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HINDI Puucho STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
मध्यकालीन भारत में भारत-इस्लामी वास्तुकला के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- मेहराबनुमा निर्माण को बढ़ावा दिया गया था।
- वे बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा दिए गए दान से निर्मित किये गए थे।
- इंडो-इस्लामिक संरचनाएं भारतीय वास्तुकला और सजावटी रूपों की प्रचलित संवेदनाओं से काफी प्रभावित थीं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correctउत्तर: c)
भारतीय उपमहाद्वीप में वास्तुकला के विभिन रूपों को समृद्ध लोगों द्वारा निर्मित करवाया गया था। जैसे शासक और कुलीन एवं उनके परिवार के सदस्य, व्यापारी, व्यापारी संघ, ग्रामीण कुलीन लोग और एक पंथ संबंधित भक्त।
बारहवीं शताब्दी तक भारत पहले से ही भव्य स्मारकों के निर्माण से परिचित था। कुछ तकनीकें और अलंकरण प्रचलित और लोकप्रिय थे, जैसे कि शहतीर, कोष्ठक और एक छत को सहारा देने हेतु कई स्तंभ ओत एक लघु गुंबद आदि। जबकि मेहराब को लकड़ी और पत्थर से निर्मित किया जाता था, ये शीर्ष संरचना का भार सहन करने में असमर्थ होती थी। हालांकि, निर्माण की मेहराबनुमा संरचना का प्रचलन धीरे-धीरे हो गया था जिसमें मेहराब गुंबदों भार वहन कर सकती थी।
स्पष्ट सैरासेनिक, फ़ारसी और तुर्की प्रभावों के बावजूद, भारतीय स्थापत्य और सजावटी रूपों की प्रचलित संवेदनाओं से इंडो-इस्लामिक संरचनाएं बहुत प्रभावित हुईं।
Incorrectउत्तर: c)
भारतीय उपमहाद्वीप में वास्तुकला के विभिन रूपों को समृद्ध लोगों द्वारा निर्मित करवाया गया था। जैसे शासक और कुलीन एवं उनके परिवार के सदस्य, व्यापारी, व्यापारी संघ, ग्रामीण कुलीन लोग और एक पंथ संबंधित भक्त।
बारहवीं शताब्दी तक भारत पहले से ही भव्य स्मारकों के निर्माण से परिचित था। कुछ तकनीकें और अलंकरण प्रचलित और लोकप्रिय थे, जैसे कि शहतीर, कोष्ठक और एक छत को सहारा देने हेतु कई स्तंभ ओत एक लघु गुंबद आदि। जबकि मेहराब को लकड़ी और पत्थर से निर्मित किया जाता था, ये शीर्ष संरचना का भार सहन करने में असमर्थ होती थी। हालांकि, निर्माण की मेहराबनुमा संरचना का प्रचलन धीरे-धीरे हो गया था जिसमें मेहराब गुंबदों भार वहन कर सकती थी।
स्पष्ट सैरासेनिक, फ़ारसी और तुर्की प्रभावों के बावजूद, भारतीय स्थापत्य और सजावटी रूपों की प्रचलित संवेदनाओं से इंडो-इस्लामिक संरचनाएं बहुत प्रभावित हुईं।
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Question 2 of 5
मुगलकाल के दौरान वास्तुकला के विकास के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- लाल बलुआ पत्थर का उपयोग अकबर के समय की वास्तुकला की प्रमुख विशेषता है।
- हुमायूँ का मकबरा चारबाग शैली का एक उदाहरण है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?
Correctउत्तर: d)
लाल बलुआ पत्थर का उपयोग अकबर के समय की वास्तुकला की प्रमुख विशेषता है।
हुमायूँ का मक़बरा चारबाग (चार नदियों को प्रदर्शित करने वाला चार चतुर्भुज उद्यान) का एक उदाहरण है, जिसमें कुंड नालियों के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
Incorrectउत्तर: d)
लाल बलुआ पत्थर का उपयोग अकबर के समय की वास्तुकला की प्रमुख विशेषता है।
हुमायूँ का मक़बरा चारबाग (चार नदियों को प्रदर्शित करने वाला चार चतुर्भुज उद्यान) का एक उदाहरण है, जिसमें कुंड नालियों के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
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Question 3 of 5
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- आगरा के पास सिकंदरा में अकबर के मकबरे का कार्य जहांगीर द्वारा पूरा किया गया था।
- अकबर के शासन काल में हुमायूँ का मकबरा दिल्ली में बनवाया गया था।
- पित्रा ड्यूरा पद्धति का प्रयोग पहली बार ताजमहल में शाहजहाँ द्वारा किया गया था।
उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
Correctउत्तर: a)
आगरा के पास सिकंदरारा में स्थित अकबर का मकबरा जहाँगीर ने बनवाया था। नूरजहाँ ने आगरा में एत्माद्दौला का मकबरा बनवाया। इसे पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बनाया गया था जिसकी दीवारों पर अर्ध-मूल्यवान पत्थरों के द्वारा फूलों के डिजाइन का निर्माण किया गया है। इस प्रकार के अलंकरण को पीट्रा ड्यूरा कहा जाता था।
यह विधि शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान अधिक लोकप्रिय हुई। शाहजहाँ द्वारा पीट्रा ड्यूरा पद्धति का उपयोग ताजमहल में बड़े पैमाने पर किया गया था।
Incorrectउत्तर: a)
आगरा के पास सिकंदरारा में स्थित अकबर का मकबरा जहाँगीर ने बनवाया था। नूरजहाँ ने आगरा में एत्माद्दौला का मकबरा बनवाया। इसे पूरी तरह से सफेद संगमरमर से बनाया गया था जिसकी दीवारों पर अर्ध-मूल्यवान पत्थरों के द्वारा फूलों के डिजाइन का निर्माण किया गया है। इस प्रकार के अलंकरण को पीट्रा ड्यूरा कहा जाता था।
यह विधि शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान अधिक लोकप्रिय हुई। शाहजहाँ द्वारा पीट्रा ड्यूरा पद्धति का उपयोग ताजमहल में बड़े पैमाने पर किया गया था।
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Question 4 of 5
निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में इस्लामी वास्तुकला की विशिष्ट विशेषताएं थीं?
