’ का निर्माण हो जाता है।

मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO):

चक्रवात करीम और चक्रवात असानी, “जुड़वां” चक्रवात हैं। इसका कारण केवल यह नहीं है कि ये दोनों चक्रवात एक ही समय में एक ही सामान्य क्षेत्र में निर्मित हुए हैं, बल्कि इसका मुख्य कारण इनकी एक ही “जनक” परिसंचरण – मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (Madden-Julian Oscillation or MJO)- से उत्पन्न होना है।

  • मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO), बादलों और संवहन (Convection) का एक बड़ा समूह होता है। और इसका आकार लगभग 5000-10,000 किलोमीटर तक होता है।
  • यह ‘रॉस्बी तरगों’ और ‘केल्विन तरंगों’ (Kelvin Wave) से मिलकर बनता है, जोकि प्रायः समुद्र में देखी जाने वाली एक प्रकार की ‘तरंगीय विन्यास’ होती हैं।
  • MJO के पूर्वी हिस्से में ‘केल्विन तरंगे’ होती है, जबकि पश्चिमी हिस्से अर्थात MJO के अनुगामी किनारे पर रॉस्बी लहर होती है, तथा, भूमध्य रेखा के दोनों ओर दो ‘भंवर’ भी होते हैं।
  • हालांकि, सभी उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति ‘मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन’ नहीं होती हैं। कभी-कभी इन चक्रवातो का निर्माण केवल ‘रॉस्बी तरंगों’ से भी होता है, जिसके दोनों ओर दो भंवर होते हैं।

इंस्टा जिज्ञासु:

  • क्या आप जानते हैं कि ‘मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन’ एक मौसमी दोलन है? इसका समय पैमाना, 30 से 60 दिनों के क्रम पर होता है; इसे 30 से 60 दिन के दोलन या लहर के रूप में भी जाना जाता है।
  • MJO, उष्णकटिबंधीय संवहन या झंझावत गतिविधियों पर केंद्रित होकर ‘अल नीनो’ या ‘ला नीना’ की तरह काम करता है, लेकिन यह पैमाने में छोटा है और स्थिर नहीं रहता है।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।

राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित करने संबंधी केंद्र की शक्ति


संदर्भ:

राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों को अधिसूचित करने की केंद्र की शक्ति को चुनौती देते हुए दायर की गयी एक ‘जनहित याचिका’ (PIL) भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

अल्पसंख्यक’ कौन है और इन्हें किसके द्वारा अधिसूचित किया जाता है?

  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग अधिनियम, 2004 (National Commission for Minority Educational Institutions Act, 2004) या ‘NCMEI एक्ट’, 2004 की धारा 2(f) के अनुसार, “अल्पसंख्यक,” से इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए वह समुदाय अभिप्रेत है जो केंद्रीय सरकार द्वारा उस रूप में (अल्पसंख्यक के रूप में) अधिसूचित किया जाए।
  • ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग’ (NCM) अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) में भी केंद्र सरकार के किए इसी प्रकार की समान शक्तियां प्रदान की गयी हैं।

‘जनहित याचिका’ में दिए गए तर्क:

  • ‘NCMEI एक्ट’, 2004 की धारा 2(f) ‘स्वेच्छित’ है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 29 और 30 के विपरीत है।
  • ‘जनहित याचिका’ में अपने तर्क के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया है।
  • वर्ष 2002 के ‘टी.एम.ए. पई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “अल्पसंख्यक” निर्धारित करने के उद्देश्य से, इसके लिए इकाई ‘राज्य’ होगी, न कि संपूर्ण भारत।”

वर्तमान विवाद:

“अल्पसंख्यकों” का निर्धारण करने संबंधी केंद्र की शक्ति ने एक विषम स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें केंद्र द्वारा अल्पसंख्यक घोषित किए गए समुदायों को उन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में भी ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ का लाभ मिलता है जहां वे बहुमत में हैं। उदाहरण के लिए, जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम और नागालैंड में ईसाई। जबकि इन राज्यों में, हिंदू, यहूदी और बहाई धर्म के अनुयायी अल्पसंख्यक हैं किंतु उन्हें अधिनियम के तहत समान दर्जा नहीं दिया गया है।

वर्तमान मांगे:

  • याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने के लिए केंद्र की शक्ति को कम करने या केंद्र को हिंदू धर्म, बहाई धर्म और यहूदी धर्म के अनुयायियों को उन राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में अल्पसंख्यकों के रूप में सूचित करने का निर्देश देने की मांग की गई है जहां वे वास्तव में संख्या में कम हैं;
  • याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह निर्देश जारी करने की मांग भी की गयी है, कि केवल उन समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाए जो राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में संख्यात्मक रूप से कम होने के अलावा “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से नगण्य” हैं।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया:

  • केंद्र सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है, कि ‘अल्पसंख्यकों’ के कल्याण के लिए उपाय करने के लिए राज्यों के साथ केंद्र सरकार के पास समवर्ती शक्तियां हैं।
  • राज्यों द्वारा अल्पसंख्यकों को अपने अधिकार क्षेत्र में अधिसूचित किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने उदहारण देते हुए कहा है, कि महाराष्ट्र में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में, और कर्नाटक में कई भाषाओं के बोलने वालों को भाषाई अल्पसंख्यकों के रूप में मान्यता मान्यता दी गयी है।

आगे की कार्रवाई:

केंद्र सरकार ने कहा है, कि वह “कई सामाजिक और अन्य पहलुओं पर विचार करने के बाद” शीर्ष अदालत में वापस अपना जबाब प्रस्तुत करेगी।

वर्तमान में, भारत में अल्पसंख्यक समुदाय:

मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध पारसी और जैन।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘अल्पसंख्यक’ और उनके लिए भारतीय संविधान में प्रासंगिक संवैधानिक प्रावधानों के बारे में अधिक जानना चाहते हैं? इसे पढ़ें।

क्या आप जानते हैं कि ‘अल्पसंख्यक स्कूलों को ‘शिक्षा का अधिकार नीति’ और ‘सर्व शिक्षा अभियान’ लागू करने से छूट दी गई है? संदर्भ: इसे पढ़ें।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘अल्पसंख्यक संस्थाओं’ को विनियमित करने की शक्ति
  2. अनुच्छेद 30
  3. अनुच्छेद 14
  4. अनुच्छेद 21
  5. अल्पसंख्यक दर्जा

मेंस लिंक:

देश में किसी धर्म को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के महत्व की विवेचना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त


संदर्भ:

वर्तमान में, ‘निर्वाचन आयुक्त’ के रूप में कार्यरत राजीव कुमार शीघ्र ही ‘मुख्य निर्वाचन आयुक्त’ (Chief Election Commissioner – CEC) के रूप में कार्यभार संभालेंगे।

‘भारत के निर्वाचन आयोग’ के बारे में:

‘भारत निर्वाचन आयोग’ (Election commission of India), एक स्‍वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ एवं राज्‍य निर्वाचन प्रक्रियाओं का संचालन करने के लिए उत्तरदायी है। यह निकाय भारत में लोक सभा, राज्‍य सभा, राज्‍य विधान सभाओं, देश में राष्‍ट्रपति एवं उप-राष्‍ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों का संचालन करता है।

  1. भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत, संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के लिए संचालन, निर्देशन व नियंत्रण तथा निर्वाचक मतदाता सूची तैयार कराने के लिए निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया है।
  2. संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना , 25 जनवरी 1950 को की गई थी। इसीलिए, 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत निर्वाचन आयोग की संरचना:

संविधान में चुनाव आयोग की संरचना के संबंध में निम्नलिखित उपबंध किये गए हैं:

  1. निर्वाचन आयोग, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य आयुक्तों से मिलकर बनेगा।
  2. मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।
  3. जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है तो मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
  4. राष्ट्रपति, निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए आवश्यक समझने पर, निर्वाचन आयोग की सलाह से प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकता है।
  5. निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा शर्तें तथा पदावधि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जायेंगी।

मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) तथा अन्य निर्वाचन आयुक्त (EC):

यद्यपि मुख्य निर्वाचन आयुक्त, निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष होते हैं, फिर भी उनकी शक्तियाँ अन्य निर्वाचन आयुक्तों के सामान ही होती हैं। आयोग के सभी मामले, सदस्यों के बीच बहुमत से तय किए जाते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य दोनो निर्वाचन आयुक्तों को एक-समान वेतन, भत्ते व अन्य अनुलाभ प्राप्त होते हैं।

पदावधि:

मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल छह वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, तक होता है। वे राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए किसी भी समय त्यागपत्र दे सकते हैं।

पदत्याग:

  • निर्वाचन आयुक्त, किसी भी समय त्यागपत्र दे सकते हैं या उन्हें कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व भी हटाया जा सकता है।
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से व उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है, जिन पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाया जाता है।

सीमाएं:

  • संविधान में, निर्वाचन आयोग के सदस्यों के लिए कोई योग्यता (कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की गई है।
  • संविधान में, सेवानिवृत्त होने वाले निर्वाचन आयुक्तों को सरकार द्वारा, दोबारा किसी भी पद पर की जाने वाली नियुक्ति से प्रतिबंधित नहीं किया गया है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘ए-वेब’ (एसोसिएशन ऑफ वर्ल्ड इलेक्शन बॉडीज) के बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 243 तथा अनुच्छेद 324 में अंतर
  2. राज्य निर्वाचन आयोगों तथा भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियों में समानताएं और अंतर
  3. निर्वाचन आयोगों के फैसलों के खिलाफ अपील
  4. संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव तथा स्थानीय निकाय चुनाव में भिन्नता

मेंस लिंक:

क्या भारत में राज्य निर्वाचन आयोग, भारत निर्वाचन आयोग की भांति स्वतंत्र हैं? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

कर्नाटक का धर्मांतरणरोधी विधेयक


(Karnataka’s anti-conversion Bill)

संदर्भ:

कर्नाटक राज्य सरकार द्वारा “कर्नाटक ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार’ का संरक्षण विधेयक’, 2021 (Karnataka Protection of Right to Freedom of Religion Bill, 2021) को पारित करने के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाने का फैसला किया है।

इस विधेयक को, कर्नाटक ‘विधान सभा’ द्वारा दिसंबर 2021 में अपने ‘विशेष सत्र’ में पारित किया गया था, किंतु अभी तक इसे ‘विधान परिषद’ में पेश नहीं किया गया है।

कर्नाटक ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक’, 2021 के प्रमुख बिंदु:

  1. किसी भी व्यक्ति को अवैध रूप से किसी अन्य व्यक्ति का धर्म-परिवर्तन करने का दोषी पाए जाने पर, उसे न्यूनतम तीन से पांच साल की जेल और 25,000 रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ेगा।
  2. विधेयक में, ‘गैरकानूनी रूप से धर्मांतरित व्यक्ति’ के नाबालिग या महिला होने पर, अथवा अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने पर अधिक सजा का प्रावधान किया गया है – इसके तहत दोषी व्यक्ति को न्यूनतम तीन साल और अधिकतम दस साल की कैद, और 50,000 रुपये का जुर्माना का दंड दिया जाएगा।
  3. ‘सामूहिक धर्मांतरण’ के मामलों में, आरोपी व्यक्ति को तीन से दस साल की जेल और 1 लाख रुपये के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
  4. एक उपयुक्त अदालत, आरोपी व्यक्ति को “धर्मांतरण के शिकार” व्यक्ति को राशि 5 लाख रुपये तक के मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दे सकती है, और आरोपी को कानून के तहत निर्धारित जुर्माने के अलावा, इस मुआवजे का भी भुगतान करना होगा।
  5. विधेयक में स्वेच्छा से धर्मांतरण करने के लिए एक लंबी प्रक्रिया निर्धारित की गयी है, और यह प्रक्रिया अंतर-धार्मिक विवाहों पर भी लागू होगी।

