[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 25 March 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-I

  1. रेजांग ला की लड़ाई और अहीर रेजीमेंट की मांग

सामान्य अध्ययन-II

  1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371
  2. पूर्वस्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु यूजीसी की ‘सामान्य प्रवेश परीक्षा’
  3. 1947 में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव

सामान्य अध्ययन-III

  1. आपदा प्रबंधन अधिनियम
  2. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. राज्य विधायिकाओं को अन्य राज्यों द्वारा आयोजित लॉटरी पर कर लगाने का अधिकार
  2. भारत का निर्यात $400- बिलियन के वार्षिक लक्ष्य के पार
  3. डेयरटूऐराडी टीबी 
  4. रिजर्व बैंक इनोवेशन हब

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय:18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

रेजांग ला की लड़ाई और अहीर रेजीमेंट की मांग


(Battle of Rezang La and the Ahir Regiment demand)

संदर्भ:

अहीर समुदाय के सदस्यों द्वारा भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट’ (Ahir Regiment) का गठन किए जाने की मांग की जा रही है।

विरासत:

  • ‘अहिरवाल क्षेत्र’ में दक्षिणी हरियाणा के रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुड़गांव जिले शामिल हैं और यह क्षेत्र 1857 के विद्रोह के अहीर नायक राव तुला राम से जुड़ा हुआ है।
  • 1962 में चीन के साथ हुई ‘रेजांग ला की लड़ाई’ (Battle of Rezang La) में हरियाणा के अहीर सैनिकों की बहादुरी की कहानी के बाद यह समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया था।
  • इस क्षेत्र से, परंपरागत रूप से भारतीय सेना में बड़ी संख्या में सैनिक शामिल होते हैं।

अहीर समुदाय की मांग:

इस समुदाय के सदस्य लंबे समय से तर्क देते आ रहे हैं कि, अहीर अपने नाम पर एक पूर्ण इन्फैंट्री रेजिमेंट के लायक हैं, और मौजूदा कुमाऊं रेजिमेंट में केवल दो बटालियन और अन्य रेजिमेंट में एक निश्चित प्रतिशत उनके लिए पर्याप्त नहीं है।

Current Affairs

 

इस मांग पर सेना की प्रतिक्रिया:

भारतीय सेना ने किसी भी नए वर्ग या जाति आधारित रेजिमेंट की मांग को खारिज कर दिया है। सेना का कहना है, कि डोगरा रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट, राजपूत रेजीमेंट और पंजाब रेजीमेंट जैसी जातियों और क्षेत्रों पर आधारित पुरानी रेजीमेंट जारी रहेंगी, अहीर रेजीमेंट, हिमाचल रेजीमेंट, कलिंग रेजीमेंट, गुजरात रेजीमेंट या किसी भी आदिवासी रेजिमेंट की मांग पर विचार नहीं किया जाएगा।

पृष्ठभूमि:

18 नवंबर, 2021 को ‘रेजांग ला’ की लड़ाई (Battle of Rezang La) को 59 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर रक्षा मंत्री द्वारा लद्दाख के चुशुल में पुनर्निर्मित रेजांग ला स्मारक का उद्घाटन किया गया। इसके बाद से ‘अहीर रेजिमेंट’ की मांग तेज हो गयी हैं।

‘रेजांग ला’ की अवस्थिति:

‘रेजांग ला’ (Rezang La) लद्दाख में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control LAC) पर स्थित एक पहाड़ी दर्रा है।

  • यह दर्रा ‘चुशुल’ गाँव और स्पैंग्गुर त्सो (Spanggur Tso) झील के बीच अवस्थित है। स्पैंग्गुर त्सो झील,  भारतीय और चीनी दोनों क्षेत्रों में फैली हुई है।
  • ‘रेजांग ला’ में 18 नवंबर 1962 को एक वीरतापूर्ण युद्ध लड़ा गया था।

इस लड़ाई के बारे में:

1962 के भारत-चीन युद्ध में 13 कुमाऊं रेजीमेंट के सैनिकों ने ‘रेजांग ला’ में हुई लड़ाई में चीन की ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ को कई मुठभेड़ों में हराया था।

संख्या में काफी कम होने के बाबजूद, रेजीमेंट के सैनिकों ने अत्यधिक कम तापमान और सीमित गोला-बारूद के साथ लड़ाई लड़ी और आख़िरी सैनिक के जीवित रहने तक युद्ध जारी रखा।

इस क्षेत्र का महत्व:

रेजांग ला, सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ‘चुशुल घाटी’ की सुरक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण है। किसी आक्रमणकारी के इस स्थान तक पहुचने के बाद, उसे ‘लेह’ तक का खुला मार्ग मिल सकता है। 

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत-चीन सीमा विवाद (Indo- China border dispute) के बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. रेजांग ला की लड़ाई’ के बारे में
  2. एलओसी’ (LoC) क्या है और इसे किस प्रकार निर्धारित किया जाता है, इसका भौगोलिक विस्तार और महत्व?
  3. ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) क्या है
  4. नाथू ला कहाँ है?
  5. पैंगोंग त्सो कहाँ है?
  6. अक्साई चिन पर नियंत्रण 

