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विषयसूची
सामान्य अध्ययन-II
1. टीपू सुल्तान
2. भारत की गुमनाम नायिकाओं पर एक सचित्र पुस्तक का विमोचन
सामान्य अध्ययन–II
1. भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन
2. WTO की विवाद निपटान प्रणाली
सामान्य अध्ययन–III
1. नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन हेतु भारत की आत्मनिर्भरता
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. एयर इंडिया पर अब औपचारिक रूप से टाटा समूह का स्वामित्व
सामान्य अध्ययन-I
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
टीपू सुल्तान
संदर्भ:
टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) का नाम मुंबई में एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। मुंबई में भारतीय जनता पार्टी ने दावा किया है, कि कांग्रेस पार्टी मुंबई के एक मुस्लिम बहुल इलाके में एक खेल के मैदान का नाम मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के नाम पर रखने की योजना बना रही है।
टीपू सुल्तान कौन था?
‘टीपू सुल्तान मैसूर राज्य का शासक और मैसूर के सुल्तान हैदर अली का सबसे बड़ा पुत्र था।
विस्तृत राष्ट्रीय कथानक में, टीपू को अब तक कल्पनाशील और साहसी व्यक्ति, तथा प्रतिभाशाली सैन्य रणनीतिकार के रूप में देखा जाता रहा है, जिसने अपने 17 वर्षों के छोटे से शासनकाल के दौरान, भारत में ब्रिटिश कंपनी को सबसे गंभीर चुनौती दी।
टीपू सुल्तान के योगदान:
- टीपू सुल्तान ने मात्र 17 साल की उम्र में पहले एंग्लो-मैसूर युद्ध (1767-69) और बाद में, मराठों के खिलाफ और दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध (1780-84) में भाग लिया।
- उसने 1767-99 के दौरान कंपनी की सेना से चार युद्ध किए और चौथे आंग्ल मैसूर युद्ध में अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए मारा गया।
- टीपू ने नई तकनीक का उपयोग करते हुए यूरोपीय तर्ज पर अपनी सेना को पुनर्गठित किया, और अपनी सेना में पहली बार लड़ाई में काम आने वाले रॉकेट को शामिल किया।
- उसने, विस्तृत सर्वेक्षण और वर्गीकरण के आधार पर एक भू-राजस्व प्रणाली तैयार की, जिसमें करों को सीधे किसानों पर आरोपित किया जाता था, और राज्य के संसाधन-आधार को विस्तृत करते हुए, इन करों को वेतनभोगी एजेंटों के माध्यम से नकदी के रूप में एकत्र किया जाता था।
- उसने, कृषि का आधुनिकीकरण, बंजर भूमि के विकास के लिए कर छूट, सिंचाई हेतु बुनियादी ढांचे का निर्माण और पुराने बांधों की मरम्मत करवाई। कृषि उत्पादों और रेशम उत्पादन को बढ़ावा दिया। व्यापार में सहयोग करने के लिए एक नौसेना का गठन किया।
- उसने, कारखानों की स्थापना के लिए एक “राज्य वाणिज्यिक निगम” का भी गठन किया।
‘टीपू सुल्तान’ के संबंध में विवादों का कारण:
- लगभग हर ऐतिहासिक शख्सियत द्वारा टीपू सुल्तान के प्रति दिलचस्पी दिखाई गई है और लगभग सबका दृष्टिकोण भिन्न रहा है।
- हैदर और टीपू, दोनों अपने राज्य का विस्तार करने की महत्वाकांक्षाएं रखते थे, उन्होंने मैसूर के बाहर राज्यों पर आक्रमण किए और उन पर अपना अधिकार स्थापित किया। इन हमलों के दौरान, उन्होंने छोटे- छोटे कई नगरों कस्बों और गांवों को जला दिया, सैकड़ों मंदिरों और चर्चों को नष्ट कर दिया, और हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण करवाया।
- ऐतिहासिक दस्तावेजों में, टीपू द्वारा “काफिरों” को इस्लाम में धर्म परिवर्तिन करने हेतु मजबूर करने उनके पूजा स्थलों को नष्ट करने की शेखी बघारने के संबंध में विवरण दर्ज है।
