[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 16 April 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. डॉ. भीमराव राम अंबेडकर
  2. दीर्घकालिक औसत

 

सामान्य अध्ययन-II

  1. वस्‍त्र उद्योग के लिए ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना
  2. NATO का विस्तार

 

सामान्य अध्ययन-III

  1. संसदीय समिति द्वारा हाथियों के व्यापार के खिलाफ आवाज

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. काला सागर
  2. भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान
  3. भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

डॉ. भीमराव राम अंबेडकर

(Dr. BR Ambedkar)

संदर्भ:

देश भर में इस वर्ष 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव राम अंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) की 131वीं जयंती मनाई गयी।

एक समाज सुधारक, भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष और देश के पहले कानून मंत्री के रूप में उनकी भूमिका सुविख्यात है।

संवैधानिक सुधारों की दिशा में डॉ. बी आर अंबेडकर का योगदान:

  • संविधान की ‘प्रारूप समिति’ (Drafting Committee) के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करने हेतु ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व’ के माध्यम से सावधानीपूर्वक उपाय किए।
  • इन्होने सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिए जोरदार वकालत की, जिसकी वजह से यह सुनिश्चित हुआ कि, स्वतंत्रता के तुरंत बाद महिलाओं को ‘वोट देने का अधिकार’ प्रदान किया जाए।
  • ‘हिंदू कोड बिल’ के पक्ष में उनकी वकालत, महिलाओं को ‘गोद लेने’ का और ‘विरासत में हिस्सा दिए जाने’ का अधिकार देकर उनकी दुर्दशा को सुधारने की दिशा में एक क्रांतिकारी उपाय था।
  • उन्होंने ‘संघीय वित्त’ के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कई राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना में अग्रगामी के रूप में अम्बेडकर:

  1. ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थपाना ‘हिल्टन यंग कमीशन’ (Hilton Young Commission’s) द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के आधार पर की गयी थी। इन सिफारिशों में अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘रुपए की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान’ (The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution) में दिए गए दिशानिर्देशों को शामिल किया गया था।
  2. 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद में एक श्रम सदस्य के रूप में, उन्होंने जल, बिजली और श्रम-कल्याण क्षेत्रों में कई नीतियां विकसित कीं।
  3. उनकी दूरदर्शिता ने ही, ‘केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई एवं नौपरिवहन आयोग’ (Central Waterways, Irrigation and Navigation Commission – CWINC) के रूप में ‘केंद्रीय जल आयोग’ की स्थापना करने में सहयोग किया।
  4. उन्होंने ‘नदी घाटी प्राधिकरण’ की स्थापना के माध्यम से ‘एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन’ का गठन करने में सहयोग किया। इस प्राधिकरण के द्वारा, दामोदर नदी घाटी परियोजना, सोन नदी घाटी परियोजना, महानदी (हीराकुंड परियोजना), कोसी और चंबल नदियों तथा दक्कन क्षेत्र की नदियों पर प्रस्तावित अन्य परियोजनाओं पर सक्रिय रूप से विचार किया जाता है।
  5. ‘अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम’, 1956 और ‘नदी बोर्ड अधिनियम’, 1956 उनकी दूरदृष्टि का परिणाम हैं।

मजदूरों और औद्योगिक श्रमिकों के कल्याण के लिए योगदान:

  • बंबई विधानसभा के सदस्य के रूप में, अम्बेडकर ने ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’, 1937 को पेश करने का विरोध किया, क्योंकि इस विधेयक में ‘श्रमिकों के हड़ताल के अधिकार’ को हटा दिया गया था।
  • उन्होंने काम के घंटों को घटाकर प्रति सप्ताह 48 घंटे करने, कोयला खदानों में भूमिगत काम के लिए महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध हटाने, ओवरटाइम, सवैतनिक अवकाश और न्यूनतम मजदूरी के प्रावधानों को पेश करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • उन्होंने लिंग और मातृत्व लाभ के बावजूद “समान काम के लिए समान वेतन” के सिद्धांत को स्थापित करने में भी मदद की।
  • अम्बेडकर ने साम्यवादी श्रमिक आंदोलनों, उनकी बाहरी देशों के प्रति वफादारी और उत्पादन के सभी साधनों को नियंत्रित करने संबंधी उनके मार्क्सवादी दृष्टिकोण का स्पष्ट विरोध किया।

