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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
- अल्लूरी सीताराम राजू एवं रंपा विद्रोह
- ‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा
सामान्य अध्ययन-II
- WHO का ‘ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन’
- ओपेक प्लस
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के स्थायी सदस्यों की वीटो पॉवर
- अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं पुरातत्व स्थल दिवस
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- ब्रह्मोस मिसाइल
- सोलोमन द्वीपसमूह
- नैटपोलरेक्स-VIII
- विश्व हीमोफीलिया दिवस
सामान्य अध्ययन–I
विषय: अठारहवीं शताब्दी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
अल्लूरी सीताराम राजू एवं रंपा विद्रोह
(Alluri Sitaram Raju and the Rampa Rebellion)
संदर्भ:
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आंध्र प्रदेश में विशाखापत्तनम के नजदीक स्थित पांडरंगी गांव में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी श्री अल्लूरी सीताराम राजू के जन्मस्थान का दौरा किया।
‘अल्लूरी सीताराम राजू’ के बारे में:
वर्ष 1922 में, भारतीय क्रांतिकारी ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ (Alluri Sitaram Raju) ने मद्रास वन अधिनियम, 1882 को लागू किए जाने पर ब्रिटिश राज के खिलाफ ‘रम्पा विद्रोह’ (Rampa Rebellion) का नेतृत्व किया था। इस कानून के तहत आदिवासियों की उनके ही वनों में मुक्त आवाजाही पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे।
- इस अधिनियम के लागू होने की वजह से, आदिवासी समुदाय ‘पारंपरिक पोडु कृषि पद्धति’ के तहत खेती नहीं कर पा रहे थे। ‘पोडु कृषि पद्धति’ (Podu agricultural system) में ‘झूम खेती’ शामिल होती है।
- इस सशस्त्र संघर्ष का अंत वर्ष 1924 में एक हिंसक कारवाई के साथ हुआ, जिसमे ‘सीताराम राजू’ को ब्रिटिश सिपाहियों के पकड़ कर पेड़ से बांध दिया, और एक फायरिंग दस्ते द्वारा उसे गोली मार दी गई।
- ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ को वीरता के लिए उन्हें ‘मान्यम वीरुडु’ (Manyam Veerudu), या ‘जंगल के नायक’ की उपाधि दी गयी है।
रंपा (रम्पा) विद्रोह:
वर्ष 1922 का ‘रम्पा विद्रोह’, जिसे ‘मान्यम विद्रोह’ (Manyam Rebellion) के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश भारत के अधीन ‘मद्रास प्रेसीडेंसी’ की गोदावरी शाखा में ‘अल्लूरी सीताराम राजू’ के नेतृत्व में एक शुरू किया गया आदिवासी विद्रोह था। यह विद्रोह अगस्त 1922 में शुरू हुआ और मई 1924 में ‘राजू’ को कैद करने और उसकी हत्या किए जाने तक जारी रहा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ब्रिटिश राज के दौरान, देश भर में करीब 40 प्रमुख आदिवासी विद्रोह हुए थे, जिनमें से पहला विद्रोह 1774-79 में, छत्तीसगढ़ के बस्तर में ‘हाल्बा जनजाति’ द्वारा ‘डोंगर’ में कंपनी शासन के खिलाफ विद्रोह किया गया था?
प्रीलिम्स लिंक:
- रम्पा विद्रोह के बारे में
- अल्लूरी सीताराम राजू
- कोमाराम भीम
- मान्यम विद्रोह
मेंस लिंक:
ताम्पा विद्रोह (Tampa Rebellion) के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ
‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा
(AURORA)
संदर्भ:
हाल ही में आइसलैंड के ऊपर एक ‘मृत’ सनस्पॉट (dead sunspot) के अचानक प्रस्फुटित होने के बाद आश्चर्यजनक ‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा (AURORA) को देखा गया।
‘धुर्वीय ज्योति’ क्या होती है?