- टीपू के संबंध में असहमति रखने वाले दो प्रकार के लोग है, एक जो उसे “मैसूर का बाघ” बताते हुए उसे उपनिवेशवाद के खिलाफ एक प्रतिरोध और कर्नाटक के एक महान सपूत के रूप में देखते हैं तथा दूसरे वे, जो उसे मंदिरों को नष्ट करने और हिंदुओं एवं ईसाइयों के जबरन धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए कट्टर और अत्याचारी बताते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ऐतिहासिक रूप से मैसूर या महिषार का सर्वप्रथम उल्लेख 245 ईसा पूर्व में राजा अशोक के समय में किया गया था? मैसूर राज्य पर शासन करने वाले राजवंशो के बारे में जानिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- टीपू सुल्तान के बारे में
- उसके द्वारा लड़े गए युद्ध
- उन युद्धों के परिणाम
मेंस लिंक:
टीपू का नाम पर हालिया विवाद के विषय पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
भारत की गुमनाम नायिकाओं पर एक सचित्र पुस्तक का विमोचन
(Comic book ‘India’s Women Unsung Heroes’ released)
हाल ही में, संस्कृति मंत्रालय द्वारा ‘आजादी का महोत्सव’ के हिस्से के रूप में ‘स्वतंत्रता संग्राम की भारत की गुमनाम नायिकाओं’ पर एक सचित्र पुस्तक का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में भारत की 20 गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को शामिल किया गया है।
- संस्कृति मंत्रालय ने ‘अमर चित्र कथा’ के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के 75 गुमनाम नायकों पर सचित्र पुस्तकों का विमोचन करने का निर्णय लिया है।
- दूसरा संस्करण 25 गुमनाम जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों पर होगा जो प्रक्रियाधीन है और इसमें कुछ समय लगेगा। तीसरा और अंतिम संस्करण अन्य क्षेत्रों के 30 गुमनाम नायकों पर होगा।
पुस्तक में शामिल की गयी कुछ प्रमुख नायिकाएं:
रानी अब्बक्का:
रानी अब्बक्का (Abbakka Chowta) कर्नाटक के चौटा उल्लाल की पहली तुलुव रानी थीं, इन्होने 16वीं शताब्दी में शक्तिशाली पुर्तगालियों से लड़ाई लड़ी और उन्हें पराजित किया।
वह चौटा राजवंश से संबंधित थीं। जो मंदिरों के नगर मूडबिद्री से शासन करते थे। बंदरगाह शहर उल्लाल उनकी सहायक राजधानी थी। चौटा राजवंश का शासन भारत के तटीय कर्नाटक (तुलु नाडु) के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। इनकी राजधानी पुट्टीगे (Puttige) थी।
मातंगिनी हाजरा (Matangiri Hazra):
मातंगिनी हाजरा बंगाल की एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
- उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। 1930 में, उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और नमक अधिनियम को तोड़ने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- 29 सितंबर 1942 को तामलुक पुलिस स्टेशन (तत्कालीन मिदनापुर जिला) के सामने ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने गोली मार कर इनकी हत्या कर दी।
- उन्हें ‘गाँधी बुढ़ी’ के नाम से जाना जाता था।
गुलाब कौर (Gulab Kaur):
गुलाब कौर एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने भारतीय लोगों को ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ने और संगठित करने के लिए अपने जीवन की आशाओं और आकांक्षाओं और विदेश में जीवन के अपने सपनों का त्याग किया।
- फिलीपींस की राजधानी मनीला में, गुलाब कौर भारतीय उपमहाद्वीप को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के उद्देश्य से भारतीय प्रवासियों द्वारा स्थापित एक संगठन ‘ग़दर पार्टी’ में शामिल हो गईं।
पद्मजा नायडू (Padmaja Naidu):
पद्मजा नायडू, सरोजिनी नायडू की बेटी थी और एक स्वतंत्रता सेनानी थीं।
