[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 3 May 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-I

  1. बसव जयंती

सामान्य अध्ययन-II

  1. न्यायालयों की आधिकारिक भाषा
  2. गोल्ड हॉलमार्किंग

सामान्य अध्ययन-III

  1. इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने के कारण
  2. पराली दहन संबंधी मुद्दे

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार
  2. चरक शपथ
  3. ट्रांसनिस्ट्रिया
  4. पीके2
  5. कोइलास्टिला गैस क्षेत्र

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।

बसव जयंती


(Basava Jayanti)

संदर्भ:

बसव जयंती, 12वीं सदी के कवि-दार्शनिक और लिंगायत धर्म के संस्थापक संत भगवान बसवन्ना (Basavanna) के जन्मदिवस पर मनाई जाती है।

इस वर्ष, इसे 3 मई 2021 को मनाया जा रहा है।

बसवन्ना: विचार एवं योगदान

  • बसवन्ना, कर्नाटक में कलचुरी-वंश के राजा बिज्जल प्रथम के शासनकाल के दौरान बारहवीं सदी के दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, कन्नड़ कवि और समाज सुधारक थे।
  • बसवन्ना ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में जागरूकता का प्रसार किया, इन कविताओं को ‘वचन’ (Vachanaas) कहा जाता है।
  • बासवन्ना ने लैंगिक अथवा सामाजिक भेदभाव, अंधविश्वास और रीति-रिवाजों का खंडन किया था।
  • उन्होंने, अनुभव मंटपा (अथवा, आध्यात्मिक अनुभव भवन) जैसे नए सार्वजनिक संस्थानों की शुरुआत की। यहाँ पर, सभी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों के पुरुषों और महिलाओं का स्वागत किया जाता था और जीवन के आध्यात्मिक और सांसारिक सवालों पर खुलकर चर्चा की जाती थी।
  • उन्होंने एक नेता के रूप में ‘वीरशैव’ (भगवान शिव के कट्टर उपासक) नामक एक नए भक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन की जड़ें सातवीं से ग्यारहवीं सदी के दौरान में प्रचलित तमिल भक्ति आंदोलन, विशेषकर शैव नयनार परंपराओं में मिलती है।
  • बसवा ने भक्तिमय आराधना पर जोर देते हुए ब्राह्मणों के नेतृत्व में मंदिरों में पूजा और अनुष्ठानों का खंडन किया और इसके स्थान पर प्रतीक रूप में व्यक्तिगत रूप से छोटे शिवलिंग धारण करके शिव की प्रत्यक्ष आराधना करने का संदेश दिया।
  • बसवन्ना के नेतृत्व में चलाए गए ‘शरण आंदोलन’ (Sharan Movement) ने सभी जातियों के लोगों को आकर्षित किया और भक्ति आंदोलन की अधिकाँश शाखाओं की भांति, ‘वचन’ के रूप में साहित्य रचना की, जिसमे वीरशैव संप्रदाय के संतों की आध्यात्मिक दुनिया का वर्णन मिलता है।
  • बसवन्ना का ‘शरण आंदोलन’ तत्कालीन समय के हिसाब से काफी उग्र सुधारवादी आंदोलन था।

Current Affairs

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. श्रमण परंपरा क्या है?
  2. वचन क्या हैं?
  3. अनुभव मंटपा क्या है?
  4. कलचुरि कौन हैं?
  5. नयनार कौन हैं?
  6. भक्ति आंदोलन क्या है?

मेंस लिंक:

12वीं शताब्दी के सुधारक बसवन्ना द्वारा समाज में किए गए महत्वपूर्ण योगदानों पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: पीआईबी।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और मूल संरचना।

न्यायालयों की आधिकारिक भाषा


(Official language in Courts)

संदर्भ:

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में एक सम्मलेन में “अदालतों में स्थानीय भाषाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने” की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा, कि क्योंकि देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को “न्यायिक प्रक्रिया और अदालत के फैसलों को समझने में कठिनाई होती है, अतः इस तरह के कदम से आम आदमी को न्यायपालिका से जोड़ने में मदद मिलेगी।

इस संदर्भ में संवैधानिक प्रावधान:

  1. भारत के संविधान का अनुच्छेद 348 (1) प्रावधान करता है, कि संसद के विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करने तक उच्चत्तम न्यायालय तथा प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी।
  2. अनुच्छेद 348 (2) के अंतर्गत, किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, हिन्दी भाषा का अथवा उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली किसी अन्य भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत कर सकते हैं, बशर्ते ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेजी भाषा में होंगे।
  3. राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 7 के अनुसार, किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिन्दी या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा पारित या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश के प्रयोजनों के लिए प्राधिकृत कर सकता है। अंग्रेजी भाषा से भिन्न ऐसी किसी भाषा में दिये गए किसी निर्णय, डिक्री या आदेश का अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद जारी किया जाएगा।

राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के उच्च न्यायालयों की कार्यवाही में हिंदी के वैकल्पिक उपयोग का प्रावधान पहले ही किया जा चुका है।

अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा:

उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ सभी न्यायालयों की भाषा, राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए जाने तक  आम तौर पर वही रहती है जो ‘सिविल प्रक्रिया संहिता’ 1908 की शुरुआत के समय थी।

  • अधीनस्थ न्यायालयों में भाषा के प्रयोग के संबंध में दो प्रावधान हैं। ‘सिविल प्रक्रिया संहिता’ की धारा 137 के तहत जिला न्यायालयों की भाषा ‘अधिनियम की भाषा’ के समान होगी।
  • राज्य सरकार के लिए ‘न्यायालय की कार्यवाही’ हेतु विकल्प के रूप में किसी भी क्षेत्रीय भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित करने की शक्ति प्राप्त है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारत के किन राज्यों में अदालती कार्यवाही में हिंदी के वैकल्पिक उपयोग का प्रावधान है?
  2. भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची क्या है?
  3. अनुच्छेद 348 किससे संबंधित है?
  4. उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी के उपयोग को अधिकृत करने के लिए राज्यपालों की शक्तियां।
  5. संविधान की 8 वीं अनुसूची में भाषाओँ को सम्मिलित करने अथवा हटाने हेतु कौन सक्षम है?

मेंस लिंक:

हरियाणा के वकीलों द्वारा हरियाणा की अदालतों में हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में लागू करने के राज्य सरकार के कदम का विरोध क्यों किया जा रहा है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

गोल्ड हॉलमार्किंग


संदर्भ:

सोने के आभूषण और कलाकृतियों (संशोधन) ऑर्डर, 2022 (Hallmarking of Gold Jewellery and Gold Artefacts (Amendment) Order, 2022) में उल्लखित प्रावधानों के अनुसार, ‘अनिवार्य हॉलमार्किंग’ (Mandatory Hallmarking) का दूसरा चरण 01 जून, 2022 से लागू होगा।

  • अनिवार्य हॉलमार्किंग के दूसरे चरण में भारतीय मानक आईएस 1417 में उल्लिखित सोने के भूषणों/कलाकृतियों के लिए तीन अतिरिक्त कैरेट अर्थात 20, 23 और 24 कैरेट को शामिल किया जाएगा।
  • इस चरण में 32 नए जिलों को शामिल किया जाएगा, जहां पहले चरण के क्रियान्वयन के बाद एक ‘परख एवं हॉलमार्क केंद्र’ (Assaying and Hallmarking Centres – AHC) स्थापित किया गया है।
  • केंद्र सरकार द्वारा यह आदेश 04 अप्रैल, 2022 को अधिसूचित किया गया था।

पृष्ठभूमि:

भारत सरकार द्वारा 16 जून, 2021 से सोने के आभूषणों की ‘अनिवार्य हॉलमार्किंग’ को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की घोषणा की गयी थी।

पहला चरण:

घोषणा के तहत, पहले चरण में केवल 256 जिलों में ही ‘गोल्ड हॉलमार्किंग’ (Gold Hallmarking) उपलब्ध कराए जाने तथा और 40 लाख रुपये से अधिक का वार्षिक कारोबार वाले जौहरियों को इस प्रावधान के दायरे में शामिल किया गया था।

‘गोल्ड हॉलमार्किंग’ क्या होती है?

