[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 5 February 2022 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययन-II

1. केन-बेतवा लिंक परियोजना

2. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के 50 वर्ष

3. उइगर

 

सामान्य अध्ययनIII

1. प्राकृतिक गैस प्रणाली में हाइड्रोजन के सम्मिश्रण की पहली परियोजना का आरंभ

2. कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण

3. विश्व आर्द्रभूमि दिवस

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. सेंटिनल ऑन क्वि वीव

2. ‘प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ देश का दर्जा

3. सर्विसेज ई-हेल्थ असिस्टेंस एंड टेलीकंसल्टेशन (सेहत)

4. सिरुवेणी बांध

5. एक्जिम बैंक

6. पोला वट्टा मछली

7. लेटे हुए भगवान विष्णु की प्रतिमा

 


सामान्य अध्ययन-II


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

केन-बेतवा लिंक परियोजना


(Ken-Betwa link project – KBLP)

संदर्भ:

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा दिसंबर 2021 में 44,605 ​​करोड़ रुपये की लागत से निर्मित होने वाली ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना’ (Ken-Betwa link project – KBLP) को आठ साल में पूरा किए जाने की समय सीमा के साथ स्वीकृति दे दी गयी थी, फिर भी परियोजना पर अभी तक काम शुरू करने की मंजूरी नहीं मिली है।

कारण एवं चुनौतियां:

  1. 2016-2017: ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना’ (KBLP) के लिए, इस शर्त के साथ वन्यजीव, पर्यावरण और प्रारंभिक वन मंजूरी प्रदान की गयी थी कि, ‘पन्ना बाघ अभ्यारण्य को लगातार होने वाली अशांति एवं खलल से बचाने के लिए, प्रस्तावित 78-मेगावाट बिजलीघर की कोई भी इकाई ‘वन क्षेत्र’ में नहीं स्थापित की जाएगी। किंतु, KBLP द्वारा नए सिरे से पर्यावरण मंजूरी लेने के लिए, अभी तक, स्थानांतरित विद्युत् स्टेशनों को दिखाते हुए कोई संशोधित परियोजना योजना प्रस्तुत नहीं की गयी है।
  2. 2018-2019: में ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना’ को दी गयी वन्यजीव मंजूरी के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने अदालत द्वारा गठित ‘केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति’ (Central Empowered Committee – CEC) से इस मुद्दे की जांच करने के लिए कहा। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति’ (CEC) ने, परियोजना को मंजूरी देने से पहले विशेष एजेंसियों द्वारा निर्धारित सिंचाई और गरीबी उन्मूलन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकल्पों की जांच कराए जाने और ‘पन्ना बाघ अभ्यारण्य’ पर KBLP के प्रभाव का गहन अध्ययन कराए जाने की सिफारिश की। अभी तक यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है।
  3. 2018-2021: जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पर्यावरण मंत्रालय को बार-बार बताया गया है, कि मध्य प्रदेश, KBLP की अंतिम वन मंजूरी के लिए एक प्रमुख पूर्व शर्त के अनुसार, पन्ना टाइगर रिजर्व के 17 वर्ग किमी क्षेत्र के बदले 42.06 वर्ग किमी राजस्व भूमि नहीं नहीं उलपब्ध करा पा रहा है।

Current Affairs

 

परियोजना के विरोध का कारण:

  • एक हालिया अध्ययन के अनुसार, ‘केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना’ (Ken-Betwa river interlinking project) से मध्य प्रदेश में ‘पन्ना टाइगर रिजर्व’ के मुख्य क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा, जिससे बाघ एवं यहाँ वास करने वाली अन्य प्रमुख शिकारी प्रजातियों जैसे चीतल और सांभर की बड़ी क्षति होगी।
  • इस परियोजना से अभ्यारण्य के ‘महत्वपूर्ण बाघ आवास’ (Critical Tiger Habitat – CTH) का 03 वर्ग किलोमीटर (10.07 प्रतिशत) क्षेत्र नष्ट होने का अनुमान है।
  • अध्ययन के अनुसार, आवास विखंडन और जलमग्न होने से ‘संबद्धता’ (कनेक्टिविटी) समाप्त होने की वजह से 23 वर्ग किमी CTH अप्रत्यक्ष रूप से नष्ट हो सकता है।
  • परियोजना के तहत कुल क्षेत्रफल 50 वर्ग किमी जलमग्न हो जाएगा, जिसमें से 57.21 वर्ग किमी क्षेत्र ‘पन्ना टाइगर रिजर्व’ का भाग है, जोकि कुल जलमग्न का 65.50 प्रतिशत है।
  • ‘केन-बेतवा नदी जोड़ो’ (KBRIL) परियोजना के कारण जलमग्न होने वाला क्षेत्र, फूलों की सघनता और विविधता से समृद्ध है। इस क्षेत्र में सांभर, चीतल, नीला सांड और जंगली सूअर जैसे जीव पाए जाते हैं।

वित्त पोषण:

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 2020-21 की के मूल्य स्तर पर 44,605 ​​करोड़ रुपये की लागत से ‘केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना’ के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को मंजूरी प्रदान की गयी है।
  • केंद्र सरकार द्वार इस परियोजना के लिए ₹39,317 करोड़ का परिव्यय किया जाएगा, जिसमे से ₹36,290 करोड़ अनुदान के रूप में और ₹3,027 करोड़ ऋण के रूप में होगा।

केन-बेतवा परियोजना के बारे में:

इस परियोजना के तहत, दौधन बांध (Dhaudhan Dam) के निर्माण और दो नदियों को जोड़ने वाली नहर, निचले ऑर्र बाँध (Lower Orr Dam), कोठा बैराज और बीना कॉम्प्लेक्स बहुउद्देशीय परियोजना के माध्यम से, केन नदी से बेतवा नदी में पानी का स्थानान्तरण किया जाएगा।

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परियोजना का महत्व:

  • इस परियोजना से सालाना 62 लाख हेक्टेयर सिंचाई, 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करने की उम्मीद है।
  • यह परियोजना, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में विस्तृत पानी की कमी वाले ‘बुंदेलखंड क्षेत्र’ के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी।
  • इस परियोजना से कृषि गतिविधियों में वृद्धि और रोजगार सृजन के कारण पिछड़े बुंदेलखंड क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • परियोजना, क्षेत्र से संकटपूर्ण प्रवास को रोकने में भी मदद करेगी।

इंटरलिंकिंग के लाभ:

  • जल और खाद्य सुरक्षा में वृद्धि
  • जल का समुचित उपयोग
  • कृषि को बढ़ावा
  • आपदा न्यूनीकरण
  • परिवहन को बढ़ावा देना

महत्वपूर्ण तथ्य:

  1. केन और बेतवा नदियों का उद्गम मध्यप्रदेश में होता है और ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
  2. केन नदी, उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में और बेतवा नदी हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिल जाती हैं।
  3. राजघाट, परीछा और माताटीला बांध, बेतवा नदी पर स्थित हैं।
  4. केन नदी, पन्ना बाघ अभ्यारण्य से होकर गुजरती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘नदियों को आपस में जोड़ने की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ (National Perspective Plan) के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. परियोजना के बारे में
  2. केन और बेतवा- सहायक नदियाँ और संबंधित राज्य
  3. पन्ना टाइगर रिजर्व के बारे में
  4. भारत में बायोस्फीयर रिजर्व

मेंस लिंक:

‘केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के 50 वर्ष


(UNEP@50)

संदर्भ:

‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (United Nations Environment Programme – UNEP) द्वारा 2022 में अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।

‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ के बारे में:

  • ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UNEP) की स्थापना ‘मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के ऐतिहासिक सम्मेलन’ के पश्चात् वर्ष 1972 में हुई थी।
  • UNEP की परिकल्पना, पर्यावरण की स्थिति की निगरानी, ‘वैज्ञानिक जानकारी के साथ नीति निर्माण’ और ‘विश्व की पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति प्रतिक्रिया का समन्वय’ करने के लिए की गई थी।

प्रमुख रिपोर्ट्स: ‘उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट’ (Emission Gap Report), ‘ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक’, फ्रंटियर्स, एवं ‘इन्वेस्ट इन हेल्दी प्लैनेट’।

प्रमुख मिशन: बीट पॉल्यूशन (Beat Pollution), UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।

भूमिका:

  • अपनी स्थापना के बाद से, ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UNEP), विश्व के सभी देशों को उनके द्वारा की गयी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु प्रेरित करने तथा विश्व की अधिकांश सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने हेतु समन्वित कार्रवाई करने हेतु, अपने 193 सदस्य देशों और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर निरंतर कार्य कर रहा है।
  • UNEP द्वारा 15 बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों के लिए ‘डॉकिंग स्टेशन’ (Docking Station) के रूप में भी अग्रणी भूमिका निभाई गयी है।

महत्वपूर्ण उपलब्धियां एवं समयरेखा:

  • 1972: ‘मौरिस स्ट्रांग’ (Maurice Strong), ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UNEP) के पहले प्रमुख के रूप में चुने गए।
  • 1973: UNEP द्वारा 2 अक्टूबर को केन्याटा इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में पहला मुख्यालय स्थापित किया गया।
  • 1973: वैश्विक नेताओं द्वारा ‘MARPOL’ के नाम से विख्यात, जहाजों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए अभिसमय पर हस्ताक्षर किए गए।
  • 1973: राष्ट्रों द्वारा लुप्तप्राय वन्यजीव तथा वनस्पति प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and FloraCITES) को अपनाया गया। 1984 में CITES, ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ द्वारा प्रशासित बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता बन गया।
  • 1974: ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ (World Environment Day) की शुरुआत हुई। समस्त विश्व में 5 जून को “केवल एक पृथ्वी” (Only One Earth) थीम के तहत UNEP द्वारा आयोजित पहला ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाया गया।
  • 1974: ‘क्षेत्रीय समुद्र कार्यक्रम’ (Regional Seas Programme) की स्थापना की गयी।
  • 1976: 16 फरवरी 1976 को बार्सिलोना में ‘प्रदूषण के खिलाफ भूमध्य सागर संरक्षण अभिसमय’ अर्थात ‘बार्सिलोना कन्वेंशन’ (Convention for the Protection of the Mediterranean Sea Against Pollution) अपनाया गया। यह अभिसमय वर्ष 1978 में लागू हुआ।
  • 1979: राष्ट्रों द्वारा ‘प्रवासी प्रजाति अभिसमय’ (Convention on Migratory Species) अपनाया गया। इस अभिसमय को ‘बॉन कन्वेंशन’ (Bonn Convention) के रूप में भी जाना जाता है।