मेंस लिंक:
भारत के लिए ‘रेजांग ला’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना। 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371


(Article 371 of the Constitution)

संदर्भ:

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ‘अनुच्छेद 371 (H)’ में संशोधन की मांग करने हेतु शीघ्र ही एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की योजना बना रहे हैं। ‘अनुच्छेद 371 (H)’ में अरुणाचल प्रदेश से संबंधित विशेष प्रावधान हैं, जिनमे संशोधन करके राज्य को, संविधान के अनुच्छेद 371 (A) के तहत नागालैंड के लिए विशेष प्रावधानों के बराबर रखा जा सकेगा। 

अन्य मांगें:

राज्य से संबंधित विशेष प्रावधानों को, ‘अनुच्छेद 371 (H)’ में संशोधन करके इसमें, राज्य की जनजातियों के धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं के संरक्षण, राज्य की जनजातियों के प्रथागत कानून और प्रक्रिया, जनजातियों के प्रथागत कानूनों के अनुसार नागरिक और आपराधिक प्रशासन संबंधी प्रावधान, तथा राज्य की भूमि एवं संसाधनों पर स्थानीय लोगों के स्वामित्व और हस्तांतरण की सुरक्षा, को शामिल करते हुए और मजबूत किया जाना चाहिए। 

जनजातीय समुदायों के अधिकारों और प्रथागत कानूनों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है।

‘अनुच्छेद 371’ (Article 371) के बारे में:

संविधान के भाग XXI में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधानशीर्षक के अंतर्गत अनुच्छेद 369 से 392 तक शामिल हैं। 

  • संविधान के अनुच्छेद 371 में, पूर्वोत्तर के छह राज्यों सहित कुल 11 राज्यों के लिए “विशेष प्रावधान” किए गए हैं।
  • अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371, संविधान के लागू होने के समय, अर्थात 26 जनवरी, 1950, संविधान का हिस्सा थे; तथा अनुच्छेद 371A से लेकर 371J तक, संविधान में बाद में शामिल किए गए।

संक्षिप्त अवलोकन:

  1. अनुच्छेद 371 (महाराष्ट्र और गुजरात):

निम्नलिखित के लिए राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व है-

विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र तथा गुजरात में सौराष्ट्र एवं कच्छ के लिये ‘पृथक् विकास बोर्ड’ स्थापित करना; उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय के लिये धन का समान आवंटन और राज्य सरकार के अंतर्गत तकनीकी शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण हेतु पर्याप्त सुविधाएँ एवं रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से समान व्यवस्था सुनिश्चित करना।

  1. अनुच्छेद 371A (13वां संशोधन अधिनियम, 1962), नागालैंड:

वर्ष 1960 में केंद्र और नागा पीपुल्स कन्वेंशन के मध्य 16 बिंदुओं के समझौते के बाद संविधान में यह अनुच्छेद शामिल किया गया था। इस समझौते के फलस्वरूप वर्ष 1963 में नागा लैंड का निर्माण हुआ।

संसद, नागा धर्म या सामाजिक प्रथाओं, नागा प्रथागत कानून एवं प्रक्रिया, नागा प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों, और राज्य विधानसभा की बगैर सहमति के भूमि और संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण के मामलों में, कानून नहीं बना सकती है। 

  1. अनुच्छेद 371B (22वां संशोधन अधिनियम, 1969), असम:

इसके अंतर्गत भारत का राष्ट्रपति, राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से जिन्हें वह उचित समझता है, को शामिल करने हुए एक समिति के गठन और उसके कॄत्यों के लिए प्रावधान कर सकता है। 

  1. अनुच्छेद 371C (27वां संशोधन अधिनियम, 1971), मणिपुर:

राष्ट्रपति, राज्य की विधान सभा की एक समिति के गठन और कॄत्यों के लिए, जो समिति उस राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित उस विधान सभा के सदस्यों से मिलकर बनेगी, राज्य की सरकार के कामकाज को सुनिाश्चित करने के उद्देश्य से, राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिए उपबंध कर सकेगा। 

  1. अनुच्छेद 371D (32वां संशोधन अधिनियम, 1973; आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा प्रतिस्थापित), आंध्र प्रदेश और तेलंगाना:

राष्ट्रपतिसंपूर्ण आंध्र प्रदेश राज्य की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उस राज्य के विभिन्न भागों के लोगों के लिए लोक नियोजन के विषय में और शिक्षा के विषय में साम्यापूर्ण अवसरों और सुविधाओं का उपबंध कर सकेगा। 

