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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. म्यांमार- अतीत और वर्तमान
2. हरियाणा के ‘निजी क्षेत्र आरक्षण कानून’ पर रोक
सामान्य अध्ययन–III
1. चंद्रयान 3
2. ड्रोन नियम, 2021
3. राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि
4. COP-26 पर भारत की स्थिति
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. नदी शहर गठबंधन
2. पुनौरा धाम
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
म्यांमार- अतीत और वर्तमान
चर्चा का कारण:
लगभग एक साल पहले सेना द्वारा देश की सत्ता पर अधिकार जमा लेने के बाद से, म्यांमार में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन, सशस्त्र प्रतिरोध और सामूहिक हत्याएं हुई हैं।
- निर्वाचित नेता ‘आंग सान सू की’ (Aung San Suu Kyi) को जेल भेज दिया गया है।
- म्यांमार की सेना ने पिछले साल तख्तापलट करते हुए, 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी के बाद देश के इतिहास में तीसरी बार ‘सत्ता’ हथिया ली थी।
वर्तमान प्रमुख:
सैन्य कमांडर-इन-चीफ ‘मिन आंग हलिंग’ (Min Aung Hlaing), वर्तमान में म्यांमार के प्रमुख हैं। उनका काफी लंबे समय से महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव रहा है, और उन्होंने देश के लोकतंत्र की ओर बढ़ने के दौरान भी म्यांमार की सेना ‘तातमाडॉ’ (Tatmadaw) का प्रभुत्व सफलतापूर्वक बनाए रखा।
‘तख्तापलट’ पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा म्यांमार में “हिंसा की तीव्रता और गरीबी में तेजी से वृद्धि” तथा गहराते मानवीय संकट उत्पन्न होने की चेतावनी दी गयी।
- अमेरिकी विदेश मंत्री ‘एंटनी ब्लिंकन’ ने म्यांमार के सुरक्षा बलों पर “आतंक का शासन” करने का आरोप लगाया है।
- अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ द्वारा म्यांमार के सैन्य अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।
- चीन ने तख्तापलट की निंदा करने वाले हुए ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के एक प्रस्ताव को अवरुद्ध कर दिया, हालाँकि म्यांमार से लोकतांत्रिक मानदंडों पर लौटने की मांग का समर्थन किया।
भारत की मांग:
- म्यांमार में लोकतंत्र व्यवस्था की जल्द से जल्द वापसी।
- हिरासत में लिए गए बंदियों और कैदियों की रिहाई।
- वार्ता के जरिए मुद्दों का समाधान।
- सभी प्रकार की हिंसा की पूर्ण समाप्ति।
भारत द्वारा ‘म्यांमार के संदर्भ में आसियान समूह की पहल’ तथा ‘पांच सूत्री सहमति’ का समर्थन किया जा रहा है: इसमें शामिल हैं:
- हिंसा की तत्काल समाप्ति।
- शांतिपूर्ण समाधान के लिए म्यांमार में सभी हितधारकों के बीच संवाद।
- मध्यस्थता की सुविधा हेतु आसियान के एक विशेष दूत की नियुक्ति।
- म्यांमार को सहायता।
- विशेष प्रतिनिधि मंडल द्वारा म्यांमार का दौरा।
म्यांमार का संक्षिप्त इतिहास:
जब ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने 19वीं शताब्दी के दौरान ‘आज के म्यांमार’ पर कब्जा कर लिया, तो इन अंग्रेजो द्वारा इसे वहां के प्रमुख जातीय समूह ‘बर्मन’ / ‘बमार’ (Bamar) के नाम पर ‘बर्मा’ कहा जाने लगा, और इस पर औपनिवेशिक भारत के एक प्रांत के रूप में शासन किया गया।
- यह व्यवस्था 1937 में बर्मा को ब्रिटिश भारत से अलग कर एक अलग उपनिवेश बनाये जाने तक जारी रही।
- 1948 में स्वतंत्रता हासिल करने के बाद भी, इसका ‘बर्मा’ नाम बरकरार रखा गया, जो बाद में ‘बर्मा संघ’ (Union of Burma) बन गया।
- 1962 में, सेना ने पहली बार देश की ‘नागरिक सरकार’ को हटाकर सत्ता संभाली और 1974 में देश के आधिकारिक नाम को संशोधित कर ‘सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ द यूनियन ऑफ बर्मा’ कर दिया।
- फिर 1988 में, म्यांमार के सशस्त्र बलों ने जनता के एक विद्रोह, जिसमे हजारों लोग मारे गए थे, को दबाने के बाद देश में फिर से सत्ता संभाली और देश के आधिकारिक नाम को फिर से बदलकर ‘यूनियन ऑफ बर्मा’ कर दिया।
