[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 23 March 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-I

  1.   तेलंगाना के बोधन शहर में शिवाजी की प्रतिमा पर विवाद

सामान्य अध्ययन-II

  1. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
  2. ‘फिनलैंडाइजेशन’ क्या है?
  3. खुले सागरों पर संधि

सामान्य अध्ययन-III

  1. कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन
  2. फ्लाई ऐश

    प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

  1. लामितिये – 2022
  2. नवरोज

 


सामान्य अध्ययनI


विषय:18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।

तेलंगाना के बोधन शहर में शिवाजी की प्रतिमा पर विवाद

संदर्भ:

छत्रपति की प्रतिमा की स्थापना को लेकरहो रहे विरोध प्रदर्शनों के हिंसक होने के बाद तेलंगाना के ‘बोधन शहर’ (Bodhan town) में धारा 144 लागू कर दी गई है।

छत्रपति शिवाजी के बारे में प्रमुख तथ्य:

  • जन्म: वर्ष 1627 में शिवनेर के किले में।
  • पिता : शाहजी भोंसले।
  • माता : जीजा बाई।
  • वर्ष 1637 में अपने पिता से पूना की जागीर विरासत में मिली।

छत्रपति शिवाजी की उपलब्धियां:

प्रारंभिक दौर की उपलब्धियां:

  1. शिवाजी ने सबसे पहले बीजापुर के शासक को हराते हुए रायगढ़, कोंडाना और तोरण पर विजय प्राप्त की।
  2. 1647 में अपने अभिभावक दादाजी कोंडादेव की मृत्यु के बाद शिवाजी ने उनकी जागीर का पूर्ण प्रभार ग्रहण किया।
  3. उसने मराठा सरदार चंदा राव मोरे को पराजित कर ‘जावली’ पर कब्जा कर लिया। इस विजय के पश्चात् वह ‘मावला क्षेत्र’के स्वामी बन गए।
  4. 1657 में, उन्होंने बीजापुर साम्राज्य पर हमला किया और कोंकण क्षेत्र में कई पहाड़ी किलों पर कब्जा कर लिया।
  5. बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के खिलाफ युद्ध करने के लिए अफजल खान को भेजा। लेकिन शिवाजी ने 1659 में अफजल खान की साहसिक तरीके से हत्या कर दी थी।

शिवाजी के सैन्य अभियान एवं विजय:

  • शिवाजी की सैन्य विजयों ने उन्हें मराठा क्षेत्र में एक महान व्यक्ति बना दिया। मुगल बादशाह औरंगजेब, शिवाजी के अधीन मराठा शक्ति के हो रहे उदय को उत्सुकतापूर्वक देख रहा था।
  • औरंगजेब ने दक्कन के मुगल सूबेदार‘शाइस्ता खान’ को शिवाजी पर नियंत्रण करने के लिए भेजा। इस युद्ध में शिवाजी को मुगल सेना के हाथों हार का सामना करना पड़ा और ‘पूना’पर वापस मुगलों का अधिकार हो गया।
  • लेकिन, शिवाजी ने एक बार फिर 1663 में पूना में शाइस्ता खान के सैन्य शिविर पर एक साहसिक हमला किया, और इस युद्ध में शाइस्ता खान का बेटा मारा गया और शाइस्ता खान घायल हो गया।
  • 1664 में, शिवाजी ने मुगलों के मुख्य बंदरगाह सूरत पर हमला किया और उसे लूट लिया।
  • औरंगजेब ने आमेर के राजा जय सिंह को भेजकर शिवाजी को हराने के लिए दूसरा प्रयास किया। राजा जय सिंह ‘पुरंदर’ के किले को घेरने में सफल रहे।

पुरंदर की संधि,1665:

जून 1665 में शिवाजी और राजा जय सिंह प्रथम (औरंगजेब के प्रतिनिधित्व) के बीच पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।

  • संधि के अनुसार, शिवाजी को अपने कब्जे वाले 35 किलों में से 23 किलों को मुगलों को सौंपना पड़ा था।
  • शेष 12किले मुगल साम्राज्य के प्रति सेवा और निष्ठा की शर्त पर शिवाजी के अधिकार में रहने दिए गए।
  • दूसरी ओर, मुगलों ने बीजापुर साम्राज्य के कुछ हिस्सों पर शिवाजी के अधिकार को मान्यता दी।

