[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 24 March 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

  1. अनुच्छेद 355.
  2. मुख्यमंत्री की नियुक्ति और पद-मुक्ति
  3. आपराधिक न्याय सुधार
  4. फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल
  5. मध्याह्न भोजन योजना
  6. स्वच्छ भारत मिशन

सामान्य अध्ययन-III

  1. विश्व जल दिवस
  2. पारा प्रदूषण

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. एबेल पुरस्कार2022
  2. कुकी जनजाति
  3. डॉक्सिंग
  4. वायनाडवन्यजीवअभयारण्य
  5. मांडा भैंस

 


सामान्य अध्ययनII



विषय:भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

अनुच्छेद 355


(Article 355)

संदर्भ:

हाल ही में, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस पार्टी ने मांग करते हुए कहा है, कि पश्चिम बंगाल में कानून और व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से भंग हो चुकी है और संविधान के प्रावधानों के अनुसार राज्य को शासित करने के लिए ‘अनुच्छेद 355(Article 355) को लागू किया जाना चाहिए।

संबंधित प्रकरण:

पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के बोगतुई गांव में 21 मार्च 2022 को सत्ताधारी दल के दो गुटों के बीच हिंसक लड़ाई हुई।

बीरभूम जिले की रामपुर हाट में कुछ दिन पहले सत्ताधारी टीएमसी के ग्राम पंचायत उप प्रधान ‘भादु शेख’ की हत्या कर दी गयी थी और इसकी जवाबी कार्रवाई में क्षेत्र में घरों पर हमला किया गया और आग लगा दी गई जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों सहित 12 लोगों की मौत हो गई। मरने वाले सभी व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

‘अनुच्छेद 355’ के बारे में:

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355में उल्लिखित प्रावधान के अनुसार,“संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशान्ति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे”।

संघ के लिए निर्धारित इस कर्तव्य के दूसरे भाग अर्थात “प्रत्येक राज्य की सरकार को इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करने”के कई दृष्टिकोणहैं।

  1. कानून और व्यवस्था का कोण:

“सार्वजनिक व्यवस्था” और “पुलिस” राज्य के विषय हैं और राज्यों के पास इन मामलों पर कानून बनाने की विशेष शक्ति है।

  1. आपातकाल का कथित औचित्य(Alleged justification of emergency):

यद्यपि, इस अनुच्छेद का प्रयोग शायद ही कभी किया गया हो; किंतु इसे अनुच्छेद 352 और 356 के तहत आपातकाल लगाने को उचित ठहराने के एक साधन के रूप में अवश्य देखा जाता है।

  • एसआर बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गयी टिप्पणी के अनुसार, हालाँकि अनुच्छेद 352 के सशस्त्र विद्रोह होने की स्थिति में केंद्र सरकार को राज्य में आपातकाल लागू करने की शक्ति प्रदान की गयी है, किंतु ‘आंतरिक अशांति’ (Internal Disturbance) की स्थिति में इस प्रकार की घोषणा नहीं की जा सकती है।
  • अतः,सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के अनुसार- अनुच्छेद 355स्वयं केंद्र सरकार को आपातकाल लगाने की शक्ति प्रदान नहीं करता है, क्योंकिमात्र ‘आंतरिक अशांति’ से जनित एक प्रकार के सशस्त्र विद्रोह के लिए अनुच्छेद 352के तहत आपातकाल की घोषणा को सही नहीं ठहराया जा सकता है और न ही इस प्रकार की ‘अशांति’अनुच्छेद356 के तहत आपातकाल जारी करने को सही ठहरा सकती है।

https://www.google.com/amp/s/www.thehindu.com/news/national/invoke-article-355-in-west-bengal-over-birbhum-killings-congress-leader-writes-to-president/article65253489.ece/amp/.

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय:विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य और उत्तरदायित्व।

मुख्यमंत्री की नियुक्ति और पद-मुक्ति


(Appointment and removal of Chief Minister)

संदर्भ:

हाल ही में ‘पुष्कर सिंह धामी’ ने उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।

चूंकि, संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, अतः शपथ ग्रहण भी राज्य के राज्यपाल के समक्ष ही किया जाता है।

मुख्यमंत्री की नियुक्ति:

राज्य के मुख्यमंत्री(Chief Minister) की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164में उल्लिखित प्रावधान के अनुसार- राज्यपाल की सहायता और सलाह प्रदान करने हेतु मुख्यमंत्री सहित एक मंत्रिपरिषद होगी।

‘मुख्यमंत्री’ के रूप में किसे नियुक्त किया जा सकता है?