- वह एक राजनीतिज्ञ भी थीं तथा स्वतंत्रता के बाद 3 नवंबर 1956 से 1 जून 1967 तक पश्चिम बंगाल की 5वीं राज्यपाल रही।
- उन्होंने 21 साल की उम्र में, हैदराबाद की निज़ाम शासित रियासत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ‘सह-स्थापना’ की।
- 1942 में “भारत छोड़ो” आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद, वह 1950 में भारतीय संसद के लिए चुनी गईं।
रानी वेलु नचियार (Velu Nachiyar):
शिवगंगा की रानी वेलु नचियार ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाली पहली भारतीय रानी थीं।
- उन्होंने 1780-1790 तक शिवगंगा रियासत की रानी के रूप में शासन किया।
- उन्हें तमिलों द्वारा वीरमंगई (बहादुर महिला) के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने, हैदर अली की सेना, सामंतों, मरुधु भाइयों, दलित सेनानायकों और थंडावरायण पिल्लई के सहयोग से ईस्ट इंडिया कंपनी से संघर्ष किया।
झलकारी बाई (Jhalkari Bai):
झलकारी बाई एक महिला योद्धा और झांसी की रानी की प्रमुख सलाहकारों में से एक थी।
- उन्होंने 1857 के विद्रोह, भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- झांसी की कड़ी घेराबंदी के दौरान उन्होंने खुद रानी लक्ष्मीबाई का वेश धारण कर अंग्रेजी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला, जिससे रानी को किले से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने की अवसर मिल गया। वह अंग्रेजों से लडती हुई वीरगति को प्राप्त हुईं।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन
(India-Central Asia Summit)
संदर्भ:
हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन (India-Central Asia Summit) की मेजबानी की।
- इस शिखर सम्मेलन में कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने हिस्सा लिया।
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ पर यह पहली भारत-मध्य एशिया समिट आयोजित की गई।
शिखर सम्मलेन का परिणाम – “दिल्ली घोषणापत्र”:
- शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत द्वारा भारत और मध्य एशिया के स्थलरुद्ध देशों के मध्य स्थलीय-संपर्कों की कमी पर चिंता व्यक्त की गयी।
- सम्मलेन में भाग लेने वाले नेताओं द्वारा नई दिल्ली में “मध्य एशिया केंद्र” (Central Asia Centre) बनाने संबंधी योजना की घोषणा की गयी।
- नेताओं द्वारा अफगानिस्तान और चाबहार बंदरगाह परियोजना पर दो “संयुक्त कार्य समूहों” (Joint Working Groups) का गठन किए जाने घोषणा भी की गयी।
- इन नेताओं द्वारा तुर्कमेनिस्तान के ‘गाल्कनिश्क तेल क्षेत्र’ (Galknyshk oil fields) से आरंभ होकर अफगानिस्तान के हेरात व कंधार तथा पाकिस्तान के क्वेटा व मुल्तान से होकर भारत के फाजिल्का तक पहुचने वाली ‘TAPI गैस पाइपलाइन परियोजना’ के महत्व पर प्रकाश डाला गया।
मध्य एशिया के लिए उपलब्ध वैकल्पिक मार्ग:
भारत द्वारा मध्य एशिया के इन स्थलरुद्ध देशों तक समुद्र के रास्ते, ‘चाबहार पोर्ट टर्मिनल’ तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। ‘चाबहार पोर्ट टर्मिनल’ का प्रबंधन भारत द्वारा किया जा रहा है, तथा ईरान के ‘बंदर अब्बास’ (Bandar Abbas) से होकर गुजरने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर’ (INSTC) को रूस एवं ईरान द्वारा विकसित किया जा रहा है।
मध्य एशिया का भू सामरिक महत्व:
- मध्य एशिया, रणनीतिक रूप से यूरोप और एशिया के मध्य ‘अभिगम्य बिंदु’ के रूप में अवस्थित है, और व्यापार, निवेश और विकास के लिए व्यापक संभावनाएं प्रदान करता है।