‘धुर्वीय ज्योति’ अथवा ऑरोरा (Aurora), मुख्य रूप से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों (आर्कटिक और अंटार्कटिक) पर आकाश में दिखाई देने वाली रोशनी होती है। इसे ध्रुवीय प्रकाश (Polar light) के रूप में भी जाना जाता है।
‘धुर्वीय ज्योति’ के प्रकार:
‘धुर्वीय ज्योति’ अथवा ऑरोरा, दो प्रकार की होती है- ‘ऑरोरा बोरेलिस’ (Aurora Borealis) और ऑरोरा ऑस्ट्रालिस (Aurora Australis)। इन्हें आमतौर पर ‘उत्तर धुर्वीय ज्योति’ एवं ‘दक्षिण धुर्वीय ज्योति’ भी कहा जाता है।
ये घटनाएँ कहाँ घटित होती हैं?
‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा आमतौर पर उत्तरी और दक्षिणी उच्च अक्षांशों पर दिखाई देती है। इसके अलावा, मध्य अक्षांशों पर इनकी आवृत्ति कम होती है, जबकि यह भूमध्य रेखा के नजदीक भी कभी-कभार दिखाई देती है।
‘धुर्वीय ज्योति’ के रंग:
‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा, में आमतौर पर दूधिया हरे रंग की प्रचुरता होती है, लेकिन इनमे लाल, नीले, बैंगनी, गुलाबी और सफेद भी दिखा सकता है। इन रंगो का आकार लगातार बदलता हुआ दिखाई देता है।
इसकी उत्पत्ति के पीछे विज्ञान:
- ऑरोरा, इस बात का एक स्पष्ट संकेत है कि हमारा ग्रह विद्युतीय रूप से सूर्य से जुड़ा हुआ है। ये दिखाई देने वाला प्रकाश सूर्य की उर्जा से उत्प्रेरित होता है और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में पाए जाने वाले विद्युत-आवेशित कणों से उत्तेजित होता है।
- आदर्श रूप में धुर्वीय ज्योति की उत्पत्ति, अंतरिक्ष से आने वाले तीव्र-गति के इलेक्ट्रानों तथा पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में उपस्थित ऑक्सीजन और नाइट्रोजन अणुओं के परस्पर टकराने से होती है।
- पृथ्वी के चुंबकीय मंडल से आने वाले इलेक्ट्रान की उर्जा, पृथ्वी के उपरी वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के परमाणुओं और अणुओं में स्थानांतरित होकर इन्हें उत्तेजित कर देती है।
- ये गैसें अपनी सामान्य स्थिति में वापस आने पर, प्रकाश के रूप उर्जा के छोटे बंडलों, फोटॉन (photons) का उत्सर्जन करती हैं।
- जब पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से बाहरी वायुमंडल में, भारी मात्रा में इलेक्ट्रानों की बमबारी होती है, तो ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से पर्याप्त मात्रा में प्रकाश का उत्सर्जन होता है, जिसे नंगी आँखों से देखा जा सकता है, और इससे बहुत खूबसूरत दृश्य दिखाई देते हैं।
इनका उत्पत्ति-स्थल:
धुर्वीय ज्योति की उत्पत्ति, 100 से 400 किमी से अधिक की ऊंचाई पर होती है।
धुर्वीय ज्योति के विभिन्न रंगों और आकार का कारण:
- ऑरोरा में दिखाई देने वाले रंग इस बात पर निर्भर करते है, कि इलेक्ट्रॉनों के द्वारा किस मात्रा में और कौन सी गैस- ऑक्सीजन या नाइट्रोजन- उत्तेजित की जा रही है। धुर्वीय ज्योति में रंग, इलेक्ट्रॉनों की गतिशीलता और टकराव के समय इनकी उर्जा पर भी निर्भर करते हैं।
- इलेक्ट्रॉनों की उच्च ऊर्जा के कारण ऑक्सीजन, हरे रंग के प्रकाश (ऑरोरा का सबसे प्रमुख रंग) का उत्सर्जन करती है, जबकि इलेक्ट्रॉन की निम्न उर्जा होने पर लाल रंग के प्रकाश का उत्सर्जन होता है। नाइट्रोजन, आमतौर रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करती है।
- इन रंगों के मिश्रण से बैगनी, गुलाबी और सफ़ेद रंग दिखाई देते हैं। ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से पराबैंगनी प्रकाश का भी उत्सर्जन होता है, जिसे सॅटॅलाइट पर लगे हुए विशेष कैमरों से देखा जा सकता है।
ऑरोरा का प्रभाव:
- ऑरोरा की घटना होने पर संचार लाइन, रेडियो लाइन और विद्युत् लाइन्स प्रभावित हो सकती हैं।
- यहां यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस सारी प्रक्रिया के पीछे, सौर-हवाओं के रूप में सूर्य की ऊर्जा होती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘धुर्वीय ज्योति’ या ऑरोरा क्या हैं?
