[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 7 March 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-II

1. ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ के लिए जांच हेतु सामान्य सहमति

2. हरियाणा सरकार का धर्मांतरण-रोधी कानून

3. मानवीय गलियारे

4. लोकतंत्र रिपोर्ट 2022

 

सामान्य अध्ययन-III

1. प्रीडेटरी प्राइसिंग

2. आरबीआई की ‘मौद्रिक नीति समिति’

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. ब्रह्मोस मिसाइल का उन्नत संस्करण

2. नॉर्दन रिवर टेरापिन

3. ‘कवच’- ट्रेन सुरक्षा प्रणाली

4. हंसा-एनजी

5. बोल्ट्जमान मेडल

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।

‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ के लिए जांच हेतु सामान्य सहमति


संदर्भ:

हाल ही में, मेघालय द्वारा राज्य में मामलों की जांच के लिए ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (Central Bureau of Investigation – CBI) को प्राप्त ‘सामान्य सहमति’ (General consent) वापस ले ली गयी है। इसके बाद, मेघालय इस तरह का कदम उठाने वाला नौवां राज्य बन गया है।

सीबीआई से सहमति वापस वाले आठ अन्य राज्य – महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम हैं।

Current Affairs

 

पृष्टभूमि:

पिछले साल नवंबर में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) द्वारा प्रस्तुत की गयी एक जानकारी पर चिंता व्यक्त की गयी थी, जिसमे बताया गया था कि, वर्ष 2018 से जांच हेतु मंजूरी देने के लिए सीबीआई द्वारा किए गए लगभग 150 अनुरोध आठ राज्य सरकारों के पास लंबित हैं। इन राज्यों ने ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ के लिए जांच हेतु सामान्य सहमति’ (General consent to CBI) वापस ले ली है।

सहमति की आवश्यकता:

केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ (Delhi Special Police Establishment Act) के अंतर्गत कार्य करती है। अधिनियम के अनुसार- किसी राज्य में केंद्रीय जांच ब्यूरो के लिए किसी मामले की जांच करने हेतु, उस राज्य की सहमति अनिवार्य है।

‘सहमति’ दो प्रकार की होती है:

  1. केस-विशिष्ट सहमति (Case-specific consent)
  2. सामान्य या आम सहमति (General consent)

चूंकि, सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, हालांकि, यह किसी राज्य में राज्य सरकार के कर्मचारियों अथवा किसी हिंसक अपराध से जुड़े मामले की जांच उस राज्य द्वारा सहमति दिए जाने के पश्चात कर सकती है।

आम तौर पर, सीबीआई को राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जांच करने में मदद करने हेतु संबधित राज्य द्वारा सामान्य सहमति (General consent) प्रदान की जाती है।

सहमति वापस लेने का तात्पर्य:

  • इसका सीधा सा अर्थ है कि जब तक राज्य सरकार द्वारा अनुमति नहीं दी जायेगी, सीबीआई अधिकारी, राज्य में प्रवेश करने पर पुलिस अधिकारी के रूप में प्राप्त शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।
  • महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय का अर्थ है, कि पश्चिम बंगाल में दर्ज होने वाले प्रत्येक मामले की जांच के लिए सीबीआई को अब राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी।

किस प्रावधान के तहत आम सहमति वापस ली जा सकती है?

दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत, राज्य सरकारें सीबीआई को दी जाने वाली ‘सामान्य सहमति’ वापस ले सकती हैं।

सामान्य सहमति की वापसी से सीबीआई की जांच पर प्रभाव:

  • राज्य सरकार द्वारा ‘सामान्य सहमति’ वापस लिए जाने से, पहले के मामलों में चल रही जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • इसके अलावा, देश के अन्य राज्यों में मामला दर्ज होने पर, जिन राज्यों में ‘आम सहमति’ जारी है, तथा मामले से संबंधित व्यक्ति यदि उस राज्य में, जहाँ आम सहमति वापस ले ली गई है, ठहरे हुए है, तो सीबीआई इन राज्यों में भी अपनी जांच कर सकती है।

 

कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला:

हाल ही में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ‘सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे अवैध कोयला खनन और पशु तस्करी से संबंधित एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, कि केंद्रीय एजेंसी को दूसरे राज्य में केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी की जांच करने से नहीं रोका जा सकता है। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

