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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-I
1. 12 मार्च को ‘दांडी यात्रा’ के स्मरण में कार्यक्रम
सामान्य अध्ययन-II
1. एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE+) रिपोर्ट, 2020-21
2. हाथ से मैला उठाना / मैनुअल स्कैवेंजिंग
3. ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा
4. युद्धकाल के दौरान जिनेवा कन्वेंशन दिशानिर्देश क्या हैं?
5. जिनेवा कन्वेंशन के युद्धकालीन दिशानिर्देश
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. चिल्का झील
2. भविष्य का संग्रहालय
3. न्यूट्रास्युटिकल उत्पाद
4. हैदराबाद में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र
सामान्य अध्ययन-I
विषय: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
12 मार्च को ‘दांडी यात्रा’ के स्मरण में कार्यक्रम
संदर्भ:
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुई ऐतिहासिक दांडी यात्रा (Dandi March) अप्रैल 1930 में पूरी हुई थी। यह यात्रा, देश में ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व जारी ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन का एक भाग थी। इस यात्रा को ‘साल्ट मार्च’ भी कहा जाता है।
‘दांडी मार्च’ के बारे में:
12 मार्च, 1930 को, महात्मा गांधी ने अपने 78 अन्य साथियों के साथ, अंग्रेज़ों द्वारा नमक पर लगाए गए कर के विरोध में, गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती आश्रम से राज्य के समुद्र तटीय क्षेत्र में स्थित दांडी नामक गाँव तक ऐतिहासिक दांडी मार्च /साल्ट मार्च की शुरुआत की थी।
- 21 दिन की पदयात्रा के बाद ये सत्याग्रही 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे और नमक-कानून का उल्लंघन किया।
- दांडी में नमक बनाने के बाद, गांधी जी 40 किमी दक्षिण में ‘धरसाना साल्ट वर्क्स’ पहुंचे, कितु 5 मई को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
नमक सत्याग्रह से जुड़े तथ्य:
दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन में, कांग्रेस पार्टी द्वारा ‘पूर्ण स्वराज’ का प्रस्ताव पारित किया गया था।
- 26 जनवरी, 1930 को ‘पूर्ण स्वराज’ की घोषणा की गयी थी और इसे हासिल करने के लिए ‘सविनय अवज्ञा’ का मार्ग अपनाने का निश्चय किया गया।
- महात्मा गांधी ने नमक-क़ानून तोड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसा का रास्ता चुना।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हेतु गांधीजी ने नमक सत्याग्रह को क्यों चुना?
प्रत्येक भारतीय के घर में, नमक एक अपरिहार्य वस्तु होती है, फिर भी अंग्रेजों ने लोगों को घरेलू उपयोग के लिए भी नमक बनाने से मना किया और इसे उच्च मूल्य पर दुकानों से खरीदने के लिए विवश किया गया था।
- नमक पर राज्य के एकाधिकार से जनता में काफी रोष व्याप्त था, इसी को लक्ष्य बनाते हुए गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक व्यापक स्तर पर जनता को आंदोलित करने का विचार किया।
- नमक के लिए ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की शुरुआत के प्रतीक के रूप में चुना गया क्योंकि नमक एक ऐसा पदार्थ माना जाता था जिस पर प्रत्येक भारतीय का मूल अधिकार था।
साल्ट मार्च या नमक सत्याग्रह के परिणाम:
- इस सत्याग्रह में ‘महिलाओं, दबे-कुचले वर्ग सहित बहुत सारी जनता एक साथ संगठित हुई।
- इस आंदोलन ने उपनिवेशवाद के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ने में अहिंसा की शक्ति का प्रदर्शन किया।