मुगलों के खिलाफ नए सिरे से युद्ध:

  • शिवाजी ने 1670 में सूरत पर दूसरी बार हालमा किया और उसे लूट लिया।
  • नए सिरे से मुगलों के खिलाफ छेड़ी लड़ाई में शिवाजी ने लगातार जीत हासिल करते हुए लगभग अपने सभी खोए हुए प्रदेशों पर भी कब्जा कर लिया।
  • 1674 में शिवाजी ने रायगढ़ में राज्याभिषेक किया गया और उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की।

शिवाजी की प्रशासनिक नीतियां:

शिवाजी ने एक सुदृढ़ प्रशासन प्रणाली की नींव रखी। उनकी शासन पद्धति में ‘राजा’ सरकार की धुरी था, और उसकी सहायता के लिए ‘अष्टप्रधान’ नामक मंत्रिपरिषद का गठन किया गया था।

  • पेशवा – वित्त और सामान्य प्रशासन। बाद में पेशवा प्रधानमंत्री बन गए।
  • सर-ए-नौबत या सेनापति–सेनानायक, एक मानद पद।
  • अमात्य – महालेखाकार।
  • वक़नवीस – खुफिया, पोस्ट और घरेलू मामले।
  • सचिव – पत्राचार।
  • सुमंत – समारोहों के प्रमुख।
  • न्यायधीश – न्याय।
  • पंडितराव – दान और धार्मिक प्रशासन।

राजस्व नीतियां:

भूमि को मापने के लिए ‘काठी’ (KATHI) नामक एक छड़ का उपयोग किया जाता था। भूमि को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था – धान के खेत, बगीचे की भूमि और पहाड़ी भूमि।

कर: मराठा साम्राज्य के बाहर गल साम्राज्य या दक्कन सल्तनत के पड़ोसी क्षेत्रों में ‘चौथ’ और ‘सरदेशमुखी’ नामक कर वसूले किए जाते थे।

  • चौथ(Chauth),मराठों के हमलों से बचने के लिए दिए जाने वाला कर था, इसके तहत भू-राजस्व का एक चौथाई हिस्सा कर के रूप में वसूला जाता था।
  • सरदेशमुखी(Sardeshmukhi),मराठों द्वारा वंशानुगत अधिकार का दावा की जाने वाली भूमि पर उपज या आय पर वसूला जाने वाला का दस प्रतिशत अतिरिक्त कर था।

शिवाजी सैन्य प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे और उनकी सेना अच्छी तरह से संगठित थी:

उनकी मराठा घुड़सवार सेना दो विभागों में विभाजित थी:

  • ‘बारगीर’ (Bargirs):राज्य द्वारा सुसज्जित और भुगतान किया जाता था।
  • सिलाहदार(Silahdars): सामंतों द्वारा रखी जाने वाली सेना।

पैदल सेना में, मावली पैदल सैनिकों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

Do you know about TaanajiMalusare and the Battle of Singhagad? Reference: read this.

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘तानाजी मालुसरे’ और ‘सिंहगढ़ की लड़ाई’ के बारे में जानते हैं? संदर्भ।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. शिवाजी के बारे में
  2. शिवाजी की नीतियां
  3. शिवाजी की सैन्य विजय
  4. शिवाजी से जुड़े युद्ध
  5. बारगीर
  6. सिलहदार

मेंस लिंक:

शिवाजी की सैन्य नीतियों के बारे में चर्चा कीजिए और उनके महत्व पर टिप्पणी कीजिए।

https://indianexpress.com/article/explained/controversy-over-shivaji-statue-telangana-bodhan-town-7829183/lite/.