UNEP की समयरेखा (Timeline) के विस्तृत अवलोकन के लिए देखिए।

‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’, हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों से निपटने हेतु विभिन्न राष्ट्रों और पर्यावरण समुदाय को एक साथ लाने के लिए कई महत्वपूर्ण बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों और अनुसंधान निकायों के सचिवालयों की मेजबानी करता है।

इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. जैविक विविधता पर अभिसमय
  2. वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय
  3. पारा पर मिनामाता अभिसमय
  4. बेसल, रॉटरडैम और स्टॉकहोम कन्वेंशन
  5. ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना अभिसमय और मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
  6. प्रवासी प्रजातियों पर अभिसमय
  7. कार्पेथियन कन्वेंशन
  8. बमाको कन्वेंशन
  9. तेहरान अभिसमय

 

प्रीलिम्स लिंक

  1. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)- उद्देश्य, शक्तियां और अधिदेश

मेंस लिंक

पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UNEP) के महत्व और इसकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

उइगर


संदर्भ:

चीन ने शिनजियांग’ क्षेत्र में ‘मानवाधिकार रिकॉर्ड’ की आलोचना करने वाले कई देशों को जबाव देने के लिए, बीजिंग शीतकालीन ओलिंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह के लिए अंतिम मशालधारक (Torchbearer) को ‘शिनजियांग’ (Xinjiang) प्रांत से चुना है।

  • किंतु, आलोचकों द्वारा चीन की इस कारवाई को पब्लिसिटी स्टंट के रूप में देखा जा रहा है।
  • ‘शिनजियांग’ एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर कई देशों की सरकारें यह संदेह करती है, कि चीन द्वारा इस क्षेत्र में ‘उइघुर’ (Uighur/Uyghur) एवं अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ जातीयसंहार को अंजाम दिया जा रहा है।

संबंधित प्रकरण:

कई देशों ने ‘शिनजियांग प्रांत’ में ‘मुस्लिम उइगर समुदाय’ के लिए, चीन से “कानून के शासन का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने” की मांग की है।

विश्वसनीय रिपोर्टों से संकेत मिलता है, कि शिनजियांग में एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है तथा उइगरों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को अनुचित रूप से लक्षित करते हुए व्यापक निगरानी की जा रही है, और उइघुर संस्कृति तथा मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया गया है।

चीन की प्रतिक्रिया:

पर्याप्त सबूतों के बावजूद, चीन, उइगरों के साथ दुर्व्यवहार से इनकार करता है, और जोर देकर, केवल चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किए गए “व्यावसायिक प्रशिक्षण” केंद्र चलाने की बात करता है।

current affairs

उइगर कौन हैं?

उइगर (Uighurs) मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्की नृजातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति के चिह्न ‘मध्य एवं पूर्वी एशिया’ में खोजे जा सकते हैं।

  • उइगर समुदाय, तुर्की भाषा से मिलती-जुलती अपनी भाषा बोलते हैं, और खुद को सांस्कृतिक और नृजातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं।
  • चीन, इस समुदाय को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और इन्हें देश का मूल-निवासी समूह मानने से इंकार करता है।
  • वर्तमान में, उइगर जातीय समुदाय की सर्वाधिक आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में निवास करती है।
  • उइगरों की एक बड़ी आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान में भी पाई जाती है।

दशकों से उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार द्वारा आतंकवाद और अलगाववाद के झूठे आरोपों के तहत, उत्पीड़न, जबरन हिरासत, गहन-जांच, निगरानी और यहां तक ​​​​कि गुलामी जैसे दुर्व्यवहार किये जा रहे हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप चीन की ‘वन कंट्री टू सिस्टम पॉलिसी’ के बारे में जानते हैं? इस नीति के तहत किन क्षेत्रों का प्रशासन किया जाता है?  