- इसके एक साल बाद, म्यांमार की संसद ‘जुंटा’ (JUNTA) ने एक कानून पारित कर ‘बर्मा’ का नाम परिवर्तित कर म्यांमार कर दिया, और देश का नाम ‘म्यांमार संघ’ (Union of Myanmar) हो गया।
नाम परिवर्तन संबंधी विवाद:
देश का नाम बदलते समय सेना का कहना था, औपनिवेशिक अतीत से विरासत में मिले ‘नाम’ को पीछे छोड़ने के लिए सैन्य सरकार एक मार्ग तलाश कर रही है, और सेना द्वारा रखे जाने वाले में देश का नया नाम, केवल बर्मन लोगों के बजाय सभी 135 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त जातीय समूहों की एकजुटता का प्रतीक होगा।
- आलोचकों ने सैन्य सरकार के इस कदम की निंदा करते हुए यह तर्क दिया है, कि म्यांमार और बर्मा का बर्मी भाषा में एक ही अर्थ है। ‘म्यांमार शब्द ‘बर्मा’ का का एक अधिक औपचारिक रूप है- तथा बोलचाल की भाषा में ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
- कुछ अन्य नाम परिवर्तन, जैसे ‘रंगून से यांगून’, केवल बर्मी भाषा के साथ अधिक अनुरूपता को दर्शाते हैं, और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
- साथ ही, नाम परिवर्तन केवल अंग्रेजी में हुए हैं। यहां तक कि अंग्रेजी में, विशेषण रूप, म्यांमारीज़ (Myanmarese) के बजाय ‘बर्मीज़’ शब्द का प्रयोग ही जारी रहा है।
- लोकतंत्र समर्थक नागरिकों का कहना है कि, अभी तक देश के जितने भी नाम परिवर्तन किए गए, वे सब अवैधानिक थे, क्योंकि इन्हें लोगों की इच्छा से तय नहीं किया गया था।
- परिणामस्वरूप, दुनिया भर में कई सरकारों ने ‘जुंटा’ का विरोध करने तथा ‘नाम परिवर्तन’ को नजरअंदाज करने का फैसला किया, और देश को बर्मा और इसकी राजधानी रंगून कहना जारी रखा।
म्यांमार का सैन्य संविधान:
म्यांमार में सेना द्वारा वर्ष 2008 में एक संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, और इसी वर्ष अप्रैल में इस पर संदेहास्पद जनमत संग्रह कराया गया था।
- यह संविधान, सेना द्वारा तैयार किया गया ‘लोकतंत्र का रोडमैप’ था, जिसे सेना ने पश्चिमी देशों के दबाव के कारण निर्मित किया था।
- इसके अलावा, सैन्य शासन के लिए यह अहसास भी हो चुका था कि म्यांमार को बाहरी दुनिया के लिए खोलना अब एक विकल्प नहीं बल्कि एक गंभीर जरूरत भी है।
- लेकिन सेना ने संविधान में अपनी भूमिका और राष्ट्रीय मामलों में वर्चस्व को सुनिश्चित कर लिया था।
- संविधान के प्रावधानों के तहत, संसद के दोनों सदनों में 25 प्रतिशत सीटें सेना के लिए आरक्षित की गयी है, जिन पर सैन्य अधिकारियों को नामित किया जाता है।
- साथ ही, एक प्रतिनिधि राजनीतिक दल का गठन किया गया है जो सेना की ओर से चुनावों में भाग लेता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘संयुक्त राष्ट्र’ में निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में जानते हैं? यहां पढ़ें,
क्या आपको ‘कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट’ (Kaladan Multi-Modal Transit Transport Project) के बारे में पता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- म्यांमार के बारे में।
- इसका संविधान।
- भारतीय संविधान से तुलना।
- UNGA के बारे में
- संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न संस्थाएं
मेंस लिंक:
अपने पड़ोसी देशों के प्रति भारत की नीति पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
हरियाणा के ‘निजी क्षेत्र आरक्षण कानून’ पर रोक
(Haryana private sector quota law stayed)
संदर्भ:
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा हरियाणा-वासियों के लिए राज्य भर के निजी प्रतिष्ठानों में 75 प्रतिशत नौकरियों को आरक्षित किए जाने का प्रावधान करने वाले क़ानून पर रोक लगा दी गयी है।
पृष्ठभूमि:
हरियाणा सरकार द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण प्रदान करने वाले कानून “हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार विधेयक” (Haryana State Employment of Local Candidates Bill) को 15 जनवरी, 2022 से लागू किए जाने का आदेश दिया गया था।
इस कानून को चुनौती क्यों दी गई?
