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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956
- भारत को S-400 प्रशिक्षण उपकरणों की प्राप्ति
सामान्य अध्ययन-III
- आधे पके चावल
- भारत द्वारा गेहूं के निर्यात को बढ़ावा
- भारत में कोयला संकट के कारण
- यमुना में अमोनिया
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
- पॉइज़न पिल डिफेंस
- सर छोटू राम
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (NCMC)
सामान्य अध्ययन–II
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956
(State River Water Disputes Act, 1956)
संदर्भ:
तेलंगाना सरकार ने ‘जल शक्ति मंत्रालय’ (MoJS) से ‘अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम’, 1956 (State River Water Disputes Act, 1956) की धारा 3 के तहत की गई उसकी शिकायत को, कृष्णा नदी जल में तेलंगाना के उचित और न्यायसंगत हिस्से को अंतिम रूप देने के लिए मौजूदा ‘कृष्णा जल विवाद अधिकरण- II (Krishna Water Disputes Tribunal-II) या ‘बृजेश कुमार ट्रिब्यूनल’ को तत्काल भेजने का एक बार फिर अनुरोध किया है।
कृष्णा नदी जल विवाद के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद:
संविधान के अनुच्छेद 262 में अंतर्राज्यीय जल विवादों (Inter-state water dispute) के न्यायनिर्णयन का प्रावधान किया गया है।
- इसके तहत, संसद, कानून द्वारा, किसी भी अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के उपयोग, वितरण या नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत को स्थगित करने का प्रावधान कर सकती है।
- संसद, विधि द्वारा यह प्रावधान भी कर सकती है कि उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय ऐसे किसी विवाद या परिवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा।
देश में जल विवादों का निपटारा करने हेतु संसद द्वारा दो कानून बनाए गए हैं:
- नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 (River Boards Act, 1956):
- इसमें अंतर-राज्यीय नदी और नदी घाटियों के नियमन और विकास के लिए केंद्र सरकार द्वारा नदी बोर्डों के गठन का प्रावधान किया गया है।
- इसके तहत, संबंधित राज्य सरकारों के अनुरोध पर उन्हें सलाह देने के लिए एक नदी बोर्ड का गठन किया जाता है।
- अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 (Inter-State Water Disputes Act, 1956):
यह अधिनियम, किसी अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के संबंध में दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद के निर्णय हेतु केंद्र सरकार को एक ‘तदर्थ न्यायाधिकरण’ (ad hoc tribunal) स्थापित करने का अधिकार देता है।
- इस न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होता है और विवाद से संबंधित पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है।
- इस अधिनियम के तहत, जल विवाद के संबंध में कोई मामला ऐसे न्यायाधिकरण में भेजे जाने के बाद, उस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय और किसी अन्य न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं रह जाता है।
अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 से संबंधित मुद्दे:
- अंतर्राज्यीय जल विवादों को हल करने के लिए विधिक ढांचे का प्रावधान करने वाले ‘अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956’ में कई खामियां पायी गयी हैं, क्योंकि इसमें नदी जल विवादों को हल करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गयी है।
- अधिकरण द्वारा निर्णय किए जाने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं होने, अध्यक्ष या सदस्यों के लिए कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं होने, किसी ‘रिक्ति’ होने पर काम रुकने तथा ‘ट्रिब्यूनल’ की रिपोर्ट को प्रकाशित करने की कोई समय सीमा तय नहीं होने के कारण, जल-विवादों के समाधान में देरी होती है।
- जल संसाधन विकास पर अंतर-राज्यीय सहयोग की सुविधा प्रदान करने हेतु अधिनियमित किया गया ‘नदी बोर्ड अधिनियम 1956’, अपने अधिनियमन के बाद से एक ‘निष्क्रिय-अक्षर’ बना हुआ है।
- देश में सतही जल को ‘केंद्रीय जल आयोग’ (CWC) द्वारा तथा ‘भूजल’ को ‘केंद्रीय भूजल बोर्ड ऑफ इंडिया’ (CGWB) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। ये दोनों निकाय स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, और जल प्रबंधन पर राज्य सरकारों के साथ सामूहिक चर्चा के लिए कोई साझा मंच उपलब्ध नहीं है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों से संबंधित प्रावधानों के बारे में जानते हैं?