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. उइघुर कौन हैं?
  2. शिनजियांग कहाँ है?
  3. हान चीनी कौन हैं?
  4. शिनजियांग प्रांत की सीमा से लगे भारतीय राज्य।

मेंस लिंक:

उइघुर कौन हैं? हाल ही में इनके समाचारों में होने संबंधी कारणों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन-III


 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

प्राकृतिक गैस प्रणाली में हाइड्रोजन के सम्मिश्रण की पहली परियोजना का आरंभ


संदर्भ:

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission- NHM) के अनुरूप, ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) ने सिटी गैस वितरण (CGD) नेटवर्क में हाइड्रोजन सम्मिश्रण की तकनीकी-व्यावसायिक संभाव्यता स्थापित करने के लिए पायलट परियोजना के रूप में हाइड्रोजन सम्मिश्रण शुरू किया है।

  • यह परियोजना, मध्य प्रदेश के इंदौर में शुरू की गई है।
  • इंदौर में कार्यरत एचपीसीएल (HPCL) के साथ GAIL की संयुक्त उद्यम कंपनी ‘अवंतिका गैस लिमिटेड’ को हाइड्रोजन मिश्रित प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की जाएगी।
  • GAIL ने ‘सिटी गेट स्टेशन’ (CGS), इंदौर में ‘भूरे हाइड्रोजन’ (grey hydrogen) को इंजेक्ट करना अर्थात भरना शुरू कर दिया है। इस भूरे हाइड्रोजन को बाद में हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen) से बदल दिया जाएगा।

Current Affairs

 

लक्ष्य:

सरकार द्वारा घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक खपत के लिए ‘पाइप से आपूर्ति की जाने वाली प्राकृतिक गैस’ (Piped Natural GasPNG) के साथ 15% ग्रीन हाइड्रोजन को मिश्रित करने की योजना बनायी जा रही है।

प्राकृतिक गैस के साथ हाइड्रोजन के सम्मिश्रण का महत्व:

(Importance of blending Hydrogen with natural gas)

  • हाइड्रोजन की तुलना में, इस मिश्रित प्राकृतिक गैस का उपयोग करना आसान और सुरक्षित है क्योंकि इसमें हाइड्रोजन से उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा बहुत कम (मात्रा के हिसाब से 30% तक) होती है।
  • हाइड्रोजन-समृद्ध संपीड़ित प्राकृतिक गैस (Hydrogen-Enriched Compressed Natural Gas – HCNG), सीएनजी (CNG) की तुलना में कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन में 70% अधिक कमी सुनिश्चित करेगी।
  • HCNG का पावर आउटपुट भी CNG की तुलना में बेहतर होता है।
  • यह मिश्रण, मौजूदा प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों में हाइड्रोजन की सांद्रता को एकीकृत करता है और मीथेन में पायी जाने वाली कार्बन गहनता को कम करता है।

आवश्यकता:

वर्तमान में, ज़ीरो-उत्सर्जन करने वाला हाइड्रोजन (Zero-Emission Hydrogen), पूरे विश्व में नवीनतम चर्चा का विषय बना हुआ है।

  • भारत ने वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की है और नवीकरणीय ऊर्जा के साथ हाइड्रोजन, इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कुंजी के रूप में देखा जाता है।
  • उर्जा स्रोत परिवर्तन के लिए, ‘प्राकृतिक गैस’ एक महत्वपूर्ण ईंधन है और सरकार का उद्देश्य वर्ष 2030 तक प्रमुख ऊर्जा टोकरी में इसकी हिस्सेदारी मौजूदा 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करना है।

‘हाइड्रोजन ईंधन’ क्या है?

हाइड्रोजन, आवर्त सारणी में सबसे हल्का और पहला तत्व है। चूंकि, हाइड्रोजन का भार, हवा के भार से कम होता है, इसलिए यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठ कर फ़ैल जाता है और यही कारण है, कि इसे अपने शुद्ध रूप ‘H2 में मुश्किल से ही कभी पाया जाता है।

मानक ताप और दाब पर, हाइड्रोजन, एक गैर-विषाक्त, अधात्विक, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक दहनशील द्विपरमाणुक गैस है।

 

हाइड्रोजन की उत्पत्ति:

पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जल-निकायों में आणविक हाइड्रोजन नहीं पाया जाता है।

पृथ्वी पर अधिकांशतः हाइड्रोजन, जल और ऑक्सीजन के साथ तथा जीवित या मृत अथवा या जीवाश्म जैवभार में, कार्बन के साथ युग्मित होती है। जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रूप में विखंडित करके हाइड्रोजन का निर्माण किया जा सकता है।

हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था का महत्व:

हाइड्रोजन को, शून्य-उत्सर्जन इलेक्ट्रिक वाहनों में ईंधन सेलों की शक्ति, घरेलू उत्पादन में इसकी क्षमता और ईंधन सेलों की उच्च दक्षता क्षमताओं के कारण, एक वैकल्पिक ईंधन माना जाता है।

  • हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से उत्सर्जित होने वाला एकमात्र उप-उत्पाद ‘जल’ होता है – जिस कारण यह ईंधन 100 प्रतिशत स्वच्छ हो जाता है।
  • वास्तव में, इलेक्ट्रिक मोटर के साथ फ्यूल सेल/ ईंधन सेल, गैस-चालित आंतरिक दहन इंजन की तुलना में दो से तीन गुना अधिक कुशल है।
  • इलेक्ट्रिक मोटर के साथ मिलकर एक ईंधन सेल दो से तीन गुना अधिक कार्यक्षम होते है।
  • हाइड्रोजन, आंतरिक दहन इंजनों के लिए ईंधन के रूप में भी काम कर सकता है।
  • 2 पाउंड (1 किलोग्राम) हाइड्रोजन गैस की ऊर्जा, 1 गैलन (6.2 पाउंड/ 2.8 किलोग्राम) गैसोलीन की ऊर्जा के बराबर होती है।