- 1931 में, महात्मा गांधी को रिहा कर दिया गया, और सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त करने के उद्देश्य से लॉर्ड इरविन से गांधी जी मिले।
- इस मुलाकात के परिणामस्वरूप, ‘गांधी-इरविन समझौते’ पर हस्ताक्षर किए गए, और सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त हो गया और भारतीयों को घरेलू उपयोग के लिए नमक बनाने की अनुमति दी गई।
इंस्टा जिज्ञासु:
दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर, भारत में गांधी का पहला आश्रम 25 मई 1915 को अहमदाबाद के ‘कोचराब क्षेत्र’ में स्थापित किया गया था। बाद में इस आश्रम को, 17 जून 1917 को साबरमती नदी के तट पर एक खुले भू-भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- साल्ट मार्च के बारे में
- कारण, प्रभाव और परिणाम
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के बारे में
- प्रमुख नेता
मेंस लिंक:
दांडी मार्च के महत्व और परिणामों की विवेचना कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
सामान्य अध्ययन-II
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE+) रिपोर्ट, 2020-21
संदर्भ:
हाल ही में, शिक्षा मंत्रालय द्वारा भारत की स्कूली शिक्षा पर ‘एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली’ (UDISE+) 2020-21 (Unified District Information System for Education Plus (UDISE+) 2020-21) पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की गयी है।
रिपोर्ट के बारे में:
विद्यालयों से ऑनलाइन डेटा संग्रह की UDISE+ प्रणाली को स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने वर्ष 2018-19 में विकसित किया गया था।
- इसका उद्देश्य दस्तावेज के प्रारूप में मैनुअल डेटा भरने के पहले की प्रक्रिया, और इसके बाद 2012-13 से संचालित UDISE डेटा संग्रह प्रणाली में प्रखंड या जिला स्तर पर कंप्यूटर पर फीडिंग से संबंधित समस्याओं को दूर करना है।
- UDISE+ प्रणाली में विशेष रूप से डेटा संग्रह, डेटा मानचित्रण और डेटा सत्यापन से संबंधित क्षेत्रों में सुधार किए गए हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
विद्यालयों में छात्र और शिक्षक:
- 2020-21 में प्राथमिक से उच्च माध्यमिक तक स्कूली शिक्षा में नामांकित कुल छात्रों की संख्या 25.38 करोड़ थी।
- इससे पहले 2019-20 में यह आंकड़ा 25.10 करोड़ था। अर्थात 2020-21 के दौरान नामांकन में 28.32 लाख की बढ़ोतरी हुई है।
सकल नामांकन अनुपात:
- ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio – GER), जो भागीदारी के सामान्य स्तर का मापन करता है, स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर 2019-20 की तुलना में 2020-21 के दौरान सुधार हुआ है।
- ‘सकल नामांकन अनुपात’ (GER) स्कूली शिक्षा में भागीदारी के सामान्य स्तर का मापन करता है।
- 2019-20 की तुलना में 2020-21 में स्तरवार GER में क्रमशः, उच्च प्राथमिक में 89.7 फीसदी से 92.2 फीसदी, प्राथमिक में 97.8 फीसदी से 99.1 फीसदी, माध्यमिक में 77.9 फीसदी से 79.8 फीसदी और उच्चतर माध्यमिक में 51.4 फीसदी से 53.8 फीसदी, वृद्धि हुई हैं।
- 2020-21 के दौरान विद्यालयों में कुल 96.96 लाख शिक्षक हैं। यह 2019-20 में शिक्षकों की संख्या की तुलना में लगभग 8800 अधिक है।
छात्र शिक्षक अनुपात:
- 2020-21 में ‘छात्र शिक्षक अनुपात’ (Pupil Teacher Ratio – PTR), प्राथमिक स्तर के लिए 26, उच्च प्राथमिक के लिए 19, माध्यमिक के लिए 18 और उच्च माध्यमिक स्तर के लिए 26 था। इसमें 2018-19 के बाद से सुधार दिख रहा है।