राष्ट्रपति, राज्य सरकार से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह राज्य की सिविल सेवा में पदों के किसी वर्ग या वर्गों का, अथवा राज्य के अधीन सिविल पदों के किसी वर्ग या वर्गों का, राज्य के भिन्न भागों के लिए भिन्न स्थानीय काडरों में गठन करे, और ऐसे पदों को धारण करने वाले व्यक्तियों को, इस प्रकार गठित स्थानीय काडर आबंटित करे। 

  1. अनुच्छेद 371E:

संसद् विधि द्वारा, आंध्र प्रदेश राज्य में एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपबंध कर सकेगी। लेकिन इस भाग के अन्य उपबंधों के अर्थ में यह “विशेष प्रावधान” नहीं है।

  1. अनुच्छेद 371F (36वां संशोधन अधिनियम, 1975), सिक्किम:

सिक्किम की विधान सभा के सदस्य, लोक सभा में सिक्किम के प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे। सिक्किम की जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिये, संसद को यह अधिकार दिया गया है कि सिक्किम विधानसभा में कुछ सीटें इन्हीं अनुभागों से आने वाले व्यक्तियों द्वारा भरी जाएँ, ऐसा प्रावधान कर सके।

  1. अनुच्छेद 371G (53वां संशोधन अधिनियम, 1986), मिजोरम:

इस प्रावधान के अनुसार, संसद ‘मिज़ो’, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, धार्मिक एवं सामाजिक न्याय के कानून, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में, भूमि के स्वामित्व एवं हस्तांतरण संबंधी मुद्दों पर कानून नहीं बना सकती- जब तक कि राज्य विधानसभा ऐसा करने हेतु निर्णय नहीं लेती है। 

  1. अनुच्छेद 371H (55वां संशोधन अधिनियम, 1986), अरुणाचल प्रदेश:

राज्यपाल पर अरुणाचल प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था सुनिश्चित करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्री परिषद से परामर्श कर व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा और इसके प्रति वह जवाबदेह नहीं होगा। 

  1. अनुच्छेद 371J (98वां संशोधन अधिनियम, 2012), कर्नाटक:

इस अनुच्छेद में, हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए पृथक विकास बोर्ड का प्रावधान किया गया है। उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय हेतु समान मात्रा में धन आवंटित किया जाएगा और सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में इस क्षेत्र के लोगों को समान अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।

हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नौकरियों और शैक्षिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों तथा राज्य सरकार के संगठनों में संबंधित व्यक्तियों के लिये जो जन्म या मूल-निवास के संदर्भ में उस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, आनुपातिक आधार पर सीटें आरक्षित किया जा सकता है।

  1. 11. अनुच्छेद 371I (गोवा):

अनुच्छेद 371I गोवा से संबंधित है, लेकिन इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे विशेषसमझा जा सके।

Current Affairs

 

महत्व:

इन सभी प्रावधानों में अलग-अलग राज्यों की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है, और इन राज्यों के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले विशिष्ट सुरक्षा उपायों की एक विस्तृत सूची निर्धारित की गयी है।

371 से 371J तक, इन सभी अनुच्छेदों में, अनुच्छेद 371I, जो गोवा से संबंधित है, इस अर्थ में विशिष्ट है कि इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे “विशेष” समझा जा सके। अनुच्छेद 371E, जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से संबंधित है, वह भी “विशेष” नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय। 

पूर्वस्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु यूजीसी की ‘सामान्य प्रवेश परीक्षा’


(UGC’s Common Entrance Test for Undergrad Admissions)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ (University Grants Commission – UGC) द्वारा की गयी घोषणा के अनुसार- अब से सभी केंद्रीय वित्त पोषित विश्वविद्यालयों के ‘स्नातक पाठ्यक्रमों’ में प्रवेश, केवल एक ‘सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’ (Common University Entrance Test – CUET) के आधार पर दिया जाएगा।

छात्रों और विश्वविद्यालयों के लिए इसका निहितार्थ:

  • देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को, ‘सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’ (CUET) में प्राप्त अंकों के आधार पर छात्रों को प्रवेश देना होगा।
  • ‘स्नातक पाठ्यक्रमों’ में प्रवेश हेतु कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा के अंकों पर अब विचार नहीं किया जाएगा।

सीयूईटी (CUET) क्या है?

  • ‘सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’ (Common University Entrance Test – CUET), ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ (National Testing Agency – NTA) द्वारा आयोजित की जाने वाली एक कम्प्यूटरीकृत परीक्षा होगी।
  • परीक्षा के बाद, NTA द्वारा एक मेरिट सूची तैयार की जाएगी जिसके आधार पर केंद्र द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालय छात्रों को प्रवेश देंगे।
  • यह प्रवेश परीक्षा सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य होगी और इसे राज्य/निजी/डीम्ड विश्वविद्यालयों द्वारा भी अपनाया जा सकता है।
  • प्रवेश परीक्षा 13 भाषाओं में दी जा सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को CUET से छूट दी गई है; उनके प्रवेश मौजूदा अधिसंख्य (Supernumerary) आधार पर किए जाएंगे।