- याचिकाकर्ताओं का कहना है, कि हरियाणा सरकार “भूमि पुत्र” (sons of the soil) की नीति लागू करके निजी क्षेत्र में आरक्षण देने चाहती है, जोकि नियोक्ताओं को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है, कि निजी क्षेत्र की नौकरियां विशुद्ध रूप से कौशल और विश्लेषणात्मक दिमाग पर आधारित होती है, और इसके अलावा कामगारों को भारत के किसी भी हिस्से में काम करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
- इस विधेयक के तहत नियोक्ताओं को ‘स्थानीय उम्मीदवारों’ को निजी क्षेत्र में नियुक्त करने के लिए मजबूर करना, भारत के संविधान द्वारा बनाए गए संघीय ढांचे का उल्लंघन है जिसके तहत सरकार सार्वजनिक हित के विपरीत कार्य नहीं कर सकती है और एक वर्ग को लाभ नहीं पहुंचा सकती है।
‘हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक’, 2020 के प्रमुख बिंदु:
- कानून में हरियाणा का निवासी प्रमाण पत्र (अधिवास) रखने वाले लोगों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- यह कानून 10 साल की अवधि के लिए लागू होगा।
- 30,000 रुपये से कम के सकल मासिक वेतन वाली नौकरियों के लिए स्थानीय उम्मीदवारों में से भर्ती की जाएगी।
कानून लागू करने के पीछे तर्क:
उद्योगों की प्रगति और अर्थव्यवस्था के बीच सही संतुलन बनाने के साथ-साथ उद्योग एवं युवाओं के लिए एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाना।
व्यक्त की गई चिंताएं:
- इस क़ानून के लागू होने से, राज्य में अवस्थित बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ राज्य से बाहर जा सकती हैं।
- इस प्रकार का आरक्षण, उत्पादकता और उद्योग प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करता है।
इस प्रकार के विधानों से संबंधित कानूनी विवाद:
- नौकरियों में अधिवास के आधार पर आरक्षण का सवाल: हालांकि, शिक्षा में अधिवास के आधार पर आरक्षण काफी सामान्य है, लेकिन, अदालतों द्वारा इसे लोक रोजगार संबंधित मामलों में लागू करने के खिलाफ रही हैं। यह नागरिकों को प्राप्त ‘समानता के मौलिक अधिकार’ से संबंधित प्रश्न खड़े करता है।
- निजी क्षेत्र के लिए रोजगार में आरक्षण का पालन करने को विवश करने का मुद्दा: लोक रोजगार में आरक्षण लागू करने के लिए, राज्य को संविधान के अनुच्छेद 16 (4) से शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन, संविधान में, निजी क्षेत्र के लिए रोजगार रोजगार में आरक्षण लागू करने हेतु राज्य की शक्तियों के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है।
- यह क़ानून अनुच्छेद 19(1)(g) के मापदंडो पर न्यायिक परीक्षण का सामना करने में विफल हो सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 किससे संबंधित है?
- आरक्षण बनाम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15।
मेंस लिंक:
हरियाणा द्वारा 75% निजी नौकरियों को आरक्षित करने के निर्णय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
चंद्रयान-3
(Chandrayaan-3)
संदर्भ:
सरकार द्वारा लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार, ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (ISRO) द्वारा चंद्रयान -3 (Chandrayaan-3) को अगस्त 2022 में प्रक्षेपित करने के लिए तैयारी पूरी की जा चुकी है।
चंद्रयान 3 के बारे में:
चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 अभियान की अगली कड़ी है, और यह संभवतः चंद्रमा की सतह पर एक और सॉफ्ट-लैंडिंग का प्रयास करेगा।
- इस मिशन में चंद्रयान-2 की तरह ही एक ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ शामिल होगा किंतु इसके साथ ‘ऑर्बिटर’ नहीं भेजा जाएगा।
- ISRO के अनुसार, चंद्रयान-3 मिशन की कुल लागत 600 करोड़ रुपये से अधिक होगी। इसकी तुलना में चंद्रयान-2 मिशन की कुल लागत 960 करोड़ रुपये थी।
चंद्रयान-2 मिशन के बारे में:
चंद्रयान- 2 (Chandrayaan-2), भारतीय चंद्र मिशन है, जिसके तहत चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र- जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है- का अन्वेषण किया जाना था।
- इस अभियान के तहत एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को एक साथ चंद्रमा की सतह पर उतारा गया था।
- इसका उद्देश्य, चंद्रमा के बारे जानकारी जुटाना और ऐसी खोज करना जिससे भारत के साथ-साथ पूरी मानवता को फायदा होगा।
हम चंद्रमा का अध्ययन करने में रुचि क्यों रखते हैं?