अम्बेडकरः दलित वर्गों की आवाज

  • अम्बेडकर हर मंच पर दलित वर्गों की आवाज बने। ‘गोलमेज सम्मेलन’ में दलितों के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने मजदूरों के हितों तथा किसानों की स्थिति में सुधार किए जाने का समर्थन किया।
  • 1937 में बंबई विधानसभा के पूना सत्र के दौरान, उन्होंने कोंकण क्षेत्र में प्रचलित पट्देदारी की ‘खोटी पद्धति’ (Khoti system) को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया।
  • बम्बई में, 1938 में काउंसिल हॉल तक किए गए ऐतिहासिक किसान मार्च ने उन्हें किसानों, श्रमिकों और भूमिहीनों का एक लोकप्रिय नेता बना दिया। वह देश के पहले विधायक थे जिन्होंने कृषि काश्तकारों की दासता को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया।
  • उनके निबंध ‘स्मॉल होल्डिंग्स इन इंडिया एंड देयर रेमेडीज’ (1918) ने औद्योगीकरण को भारत की कृषि समस्या के जबाव के रूप में प्रस्तावित किया और यह निबंध अभी भी समकालीन बहस के लिए प्रासंगिक है।

स्रोत: पीआईबी।

 

 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान।

दीर्घकालिक औसत


(“Long period average” – LPA)

संदर्भ:

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस साल के लिए जारी अपने पहले ‘दीर्घावधि पूर्वानुमान’ (Long Range Forecast- LRF) में कहा है, कि देश में लगातार चौथे वर्ष मानसून के ‘सामान्य’ रहने की संभावना है।

यह ‘पूर्वानुमान’ किस प्रकार किया जाता है?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वार बेंचमार्क ‘दीर्घावधि औसत’ (Long Period Average- LPA) वर्षा के संबंध में ‘सामान्य’, ‘सामान्य से कम’ या ‘सामान्य से अधिक’ मानसून का पूर्वानुमान जारी करता है।

  • IMD के अनुसार, वर्षा का ‘दीर्घावधि औसत’ (LPA) किसी विशेष क्षेत्र में एक निश्चित अंतराल (जैसे- महीने या मौसम) के लिये- 30 साल, 50 साल आदि जैसी लंबी अवधि के दौरान दर्ज की गई औसत वर्षा होती है।
  • आईएमडी द्वारा देशव्यापी आँकड़ों के साथ, देश के हर क्षेत्र के मौसम के लिये LPA की गणना की जाती है।

‘दीर्घावधि औसत’ (LPA) की आवश्यकता:

चूंकि, प्रत्येक वर्ष होने वाली बारिश की मात्रा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तथा एक महीने से दूसरे महीने में भिन्न होती है। अतः, वर्षा की रुझान प्रवृत्तियों को स्पष्ट  करने के लिए एक LPA की आवश्यकता होती है ताकि एक सटीक सटीक भविष्यवाणी की जा सके।

50 वर्षीय ‘दीर्घावधि औसत’, ‘अल नीनो’ या ‘ला नीना’ जैसी घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाली असामान्य रूप से उच्च या निम्न वर्षा के साथ-साथ, आवधिक सूखा और जलवायु परिवर्तन के कारण तीव्रता से बढती चरम मौसमी घटनाओं की वजह से, किसी भी दिशा में होने वाले बड़े बदलावों को कवर करता है।

मानसून की शुरुआत को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक:

मानसून की शुरुआत के लिए, एक ट्रिगर की आवश्यकता होती है, जिसके लिए तटीय क्षेत्रों की मौसम प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समुद्र में घटित होने वाली परिघटनाओं के कारण, सामान्य समय के आसपास मानसून की शुरुआत अधिक सुस्पष्ट हो जाती है। इन परिघटनाओं में निम्लिखित को शामिल किया जा सकता है:

  1. मई के अंतिम दिनों में अथवा जून के शुरुआती दौर में बंगाल की खाड़ी में निम्न दाब क्षेत्र अथवा डिप्रेशन (Depression) की स्थिति होती है।
  2. इसी दौरान अरब सागर में भी लगभग इसी प्रकार की स्थितियां होती हैं, जिनके परिणामस्वरूप तटीय स्थलीय भागों में मानसून पहुँच जाता है।
  3. मानसून की शुरुआत के लिए, केरल और लक्षद्वीप के नजदीक दक्षिणपूर्व अरब सागर में उत्पन्न होने वाले ‘चक्रवातीय भंवर’ (Cyclonic Vortex) भी एक महत्वपूर्ण कारक होते हैं। इन ‘चक्रवातीय भंवरों’ के पश्चिमी तट की ओर खिसकने की वजह से मानसून-प्रवाह तेजी से आगे बढ़ता है।
  4. स्थल और समुद्र के मध्य तापमान भिन्नता होने के कारण पश्चिमी तट के निकट एक वायुमंडलीय ‘गर्त’ (Trough) का निर्माण होता है, और इसकी वजह से मानसून की हल्की शुरुआत और धीमी वृद्धि हो सकती है।
  5. अंत में, भूमध्य रेखा के पार से आने वाली हवाओं, जिसमे दक्षिणी गोलार्ध को पार करती हुई उत्तरी गोलार्ध तक पहुँचने वाली व्यापारिक पवने शामिल होती है, के द्वारा भारतीय मुख्य भूमि की ओर एक जोरदार मानसून आ सकता है।