आगे की चुनौतियां:

  • कर्नाटक सरकार द्वारा अपने धर्मांतरण रोधी कानून के तहत लागू किए जाने वाले कुछ प्रावधानों पर, भाजपा शासित एक अन्य राज्य- गुजरात में रोक लगा दी गयी थी।
  • वर्ष 2020 में, गुजरात सरकार द्वारा एक संशोधित धर्मांतरण रोधी कानून भी लाया गया था।
  • हालाँकि, गुजरात उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में इसके कुछ प्रावधानों- जैसेकि ‘साक्ष्य जुटाने का भार’ (burden of proof), अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों पर डालने संबंधी प्रावधान- पर रोक लगा दी थी।
  • गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा, कि यह प्रावधान भारत के संविधान के अंतर्गत प्रद्दत ‘व्यक्ति की पसंद और स्वतंत्रता के अधिकार’ का उल्लंघन करते हैं।
  • चूंकि इसी तरह के प्रावधान, कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक में भी शामिल हैं, इसका मतलब है कि यह कानून संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करता है।

धर्मांतरण-रोधी कानूनों के अधिनियमन के पीछे तर्क और इनकी आलोचना, तथा ‘विवाह एवं धर्मांतरण’ पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बारे में यहाँ पढ़िए।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) विभिन्न धर्मों को मानने वाले जोड़ों के विवाह की सुविधा के लिए अधिनियमित किया गया था?

 प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 21 के बारे में
  2. अनुच्छेद 25
  3. ‘विशेष विवाह अधिनियम’ (SMA) के बारे में
  1. किन राज्यों द्वारा धर्मांतरण रोधी कानून पारित किए जा चुके हैं।

मेंस लिंक:

जीवन साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ का भाग है। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।

इवेंट हराइज़न के द्वारा ‘सैजिटेरीअस ए*’ के वास्तविक रंगो की जानकारी


संदर्भ:

‘इवेंट हराइज़न टेलीस्कोप’ (Event Horizon Telescope – EHT) केंद्र के वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ‘ब्लैक होल’ के पहले चित्र को जारी किया है।

‘सैजिटेरीअस ए*’ (Sagittarius A*) अथवा SgrA* के रूप में संदर्भित किए जाने वाले ‘ब्लैक होल’ के इस चित्र ने इस विचार को और बल दिया है कि हमारी आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ‘संहत पिंड’ (Compact Object) वास्तव में एक ‘ब्लैक होल’ है।

सैजिटेरीअस ए* (SgrA*) के बारे में:

  • सैजिटेरीअस ए*, हमारी आकाशगंगा अर्थात ‘मिल्की वे’ (Milky Way) के केंद्र में एक स्थित महाकाय ब्लैक होल है। यह ब्लैक होल (सैजिटेरीअस ए*), सैजिटेरीअस (धनु) तथा स्कार्पिअस (वृश्चिक) तारामंडलों (नक्षत्रों) की सीमा के नजदीक स्थित है।
  • सैजिटेरीअस ए* (SgrA*) का द्रव्यमान हमारे सूर्य के द्रव्यमान का 4 मिलियन गुना है और यह पृथ्वी से 26,000 प्रकाश-वर्ष और 5.9 ट्रिलियन मील (9.5 ट्रिलियन किमी) की दूरी पर स्थित है।

ब्लैक होल/ कृष्ण विवर क्या होते है?