  • विनय मिश्रा बनाम सीबीआई में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस साल जुलाई में फैसला सुनाया कि भ्रष्टाचार के मामलों को पूरे देश में एक तरीके से देखा जाना चाहिए, और केंद्र सरकार के किसी कर्मचारी केवल इसलिए ‘विशेष’ नहीं समझा जा सकता है क्योंकि उसका कार्यालय उस राज्य में स्थित था, जिसने ‘सीबीआई से सामान्य सहमति’ वापस ले ली थी।
  • उच्च न्यायालय ने यह भी कहा, कि सहमति वापस लेना, केवल राज्य सरकार के कर्मचारी से संबंधित मामलों में लागू होगा।

सीबीआई की स्वायत्तता संबंधी मुद्दे:

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) में 2018 के संशोधन के बाद, केंद्र सरकार को न केवल प्रशासनिक रूप से, बल्कि कानूनी रूप से भी सीबीआई पर सत्ता का प्रयोग करने की शक्ति प्राप्त हो गयी है।

2018 में, सरकार ने अधिनियम की धारा 17A में संसद के माध्यम से संशोधन किए गए, जिसके तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने से पहले सीबीआई को केंद्र सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

अनुच्छेद 131 के तहत कोई भी ‘वाद’- विशेष रूप से राज्यों के बीच या केंद्र और राज्य के बीच विवादों के संबंध में- सर्वोच्च न्यायालय में दायर किए जाते हैं। क्या आप ‘सर्वोच्च न्यायालय’ के मूल अधिकार क्षेत्र के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. सीबीआई और इसकी स्थापना
  2. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
  3. आम सहमति क्या होती है?
  4. राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने के प्रभाव

मेंस लिंक:

क्या आम सहमति वापस लेने तात्पर्य यह हो सकता है कि सीबीआई अब किसी मामले की जांच नहीं कर सकती? चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

हरियाणा सरकार का धर्मांतरण-रोधी कानून


(Haryana govt’s anti-conversion Bill)

संदर्भ:

हाल ही में, छह बार के विधायक डॉ. रघुवीर सिंह कादियान को हरियाणा विधानसभा में सदन के पटल पर विधेयक की एक प्रति फाड़ने के बाद निलंबित कर दिया गया था।

अब तक, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने अवैध तरीके से किए जाने वाले धर्म-परिवर्तनों को रोकने के लिए कानून बनाए जा चुके हैं।

हरियाणा गैरकानूनी धर्मांतरण रोकथाम विधेयक, 2022 के बारे में:

(Haryana Prevention of Unlawful Conversion of Religious Bill, 2022)

इस विधेयक में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से, या विवाह के द्वारा अथवा विवाह के लिए, किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित करने तथा इस पर रोक लगाने  का प्रस्ताव किया गया है।

सजा: विधेयक में अवयस्क, महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संबंध में ऐसे धर्मांतरण के लिए अधिक दंड का प्रावधान किया गया है।

साबित करने का दायित्व: विधेयक में अभियुक्त पर यह साबित करने का दायित्व सौंपा गया है, कि धर्मांतरण गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके के प्रभाव से नहीं हुआ है, या धर्म- परिवर्तन विवाह के द्वारा अथवा विवाह के लिए नहीं किया गया है।

घोषणा: एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने वाला प्रत्येक व्यक्ति निर्धारित प्राधिकारी को एक घोषणा प्रस्तुत करेगा कि धर्म परिवर्तन गलत बयानी, बल प्रयोग, धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा या विवाह के लिए नहीं था और ऐसा प्राधिकारी ऐसे मामलों में जांच करेगा।

इस विधेयक को पेश करने के पीछे दिए गए तर्क:

भारत के संविधान के अनुच्छेद 255, 26, 27 और 28 के तहत ‘धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी दी गई है जो भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है।

  • संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
  • हालाँकि, अंत:करण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार का अर्थ लगाने के लिए नहीं किया जा सकता है; क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति और जिस व्यक्ति ने धर्मांतरण की मांग की है, का समान रूप से है।
  • फिर भी, सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के धर्मांतरण के कई मामले सामने आए हैं।

‘धर्मांतरण विरोधी कानूनों के अधिनियमन’ के पीछे दिए जाने वाले तर्क:

  1. जबरन धर्म परिवर्तन की धमकी
  2. उकसावा या प्रलोभन की समस्या
  3. ‘धर्म परिवर्तन’ मौलिक अधिकार नहीं है।

आलोचकों का पक्ष:

कई विधि-वेत्ताओं द्वारा इस प्रकार के कानूनों की कड़ी आलोचना की गई है, इनका तर्क है, कि ‘लव जिहाद’ की अवधारणा का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है।

  • इन्होने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा है, संविधान, व्यक्तियों को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की गारंटी देता है।
  • साथ ही, अनुच्छेद 25 के तहत भी सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और अपनी पसंद के धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने, प्रचार करने, और किसी भी धर्म का पालन न करने के अधिकार की गारंटी दी गयी है।

विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने कई निर्णयों में यह कहा गया है, कि किसी वयस्क को अपना जीवन साथी चुनने संबंधी मामले में पूर्ण अधिकार होता है, और इस पर राज्य और अदालतों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, लिली थॉमस और सरला मुद्गल, दोनों मामलों में यह पुष्टि की है, कि धार्मिक विश्वास के बिना और कुछ कानूनी लाभ प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए धर्म-परिवर्तन का कोई आधार नहीं है।
  3. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 के ‘सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार’ मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि, किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ (अनुच्छेद 21) का भाग है।

समय की मांग:

  1. एकरूपता की आवश्यकता: मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 18 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है, जिसमे उनका धर्म परिवर्तन करने का अधिकार भी शामिल है। चूंकि यह राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार इस विषय पर, अनुबंध खेती पर मॉडल कानून आदि जैसा कोई एक मॉडल कानून बना सकती है।
  2. धर्मांतरण विरोधी कानून बनाते समय राज्यों को, अपनी इच्छा से धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के लिए कोई अस्पष्ट या अनेकार्थी प्रावधान नहीं करना चाहिए।
  3. धर्मांतरण विरोधी कानूनों में, अल्पसंख्यक समुदाय संस्थानों द्वारा धर्मांतरण के लिए कानूनी चरणों का उल्लेख करने संबंधी प्रावधान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
  4. लोगों को जबरदस्ती धर्मांतरण, प्रलोभन या प्रलोभन आदि से संबंधित प्रावधानों और तरीकों के बारे में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘विशेष विवाह अधिनियम,’ 1954 (SMA) अलग-अलग धर्मों को मानने वाले जोड़ों के विवाह की सुविधा के लिए बनाया गया था?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 21 के बारे में
  2. अनुच्छेद 25
  3. ‘विशेष विवाह अधिनियम’ (SMA) के बारे में
  4. किन राज्यों द्वारा धर्मांतरण रोधी कानून पारित किए जा चुके हैं।

मेंस लिंक:

जीवन साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ का भाग है। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

मानवीय गलियारे


(Humanitarian Corridors)

संदर्भ:

‘मानवीय गलियारे (Humanitarian Corridors)’ किसी विशिष्ट क्षेत्र में और एक विशिष्ट समय के लिए, युद्धरत पक्षों की सहमति से ‘विसैन्यीकृत किए गए क्षेत्र’ (Demilitarized Zones) होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘मानवीय गलियारों’ को सशस्त्र संघर्ष के अस्थायी विराम के कई संभावित रूपों में से एक माना जाता है।

Current Affairs

 

इन गलियारों का प्रयोग:

  • इन ‘मानवीय गलियारों’ का उपयोग, संघर्ष के क्षेत्रों में भोजन और चिकित्सा सहायता पहुँचाने अथवा नागरिकों को संघर्ष क्षेत्र से निकलने के लिए किया जा सकता है।

इन गलियारों की आवश्यकता और महत्व:

  • लड़ाई के दौरान जब शहरों की घेराबंदी की जाती है और वहां के निवासियों की खाद्य आपूर्ति, बिजली और पानी से कट जाती है, ऐसे में इन ‘मानवीय गलियारों’ की आवश्यकता होती है।
  • युद्ध के अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किए जाने पर ‘मानवीय आपदा’ की स्थिति उपस्थित हो जाती है, इस दौरान भी ‘मानवीय गलियारे’ महत्वपूर्ण राहत प्रदान करते हैं।

मानवीय गलियारे’ किसके द्वारा स्थापित किए जाते हैं?

ज्यादातर मामलों में, ‘मानवीय गलियारों’ को बनाए जाने हेतु ‘संयुक्त राष्ट्र’ द्वारा समझौता वार्ता की जाती है। किंतु कभी-कभी, इन्हें स्थानीय समूहों द्वारा भी स्थापित किया जाता है।

इनके दुरुपयोग संबंधी चिंता:

  • जिन स्थानों पर युद्ध अपराध किए जा रहे हों, उन विवादित क्षेत्रों तक पहुंच प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षकों, गैर सरकारी संगठनों और पत्रकारों द्वारा ‘मानवीय गलियारों’ का उपयोग किया जा सकता है।
  • हालांकि, इन गलियारों का सैन्य या राजनीतिक दुरूपयोग किए जाने का भी जोखिम रहता है। उदाहरण के लिए, ‘मानवीय गलियारों’ का इस्तेमाल घेराबंदी किए गए शहरों में हथियारों और ईंधन की तस्करी के लिए किया जा सकता है।