- राज्य सूची की प्रविष्टि 17, पानी से संबंधित विषयों अर्थात, जल-आपूर्ति, सिंचाई, नहर, जल निकासी, तटबंधों, जल भंडारण और जल शक्ति से संबंधित है।
- संघ सूची की प्रविष्टि 56, केंद्र सरकार को, लोकहित में इष्टानुकूल संसद द्वारा निर्धारित सीमा तक, अंतर-राज्यीय नदियों के विनियमन और विकास का अधिकार प्रदान करती हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- कृष्णा की सहायक नदियाँ
- गोदावरी की सहायक नदियाँ
- भारत में पूर्व तथा पश्चिम की बहने वाली नदियाँ
- अंतरराज्यीय नदी जल विवाद- प्रमुख प्रावधान
- कृष्णा एवं गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड- गठन, कार्य और अधिदेश
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
भारत को S-400 प्रशिक्षण उपकरणों की प्राप्ति
संदर्भ:
S-400 वायु रक्षा प्रणाली संबंधित प्रशिक्षण उपकरण और सिमुलेटर (Simulators) रूस से भारत पहुंच चुके हैं।
हालांकि, यूक्रेन में जारी युद्ध के कारण, रूस से S-400 की दूसरी रेजिमेंट की डिलीवरी में देरी हो रही है।
भारत के लिए चिंता का विषय:
रूस से आयात करने पर भारत के लिए ‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम‘ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act – CAATSA) के तहत अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जाने का खतरा है। हालांकि अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
S-400 वायु रक्षा प्रणाली एवं भारत के लिए इसकी आवश्यकता:
S-400 ट्रायम्फ (S-400 Triumf) रूस द्वारा डिज़ाइन की गयी एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (surface-to-air missile system- SAM) है।
- यह विश्व में सबसे खतरनाक, आधुनिक एवं परिचालन हेतु तैनात की जाने वाली लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली SAM (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित, ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ (Terminal High Altitude Area Defence – THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।
CAATSA क्या है?
‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम’ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) का प्रमुख उद्देश्य दंडात्मक उपायों के माध्यम से ईरान, उत्तर कोरिया और रूस को प्रत्युत्तर देना है।
- यह क़ानून वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।
- इसके तहत, रूस के रक्षा और ख़ुफ़िया क्षेत्रों में महत्वपूर्ण लेनदेन करने वाले देशों के खिलाफ लगाए जाने वाले प्रतिबंधो को शामिल किया गया है।
लगाये जाने वाले प्रतिबंध:
- अभिहित व्यक्ति (sanctioned person) के लिए ऋणों पर प्रतिबंध।
- अभिहित व्यक्तियों को निर्यात करने हेतु ‘निर्यात-आयात बैंक’ सहायता का निषेध।
- संयुक्त राज्य सरकार द्वारा अभिहित व्यक्ति से वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर प्रतिबंध।
- अभिहित व्यक्ति के नजदीकी लोगों को वीजा से मनाही।
सौदे का महत्व:
S-400 रक्षा प्रणाली समझौते संबंधी निर्णय इस बात का एक बहुत सशक्त उदाहरण है, कि अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को चुनने के लिए, विशेषकर राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों की बात आती है, तब हमारी रक्षा और रणनीतिक साझेदारी कितनी उन्नत है, और भारतीय संप्रभुता कितनी मजबूत है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि जिस लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणाली ‘S-400 ट्रायम्फ’ (S-400 Triumf) भारत द्वारा शामिल किया जा रहा है, वह चीन के पास पहले से ही उपलब्ध है और यह प्रणाली चीन लिए एक शक्तिशाली हथियार बनी हुई है?
प्रीलिम्स लिंक:
- CAATSA किससे संबंधित है?