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग


(National Commission for Scheduled Tribes – NCST)

संदर्भ:

हाल ही में,एक संसदीय समिति द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट के अनुसार, ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (National Commission for Scheduled Tribes – NCST)पिछले चार वर्षों सेनिष्क्रियहै, और आयोग द्वारा संसद को एक भी रिपोर्ट नहीं दी गयी है।

आयोग की लंबित रिपोर्ट में शामिल हैं:

  • आंध्र प्रदेश में इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना का जनजातीय आबादी पर पड़ने वाले प्रभाव पर ‘आयोग’ द्वारा एक अध्ययन।
  • राउरकेला स्टील प्लांट के कारण विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास और पुनर्वास पर एक विशेष रिपोर्ट।

‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (NCST) के कामकाज से जुड़ी चुनौतियां/मुद्दे:

  • जनशक्ति और बजटीय कमी।
  • पात्रता मानक अत्यधिक ऊँचे होने की वजह से आवेदकों की कम संख्या।
  • शिकायतों के समाधान और आयोग को प्राप्त होने वाले मामलों के लंबित होने की दर भी 50 प्रतिशत के करीब है।

‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’के बारे में:

‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (NCST) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वां संशोधन) अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A अंतःस्थापित करके की गयी थी।

इस संशोधन द्वारा तत्कालीन राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को 19 फरवरी, 2004 से दो अलग-अलग आयोगों नामतः (i) राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, और (ii) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में विभक्त किया गया था।

संरचना:

अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा प्रत्येक सदस्य के कार्यालय की अवधि कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्षों की होती है।

  • अध्यक्ष को संघ के मंत्रिमंडल मंत्री का दर्जा दिया गया है, और उपाध्यक्ष राज्य मंत्री तथा अन्य सदस्य सचिव, भारत सरकार का दर्जा दिया गया है।
  • ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ के सभी सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत वारंट द्वारा की जाती है।
  • आयोग के सदस्यों में कम से कम एक महिला सदस्य होना अनिवार्य है।
  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करते हैं।
  • आयोग के सदस्य दो से अधिक कार्यकाल के लिए नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।

आयोग की शक्तियां:

आयोग में अन्वेषण एवं जांच के लिए सिविल न्यायालय की निम्नलिखित शक्तियाँ निहित की गयी हैं:

  1. किसी व्यक्ति को हाजिर होने के लिए बाध्य करना और समन करना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
  2. किसी दस्तावेज का प्रकटीकरण और पेश किया जाना;
  3. शपथ पर साक्ष्य ग्रहण करना;
  4. किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करना,
  5. साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करना; और
  6. कोई अन्य विषय जिसे राष्ट्रपति, नियम द्वारा अवधारित करें।

रिपोर्ट:

अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों/योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों और उपायों के कामकाज पर आयोग द्वारा सालाना अपनी रिपोर्टराष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती है।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NCSTके बारे में।
  2. NCSC के बारे में।
  3. संबंधित संवैधानिक प्रावधान
  4. अनुच्छेद 338 और 338A के बारे में।
  5. कार्य

मेंस लिंक:

‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ (NCST) के कार्यों की विवेचना कीजिए।

https://www.google.com/amp/s/www.thehindu.com/news/national/national-commission-for-scheduled-tribes-is-dysfunctional-house-panel/article65238335.ece/amp/.

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

 

फ़िनलैंडाइज़ेशन


(Finlandization)

संदर्भ:

फ्रांस के राष्ट्रपति ने सुझाव दिया है, कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त होने पर यूक्रेन का ‘फिनलैंडकरण’ / फ़िनलैंडाइज़ेशन (Finlandization), युद्ध का एक वास्तविक परिणाम हो सकता है।

‘फ़िनलैंडाइज़ेशन’ क्या है?

  • फ़िनलैंडाइज़ेशन (Finlandization)से तात्पर्य, मॉस्को (रूस) और पश्चिमी देशों के बीच ‘तटस्थता की कड़ी नीति’ से है।फिनलैंड ने शीत युद्ध के दशकों के दौरान ‘तटस्थता की नीति’ का सख्ती से पालन किया था।
  • ‘तटस्थता का सिद्धांत’ (Principle of Neutrality)का आधार‘मित्रता, सहयोग और पारस्परिक सहायता’समझौते (अथवाYYA संधि) में निहित है। इस समझौते पर फिनलैंड ने अप्रैल 1948 में USSR के साथ हस्ताक्षरित किए थे।

निहितार्थ:

संधि के अनुच्छेद 1 के अनुसार- “फिनलैंड, या फ़िनिश क्षेत्र के माध्यम से सोवियत संघ पर, जर्मनी अथवा अन्य सहयोगी देशों (अर्थात,अनिवार्य रूप सेसंयुक्त राज्य अमेरिका) द्वारा द्वारा सशस्त्र हमले का निशाना बनने की स्थिति में, फ़िनलैंडएक स्वतंत्र देश के रूप में अपने दायित्वों के प्रति सच्ची निष्ठा दिखाते हुए, हमले को रोकने के लिए युद्ध करेगा”।

  • ऐसे मामलों में फिनलैंड अपनी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिएभूमि, समुद्र और वायु द्वारा अपने सभी उपलब्ध बलों का उपयोग करेगा, और फिनलैंड की सीमाओं के भीतर वर्तमान समझौते में परिभाषित दायित्वों के अनुसार और, यदि आवश्यक हो, सोवियत संघ की सहायता से या संयुक्त रूप सेयुद्ध प्रतिरोध करेगा।
  • ऐसे मामलों में, सोवियत संघ फ़िनलैंड के लिए आवश्यकतानुसार,अनुबंध करने वाले पक्षों के बीच आपसी समझौते के अधीन, सहायता प्रदान करेगा।

यूक्रेन और फिनलैंडकरण:

यूक्रेन, जो पहले सोवियत संघ का एक भाग था, रूस के प्रभाव का विरोध करते हुए, आर्थिक और राजनीतिक रूप से पश्चिमी देशों की ओर तेजी से झुकता जा रहा है।

  • 2008 में, NATO के अनुसार,अंततः यूक्रेन के गठबंधन में शामिल होने की योजना बनाई गयी थी, जोकि यूक्रेन में एकलोकप्रिय विचार था। हालाँकि यूक्रेनने वास्तव में नाटो की सदस्यता के लिए कभी आवेदन नहीं किया था, और नाटो के अधिकारियों का कहना है कि फ़िलहाल निकट भविष्य में यूक्रेन को गठबंधन में शामिल नहीं किया जाएगा।
  • “फिनलैंडीकरण” या फ़िनलैंडाइज़ेशन से ‘मास्को’ को यूक्रेन के मामलों में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करने की अनुमति प्रदान करेगा। और यह, यूक्रेन के लिए नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने के प्रयास के खिलाफ होगा।

https://www.google.com/amp/s/indianexpress.com/article/explained/everyday-explainers/explained-ukraine-finlandisation-war-with-russia-7830261/lite/.

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

 

खुले सागरों पर संधि


(Treaty of the High Seas)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारोंसे परे समुद्री जैविक विविधताक्षेत्रों’ (Marine Biodiversity of Areas Beyond National Jurisdiction -BBNJ) के संरक्षण और सतत उपयोग पर एक दस्तावेज का मसौदा तैयार करने हेतु न्यूयॉर्क में ‘अंतर सरकारी सम्मेलन’(Intergovernmental Conference की चौथी बैठक(IGC-4) आयोजित की गई थी।

IGC-4 का आयोजन ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (United Nations Convention on Law of Seas – UNCLOS)के तहत किया गया था।

BBNJसंधि के बारे में:

‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों से परे समुद्री जैविक विविधता क्षेत्रों’ (Marine Biodiversity of Areas Beyond National Jurisdiction – BBNJ) को ‘खुले सागरों पर संधि’ या “उच्च समुद्र की संधि” (Treaty of the High Seas)के रूप में भी जाना जाता है।वर्तमान में, यह संधि संयुक्त राष्ट्र में वार्ता के अधीन,‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों से परे समुद्री जैविक विविधता क्षेत्रोंके संरक्षण और संधारणीय उपयोग’ पर एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

  • यह नया दस्तावेज, समुद्र में मानव गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला मुख्य अंतरराष्ट्रीय समझौता अर्थात ‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UNCLOS)के ढांचे के भीतर विकसित किया जा रहा है।
  • इसमें, खुले सागरों में समुद्री गतिविधियों के अधिक समग्र रूप से प्रबंधन हेतु प्रावधान किए जाएंगे,जिससे समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत उपयोग को बेहतर ढंग से संतुलित किया जा सकेगा।
  • ‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों से परे समुद्री जैविक विविधता क्षेत्रों’ (BBNJ)के अंतर्गत ‘विशेष आर्थिक क्षेत्रोंया देशों के राष्ट्रीय जलक्षेत्र से आगे के, खुले समुद्रों (High Seas)शामिल होते हैं।