मानवीय गलियारों के उपयोग का अधिकार:

मानवीय गलियारों के उपयोग एवं इन तक पहुंच का अधिकार, प्रायः युद्धरत पक्षों द्वारा निर्धारित किया जाता है। आमतौर पर, इनके इस्तेमाल का अधिकार, तटस्थ अभिकर्ताओं, संयुक्त राष्ट्र या रेड क्रॉस जैसे सहायता संगठनों तक सीमित होता है।

  • युद्धरत पक्षों द्वारा ‘मानवीय गलियारों’ को जारी रखने की अवधि, क्षेत्र और परिवहन के साधनों – ट्रकों, बसों या विमानों – के उपयोग करने की अनुमति भी निर्धारित की जाती है।
  • दुर्लभ मामलों में, युद्धरत पक्षों में से किसी एक पक्ष द्वारा भी ‘मानवीय गलियारों’ का निर्धारण किया जाता है। इस प्रकार की एक घटना, 1948-1949 में सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की नाकेबंदी के बाद अमेरिकी एयरलिफ्ट के दौरान हुई थी।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘मानवीय गलियारे’ क्या होते हैं?
  2. इन गलियारों की स्थापना कौन करता है?
  3. इनका उपयोग किस लिए किया जाता है?
  4. महत्व

मेंस लिंक:

मानवीय गलियारों की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

लोकतंत्र रिपोर्ट 2022


(Democracy Report 2022)

संदर्भ:

हाल ही में, स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय की एक संस्था ‘वैराइटी ऑफ डेमोक्रेसी’ (वी-डेम) इंस्टिट्यूट (Varieties of Democracy (V-Dem) Institute) द्वारा ‘लोकतंत्र रिपोर्ट’ / ‘डेमोक्रेसी रिपोर्ट’ (Democracy Report) का नवीनतम संस्करण जारी किया गया है।

इस रिपोर्ट का शीर्षक डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2022: ऑटोक्रेटाइजेशन चेंजिंग नेचर?’ (‘Democracy Report 2022: Autocratisation Changing Nature?’) है।

‘लोकतंत्र रिपोर्ट’ के बारे में:

इस रिपोर्ट में, वी-डेम के ‘उदार लोकतंत्र सूचकांक’ (Liberal Democratic Index – LDI) के आधार पर देशों को चार शासन प्रकारों वर्गीकृत किया गया है:

  1. लिबरल डेमोक्रेसी या उदार लोकतंत्र (Liberal Democracy)
  2. इलेक्टोरल डेमोक्रेसी या चुनावी लोकतंत्र (Electoral Democracy)
  3. इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी या चुनावी तानाशाही (Electoral Autocracy) और
  4. क्लोज्ड ऑटोक्रेसी या संवृत्त तानाशाही (Closed Autocracy) ।

रिपोर्ट का सामान्य अवलोकन:

  • लोकतंत्रीकरण की तुलना में, निरंकुशीकरण या तानाशाहीकरण (Autocratisation) के दौर से गुजरने वाले देशों की संख्या दोगुने से अधिक है।
  • वर्ष 2021 में औसत वैश्विक नागरिक को प्राप्त लोकतंत्र का स्तर, 1989 के स्तर तक गिर गया है।
  • साथ ही, शीत युद्ध के बाद की अवधि में लोकतांत्रिक स्थिति में हुई वृद्धि, पिछले कुछ वर्षों के तेजी से घटती जा रही है।
  • संपूर्ण विश्व में तानाशाही तेजी से फैलती जा रही है, और लगभग 33 देशों में निरंकुश शासन की स्थापना हो चुकी है।
  • स्वीडन को ‘उदार लोकतंत्र सूचकांक’ (LDI) में शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है। अन्य स्कैंडिनेवियाई देश जैसे डेनमार्क और नॉर्वे, कोस्टा रिका और न्यूजीलैंड, इस सूचकांक के शीर्ष पांच देशों में शामिल अन्य देश हैं।

भारत का प्रदर्शन:

  • रिपोर्ट में भारत को एक ‘चुनावी तानाशाही’ (Electoral Autocracy) वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इसे ‘लिबरल डेमोक्रेटिक इंडेक्स’ में शामिल 179 देशों की सूची में 93वां स्थान प्रदान किया गया है।
  • रिपोर्ट में भारत को दुनिया के शीर्ष दस ‘तानाशाह’ देशों में से एक बताया गया है।
  • भारत, एक ‘बहुलवाद विरोधी राजनीतिक दल’ द्वारा देश को तानाशाहीकरण को ओर ले जाने वाली व्यापक वैश्विक प्रवृत्ति का हिस्सा है।
  • ‘लिबरल डेमोक्रेटिक इंडेक्स’ में 93वें स्थान पर मौजूद भारत, सूचकांक के निचले 50 प्रतिशत देशों में शामिल है।
  • भारत की स्थिति, ‘इलेक्टोरल डेमोक्रेसी इंडेक्स’ में और नीचे गिरकर 100 पर पहुँच गयी है, और ‘डेलिवरेटिव कंपोनेंट इंडेक्स’ इसका स्थान नीचे गिर कर 102 पर पहुँच गया है।
  • दक्षिण एशिया में, भारत का स्थान ‘लिबरल डेमोक्रेटिक इंडेक्स’ में श्रीलंका (88), नेपाल (71), और भूटान (65) से नीचे और केवल पाकिस्तान (117) से ऊपर है।

समग्र स्थिति के पीछे कारण:

“विषाक्त ध्रुवीकरण” (Toxic Polarisation), निरंकुशता या तानाशाही के सबसे बड़े कारकों में से एक है। 2011 में, 5 देशों में बढ़ते ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति देखी गयी थी, इसके विपरीत 2021 में “विषाक्त ध्रुवीकरण” 40 देशों में व्यापत एक प्रमुख प्रवृत्ति है।

  • तानाशाही करण (Autocratisation) को ‘लोकतंत्र के विचारशील घटक’ से संबद्ध पहलुओं और ‘प्रतिवाद’ (Counter-Arguments) के सम्मान को नष्ट करने वाली घटना के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • गलत सूचनाओं का नीतिगत उपकरण के रूप में प्रयोग: रिपोर्ट में “गलत सूचना” (Misinformation) को ध्रुवीकरण को तेज करने तथा घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय राय को आकार देने हेतु निरंकुश सरकारों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले एक प्रमुख उपकरण के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • ‘नागरिक समाज का दमन’ और ‘मीडिया पर सेंसरशिप’: ये निरंकुश शासन के अन्य पसंदीदा उपकरण है।
  • ‘राजनीतिक घृणास्पद भाषणों’ के उभार ने भी स्थिति को प्रभावित किया है।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।

 प्रीडेटरी प्राइसिंग


(Predatory Pricing)

संदर्भ:

हाल ही में, ‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ (Competition Commission of India – CCI) द्वारा एक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ‘शॉपी’ (Shopee) के खिलाफ लगाए गए ‘परभक्षी कीमतों’ या ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ (Predatory Pricing) के आरोपों को खारिज कर दिया गया है।

Current Affairs

 

 

शॉपी’ के खिलाफ प्रतिस्पर्धा मानदंडों के उल्लंघन संबंधी आरोप:

  • ‘शॉपी’ (Shopee) द्वारा छोटे खुदरा विक्रेताओं से प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के इरादे से विभिन्न उत्पादों को बेहद कम कीमतों पर बेचा जाता है।
  • उदाहरण के लिए, ‘शॉपी’ की महा छूट की रणनीति के तहत 1, 9 रुपये और 49 रुपये में उत्पादों की लुभावनी सेल का आयोजन किया जाता है, जिसका उद्देश्य ग्राहकों के एक बड़े आधार को आकर्षित करना और ‘उपभोक्ता की वरीयता संबंधी डेटा’ का संग्रह करना रहता है, जिसका उपयोग कंपनी अपने लाभ के लिए कर सकती है।

शॉपी’ के बारे में:

  • ‘शॉपी’ (Shopee) सिंगापुर की एक बहुराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी कंपनी है, जो मुख्य रूप से ई-कॉमर्स पर केंद्रित है।
  • ‘शॉपी’ का स्वामित्व ‘एसईए लिमिटेड’ (SEA Limited) नामक एक कंपनी के पास है। यह कंपनी ‘गरेना:फ्री फायर’ (Garena: Free Fire) नामकं एक लोकप्रिय मोबाइल गेम की भी भी मालिक है, जोकि भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित 54 ऐप्स में शामिल है।
  • 2021 तक, ‘शॉपी’ को व्यापक रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बड़ा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म माना जाता है।

‘भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ (CCI) का फैसला:

चूंकि ‘शॉपी’ भारतीय बाजार में अच्छी तरह से स्थापित कंपनियों के तुलना में अपेक्षाकृत नयी कंपनी है, अतः इसके पास ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ के लिए महत्वपूर्ण बाजार शक्ति नहीं है।

‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ क्या है?