ब्लैक होल (Black Hole) अंतरिक्ष में पाए जाने ऐसे पिंड होते है, जिनका घनत्व तथा गुरुत्वाकर्षण बहुत अधिक होता है। अत्यधिक गुरुत्वाकर्षण के कारण, कोई भी पदार्थ अथवा प्रकाश इनके खिंचाव से बच नहीं सकता है। चूंकि,प्रकाश इनसे होकर नहीं गुजर पाता है, इसीलिये यह काले और अदृश्य होते है।

  • ब्लैक होल के किनारे पर स्थित सीमा को ‘घटना दिक मण्डल’ (Event Horizon) कहा जाता है। इस सीमा के आगे जाने पर कोई भी प्रकाश या पदार्थ वापस नहीं लौट सकता, और उसे ब्लैक होल द्वारा खींच लिया जाता है। इससे गुजरने के लिए, पदार्थ की गति ‘प्रकाश की गति’ से तीव्र होनी चाहिए, जो कि असंभव होती है।
  • ‘घटना दिक मण्डल’ को पार करने वाला कोई भी पदार्थ अतवा प्रकाश ब्लैक होल के केंद्र में समाहित होकर अनंत घनत्व वाले एक बिंदु में संकुचित हो जाता है, जिसे सिंगलुरिटी (singularity) कहा जाता है।

‘इवेंट होराइजन’ क्या है?

‘ब्लैक होल’ का ‘घटना दिक मण्डल’ अर्थात ‘इवेंट होराइजन’ (Event Horizon) वह बिंदु होता है, जिसके आगे जाने पर कोई भी प्रकाश या पदार्थ कुछ भी – तारे, ग्रह, गैस, धूल और सभी प्रकार के विद्युत चुम्बकीय विकिरण वापस नहीं लौट सकता, और उसे ब्लैक होल द्वारा अपने भीतर खींच लिया जाता है।

‘इवेंट हराइज़न टेलीस्कोप’ के बारे में:

‘इवेंट हराइज़न टेलीस्कोप’ (Event Horizon Telescope – EHT), स्पेन, अमेरिका और अंटार्कटिका में स्थापित दूरबीनों के साथ-साथ विश्व भर में स्थित आठ रेडियो वेधशालाओं से मिलकर बना है।

  • वर्ष 2006 में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के खगोलविदों के नेतृत्व में 200 से अधिक शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने एक ‘ब्लैक होल’ का स्पष्ट चित्र लेने के एकमात्र उद्देश्य से ‘इवेंट हराइज़न टेलीस्कोप’ (EHT) परियोजना शुरू की थी।
  • ‘इवेंट हराइज़न टेलीस्कोप’ का निर्माण करने के लिए तेरह भागीदार संस्थानों ने पहले से मौजूद बुनियादी ढांचे और विभिन्न एजेंसियों की सहायता से एक साथ कार्य काम किया।
  • EHT अवलोकनों में, ‘वेरी-लॉन्ग-बेसलाइन इंटरफेरोमेट्री’ (Very-Long-Baseline Interferometry – VLBI) नामक एक तकनीक का उपयोग किया जाता है, यह तकनीक दुनिया भर में स्थापित दूरबीन केंद्रों को सिंक्रनाइज़ करती है, और एक विशाल, पृथ्वी के आकार के टेलीस्कोप से 1.3 मिमी की तरंग दैर्ध्य पर अवलोकन करने के लिए हमारे ग्रह के घूर्णन का लाभ उठाया जाता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

अंतरिक्ष में फ़ैली आकाशगंगाओं के केंद्रों पर महाकाय ब्लैकहोल मौजूद है, जो आकार में कई मिलियन सौर द्रव्यमानों के बराबर हैं, और इन्हें ‘सक्रिय आकाशगंगा के नाभिक’ (Active Galactic Nuclei)  के रूप में जाना जाता है। इस विषय में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सामान्य सापेक्षता सिद्धांत (general theory of relativity) के बारे में।
  2. पहली गुरुत्वाकर्षण तरंग का पता कब लगाया गया था?
  3. LIGO- मिशन के उद्देश्य, वेधशालाएँ और वित्त पोषण।
  4. ब्लैक होल के संदर्भ में ‘घटना दिक मण्डल’ क्या हैं?
  5. LIGO इंडिया- प्रस्तावित स्थल, साझेदार और उद्देश्य।
  6. विर्गो डिटेक्टर कहाँ स्थित है?