- CAATSA के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति की शक्तियां।
- लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के प्रकार।
- भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण रक्षा सौदे।
- ईरान परमाणु समझौते का अवलोकन।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
आधे पके चावल
(Parboiled Rice)
हाल ही में, केंद्र सरकार ने अतिरिक्त ‘आधे पके चावलों’ / पैराबॉइल्ड राइस (Parboiled Rice) की खरीद बंद करने के बारे में जानकारी है। देश में तेलंगाना ‘आधे पके चावलों’ जिन्हें ‘उसना चावल’ भी कहा जाता है, का प्रमुख उत्पादक है।
हाल के वर्षों में, ‘उसना चावल’ की मांग में कमी आई है।
‘पैराबॉइल्ड राइस’ के बारे में:
‘उसना चावल’ या पैराबॉइल्ड राइस, ‘गहाने’ / मिलिंग (Milling) से पहले ‘धान की अवस्था’ में आंशिक रूप से उबाले गए चावल होते हैं। चावल को उबालना / उसाना (Parboiling of Rice) कोई नई पद्धति नहीं है, और भारत में प्राचीन काल से इसका उपयोग किया जाता रहा है।
वर्तमान में इसको तैयार करने की प्रक्रिया:
चावल को ‘हल्का उबालने’ अर्थात उसाने (Parboiling) की कई प्रक्रियाएँ हैं। उदाहरण के लिए:
- केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान (Central Food Technological Research Institute – CFTRI), मैसूर द्वारा चावल को पैराबॉइलिंग के एक विधि का उपयोग किया जाता है, जिसमें धान को तीन घंटे के लिए गर्म पानी में भिगोया जाता है। फिर पानी निकाल दिया जाता है और धान को 20 मिनट के लिए ‘स्टीम’ कर दिया जाता है। साथ ही धान को छाया में सुखाया जाता है।
- क्रोमेट में भिगोने की प्रक्रिया (Chromate soaking process): इस प्रक्रिया में ‘क्रोमेट’ का उपयोग किया जाता है। ‘क्रोमेट’ (Chromate), एक प्रकार का नमक जैसा तत्व होता है, जिसके ॠणायनों (Anion) में क्रोमियम और ऑक्सीजन दोनों होते हैं, तथा यह गीले चावल से गंध को दूर करता है।
सभी प्रक्रियाओं में आम तौर पर तीन चरण शामिल होते हैं – भिगोना, भाप देना और सुखाना। इन चरणों से गुजरने के बाद धान को ‘मिलिंग’ के लिए भेजा जाता है।
लाभ:
- ‘हल्का उबालने’ अर्थात उसाने (Parboiling) से चावल सख्त हो जाता है। इससे मिलिंग के दौरान चावल की गिरी के टूटने की संभावना कम हो जाती है।
- हल्का उबालने से चावल में पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ जाती है।
- हलके उबले हुए चावल में कीड़ों और फंगस के प्रति प्रतिरोध क्षमता अधिक होती है।
हानियाँ:
- ‘उसाने’ की प्रक्रिया में चावल का रंग गहरा हो जाता है और लंबे समय तक भिगोने के कारण इसमें अप्रिय गंध भी आ सकती है।
- इसके अलावा, एक ‘पैराबॉइलिंग राइस मिलिंग’ इकाई स्थापित करने के लिए ‘कच्चे चावल की मिलिंग’ इकाई की तुलना में, अधिक निवेश की आवश्यकता होती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
भारत द्वारा गेहूं के निर्यात को बढ़ावा
संदर्भ:
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और इसके बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से ‘काला सागर’ क्षेत्र से होने वाला गेहूं का निर्यात को प्रभावित हुआ है और इससे कई देशों, विशेष रूप से अफ्रीका और पश्चिम एशिया में ‘खाद्य सुरक्षा’ प्रभावित हुई है।
‘वैश्विक गेहूं आपूर्ति’ में हुए व्यवधान के कारण कई अवसर उत्पन्न हुए है, जिन पर भारत के अनाज निर्यातकों – विशेष रूप से अनाज की घरेलू अधिशेष उपलब्धता को देखते हुए- की दृष्टि लगी है।
भारत में गेहूं उत्पादन और खपत:
भारत को चालू सत्र में 11.2 करोड़ टन (112 Million Tonnes) गेहूं का उत्पादन होने की उम्मीद है। सरकार को अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए प्रति वर्ष 24-26 मिलियन टन की आवश्यकता होती है।
भारत में गेहूं निर्यात की स्थिति:
- 2021-2022 वित्तीय वर्ष में गेहूं का निर्यात 7.85 मिलियन टन होने का अनुमान है, जोकि पिछले वर्ष के 2.1 मिलियन टन के निर्यात से लगभग चौगुना होगा।
- इस वित्त वर्ष में 3 अरब डॉलर मूल्य के लगभग 10 मिलियन टन का निर्यात होने की उम्मीद है।
भारत की ओर गेहूं की आपूर्ति के लिए विभिन्न देशों की नजर का कारण:
प्रतिस्पर्धी मूल्य, स्वीकार्य गुणवत्ता, अधिशेष गेहूं की उपलब्धता और भू-राजनीतिक कारणों से अधिकांश देश भारत की ओर रुख कर रहे हैं।
किन नए बाजारों में भारत से खरीदारी की उम्मीद है?