आवश्यकता:

  • देश में विभिन्न परीक्षा बोर्डों के अभ्यर्थियों के लिए समान अवसर प्रदान करने के लिए इस प्रकार की प्रवेश पद्धति की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ परीक्षा बोर्डों द्वारा अपने छात्रों को अलग तरह से अंक दिए जाने की संभावना बनी रहती है। (कुछ बोर्ड, अंकन में अन्य परीक्षा बोर्डों की तुलना में अधिक उदार हैं, और यह उनके छात्रों को दूसरों पर अनुचित लाभ देता है।) 
  • यह प्रणाली, छात्रों को “प्रवेश के लिए असंभव रूप से उच्च कट-ऑफ के तनाव” से बचाएगा। पिछले साल, दिल्ली विश्वविद्यालय के आठ कॉलेजों में 11 पाठ्यक्रमों के लिए 100% अंकों पर कट-ऑफ निर्धारित की गयी थी।
  • इससे, माता-पिता और छात्रों पर वित्तीय बोझ कम होने की उम्मीद है, क्योंकि उम्मीदवारों को केवल एक परीक्षा लिखनी होगी।

‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ / ‘नेशनल टेस्टिंग एजेंसी’ (NTA):

बजट घोषणा 2017-18 के अनुसरण में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नवंबर 2017 में, देश के ‘उच्च शिक्षा संस्थानों’ (HEI) हेतु प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए एक स्वायत्त और आत्मनिर्भर मुख्य परीक्षा संगठन के रूप में ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ (National Testing Agency – NTA) की स्थापना करने को मंजूरी दी गयी थी।

संरचना:

  • ‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ (NTA) का अध्यक्ष एक प्रख्यात शिक्षाविद् होगा, जिसकी नियुक्ति ‘शिक्षा मंत्रालय’ द्वारा की जाएगी।
  • इसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer-CEO)  महानिदेशक होगा, और इसकी नियुक्ति  सरकार द्वारा की जाएगी।
  • इसमें एक ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ होगा, जिसमें परीक्षा करवाने वाले संस्थानों के सदस्य शामिल होंगे।
  • महानिदेशक की सहायता के लिए, शिक्षाविदों/विशेषज्ञों की अध्यक्षता में 9 कार्यक्षेत्र (Verticals) गठित  किए जाएंगे।

वित्तीयन:

‘राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी’ को पहले वर्ष में अपना संचालन शुरू करने के लिए, भारत सरकार की ओर से 25 करोड़ रुपये का एकमुश्त अनुदान दिया जाएगा। इसके बाद, यह एजेंसी’ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. शिक्षा से संबंधित मुद्दे।
  2. CUET
  3. UGC
  4. सामान्य प्रवेश परीक्षा

मेंस लिंक:

सामान्य विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा’ (CUET) के महत्व पर चर्चा कीजिए।

https://indianexpress.com/article/explained/explained-cuet-indias-campuses-7831832/lite/

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

1947 में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव


(UN Resolution on Kashmir in 1947)

संदर्भ:

क्या भारत ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र से संपर्क करने के लिए गलत रास्ता चुना था? इस सवाल पर काफी बहसें हो चुकी हैं। 2019 में, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि, यदि नेहरू ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 35 के बजाय, अनुच्छेद 51 के तहत संयुक्त राष्ट्र में ले जाया होता , तो इसके परिणाम अलग हो सकते थे।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 35: 

(Article 35 of the UN Charter)

अनुच्छेद 35 में केवल यह प्रावधान है कि- संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य, किसी विवाद को ‘सुरक्षा परिषद’ या ‘महासभा’ में ले जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 51:

इस अनुच्छेद के अनुसार, यदि संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के ऊपर हमला किया जाता है, तो उस सदस्य को ‘जब तक कि ‘सुरक्षा परिषद’ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक उपाय नहीं किए जाते हैं’, “व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से आत्मरक्षा का अंतर्निहित अधिकार” है।

क्या आप ‘संयुक्त राष्ट्र के संकल्प 47’ के बारे में जानते हैं?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का संकल्प 47 (Resolution 47 of the UNSC), जम्मू और कश्मीर राज्य पर विवाद के संबंध में भारत सरकार द्वारा जनवरी 1948 में सुरक्षा परिषद में की गयी शिकायत पर केंद्रित है।

अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तानी सेना के सैनिकों द्वारा सादे कपड़ों में और कबीलाईयों के रूप में हमला करने के बाद, कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और भारत के साथ राज्य के ‘विलय पत्र’ (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए थे। कश्मीर में हुए पहले युद्ध (1947-1948) के बाद, भारत ने कश्मीर में जारी संघर्ष को ‘सुरक्षा परिषद’ के सदस्यों के ध्यान में लाने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ से संपर्क किया था।

इस मामले का निरीक्षण करने वाले UNSC के सदस्य:

‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ ने इस मामले का निरीक्षण करने हेतु, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ छह अन्य सदस्यों को शामिल करते हुए ‘जांच परिषद’ के आकार में वृद्धि की। 

इस ‘जांच परिषद् में पांच स्थायी सदस्यों- चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस- के अलावा, गैर-स्थायी सदस्य – अर्जेंटीना, बेल्जियम, कनाडा, कोलंबिया, सीरिया और ‘यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य’ शामिल थे।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) में घटनाक्रम:

  1. इस मामले पर भारत का यह कहना था, कि वह जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह करने के लिए तैयार है। जनमत संग्रह में, लोगों की इच्छा जानने और मतदान के परिणामों को स्वीकार करने के लिए एक विशिष्ट प्रस्ताव पर सभी मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से मतदान किया जाता है। 
  2. पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में हो रही लड़ाई में अपनी संलिप्तता से इनकार किया और उलटे भारत पर आरोप लगाया।
  3. इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा, संकल्प 39 (1948) के तहत, “सुविधा की दृष्टि से … शांति और व्यवस्था की बहाली और एक जनमत संग्रह कराने के लिए, दोनों सरकारों द्वारा, एक दूसरे के सहयोग से और साथ में कार्य करते हुए कहा गया, और इसके अतिरिक्त आयोग को ‘संकल्प’ के तहत की गई कार्रवाई के बारे में ‘सुरक्षा परिषद’ को सूचित करने का निर्देश दिया गया।”
  4. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने, संघर्ष को समाप्त करने और ‘जम्मू-कश्मीर, भारत या पाकिस्तान में शामिल होगा या नहीं’ इस का निर्णय करने हेतु “स्वतंत्र और निष्पक्ष जनमत संग्रह” के लिए स्थितियां बनाने का भी आदेश दिया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने पाकिस्तान को क्या करने का आदेश दिया?

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) ने पाकिस्तान को, “लड़ाई के उद्देश्य से राज्य में घुस चुके अपने कबीलाई लड़ाकों और पाकिस्तानी नागरिकों को वापस बुलाने तथा भविष्य में घुसपैठ को रोकने के लिए और “राज्य में लड़ाई जारी रखने वालों को सामग्री सहायता प्रदान करने” पर रोक लगाने का आदेश दिया।
  • सुरक्षा परिषद् द्वारा पाकिस्तान को ‘शांति और व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग करने’ का भी आदेश दिया गया था।

भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के आदेश:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) द्वारा भारत के लिए अधिक व्यापक आदेश जारी किए गए।

  1. सुरक्षा परिषद् ने कहा कि, पाकिस्तानी सेना और कबायली लड़ाकों के राज्य से हटने और लड़ाई बंद होने के बाद, भारत को जम्मू-कश्मीर से सेना वापस बुलाने, और कानून-व्यवस्था के नागरिक रखरखाव के लिए आवश्यक न्यूनतम सेना को एक निश्चित समय तक तैनात रखने हेतु एक योजना प्रस्तुत करने का का आदेश दिया। 
  2. भारत के लिए सैन्य उपस्थिति को न्यूनतम संख्या तक कम करने के लिए उठाए गए क़दमों की स्थिति से अवगत कराने का आदेश दिया गया था तथा आयोग के साथ परामर्श के बाद राज्य में शेष सैनिकों की व्यवस्था करने के लिए कहा गया था।
  3. अन्य निर्देशों के बीच, भारत को इस बात से सहमत होने का आदेश दिया गया था कि, जब तक ‘जनमत संग्रह प्रशासन’ (Plebiscite Administration) को राज्य बलों और पुलिस पर ‘निर्देश और पर्यवेक्षण’ की शक्तियों का प्रयोग करना आवश्यक नहीं लगता, तब तक इन सैन्य बलों को ‘जनमत संग्रह प्रशासक’ की सहमति प्राप्त क्षेत्रों में रखा जाएगा।
  4. सुरक्षा परिषद् ने, भारत को कानून और व्यवस्था हेतु स्थानीय कर्मियों की भर्ती करने और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने का भी निर्देश दिया।

UNSC के प्रस्ताव 47 (UNSC Resolution 47) पर भारत और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया:

दोनों देशों ने ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव 47’ को खारिज कर दिया।

भारत द्वारा इस ‘प्रस्ताव’ को क्यों खारिज किया गया?