मेंस लिंक:

लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) डिटेक्टर के निष्कर्षों के महत्व तथा इसके अनुप्रयोगों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश।

पुलिस सुधार


(Police Reforms)

संदर्भ:

हाल ही में, भारत के उपराष्ट्रपति ने पुलिस बलों में सुधारों को लागू करने के लिए नए सिरे से जोर देने का आह्वान किया है।

समय की मांग:

  • एक प्रगतिशील, आधुनिक भारत में एक ऐसा पुलिस बल होना चाहिए जो लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करे।
  • 21वीं सदी के साइबर अपराध और आर्थिक अपराधों जैसे अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए हमारे पुलिसकर्मियों के कौशल को उन्नत करने की आवश्यकता है।

 

‘प्रकाश सिंह मामले में पुलिस सुधारों पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:

कई अन्य पदों पर नियुक्त रहने के अलावा उत्तरप्रदेश पुलिस तथा असम पुलिस के डीजीपी के रूप में काम करने के पश्चात, ‘प्रकाश सिंह’ ने सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 1996 में पुलिस सुधारों की मांग करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी।

उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सितंबर 2006 में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पुलिस सुधार लागू करने का निर्देश दिया था।

उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए सुझाव:

  1. कुछ महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों को ‘पुलिस महानिदेशक’ (DGP) के पद पर नियुक्ति करने जैसी स्थिति से बचने के लिए डीजीपी का कार्यकाल और चयन प्रक्रिया निर्धारित की जानी चाहिए।
  2. कोई राजनीतिक हस्तक्षेप न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए ‘पुलिस महानिरीक्षक’ के लिए एक न्यूनतम कार्यकाल निर्धारित होना चाहिए, जिससे राजनेताओं द्वारा बीच में ही इनका स्थानांतरण नहीं किया जा सके।
  3. अधिकारियों की नियुक्तियों से संबंधित निर्णय, राजनीतिक नेताओं की पोस्टिंग और स्थानान्तरण करने संबंधी शक्तियों को पृथक करते हुए, पुलिस अधिकारी और वरिष्ठ नौकरशाहों से मिलकर बने ‘पुलिस स्थापना बोर्ड’ (Police Establishment Boards- PEB) द्वारा किये जाने चाहिए।
  4. पुलिस कार्रवाई से पीड़ित आम लोगों की सुनवाई के लिए ‘राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ (State Police Complaints Authority- SPCA) की स्थापना की जाए।
  5. पुलिसिंग को बेहतर बनाने के लिए जांच तथा कानून और व्यवस्था संबंधी कार्य अलग किये जाएँ।
  6. राज्य सुरक्षा आयोगों (State Security Commissions- SSC) का गठन किया जाए, और इनमे सिविल सोसायटी के सदस्य शामिल किये जाएँ।
  7. एक ‘राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (National Security Commission) का गठन किया जाए।

इन निर्देशों पर राज्यों की प्रतिक्रिया:

वर्ष 2006 में दिए गए फैसले के बाद से किसी भी राज्य ने शीर्ष अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया है।

मॉडल पुलिस अधिनियम:

केंद्र सरकार द्वारा ‘मॉडल पुलिस अधिनियम’, 2006 (Model Police Act, 2006) की समीक्षा की गयी है। तदनुसार, मॉडल पुलिस विधेयक, 2015 का मसौदा तैयार किया गया है और इसे BPR&D की वेबसाइट पर रखा गया है।