हॉलमार्किंग, बहुमूल्य धातु की वस्तु में उस कीमती धातु के आनुपातिक अंश का सटीक निर्धारण और आधिकारिक रिकॉर्डिंग होती है।

  • इस प्रकार, हॉलमार्क, बहुमूल्य धातु की वस्तुओं की उत्कृष्टता या शुद्धता की गारंटी की तरह होता है और कई देशों में आधिकारिक चिह्न के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • भारत में, सोने और चांदी की हॉलमार्किंग योजना का कार्यान्वयन ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ (Bureau of Indian Standard- BIS) द्वारा किया जाता है।

हॉलमार्किंग के दायरे में आने वाली धातुएं:

  1. स्वर्ण आभूषण और स्वर्ण निर्मित की कलाकृतियां।
  2. चांदी के आभूषण और चांदी की कलाकृतियां।

अनिवार्य हॉलमार्किंग व्यवस्था से छूट:

  1. भारत सरकार की व्यापार नीति के तहत आभूषणों का निर्यात और पुन:आयात करने वाली इकाइयों को इस व्यवस्था से छूट प्रदान की गई है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी के साथ-साथ सरकार द्वारा अनुमोदित बी2बी (व्यापारियों के बीच) घरेलू प्रदर्शनियों के लिये भी इससे छूट होगी।
  2. सोने की घड़ियों, फाउंटेन पेन्स और कुंदन, पोल्की व जड़ाऊ जैसे गोल्ड आइटम्स के लिए हॉलमार्किंग का प्रावधान नहीं लागू होगा।

हॉलमार्किंग को अनिवार्य करने की आवश्यकता:

भारत सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। हालांकि, देश में हॉलमार्क वाले गहनों का स्तर बहुत कम है- भारतीय सोने के आभूषणों में से केवल 30% पर ही हॉलमार्क होता है। इसके पीछे मुख्य कारण पर्याप्त ‘परख और हॉलमार्किंग केंद्रों’ (Assaying and Hallmarking CentresA&HC) की अनुपलब्धता है।

  1. अनिवार्य हॉलमार्किंग योजना का मुख्य उद्देश्य मिलावटी सोने से जनता की रक्षा करना और उत्कृष्टता के वैध मानकों को बनाए रखने के लिए निर्माताओं को बाध्य करना है।
  2. यह उपभोक्ताओं के लिए आभूषणों पर अंकित शुद्धता को प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
  3. यह व्यवस्था पारदर्शिता लाएगी और उपभोक्ताओं को गुणवत्ता का आश्वासन प्रदान करेगी।

Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

यानोमामी क्षेत्र (Yanomami territory) से आने वाले सोने को ‘ब्लड गोल्ड’ क्यों कहा जाता है?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. हॉलमार्किंग के बारे में
  2. कार्यान्वयन एजेंसी
  3. प्रयोज्यता
  4. छूट
  5. लाभ

मेंस लिंक:

भारत में सोने की हॉलमार्किंग की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।

इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने का कारण


(Why are electric vehicles catching fire?)

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles – EVs) में ‘बैटरी विस्फोटों’ की हालिया घटनाओं की जांच करने हेतु एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया गया है।

इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग में हालिया वृद्धि के कारण:

  1. जलवायु परिवर्तन पर चिंता।
  2. ली-आयन / लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी प्रौद्योगिकी की लागत में कमी आना।
  3. ईंधन-परिवर्तन की शुरुआत हेतु सरकारों द्वारा दिया जाने वाला प्रोत्साहन, तथा निजी उद्योगों द्वारा नए बाजार पर कब्जा करने की योजना।
  4. वाहन कंपनियां, बैटरी निर्माता और सामग्री आपूर्तिकर्ताओं द्वारा बाजार में हिस्सेदारी के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा।

संबंधित चिंताएं:

सावधानीपूर्वक सुरक्षा उपायों के बिना इस जटिल प्रौद्योगिकी के विकास में तेजी से, सुरक्षा- दुर्घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।हाल ही में, इस तरह की कई दुर्घटनाएं भारत की सड़कों पर देखी गयी हैं।

Current Affairs

 

इन बैटरियों में आग लगने का कारण:

  • बैटरियों में ‘शक्ति’ या ‘उर्जा’ को एक छोटे पैकेज में संग्रहित किया जाता है और यदि यह ऊर्जा अनियंत्रित तरीके से मुक्त की जाती है, तो महत्वपूर्ण तापीय घटना हो सकती है।
  • बैटरी में आग, किसी अन्य आग की तरह, “अग्नि त्रिकोण” के तीन घटकों- अर्थात उष्मा, ऑक्सीजन और ईंधन – के अभिसरण के कारण लगती है। यदि बैटरी में ‘शॉर्ट सर्किट’ जैसी कोई प्रतिकूल घटना होती है, तब एनोड और कैथोड ‘शॉर्ट सर्किट’ के माध्यम से अपनी ऊर्जा मुक्त करते है, जिससे बैटरी का आंतरिक तापमान बढ़ जाता है, और विस्फोट हो जाता है।

Current Affairs

 

निवारण-उपाय:

  • वाहनों में ‘सुरक्षा’ अति-आवश्यक है और इसके लिए महत्वपूर्ण है कि बैटरी और वाहन निर्माता, बैटरी- सामग्री से लेकर सेल, पैकिंग और वाहन स्तर पर, सुरक्षा-संबंधी विशेषताओं को कई स्तरों पर डिजाइन करें।
  • बैटरियों में आग लगने से रोकने के लिए ‘अग्नि त्रिकोण’ को तोड़ना आवश्यक है। बैटरी में लगे कैथोड, उष्मा मुक्त करने का एक प्रमुख कारण होते है। निकल की कम मात्रा वाले या आयरन फॉस्फेट की अधिक मात्रा वाले कैथोड का उपयोग करने ‘सुरक्षा’ में वृद्धि हो सकती है।
  • मजबूत नियंत्रित विनिर्माण (जैसे सिरेमिक की अतिरिक्त परत जोड़ देना) से बैटरी के सेल में होने वाले आकस्मिक शॉर्ट्स को रोका जा सकता है, जिससे आग लगने का एक प्रमुख कारण समाप्त हो जाएगा।
  • मजबूत तापीय प्रबंधन के साथ ‘बैटरी सेल’ की सुरक्षा करना – खासकर भारत में, जहां के वातावरण का तापमान अधिक है- महत्वपूर्ण होता है।
  • ‘बैटरी पैक’ को किसी प्रकार के बाहरी भेदन से बचाने की जरूरत है।

केंद्र और राज्यों द्वारा किए गए विभिन्न उपायों में शामिल हैं:

  1. ऑटो सेक्टर के लिए पीएलआई योजना: इस साल सितंबर में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में इलेक्ट्रिक और ईंधन सेल वाहनों और ड्रोन के घरेलू निर्माण में तेजी लाने के लिए 26,058 करोड़ रुपये की उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना को मंजूरी दी।
  2. FAME II संशोधन: FAME-II (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स-II) योजना के तहत, सरकार ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों के लिए सब्सिडी दर में वृद्धि करके पेट्रोल से चलने वाले दोपहिया और इलेक्ट्रिक के बीच कीमतों के अंतर को काफी कम कर दिया है।
  3. कबाड़ नीति / स्क्रैपेज पॉलिसी: इस साल अगस्त में, सरकार ने ‘गुजरात इन्वेस्टर समिट’ में वर्चुअल रूप से ‘व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी’ लॉन्च की थी। नीति का उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल तरीके से अनुपयुक्त और प्रदूषणकारी वाहनों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।

केंद्र के साथ, राज्य सरकारें भी भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों (BEVs) की पहुंच बढ़ाने और अपनाने के लिए, दिल्ली, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र और राजस्थान सहित भारत में लगभग 20 राज्यों की सरकारें पहले ही राज्य स्तरीय, मसौदा या अंतिम ‘इलेक्ट्रिक वाहन नीतियां’ जारी कर चुकी हैं।

आगे की चुनौतियां:

  1. वर्तमान में, भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार की आम लोगों में पहुँच शेष विश्व की तुलना में काफी कम है।
  2. पूंजीगत लागत काफी अधिक है और इस पर लाभ और अदायगी अनिश्चित है।
  3. हाल के महीनों में रुपये का नाटकीय मूल्यह्रास होने के कारण भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  4. इलेक्ट्रिक वाहनों में स्थानीय निवेश, कुल निवेश का मात्र लगभग 35% है।
  5. निवेश के संदर्भ में इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा।
  6. भारत में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और विनिर्माण’ (फेम इंडिया) योजना को बार-बार आगे बढ़ाया गया है।
  7. ‘अनिश्चित नीतिगत माहौल’ और ‘सहायक बुनियादी ढांचे की कमी’ इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में प्रमुख बाधाएं हैं।
  8. भारत के पास लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है, जिसकी वजह से भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाजार, जापान और चीन से लिथियम-आयन बैटरी के आयात पर निर्भर है।

समय की मांग:

  1. इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रभावी ढंग से शुरू करने के लिए, हमें एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए सहगामी प्रयास करने की आवश्यकता है।
  2. वाहनों को सब्सिडी देने की बजाय बैटरियों को सब्सिडी देने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है क्योंकि बैटरी की कीमत, इलेक्ट्रिक वाहन की कुल कीमत का लगभग आधी होती है।
  3. इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि देश में कुल वाहनों में टू-व्हीलर्स की हिस्सेदारी 76 फीसदी है और ये ईंधन की ज्यादा खपत करते है।
  4. निवेश आकर्षित करने के लिए चार्जिंग स्टेशनों का एक विस्तृत नेटवर्क स्थापित किया जाना आवश्यक है।
  5. टेक पार्क, सार्वजनिक बस डिपो और मल्टीप्लेक्स में कार्यस्थल, चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने हेतु उपयुक्त स्थान हैं। बैंगलोर में, कुछ मॉल में पार्किंग स्थल में चार्जिंग पॉइंट स्थापित किए गए हैं।
  6. बड़े व्यापारी ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी कंप्लायंस’ के रूप में चार्जिंग स्टेशनों में निवेश कर सकते हैं।
  7. भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी बनाने के लिए कच्चे माल की जरूरत है, अतः बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया और चिली में ‘लिथियम फ़ील्ड’ हासिल करना, तेल क्षेत्रों को खरीदने जितना महत्वपूर्ण हो सकता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत के किन राज्यों में ‘इलेक्ट्रिक वाहन नीतियां’ (Electric Vehicle Policies) अपनाई जा चुकी हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारत में इलेक्ट्रिक वाहन नीति
  2. राज्यों द्वारा समान इलेक्ट्रिक वाहन नीतियां
  3. FAME योजना
  4. FAME योजना चरण 1 बनाम चरण 2

मेंस लिंक:

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन नीतियों से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

पराली जलाने संबंधी मुद्दे


(Stubble Burning Issue)

संदर्भ:

इस वर्ष गेहूं की उपज कम होने से ‘भूसे’ या ‘तुड़ी’ (Tudi) की कीमत काफी अधिक है, और किसान इसे बेचकर भारी मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद, पंजाब में 1 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच खेतों में पराली जलाने के 3,895 मामले दर्ज किए जा चुके हैं।

किसानों द्वारा ‘पराली जलाने’ का विकल्प चुनने का कारण:

  1. किसानों के पास, पराली का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के विकल्प नहीं होते हैं।
  2. किसान, इस कृषि-अपशिष्ट से निपटने में अक्षम होते हैं क्योंकि वे अपशिष्ट पदार्थो का निपटान करने के लिए उपलब्ध नई तकनीक को वहन नहीं कर सकते।
  3. बहुधा, फसल खराब होने जाने की वजह से किसान की आय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, ऐसी स्थिति में किसान लागत में कटौती करने और पराली प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीकों पर खर्च करने की बजाय, खेत में ही पराली जलाने का विकल्प चुनता है।

‘पराली दहन’ या ‘पराली जलाना (stubble Burning) क्या है?