मिस्र, जॉर्डन और पूर्वी अफ्रीका के देशों द्वारा भी भारत से खाद्यान्न प्राप्त करने की संभावना है।
निर्यात की सुविधा के लिए क्या किया जा रहा है?
- वाणिज्य मंत्रालय ने इसे सुविधाजनक बनाने के लिए एक आंतरिक तंत्र स्थापित किया है और शिपमेंट की सुविधा के लिए संबंधित स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी अनुप्रयोगों के लिए कागजी कार्रवाई तैयार की गयी है।
- रेलवे द्वारा गेहूं की ढुलाई के लिए प्राथमिकता के आधार पर ‘रेक’ (Rakes) उपलब्ध करायी जा रही है।
- रेलवे, बंदरगाह और परीक्षण प्रयोगशालाएं, सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘गेहूं निर्यात’ के लिए ‘रूस’ लगभग 15% हिस्सेदारी के साथ बाजार में अग्रणी देश है?
प्रीलिम्स लिंक:
- गेहूं- उत्पादन
- भारत से गेहूं का आयात और निर्यात
- APEDA
मेंस लिंक:
भारत से गेहूं के निर्यात की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
भारत में कोयला संकट का कारण
(Coal Crisis in India)
संदर्भ:
घरेलू कोयले की आपूर्ति में आ रही बाधाओं के कारण देश में उभरते ऊर्जा संकट का सामना करने के लिए, केंद्र सरकार ने ‘सम्मिश्रण उद्देश्यों’ सहित बिजली उत्पादन के लिए आयातित कोयले के उपयोग को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाने का फैसला किया है।
सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों में शामिल हैं:
- घरेलू कोयले की मांग पर दबाव कम करने के लिए सभी कंपनियों को अपने बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता से संचालित करने के लिए कहा गया है।
- केंद्र सरकार ने दिसंबर 2022 तक आयातित कोयले की लागत को ‘पास-थ्रू’ (Pass-Through) के रूप में अनुमति देने का निर्णय लिया है।
- सरकार ने सभी राज्यों से विवेचित कोयला स्टॉक मानदंडों के अनुसार- बिजली संयंत्र में पर्याप्त कोयला स्टॉक बनाए रखने के लिए मात्र 4% के बजाय 10% की सीमा तक ‘सम्मिश्रण उद्देश्यों’ के लिए आयातित कोयले का उपयोग करने के लिए कहा है।
संबंधित प्रकरण:
भारत, विश्व में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक, उपभोक्ता और उत्पादक देश है, और इसके पास कोयले का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। लेकिन बिजली की मांग में भारी वृद्धि- जोकि महामारी से पहले के स्तर को पार कर चुकी है- का मतलब है कि राज्य द्वारा संचालित ‘कोल इंडिया’ द्वारा की जा रही कोयले की आपूर्ति अब पर्याप्त नहीं है।
कोयला-संकट की वर्तमान स्थिति:
- कोयला-संकट की वर्तमान स्थिति “टच एंड गो” अर्थात ‘उपभोग करो और ख़तम’ जैसी है, और यह अगले छह महीने में काफी “असहज” हो सकती है।
- भारत के ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले का भंडार, केवल कुछ दिनों के ईंधन की आपूर्ति कर सकता है।
- विद्युत् मंत्रालय द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, देश के ताप विद्युत संयंत्रों में पिछले महीने के अंत में कोयले का स्टॉक मानक आवश्यकता का केवल 36% था जो केवल लगभग 11 दिनों के लिए पर्याप्त होगा।
- यह स्थिति काफी चिंताजनक है, क्योंकि भारत के कुल विद्युत् स्रोतों में कोयला-चालित संयंत्रों का योगदान लगभग 70% हैं।
- यह उम्मीद की जाती है कि अप्रैल 2022 में उर्जा की चरम मांग 210 GW तक बढ़ सकती है।