  • भारत का तर्क था, कि प्रस्ताव में पाकिस्तान द्वारा सैन्य आक्रमण की अनदेखी की गई थी और दोनों देशों को एक समान राजनयिक आधार पर रखना ‘पाकिस्तान की आक्रामकता’ तथा कश्मीर के महाराजा हरि सिंह द्वारा ‘विलय पत्र पर किए गए हस्ताक्षर संबंधी तथ्य को अनदेखा करना था। 
  • भारत ने उस ‘प्रस्ताव’ की उस शर्त पर भी आपत्ति जताई, जिसके तहत भारत को राज्य में सुरक्षा के लिए आवश्यक सैन्य उपस्थिति बनाए रखने की अनुमति नहीं दी गयी थी।
  • ‘प्रस्ताव’ के तहत ‘गठबंधन सरकार’ बनाने के आदेश ने जम्मू और कश्मीर रियासत के प्रधान मंत्री शेख अब्दुल्ला को भी मुश्किल स्थिति में डाल दिया।
  • भारत का यह भी मानना था, कि ‘जनमत संग्रह प्रशासक’ को प्रदान की गई शक्तियों ने राज्य की संप्रभुता को कम करती हैं। भारत यह भी चाहता था कि पाकिस्तान को जनमत संग्रह के संचालन से बाहर रखा जाए।

पाकिस्तान द्वारा इस ‘प्रस्ताव’ को खारिज करने के कारण:

दूसरी ओर, पाकिस्तान ने कश्मीर में भारतीय बलों की न्यूनतम उपस्थिति बनाए रखने संबंधी ‘प्रस्ताव के आदेश पर भी आपत्ति जताई। पाकिस्तान, राज्य सरकार में ‘मुस्लिम कांफ्रेंस के लिए समान प्रतिनिधित्व चाहता था। ‘मुस्लिम कांफ्रेंस पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में प्रमुख पार्टी थी।

अंतिम परिणाम:

प्रस्ताव 47 (Resolution 47) के प्रावधानों से अपने मतभेदों के बावजूद, भारत और पाकिस्तान दोनों ने ‘संयुक्त राष्ट्र आयोग’ का स्वागत किया और इसके साथ काम करने के लिए सहमत हुए।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) में होने वाले चुनावों में शरणार्थियों के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं

प्रीलिम्स लिंक:

  1. PoK की अवस्थिति 
  2. इससे होकर बहने वाली नदियाँ
  3. इसके निकटवर्ती देश / राज्य 
  4. विलय के दस्तावेज
  5. संयुक्त राष्ट्र चार्टर। 

मेंस लिंक:

‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

 विषय: आपदा और आपदा प्रबंधन।

आपदा प्रबंधन अधिनियम


(Disaster Management Act)

24 मार्च, 2020 से गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा आपदा प्रबंधन (डीएम) अधिनियम, 2005 (Disaster Management (DM) Act), 2005 के तहत कोविड-19 की रोकथाम के लिए आदेश और दिशा-निर्देश जारी किए जा रहे है।

‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ की किस धारा के तहत ‘गृह मंत्रालय’ द्वारा कोविड -19 के लिए रोकथाम उपायों पर आदेश जारी किए जा रहे है?

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ की धारा 10 के तहत कोविड -19 की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाते है।

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 10, इस ‘राष्ट्रीय कार्यकारी समिति’ की शक्तियों और कार्यों से संबंधित है।
  • इस धारा के तहत, ‘राष्ट्रीय कार्यकारी समिति’ को भारत सरकार के संबंधित मंत्रालयों या विभागों, राज्य सरकारों और राज्य प्राधिकरणों को किसी भी खतरनाक आपदा स्थिति या आपदा के जवाब में उनके द्वारा किए जाने वाले उपायों के बारे में दिशा-निर्देश देने या निर्देश देने का भी अधिकार प्रदान किया गया है। 

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के बारे में:

आपदा प्रबंधन अधिनियम का उद्देश्य आपदाओं का प्रबंधन करना है, जिसके तहत शमन रणनीति तैयार करना, क्षमता-निर्माण आदि को सम्मिलित किया गया है।

  • यह अधिनियम देश में जनवरी 2006 से प्रभावी है।
  • यह अधिनियम “आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन तथा इससे संबंधित मामलों से निपटने हेतु प्रावधान करता है।”
  • इस अधिनियम में ‘भारत के प्रधान मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के गठन’ का प्रावधान किया गया है।
  • यह अधिनियम, केंद्र सरकार को राष्ट्रीय प्राधिकरण की सहायता के लिए एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC) का गठन करने के लिए निर्देशित्त करता है।
  • इसमें सभी राज्य सरकारों के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के गठन को अनिवार्य किया गया है।

केंद्र सरकार के लिए प्रद्दत शक्तियां:

‘आपदा प्रबंधन अधिनियम’ (DM Act) के अंतर्गत केंद्र सरकार और NDMA के लिए व्यापक शक्तियां प्रदान की गई हैं।

  • इसके तहत, केंद्र सरकार, कोई भी कानून लागू के बावजूद (ओवर-राइडिंग पॉवर सहित) भारत में कहीं भी किसी भी प्राधिकरण को आपदा प्रबंधन करने या सहायता प्रदान करने के लिए कोई भी निर्देश जारी कर सकती है।
  • महत्वपूर्ण रूप से, केंद्र सरकार और NDMA द्वारा जारी किए गए ऐसे किसी भी निर्देश का केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों द्वारा पालन किया जाना अनिवार्य होता है। 
  • इन सभी के लिए, प्रधानमंत्री NDMA (S 6(3)) के तहत प्रद्दत सभी शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार यह सुनिश्चित होता है, किए गए फैसलों का पर्याप्त राजनीतिक और संवैधानिक महत्व है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. आपदा प्रबंधन अधिनियम क्या है?
  2. इस अधिनियम के तहत स्थापित निकाय
  3. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की संरचना
  4. आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्यों और केंद्र की शक्तियां
  5. अधिसूचित आपदा क्या है?
  6. NDRF के कार्य
  7. तरल ऑक्सीजन और इसके उपयोग के बारे में।