- मध्य एशिया, भारत के निकटवर्ती पड़ोसी देशों का भाग नहीं है, और यह भारत के साथ सीमा साझा नहीं करता है, ऐसे में दोनों क्षेत्रों के मध्य ‘संपर्क’ का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है।
मध्य एशिया का भू आर्थिक महत्व:
मध्य एशिया क्षेत्र कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, सोना, तांबा, एल्यूमीनियम और लोहे जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है।
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):
सितंबर 2000 में भारत, ईरान और रूस द्वारा सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस बहु-मॉडल परिवहन परियोजना ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ (International North South Transport Corridor- INSTC) पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- यह कॉरिडोर, हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को, ईरान तथा सेंट पीटर्सबर्ग से होकर गुजरते हुए कैस्पियन सागर से जोड़ने वाला सबसे छोटा बहु-मॉडल परिवहन मार्ग होगा।
- INSTC माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्ग का 7,200 किलोमीटर लंबा बहु-विधिक (मल्टी-मोड) नेटवर्क है।
- सम्मिलित क्षेत्र: भारत, ईरान, अफगानिस्तान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप।
तापी (TAPI) परियोजना के बारे में:
- तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) परियोजना का उद्घाटन 2015 में किया गया था।
- यह प्राकृतिक गैस पाइपलाइन परियोजना है, और इसे एशियाई विकास बैंक द्वारा विकसित किया जा रहा है।
- यह परियोजना भारत-पाकिस्तान तनाव और अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति जैसे मुद्दों में उलझी हुई है।
भारत के लिए इस परियोजना के लाभ:
पूरे विश्व में ऊर्जा एक बढ़ती हुई आवश्यकता है और भारत अपनी अधिकांश ऊर्जा आवश्यकताओं को ईरान एवं अन्य देशों से पूरी करता है। तुर्कमेनिस्तान के ऊर्जा भंडार विश्व में चौथे स्थान पर है, और भारत के लिए इन ऊर्जा भंडारों तक पहुँच, इस परियोजना को आकर्षक प्रस्ताव बनाती है।
- इस परियोजना से भारत के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रतिस्पर्धी मूल्य पर प्राप्त होगी और परियोजना के पूरा होने तक, भारत अपनी अनुमानित जरूरतों का लगभग 15% आपूर्ति इसके माध्यम से आसानी से कर सकता है।
- यह परियोजना, भारत को मध्य एशिया में अपना हित सुरक्षित करने का अवसर भी प्रदान करती है। TAPI परियोजना की सफलता भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान द्वारा अन्य मुद्दों पर भी सहयोग करने के तरीके खोजने पर विचार करने को सुनिश्चित करेगी।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
WTO की विवाद निपटान प्रणाली
संदर्भ:
चीन द्वारा ‘लिथुआनिया’ (Lithuania) को ताइवान पर इसके रुख की वजह से निशाना बनाए जाने पर, हाल ही में, यूरोपीय संघ द्वारा ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) में बीजिंग के खिलाफ मामला शुरू किया गया है।
- लिथुआनिया ने जुलाई में ताइवान को अपने ‘विलनियस’ (Vilnius) शहर में एक राजनयिक दूतावास खोलने की अनुमति देकर हलचल मचा दी थी।
- लिथुआनिया के इस कदम ने बीजिंग को नाराज कर दिया। चीन, ताइवान को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देता है और इस स्व-शासित लोकतांत्रिक द्वीप को अपनी मुख्य भूमि का विद्रोही क्षेत्र मानता है।
लिथुआनिया:
- यह बाल्टिक सागर (Baltic Sea) के पूर्वी तट पर स्थित तीन बाल्टिक देशों में से एक है।