- 2018-19 के दौरान प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक के लिए ‘छात्र शिक्षक अनुपात’ (PTR), क्रमशः 28, 20, 21 और 30 था।
- 2020-21 में 12.2 करोड़ से अधिक लड़कियों ने प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक तक में नामांकन कराया है।
- इससे 2019-20 में लड़कियों के नामांकन की तुलना में 2020-21 में लड़कियों की संख्या में 11.8 लाख की बढ़ोतरी हुई है।
स्कूल का बुनियादी ढांचा:
- 2020-21 के दौरान कार्यात्मक बिजली की सुविधा से युक्त विद्यालयों की संख्या में प्रभावशाली बढ़ोतरी हुई है। इस वर्ष 57,799 विद्यालयों को विद्युत कनेक्शन प्रदान किया गया है।
- 2018-19 में 73.85 फीसदी की तुलना में अब कुल विद्यालयों में से 84 फीसदी में बिजली की सुविधा उपलब्ध है। यह इस अवधि के दौरान 10.15 फीसदी के उल्लेखनीय सुधार को दिखाता है।
- चालू पेयजल की सुविधा वाले विद्यालयों की हिस्सेदारी 2019-20 में 93.7 फीसदी से 2020-21 में बढ़कर 95.2 फीसदी हो गयी है।
- 2020-21 के दौरान 11,933 विद्यालयों में छात्राओं के लिए शौचालय का निर्माण किया गया है। इससे बालिका शौचालयों की सुविधा वाले विद्यालयों की संख्या 2019-20 में 93.2 फीसदी की तुलना में 2020-21 में बढ़कर 93.91 फीसदी हो गई है।
- चालू अर्थात कार्यात्मक स्थिति में कंप्यूटर की सुविधा वाले विद्यालयों की संख्या 2019-20 में 5.5 लाख से बढ़कर 2020-21 में 6 लाख हो गई। अर्थात इसमें 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अब 40 फीसदी विद्यालयों में कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध हैं।
- इंटरनेट सुविधा वाले विद्यालयों की संख्या 2.6 फीसदी बढ़कर 2020-21 में 3.7 लाख हो गई है। यह संख्या 2019-20 में 3.36 लाख थी।
कोविड- 19 महामारी का नामांकन पर प्रभाव:
2020-21 के दौरान सरकारी सहायता प्राप्त और निजी स्कूल के 39.7 लाख छात्रों को सरकारी विद्यालयों में स्थानांतरित हुए हैं।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
हाथ से मैला उठाना / मैनुअल स्कैवेंजिंग
(Manual Scavenging)
संदर्भ:
हाल ही में, मुंबई में कथित तौर पर ‘हाथ से मैला उठाने’ (Manual Scavenging) के लिए काम पर रखे गए तीन मजदूरों की ‘सेप्टिक टैंक’ में, जहरीले धुएं के कारण दम घुटने से मौत हो गई।
भले ही, भारत में ‘हाथ से मैला उठाने’ पर प्रतिबंध है, लेकिन यह प्रथा अभी भी देश के कई हिस्सों में प्रचलित है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग अर्थात ‘हाथ से मैला उठाना’ क्या है?
‘हाथ से मैला उठाना’ (Manual Scavenging) से आशय, किसी सीवर या सेप्टिक टैंक से किसी व्यक्ति द्वारा बिना किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के अपने हाथों से ही मानव मल (human excreta) की सफाई करने या ऐसे अपशिष्टों को सर पर ढोने की प्रथा से है।
- भारत में ‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013 – PEMSR) के अंतर्गत इस प्रथा पर प्रतिबंध लागू है।
- अधिनियम में ‘हाथ से मैला उठाने’ की प्रथा को “अमानवीय प्रथा” के रूप में वर्णित किया गया है और “हाथ से मैला उठाने वालों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय और अपमान को ठीक करने” की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है।
भारत में अभी भी ‘हाथ से मैला उठाने’ की प्रथा जारी रहने के कारण:
- अधिनियम के प्रवर्तन का अभाव।
- अकुशल श्रमिकों का शोषण।
- जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित प्रथा।