चंद्रमा पृथ्वी का नज़दीकी उपग्रह है, जिसके माध्यम से अंतरिक्ष में खोज के प्रयास किए जा सकते हैं और इससे संबंध आंकड़े भी एकत्र किए जा सकते हैं।
- यह गहन अंतरिक्ष मिशन के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी आज़माने का परीक्षण केन्द्र भी होगा।
- चंद्रमा, पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के लिए सर्वोत्तम संबद्धता प्रदान करता है।
- यह आंतरिक सौर मंडल के वातावरण का ‘अबाधित ऐतिहासिक रिकॉर्ड’ भी पेश करता है।
- चंद्रयान 2, खोज के एक नए युग को बढ़ावा देने, अंतरिक्ष के प्रति हमारी समझ बढ़ाने, प्रौद्योगिकी की प्रगति को बढ़ावा देने, वैश्विक तालमेल को आगे बढ़ाने और खोजकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों की भावी पीढ़ी को प्रेरित करने में भी सहायक होगा।
‘चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव’ (Lunar South Pole) को अन्वेषण हेतु लक्षित करने का कारण:
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव विशेष रूप से दिलचस्प है, क्योंकि इसकी सतह का बड़ा हिस्सा उत्तरी ध्रुव की तुलना में अधिक छाया में रहता है।
- इसके चारों ओर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले इन क्षेत्रों में पानी होने की संभावना है।
- चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्त जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद है।
चंद्रयान-2 के साथ हुई दुर्घटना:
- ‘चंद्रयान-2’ (Chandrayaan-2), भारत का चंद्रमा पर 2019 में भेजे गया दूसरा मिशन था, जोकि चंद्रमा के अंधकारमय क्षेत्र में ‘सॉफ्ट-लैंडिंग’ करने में विफल रहा।
- यान पर लगे लैंडर और ‘रोवर’ अंतिम क्षणों में खराब हो गए और सतह पर उतरने के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होकर नष्ट हो गए।
- चंद्रयान 2 का मुख्य उद्देश्य, चंद्र सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग करना और सतह पर रोबोटिक रोवर को संचालित करने की क्षमता का प्रदर्शन करना था।
हालाँकि, चंद्रयान -2 मिशन के ऑर्बिटर और अन्य उपकरणों ने दो वर्षों में, नई जानकारी का खजाना इकट्ठा किया है जिसने चंद्रमा और उसके पर्यावरण के बारे में हमारी जानकारी में वृद्धि हुई है।
एकत्रित की गयी जानकारी:
- चंद्रमा की सतह पर जल अणुओं की उपस्थिति: मिशन ने चंद्रमा पर H2O अणुओं की उपस्थिति के बारे में अब तक की सबसे सटीक जानकारी दी है।
- सूक्ष्म तत्वों की उपस्थिति: सुदूर संवेदन उपकरणों ने चंद्रमा की सतह पर पहली बार ‘क्रोमियम, मैंगनीज और सोडियम’ का पता लगाया गया है। इस खोज से चंद्रमा पर मैग्मा के उद्भव एवं विकास को समझने और ग्रहों में भिन्नता के साथ-साथ निहारिका संबंधी स्थितियों के बारे में गहन जानकारी हासिल करने के मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
- सौर-लपटों / सोलर फ्लेयर्स (Solar Flares) के बारे में जानकारी: सक्रिय क्षेत्र के बाहर बड़ी संख्या में सूक्ष्म-लपटों (Microflares) को पहली बार देखा गया है, और इसरो के अनुसार, इस जानकारी का “सौर- कोरोना को गर्म करने के पीछे के तंत्र को समझने पर बहुत प्रभाव पड़ेगा”। यह समस्या कई दशकों से अब तक अनसुलझी बनी हुई है।
- रेगोलिथ (Regolith) के नीचे पाए जाने वाले ‘गोलाश्म’ / कंकड़-पत्थर (Boulders), क्रेटर और स्थायी रूप अँधेरे में रहने वाले क्षेत्रों, तथा चंद्रमा की उपरी सतह पर 3-4 मीटर की गहरायी वाले भुरभरे निक्षेपों का अन्वेषण किया जा रहा है। इससे वैज्ञानिकों को भविष्य में मानव मिशन सहित यानों की लैंडिंग और ड्रिलिंग साइटों को निर्धारित करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
इंस्टा जिज्ञासु:
नासा द्वारा ‘वोलाटाइल्स इंवेस्टिगेटिंग पोलर एक्सप्लोरेशन रोवर ‘(Volatiles Investigating Polar Exploration Rover– VIPER) के लिए ‘लैंडिंग साइट’ का चुनाव कर लिया गया है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- चंद्रयान-2 के बारे में
- उद्देश्य
- यान पर लगे हुए उपकरण
- चंद्रयान-1
मेंस लिंक:
चंद्रयान-2 मिशन के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: विकास और फैलते उग्रवाद के बीच संबंध।
ड्रोन नियम, 2021
(Drone Rules, 2021)
संदर्भ:
31 दिसंबर 2021 तक, सरकारी या निजी स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा ‘नौ रिमोट पायलट प्रशिक्षण संस्थान’ स्थापित किए जा चुके हैं।
ड्रोन नियमवली, 2021 (Drone Rules, 2021) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो ‘रिमोट पायलट ट्रेनिंग ऑर्गनाइजेशन’ (Remote Pilot Training Organisation – RPTO) स्थापित करने का अधिकार प्राप्त करना चाहता है, उसे डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पर फॉर्म D5 में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के लिए निर्धारित शुल्क के साथ एक आवेदन करना होगा।
भारत में ड्रोन प्रबंधन:
केंद्र सरकार द्वारा 15 सितंबर को तीन वित्तीय वर्षों में 120 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ ‘ड्रोन’ तथा ‘ड्रोन के घटकों’ के लिए एक उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को मंजूरी दी गयी थी।
- नागर विमानन मंत्रालय द्वारा 25 अगस्त को ड्रोन नियम, 2021 अधिसूचित किए गए थे, जिसके तहत ‘मानव रहित विमान प्रणालियों’ के लिए नियमों को पहले की तुलना में कहीं अधिक उदार किया गया है।
- नए नियमों के तहत, भारत में ड्रोन संचालन हेतु आवश्यक भरे जाने वाले फार्मों की संख्या 25 से घटाकर 5 कर दी गयी, तथा संचालकों से वसूली जाने वाले 72 प्रकार के शुल्कों को घटाकर मात्र 4 कर दिया गया।
ड्रोन परिचालन संबंधी नए नियम:
- डिजिटल स्काई प्लेटफार्म को व्यापार अनुकूल एकल खिड़की ऑनलाइन प्रणाली के तौर पर विकसित किया जायेगा।
- हरित क्षेत्रों में 400 फीट तक और हवाई अड्डे की परिधि से 8 से 12 किमी के बीच के क्षेत्र में 200 फीट तक ड्रोन उड़ाने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
- माइक्रो ड्रोन (गैर-व्यापारिक इस्तेमाल के लिये), नैनो ड्रोन और अनुसंधान एवं विकास संगठनों के लिये पायलट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
- भारत में पंजीकृत विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा ड्रोन संचालन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
- ड्रोन और ड्रोन के पुर्जों के आयात को ‘विदेश व्यापार महानिदेशालय’ (DGFT) द्वारा नियमित किया जायेगा।
- पंजीकरण या लाइसेंस लेने के पहले सिक्योरिटी क्लीयरेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
- अनुसंधान एवं विकास संगठनों के लिये उड़ान-योग्यता प्रमाणपत्र, विशिष्ट पहचान संख्या, पूर्वानुमति और रिमोट पायलट लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी।
- ड्रोन नियम, 2021 के तहत ड्रोन कवरेज को 300 किलोग्राम से बढ़ाकर 500 किलोग्राम कर दिया गया है, और इसमें ड्रोन टैक्सी को भी शामिल किया गया है।
- उड़ान-योग्यता प्रमाणपत्र जारी करने की जिम्मेदारी ‘भारतीय गुणवत्ता परिषद’ निभायेगी और उसके द्वारा अधिकृत संस्थायें यह प्रमाणपत्र जारी करेंगी।
- निर्माता, स्व-प्रमाणन के जरिये अपने ड्रोनों की विशिष्ट पहचान संख्या को डिजिटल स्काई प्लेटफार्म पर दे सकते हैं।
- ड्रोन नियम, 2021 के तहत अधिकतम जुर्माना घटाकर एक लाख रुपए कर दिया गया। बहरहाल, अन्य कानूनों की अवहेलना होने पर यह जुर्माना नहीं लगेगा।
- कार्गो डिलीवरी के लिए ड्रोन कॉरिडोर विकसित किए जाएंगे।
- व्यापार अनुकूल नियम बनाने के लिये ड्रोन संवर्धन परिषद् की स्थापना की जाएगी।
कड़े नियमों और विनियमन की आवश्यकता:
- हाल ही में, जम्मू में वायु सेना स्टेशन के तकनीकी क्षेत्र में विस्फोट किया गया था। इसके लिए विस्फोटकों को गिराने में पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था।
- पिछले दो वर्षों में, भारतीय क्षेत्र में हथियारों, गोला-बारूद और नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए पाकिस्तान स्थित संगठनों द्वारा नियमित रूप से ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है।
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 में पाकिस्तान से लगी सीमा पर 167 ड्रोन देखे गए और वर्ष 2020 में 77 ड्रोन देखे गए।
- हालिया वर्षों के दौरा ‘ड्रोन प्रौद्योगिकी’ के तेजी से प्रसार और वैश्विक बाजार इसका तीव्र विकास होने से, विश्व के सबसे सुरक्षित शहरों में भी ड्रोन हमले की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