भारत में मानसून- प्रमुख तथ्य:

  1. आम तौर पर, दुनिया भर में, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में लगभग 20 डिग्री उत्तर और 20 डिग्री दक्षिण के मध्य मानसून परिघटना देखी जाती है।
  2. भारत के कुल 4 मौसमी विभाजनों में से, दो विभाजनों अर्थात् दक्षिण-पश्चिम मानसून काल तथा मानसून निवर्तन काल, पर मानसून का प्रभाव रहता है।

Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ द्वारा अखिल भारतीय पैमाने पर पांच ‘वर्षा वितरण श्रेणियां’ निर्धारित की गयी हैं।

  1. ‘‘सामान्य’ या ‘लगभग सामान्य’ वर्षा श्रेणी’: जब वास्तविक वर्षा का प्रतिशत विचलन LPA का +/- 10% होता है, अर्थात LPA का 96-104% के बीच होता है।
  2. ‘सामान्य से कम’ वर्षा: जब वास्तविक वर्षा का विचलन LPA के 10% से कम होता है, जो कि LPA का 90-96% है।
  3. ‘सामान्य से अधिक’ वर्षा: जब वास्तविक वर्षा LPA का 104-110% होता है।
  4. न्यून (Deficient): जब वास्तविक वर्षा का विचलन LPA के 90% से कम होता है।
  5. आधिक्य (Excess): जब वास्तविक वर्षा का विचलन LPA के 110 प्रतिशत से अधिक होता है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अल नीनो क्या है?
  2. ला नीना क्या है?
  3. ENSO क्या है?
  4. ये घटनाएँ कब घटित होती हैं?
  5. एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया पर ENSO का प्रभाव।
  6. हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole) क्या है?
  7. दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर मानसून के बीच अंतर।
  8. दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत को प्रभावित करने वाले कारक।

मेंस लिंक:

भारत पर ‘ला नीना’ मौसमी परिघटना के प्रभाव पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

वस्‍त्र उद्योग के लिए ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना


(PLI scheme for textiles)

संदर्भ:

हाल ही में, कपड़ा क्षेत्र के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना (Production-Linked Incentive (PLI) scheme) के तहत कुल 19,077 करोड़ रुपये के निवेश वाली परियोजनाओं के लिए 61 आवेदनों को मंजूरी दी गई है।

इन परियोजनाओं से 2.4 लाख व्यक्तियों के प्रस्तावित प्रत्यक्ष रोजगार के साथ पांच वर्षों की अवधि के लिए 184,917 करोड़ रुपये के अनुमानित कारोबार की उम्मीद है।

योजना के बारे में:

  • केंद्र सरकार द्वारा वस्त्र उद्योग के लिए 10,683 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI Scheme) को मंजूरी दी गई है।
  • यह PLI योजना केंद्रीय बजट 2021-22 में 13 क्षेत्रों के लिए पहले घोषित की गई 1.97 लाख करोड़ के कुल बजटीय परिव्यय वाली ‘पीएलआई योजनाओं’ का हिस्सा है।

योजना के केंद्रीय क्षेत्र:

वस्त्र उद्योग के लिए ‘पीएलआई योजना’ का उद्देश्य उच्च मूल्य के मानव निर्मित फाइबर (MMF) वस्त्रों, परिधानों और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।

अहर्ता प्रक्रिया:

  1. कोई भी व्यक्ति (जिसमें फर्म/कंपनी शामिल है), जो निर्धारित खंडों (एमएमएफ फैब्रिक्स, गारमेंट) के उत्‍पादों और तकनीकी वस्‍त्र के उत्पादों के उत्पादन के लिए संयंत्र, मशीनरी, उपकरण और निर्माण कार्यों (भूमि और प्रशासनिक भवन की लागत को छोड़कर) में न्यूनतम 300 करोड़ रुपये निवेश करने को तैयार है, वह इस योजना के पहले भाग में भागीदारी के लिए आवेदन करने का पात्र होगा।
  2. समान शर्तों के तहत, कोई भी व्यक्ति (जिसमें फर्म/कंपनी शामिल है), जो न्यूनतम 100 करोड़ रुपये निवेश करने का इच्छुक है, वह योजना के इस भाग में भागीदारी के लिए आवेदन करने का पात्र होगा।

प्रोत्साहन:

  • PLI योजना के तहत, केंद्र सरकार द्वारा वृद्धिशील उत्पादन पर प्रोत्साहन देकर पात्र निर्माताओं को सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
  • संयंत्र, मशीनरी, उपकरण और सिविल कार्यों में 300 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश करने वाली कंपनियों को अपने टर्नओवर का 15 प्रतिशत प्रोत्साहन मिलेगा। इस टर्नओवर को निवेश करने तीसरे वर्ष में 600 करोड़ रुपये होना चाहिए।
  • 100 करोड़ रुपये से 300 करोड़ रुपये के बीच निवेश करने वाली कंपनियां भी शुल्क वापसी और प्रोत्साहन (उनके कारोबार के 15 प्रतिशत से कम) प्राप्त करने की पात्र होंगी।
  • इस योजना से सरकार को “19,000 करोड़ रुपए से अधिक का नया निवेश और 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का संचयी कारोबार” प्राप्त करने की उम्मीद है।

योजना का महत्व:

पीएलआई योजना, घरेलू विनिर्माण को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देगी, और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना के अनुरूप वैश्विक बाजारों में एक बड़ा प्रभाव डालने के लिए वस्त्र उद्योग को तैयार करेगी। यह योजना इस क्षेत्र में अधिक निवेश आकर्षित करने में भी मदद करेगी

आवश्यकता:

वस्त्रों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का दो-तिहाई, मानव निर्मित और तकनीकी वस्त्रों का है। भारत को मानव निर्मित फाइबर (MMF) से बने वस्त्रों और वस्त्र उद्योग के पारिस्थितिकी तंत्र में भी योगदान करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से इस योजना को मंजूरी दी गई है।

current affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि वर्ष 2020 में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा एक 1,480 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय से ‘राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन’ की स्थापना को मंजूरी दी गई थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. तकनीकी वस्त्र क्या हैं?
  1. विशेषताएं
  2. प्रकार
  3. लाभ
  4. उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई)’ योजना – इसकी घोषणा कब की गई थी?
  5. योजना के तहत किन उद्योगों के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध है?
  6. किस तरह के निवेश पर विचार किया जाएगा?
  7. योजना की अवधि।
  8. इसे कौन लागू करेगा?

मेंस लिंक:

तकनीकी वस्त्रों के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

NATO का विस्तार


(NATO enlargement)

संदर्भ:

हाल ही में, रूस ने फिनलैंड और स्वीडन को ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ / ‘नाटो’ (North Atlantic Treaty Organization – NATO) में शामिल होने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा है कि इस कदम से यूरोप में स्थिरता नहीं आएगी।

  • रूस ने कहा है, कि अगर स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होते हैं तो उसके लिए बाल्टिक सागर में अपनी स्थलीय, नौसेना और वायु सेना को मजबूत करना होगा।
  • रूस ने भी परमाणु खतरे की धमकी देते हुए कहा है, कि यदि अगर स्वीडन और फिनलैंड, नाटो गठबंधन में शामिल होते हैं तो, वह इसं देशों के नजदीक अपने परमाणु हथियार तैनात करेगा।

रूस क्या चाहता है?

व्लादिमीर पुतिन द्वारा पूर्वी यूक्रेन में अपना छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) शुरू करने और क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद से, रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही है।

  • प्रत्युत्तर में, NATO ने रूसी आक्रमण के प्रति संवेदनशील देशों में सहायता के लिए अपनी सेनाएं भेजी गयी हैं।
  • दिसंबर में, मास्को ने दो दस्तावेजों- अमेरिका के साथ एक प्रस्तावित संधि, और नाटो के साथ एक समझौता – में अपनी सुरक्षा मांगों को सबके सामने रखा था।
  • मुख्य रूप से, रूस अब NATO द्वारा पूर्व की ओर अपने विस्तार पर रोक लगाने, यूक्रेन और अन्य पूर्व सोवियत देशों को सदस्यता देने से मना करने तथा मध्य एवं पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य तैनाती को हटाने की गारंटी चाहता है।

NATO के साथ रूस के विवाद का स्रोत:

  • रूसी नेता लंबे समय से, खासकर 1990 के दशक के अंत में (चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड) और 2000 के दशक की शुरुआत में (बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया) पूर्ववर्ती वारसॉ संधि राष्ट्रों तथा पूर्व सोवियत गणराज्यों के लिए के लिए नाटो गठबंधन द्वारा अपने दरवाजे खोलने के बाद, NATO के पूर्व की ओर विस्तार को लेकर सतर्क रहते हैं।
  • 2000 के दशक के अंत में NATO द्वारा भविष्य में जॉर्जिया और यूक्रेन को अपने गठबंधन में शामिल करने के अपने इरादे की घोषणा के बाद से रूसी नेताओं का यह भय और बढ़ गया।