- निर्माण में मेहराब और गुम्बदों का उपयोग
- छतरी और लंबी मीनारों का उपयोग
- वास्तुकला में मानव आकृतियों की पूजा का प्रदर्शन
सही उत्तर कूट का चयन कीजिए:
Correctउत्तर: b)
इस्लामिक शैली ने पारंपरिक भारतीय शैली और मिश्रित शैली से कई तत्वों को भी शामिल किया। वास्तुकला में सजावटी दीवारगीरों, बालकनियों, पेंडेंटिव सजावट आदि का उपयोग इसका एक उदाहरण है। इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की अन्य विशिष्ट विशेषताएं कियोस्क (छत्रियों), लंबे टॉवर (मीनार) और अर्द्ध गुंबददार दोहरे प्रवेशमार्ग का उपयोग हैं।
इमारतों और अन्य भवनों को आमतौर पर ज्यामितीय और अरबी डिजाइन रूप से सजाया गया था।
Incorrectउत्तर: b)
इस्लामिक शैली ने पारंपरिक भारतीय शैली और मिश्रित शैली से कई तत्वों को भी शामिल किया। वास्तुकला में सजावटी दीवारगीरों, बालकनियों, पेंडेंटिव सजावट आदि का उपयोग इसका एक उदाहरण है। इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की अन्य विशिष्ट विशेषताएं कियोस्क (छत्रियों), लंबे टॉवर (मीनार) और अर्द्ध गुंबददार दोहरे प्रवेशमार्ग का उपयोग हैं।
इमारतों और अन्य भवनों को आमतौर पर ज्यामितीय और अरबी डिजाइन रूप से सजाया गया था।
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Question 5 of 5
अल्वार और नयनार के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- उन्होंने भारत में जाति-आधारित भेदभाव को अस्वीकार कर दिया।
- उन्होंने किसी भी लिखित रचना का निर्माण नहीं किया।
- संघ के भीतर महिला श्रद्धालुओं को भी जाने की अनुमति थी।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correctउत्तर: b)
कुछ इतिहासकारों का सुझाव है कि अल्वार और नयनारों ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में आंदोलन शुरू किया या कम से कम व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया।
कुछ हद ब्राह्मणों से लेकर कारीगरों और काश्तकारों तक और यहां तक कि “अछूत” मानी जाने वाली जातियों से लेकर विविध सामाजिक पृष्ठभूमि से संबंधित भक्तों को भी अनुमति प्राप्त थी।
अंडाल (एक महिला अलवर) की रचनाओं व्यापक रूप से गया जाता था। एक अन्य महिला, शिव की भक्त, कराईकल अम्मैयार ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए अत्यधिक तपस्या का मार्ग अपनाया।
अलवरों की रचनाओं का एक प्रमुख संकलन, नलयिरा दिव्यप्रबंधम, जिसे अक्सर तमिल वेद के रूप में वर्णित किया गया था, को संस्कृत के चार वेदों जितना महत्वपूर्ण
माना जाता था, जो ब्राह्मणों द्वारा पोषित था।
Incorrectउत्तर: b)
कुछ इतिहासकारों का सुझाव है कि अल्वार और नयनारों ने जाति व्यवस्था और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में आंदोलन शुरू किया या कम से कम व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया।
कुछ हद ब्राह्मणों से लेकर कारीगरों और काश्तकारों तक और यहां तक कि “अछूत” मानी जाने वाली जातियों से लेकर विविध सामाजिक पृष्ठभूमि से संबंधित भक्तों को भी अनुमति प्राप्त थी।
अंडाल (एक महिला अलवर) की रचनाओं व्यापक रूप से गया जाता था। एक अन्य महिला, शिव की भक्त, कराईकल अम्मैयार ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए अत्यधिक तपस्या का मार्ग अपनाया।
अलवरों की रचनाओं का एक प्रमुख संकलन, नलयिरा दिव्यप्रबंधम, जिसे अक्सर तमिल वेद के रूप में वर्णित किया गया था, को संस्कृत के चार वेदों जितना महत्वपूर्ण
माना जाता था, जो ब्राह्मणों द्वारा पोषित था।
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