इस संबंध में विभिन्न समितियाँ:

  • राष्ट्रीय पुलिस आयोग, रिबेरो और पद्मनाभैया समितियां, और अन्य आयोग, सीधे तौर पर पुलिस सुधारों की ओर इशारा करते हैं।
  • इसके अलावा, मलीमठ समिति और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अप्रत्यक्ष रूप से पुलिस सुधारों के लिए आवश्यकताओं को व्यक्त किया है।

 

मौजूद मुद्दे:

  1. औपनिवेशिक कानून: 1861 का पुलिस अधिनियम।
  1. अत्याधिक रिक्तियां।
  2. खराब बुनियादी ढांचा।
  3. जवाबदेही और परिचालन स्वतंत्रता संबंधी मुद्दे।
  4. मनोवैज्ञानिक दबाव।

इंस्टा जिज्ञासु:

  1. राज्य सूची (सूची II, संविधान की अनुसूची 7) के तहत पुलिस एक विशिष्ट विषय है।
  2. वर्तमान भारतीय पुलिस व्यवस्था काफी हद तक 1861 के पुलिस अधिनियम पर आधारित है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राष्ट्रीय पुलिस आयोग की स्थापना कब की गई थी?
  2. रिबेरो समिति का संबंध किससे है?
  3. मलिमथ समिति द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशें।
  4. भारतीय संविधान की 7 वीं अनुसूची के तहत पुलिस।
  5. प्रकाश सिंह मामला किससे संबंधित है?

मेंस लिंक:

पुलिस सुधारों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 अमलथिया

(Amalthea)

‘अमलथिया’ चंद्रमा  (Amalthea Moon) बृहस्पति ग्रह के 53 उपग्रहों में से एक है; यह चार गैलीलियन चंद्रमाओं के बाद पहली बार खोजा गया था, और यह आकार में कुल मिलाकर पांचवां सबसे बड़ा चंद्रमा  है।

  • बृहस्पति से निकटता के संदर्भ में, अमलथिया बृहस्पति ग्रह का तीसरा चंद्रमा है -और इसे बृहस्पति का एक चक्कर लगाने में केवल 12 घंटे का समय लगता है।
  • अमलथिया, बृहस्पति के चारो ओर फैले महीन वलयों / गॉसामर रिंग्स (Gossamer Rings of Jupiter) – में से एक – अमलथिया गॉसामर रिंग- भी बनाता है। यह बृहस्पति की धुंधली अंतरतम गॉसमर रिंग है।
  • अब तक केवल दो मिशन – वॉइअजर(Voyager) और गैलीलियो (Galileo) ही अमलथिया के समीप से गुजरे हैं। वॉइअजर  / वायेजर 1 और वायेजर 2 दोनों अंतरिक्ष यानों ने 1979 में अपनी उड़ान के दौरान ‘जोवियन’ चंद्रमा की तस्वीरें खींची थीं।

चर्चा का कारण:

हाल के निष्कर्षों के अनुसार, ‘अमलथिया’ सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊष्मा की तुलना में अधिक ऊष्मा का विकीर्णन करती प्रतीत होती है। नासा के अनुसार, इसका कारण बृहस्पति के चुंबकीय क्षेत्र या ज्वार के तनाव हो सकता है।

भारत टैप पहल

हाल ही में, आवास और शहरी कार्य मंत्री द्वारा ‘प्लम्बेक्स इंडिया’ प्रदर्शनी में भारत टैप पहल का शुभारंभ किया गया। यह प्रदर्शनी नल से संबंधी उपकरणों, पानी और स्वच्छता उद्योग से संबंधित उत्पादों और सेवाओं के प्रदर्शन के लिए आयोजित की गई है।