महत्व:

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के अनुसार, ये क्षेत्र “पृथ्वी की सतह का लगभग आधा भाग” है।
  • इन क्षेत्रों को शायद ही विनियमित किया जाता है, और इन क्षेत्रों की जैव विविधता में बारे अत्यल्प जानकारी उपलब्ध है तथा अभी तक इस सन्दर्भ में न्यूनतम अन्वेषण किए गए हैं– इन क्षेत्रों से केवल 1% क्षेत्र ही संरक्षित हैं।

वार्ता समझौते के पांच निम्नलिखित पहलू हैं:

  1. उच्च समुद्रों / खुले सागरों में की जाने वाली गतिविधियों का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन।
  2. समुद्री आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण।
  3. क्षमता निर्माण।
  4. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण।
  5. संस्थागत संरचना और वित्तीय सहायता जैसे क्रॉस-कटिंग मुद्दे।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप खुले सागर से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधिके बारे में जानते हैं?

प्रीलिम्स लिंक:

  1. महाद्वीपीय शेल्फ के बारे में
  2. अंतर्राष्ट्रीय सागर-नितल प्राधिकरणके बारे में
  3. UNCLOS के बारे में
  4. EEZ के बारे में
  5. स्थायी मध्यस्थता अदालत (PCA)क्या है?
  6. खुले सागर से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधि के बारे में

मेंस लिंक:

‘खुले सागर से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संधि’ के महत्व की विवेचना कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


सामान्य अध्ययनIII


विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन


(National Mission on use of Biomass in coal based thermal power plants)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग’ (Commission for Air Quality Management – CAQM)द्वारा ‘ताप विद्युत संयंत्रों’ में ‘बायोमास को-फायरिंग’ (Biomass Co-firing)प्रक्रिया में प्रगति की समीक्षा की गयी।

समीक्षा के दौरान, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने इस बात पर गौर किया कि ‘ताप विद्युत संयंत्रों’ (टीपीपी) द्वारा को-फायरिंग और टेंडरिंग की दिशा में वांछित स्तर की प्रगति नहीं की गई है।

पृष्ठभूमि:

मई 2021 में, खेतों में पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान करने और ताप विद्युत उत्पादन के ‘कार्बन फुटप्रिंट’ को कम करने के लिए, विद्युत मंत्रालय द्वारा ‘कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के इस्तेमाल को लेकर एक राष्ट्रीय मिशन’ (National Mission on use of Biomass in coal based thermal power plants) स्थापित करने का निर्णय लिया गया था।

मिशन के उद्देश्य:

  1. ताप विद्युत संयंत्रों से कार्बन न्यूट्रल बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा पाने के लिए को-फायरिंग (Co-Firing) के स्तर को वर्तमान 5 प्रतिशत से बढ़ाकर उच्च स्तर तक ले जाना।
  2. बायोमास गठ्ठों में सिलिका तथाक्षार तत्वों की अधिक मात्रा को संभालने के लिए बॉयलर डिजाइन में अनुसंधान एवं विकास(R&D) गतिविधियां शुरू करना।
  3. बायोमास गठ्ठों एवं कृषि अवशेषों की आपूर्ति श्रृंखला में बाधाओं को दूर करने और बिजली संयंत्रों तक इसके परिवहन की सुविधा प्रदान करना।
  4. बायोमास को-फायरिंग केसंबंध में नियामक मुद्दों पर विचार करना।

कार्यान्वयन:

  • मिशन में सचिव (विद्युत) की अध्यक्षता में एक संचालन समिति होगी जिसमें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG), नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) आदि के प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारक शामिल होंगे।
  • सीईए सदस्य (ताप) कार्यकारी समिति के अध्यक्ष होंगे। एनटीपीसी द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय मिशन में रसद और बुनियादी ढांचा सहायता प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभाई जाएगी।

‘बायोमास को-फायरिंग’ क्या है?