मेंस लिंक:

क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005, देश के मुख्य आपदा प्रबंधन कानून के अनुकूल नहीं है? वर्तमान स्थिति में एक महामारी कानून की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021


(World Air Quality Report 2021)

हाल ही में, ‘विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट’, 2021 (World Air Quality Report 2021) जारी की गई है। इस रिपोर्ट ने 2021 में वैश्विक वायु गुणवत्ता की स्थिति का अवलोकन प्रस्तुत किया गया है।

एक स्विस संगठन ‘आइ क्यू एयर’ (IQAir) द्वारा जारी की जाने वाली इस रिपोर्ट में ‘पार्टिकुलेट मैटर’ (PM) 2.5 की सांद्रता के आधार पर वायु गुणवत्ता के स्तर को मापा जाता है।

प्रमुख निष्कर्ष:

  1. वर्ष 2021 में बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश था। बांग्लादेश ने 2021 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के अधिकतम अनुमेय स्तर के मुकाबले, 2021 में औसत PM 2.5 स्तर, 76.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया।
  2. इससे पहले 2018, 2019 और 2020 में भी बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश पाया गया था।
  3. आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया का एक भी देश 2021 में WHO के वायु गुणवत्ता मानक को पूरा करने में कामयाब नहीं हुआ।
  4. पूरी दुनिया में, 93 शहरों में ‘पीएम 2.5 स्तर’ (PM 2.5 level) को अनुशंसित स्तर का 10 गुना अधिक पाया गया।
  5. वर्ष 2021 के दौरान शहरों में, बांग्लादेश काढाका’ विश्व का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा, जिसमें पीएम 2.5 का स्तर 78.1 था। 
  6. वर्ष 2021 में, भारत की राजधानी ‘नई दिल्ली’ दुनिया की सबसे प्रदूषित शहर रही है, जिसका पीएम 2.5 स्तर, 85.1 था।

रिपोर्ट में भारत का प्रदर्शन:

  • नई दिल्ली, लगातार चौथे वर्ष दुनिया का सबसे प्रदूषित राजधानी शहर बना हुआ है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में, मध्य और दक्षिण एशिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 11 शहर भारत में हैं।
  • 35 भारतीय शहरों को 2021 के लिए सबसे खराब वायु गुणवत्ता टैग के तहत सूचकांक द्वारा सूचीबद्ध किया गया है।
  • इस सूची में राजस्थान का भिवाड़ी शहर सबसे ऊपर है और उसके बाद गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश का स्थान है।

वायु प्रदूषण से जुड़ी चिंताएं:

  1. वायु प्रदूषण को अब दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरणीय स्वास्थ्य खतरा माना जाता है, जो हर साल दुनिया भर में 70 लाख मौतों का कारण बनता है।
  2. वायु प्रदूषण, अस्थमा से लेकर कैंसर, फेफड़ों की बीमारियों और हृदय रोग तक कई बीमारियों का कारण बनता है।
  3. वायु प्रदूषण की अनुमानित दैनिक आर्थिक लागत, 8 अरब डॉलर (USD) या सकल विश्व उत्पाद का 3 से 4 प्रतिशत आंकी गई है।

सरकारों द्वारा किए जाने योग्य उपाय:

  1. वायु प्रदूषण उत्सर्जन में कमी।
  2. व्यक्तिगत और औद्योगिक उपयोग के लिए स्वच्छ वायु वाहनों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए कानून का निर्माण।
  3. अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश।
  4. आंतरिक दहन इंजनों के उपयोग को सीमित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिए, जैसे ट्रेड-इन कार्यक्रम।
  5. बैटरी और मानव-संचालित परिवहन विधियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी प्रदान करें।
  6. स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ सार्वजनिक परिवहन और बिजली का विस्तार किया जाना चाहिए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. रिपोर्ट के बारे में- जारीकर्ता, रैंकिंग मापदंड।
  2. भारत और उसके शहरों का प्रदर्शन।
  3. विश्व भर के देशों का प्रदर्शन।
  4. भारत का सापेक्षिक प्रदर्शन।

मेंस लिंक:

विभिन्न स्तरों पर प्रयासों के बावजूद, दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में स्थान दिया गया है? टिप्पणी कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