- प्रकार?
- इनका निर्माण?
- प्रभाव
- सौर-लपटें क्या होती हैं?
- कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (CME) क्या है?
- ऑरोरा की उत्पत्ति पर सौर-लपटों का प्रभाव
मेंस लिंक:
धुर्वीय ज्योति की उत्पत्ति प्रक्रिया पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
WHO का ‘ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसिन’
(WHO’s Global Centre for Traditional Medicine)
संदर्भ:
हाल ही में गुजरात के जामनगर में ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के ‘वैश्विक पारंपरिक औषध केंद्र’ (Global Centre for Traditional Medicine – GCTM) की की आधारशिला रखी गयी।
GCTM दुनिया भर में पारंपरिक चिकित्सा के लिए पहला और एकमात्र वैश्विक आउटपोस्ट केंद्र होगा।
महत्व:
दुनिया के कई क्षेत्रों के लिए ‘पारंपरिक चिकित्सा’ उपचार का पहला चरण है।
- दुनिया के कई क्षेत्रों के लिए, पारंपरिक चिकित्सा / औषध उपचार की पहली पंक्ति है। यह केंद्र पारंपरिक दवाओं की सहायता से दुनिया को बेहतर चिकित्सा समाधान प्रदान करने में मदद करेगा।
- केंद्र के पांच मुख्य क्षेत्रों में अनुसंधान एवं नेतृत्व, साक्ष्य एवं शिक्षा, डेटा एवं विश्लेषण, स्थायित्व एवं समानता तथा नवाचार एवं प्रौद्योगिकी शामिल होंगे।
आवश्यकता:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार, विश्व की 80% आबादी ‘पारंपरिक चिकित्सा’ का उपयोग करती है।
- 194 सदस्यीय WHO के सदस्य देशों में से 170 देशों ने अपने यहाँ ‘पारंपरिक चिकित्सा’ के उपयोग किए जाने की जानकारी दी है।
- इन सदस्य देशों ने WHO से “पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और उत्पादों पर विश्वसनीय साक्ष्य और डेटा” का एक निकाय बनाने में सहयोग करने के लिए कहा है।
‘पारंपरिक चिकित्सा’ के बारे में:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘पारंपरिक चिकित्सा’ को “देशी एवं विभिन्न संस्कृतियों द्वारा लंबे समय से ‘स्वास्थ्य को बनाए रखने और शारीरिक और मानसिक बीमारी को रोकने, निदान और उपचार करने के लिए उपयोग किए जाने वाले ज्ञान, कौशल और पद्धतियों के कुल योग के रूप में वर्णित किया गया है”।
‘पारंपरिक चिकित्सा’ (Traditional Medicine) के विस्तार में, प्राचीन पद्धतियों जैसे एक्यूपंक्चर, आयुर्वेदिक दवा और हर्बल मिश्रण के साथ-साथ आधुनिक दवाओं को भी शामिल किया जाता है।
भारत में पारंपरिक चिकित्सा:
- ‘आयुर्वेद’ और ‘योग’ का पूरे देश में व्यापक रूप से अभ्यास किया जाता है।
- चिकित्सा की ‘सिद्धा पद्धति’ (Siddha System) का उपयोग मुख्यतः तमिलनाडु और केरल में किया जाता है।
- ‘सोवा-रिग्पा प्रणाली’ (Sowa-Rigpa system) मुख्य रूप से लेह-लद्दाख और हिमालयी क्षेत्रों जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग, लाहौल और स्पीति में प्रचलित है।
पारंपरिक चिकित्सा के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियाँ और रणनीतियाँ, अभी तक पारंपरिक चिकित्सा कर्मियों, मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों और स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरी तरह से एकीकृत नहीं हैं।
- लगभग 40% अनुमोदित दवा उत्पाद आज प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं। यह पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों को उठाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘गर्भनिरोधक गोली’, जंगली रतालू पौधों (Wild Yam Plants) की जड़ों से विकसित की गई थी और ‘बच्चों में होने वाले कैंसर का उपचार ‘रोजी पेरिविंकल’ (Rosy Periwinkle) नामक एक प्रकार की वनस्पति पर आधारित हैं?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