राज्य विधानसभा के लिए आम चुनाव के बाद, सदन में बहुमत हासिल करने वाले दल अथवा गठबंधन द्वारा अपने नेता का चुनाव करते हैं, और राज्यपाल को इसके बारे में सूचित किया जाता है। राज्यपाल, तब औपचारिक रूप से उसे ‘मुख्यमंत्री’ के पद पर नियुक्त करता है और उसे अपने मंत्रिमंडल का गठन करने के लिए कहता है।

राज्य विधानसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं होने की स्थिति में, राज्यपाल प्रायः सबसे बड़े दल के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है।

कार्यकाल:

सैद्धांतिक रूप से, मुख्यमंत्री राज्यपाल केप्रसादपर्यन्त पद धारण करता है। हालांकि, यथार्थमें मुख्यमंत्रीउस समय तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसे राज्य विधानसभा में सदस्यों का बहुमत हासिल रहता हैराज्य के विधानसभा में बहुमत के नेता बने

  • विधानसभा में बहुमत का समर्थन खोने की स्थिति में राज्यपाल, मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
  • राज्य विधानसभा भी, उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करके पद-मुक्त कर सकती है।

मुख्यमंत्री की शक्तियां एवं कार्य:

  • राज्यपाल को सहायता और सलाह देना।
  • मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद के प्रमुख होता है। 
  • वह सदन के नेता होता है।
  • वह राज्य के प्रशासन से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों के बारे में राज्यपाल को सूचित करता है।
  • उसके द्वारा सदन में सभी नीतियों की घोषणा की जाती है।
  • वह राज्यपाल को विधान सभा भंग करने की सिफारिश करता है।
  • वह राज्यपाल को समय-समय पर राज्य विधान सभा के सत्रों को बुलाने तथा समाप्त करने के संबंध में सलाह देता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 11,के तहत निर्वाचन आयोग को “अभिलिखित किए जाने वाले कारणों’ के लिए किसी ‘निर्हरता’ को हटाने या कम करने की शक्ति प्राप्त है? इसके बारे में यहां और जानें।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मुख्यमंत्री के रूप में किसे नियुक्त किया जा सकता है?
  2. मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका
  3. मंत्रिपरिषद
  4. शक्तियां
  5. कार्य
  6. कार्यकाल

मेंस लिंक:

राज्य के मुख्यमंत्री की भूमिका और कार्यों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।

आपराधिकन्यायप्रणालीसुधार


(Criminal Justice Reforms)

संदर्भ:

आपराधिक कानूनों (Criminal Laws)में व्यापक बदलाव करने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार द्वारा सभी हितधारकों के परामर्श से ‘भारतीय दंड संहिता’, ‘आपराधिक प्रक्रिया संहिता’ और ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम’ जैसे कानूनों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है।

सुझावों के लिए आमंत्रण:

इस संदर्भ में, गृह मंत्रालय ने राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, उपराज्यपालों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, बार काउंसिल ऑफ इंडिया, विभिन्न राज्यों के बार काउंसिल, विभिन्न विश्वविद्यालयों, कानून संस्थानों,और सभी सांसदों से ‘आपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधन’ के संबंध में से सुझाव मांगे हैं।

वर्तमानचिंताएं/चुनौतियां:

  1. मामलों के निपटारे में देरी होने की वजह से ‘विचाराधीन कैदियों’ और ‘दोषियों’ के मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
  2. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस सुधारों पर दिए गए निर्देशों के बावजूद, हकीकत में शायद ही कोई बदलाव हुआ हो।
  3. किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने संबंधी न्यायालय के आदेशों के क्रियान्वयन में भी वर्षों का समय लग जाता है।

सुझाए गए सुधार:

  1. प्रत्येक पुलिस थाने में मामलों की भीड़ को कम करने हेतु, भारतीय दंड संहिता के तहत कुछ अपराधों को विशेष कानून और फास्ट ट्रैक अदालतों में निपटाया जा सकता है।
  2. दस्तावेजों के डिजिटलीकरण किया जाना चाहिए, इस से जांच और सुनवाई में तेजी लाने में मदद मिलेगी।
  3. नए अपराधों का निर्माण और अपराधों के मौजूदा वर्गीकरण के नवीनीकरण को आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए जोकि पिछले चार दशकों में काफी हद तक बदल चुके हैं।
  4. अपराधों का वर्गीकरण इस तरह से किया जाना चाहिए , जोकि भविष्य में अपराधों के प्रबंधन के अनुकूल रहे।
  5. एक ही प्रकृति के अपराधों के लिए अलग-अलग सजा की मात्रा और प्रकृति को तय करने में न्यायाधीशों के निर्णय, न्यायिक उदाहरणों के सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिए।