राज्य विधायिकाओं को अन्य राज्यों द्वारा आयोजित लॉटरी पर कर लगाने का अधिकार

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, भारत सरकार, राज्यों या किसी राज्य द्वारा अधिकृत या निजी संस्थाओं द्वारा संचालित लॉटरी, सट्टेबाजी और जुआकी पारिभाषिक शब्दावली के अंतर्गत आने वाली गतिविधि है।

  • और इसलिए, राज्य विधायिका को, भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार द्वारा या किसी अन्य एजेंसी या किसी विशेष राज्य की संस्था अथवा किसी अधिकृत निजी संस्था द्वारा आयोजित की जा रही ‘लॉटरी योजना’ पर कर लगाने की शक्ति प्राप्त है। 
  • इस प्रकार, शीर्ष अदालत ने कर्नाटक और केरल सरकारों द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया और कर्नाटक और केरल उच्च न्यायालयों के आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उनके पास लॉटरी पर कर लगाने के लिए विधायी क्षमता का अभाव है।

कर्नाटक और केरल की राज्य विधायिकाओं द्वारा ‘रद्द किए जा चुके अधिनियमों’ के माध्यम से ‘कर’ आरोपित किए जाने संबंधी मांग का स्रोत, संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि संख्या 62 के तहत राज्य विधायिकाओं को प्रदत्त शक्ति में खोजी जा सकती है।

नोट: भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची, संघ और राज्यों के बीच शक्तियों और कार्यों के आवंटन को परिभाषित और निर्दिष्ट करती है। इसमें तीन सूचियाँ हैं; अर्थात 1) संघ सूची, 2) राज्य सूची और 3) समवर्ती सूची। मूल रूप से संघ सूची में 97 विषय थे लेकिन अब संघ सूची में यह 100 विषय हैं।

भारत का निर्यात $400- बिलियन के वार्षिक लक्ष्य के पार

इंजीनियरिंग उत्पादों, परिधानों और वस्त्रों, रत्नों और आभूषणों और पेट्रोलियम उत्पादों सहित वस्तुओं के शिपमेंट में वृद्धि से उत्साहित होकर, भारत का वार्षिक वस्तु निर्यात पहली बार $400 बिलियन का आंकड़ा पार कर गया है।

प्रमुख कारक:

  • तेल की कीमतों में भारी वृद्धि, औद्योगिक वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में व्यापक वृद्धि, फिर उठ खड़ा होने वाला कृषि क्षेत्र और विनिर्मित वस्तुओं का एक ऊँचा हिस्सा, भारत सरकार के वार्षिक निर्यात लक्ष्य तक पहुंचने के मुख्य कारण हैं।
  • महामारी के आर्थिक प्रभाव के जवाब में, विकसित अर्थव्यवस्थाओं द्वारा विस्तारित ‘मौद्रिक नीति’ ने भी भारतीय निर्यात की मांग में वृद्धि की है।

     

 

 डेयरटूऐराडी टीबी
(Dare2eraD TB)

विश्व टीबी दिवस के अवसर पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा टीबी को खत्म करने के लिए –डेयरटूऐराडीटीबी(Dare2eraD TB) डेटा-संचालित अनुसंधान शुरू करने की घोषणा की। 

डेयरटूऐराडी टीबीडीबीटी का प्रमुख टीबी कार्यक्रम होगा जिसमें निम्नलिखित प्रमुख पहल शामिल हैं-

  • InTGS में -इंडियन ट्यूबरक्‍यूलोसिस जीनोमिक सर्वेलेंस कंसोर्टियम;
  • InTBK Hub -भारतीय टीबी नॉलेज हब-वेबिनार सीरीज;
  • टीबी के खिलाफ निर्देशित उपचार और एक्‍स्‍ट्रा पलमोनरी ट्यूबरक्‍यूलोसिस के इलाज के लिए एक साक्ष्य-आधारित विधि विकसित करना। 

रिजर्व बैंक इनोवेशन हब
(Reserve Bank Innovation Hub – RBIH)

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बेंगलुरु में ‘रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब’ (RBIH) का उद्घाटन किया गया।

  • RBIH की स्थापना देश में वित्तीय नवाचार को प्रोत्साहन देने के इरादे से की गई है। इस नवाचार केंद्र के जरिये वित्तीय सेवाओं एवं उत्पादों तक निम्न-आय समूह की पहुंच को बढ़ावा देने वाली पारिस्थितिकी बनाने की कोशिश की जाएगी।
  • रिजर्व बैंक ने कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा आठ की कंपनी के तौर पर RBIH का गठन किया है। इसके लिए शुरुआती तौर पर 100 करोड़ रुपये की पूंजी लगाई गई है। 
  • नई इकाई में एक स्वतंत्र बोर्ड का गठन किया गया है, जिसके अध्यक्ष ‘एस गोपालकृष्णन’ है।
  • ‘रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब’ (RBIH) का उद्देश्य, देश में निम्न आय वाली आबादी के लिए वित्तीय सेवाओं और उत्पादों तक पहुंच को बढ़ावा देने पर केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।

 

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