- इसलिए, सभी कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के पास पर्याप्त कोयला भंडार होना चाहिए, जिससे ‘पीक आवर्स’ के दौरान लगभग 160 गीगावाट तक कोयला आधारित बिजली की आपूर्ति हो सके।
इस कमी के कारण:
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोयले की उच्च कीमतों के कारण आयात में तेज गिरावट।
- महामारी की दूसरी लहर के बाद बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधियों ने कोयले की मांग में हुई वृद्धि।
कमी का प्रभाव:
- अगर उद्योगों को बिजली की कमी का सामना करना पड़ता है, तो इससे भारत की आर्थिक बहाली में देरी हो सकती है।
- कुछ व्यवसायों को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ सकती है।
- भारत की आबादी और अविकसित ऊर्जा बुनियादी ढांचे को देखते हुए बिजली संकट काफी लंबा और कठिन हो सकता है।
आगे की कार्रवाई:
- ‘कोल इंडिया’ और ‘एनटीपीसी लिमिटेड’ द्वारा कोयला खानों से उत्पादन बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है।
- सरकार द्वारा ‘आपूर्ति’ में वृद्धि करने हेतु और अधिक खदानों को चालू करने का प्रयास किया जा रहा है।
- अधिक वित्तीय लागत होने के बावजूद, भारत को अपने आयात को बढ़ाने की आवश्यकता होगी।
कोयला क्षेत्र में हालिया सुधार:
- कोयले के वाणिज्यिक खनन की अनुमति दी गयी है, निजी क्षेत्र को 50 ब्लॉकों में खनन करने का प्रस्ताव दिया गया है।
- बिजली संयंत्रों को “धोए गए” कोयले का उपयोग करने के लिए आवश्यक विनियमन को हटाकर इस क्षेत्र में प्रवेश मानदंडों को उदार बनाया जाएगा।
- निजी कंपनियों को ‘निश्चित लागत’ के स्थान पर ‘राजस्व बंटवारे’ के आधार पर कोयला ब्लॉकों की पेशकश की जाएगी।
- राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से ‘कोयला गैसीकरण/द्रवीकरण’ को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- कोल इंडिया की कोयला खदानों से ‘कोल बेड मीथेन’ (CBM) निष्कर्षण अधिकार नीलाम किए जाएंगे।
आगे की चुनौतियां:
- कोयला, भारत में सबसे महत्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जीवाश्म ईंधन है। यह देश की ऊर्जा जरूरतों के 55% की आपूर्ति करता है। देश की औद्योगिक विरासत, स्वदेशी कोयले पर टिकी हुई है।
- पिछले चार दशकों में भारत में वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत में लगभग 700% की वृद्धि हुई है।
- भारत में वर्तमान प्रति व्यक्ति वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत लगभग 350 किग्रा/वर्ष है जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।
- बढ़ती आबादी, वृद्धिशील अर्थव्यवस्था और जीवन की बेहतर गुणवत्ता की तलाश से प्रेरित, भारत में ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की सीमित भंडार क्षमता, जलविद्युत परियोजना पर पर्यावरण संरक्षण प्रतिबंध और परमाणु ऊर्जा की भू-राजनीतिक धारणा को ध्यान में रखते हुए, कोयला, भारत के ऊर्जा परिदृश्य के केंद्र पर बना रहेगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने ‘राष्ट्रीय कोयला सूचकांक’ के बारे में सुना है? इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- NCI के बारे में।
- प्रमुख विशेषताएं।
- कोयले के प्रकार।
- कोयला गैसीकरण क्या है?
- यह किस प्रकार किया जाता है?