हाइड्रोजन ईंधन की दिशा में सरकारी के प्रयास:

  • केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2020-21 के लिए औपचारिक रूप से ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ (NHM) की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने स्पष्ट किया है कि ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ के लिए इस महीने के अंत तक मसौदा नियमों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा और इसके बाद मसौदा नियमों को मंत्रिमंडल के अनुमोदन हेतु भेजा जाएगा।

भारत के लिए चुनौतियां:

  1. हरित अथवा नीले हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक संधारणीयता, हाइड्रोजन का व्यावसायिक रूप से दोहन करने के लिए उद्योगों के सामने भारी चुनौतियों में से एक है।
  2. हाइड्रोजन के उपयोग तथा उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी, जैसेकि ‘कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS), अभी प्रारम्भिक चरण में हैं और काफी महंगी है, जिससे हाइड्रोजन की उत्पादन-लागत काफी अधिक हो जाती है।
  3. किसी संयंत्र के पूरा होने के बाद ईंधन सेलों (fuel cells) की रखरखाव लागत काफी महंगी हो सकती है, जैसाकि दक्षिण कोरिया में है।
  4. ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग हेतु, हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और मांग निर्माण के लिए अनुसंधान और विकास में भारी निवेश की आवश्यकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

स्रोत के आधार पर, हाइड्रोजन को नीले, हरे या भूरे रंग में वर्गीकृत किया जाता है।

  1. नीला हाइड्रोजन (Blue hydrogen): जब प्राकृतिक गैस, हाइड्रोजन और CO2 में विभाजित हो जाती है तब ‘ब्लू हाइड्रोजन’ बनता है। इस प्रक्रिया में पृथक की गयी हाइड्रोजन (CO2) को कैद कर लिया जाता है और फिर इसे संग्रहीत किया जाता है।
  2. ‘भूरी हाइड्रोजन’ (Grey hydrogen) के निर्माण की प्रक्रिया ‘ब्लू हाइड्रोजन’ के समान ही होती है, लेकिन इसमें CO2 को कैद नहीं किया जाता है, बल्कि वातावरण में छोड़ दिया जाता है।
  3. ग्रीन हाइड्रोजन (Green hydrogen), नवीकरणीय / अक्षय ऊर्जा का उपयोग करके ‘विद्युत अपघटन’ (Electrolysis) द्वारा उत्पादित हाइड्रोजन को ‘हरित हाइड्रोजन’ (Green Hydrogen) के रूप में जाना जाता है। इसमें कार्बन का कोई अंश नहीं होता है। ईंधन के रूप में प्रयोग करने पर यह केवल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उत्पादन करता है।

Current Affairs

क्या आप जानते हैं कि ‘पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड अधिनियम’ (PNGRB अधिनियम) 2006 के तहत, PNGRB देश के एक निर्दिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में ‘सिटी गैस वितरण (CGD) नेटवर्क’ विकसित करने के लिए संस्थाओं को अधिकार प्रदान करता है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में
  2. इसका उत्पादन किस प्रकार किया जाता है?
  3. अनुप्रयोग
  4. लाभ
  5. उत्पादन और भंडारण
  6. हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन के बारे में

मेंस लिंक:

ग्रीन हाइड्रोजन के लाभों की विवेचना कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

 कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण


(Coal Gasification and Liquefaction)

संदर्भ:

उत्सर्जन को कम करने और कच्चे तेल पर निर्भरता को नियंत्रित करने के अपने प्रयास में, केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार की परियोजनाओं की तकनीकी और वित्तीय व्यवहार्यता को समझने के लिए प्रायोगिक आधार पर चार ‘कोयला गैसीकरण’ (Coal Gasification) संयंत्र स्थापित किए जाएंगे।

Current Affairs

महत्व:

  • भारत 2030 तक विद्युत् संयंत्रों में कोयले की खपत को आधा करने और समग्र कार्बन-चिह्नों को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • ‘कोयला गैसीकरण’ को भट्टियों में जीवाश्म ईंधन दहन का एक ‘हरित विकल्प’ माना जाता है।

‘कोयला गैसीकरण’ क्या है?