‘ओपेक प्लस’
(OPEC+)
संदर्भ:
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने विश्व तेल बाजार को स्थिर करने के लिए ‘ओपेक प्लस (OPEC+) उत्पादक समूह’ के सहयोग का “आंकलन” करते हुए इसे सकारात्मक बताया है।
संबंधित प्रकरण:
सऊदी अरब और फारस की खाड़ी के अन्य प्रमुख तेल उत्पादकों ने, यूक्रेन में संकट और रूसी निर्यात पर संभावित प्रतिबंधों के बारे में चिंताओं के बीच कीमतों में वृद्धि के मद्देनजर अमेरिका द्वारा उत्पादन बढ़ाने के लिए की जारी मांग का अब तक विरोध किया है।
इसलिए, हालात को ठीक करने के लिए इस तरह के उपाय आवश्यक हैं।
‘ओपेक प्लस’ के बारे में:
ओपेक प्लस (OPEC+) कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों का एक गठबंधन है। यह गठबंधन वर्ष 2017 से तेल बाजारों में की जाने वाली आपूर्ति में सुधार कर रहा है।
- ओपेक प्लस देशों में अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाकिस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं।
‘ओपेक’ के बारे में:
ओपेक (OPEC- Organization of the Petroleum Exporting Countries) ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन’ है।
- इसकी स्थापना, सितंबर, 1960 में आयोजित बगदाद सम्मेलन, इराक में पांच देशों, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर के साथ की गयी थी। ये पांचो देश ओपेक संगठन के संस्थापक सदस्य थे।
- OPEC एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है।
- इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों के मध्य पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना तथा उपभोक्ता राष्ट्रों के लिए पेट्रोलियम की सफल, आर्थिक और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है।
- इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के ‘वियना’ शहर में है।
- पर्याप्त मात्रा में तेल निर्यात करने वाला, तथा संगठन के आदर्शों को साझा करने वाला कोई भी देश OPEC का सदस्य बन सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- OPEC के संस्थापक सदस्य
- शीर्ष तेल उत्पादक
- भारत द्वारा कच्चे तेल का आयात
- कच्चे तेल के घटक और शोधन
- भारत में कच्चे तेल के भंडारण की सुविधा
- ओपेक सदस्यों का भौगोलिक अवस्थति
- ओपेक और गैर-ओपेक सदस्यों द्वारा उत्पादित कच्चे तेल का प्रकार
मेंस लिंक:
ओपेक जैसे समूह विश्व भर में तेल की कीमतों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के स्थायी सदस्यों की वीटो पॉवर
(Veto power of UNSC permanent members)
संदर्भ:
लीख़्टेनश्टाइन / लिकटेंस्टीन (Liechtenstein) द्वारा एक मसौदा प्रस्ताव पर बहस करने के ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ की बैठक का आयोजन कर रहा है। इस प्रस्ताव के लिए अमेरिका का समर्थन प्राप्त है, और इस प्रस्ताव में ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) के पांच स्थायी सदस्यों (रूस, चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस) द्वारा “वीटो पॉवर का उपयोग करने पर इसे सही साबित करने की आवश्यकता” निर्धारित किए जाने का प्रावधान किया गया है।
‘लिकटेंस्टीन’ पश्चिमी यूरोप में स्थित एक छोटा सा स्थलरुद्ध देश है। इसकी सीमा पश्चिम और दक्षिण में स्विटजरलैंड और पूर्व में आस्ट्रिया से मिलती है।
पृष्ठभूमि:
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के ‘स्थायी सदस्यों द्वारा अपनी वीटो शक्तियों के उपयोग में कमी किए जाने’ को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र बनाए जाने की मांग काफी पुरानी है।