- इसके उपोत्पाद (Byproducts)
- गैसीकरण के लाभ?
- भूमिगत कोयला गैसीकरण क्या है?
- कोयला द्रवीकरण क्या है?
- द्रवीकरण के लाभ
मेंस लिंक:
कोयला गैसीकरण एवं द्रवीकरण पर एक टिप्पणी लिखिए, तथा इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
यमुना में अमोनिया
(Ammonia in Yamuna)
संदर्भ:
16 अप्रैल को यमुना नदी में अमोनिया (Ammonia) का स्तर अधिक हो जाने से दिल्ली के कुछ हिस्सों में एक बार फिर से पानी की आपूर्ति बाधित हो गई।
उक्त तारीख को नदी में ‘अमोनिया’ की सांद्रता 7.4 पीपीएम (Parts Per Million) थी, जो दिल्ली जल बोर्ड के जल उपचार संयंत्र (water treatment plants – WTPs) द्वारा संसाधित किए जा सकने वाले लगभग ‘1 पीपीएम’ के स्तर का सात गुना थी।
पानी में अमोनिया की स्वीकार्य सीमा:
भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) के अनुसार, पीने के पानी में अमोनिया की अधिकतम स्वीकार्य सीमा ‘0.5 पार्ट पर मिलियन’ (Parts Per Million-PPM) है।
अमोनिया एवं इसके प्रभाव:
- अमोनिया एक रंगहीन गैस है और इसका उपयोग उर्वरक, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, रंजक और अन्य उत्पादों के उत्पादन में औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
- यह हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन से मिलकर बनती है। द्रव अवस्था में इसे अमोनियम हाइड्रॉक्साइड कहा जाता है।
- यह तीक्ष्ण गंध-युक्त एक अकार्बनिक यौगिक है।
- अमोनिया, प्राकृतिक रूप से वातावरण में जैविक अपशिष्ट पदार्थ के विघटन से निर्मित होती है।
- यह हवा की तुलना में काफी हल्की होती है।
संदूषण (Contamination):
- यह औद्योगिक अपशिष्टों अथवा सीवेज संदूषण के माध्यम से मृदा अथवा सतही जल स्रोतों में पहुँच जाती है।
- जल में अमोनिया की मात्रा 1 ppm से अधिक होने पर, जल मछलियों के लिए विषाक्त हो जाता है।
- मनुष्यों द्वारा 1 ppm या उससे अधिक के अमोनिया के स्तर वाले जल को लंबे समय तक लेने से आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
यमुना में अमोनिया की मौजूदगी के कारण:
यमुना नदी में अमोनिया की अधिक मात्रा के लिए, हरियाणा के पानीपत और सोनीपत जिलों में डाई यूनिट, डिस्टिलरी से निकले अपशिष्ट व संदूषित पदार्थों तथा नदी के इस भाग में कुछ बिना सीवर वाली कालोनियों द्वारा अशोधित गंदे पानी का प्रवाह को मुख्य कारण माना जाता है।
आवश्यकता:
- यमुना नदी में हानिकारक अपशिष्टों को डालने अथवा प्रवाहित करने के खिलाफ दिशानिर्देशों का सख्ती से कार्यान्वयन किया जाना आवश्यक है।
- अशोधित गंदे पानी के यमुना में प्रवाह पर रोक सुनिश्चित की जानी चाहिए।
- सतत न्यूनतम प्रवाह, जिसे पारिस्थितिक प्रवाह भी कहा जाता है, को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। पानी की इस न्यूनतम मात्रा को नदी के पूरे विस्तार में जलीय तथा ज्वारनदमुखीय परितंत्रो एवं मानव-आजीविका के वहन हेतु सदैव प्रवाहित होना चाहिए।
आगे की चुनौतियां:
- दिल्ली, पानी की 70 प्रतिशत आवश्यकताओं के लिए हरियाणा पर निर्भर है।
- हरियाणा में बड़ी संख्या में लोग कृषि-कार्यों में सलंग्न हैं तथा इससे हरियाणा के पास पानी की अपनी समस्या है।
- दोनों राज्यों के मध्य यमुना में सदैव 10 क्यूमेक्स (क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड) प्रवाह बनाए रखने के पीछे अक्सर विवाद रहता है।
- पिछले एक दशक में दोनों राज्य, जल-बटवारे के लिए कई बार अदालतों में निर्णय के लिए अपील कर चुके है।
- नदी में न्यूनतम पारिस्थितिक प्रवाह की कमी होने से अन्य प्रदूषकों का संचय होता है। यमुना के अशोधित पानी को उत्तरी पूर्वी दिल्ली में शोधित किया जाता है, इस क्षेत्र से काफी मात्रा में अनुपचारित सीवेज तथा घरों से निकाला गंदा पानी, गंदे नाले तथा गैर-कानूनी कारखानों से संदूषित पदार्थ युमना में प्रवाहित होते है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद 21 में ‘जीवन के अधिकार’ के व्यापक शीर्षक के तहत, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार, और प्रदूषण मुक्त जल का अधिकार से संबंधित प्रावधान किए गए हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- यमुना नदी कितने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से होकर बहती है?