वर्तमान  में रूस की NATO और संयुक्त राज्य अमेरिका से मांग:

रूस द्वारा दो समझौते ड्राफ्ट प्रस्तुत किए गए हैं, जिनमे क्रमशः संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो से स्पष्ट, कानूनी रूप से बाध्यकारी सुरक्षा गारंटी की मांग की गयी है:

  • इन ड्राफ्ट्स में NATO को पूर्व की ओर किए जा रहे विस्तार को समाप्त करने तथा विशेष रूप से, यूक्रेन जैसे पूर्ववर्ती सोवियत संघ के देशों को भविष्य में सदस्यता देने से इंकार करने की मांग की गयी है। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका को पूर्ववर्ती सोवियत संघ के देशों के साथ सैन्य सहयोग करने अथवा इन देशों में अपना बेस बनाने से रोकने की मांग भी की गयी है।
  • इन दस्तावेजों में दोनों हस्ताक्षरकर्ताओं को उनकी राष्ट्रीय सीमाओं के बाहर के क्षेत्रों में सैन्य परिसंपत्तियां तैनात करने से रोकने का उल्लेख किया गया है, इस प्रकार की तैनाती को “किसी दूसरे पक्ष द्वारा अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माना जा सकता है”।

रूस, NATO को लेकर चिंतित क्यों है?

  • रूस ने, नाटो से यूक्रेन को कभी भी गठबंधन में शामिल नहीं करने की गारंटी देने की मांग की है।
  • रूस का मानना ​​है, कि NATO रूस को “घेर” कर उसके लिए खतरा पैदा कर रहा है।
  • यह भी कहा जाता है कि ‘नाटो की मिसाइले, रूसी सुरक्षा के लिए खतरा है।
  • सबसे बढ़कर, रूस, NATO को एक अमेरिकी भू-राजनीतिक प्रोजेक्ट मानता है और, NATO ने हमेशा रूस को अलग-थलग या हाशिए पर रखने की कोशिश की है।

‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (North Atlantic Treaty Organization NATO) के बारे में:

  • यह एक ‘अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन’ है।
  • ‘वाशिंगटन संधि’ द्वारा स्थापित किया गया था।
  • इस संधि पर 4 अप्रैल 1949 को हस्ताक्षर किए गए थे।
  • मुख्यालय – ब्रुसेल्स, बेल्जियम।
  • मित्र राष्ट्रों का ‘कमान संचालन मुख्यालय’ – मॉन्स (Mons), बेल्जियम।

महत्व:

‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO), एक ‘सामूहिक रक्षा प्रणाली’ का निर्माण करता है, जिसके अंतर्गत इसके स्वतंत्र सदस्य राष्ट्र, किसी भी बाहरी हमले के जवाब में परस्पर प्रतिरक्षा हेतु सहमत होते हैं।

संरचना:

‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO) की स्थापना के बाद से, गठबंधन में नए सदस्य देश शामिल होते रहें है। शुरुआत में, नाटो गठबंधन में 12 राष्ट्र शामिल थे, बाद में इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो चुकी है। नाटो गठबंधन में शामिल होने वाला सबसे अंतिम देश ‘उत्तरी मकदूनिया’ था, उसे 27 मार्च 2020 को शामिल किया गया था।

नाटो की सदस्यता, ‘इस संधि के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा में योगदान करने में योगदान करने में सक्षम किसी भी ‘यूरोपीय राष्ट्र’ के लिए खुली है’।

उद्देश्य:

राजनीतिक: ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO), लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है, और सदस्य देशों के लिए, समस्याओं का समाधान करने, विश्वास का निर्माण करने तथा दीर्घ-काल में संघर्ष रोकथाम हेतु रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर परामर्श और सहयोग करने में सक्षम बनाता है।

सामरिक- नाटो, विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है। राजनयिक प्रयास विफल होने की स्थिति में, नाटो, के पास संकट-प्रबंधन कार्रवाई करने हेतु सैन्य शक्ति उपलब्ध है। ये सैन्य-कार्रवाई, नाटो की संस्थापक संधि के ‘सामूहिक रक्षा अनुच्छेद’- वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 अथवा संयुक्त राष्ट्र के अधिदेश के तहत, अकेले या अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से- के अंतर्गत की जाती है।

Current Affairs

 

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO)- स्थापना एवं मुख्यालय
  2. नाटो ‘एलाइड कमांड ऑपरेशन’ क्या है?
  3. ‘नाटो’ का सदस्य बनने हेतु शर्ते?
  4. वाशिंगटन संधि का अवलोकन।
  5. ‘उत्तरी अटलांटिक महासागर’ के आसपास के देश।
  6. नाटो में शामिल होने वाला अंतिम सदस्य।