भारत में आपराधिक कानून:

भारत में प्रचलित आपराधिक कानून का स्रोत कई कानूनों में निहित है – भारतीय दंड संहिता, 1860, नागरिक अधिकार अधिनियम, 1955, दहेज निषेध अधिनियम, 1961 तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989।

  • आपराधिक न्याय प्रणाली, स्थापित कानूनों का उल्लंघन करने वालों पर दंड लगा सकती है।
  • आपराधिक कानून और आपराधिक प्रक्रिया संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सम्मिलित हैं।
  • लॉर्ड थॉमस बबिंगटन मैकाले (Lord Thomas Babington Macaulay) को भारत में आपराधिक कानूनों के संहिताकरण का मुख्य वास्तुकार कहा जाता है।

सुधारों की आवश्यकता:

  • औपनिवेशिक युग के कानून।
  • प्रभावहीनता।
  • अनिर्णीत मामलों की भार संख्या।
  • वृहद अभियोगाधीन मामले।

आपराधिक कानून में सुधार हेतु  समिति:

  • गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा आपराधिक कानून में सुधार करने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया है।
  • इस समिति के अध्यक्ष रणबीर सिंह (कुलपति,नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली) हैं।
  • यह समिति, सरकार को दी जाने वाली रिपोर्ट के लिए, विशेषज्ञों से ऑनलाइन परामर्श करके विचार एकत्र करेगी और उपलब्ध सामग्री का मिलान करेगी।

आपराधिक कानूनों से संबंधित पिछली समितियाँ:

  • माधव मेनन समिति: इसने 2007 में CJSIमें सुधारों पर विभिन्न सिफारिशों का सुझाव देते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • मलिमथ कमेटी की रिपोर्ट: इसने अपनी रिपोर्ट 2003 में आपराधिक न्याय प्रणाली (CJSI)पर प्रस्तुत की।Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2006 में दिए गए फैसले के बारे में यहां पढ़ें।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. मलिमथ कमेटी किससे संबंधित है?
  2. संविधान की 7 वीं अनुसूची के तहत आपराधिक कानून।
  3. भारत में आपराधिक कानूनों को किसने संहिताबद्ध किया?
  4. विवादास्पद IPCकानून।
  5. रणबीर सिंह समिति किससे संबंधित है?

मेंस लिंक:

भारत में आपराधिक न्याय सुधारों पर एक टिप्पणी लिखिए।

https://www.google.com/amp/s/www.thehindu.com/news/national/government-starts-process-to-amend-ipc-crpc/article65252845.ece/amp/.

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

विदेशी अधिकरण / फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल


(Foreigners’ Tribunal)

संदर्भ:

हाल ही में,असम के कछार जिले में स्थापित एक ‘विदेशी अधिकरण’ / फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल (Foreigners’ Tribunal) ने एक मृत व्यक्ति को नोटिस जारी किया है, जिसमें उसे 30 मार्च तक पेश होने के लिए कहा है क्योंकि वह अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए वैध दस्तावेज पेश करने में विफल रहा था।

‘विदेशी अधिकरण’ क्या है?

विदेशी अधिकरण’ (Foreigners’ Tribunal- FT) ‘विदेशी (अधिकरण) आदेश’ [Foreigners (Tribunals) Order], 1964 के तहत स्थापित अर्ध-न्यायिक निकाय होते हैं।

संरचना: विदेशी अधिकरण के सदस्यों में, असम न्यायिक सेवा का सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, न्यायिक अनुभव रखने वाला सिविल सेवक जो सचिव या अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे सेवानिवृत्त नहीं हुआ हो, कम से कम सात वर्ष के वकालत अनुभव सहित 35 वर्ष से कम आयु का अधिवक्ता को सम्मिलित किया जाता है।

विदेशी अधिकरणों को स्थापित करने की शक्ति:

  • गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन किए जाने के पश्चात सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ज़िला मजिस्ट्रेटों को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • इसके पूर्व, ट्रिब्यूनल स्थापित करने की शक्तियाँ केवल केंद्र के पास निहित थीं।

 ‘विदेशी अधिकरणों’ में अपील करने का अधिकार

  • संशोधित आदेश [विदेशी (अधिकरण) संशोधन आदेश 2019]में सभी व्यक्तियों को अधिकरणों में अपील करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • इसके पूर्व, केवल राज्य प्रशासन ही किसी संदिग्ध के खिलाफ इन अधिकरणों में मामला दायर कर सकता था।

‘घोषित विदेशी’ कौन होते है?