किसानों द्वारा नवंबर में गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने के दौरान ‘पराली दहन’ या पराली जलाना, एक आम बात है, क्योंकि धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच बहुत कम समय बचता है।

प्रभाव: पराली जलाने से हानिकारक गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के साथ-साथ पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन होता है।

पराली जलाने के फायदे:

  • इससे खेत, जल्दी साफ हो जाता है और यह सबसे सस्ता विकल्प है।
  • खरपतवार नाशकों सहित खरपतवारों को नष्ट हो जाते हैं।
  • सुंडिया और अन्य कीट मर जाते हैं।
  • नाइट्रोजन बंध दुर्बल हो जाते हैं।

पराली जलाने के प्रभाव:

  • प्रदूषण: खुले में पराली जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में जहरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं। अंततः ये स्मॉग का कारण बन जाते हैं।
  • मृदा उर्वरता: पराली को खेत में जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे यह कम उपजाऊ हो जाती है।
  • ऊष्मा का प्रवेश: पराली जलाने से उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे जमीन में नमी और लाभकारी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।

Current Affairs

 

पराली जलाने से बचने हेतु वैकल्पिक उपाय:

  1. धान की पुआल आधारित बिजली संयंत्रों को बढ़ावा देना। इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
  2. मृदा में फसल अवशेषों को शामिल करने से मिट्टी की नमी में सुधार हो सकता है, और बेहतर पौधों की वृद्धि के लिए मृदा के सूक्ष्मजीवों के विकास को सक्रिय करने में मदद मिल सकती है।
  3. कृषि-अवशिष्टों को कम्पोस्टिंग के माध्यम से समृद्ध जैविक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  4. वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से ‘यीस्ट प्रोटीन के निष्कर्षण’ जैसे औद्योगिक उपयोग के नए अवसरों की खोज की जा सकती है।

आवश्यकता: सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियां?

  1. पराली नहीं जलाने वालों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है और इस पद्धति को जारी रखने वालों पर दंड लगाया जा सकता है।
  2. मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) योजना की व्याख्या इस प्रकार की जानी चाहिए, जिसके तहत, कृषि-अवशिष्टों को जलाने वाले लोगों को संबंधित राज्य MSP के लाभ से पूर्ण या आंशिक रूप से वंचित कर सकें।

छत्तीसगढ़ मॉडल:

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ‘गौठान’ स्थापित कर एक अभिनव प्रयोग किया गया है।

  • ‘गौठान’ (Gauthans), प्रत्येक गाँव में पांच एकड़ का एक सामूहिक भूखंड होता है, जहाँ गाँव के सभी लोग अपनी-अपनी अप्रयुक्त पराली को इकठ्ठा करते हैं और इस पराली को गाय के गोबर और कुछ प्राकृतिक एंजाइमों को मिलाकर जैविक उर्वरक में परिवर्तित किया जाता है।
  • इस योजना से ग्रामीण युवाओं के लिए ‘रोजगार’ भी उत्पन्न होता है।
  • सरकार द्वारा ‘पराली’ को खेत से नजदीकी गौठान तक पहुंचाने में सहायता प्रदान की जाती है।
  • छत्तीसगढ़ में अब तक 2,000 गौठानों को सफलतापूर्वक विकसित किया जा चुका है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप पराली के निपटान हेतु ‘पूसा’ (PUSA) नामक जैव-अपघटक घोल के बारे में जानते हैं?

क्या आप WHO द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों के बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. EPCA के बारे में
  2. NGT के बारे में
  3. CPCB के बारे में
  4. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक, 2021 का अवलोकन
  5. पराली दहन के उपोत्पाद

मेंस लिंक:

‘पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण’ (Environment Pollution (Prevention and Control) Authority) अर्थात EPCA को क्यों भंग किया गया? EPCA की जगह किस संस्था का गठन किया गया है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार

  • भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के प्रोफेसर ‘अजय के सूद’ को भारत सरकार का नया ‘प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार’ (Principal Scientific Adviser – PSA) नियुक्त किया गया है।
  • वह ‘नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज’ (NCBS), बेंगलुरु के प्रोफेसर ‘के विजयराघवन’ का स्थान लेंगे।

PSA के बारे में:

  • 1999 में स्थापित ‘प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार’ (PSA) कार्यालय का उद्देश्य, प्रधान मंत्री और कैबिनेट को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से संबंधित मामलों पर परामर्श देना है।
  • वर्तमान में यह सचिव स्तर का पद है।
  • भारत सरकार के पहले ‘प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार’ ‘ए.पी.जे. अब्दुल कलाम’ थे।

 

चरक शपथ

(Charaka Shapath)

हाल ही में, राजकीय मदुरै मेडिकल कॉलेज के MBBS प्रथम वर्ष के छात्रों को दीक्षा समारोह के दौरान पारंपरिक रूप से अंग्रेजी में ‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ (Hippocratic Oath) की जगह संस्कृत में ‘महर्षि चरक शपथ’  (Charaka Shapath) दिलवायी गयी थी। महर्षि चरक शपथ दिलाने के मामले के बाद 1 मई को मदुरै सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन को पद से हटा दिया गया है।

‘चरक शपथ’ क्या है?