  • ‘परभक्षी कीमत निर्धारण’ या ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ (Predatory Pricing), प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के प्रयास के लिए ‘कीमतों’ को कम करने की एक अवैध प्रक्रिया होती है।
  • ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ बाजारों को एकाधिकार के प्रति अधिक संवेदनशील बना देती है, और इस प्रकार यह ‘स्पर्धारोधी कानूनों’ (Antitrust Laws) का उल्लंघन करती है।

Current Affairs

 

किसी कारोबार के ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ में लिप्त होने को निम्नलिखित आधारों पर साबित किया जा सकता है:

  • कारोबार या उद्यम, प्रासंगिक बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी होना चाहिए।
  • इसकी वस्तुओं या सेवाओं का विपणन लागत से कम कीमत पर किया जा रहा हो।
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के इरादे से, किसी उप-रणनीति का इस्तेमाल किया जा रहा है।

Current Affairs

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग’ के बारे में:

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI), भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है।

  • इसकी स्थापना प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 (Competition Act, 2002) के तहत अधिनियम के प्रशासन, कार्यान्वयन और प्रवर्तन के लिए की गई थी और मार्च 2009 में इसका विधिवत गठन किया गया था।
  • इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।

प्रतिस्पर्धा आयोग के कार्य:

  1. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का कार्य, प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
  2. आयोग, किसी क़ानून के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ पर प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श प्रदान करता है, तथा प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करता है।
  3. इसके अतिरिक्त, आयोग द्वारा सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने संबंधी कार्य एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है।

प्रतिस्पर्धा अधिनियम:

(The Competition Act)

राघवन समिति की सिफारिशों पर ‘एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार पद्धति अधिनियम’, 1969  (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act, 1969) अर्थात MRTP एक्ट को निरस्त कर, इसके स्थान पर ‘प्रतिस्पर्धा अधिनियम’, 2002 लागू किया गया था।

प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 का संशोधित स्वरूप ‘प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम’, 2007, प्रतिस्पर्धा-रोधी करारों, उद्यमों द्वारा प्रभावी स्थिति के दुरूपयोग का निषेध करता है तथा संयोजनों (अधिग्रहण, नियंत्रण तथा M&A की प्राप्ति) को विनियमित करता है; इन संयोजनों के कारण भारत में प्रतिस्पर्धा पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है अथवा उसके पड़ने की संभावना हो सकती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा नेटवर्क’ के बारे में जानते हैं? कार्टेल, बाजार में ‘एकाधिकार’ प्रणाली से भी बदतर कैसे हो सकते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के बारे में
  2. प्रतिस्पर्धा अधिनियम की मुख्य विशेषताएं और इसमें संशोधन।
  3. NCLT और उसके अधिकार क्षेत्र के बारे में
  4. कार्टेलाइजेशन क्या है?

मेंस लिंक:

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।

आरबीआई की ‘मौद्रिक नीति समिति’


(RBI’s Monetary Policy Committee)

संदर्भ:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के उदार नीतिगत रवैये का विरोध कर रहे, इसकी ‘मौद्रिक नीति समिति’ (Monetary Policy Committee – MPC) के सदस्य जयंत वर्मा ने हाल ही में कहा है, कि “आरबीआई के इस रवैये से भविष्य में ‘वक्र के पीछे रह जाने’ (falling behind the curve) का जोखिम है, क्योंकि रिज़र्व बैंक का यह समझौतापरक रवैया आगामी बैठकों में ‘मौद्रिक नीति समिति’ (MPC) की कार्रवाई की स्वतंत्रता को सीमित करता है”।

‘उदार नीतिगत रवैये’ का तात्पर्य:

‘उदार नीतिगत रवैये’ (Accommodative Policy Stance) का तात्पर्य है, कि केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए ‘मुद्रा आपूर्ति’ का विस्तार करने के लिए तैयार है। केंद्रीय बैंक, ‘उदार नीति अवधि’ के दौरान, ब्याज दरों में कटौती करने को तैयार रहती है।

‘मौद्रिक नीति समिति’ के बारे में:

  • केंद्र सरकार द्वारा गठित आरबीआई की ‘मौद्रिक नीति समिति’ (Monetary Policy Committee – MPC) का कार्य, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, बैंक दर, नकद आरक्षित अनुपात (CRR) जैसे उपकरणों का उपयोग करके ‘मौद्रिक नीति’ तैयार करने का है।
  • इसका गठन, भारत की केंद्र सरकार द्वारा 1934 में संशोधित आरबीआई अधिनियम की धारा 45ZB के तहत किया गया है।

कार्य:

‘मौद्रिक नीति समिति’ (MPC) को सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility – MSF) , रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और चलनिधि समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility) सहित विभिन्न नीतिगत दरों को तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