‘घोषित विदेशी’ (Declared Foreigners-DF), वे व्यक्ति होते हैं, जो राज्य पुलिस की सीमा शाखा द्वारा अवैध अप्रवासी के रूप में चिह्नित किए जाने पर अपनी नागरिकता का प्रमाण देने में विफल रहते है, और उन्हें किसी एक ‘विदेशी अधिकरण’ (Foreigners’ Tribunal- FT) द्वारा ‘विदेशी’ घोषित कर दिया जाता है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं ‘राष्ट्रीय नागरिक पंजी’ (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) में अंतर के बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अवैध प्रवासी (अधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम बनाम विदेशी (अधिकरण) आदेश 1964
  2. इस आदेश के अंतर्गत प्रमाण का दायित्व
  3. अधिकरण द्वारा हल किये जाने वाले विषय
  4. अधिकरण की संरचना।
  5. अधिकरण तथा न्यायालय में अंतर
  6. असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक स्थिति।
  7. शरणार्थी बनाम अवैध प्रवासी।
  8. विदेशियों के लिए उपलब्ध मौलिक अधिकार तथा अन्य संवैधानिक प्रावधान
  9. मानवाधिकार बनाम मौलिक अधिकार

मेंस लिंक:

देश में अवैध गैर-प्रवासियों से निपटने के लिए कानूनों की संक्षिप्त चर्चा कीजिए। विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन क्यों किया गया?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

मध्याह्न भोजन योजना


(Midday meal scheme)

संदर्भ:

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संसद में कोविड महामारी के कारण लंबे समय तक बंद रहने के बाद खुलने वाले स्कूलों में ‘मध्याह्न भोजन’(Mid-Day Meals) को फिर से शुरू करने की जोरदार मांग की है।

संबंधित प्रकरण:

कोविड महामारी के कारण स्कूल बंद होने के दौरान ‘मध्याह्न भोजन योजना’ को रोक दिया गया था। महामारी के दौरान बच्चों को सूखा राशन दिया गया और ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम’ के तहत खाद्यान्न भी प्रदान किया गया। लेकिन बच्चों के लिए सूखा राशन गर्म पके हुए भोजन का विकल्प नहीं है।

‘मध्याह्न भोजन योजना’केबारेमें:

यह योजना, सरकारीविद्यालयों, सहायताप्राप्तस्कूलोंतथा‘समग्रशिक्षा’केअंतर्गतसहायताप्राप्तमदरसोंमेंसभीबच्चोंकेलिएएकसमयभोजनदिए जाने कोसुनिश्चितकरतीहै।

  • इस योजना के अंतर्गत, आठवीं कक्षा तक के छात्रों को एक वर्ष में कम से कम 200 दिन पका हुआ पौष्टिक भोजन प्रदान किया जाता है। 
  • इस योजना का कार्यान्वयन मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा किया जाता है।
  • इस योजना को एक केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू किया गया था। 
  • इसे प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहायता कार्यक्रम (National Programme of Nutritional Support to Primary Education: NP– NSPE) के रूप में शुरू किया गया था।
  • वर्ष 2004 में, इस कार्यक्रम को मिड डे मील योजना के रूप में फिर से शुरू किया गया था।

उद्देश्य:

भूख और कुपोषण को दूर करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना, विभिन्न जातियों के मध्य समाजीकरण में सुधार करना, जमीनी स्तर पर, विशेष रूप से महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।

मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) नियम 2015 के अनुसार:

    • बच्चों को केवल स्कूल में ही भोजन परोसा जाएगा।
    • खाद्यान्नों की अनुपलब्धता अथवा किसी अन्य कारणवश, विद्यालय में पढाई के किसी भी दिन यदि मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।

    निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अंतर्गत अधिदेशित स्कूल प्रबंधन समिति मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी।