  • भारत टैप, ‘लो फ्लो टैप’ और ‘फिक्स्चर’ का उपयोग करने की एक अवधारणा है।
  • भारत टैप पहल का उद्देश्य बड़े पैमाने पर कम प्रवाह वाले सेनेटरी-वेयर उपलब्ध कराना और इस प्रकार से स्रोत पर पानी की खपत को काफी कम करना है।
  • इससे लगभग 40% पानी की बचत होने का अनुमान है।
  • भारत टैप पहल के परिणामस्वरूप पानी की बचत होगी और कम पानी के कारण ऊर्जा की बचत होगी।

 

उत्कर्ष समारोह

हाल ही में, गुजरात के ‘भरूच’ में उत्कर्ष समारोह आयोजित किया गया था।

यह कार्यक्रम जिले में राज्य सरकार की चार प्रमुख योजनाओं के शत–प्रतिशत कार्यान्वयन करने उत्सव है, जो जरूरतमंद लोगों को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने में मदद करेगा।

चार योजनाएं निम्नलिखित हैं:

  1. इंदिरा गांधी वृद्ध सहाय योजना।
  2. गंगा स्वरूप आर्थिक सहायता योजना।
  3. राष्ट्रीय कुटुम्ब सहाय योजना।
  4. निराधार वृद्ध आर्थिक सहायता योजना।

मैकॉलिन कन्वेंशन

‘काउंसिल ऑफ यूरोप कन्वेंशन ऑन द मैनिपुलेशन ऑफ स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन’ को ‘मैकॉलिन कन्वेंशन’ (Macolin Convention) के नाम से जाना जाता है।

  • इंटरपोल की मैच फिक्सिंग टास्क फोर्स (IMFTF) की 12 वीं बैठक, प्रतियोगिताओं में हेरफेर को रोकने के लिए सामंजस्यपूर्ण वैश्विक प्रयासों के आह्वान के साथ संपन्न हुई। इस बैठक में ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ (CBI) ने भी भाग लिया था।
  • बैठक में सदस्यों ने खुफिया जानकारी साझा करने में सुधार के लिए विभिन्न तंत्रों पर विचार-विमर्श किया।
  • मैकॉलिन कन्वेंशन एक बहुपक्षीय संधि है जिसका उद्देश्य मैच फिक्सिंग की जाँच करना है। यह कन्वेंशन 1 सितंबर, 2019 को लागू हुआ था।

INSACOG

‘इंडियन SARS-CoV-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics – INSACOG) को संयुक्त रूप से केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, और जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (ICMR) के सहयोग से शुरू किया गया है।

  • ‘यह, SARS-CoV-2 में जीनोमिक विविधताओं की निगरानी के लिए 28 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं का एक समूह है।
  • यह पूरे देश में SARS-CoV-2 वायरस की संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण करता है, जिससे वायरस के प्रसार और विकास को समझने में सहायता मिलती है।
  • INSACOG का उद्देश्य रोग की गतिशीलता और गंभीरता को समझने के लिए नैदानिक ​​नमूनों की अनुक्रमण पर ध्यान केंद्रित करना है।

ब्रह्मोस मिसाइल

हाल ही में, ब्रह्मोस मिसाइल के विस्तारित दूरी के संस्करण को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।

  • इसे पहली बार भारतीय वायु सेना के Su-30 MKI लड़ाकू विमान से लॉन्च किया गया था।
  • मिसाइल के उन्नत संस्करण की मारक क्षमता को, 290 किमी से बढाकर लगभग 350 किमी तक कर दिया गया है।

ब्रह्मोस के बारे में:

भारत-रूस के संयुक्त उद्यम ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ द्वारा सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का उत्पादन किया जाता है, इन मिसाइलों को पनडुब्बियों, जहाजों, विमानों या भूमि प्लेटफार्मों से लॉन्च किया जा सकता है।

  • इसमें दो चरणों वाले इंजन का इस्तेमाल किया गया है जो पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे चरण में तरल रैमजेट से बना है।
  • यह “फायर एंड फॉरगेट्स” सिद्धांत पर काम करता है यानी लॉन्च के बाद इसे और मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।

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