संवैधानिक गारंटी:
संविधान में अनुच्छेद 21 में सभी व्यक्तियों के लिए गरिमा के साथ ‘जीवन के अधिकार’ की गारंटी प्रदान की गयी है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है। इसलिए ‘हाथ से मैला उठाने’ पर लगाए गए प्रतिबंध को अक्षरश: लागू किया जाना चाहिए।
इस संबंध में उठाए गए अन्य कदम:
- चूंकि ‘हाथ से मैला उठाने वालों’ के रूप में कार्यरत 90% से अधिक कर्मी अनुसूचित जाति के है, अतः ‘अत्याचार निवारण अधिनियम’, 1989 (Prevention of Atrocities Act, 1989) लागू होने के उपरांत, यह ‘स्वच्छता कर्मियों’ के लिए एक एकीकृत गार्ड बन गया है। यह अधिनियम हाथ से मैला उठाने वालों’ को निर्दिष्ट पारंपरिक वृत्तियों से मुक्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बन चुका है।
- ‘सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती’ (Safaimitra Suraksha Challenge): इसे आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
- ‘स्वच्छता अभियान ऐप‘: इस ऐप को ‘अस्वच्छ शौचालयों’ और ‘हाथ से मैला उठाने वालों’ के डेटा को चिह्नित करने और जियोटैग करने के लिए विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य अस्वच्छ शौचालयों को स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तित करना तथा और ‘हाथ से मैला उठाने वाले’ सभी कर्मियों को जीवन की गरिमा प्रदान करने के लिए उनके पुनर्वास में सहायता करना है।
- सुप्रीम कोर्ट का फैसला: 2014 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक आदेश में, सरकार के लिए 1993 से सीवेज के काम में मारे गए लोगों का पता लगाना और प्रत्येक के परिवारों को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये प्रदान करना अनिवार्य किए गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- मैनुअल स्कैवेंजिंग
- अत्याचार निवारण अधिनियम
- सफाईमित्र सुरक्षा चुनौती
- इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- संविधान का अनुच्छेद 21
- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013
मेंस लिंक:
‘हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा
(Most Favoured Nation status)
संदर्भ:
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा और जापान द्वारा रूस को दिए गए “सबसे पसंदीदा राष्ट्र” (Most Favoured Nation – MFN) के दर्जे को वापस लेने के लिए संयुक्त रूप से कार्रवाई करने की योजना बनाई जा रही है।
‘सबसे पसंदीदा राष्ट्र’ (MFN) दर्जा के बारे में:
- ‘सबसे पसंदीदा राष्ट्र’ / ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा, दो देशों के बीच होने वाले व्यापार में, किसी भागीदार से- अन्य व्यापार भागीदारों की तुलना में- गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार सुनिश्चित करने हेतु ‘विशेष व्यवहार’ किए जाने का उपाय होता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत, कोई भी सदस्य देश अपने व्यापार भागीदारों के बीच भेदभाव नहीं कर सकता है। यदि किसी एक ‘व्यापार भागीदार’ को विशेष दर्जा दिया जाता है, तो इसे ‘विश्व व्यापार संगठन’ के सभी सदस्यों तक बढ़ाया जाना चाहिए।
क्या MFN दर्जे का तात्पर्य ‘वरीयतापूर्ण व्यवहार’ होता है?
शाब्दिक व्याख्या में, ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) का तात्पर्य ‘वरीयतापूर्ण व्यवहार’ (Preferential Treatment) नहीं होता है। बल्कि, इसका आशय ‘गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार’ (Non-Discriminatory Trade) से होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि MFN दर्जा प्राप्त करने वाला देश, यह दर्जा प्रदान करने वाले देश के अन्य व्यापार भागीदारों की तुलना में नुकसानदेह स्थिति में नहीं होगा।