हाल ही में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने के बाद, इस मांग को प्रमुख प्रतिभागियों से शक्ति और समर्थन प्राप्त हुआ है।
मॉस्को की वीटो पॉवर ने इसे UNSC में कार्रवाई को पंगु बना दिया है, जबकि UNSC को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर द्वारा परिभाषित ‘वैश्विक शांति के गारंटर’ के रूप में इस प्रकार के संघर्षों में हस्तक्षेप करना होता है।
आवश्यकता:
विभिन्न देशों ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (United Nations Security Council – UNSC) में सुधारों की मांग करते हुए दावा किया है कि यह संगठन “सीमित प्रतिनिधित्व” के कारण वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने में जिम्मेदारियों को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
‘वीटो पॉवर’ में सुधार संबंधी मुद्दा, अक्सर सुरक्षा परिषद में सुधार के प्रस्तावों में शामिल होता है। भारत ने बार-बार कहा है कि ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के विस्तार के मुद्दे को ‘वीटो पॉवर’ पर बहस से ‘बंधक’ नहीं बनाया जाना चाहिए।
‘वीटो पॉवर’ क्या है?
‘UNSC वीटो पॉवर’, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के पांच स्थायी सदस्यों को प्राप्त, किसी भी “मौलिक” प्रस्ताव को वीटो (निष्फल कर देने) करने की शक्ति है।
‘वीटो पॉवर’ का स्रोत संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 में है।
‘वीटो पॉवर’ का इस्तेमाल:
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ (UNSC) के प्रत्येक सदस्य के पास ‘वोट’ होगा।
- सभी प्रक्रियात्मक मामलों (Procedural Matters) पर UNSC के निर्णय, नौ सदस्यों के सकारात्मक मतों द्वारा किए जाएंगे।
- अन्य सभी मामलों पर ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के निर्णय स्थायी सदस्यों के सहमति मतों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मतों द्वारा किए जाएंगे।
- इसका मतलब यह है, कि किसी भी स्थायी सदस्य का ‘नकारात्मक वोट’ मसौदा प्रस्ताव को अपनाने में बाधा डालेगा।
- कोई स्थायी सदस्य जो मतदान से दूर रहता है या अनुपस्थित रहता है, वह किसी प्रस्ताव को पारित होने से नहीं रोक सकेगा।
वीटो के पक्ष और विपक्ष में तर्क:
- ‘वीटो पॉवर’ के समर्थक इसे अंतरराष्ट्रीय स्थिरता के प्रवर्तक और “अकस्मात” सैन्य हस्तक्षेप के खिलाफ एक रोक/अवरोध के रूप में मानते हैं।
- हालांकि, आलोचकों का कहना है कि ‘वीटो पॉवर’ संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे अलोकतांत्रिक तत्व है, साथ ही युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों पर निष्क्रियता का मुख्य कारण है, क्योंकि यह शक्ति स्थायी सदस्यों और उनके सहयोगियों के खिलाफ ‘संयुक्त राष्ट्र’ की कार्रवाई पर प्रभावी ढंग से रोक लगा देती है।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दावा किया है, कि पांच स्थायी सदस्यों द्वारा अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल “नागरिकों की सुरक्षा की बजाय अपने राजनीतिक स्वार्थ या भू-राजनीतिक हित को बढ़ावा देने” के लिए किया जाता है”।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु प्रमुख बिंदु:
- भारत, संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि विभिन्न अभियानों में तैनात, भारत के शांति सैनिकों की संख्या, P5 देशों की तुलना में लगभग दोगुनी है।
- भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश भी है।
- मई 1998 में भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (Nuclear Weapons State – NWS) का दर्जा प्राप्त हुआ था, और वह मौजूदा स्थायी सदस्यों के समान परमाणु हथियार संपन्न है, इस आधार पर भी भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का स्वभाविक दावेदार बन जाता है।