पोषण संबंधी मानक:

  • मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) दिशानिर्देशों के अनुसार, निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 450 कैलोरी ऊर्जा एवं 12 ग्राम प्रोटीन दिए जायेंगे, तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन दिए जाने का प्रावधान है।
  • MHRD के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के भोजन में, 100 ग्राम खाद्यान्न, 20 ग्राम दालें, 50 ग्राम सब्जियां और 5 ग्राम तेल और वसा सम्मिलित की जायेगी। 
  • उच्च-प्राथमिक स्कूलों के बच्चों के भोजन में, 150 ग्राम खाद्यान्न, 30 ग्राम दालें, 75 ग्राम सब्जियां और 7.5 ग्राम तेल और वसा को अनिवार्य किया गया है।Current Affairs

     

 

प्रीलिम्सलिंक:

  1. MDMS योजना कब शुरूहुई?
  2. इसकानाम-परिवर्तन कब किया गया था?
  3. केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के बीच अंतर?
  4. MDMS किस प्रकार की योजना है?
  5. योजना के तहत वित्तपोषण
  6. पोषक मानदंड निर्धारित
  7. योजना के तहत कवरेज
  8. योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की जिम्मेदारी

मेंसलिंक:

मध्याह्न भोजन योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

स्वच्छ भारत मिशन


(Swacch Bharat Mission)

संदर्भ:

जल संसाधनों पर गठित संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार:

  • इस वर्ष,‘तरल अपशिष्ट प्रबंधन’ के लिए बुनियादी ढांचा प्राप्त करने वाले केवल 12% गांव ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के दूसरे चरण के तहत अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल रहे हैं।
  • ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढांचे’ को स्थापित करने का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हो सका है और 2021-22 के दौरान 7 फरवरी तक केवल 22% लक्षित गांवों को कवर किया गया है।

पृष्ठभूमि:

स्वच्छ भारत मिशन ने अपने पहले चरण में, हर ग्रामीण घर में शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा था और वर्ष 2019 में ही अपने लक्ष्य को हासिल करने की घोषणा की थी।

Current Affairs

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 (SBM-U):

  • ‘स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0’ का लक्ष्य शहरों को कचरा मुक्त यानी मौजूदा 70% से 100%कचरे से मुक्त बनाना है।
  • अमृत (AMRUT) योजना ​​के अंतर्गत आने वाले शहरों को छोड़कर, सभी शहरों में ‘गंदले और काले पानी का प्रबंधन’ सुनिश्चित करना है।
  • सभी शहरी स्थानीय निकायों को ओडीएफ+(ODF +) और 1 लाख से कम आबादी वाले निकायों को ओडीएफ++ (ODF ++)बनाना।
  • कम करें, पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण (Reduce, Reuse, Recycle) अर्थात 3Rके सिद्धांतों का उपयोग करके ठोस अपशिष्ट के स्रोत पृथक्करण पर ध्यान दिया जाएगा।
  • प्रभावी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सभी प्रकार के नगरपालिका ठोस कचरे का वैज्ञानिक प्रसंस्करण और पुराने डंप साइटों का उपचार किया जाएगा।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में महिलाओं का क्या योगदान है?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. स्वच्छ भारत अभियान 2.0 और अमृत 2.0 के लक्ष्य और समय-सीमा क्या हैं?
  2. इसके कार्यान्वयन में कौन से मंत्रालय शामिल होंगे?
  3. राज्य सरकार का योगदान और उनकी जिम्मेदारियां क्या होंगी?
  4. योजना की निगरानी के लिए किन मापदंडों का उपयोग किया जाएगा?

मेंस लिंक:

स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में महिलाओं के योगदान पर टिप्पणी कीजिए।

https://www.google.com/amp/s/www.thehindu.com/news/national/less-than-a-quarter-of-target-villages-got-solid-liquid-waste-infrastructure-this-year-parliamentary-panel/article65252543.ece/amp/.