‘बायोमास को-फायरिंग’ (Biomass Co-firing)का तात्पर्य, किसी बॉयलर के भीतर प्राकृतिक गैस और कोयले जैसे अन्य ईंधनों के साथ बायोमास पदार्थोंकेबराबर मात्रा में सम्मिश्रण और दहन से होता है।बायोमास को-फायरिंग से लागत और बुनियादी ढांचे मेंबिना को महत्वपूर्ण निवेश किए, ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रयुक्त होने वाले जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी और उत्सर्जन में कटौती होती है।

को-फायरिंग’ के लाभ:

  • बायोमास को-फायरिंग, ऊर्जा उत्पादन हेतु जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी करने और इस प्रकार ग्रीनहाउस गैसोंके उत्सर्जन में कटौती करने के लिए एक आशाजनक तकनीक है।
  • कोयला और बायोमास को-फायरिंग, लागू करने में आसान है, और वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड (CO2) एवंअन्य प्रदूषकों (SOx, NOx) केउत्सर्जन को प्रभावी रूप कम करने के लिए जिम्मेदार है।
  • इस नए ईंधन मिश्रण के लिए दहन आउटपुट को समायोजित करने के बाद, बायोमास को कोयले के साथ दहन करने पर बॉयलर की क्षमता में कोई कमी नहीं होती है।

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या भारत में कोई विशुद्ध रूप से प्राकृतिक गैस आधारित ‘थर्मल प्लांट’ कार्यरत हैं? इस बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।

प्रीलिम्स लिंक:

  1. बायोमास को-फायरिंग क्या है?
  2. लाभ
  3. संबंधित मुद्दे
  4. पराली जलाने से उत्सर्जित होने वाली गैसें

मेंस लिंक:

बायोमास को-फायरिंग पर एक टिप्पणी लिखिए

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

फ्लाई ऐश


(Fly Ash)

हाल ही में, ‘पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ (MoEFCC) द्वारा नागपुर के कोराडी और खापरखेड़ा में स्थित कोयला-चालित विद्युत् संयंत्रों के कारण होने वाली प्रदूषण समस्याओं की निगरानी के लिए एक समिति बनाने के निर्देश जारी किए गए हैं। दोनों संयंत्रों को ‘फ्लाई-ऐश’ का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया गया है।

Current Affairs

फ्लाई ऐश’ क्या होती है?

इसे आमतौर ‘चिमनी की राख’ अथवा ‘चूर्णित ईंधन राख’ (Pulverised Fuel Ash) के रूप में जाना जाता है। यह कोयला दहन से निर्मित एक उत्पाद होती है।

फ्लाई ऐश का संयोजन:

यहकोयला-चालितभट्टियों(Boilers) से निकलने वाले महीन कणों से निर्मित होती है।

  • भट्टियों में जलाये जाने वाले कोयलेकेस्रोततथा उसकी संरचनाकेआधार पर, फ्लाई ऐश के घटक काफी भिन्न होते हैं, किंतु सभी प्रकार की फ्लाई ऐश में सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2), एल्यूमीनियम ऑक्साइड (Al2O3) और कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
  • फ्लाई ऐश के सूक्ष्म घटकोंमें,आर्सेनिक, बेरिलियम, बोरोन, कैडमियम, क्रोमियम, हेक्सावलेंट क्रोमियम, कोबाल्ट, सीसा, मैंगनीज, पारा, मोलिब्डेनम, सेलेनियम, स्ट्रोंटियम, थैलियम, और वैनेडियम आदिपाए जाते है। इसमें बिनाजले हुए कार्बन के कण भी पाए जाते है।

स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संबंधी खतरे:

  • विषाक्त भारी धातुओं की उपस्थति: फ्लाई ऐश में पायी जाने वाली, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम, लेड, आदि सभी भारी धातुएं प्रकृति में विषाक्त होती हैं। इनके सूक्ष्म व विषाक्त कण श्वसन नालिका में जमा हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे विषाक्तीकरण का कारण बनते रहते हैं।
  • विकिरण: परमाणु संयंत्रो तथा कोयला-चालित ताप संयत्रों से समान मात्रा में उत्पन्न विद्युत् करने पर, परमाणु अपशिष्ट की तुलना में फ्लाई ऐश द्वारा सौ गुना अधिक विकिरण होता है।
  • जल प्रदूषण:फ्लाई ऐश नालिकाओं के टूटने और इसके फलस्वरूप राख के बिखरने की घटनाएं भारत में अक्सर होती रहती हैं, जो भारी मात्रा में जल निकायों को प्रदूषित करती हैं।
  • पर्यावरण पर प्रभाव: आस-पास के कोयला आधारित विद्युत् संयंत्रों से उत्सर्जित होने वाले राख अपशिष्ट से मैंग्रोव का विनाश, फसल की पैदावार में भारी कमी, और कच्छ के रण में भूजल के प्रदूषण को अच्छी तरह से दर्ज किया गया है।

फ्लाई ऐश केउपयोग:

  1. कंक्रीट उत्पादन, रेत तथा पोर्टलैंड सीमेंट हेतु एक वैकल्पिक सामग्रीके रूप में।
  2. फ्लाई-ऐश कणों के सामान्य मिश्रण को कंक्रीट मिश्रण में परिवर्तित किया जा सकता है।
  3. तटबंध निर्माण और अन्य संरचनात्मक भराव।
  4. सीमेंट धातुमल उत्पादन – (चिकनी मिट्टी के स्थान पर वैकल्पिक सामग्री के रूप में)।
  5. नरम मिट्टी का स्थिरीकरण।
  6. सड़क निर्माण।
  7. ईंट निमार्ण सामग्री के रूप में।
  8. कृषि उपयोग: मृदासुधार, उर्वरक, मिट्टी स्थिरीकरण।
  9. नदियों पर जमी बर्फ पिघलाने हेतु।
  10. सड़कों और पार्किंग स्थलों पर बर्फ जमाव नियंत्रण हेतु।current affairs

प्रीलिम्स लिंक:

  1. फ्लाई ऐश क्या है?
  2. स्रोत
  3. प्रदूषक
  4. संभावित अनुप्रयोग

मेंस लिंक:

फ्लाई ऐश क्या होती है? मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर इसकाक्या प्रभाव पड़ताहै?

स्रोत: पीआईबी।

 

 

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


लामितिये – 2022

(LAMITIYE-2022)

भारतीय सेना और सेशेल्स रक्षा बलों (Seychelles Defence Forces -SDF) के बीच 9वां संयुक्त सैन्य अभ्यास लामितिये– 2022,(LAMITIYE-2022)सेशेल्स रक्षा अकादमी (एसडीए) सेशेल्स में आयोजित किया जा रहा है।

  • भारतीय सेना और सेशेल्‍स रक्षा बल दोनों की एक-एक इन्फैंट्री प्लाटून कंपनी मुख्यालय के साथ इस अभ्यास में भाग लेंगी।
  • ‘सेशेल्स’ पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित एक द्वीपसमूह है, जिसमें लगभग 115 द्वीप हैं।
  • लामितिये, जिसका क्रेओल भाषा (Creole) में अर्थ दोस्ती होता है, 2001 से सेशेल्स में आयोजित होने वाला एक द्विवार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है।
  • इसका उद्देश्य दोनों सेनाओं के बीच कौशल, अनुभव और अच्छी प्रथाओं का आदान-प्रदान करने के अलावा द्विपक्षीय सैन्य संबंधों को बनाना और बढ़ावा देना है।

नवरोज

नवरोज़(Navroz), पारसियों (पारसी) और मुसलमानों (शिया और सुन्नी दोनों) के लिए नए साल का जश्न है।

  • यह हर साल 21 मार्च को मनाया जाता है।
  • 1079 ईस्वी में, जलालुद्दीन मालेकशाह नामक एक फारसी (ईरानी) राजा ने राजस्व बढ़ाने और लोगों से कर एकत्र करने के लिए इस त्योहार की शुरुआत की थी।
  • यह त्यौहार,21 मार्च को वसंत की शुरुआत और विषुव के दिन को चिह्नित करने के लिए मनाया गया था।
  • यह यूनेस्को की ‘भारत की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची’ में अंकित है।
  • भारत में इसे ‘जमशेद नवरोज’ के नाम से जाना जाता है।

 

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