- भारत, तीसरी दुनिया के देशों का निर्विवाद नेता है, और यह ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ और जी-77 समूह में भारत द्वारा नेतृत्व की भूमिका से सपष्ट परिलक्षित होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने “कॉफी क्लब” के बारे में सुना है? यह 40 सदस्य देशों का एक अनौपचारिक समूह है। इसके क्या उद्देश्य हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के बारे में।
- सदस्य
- चुनाव
- कार्य
- UNSC प्रेसीडेंसी के बारे में
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर के बारे में
मेंस लिंक:
‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ में सुधारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं पुरातत्व स्थल दिवस
(International Day for Monuments and Sites)
संदर्भ:
प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र द्वारा 18 अप्रैल को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं पुरातत्व स्थल दिवस’ (International Day for Monuments and Sites) के रूप में घोषित किया गया है।
- कई देशों में इस दिन को ‘विश्व विरासत दिवस’ (World Heritage Day) के रूप में भी मनाया जाता है।
- वैश्विक स्तर पर, इस दिवस को ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद’ (International Council on Monuments and Sites– ICOMOS) द्वारा आयोजित किया जाता है।
इस वर्ष के ‘विश्व विरासत दिवस’ का विषय है: “विरासत और जलवायु” (Heritage and Climate) है।“
‘विश्व विरासत स्थल’ के बारे में:
‘विश्व विरासत स्थल’, संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) अर्थात यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त स्थल होते हैं। विश्व धरोहर के रूप में वर्गीकृत स्थलों को, यूनेस्को मानवता के लिए महत्वपूर्ण मानता हैं, क्योंकि ये स्थल सांस्कृतिक और भौतिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं।
- विश्व धरोहर स्थलों की सूची, यूनेस्को की ‘विश्व विरासत समिति’ द्वारा प्रशासित ‘अंतर्राष्ट्रीय विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार की जाती है। इस समिति में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्वाचित यूनेस्को के 21 सदस्य देश शामिल होते है।
- प्रत्येक विश्व धरोहर स्थल, जहाँ वह अवस्थित होता है, उस देश के वैधानिक क्षेत्र का भाग होता है तथा यूनेस्को द्वारा इसके संरक्षण को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के हित में माना जाता है।
‘विश्व विरासत स्थल’ के लिए अर्हता:
विश्व विरासत स्थल के रूप में चयनित होने के लिए, किसी स्थल को पहले से ही भौगोलिक एवं ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट, सांस्कृतिक या भौतिक महत्व वाले स्थल के रूप में अद्वितीय, विशिष्ट स्थल चिह्न अथवा प्रतीक के रूप में वर्गीकृत होना चाहिए।
भारत में विरासत स्थल:
- भारत में यूनेस्को द्वारा घोषित 40 विश्व धरोहर स्थल है।
- गुजरात में ‘धोलावीरा’ के ‘हड़प्पा शहर’ को भारत के 40 वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया है।
- ‘रामप्पा मंदिर’ (तेलंगाना), भारत का 39वां विश्व धरोहर स्थल था।
- सिक्किम के ‘खांगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान’ को भारत का पहला और एकमात्र “मिश्रित विश्व विरासत स्थल” के रूप में दर्ज किया गया है।
प्रीलिम्स लिंक:
- किसी स्थल को ‘विश्व विरासत स्थल’ किसके द्वारा घोषित किया जाता है?