मेंस लिंक:

‘उत्तर अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO) के उद्देश्यों और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

संसदीय समिति द्वारा हाथियों के व्यापार के खिलाफ आवाज


संदर्भ:

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 (Wild Life (Protection) Amendment Bill, 2021) लोकसभा में पेश होने के बाद, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर गठित ‘स्थायी समिति’ के लिए भेजा गया था।

इस ‘स्थायी समिति’ ने हाल ही में, केंद्र सरकार से बंदी हाथियों की बिक्री और खरीद को प्रोत्साहित नहीं करने की सिफारिश की है।

आवश्यकता:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (Wildlife (Protection) Act, 1972) की धारा 43 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, जिसके कब्जे में ऐसा बंदी जीव, जीव-वस्तु (animal article), ट्राफी या असंसाधित ट्राफी (Uncured Trophy) है, जिसके संबंध में उसके पास स्वामित्व प्रमाणपत्र है, ऐसे किसी प्राणी / जीव या प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी का, विक्रय या विक्रय के बदले वाणिज्यिक प्रकृति के प्रतिफल के किसी अन्य ढंग से, कोई अंतरण नहीं करेगा।

संशोधित विधेयक में ‘हाथियों’ के लिए इस धारा से छूट का प्रावधान किया गया है।

विधेयक के संबंध में स्थायी समिति द्वारा उठाए गए अन्य मुद्दे:

  1. स्थायी समिति ने बताया है, कि संशोधित विधेयक में ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम’, 1972 के अंतर्गत निर्धारित तीनों अनुसूचियों में ‘कई प्रजातियां’ गायब हैं।
  2. समिति के अनुसार, कुछ प्रजातियाँ, जो अनुसूची I में होनी चाहिए लेकिन उन्हें अनुसूची II में रखा गया है।
  3. अनुसूची I और अनुसूची II के साथ-साथ अनुसूची III में भी कुछ प्रजातियां पूरी तरह से गायब हैं।
  4. समिति के अनुसार, संसोधन विधेयक “मानव-पशु संघर्ष” संबंधी मामलों का समाधान करने में भी विफल रहा है।

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 के प्रमुख बिंदु:

‘वन्यजीव अधिनियम’ में प्रस्तावित संशोधन विस्तार की दृष्टि से संभवतः अब तक के सबसे व्यापक संशोधन हैं: इसमें वन्य प्रजातियों के व्यापार से लेकर संरक्षित क्षेत्रों में फिल्म निर्माण की अनुमति देने और आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को नियंत्रित करने हेतु कानून संबंधी अधिक क्षेत्रों को शामिल किया गया है।

प्रस्तावित संशोधन में सकारात्मक बिंदु:

  • प्रस्तावित विधेयक में वन्यजीव अपराधों के लिए जुर्माने में वृद्धि की गयी है। उदाहरण के लिए, जिन अपराधों के लिए अब तक 25,000 रुपये का जुर्माना लगता था, उन पर अब 1 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा।
  • लुप्तप्राय वन्यजीव तथा वनस्पति प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के अनुसार, क़ानून में अंतरराष्ट्रीय व्यापार में शामिल प्रजातियों को विनियमित करने संबंधी एक नया और अलग अध्याय शामिल किया गया है।
  • विधेयक में CITES अधिकारियों की पूर्व अनुमति के बिना प्रजातियों को रखने, व्यापार करने और प्रजनन करने पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है।
  • विधेयक में आक्रामक विदेशी प्रजातियों द्वारा उत्पन्न खतरों को भी स्वीकार किया गया है।

प्रस्तावित विधेयक में खामियां एवं संबंधित चिंताएं:

  • विधेयक में क्षेत्रीय ‘आक्रामक प्रजातियों’ (Invasive Species) को शामिल नही किया गया है। इनमे से कुछ प्रजातियां देशीय हो सकती हैं किंतु देश के अन्य हिस्सों में ‘आक्रामक’ हो सकती हैं।
  • संशोधन विधेयक में, अधिनियम के अंतर्गत ‘नाशक’ (Vermin) के रूप में वर्गीकृत की गयी प्रजातियों के लिए किसी अलग अनुसूची का उल्लेख नहीं है। और इससे केंद्र सरकार के लिए ऐसी प्रजातियों को सीधे अधिसूचित करने और उन्हें नष्ट करने हेतु छूट देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। इन प्रजातियों में वर्तमान में अनुसूची II की कुछ प्रजातियां भी शामिल हैं।
  • विधेयक में ‘अनुसूचियों’ में परिवर्तन किए जाने का प्रस्ताव भी किया गया है। मुख्यतः, इसमें सूचियों को “तर्कसंगत” बनाने के लिए अनुसूचियों की संख्या को छह से घटाकर चार कर दी गयी है। लेकिन, इसमें संरक्षित प्रजातियों को निर्दिष्ट करने वाली दो मुख्य स्थानापन्न अनुसूचियां अधूरी हैं।
  • विधेयक में मौजूदा ‘राज्य वन्यजीव बोर्डों’ को समाप्त करने का प्रस्ताव किया गया है, इनके स्थान पर संबंधित राज्य के वन मंत्री की अध्यक्षता में राज्य वन्यजीव बोर्ड की ‘स्थायी समिति’ का गठन किया जाएगा, जिसमे मंत्री द्वारा नामित 10 सदस्य होंगे।
  • ‘राज्य वन्यजीव बोर्ड’ वर्तमान में राज्य स्तर पर वन्यजीवों के संरक्षण और संरक्षण का प्रबंधन करते हैं। बोर्ड की अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं और इसमें राज्य विधानमंडल, गैर सरकारी संगठन, संरक्षणवादी और राज्य वन विभागों और आदिवासी कल्याण के प्रतिनिधि सहित बीस से अधिक सदस्य होते हैं।
  • प्रस्तावित संशोधनों के तहत, ‘वन्य जीव अधिनियम’ के तहत अब हाथियों की व्यावसायिक बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध नहीं रहेगा। इस प्रावधान का दुरुपयोग किए जाने की काफी संभवना है और यह हाथियों के व्यापार को वैध बनाकर, हाथियों की आबादी को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

‘वन्य जीव अधिनियम (संरक्षण) अधिनियम’ (Wild Life Act (Protection) Act) वर्ष 1972 में, संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था:

वन्य जीवन अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

  • राज्य वन्यजीव सलाहकार बोर्ड का गठन;
  • जंगली जानवरों और पक्षियों के शिकार के लिए नियम;
  • अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना;
  • जंगली जानवरों, पशु उत्पादों और ट्राफियों के व्यापार के लिए नियम;
  • अधिनियम के उल्लंघन के लिए न्यायिक रूप से लगाया जाने वाला दंड।

वन्य जीवन अधिनियम के अंतर्गत:

  • अधिनियम की अनुसूची I में सूचीबद्ध लुप्तप्राय प्रजातियों को क्षति पहुंचाना पूरे भारत में प्रतिबंधित है।
  • विशेष सुरक्षा की जरूरत वाली शिकार की जाने वाली प्रजातियों (अनुसूची II), बड़े खेल (अनुसूची III) और छोटे खेल (अनुसूची IV) को लाइसेंस के माध्यम से नियंत्रित किया जाएगा।
  • नाशक / वर्मिन (अनुसूची V) के रूप में वर्गीकृत कुछ प्रजातियों का शिकार, बिना किसी प्रतिबंध के किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों का क्रियान्वयन वन्यजीव वार्डन और उनके कर्मचारियों द्वारा किया जाता है।
  • 1982 में अधिनियम में किए गए एक संशोधन में, पशु आबादी के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए वन्य जीवों को पकड़ने और उनके परिवहन की अनुमति देने वाला एक प्रावधान शामिल किया गया था।

विभिन्न निकायों का गठन:

‘वन्य जीव अधिनियम (संरक्षण) अधिनियम’ (WPA) के तहत राष्ट्रीय और राज्य वन्यजीव बोर्ड, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण जैसे निकायों के गठन का प्रावधान किया गया है।

वन्य जीव संबंधी संवैधानिक प्रावधान:

  • 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 के द्वारा, वन एवं वन्य जीवों तथा पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से हटाकर ‘समवर्ती सूची’ में स्थानांतरित कर दिया गया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) के अनुसार, वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य है।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 48 A के अनुसार, राज्य द्वारा पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने संबंधी प्रयास किए जाएंगे।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘वन्य जीव अधिनियम (संरक्षण) अधिनियम’ (WPA) के अंतिम भाग में छह अनुसूचियां या सूचियां शामिल की गयी हैं? ये अनुसूचियां विभिन्न प्रजातियों पर लागू किए जाने वाली सुरक्षा या प्रबंधन क्रियाओं का वर्णन करती हैं (इन सूचियों मे वर्गीकरण का आधार शामिल नहीं है)।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 काला सागर

काला सागर (Black Sea), जिसे ईक्सिन सागर (Euxine Sea) के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया के प्रमुख जल निकायों और प्रसिद्ध अंतर्देशीय सागरों में से एक है।