स्रोत: पीआईबी।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय:संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

विश्व जल दिवस


(World Water Day)

संदर्भ:

हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है।

  • ‘विश्व जल दिवस’ पहली बार वर्ष 1993 से मनाया गया था।
  • इसका समन्वय, मीठे पानी से संबंधित सभी मुद्दों के लिए संयुक्त राष्ट्र की अंतर-एजेंसी सहयोग तंत्र(UN-Water)द्वारा सभी सरकारों और भागीदारों के सहयोग से किया जाता है।
  • हर साल ‘विश्व जल दिवस’ के आसपास संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘विश्व जल विकास रिपोर्ट’ (World Water Development Report) भी जारी की जाती है।

विश्व जल दिवस 2022 की थीम: “भूजल, अदृश्य को दृश्यमान बनाना” इस वर्ष के विश्व जल दिवस का विषय है।
Current Affairs

जल, एक मानव अधिकार:

  • 2010 में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा “सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के अधिकार” को एक मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी गयी थी। यह अधिकार जीवन के पूर्ण आनंद और सभी मानव अधिकारों के लिए आवश्यक है।
  • ‘पानी का मनवाधिकार’ के तहत, बिना किसी भेदभाव के सभी को व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग के लिए पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, शारीरिक रूप से सुलभ और किफायती जल का अधिकार प्रदान किया गया है; जिसमें पीने के लिए पानी, व्यक्तिगत स्वच्छता, कपड़े धोना, भोजन तैयार करना और व्यक्तिगत और घरेलू स्वच्छता शामिल है।Current Affairs

लोग कई अलग-अलग कारणों से सुरक्षित पानी के बिना पीछे रह जाते हैं। उनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

  1. लैंगिक।
  2. नस्ल, जातीयता, धर्म, जन्म, जाति, भाषा और राष्ट्रीयता।
  3. विकलांगता, आयु और स्वास्थ्य की स्थिति।
  4. संपत्ति, कार्यकाल, निवास, आर्थिक और सामाजिक स्थिति।
  5. अन्य कारक, जैसे पर्यावरणीय गिरावट, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, संघर्ष, जबरन विस्थापन और प्रवास प्रवाह भी पानी पर प्रभाव के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समूहों को असमान रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

भूजल संरक्षण की आवश्यकता:

  1. वैश्विक आबादी में विस्फोटक वृद्धि होने तथा फसल उत्पादन में प्रतिस्पर्धात्मक वृद्धि होने की वजह से ‘भूजल भंडार’ पहले से ही दबाव में है।
  2. चरम मौसम की घटनाएं जैसे सूखा और रिकॉर्ड वर्षा का, ‘भूजल भंडार’के शीघ्रता पूर्वक भरने के संबंध में दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
  3. अगले 100 वर्षों के भीतर, समस्त भूजल आपूर्ति का केवल आधा भाग ही, पूरी तरह से दोबारा भरे जाने या ‘पुन: संतुलन’ की अवस्था में आने की संभावना है –जिससे सूखे क्षेत्रों में पानी की और भी कमी हो सकती है।
  4. जिस प्रक्रिया के माध्यम से वर्षा जल सतह से रिसकर नीचे पहुँचता है और भूमिगत जलाशयों में जमा होता है, उसके द्वारा भूजल आपूर्ति को पूरा भरने में सदियों का समय लग सकता है, और इस प्रक्रिया में क्षेत्र के अनुसार काफी अंतर भी होता है।
  5. जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन की वजह से दीर्घकालिक सूखा और बड़े आकार के चक्रवात उत्पन्न होते है,वर्षा की चरम सीमा अधिक स्पष्ट हो जाती है, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए भूजल भंडार प्रभावित होता है।Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

  • सतत विकास लक्ष्य 6 (SDG6) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सभी के लिए पानी की उपलब्धता और दीर्घकालिक प्रबंधन सुनिश्चित करना है।SDGकी परिभाषा के अनुसार, इसका मतलब किसी को पीछे नहीं छोड़ना है।
  • इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘सतत विकास हेतु जल कार्रवाई के लिए अंतर्राष्ट्रीय दशक’ (2018-2028) मनाया जा रहा है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. विश्व जल दिवस – तिथि
  2. महत्व
  3. विषय-वस्तु
  4. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
  5. संयुक्त राष्ट्र जल(UN-Water) के बारे में

मेंस लिंक:

विश्व जल दिवस के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय:संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

पारा प्रदूषण


(Mercury Pollution)

संदर्भ:

इंडोनेशिया के बाली शहर में जारी विभिन्न हितधारकों कीबैठक में एक ‘गैर-बाध्यकारी घोषणा’ (non-binding declaration) को अपनाने के लिए आम सहमति बनाई जा रही है।