‘चरक शपथ’, पहली-दूसरी शताब्दी ईस्वी में भारतीय पारंपरिक चिकित्सा ‘आयुर्वेद’ पर संस्कृत भाषा में रचित पर एक ग्रंथ ‘चरक संहिता’ का एक अंश है। यह एक शिक्षक द्वारा नए मेडिकल छात्रों के लिए दिए जाने वाले दिशानिर्देश है, कि क्या करें और क्या न करें।

‘हिप्पोक्रेटिक शपथ’ क्या है?

यह चिकित्सकों द्वारा ली जाने वाले ‘नैतिकता की शपथ’ (oath of ethics) है और पूरे विश्व में इसका प्रचलन है। इसका श्रेय यूनानी चिकित्सक ‘हिप्पोक्रेट्स’ (Hippocrates) को दिया जाता है। इस शपथ की रचना ‘ईसा पूर्व चौथी-पांचवीं शताब्दी’ में ग्रीक भाषा में की गयी थी।

संबंधित विवाद:

मदुरै मेडिकल कॉलेज के MBBS प्रथम वर्ष के छात्रों को शपथ संस्कृत में दिलाई गई। इसने एक विवाद उत्पन्न हो गया। यह घटना, केंद्र सरकार और तमिलनाडु के बीच पहले से ही जारी भाषा विवाद के बीच हुई थी।

 

ट्रांसनिस्ट्रिया

ट्रांसनिस्ट्रिया (Transnistria), पूर्वी यूरोप के एक देश ‘मोल्दोवा’ से अलग हो चुका एक छोटा सा क्षेत्र है।

  • यह क्षेत्र पश्चिम में मोल्दोवा और पूर्व में यूक्रेन के बीच स्थित है।
  • हाल ही में, ट्रांसनिस्ट्रिया क्षेत्र में विस्फोटों की एक श्रृंखला की रिपोर्ट आने के बाद, इसके ऊपर ‘रूस-यूक्रेन युद्ध’ में घसीटे जाने का खतरा मंडराने लगा है।
  • अक्सर “सोवियत संघ के अवशेष” के रूप में वर्णित किए जाने वाले ‘ट्रांसनिस्ट्रिया’ ने सोवियत संघ के टूटने के तुरंत बाद ‘मोल्दोवा’ की भांति अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी।
  • ‘ट्रांसनिस्ट्रिया’ को रूस द्वारा भी स्वतंत्र देश की मान्यता नहीं दी गयी, और इसकी अर्थव्यवस्था सब्सिडी और मुफ्त गैस के लिए रूस पर निर्भर है। अधिकांश ‘ट्रांसनिस्ट्रिया-वासियों’ के पास रूस और ट्रांसनिस्ट्रिया की दोहरी नागरिकता, अथवा मोल्दोवा, ट्रांसनिस्ट्रिया और रूस की ‘तिहरी नागरिकता’ है।

 

पीके2

  • हाल ही में, आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ‘औषध-अणु’ की पहचान की है जिसका उपयोग मधुमेह के इलाज के लिए किया जा सकता है।
  • पीके2 (PK2) नामक यह ‘औषध-अणु’, अग्न्याशय द्वारा इंसुलिन के निर्मोचन को सक्रिय करने में सक्षम है, और इसे संभावित रूप से मधुमेह के लिए मुंह के माध्यम से दी जाने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

कोइलास्टिला गैस क्षेत्र

  • हाल ही में, बांग्लादेश में ‘कोइलास्टिला गैस क्षेत्र’ (Koilastila Gas field) की खोज की गयी है।
  • इस गैस क्षेत्र में प्रतिदिन 20 मिलियन क्यूबिक फीट गैस (MMCFD) का उत्पादन करने की क्षमता है।

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