‘मौद्रिक नीति समिति’ की संरचना:

इस समिति में छह सदस्य होंगे। छह सदस्यों में से तीन को सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा। इस समिति में किसी भी सरकारी अधिकारी को मनोनीत नहीं किया जाएगा।

  • समिति के अन्य तीन सदस्य, आरबीआई से शामिल किए जाएंगे।
  • आरबीआई का गवर्नर,‘मौद्रिक नीति समिति’ पदेन अध्यक्ष होंगे।
  • मौद्रिक नीति के प्रभारी आरबीआई के डिप्टी गवर्नर, इस समिति के सदस्य होंगे।
  • साथ ही, केंद्रीय बैंक के कार्यकारी निदेशक भी इस समिति के सदस्य के रूप में कार्य करेंगे।

सदस्यों का चयन एवं कार्यकाल:

चयन: ‘मौद्रिक नीति समिति’ के लिए सरकार द्वारा मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों का चयन, कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में रिजर्व बैंक के गवर्नर और आर्थिक मामलों के सचिव एवं अर्थशास्त्र या बैंकिंग या वित्त या मौद्रिक नीति के क्षेत्र में तीन विशेषज्ञ सदस्यों की एक खोज-सह-चयन समिति द्वारा किया जाएगा।

कार्यकाल: ‘मौद्रिक नीति समिति’ के सदस्यों को चार साल की अवधि के लिए नियुक्त किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।

समिति की निर्णय प्रक्रिया:

‘मौद्रिक नीति समिति’ के निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाएंगे। समिति के प्रत्येक सदस्य को मत देना का अधिकार होगा।

आरबीआई गवर्नर की भूमिका: आरबीआई गवर्नर समिति की अध्यक्षता करेंगे। हालांकि, गवर्नर के पास समिति के अन्य सदस्यों को खारिज करने के लिए वीटो शक्ति नहीं होगी, किंतु ‘बराबर मत होने की स्थिति’ में उनका मत निर्णायक होगा।

‘आरबीआई की मौद्रिक नीति’ के बारे में:

‘मौद्रिक नीति’ शब्द का तात्पर्य ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की उस नीति से है जिसके तहत, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि को प्राप्त करने और मुद्रास्फीति दर को कम करने के उद्देश्य, से आरबीआई द्वारा अपने नियंत्रण में आने वाले मौद्रिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है।

‘भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934’ के अंतर्गत आरबीआई को मौद्रिक नीति बनाने की शक्ति प्रदान की गयी है।

मौद्रिक नीति के लक्ष्य:

मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य वृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है। मूल्य स्थिरता संधारणीय वृद्धि की आवश्यक पूर्व शर्त है।

  • ‘चक्रवर्ती समिति’ द्वारा दिए गए सुझावों के अनुसार, भारत की मौद्रिक नीति की कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएँ, मूल्य स्थिरता, आर्थिक विकास, इक्विटी, सामाजिक न्याय और नए वित्तीय उद्यमों के विकास को प्रोत्साहित करने जैसे पहलू हैं।
  • भारत सरकार द्वारा भारत की जीडीपी के विकास दर में तेजी लाने की कोशिश की जाती है, जबकि आरबीआई मुद्रास्फीति की दर को एक स्थायी सीमा के भीतर नीचे लाने की कोशिश में रहती है।
  • अपने मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, ‘मौद्रिक नीति समिति’ देश के समक्ष मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करने हेतु एक आदर्श नीति ब्याज दर निर्धारित करती है।

मौद्रिक नीति की लिखतें एवं उनका प्रबंधन:

(Monetary Policy Instruments and how they are managed)

मौद्रिक नीति लिखत (Monetary Policy Instruments) दो प्रकार के होते हैं, अर्थात् गुणात्मक लिखित और मात्रात्मक लिखित।

  1. मात्रात्मक लिखितों (Quantitative Instruments) की सूची में, ओपन मार्केट ऑपरेशंस, बैंक रेट, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, कैश रिजर्व रेशियो, वैधानिक लिक्विडिटी रेशियो, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी और लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF) शामिल होते हैं।
  2. गुणात्मक लिखितों (Qualitative Instruments) के तहत प्रत्यक्ष कार्रवाई, मार्जिन मनी में परिवर्तन और नैतिक दबाव (Moral Suasion) शामिल होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


 ब्रह्मोस मिसाइल का उन्नत संस्करण

हाल ही में, भारतीय नौसेना द्वारा ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के लंबी दूरी के नौसैनिक संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।

ब्रह्मोस के बारे में:

  • भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित।
  • विस्तारित मारक सीमा: 350 से 400-किमी।
  • गति: मच 2.8 पर ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना अधिक।
  • प्रकार: पनडुब्बी, जहाजों, विमान या भूमि से लॉन्च किया जा सकता है।
  • नामकरण: ब्रह्मोस का नामकरण भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदियों के नाम पर किया गया है।
  • इंजन: पहला चरण: ठोस रॉकेट बूस्टर; दूसरा चरण: लिक्विड रैमजेट (एयर ब्रीदिंग जेट इंजन)।
  • महत्व: यह वर्तमान में संचालन में दुनिया की सबसे तेज एंटी-शिप क्रूज मिसाइल है।

भविष्य की योजनाएं: 2016 में, भारत के मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का सदस्य बनने के बाद, भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से 800 किलोमीटर रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइलों की एक नई पीढ़ी को विकसित करने की योजना बनाई जा रही है।

 

नॉर्दन रिवर टेरापिन

‘नॉर्दन रिवर टेरापिन’ (Northern River Terrapin) दक्षिण पूर्व एशिया के मूल निवासी ‘नदीय कछुए’ की एक प्रजाति है।

IUCN स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त।

पर्यावास: वर्तमान में बांग्लादेश और भारत (सुंदरबन में), कंबोडिया, इंडोनेशिया और मलेशिया में पाया जाता है। यह म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम में क्षेत्रीय रूप से विलुप्त हो चुके है।

चर्चा का कारण:

  • विशेषज्ञों और वन अधिकारियों ने भारतीय सुंदरबन में ‘नॉर्दन रिवर टेरापिन’ कछुओं पर जीपीएस ट्रांसमीटर लगाए थे।
  • नदी में छोड़े जाने के बाद मात्र छह हफ्तों में, दस कछुओं में से कम से कम तीन कछुए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके बांग्लादेश में पहुँच चुके हैं।

Current Affairs

 

कवच’- ट्रेन सुरक्षा प्रणाली

कवच (Kavach), भारतीय उद्योग के सहयोग से ‘अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन’ (आरडीएसओ) द्वारा एक स्वदेशी रूप से विकसित, दो ट्रेनों को आपस में टकराने से रोकने में सक्षम, स्वचालित सुरक्षा प्रणाली है।

इसे ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम (Train Collision Avoidance System -TCAS) भी कहा जाता है, और इसे “कवच” नाम दिया गया गया है।

कार्यविधि:

  • यह लोकोमोटिव तथा सिग्नलिंग सिस्टम के साथ-साथ पटरियों में भी स्थापित ‘इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों’ और ‘रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन’ (RFID) उपकरणों का एक सेट है।
  • ये उपकरण ट्रेनों के ब्रेक को नियंत्रित करने के लिये अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रीक्वेंसी का उपयोग करके एक-दूसरे से जुड़ते हैं और ड्राइवरों को सतर्क भी करते हैं।

Current Affairs

Current Affairs

 

 

हंसा-एनजी

हंसा-एनजी (HANSA-NG) अपनी तरह का पहला, स्वदेश में विकसित एयरक्राफ्ट ट्रेनर वायुयान है।

  • सीएसआईआर-राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं (CSIR-NAL) द्वारा विकसित।
  • हाल ही में हंसा-एनजी ने पुद्दुचेरी में समुद्र स्तर का परीक्षण सफलतापूर्वक संपन्न किया है, जोकि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) द्वारा इसका मूल्यांकन किए जाने के लिए एक आवश्यक शर्त है।
  • हंसा-एनजी को भारतीय फ्लाइंग क्लब की ट्रेनर एयरक्राफ्ट संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Current Affairs

बोल्ट्जमान मेडल

(Boltzmann medal)

‘भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान’, पुणे के भौतिक विज्ञानी ‘दीपक धर’ को ‘बोल्ट्जमान पदक’ (Boltzmann medal) के लिए चुना गया है।

  • यह पुरस्कार जीतने वाले, वह पहले भारतीय बन गए हैं।
  • ‘बोल्ट्जमैन मेडल’ इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड फिजिक्स के सांख्यिकीय भौतिकी आयोग (C3) द्वारा प्रदान किया जाता है।
  • इसकी शुरुआत 1975 में हुई थी।
  • सांख्यिकीय भौतिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धियों का सम्मान करने वाला पदक ‘तीन वर्ष में एक बार’ एक या दो व्यक्तियों को दिया जाता है।
  • यह एक व्यक्ति को केवल एक बार और इस शर्त पर दिया जाता है कि उस व्यक्ति ने अब तक नोबेल पुरस्कार नहीं जीता है।

 


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