- जब किसी देश को MFN का दर्जा प्रदान किया जाता होता है, तो उससे व्यापार बाधाओं को कम करने और टैरिफ में कमी की उम्मीद की जाती है।
- इस दर्जे के बाद भागीदारों के बीच, अधिक वस्तुओं के व्यापार और माल के मुक्त प्रवाह के लिए बाजार खुलने की भी अपेक्षा होती है।
MFN दर्जे को समाप्त करना:
- ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) के दर्जे को निलंबित करने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया निर्धारित नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि सदस्य देश, ऐसा करने पर ‘विश्व व्यापार संगठन’ को सूचित करने के लिए बाध्य हैं या नहीं।
- पाकिस्तान के एक इस्लामिक समूह द्वारा किए गए एक आत्मघाती हमले में 40 भारतीय पुलिसवालों के मारे जाने के बाद, भारत ने 2019 में पाकिस्तान को प्रद्दत MFN का दर्जा निलंबित कर दिया था। पाकिस्तान ने कभी भी भारत को MFN का दर्जा नहीं दिया।
MFN दर्जे के लाभ:
‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) का दर्जा विकासशील देशों के लिए बेहद फायदेमंद होता है।
- यह दर्जा, व्यापारिक वस्तुओं के लिए व्यापक बाजार तक पहुंच प्रदान करता है।
- अत्यधिक कम टैरिफ और व्यापार बाधाओं के कारण निर्यात वस्तुओं की कम लागत हो जाती है।
- अधिक प्रतिस्पर्धी व्यापार की ओर ले जाता है।
- यह दर्जा नौकरशाही बाधाओं को कम करता है और सभी आयातों के लिए विभिन्न प्रकार के शुल्कों को सममूल्य पर निर्धारित किया जाता है।
- यह, माल की मांग को बढ़ाता है और अर्थव्यवस्था एवं निर्यात क्षेत्र को बढ़ावा देता है।
- MFN दर्जा, व्यापार संरक्षणवाद के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को ठीक करता है।
MFN दर्जे के नुकसान:
- इसका मुख्य नुकसान यह है, कि MFN दर्जा देश को विश्व व्यापार संगठन के सदस्य अन्य सभी व्यापार भागीदारों के साथ समान व्यवहार करना पड़ता है।
- यह दर्जा, एक कीमत संबंधी युद्ध और परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग की संवेदनशीलता में तब्दील हो जाता है।
- MFN दर्जा प्राप्त देश, घरेलू उद्योग को सस्ते आयात से बचाने में सक्षम नहीं हो पाता है, और इस कीमत युद्ध में, कुछ घरेलू खिलाड़ियों को भारी नुकसान या विकास प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
जिनेवा कन्वेंशन के युद्धकालीन दिशानिर्देश
संदर्भ:
24 फरवरी से जारी यूक्रेन पर रूस के सशस्त्र हमलों से यूक्रेन की धरती पर युद्धस्थिति में लगातार वृद्धि होती जा रही है, और इन हमलों के दौरान कई मामलों में ‘नागरिक बुनियादी ढांचे’ और आम नागरिक प्रभावित हुए हैं।
ऐसी स्थिति में ‘मानवाधिकारों के उल्लंघन’ संबंधी मुद्दों को लेकर चिंता बढ़ रही है।
आगे की कार्रवाई:
- जैसे-जैसे नागरिक आबादी में हताहतों की संख्या बढ़ती जा रही है, संपूर्ण विश्व हमलावर रूसी सेनाओं को जिम्मेवार ठहराने के लिए जिनेवा अभिसमयों (Geneva Conventions) में निर्धारित मानदंडो की ओर उत्सुकता से देख रहा है।
- अंतत:, अगर युद्ध अपराधों, मानवता के खिलाफ अपराध, नरसंहार और आक्रामकता के अपराध के लिए ‘लड़ाई में भाग लेने वालो’ पर मुकदमा चलाने के लिए एक जोरदार मामला बनाता है, तो ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (ICC) में जांच और सुनवाई के लिए साक्ष्य एकत्र किए जाएंगे। .