  • अटलांटिक महासागर का यह सीमांत सागर, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया के बीच अवस्थित है।
  • यह क्रमशः दक्षिण, पूर्व और उत्तर में पोंटिक, काकेशस और क्रीमियन पर्वतों से घिरा हुआ है।
  • तुर्की जलडमरूमध्य प्रणाली – अर्थात ‘डार्डानेल्स’ (Dardanelles), बोस्पोरस और मरमारा सागर – भूमध्यसागरीय और काला सागर के बीच एक ‘संक्रमणकालीन क्षेत्र’ बनाती है।
  • काला सागर, कर्च जलडमरूमध्य (Strait of Kerch) द्वारा आज़ोव सागर से भी जुड़ा हुआ है।
  • काला सागर के सीमावर्ती देश – रूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, तुर्की, बुल्गारिया और रोमानिया हैं।

चर्चा का कारण:

हाल ही में, रूस के काला सागर बेड़े में शामिल 600 फुट लंबा और 12,500 टन भार वाला एक प्रमुख युद्धपोत ‘मोस्कवा’ सागर में डूब गया है। इसके डूबने का कारण यूक्रेनी मिसाइल हमला माना जा रहा है, किंतु रूस द्वारा इसका कारण युद्धपोत में आग लगना बताया जा रहा है। कारण चाहे कुछ भी हो, यह रूस के लिए एक गंभीर झटका है।

 

भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान

  • भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (Film and Television Institute of India – FTII), भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह पुणे में पूर्ववर्ती ‘प्रभात फिल्म कंपनी’ के परिसर में स्थित है।
  • इसकी स्थापना 1960 में हुई थी।

चर्चा का कारण:

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (FTII) को निर्देश दिया है कि वह ‘वर्णांधता’ / कलर ब्लाइंडनेस (Colour Blindness) से पीड़ित उम्मीदवारों को फिल्म निर्माण और संपादन के पाठ्यक्रमों से बाहर न करे और इसके बजाय अपने पाठ्यक्रम में बदलाव करे।

‘कलर ब्लाइंडनेस’ क्या है?

जब आंखें सामान्य रूप से रंगों को नहीं देख पातीं हैं तो उसे वर्णांधता या कलर ब्लाइंडनेस कहते हैं। इसे कलर डिफिशियंसी भी कहा जाता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति कुछ निश्चित रंगों में अंतर नहीं कर पाता है। सामान्यता उसे हरे और लाल तथा कभी-कभी नीले रंग में भी अंतर समझ में नहीं आता है।

कारण:

वर्णांधता दो तरह से होती है; एक तो विरासत में मिलती है और दूसरा जीवन के किसी भी स्तर पर विकसित हो सकती है।

  • प्रकाश में सभी रंग तरंग दैर्ध्य (Wavelength) होते हैं, ये कॉर्निया के माध्यम से आपकी आंख में प्रवेश करता है और लेंस के माध्यम से गुजरता है और पारदर्शी, जेलीलियर टिशू आपकी आंख (विट्रीस ह्यूमर) में तरंग दैर्ध्य-संवेदनशील कोशिकाओं (शंकु) में मैक्यूलर क्षेत्र में आपकी आंख के पीछे होता है।
  • रेटिना, लघु (नीले), मध्यम (हरे) या लंबे (लाल) प्रकाश की तरंग दैर्ध्य के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • यदि व्यक्ति की आंखें सामान्य हैं, तो आप रंग का अनुभव करते हैं। लेकिन अगर व्यक्ति के शंकु (cone) में एक या अधिक तरंग दैर्ध्य-संवेदनशील रसायनों की कमी है, तो वह लाल, हरे या नीले रंग में अंतर नहीं कर पाएगा।

 

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम

‘भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम’ (National Payments Corporation of India- NPCI), देश में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के परिचालन हेतु एक अम्ब्रेला संगठन है।

  • इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा भारतीय बैंक संघ (IBA) के साथ मिलकर ‘भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम’, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था।
  • वर्तमान में, ‘भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम’ (NPCI), को दस प्रमुख प्रवर्तक बैंकों द्वारा प्रवर्तित किया जाता है।

‘भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम’ (NPCI) के उत्पाद:

  1. RuPay
  2. नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड (National Common Mobility Card- NCMC)
  3. भीम एप (Bharat Interface for Money-BHIM)
  4. एकीकृत भुगतान प्रणाली (United Payments Interface-UPI)
  5. भारत बिल भुगतान प्रणाली (Bharat Bill Payment System-BBPS)

चर्चा का कारण:

हाल ही में, बहुराष्ट्रीय कंपनी ‘मेटा’ के इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप ‘व्हाट्सएप’ को ‘नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ (NPCI) द्वारा इसकी यूपीआई-आधारित भुगतान सेवा ‘व्हाट्सएप पे’ में 60 मिलियन उपयोगकर्ताओं को जोड़ने की मंजूरी प्रदान की गयी है।


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