  • यह घोषणा वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख प्रदूषक ‘पारा’ (MERCURY)के अवैध व्यापार का सामना करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समन्वय को बढ़ाएगी।
  • इंडोनेशिया सरकार के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘पारा के वैश्विक अवैध व्यापार का मुकाबला करने पर बाली घोषणा के लिए ‘मिनामाता अभिसमय’(Minamata Convention)के पक्षकारों से समर्थन और प्रतिबद्धता की मांग की जा रही है।

‘गैर-बाध्यकारी घोषणा’ में पक्षकारों से निम्नलिखित के लिए आह्वान किया गया है:

  1. पारा के व्यापार की निगरानी एवं प्रबंधन के लिए ‘व्यावहारिक उपकरण’ और अधिसूचना तथा सूचना-साझाकरण प्रणाली विकसित करना।
  2. शिल्प कार्यों और छोटे पैमाने पर सोने के खनन में ‘पारे’ के इस्तेमाल को कम करने सहित, पारे के अवैध व्यापार का मुकाबला करने से संबंधित अनुभवों और प्रथाओं का आदान-प्रदान करना।
  3. इस प्रकार के अवैध व्यापार से संबंधित डेटा और जानकारी तथा राष्ट्रीय कानून के उदाहरण साझा करना।

पारा के बारे में प्रमुख तथ्य:

  • स्रोत: पारा(Mercury), प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक तत्व है, और यह वायु, जल और मृदा में पाया जाता है। यह, शैल-अपक्षय, ज्वालामुखी विस्फोट, भूतापीय गतिविधियों, वनाग्नि, इत्यादि प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से वातावरण में निर्मुक्त होता है। इसकेअलावा, मानवीय गतिविधियों के माध्यम से भी वातावरण में ‘पारा’ निर्मोचित होता है।
  • विषाक्त प्रभाव: पारा, मनुष्य केतंत्रिका तंत्र, पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली, और फेफड़ों, गुर्दे, त्वचा और आंखों पर विषाक्त प्रभाव डाल सकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रमुख रसायन– विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ‘पारा’के लिए ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ शीर्ष दस रसायनों में से एक माना गया है।
  • मिनामाता रोग:यह मिथाइलमरकरी (Methylmercury) विषाक्तता के कारण होने वाला एक विकार है,जिसे पहली बार जापान की मिनामाता खाड़ी के निवासियों में देखा गया था। यहरोग‘पारा औद्योगिक कचरे’ से दूषित मछली खाने के परिणामस्वरूप फैला था।Current Affairs

‘मिनामाता अभिसमय’ के बारे में:

‘पारे पर मिनामाता अभिसमय’ (Minamata Convention on Mercury), मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को ‘पारा’ और इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए एक वैश्विक संधि है।

  • इस संधि पर,वर्ष2013 में, जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में आयोजित अंतर-सरकारी वार्ता समिति के पांचवें सत्र में हस्ताक्षर किये गए थे और इसे वर्ष 2017 में लागू किया गया।
  • इस अभिसमय का एक मुख्य उद्देश्य मानवजनित गतिविधियों से होने वाले ‘पारे’ के निर्मोचन को इसके पूरे जीवनचक्र में नियंत्रित करना है।
  • यह एक संयुक्त राष्ट्र संधि है।
  • यह अभिसमय, ‘पारा’ के अंतरिम भंडारण और अपशिष्ट में बदल जाने पर इसका निपटान,पारे से दूषित स्थलों और स्वास्थ्य-संबंधी मुद्दों का समाधान भी करता है।

भारत द्वारा इस अभिसमय की अभिपुष्टि की गईहै।

Current Affairs

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘पारा’ के बारे में- स्रोत, संदूषण और स्वास्थ्य पर प्रभाव।
  2. मिनामाता रोग के बारे में।
  3. मिनामाता सम्मेलन क्या है?
  4. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘घोषित ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ शीर्ष दस रसायन?
  5. किसी अभिसमय पर अभिपुष्टि करने का अर्थ।

मेंस लिंक:

पारा संदूषण पर एक टिप्पणी लिखिए और इस मुद्दे के समाधान के लिए किए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


एबेल पुरस्कार2022

(Abel Prize)

वर्ष 2022का ‘एबेल पुरस्कार’ (Abel Prize)प्रोफेसर डेनिस पार्नेल सुलिवन को दिया गया है।

  • प्रोफेसर सुलिवन को उनके “सांस्थिति(Topology) के अपने व्यापक अर्थों में, और विशेष रूप से इसके बीजीय, ज्यामितीय और गतिशील पहलुओं में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए” इस पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है।