- वर्तमान में ड्रोन, विशेष रूप से, उन संघर्ष क्षेत्रों में जहां ‘गैर-राज्य अभिकर्ता’ (Non State Actors – NSA) सक्रिय हैं और प्रौद्योगिकी तक आसान पहुंच रखते हैं, सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।
भारत में ड्रोन की श्रेणियाँ:
(Drone Categories in India)
नैनो श्रेणी के ड्रोन को छोड़कर, सभी के लिए पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- नैनो श्रेणी के ड्रोन: 250 ग्राम से कम या उसके बराबर
- सूक्ष्म श्रेणी के ड्रोन: 250 ग्राम से 2 किग्रा
- लघु श्रेणी के ड्रोन: 2 किलो से 25 किलो तक
- मध्यम श्रेणी के ड्रोन: 25 किग्रा से 150 किग्रा तक
- बड़ी श्रेणी के ड्रोन: 150 किग्रा से अधिक
ड्रोन का महत्व:
- वाणिज्यिक, सुरक्षा, कानून और व्यवस्था, आपदा प्रबंधन और निगरानी कार्यों में ड्रोन का उपयोग, जनशक्ति की आवश्यकता और लागत को कम करता है।
- ड्रोन, डेटा संग्रह के लिए कम लागत, सुरक्षित और त्वरित हवाई सर्वेक्षण की सुविधा प्रदान करते हैं और बिजली, खनन, और तेल एवं गैस की खोज जैसे उद्योगों के लिए उपयोगी होते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि विश्व के कुछ देशों के पास खुद के सशस्त्र बल नहीं हैं? इन देशों के बारे में जानने हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- नए ड्रोन नियमों का अवलोकन
- नए संशोधित नियम बनाम पुराने ड्रोन नियम
- नए ड्रोन नियमों के तहत दी गयी छूट
- लाइसेंस की आवश्यकता
मेंस लिंक:
नए ड्रोन नियमों के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि
(National Adaptation Fund for Climate Change)
संदर्भ:
हाल ही में लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार, ‘राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि’ (National Adaptation Fund for Climate Change – NAFCC) के तहत अब तक 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 30 परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि (NAFCC):
- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन निधि (NAFCC) की स्थापना अगस्त 2015 में की गर्इ थी।
- इसका उद्देश्य, जलवायु परिवर्तन के विपरीत परिणामों के प्रति विशेषरूप से संवेदनशील भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों हेतु जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की लागत को पूरा करना है।
कार्यान्वयन:
- क्योटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत ‘अनुकूलन निधि बोर्ड’ के लिए राष्ट्रीय कार्यान्वयनकर्ता इकाई के रूप में NABARD के साथ वर्तमान व्यवस्था, और देशभर में नाबार्ड (NABARD) की उपस्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा NAFCC के अंतर्गत ‘अनुकूलन परियोजनाओं’ के कार्यान्वयन हेतु ‘नाबार्ड’ को राष्ट्रीय कार्यान्वयनकर्ता इकाई (National Implementing Entity -NIE) के रूप में नामित किया गया है।
- इस व्यवस्था के तहत, NABARD, जलवायु परिवर्तन के लिए ‘राज्य कार्य योजना’ (State Action Plan for Climate Change – SAPCC) से परियोजना के विचारों/ अवधारणाओं को चिह्नित करने, परियोजना तैयार करने, उसकी समीक्षा, मंजूरी, निधि का संवितरण, अनुप्रवर्तन और मूल्यांकन तथा इसके अलावा राज्य सरकारों सहित हितधारकों के क्षमता निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
NAFCC का परिणामी ढांचा:
- वित्त स्तर के परिणामी मापदंडों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है:
- जल और कृषि क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रमुख जोखिमों और प्रतिकूल प्रभावों को कम करना।
- जल और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करने के लिए बहु-क्षेत्रीय, अंतर-क्षेत्रीय लाभों/सह-लाभों को अधिकतम करना।
- मानव विकास, गरीबी उन्मूलन, आजीविका सुरक्षा और समुदाय के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
- जलवायु-प्रेरित सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए संस्थागत और व्यक्तिगत क्षमता को मजबूत करना।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘अनुकूलन कोष’ के बारे में जानते हैं?