  • कोयला गैसीकरण (Coal Gasification) कोयले को संश्लेषित गैस (Synthesis Gas), जिसे सिनगैस (syngas) भी कहा जाता है, में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन (H2), कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), प्राकृतिक गैस (CH4), और जल वाष्प (H2O) के मिश्रण से सिनगैस का निर्माण लिया जाता है।
  • गैसीकरण के दौरान, कोयले को उच्च दबाव पर गर्म करते हुए ऑक्सीजन तथा भाप के साथ मिश्रित किया जाता है। इस अभिक्रिया के दौरान, ऑक्सीजन और जल के अणु कोयले का ऑक्सीकरण करते हैं और सिनगैस का निर्माण करते हैं।

गैसीकरण के लाभ:

  1. गैस का परिवहन, कोयले के परिवहन की तुलना में बहुत सस्ता होता है।
  2. स्थानीय प्रदूषण समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।
  3. पारंपरिक कोयला दहन की तुलना में अधिक दक्ष होती है क्योंकि इसमें गैसों का प्रभावी ढंग से दो बार उपयोग किया जा सकता है: कोयला गैसें पहले अशुद्धियों को साफ करती है और विद्युत् उत्पादन हेतु टरबाइन में इनका उपयोग किया जाता है। गैस टरबाइन से उत्सर्जित होने वाली ऊष्मा का उपयोग ‘भाप टरबाइन-जनरेटर’ में भाप उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।

चिंताएँ और चुनौतियाँ:

  • कोयला गैसीकरण ऊर्जा उत्पादन के अधिक जल-गहन रूपों में से एक है।
  • कोयला गैसीकरण से जल संदूषण, भूमि-धसान तथा अपशिष्ट जल के सुरक्षित निपटान आदि के बारे मे चिंताएं उत्पन्न होती हैं।

कोयला द्रवीकरण क्या है?

कोयला द्रवीकरण (coal liquefaction) को  कोल टू लिक्विड (Coal to LiquidCTL) तकनीक भी कहा जाता है। यह डीजल और गैसोलीन का उत्पादन करने की वैकल्पिक पद्धति है, जो कच्चे तेल की कीमतों की बढ़ती हुई कीमतों को देखते हुए काफी सस्ती है।

  • इस प्रक्रिया में कोयले का गैसीकरण शामिल होता है, जिससे सिंथेटिक गैस (CO+H2 का मिश्रण) का निर्माण होता है। सिंथेटिक गैस को उच्च दबाव तथा उच्च तापमान पर कोबाल्ट / लौह-आधारित उत्प्रेरक की उपस्थिति में तरलीकृत करके ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
  • हालांकि, द्रवीकृत कोयला, पेट्रोलियम ईधन की तुलना में CO2 का दो गुना अधिक उत्सर्जन करता है। यह बड़ी मात्रा में SO2 का भी उत्सर्जन करता है।

द्रवीकरण के लाभ:

CTL संयंत्रों से होने वाले CO2 उत्सर्जन को पारंपरिक कोयला आधारित विदुत संयंत्रो की तुलना में आसानी से और कम लागत में अभिग्रहण (Capture) किया जा सकता है। इस अभिग्रहीत CO2 को भूमिगत भंडारण कुण्डो में संग्रहीत किया जा सकता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. कोयला गैसीकरण क्या है?
  2. यह किस प्रकार किया जाता है?
  3. इसके उपोत्पाद (Byproducts)
  4. गैसीकरण के लाभ?
  5. भूमिगत कोयला गैसीकरण क्या है?
  6. कोयला द्रवीकरण क्या है?
  7. द्रवीकरण के लाभ

मेंस लिंक:

कोयला गैसीकरण एवं द्रवीकरण पर एक टिप्पणी लिखिए, तथा इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस


(World Wetlands Day)

संदर्भ:

प्रतिवर्ष 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) मनाया जाता है।

महत्व: यह दिवस 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में हुए ‘आर्द्रभूमियों पर रामसर अभिसमय’ (Ramsar Convention on Wetlands) / रामसर समझौते पर हस्ताक्षर करने की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है।

संरक्षण: आर्द्रभूमियों को वर्तमान में विभिन्न कार्यक्रमों के तहत संरक्षित किया जा रहा हैं, जिनमें ‘आर्द्रभूमियों पर रामसर अभिसमय’ तथा यूनेस्को का ‘मैन और बायोस्फीयर’ प्रोग्राम आदि प्रमुख कार्यक्रम हैं।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 का महत्व:

विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पहली बार है जब इस दिन को ‘संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ (United Nations International Day) के रूप में मनाया जाएगा।

विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2022 की थीम: “व्यक्तियों और प्रकृति के लिए आर्द्रभूमि कार्रवाई” (Wetlands Action for People and Nature)।

आर्द्रभूमियां’ क्या होती हैं?

जलीय निकाय और स्थल क्षेत्र के मिलन वाली जगहों पर आर्द्रभूमियां पायी जाती हैं।

आर्द्र्भूमियों में, मैंग्रोव और कच्छ भूमि, पीटलैंड, नदियाँ, झीलें और अन्य जलीय निकाय, डेल्टा, बाढ़ के मैदान और वन क्षेत्रों में दलदली भूमि, धान के खेत और प्रवाल भित्तियां आदि शामिल होते हैं।

ग्रह के स्वास्थ्य हेतु आर्द्रभूमियों का महत्व:

हमारे ग्रह पर लोगों की सेहत, आर्द्रभूमियों के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है।