जिनेवा अभिसमयों के बारे में:
जिनेवा अभिसमय (Geneva Conventions) ‘लोक अंतर्राष्ट्रीय कानूनों’ (Public International Law) का एक समूह है, जिसे ‘सशस्त्र संघर्षों के मानवीय कानून’ (Humanitarian Law of Armed Conflicts) के रूप में भी जाना जाता है। इनका उद्देश्य सशस्त्र संघर्षों का शिकार होने वाले व्यक्तियों के लिए न्यूनतम सुरक्षा, मानवीय उपचार के मानकों और सम्मान की मौलिक गारंटी प्रदान करना है।
आज की अनिश्चितता की दुनिया में ‘जिनेवा अभिसमयों’ का महत्व:
जिनेवा कन्वेंशन, राष्ट्रों के बीच युद्ध होने की स्थिति में भी हमें ‘व्यक्ति’ को देखने की याद दिलाते हैं।
- इन समझौतों में, युद्ध की स्थिति में पकडे गए कैदियों के साथ किए जाने वाले व्यवहार के लिए नियमों को निर्धारित किया गया है, विशेषकर युद्धबंदियों (Prisoners Of War – POWs) के बारे में यह स्पष्ट रूप कहा गया है कि, युद्धबंदी, उन्हें कैद करने वाली सैन्य टुकड़ी की बजाय, उस टुकड़ी को नियंत्रित करने वाली ‘सत्ता’ के कैदी होंगे, तथा उनके साथ सम्मान-जनक व्यवहार किया जाना चाहिए, और मानवीय परिस्थितियों में रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।
- इन समझौतों में निर्धारित ‘प्रोटोकॉल’ में यह भी तय किया गया है, कि युद्धबंदियों को सच्चाई से केवल अपना नाम और रैंक बताने की जरूरत होगी, और उन्हें अपने बारे में या उन कार्यों के बारे में अन्य विवरण प्रकट करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
- समझौते में तय की गयी इन सभी चेतावनियों का उद्देश्य ‘व्यक्ति को मानवता की धुरी’ के रूप में स्थापित करना है।
जिनेवा अभिसमयों में, मूल रूप से केवल ‘लड़ाई में भाग लेने वालों’ के प्रति किए जाने वाले व्यवहार का समाधान किया गया था, किंतु बाद में ‘गैर-लड़ाकों और नागरिकों को भी शामिल करने के लिए इन समझौतों में विस्तार किया गया था।
निगरानी:
जिनेवा अभिसमयों में ‘रक्षक शक्तियों’ (Protecting Powers) का तंत्र स्थापित किया गया है। ये ‘रक्षक शक्तियां’ युद्ध के दौरान, संबंधित पक्षकारों पार्टियों द्वारा ‘अभिसमयों’ के प्रावधानों का पालन किया जाना यह सुनिश्चित करती है। सैद्धांतिक रूप में, प्रत्येक पक्षकार द्वारा, लड़ाई में भाग नहीं लेने वाले राष्ट्रों को ‘रक्षक शक्तियों’ के रूप में नामित किया जाता है। व्यवहार में, आमतौर पर यह भूमिका ‘रेड क्रॉस’ की अंतर्राष्ट्रीय समिति निभाती है।
‘जिनेवा अभिसमयों’ पर हस्ताक्षरकर्ता देश:
जिनेवा अभिसमयों को संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों सहित 196 राष्ट्रों द्वारा अनुमोदित किया गया है।
जिनेवा अभिसमयों के चार अभिसमयों और दो प्रोटोकॉल की अभिपुष्टि, पूर्ववर्ती सोवियत संघ द्वारा की गई थी। रूस ने इन अभिसमयों पर हस्ताक्षर नहीं किए है, इसलिए वर्तमान रूसी सरकार द्वारा अभिसमय के तहत, किसी भी जिम्मेदारी को पूरी तरह से अस्वीकार किए जाने की आशंका है।
इंस्टा जिज्ञासु:
नैतिकता और युद्ध अपराधों (Ethics and War Crimes) के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- जिनेवा कन्वेंशन द्वारा परिभाषित युद्ध अपराधों की परिभाषा
- ‘अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय’ (ICC) के बारे में
- सदस्य और अधिकार क्षेत्र
मेंस लिंक:
‘युद्ध अपराध’ क्या हैं? इन्हें किस प्रकार निर्धारित किया जाता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
भारत-कनाडा के बीच ‘व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता’ के लिए फिर से वार्ता का आरंभ
संदर्भ:
हाल ही में, भारत और कनाडा, दोनों देशों के बीच ‘व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता’ (Comprehensive Economic Partnership Agreement – CEPA) के लिए फिर से वार्ता शुरू करने के लिए औपचारिक रूप से सहमत हुए है।
इसके अलावा, दोनों देशों के लिए शुरुआती वाणिज्यिक लाभ पहुचाने में सक्षम, एक अंतरिम समझौते या प्रारंभिक प्रगति व्यापार समझौता (Early Progress Trade Agreement – EPTA) पर भी विचार किया जाएगा।
आवश्यकता:
इस व्यापार समझौता से विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार संभावनाओं को बढ़ाने से वस्तु और सेवा क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार के विस्तार में मदद मिलेगी।
भारत-कनाडा व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA):
- सितंबर 2008 में आयोजित, भारत-कनाडा के सीईओ गोलमेज बैठक में इस बात की अनुशंसा की गयी थी, कि द्विपक्षीय व्यापार के एक बड़े हिस्से पर शुल्कों को समाप्त करके, भारत और कनाडा दोनों ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते’ (CEPA) से अत्यधिक लाभान्वित होंगे।
- इस CEPA में वस्तु व्यापार, सेवा व्यापार, उत्पाद-उत्पत्ति नियम, स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपाय, व्यापार में तकनीकी बाधाएं और आर्थिक सहयोग के अन्य क्षेत्र शामिल किए जाएंगे।
CECA और CEPA के मध्य अंतर:
- CECA का तात्पर्य ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता’ (Comprehensive Economic Cooperation Agreement) होता है, जबकि
- CEPA का तात्पर्य ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (Comprehensive Economic Partnership Agreement) से है।
CECA और CEPA के बीच प्रमुख “तकनीकी” अंतर यह है, कि ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) में ‘नकारात्मक सूची’ और टैरिफ दर कोटा (TRQ) में शामिल मदों को छोड़कर, सूचीबद्ध/सभी वस्तुओं पर चरणबद्ध तरीके से केवल “टैरिफ में कमी/उन्मूलन” को शामिल किया जाता है।
- ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) के अंतर्गत, सेवाओं, निवेश तथा ‘आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों’ में व्यापार को भी शामिल किया जाता है।
- अतः CEPA, ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) की तुलना में अधिक व्यापक होता है, और इसका विस्तार अधिक होता है।
- आमतौर पर, किसी देश के साथ पहले ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) पर हस्ताक्षर किए जाते हैं और उसके बाद ‘व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता’ (CEPA) के लिए बातचीत शुरू की जाती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि भारत 2019 में UAE’s का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य, और दूसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार देश था, और अब तक लगभग 11 बिलियन डॉलर के संचयी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ आठवां सबसे बड़ा निवेशक देश है?
मेंस लिंक:
भारत-कनाडा ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता’ (CECA) के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
चिल्का झील
उड़ीसा सरकार ने ‘चिल्का झील’ (Chilika Lake) के मंगलाजोड़ी क्षेत्र में (Mangalajodi area) में मछली पकड़ने वाली मशीनीकृत नौकाओं की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव किया है। इसका उद्देश्य पंखों वाले मेहमानों को हर साल छह महीने के लिए एक अबाधित पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना है। ‘चिल्का झील’ का मंगलाजोड़ी क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का एक महत्वपूर्ण अड्डा है।
मंगलाजोड़ी को पक्षियों के संरक्षण के लिए विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रवासी पक्षी यहाँ बसेरा स्थापित करने के लिए पहुंचते हैं।
‘चिल्का’ के बारे में:
- चिल्का (Chilika), की लंबाई उत्तर-दक्षिण दिशा में 64 किलोमीटर, तथा पूर्व-पश्चिम दिशा में चौड़ाई 5 किमी है।
- यह झील, सातपाड़ा के निकट उथले और संकरे चैनल के माध्यम से समुद्र से जुडती है। इस चैनल में कई बालू के ढेर (shoals), सैंड स्पिट्स, बालुका रोध पाए जाते हैं, जिससे झील का पानी का प्रवाह समुद्र की और नहीं हो पाटा है, तथा यह संरचनाएं ज्वारीय प्रवाह को भी झील में आने से रोकती हैं।
- चिल्का, एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी लैगून है।
- यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के लिए सबसे बड़ा शीतकालीन मैदान है और कई संकटग्रस्त पौधों और जीव प्रजातियों का वास स्थल है।