पुरुस्कार के बारे में:

एबेल पुरस्कार,विश्व के उत्कृष्ट गणितज्ञों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।

  • यह 2002 में नॉर्वेजियन सरकार द्वारा स्थापित किया गया था, और इसे नॉर्वेजियन एकेडमी ऑफ साइंस एंड लेटर्स द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
  • पहला एबेल पुरस्कार, 2003 में फ्रांसीसी गणितज्ञ जीन-पियरे सेरे को प्रदान किया गया था।
  • यह पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के एकमात्र व्यक्ति श्रीनिवास एस.आर. वर्धन हैं। वह कूरेंट इंस्टीट्यूट, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं, और उन्होंने 2007 में इसपुरस्कार को जीता था।
  • अब तक, यह पुरस्कार केवल एक महिला गणितज्ञ, टेक्सास विश्वविद्यालय, यू.एस.ए. की करेन केस्कुल्ला उहलेनबेक को दिया गया है।

कुकी जनजाति

(Kuki Tribe)

  • मूल रूप से, ‘कुकी समुदाय’ मिज़ोरम में मिज़ो हिल्स (पूर्ववर्ती लुशाई) के मूल निवासी तथा एक जातीय समूह हैं।
  • पूर्वोत्तर भारत में, यह समुदाय अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों में मौजूद हैं।
  • ‘1917-1919′ का ‘द कुकी राइजिंग’, – जिसे कुकी समुदाय के उपनिवेश-विरोधी स्वतंत्रता संग्राम के रूप में भी देखा जाता है – अपनी भूमि को संरक्षित करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा गया था। WWII के दौरान, कुकी लोग अंग्रेजों से लड़ने के लिए भारतीय सेना में शामिल हुए थे।

एक अलग राज्य की मांग: आज कुकीसमुदाय को लगता है, कि अंग्रेजों के सामने कभी न झुकने के बावजूद, उपनिवेशवादियों को उखाड़ फेंकने में उनके योगदान को कभी स्वीकार नहीं किया गया, बल्कि उन्हें भारत की आजादी के बाद भी असुरक्षित छोड़ दिया गया है।

डॉक्सिंग

दुर्भावनापूर्ण इरादे से इंटरनेट पर दूसरों की व्यक्तिगत जानकारी को प्रकाशित और विश्लेषण करना ‘डॉक्सिंग’(Doxxing)कहलाता है। इस तरह के कार्य किसी व्यक्ति की वास्तविक पहचान को प्रकट कर सकते है और उन्हें उत्पीड़न और साइबर हमलों का शिकार बना सकते हैं।

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य

  • वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (Wayanad Wildlife Sanctuary), नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व (5,520 वर्ग किमी) का एक भाग है, और दक्षिण भारत के ‘हाथी अभ्यारण्य संख्या 7 का एक महत्वपूर्ण घटक है।
  • यह केरल का एकमात्र अभयारण्य है जहाँ चार सींग वाले मृग देखे जाने की जानकारी मिली है।
  • अभयारण्य में मिस्र के गिद्ध, हिमालयी ग्रिफॉन और सिनेरियस गिद्धों की उपस्थिति की भी सूचना मिली है। किसी समय केरल में हर जगह पायी जाने वाले गिद्धों की दो प्रजातियां, लाल सिर वाले और सफेद पीठ वाले गिद्ध, अब वायनाड पठार तक ही सीमित हैं।
  • ‘नागरहोल-बांदीपुर-मुदुमलाई-वायनाड’ वन परिसर, देश के सबसे महत्वपूर्ण बाघ आवासों में से एक है।
  • वन्यजीव प्रभाग के वन, काबिनी नदी प्रणाली की सहायक नदियों के लिए प्रमुख जलग्रहण क्षेत्र हैं।

मांडा भैंस

मांडा भैंस(Manda Buffalo), पूर्वी घाट और ओडिशा के कोरापुट क्षेत्र के पठार में पायी जाती है।

  • ‘मांडा’ परजीवी संक्रमण के लिए प्रतिरोधी हैं, बीमारियों से कम ग्रसित होती हैंऔर इसके अलावा मामूली संसाधनों पर जीवित रह सकती हैं।
  • नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सेज (NBAGR) ने 2021 में मांडा भैंस को भारत में पाई जाने वाली भैंसों की 19वीं अनूठी नस्ल के रूप में मान्यता दी थी।

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