  • विश्व की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमियों में निवास करती हैं अथवा इनमे प्रजनन करती हैं।
  • आर्द्रभूमियां ‘जीवन की नर्सरी’ होती हैं – लगभग 40% जीव आर्द्रभूमियों में प्रजनन करते हैं।
  • आर्द्रभूमियां ‘पृथ्वी के फेफड़े’ होती हैं, और यह वातावरण से प्रदूषकों को साफ करते हैं।
  • आर्द्रभूमियां ‘जलवायु परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण’ होती हैं- ये 30% भूमि आधारित कार्बन का भंडारण करती हैं।
  • आर्द्रभूमियां ‘आपदा जोखिम को कम करती हैं’- ये तूफानों के वेग को अवरुद्ध करती हैं।

रामसर अभिसमय’ के बारे में:

‘रामसर अभिसमय’ (Ramsar Convention) आर्द्रभूमियों के संरक्षण को प्रोत्साहित करने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।

  • इस अभिसमय पर 2 फरवरी 1971 को कैस्पियन सागर के तट पर स्थति ईरान के शहर रामसर में हस्ताक्षर किए गए थे, इसलिए इसे ‘रामसर अभिसमय’ (Ramsar Convention) कहा जाता है।
  • आधिकारिक तौर पर इसे, ‘अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र्भूमियों, विशेषकर जल-पक्षी वास-स्थल पर अभिसमय’ (Convention on Wetlands of International Importance especially as Waterfowl Habitat) कहा जाता है।

मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड:

‘रामसर अभिसमय’ के तहत ‘मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड’ (Montreux Record) अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्र्भूमियों की सूची में आर्द्र्भूमि स्थलों का एक रजिस्टर है। इसमें मानवीय हस्तक्षेप व प्रदूषण के कारण पारिस्थितिकी रूप से संकटापन्न आर्द्र्भूमियों को शामिल किया जाता है ।

इसे रामसर सूची के भाग के रूप में बरकरार रखा जाता है।

  • मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड की स्थापना ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ कॉन्ट्रैक्टिंग पार्टीज़’ (Conference of the Contracting Parties), 1990 की सिफारशों के तहत की गयी थी।
  • मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में किसी भी स्थल को केवल संबंधित अनुबंधित पक्षकारों (Contracting Parties) की सहमति से जोड़ा और हटाया जा सकता है।
  • वर्तमान में, मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड में दो भारतीय स्थल लोकटक झील, मणिपुर और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान हैं।
  • एक बार चिल्का झील (ओडिशा) को इस सूची में स्थान दिया गया था, परन्तु आगे चलकर इसे वहाँ से हटा दिया गया।

दो अन्य रामसर स्थलों की घोषणा:

विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर दो अन्य रामसर स्थलों की घोषणा की गयी है:

  • दो नए स्थल हैं- गुजरात में खिजड़िया वन्यजीव अभयारण्य और उत्तर प्रदेश में बखीरा वन्यजीव अभयारण्य।
  • वर्तमान में, भारत में 49 रामसर स्थलों का नेटवर्क है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है, जो 10,93,636 हेक्टेयर को कवर करता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

‘महत्वपूर्ण पक्षी और जैव विविधता क्षेत्र’ (Important Bird and Biodiversity Area – IBA) क्या हैं? इन क्षेत्रों का संरक्षण किस प्रकार किया जाता है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘रामसर अभिसमय’ के बारे में।
  2. मॉन्ट्रेक्स रिकॉर्ड के बारे में।
  3. भारत में रामसर अभिसमय’ के अंतर्गत आर्द्र्भूमियां।
  4. त्सो कार बेसिन के बारे में।
  5. इस क्षेत्र में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण पक्षी प्रजातियाँ।
  6. मध्य एशियाई उड़ान-मार्ग के बारे में।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


सेंटिनल ऑन क्वि वीव

(Sentinel on the qui vive)

‘सेंटिनल ऑन क्वि वीव’ (Sentinel on the qui vive) को आमतौर पर ‘सतर्क संरक्षक’ (watchful guardian) के रूप में अनुवादित किया जाता है। क्वि वीव (Qui vive) का अर्थ होता है निगहबान अथवा सतर्क।

  • सुप्रीम कोर्ट ने इस वाक्यांश को वर्ष 1952 के ‘मद्रास राज्य बनाम वीजी रो, भारत संघ एवं राज्य’ (State of Madras v. VG Row. Union of India & State) मामले में मान्यता प्रदान की थी।
  • इस मामले में “मौलिक अधिकारों” के संबंध में ‘न्यायालय’ को ‘सेंटिनल ऑन क्वि वीव’ की भूमिका प्रदान की गई थी।

 

प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ देश का दर्जा

(Major non-NATO ally – MNNA)

हाल ही में, अमेरिका ने ‘कतर’ (Qatar) को एक ‘प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ (Major non-NATO ally – MNNA) देश के रूप में नामित किया है।

MNNA क्या है?