- वर्ष 1981 में, चिल्का झील को रामसर अभिसमय के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की पहली भारतीय आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया था।
- चिल्का का प्रमुख आकर्षण इरावदी डॉल्फ़िन हैं जिन्हें अक्सर सतपाड़ा द्वीप के नकदीक देखा जाता है।
- इस लैगून क्षेत्र के लगभग 16 वर्ग किमी में एक नलबन द्वीप (सरकंडो का जंगल) है, जिसे वर्ष 1987 में एक ‘पक्षी अभयारण्य’ (Nalbana Bird Sanctuary) घोषित किया गया था।
- कालिजई मंदिर – चिलिका झील में एक द्वीप पर स्थित है।
भविष्य का संग्रहालय
दुबई में स्थित ‘भविष्य के संग्रहालय’ अर्थात ‘म्यूजियम ऑफ़ दी फ्यूचर’ (Museum of the Future) को हाल ही में जनता के लिए खोल दिया गया है।
- ‘म्यूजियम ऑफ़ दी फ्यूचर’, अभिनव और भविष्यवादी विचारधाराओं, सेवाओं और उत्पादों के लिए एक प्रदर्शनी स्थल है।
- इस संग्रहालय का लक्ष्य, तकनीकी विकास और नवाचार – खासकर रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में बढ़ावा देना है।
न्यूट्रास्युटिकल उत्पाद
(Nutraceuticals products)
‘न्यूट्रास्युटिकल्स’ (Nutraceuticals) एक ‘अम्ब्रेला शब्द’ है जिसका उपयोग, खाद्य स्रोतों से प्राप्त- खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले मूल पोषक मात्रा के अलावा अतिरिक्त स्वास्थ्य-लाभकारी- किसी भी उत्पाद का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
- न्यूट्रास्युटिकल उत्पादों को, सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, लक्षणों को नियंत्रित करने और घातक प्रक्रियाओं को रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ‘गैर-विशिष्ट जैविक उपचार’ के रूप में माना जा सकता है।
- “न्यूट्रास्युटिकल” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – न्यूट्रीयंट (Nutrient) अर्थात “पोषक तत्व” (एक पौष्टिक खाद्य घटक) और “फार्मास्युटिकल” (चिकित्सा दवा)।
संदर्भ:
सुलभ, मानकीकृत और सस्ती जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से, प्रधान मंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) केंद्रों ने, अपने ग्राहकों के लिए प्रोटीन पाउडर और बार, माल्ट-आधारित खाद्य पूरक और ‘इम्युनिटी बार’ सहित न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद अपनी सूची में शामिल किए हैं।
हैदराबाद में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र
हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायधीश ने हैदराबाद में ‘अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ (International Arbitration Centre) की नींव रखी।
- इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता और मध्यस्थता केंद्र ट्रस्ट’ द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- IAMC -हैदराबाद ‘वैकल्पिक विवाद समाधान’ के लिए भारत का पहला मध्यस्थता केंद्र है।
‘मध्यस्थता’ क्या होती है?
मध्यस्थता (Arbitration), एक वैकल्पिक विवाद समाधान (alternative dispute resolution- ADR) प्रक्रिया होती है, जिसमें एक या एक से अधिक मध्यस्थों के समक्ष, किसी समझौते से संबंधित पक्षकारों द्वारा समझौते से संबंधित विवाद पेश किए जाते है। विवाद पर इन मध्यस्थों का निर्णय संबंधित पक्षकारों के लिए बाध्यकारी होता है।
मध्यस्थता को, पक्षकारों द्वारा ‘निजी विवाद समाधान प्रक्रिया’ को अदालत जाने के बजाय एक विकल्प के रूप में चुना जाता है।
सुलह समझौता के बारे में:
सुलह (Conciliation), भी एक वैकल्पिक विवाद समाधान उपाय है, जिसके तहत, पक्षकार ‘सुलहकर्ता’ की सहायता से एक सौहार्दपूर्ण विवाद समाधान तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। ‘सुलहकर्ता’ एक तटस्थ तीसरे पक्ष के रूप में कार्य करता है।
यह एक स्वैच्छिक कार्यवाही है, जिसमें शामिल पक्ष सहमत होने के लिए स्वतंत्र होते हैं और सुलह द्वारा अपने विवाद को सुलझाने का प्रयास करते हैं।
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