‘अनुकूलन कोष’ या ‘अनुकूलन निधि’ (Adaptation Fund) की स्थापना ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय’ (UNFCCC) के ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ के तहत 2001 में की गयी थी।
- यह विकासशील देशों में कमजोर समुदायों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद करने वाली परियोजनाओं और कार्यक्रमों को वित्तपोषित करता है।
- यह पहल, विभिन्न देशों की जरूरतों, विचारों और प्राथमिकताओं पर आधारित है।
वित्तपोषण:
- ‘अनुकूलन कोष’ (Adaptation Fund) को सरकारी और निजी दाताओं द्वारा तथा ‘प्रोटोकॉल’ के ‘स्वच्छ विकास तंत्र’ (Clean Development Mechanism – CDM) परियोजनाओं के तहत जारी ‘प्रमाणित उत्सर्जन कटौती’ (Certified Emission Reductions – CERs) की आय से वित्तपोषित किया जाता है।
- एक CDM प्रोजेक्ट गतिविधि के लिये जारी ‘सर्टीफाइड एमीशन रिडक्शन (CERs) का 2 प्रतिशत इस कोष में जाता है।
प्रशासन:
‘अनुकूलन कोष’ का पर्यवेक्षण और प्रबंधन ‘अनुकूलन निधि बोर्ड’ (Adaptation Fund Board – AFB) द्वारा किया जाता है।
- AFB में 16 सदस्य और 16 वैकल्पिक सदस्य होते है, इसकी इसकी साल में कम से कम दो बार बैठक होती है।
- ‘विश्व बैंक’ अंतरिम आधार पर ‘अनुकूलन कोष’ के ट्रस्टी के रूप में कार्य करता है।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
COP-26 पर भारत की स्थिति
(India’s Stand at COP-26)
संदर्भ:
हाल ही में, सरकार ने वर्तमान में जारी संसदीय सत्र के दौरान COP 26 पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
सरकार के अनुसार, ‘जलवायु कार्रवाई’ को तेज करने संबंधी भारत की घोषणा में, देश के एक स्वच्छ और जलवायु अनुकूल अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन करने में सहयोग करने हेतु निवेश एवं नई प्रौद्योगिकियों को आकर्षित करने की क्षमता है।
पृष्ठभूमि:
भारत सरकार ने, हाल ही में यूनाइटेड किंगडम के ‘ग्लासगो’ शहर में आयोजित ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क अभिसमय’ (United Nations Framework Convention on Climate Change – UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP26) के 26 वें सत्र में विकासशील देशों की चिंताओं को व्यक्त किया था।
पांच अमृत तत्व (पंचामृत):
भारत ने अपनी जलवायु कार्रवाई के ‘पांच अमृत तत्व’ अर्थात पंचामृत (Five Nectar Elements – Panchamrit) प्रस्तुत किए हैं। जोकि निम्नलिखित हैं:
- वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुंच।
- वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की 50 प्रतिशत आपूर्ति।
- कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में, अब से वर्ष 2030 तक एक अरब टन की कटौती।
- वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में, वर्ष 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत की कमी।
- वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन की लक्ष्य प्राप्ति।
LIFE का मंत्र- जीवन शैली:
भारत द्वारा COP 26 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ‘लाइफ-लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ (LIFE- Lifestyle for Environment) का मंत्र भी साझा किया गया था।
- भारत ने आगे कहा, कि ‘पर्यावरण हेतु जीवन शैली’ (LIFE) को ‘पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली’ का एक जन आंदोलन बनाने के अभियान के रूप में आगे बढ़ाना होगा।
- भारत द्वारा दिया गया संदेश यह था, कि दुनिया को नासमझ और विनाशकारी उपभोग के बजाय सोच-समझकर उपयोग करने की आवश्यकता है।
नेट जीरो:
भारत ने वर्ष 2070 तक ‘शुद्ध शून्य’ / नेट जीरो (Net Zero) कार्बन उत्सर्जक राष्ट्र बनने का भी वादा किया है, और साथ ही अक्षय ऊर्जा परिनियोजन और कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए बढ़े हुए लक्ष्यों की घोषणा की है।
भारत का दृष्टिकोण:
- अपने समग्र दृष्टिकोण के एक हिस्से के रूप में, भारत, समानता के मूलभूत सिद्धांतों, और ‘सामूहिक किंतु विभेदित जिम्मेदारियों’ (common but differentiated responsibilities) और संबंधित क्षमताओं पर जोर देता है।
- भारत ने COP 26 में इस बात पर भी प्रकाश डाला, कि पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर तापमान वृद्धि को बनाए रखने के लिए सभी देशों को वैश्विक कार्बन बजट, एक सीमित वैश्विक संसाधनों तक समान पहुंच होनी चाहिए।
- और, सभी देशों को इस वैश्विक कार्बन बजट का जिम्मेदारी से उपयोग करते हुए अपने उचित हिस्से के भीतर रहना चाहिए।
- विकसित राष्ट्रों की जिम्मेदारी: भारत ने विकसित देशों से जलवायु न्याय के लिए और मौजूदा दशक के दौरान उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने का आह्वान किया, ताकि उनके द्वारा घोषित तारीखों से पहले ‘नेट जीरो’ तक पहुंचा जा सके।
मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक उपाय:
- सभी प्लेटफार्मों को ‘नवीकरणीय पहले’ दृष्टिकोण (Renewable First Approach) अपनाना चाहिए।
- विभिन्न संस्थानों और अन्य देशों के बीच तालमेल बनाना चाहिए। उदाहरण: ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (OSOWOG), भारत द्वारा CoP26 में लॉन्च किया गया था। यह पहल, OSOWOG के तहत अक्षय ऊर्जा अपनाने के लिए सीमा पार ऊर्जा ग्रिडों को परस्पर जोड़ने के लिए सहायता प्रदान करेगी।
- उत्सर्जन-गहन क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज किया जाना चाहिए। उदाहरण: लोहा और इस्पात जैसे भारी उद्योग।
- नीतियों को लागू करने में एक ‘पारिस्थितिकी तंत्र आधारित’ दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। उदाहरण: फेम इंडिया योजना।
- हमें और अधिक ‘कार्बन सिंक’ – ऐसे क्षेत्र जो कार्बन का भंडारण करते हैं- की आवश्यकता है, जैसे वन, महासागर और आर्द्रभूमि।
- पर्यावरण की सुरक्षा में स्थानीय लोगों को शामिल करना चाहिए।
- जलवायु अनुकूलन के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना चाहिए। उदाहरण: जलवायु और हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए अधिक संसाधन जुटाने हेतु सितंबर में भारत और यूनाइटेड किंगडम द्वारा शुरू किया गया ‘क्लाइमेट फाइनेंस लीडरशिप इनिशिएटिव’ इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘वन सोलर, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ (One Solar, One World, One Grid) के बारे में
प्रीलिम्स लिंक:
- COP 26 के परिणाम
- भारत में जलवायु परिवर्तन से लड़ने से संबंधित प्रमुख नीतियां और कार्यक्रम
- पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन लक्ष्य।
मेंस लिंक:
भारत द्वारा घोषित वर्ष 2070 तक हासिल करने जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
नदी शहर गठबंधन
‘रिवर सिटीज एलायंस’ (River Cities Alliance – RCA), सदस्य शहरों को शहरी नदियों के सतत् प्रबंधन हेतु महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक कार्यक्रम है।
- गठबंधन (एलायंस’) को देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, श्रीनगर, वाराणसी, कानपुर, प्रयागराज आदि सहित 30 शहरों के साथ शुरू किया गया है।
- नदी शहर गठबंधन (RCA), भारत के नदी तट पर बसे सभी शहरों के लिए खुला है। कोई भी नदी-शहर कभी भी गठबंधन में शामिल हो सकता है।
पुनौरा धाम
बिहार राज्य सरकार से प्राप्त अनुरोध के अनुसार पर्यटन मंत्रालय ने ‘पुनौरा धाम’ (Punaura Dham) को स्वदेश दर्शन योजना के ‘रामायण परिपथ’ में शामिल कर लिया गया है।
- पुनौरा धाम गंतव्य, को हाल ही में पर्यटन मंत्रालय की ‘प्रसाद योजना’ के तहत शामिल किया गया है।
- पुनौरा धाम को माता सीता का जन्मस्थान माना जाता है, और यह सीतामढ़ी शहर से लगभग 5 किमी पश्चिम में स्थित पुनौरा गांव में लगभग 10 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।
- मंदिर परिसर में, एक राम जानकी मंदिर, सीता कुंड नामक एक तालाब और एक हॉल बना हुआ है।
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