- लिथुआनिया, उत्तर में लातविया, पूर्व और दक्षिण में बेलारूस, दक्षिण में पोलैंड और दक्षिण-पश्चिम में रूस के कैलिनिनग्राद ओब्लास्ट (Kaliningrad Oblast) के साथ स्थलीय सीमा साझा करता है।
WTO में विवाद निपटान:
व्यापार संबंधी विवादों का समाधान करना, विश्व व्यापार संगठन की प्रमुख गतिविधियों में से एक है।
- जब किसी सदस्य राष्ट्र की सरकार को ऐसा प्रतीत होता है, कि कोई अन्य सदस्य देश ‘विश्व व्यापार संगठन’ के किसी समझौते या अपनी प्रतिबद्धता का उल्लंघन कर रहा है तो उनके मध्य विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है।
- ‘विश्व व्यापार संगठन’ की विवाद निपटान प्रणाली, विश्व की सबसे सक्रिय ‘अंतरराष्ट्रीय विवाद प्रणालियों’ में से एक है। 1995 के बाद से, विश्व व्यापार संगठन में 609 विवाद लाए जा चुके हैं और इसके द्वारा अब तक 350 से अधिक फैसले दिए जा चुके हैं।
WTO में शिकायत दर्ज होने के बाद विवाद को निपटाने के दो मुख्य तरीके हैं:
- पक्षकारों द्वारा, विशेष रूप से द्विपक्षीय परामर्श के चरण के दौरान, पारस्परिक रूप से सहमत समाधान निकाल लिया जाता है।
- पैनल और अपीलीय निकाय की रिपोर्ट के कार्यान्वयन के पश्चात्, विवाद निपटान निकाय द्वारा मामले पर फैसला सुनाया जाता है। यह फैसला संबंधित पक्षों के लिए बाध्यकारी होता है।
विश्व व्यापार संगठन में ‘विवाद निपटान प्रक्रिया’ के तीन मुख्य चरण होते हैं:
- पक्षकारों के मध्य परामर्श (consultations between the parties)।
- पैनल द्वारा निर्णय, और यदि लागू हो तो, अपीलीय निकाय द्वारा निर्णय।
- फैसले का कार्यान्वयन। इसके तहत हारने वाले पक्ष द्वारा फैसले को लागू करने में विफल रहने पर उसके खिलाफ उपाय किए जा सकते हैं।
विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय:
विश्व व्यापार संगठन का ‘अपीलीय निकाय’ (Appellate Body) वर्ष 1995 में स्थापित, सात सदस्यों की एक स्थायी समिति है जो विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों द्वारा लाए गए व्यापार संबंधी विवादों में पारित निर्णयों के खिलाफ अपील की सुनवाई करती है।
- WTO समझौते या निर्धारित दायित्वों का उल्लंघन करने से संबंधित विवाद में शामिल देशों को, यदि ऐसा लगता है कि इस मामले की जांच करने हेतु गठित पैनल की रिपोर्ट की कानून के बिंदुओं पर समीक्षा की जानी चाहिए, तो वे अपीलीय निकाय से संपर्क कर सकते हैं।
- हालांकि, अपीलीय निकाय द्वारा मौजूदा साक्ष्यों की पुन: जांच नहीं की जाती है लेकिन कानूनी व्याख्याओं की समीक्षा की जाती है।
- अपीलीय निकाय, विवाद की सुनवाई करने वाले पैनल के कानूनी निष्कर्षों को बरक़रार रख सकता है, संशोधित कर सकता है या उलट सकता है। विवाद से संबंधित किसी एक या दोनों पक्षों द्वारा पैनल के निर्णय के खिलाफ अपील की जा सकती है।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन-III
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन हेतु भारत की आत्मनिर्भरता
संदर्भ:
भारत द्वारा वर्ष 2030 तक 300 गीगावॉट सौर ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने हेतु आगामी वर्षों में बड़ी क्षमता वृद्धि पर विचार किया जा रहा है।
- वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही के अंत में देश की संचयी स्थापित सौर क्षमता लगभग 47 GW थी।
- 1 फरवरी, 2022 को पेश किए जाने वाले केंद्रीय बजट में, सौर ऊर्जा क्षेत्र द्वारा भारतीय सौर उद्योग के लिए विशेष राहत पहुंचाने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बहुत उम्मीदें लगाई जा रही हैं।
ऊर्जा अवस्थांतर (Energy Transition) में भारत किस प्रकार एक विश्व नेता के रूप में उभर रहा है?
- भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकास दर, इस क्षेत्र में विश्व की सर्वाधिक तेज दरों में से एक है।
- भारत द्वारा पेरिस में आयोजित COP-21 में संकल्प किया गया कि, वर्ष 2030 तक, इसकी विद्युत् उत्पादन क्षमता का 40% उत्पादन गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से होगा।
- भारत ने वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
- देश में ‘दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना’ (Deen Dayal Upadhyay Gram Jyoti Yojana Scheme) के तहत हर गांव और हर बस्ती को जोड़कर और सौभाग्य योजना (Saubhagya Scheme) के अंतर्गत हर घर को जोड़कर, बिजली का कनेक्शन तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान की गई है।
- कोविड- 19 का प्रभाव होने के बाबजूद, भारत पहले ही 200 GW की मांग को छू चुका है।
- भारत, हरित हाइड्रोजन और हरित अमोनिया के क्षेत्र में भी अग्रणी के रूप में उभर रहा है।
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना:
- दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY), भारत सरकार की प्रमुख पहलों में से एक है और विद्युत मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण विद्युतीकरण और बिजली वितरण बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (RGGVY) योजना को DDUGJY योजना में समाहित किया गया है।
उद्देश्य:
- सभी गांवों और घरों का विद्युतीकरण करना।
- ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं गैर कृषि उपभोक्ताओं की आपूर्ति को विवेकपूर्ण तरीके से बहाल करने की सुविधा हेतु कृषि और गैर कृषि फीडरों का पृथक्करण करना।
- आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में सुधार हेतु उप-पारेषण और वितरण की आधारभूत संरचना का सुदृढ़ीकरण एवं आवर्धन करना।
- घाटे को कम करने के लिए मीटर लगाना।
कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी: ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड ( Rural Electrification Corporation Limited – REC)।
‘सौभाग्य’ योजना:
(Saubhagya scheme)
- प्रधान मंत्री सहज बिजली हर घर योजना (पीएम सौभाग्य) को सितंबर 2017 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य दिसंबर 2018 तक सभी घरों में बिजली पहुंचाना था।
- इस लक्ष्य को आगे बढ़ाकर 31 मार्च, 2019 कर दिया गया। अंततः केंद्र द्वारा सभी ‘इच्छुक’ घरों को बिजली कनेक्शन दिए जा चुकने संबंधी घोषणा कर दी गयी है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘ग्रीन अमोनिया’ के बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- सौभाग्य योजना के बारे में।
- ‘ग्रामीण विद्युतीकरण निगम’ के बारे में।
- DDUGJY के बारे में
- ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में
मेंस लिंक:
अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
एयर इंडिया पर अब औपचारिक रूप से टाटा समूह का स्वामित्व
हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा एयर इंडिया में अपने शेयरों को टाटा संस की सहायक कंपनी टैलेस (TALACE) को नियंत्रण और प्रबंधन के साथ हस्तांतरित कर दिया गया है। इसी के साथ पांच साल पहले शुरू हुई विनिवेश प्रक्रिया को समाप्त हो गयी है।
- टाटा के लिए एयर इंडिया, इंडियन एयरलाइंस और महाराजा जैसे प्रतिष्ठित ब्रांडों के स्वामित्व के साथ-साथ एयर इंडिया के 141 विमानों का बेड़ा प्राप्त होगा।
- इसी के साथ एयर इंडिया में काम करने वाले 13,500 स्थायी और संविदा कर्मचारी भी टाटा समूह में चले जाएंगे और टाटा को इन कर्मचारियों के लिए न्यूनतम एक वर्ष की अवधि तक सेवा में बनाए रखना अनिवार्य होगा।
टाटा समूह अब विस्तारा (Vistara) के साथ तीन एयरलाइनों का मालिक है, जिसमें उसकी 51% हिस्सेदारी है और एयरएशिया इंडिया की 84% हिस्सेदारी है। विमानन क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी में तीनों एयरलाइनों की हिस्सेदारी कुल मिलाकर 24 फीसदी है।
एयरलाइन का एक संक्षिप्त इतिहास:
एयरलाइन की स्थापना 1932 में हुई थी, जब जेआरडी टाटा ने कराची और बॉम्बे के बीच पहली उड़ान की शुरुआत की थी।
- तब इसे टाटा एयरलाइंस के नाम से जाना जाता था। सरकार ने 1948 में एयरलाइन में 49% हिस्सेदारी का अधिग्रहण कर लिया, इसके बाद 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया।
- एयरलाइन का नाम बदलकर ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल’ कर दिया गया और घरेलू उड़ानों को इंडियन एयरलाइंस में स्थानांतरित कर दिया गया।
- वर्ष 2007 में, दोनों एयरलाइनों का विलय कर दिया गया था। इसके बाद कुछ साल पहले बड़े पैमाने पर विमानों के ऑर्डर के साथ यह नई इकाई कर्ज में डूब गयी, क्योंकि यह तब से लाभ कमाने में विफल रही।
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