- संकटग्रस्त सूची क्या है?
- संभावित सूची क्या है?
- भारत में ‘विश्व विरासत स्थल’ और उनकी अवस्थिति
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
ब्रह्मोस मिसाइल
भारत-रूस के संयुक्त उद्यम ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ द्वारा सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का उत्पादन किया जाता है, इन मिसाइलों को पनडुब्बियों, जहाजों, विमानों या भूमि प्लेटफार्मों से लॉन्च किया जा सकता है।
- ब्रह्मोस मिसाइल (BrahMos missile),8 मैक या ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना की गति से उड़ान भरने में सक्षम है।
- मिसाइल के उन्नत संस्करण की मारक क्षमता को, 290 किमी से बढाकर लगभग 350 किमी तक कर दिया गया है।
सोलोमन द्वीपसमूह
- सोलोमन द्वीपसमूह (Solomon Islands), पापुआ न्यू गिनी के पूर्व में ‘मेलानेशिया’ (Melanesia) क्षेत्र में अवस्थित एक राष्ट्र है, जिसमें 990 से अधिक द्वीप शामिल हैं। इसकी राजधानी ‘होनियारा’ (Honiara) है, जो ‘ग्वाडलकैनाल द्वीप’ (Island of Guadalcanal) पर स्थित है।
- सोलोमन द्वीपसमूह में कम से कम 30,000 वर्षों से ‘मेलानेशियन लोग’ निवास कर रहे है।
- यह द्वीपसमूह ‘मेलानेशिया’ में ज्वालामुखीय द्वीपों और प्रवाल प्रवाल द्वीपों की दोहरी श्रृंखला से मिलकर बना है।
चर्चा का कारण:
हाल ही में, चीन ने सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने की जानकारी दी है। यह अपनी तरह का पहला समझौता है जो विदेशों में ‘चीनी सुरक्षा सौदों’ का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
नैटपोलरेक्स-VIII
हाल ही में, ‘राष्ट्रीय स्तरीय प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास’ (National Level Pollution Response Exercise – NATPOLREX) के आठवें संस्करण NATPOLREX – VIII का आयोजन किया गया।
- इसका आयोजन भारतीय तटरक्षक बल (ICG) की ओर से गोवा के मोरमुगाओ पत्तन पर किया जा रहा है।
- NATPOLREX-VIII का का उद्देश्य समुद्री रिसाव से निपटने में सभी हितधारकों की तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाना है।
- इसके अलावा इसका लक्ष्य एसएसीईपी समझौता ज्ञापन के अधीन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिक योजना’ (NOSDCP) में निहित प्रक्रियाओं और दिशानिर्देशों को लागू करना है, जिसमें भारत एक सदस्य राष्ट्र है।
विश्व हीमोफीलिया दिवस
हर साल 17 अप्रैल को विश्व हीमोफिलिया दिवस (World Haemophilia day) मनाया जाता है। इसका उद्देश्य हीमोफिलिया और अन्य वंशानुगत रक्तस्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
- यह दिवस, वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफिलिया (WHF) के संस्थापक फ्रैंक श्नाबेल के सम्मान में मनाया जाता है।
- इस वर्ष (2022) का विषय “सभी के लिये पहुँच: साझेदारी: नीति: प्रगति, अपनी सरकार को शामिल करना, विरासत में मिली रक्तस्राव विकारों को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत करना” है।
‘हीमोफीलिया’ एक चिकित्सा स्थिति है और अधिकतर यह रोग आनुवंशिक होता है। इस बीमारी में रक्त के थक्के बनने की क्षमता गंभीर रूप से कम हो जाती है, जिससे कि मामूली चोट में भी गंभीर रक्तस्राव हो सकता है।
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