- यमुना की सहायक नदियाँ
- पीने के पानी में अमोनिया की अधिकतम स्वीकार्य सीमा?
- सल्फेट का स्वीकार्य स्तर
- पानी की कठोरता की वांछनीय सीमा
- मल कोलिफॉर्म का वांछनीय स्तर
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
पॉइज़न पिल डिफेंस
(‘Poison Pill’ defence)
हाल ही में, ‘ट्विटर’ ने एलोन मस्क द्वारा 43 बिलियन डॉलर से अधिक में कंपनी को खरीदने के प्रस्ताव के जबाव में ‘पॉइज़न पिल’ (Poison Pill) के रूप में प्रचलित एक कॉर्पोरेट हथियार का इस्तेमाल किया है। ‘पॉइज़न पिल’ किसी कंपनी के जबर्दस्ती किए जाने वाले अधिग्रहण को रोकने की एक रक्षात्मक रणनीति है। इसके बारे में ‘बोर्डरूम’ के सदस्य तो परिचित होते हैं, किंतु रोजमर्रा के निवेशकों इसके बारे में कम जानते हैं।
- इस ‘रक्षात्मक तंत्र’ को, कंपनी के नेताओं द्वारा कॉर्पोरेट हमलावरों और शत्रुतापूर्ण अधिग्रहणों का सामना करते हुए, अपने व्यवसायों को किसी अन्य उद्यम, व्यक्ति या समूह द्वारा अधिग्रहित किए जाने से बचाने की कोशिश के दौरान 1980 के दशक में विकसित किया गया था।
- ‘पॉइज़न पिल’ एक युक्ति है, जिसके माध्यम से आम तौर पर किसी संभावित अधिग्रहणकर्ता के लिए लक्षित कंपनी को कम-रुचिकर बना दिया जाता है। इस तरकीब के प्रयोग से, लक्षित कंपनी के शेयरों को अधिग्रहणकर्ता द्वारा खरीदने के लिए एक निश्चित सीमा से ऊपर अधिक महंगा बना दिया जाता है।
सर छोटू राम
1881 में जन्मे, वह ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रांत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे।
- उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्पीड़ित समुदायों के हित के लिए काम किया। इस उपलब्धि के लिए, उन्हें 1937 में नाइट की उपाधि प्रदान की गयी।
- वे नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी के सह-संस्थापक थे।
- उनके प्रयासों से दो कृषि कानून लागू किये गए थे- 1934 का पंजाब ऋणग्रस्तता राहत अधिनियम तथा 1936 का पंजाब कर्जदार सुरक्षा अधिनियम। इन कानूनों ने किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराया और जमीन पर जोतदार के अधिकार को बहाल किया।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (NCMC)
प्राकृतिक आपदाओं के मद्देनजर राहत उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु, भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee– NCMC) का गठन किया गया है।
- इसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा की जाती है।
- अन्य सदस्य: सभी संबंधित मंत्रालयों / विभागों तथा संगठनों के सचिव इस समिति के सदस्य होते हैं।
- NCMC, आवश्यक समझे जाने पर, संकट प्रबंधन समूह के लिए दिशा-निर्देश जारी करती है।
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