‘प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ (MNNA), संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा उन नजदीकी सहयोगियों के लिए दिया गया एक पद है, जिनका अमेरिकी सशस्त्र बलों के साथ रणनीतिक कार्य संबंध है लेकिन वे ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (NATO) के सदस्य नहीं हैं।

  • MNNA पदनाम वाले राष्ट्र, अन्य बातों के अतिरिक्त, अपने देशों की सीमाओं के भीतर अमेरिकी युद्ध आरक्षित भंडार सामग्री रखने के पात्र होते हैं।
  • MNNA का दर्जा, किसी देश के लिए सैन्य और आर्थिक विशेषाधिकार प्रदान करता है, लेकिन इसके तहत निर्दिष्ट देश के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं होती है।
  • भारत, अमेरिका का ‘प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी’ (MNNA)नहीं है।

Current Affairs

सर्विसेज ई-हेल्थ असिस्टेंस एंड टेलीकंसल्टेशन (सेहत)

  • सर्विसेज ई-हेल्थ असिस्टेंस एंड टेलीकंसल्टेशन या ‘सेहत’ (Services e-Health Assistance and Teleconsultation SeHAT), रक्षा मंत्रालय की सेना के तीनों अंगों की एक टेलीकंसल्टेशन सेवा है जिसे सभी हकदार कर्मियों और उनके परिवारों के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • सेहत स्टे होम ओपीडी एक ‘मरीज से डॉक्टर तक’ प्रणाली है, जहां रोगी अपने स्मार्टफोन, लैपटॉप, डेस्कटॉप या टैबलेट का उपयोग करके इंटरनेट के माध्यम से दूर से डॉक्टर से परामर्श कर सकता है।

Current Affairs

सिरुवेणी बांध

(Siruvani Dam)

तमिलनाडु ने केरल से ‘सिरुवेणी बांध’ (Siruvani Dam) के ‘भंडारण’ को उसके ‘पूर्ण जलाशय स्तर’ (Full Reservoir Level) तक बनाए रखने का आग्रह किया है।

‘सिरुवेणी बांध’ के बारे में:

  • यह केरल के पलक्कड़ जिले में स्थित है।
  • यह बाँध, कावेरी बेसिन में बहने वाली ‘भवानी नदी’ की सहायक नदी ‘सिरुवेणी’ पर निर्मित है।
  • इसका निर्माण, 1984 में तमिलनाडु के कोयंबटूर शहर में पीने के पानी की आपूर्ति के लिए किया गया था।
  • इसका जलग्रहण क्षेत्र, केरल और तमिलनाडु राज्यों के आरक्षित वनों तक विस्तारित है।
  • ‘सिरुवेणी बांध’ के पूर्वी हिस्से में ‘मुथिकुलम पहाड़ी’ स्थित है।

 

एक्जिम बैंक

संदर्भ:

हाल ही में, ‘भारतीय निर्यात आयात बैंक’ (EXIM Bank) ने श्रीलंका को पेट्रोलियम उत्पादों के वित्तपोषण के लिये 500 मिलियन अमरीकी डालर की ऋण सहायता (line of credit – LOC) प्रदान की है।

एक्जिम बैंक (EXIM Bank) के बारे में:

  • भारतीय निर्यात-आयात बैंक अधिनियम (1981) के तहत स्थापित।
  • भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली वाली ‘इकाई’ है।
  • तेजी से बदलते वित्तीय परिदृश्य में ‘एक्जिम बैंक’ एक उत्प्रेरक के रूप में काम करते हुए भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के संवर्द्धन में अहम भूमिका अदा करती है। साथ ही अपनी नवोन्मेषी और दूरदर्शी कार्यसंस्कृति के जरिए यह भारत के लिए उपलब्ध संभावनाओं और अवसरों का लाभ प्रदान करती है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य, निर्यातकों और आयातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना और देश के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के संवर्द्धन की दृष्टि से माल एवं सेवाओं के निर्यात और आयात का वित्तपोषण करने वाली संस्थाओं के कामकाज का समन्वय करना है।

 

पोला वट्टा मछली

(Pola vatta fish)

  • ‘सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने भारतीय तट से ‘कैरांगिड’ (वट्टा) प्रजाति की एक नई मछली प्रजाति की पहचान की है।
  • स्थानीय रूप से ‘पोला वट्टा’ के रूप में जानी जाने वाली यह मछली ‘क्वीन फिश’ समूह से संबंधित है और देश तटवर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है।

Current Affairs

 

लेटे हुए भगवान विष्णु की प्रतिमा

(Reclining Lord Vishnu)

  • हाल ही में, ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज’ द्वारा ‘लेटे हुए भगवान विष्णु’ (Reclining Lord Vishnu) की 1,000 साल पुरानी बलुआ पत्थर की मूर्ति का नवीनीकरण किया गया है।
  • यह प्रतिमा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान (मध्य प्रदेश) में स्थित है।
  • मध्य प्रदेश में INTACH द्वारा शुरू की गई यह पहली संरक्षण और नवीनीकरण परियोजना है।
  • इस प्रतिमा को लोकप्रिय रूप से ‘शेष शैय्या’ के रूप में जाना जाता है।
  • इसकी मूर्तिकला, कलचुरी काल (8 वीं शताब्दी, भारत के मध्य भाग में राष्ट्रकूटों के सामंत) से संबंधित है।

Current Affairs


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