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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–II
1. महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाने संबंधी विधेयक की समीक्षा
2. महाराष्ट्र और कर्नाटक के मध्य बेलगावी सीमा विवाद
3. मेकेदातु विवाद
4. शिनजियांग विवाद
सामान्य अध्ययन-III
1. जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप
2. उड़ान योजना एवं इससे संबंधित समस्याएं
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. शिरोमणि अकाली दल
2. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31D
3. चिल्ले / चिल्लाई- कलां
4. एल्बिनो इंडियन फ्लैपशेल कछुआ
सामान्य अध्ययन–II
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ाने संबंधी विधेयक की समीक्षा
संदर्भ:
हाल ही में, लोकसभा द्वारा ‘बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021’ (Prohibition of Child Marriage (Amendment) Bill, 2021’) को समीक्षा के लिए एक ‘स्थायी समिति’ को भेजा गया है। इस संशोधन विधेयक में महिलाओं के लिए विवाह हेतु कानूनी उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रावधान किया गया है।
इस कानून को लाने के पीछे तर्क:
विवाह की आयु सभी धर्मों, जातियों, पंथों के लिए और महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाले किसी भी रिवाज या कानून को अध्यारोही करते हुए, एक समान रूप से लागू होनी चाहिए।
यह विधेयक निम्नलिखित कानूनों में भी संशोधित करेगा:
- भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1972
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- विदेशी विवाह अधिनियम, 1956
इस विधेयक, इसके प्रमुख प्रावधानों, महत्व और चिंताओं के बारे में अधिक जानने के लिए, हाल ही में कवर किया गया यह लेख देखें।
संसदीय समितियाँ क्या होती हैं?
लोकसभा वेबसाइट के अनुसार, संसदीय समिति से तात्पर्य उस समिति से है, जो सभा द्वारा नियुक्त या निर्वाचित की जाती है अथवा अध्यक्ष द्वारा नाम-निर्देशित की जाती है तथा अध्यक्ष के निदेशानुसार कार्य करती है एवं अपना प्रतिवेदन सभा को या अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है।
संसदीय समितियों के प्रकार:
- स्थायी समितियाँ (Standing Committees): ये समितियां अनवरत प्रकृति की होती हैं अर्थात् इनका कार्य प्रायः निरंतर चलता रहता है। इस प्रकार की समितियों को वार्षिक आधार पर पुनर्गठित किया जाता है।
- इन्हें वित्तीय समितियों और विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (Departmentally-Related Standing Committees- DRSCs) में विभाजित किया जाता है।
- वित्तीय समितियों को विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है, तथा यह तीन प्रकार की होती हैं: लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति एवं सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति।
- तदर्थ समितियां (Select Committees): तदर्थ समितियां किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए नियुक्त की जाती हैं और जब वे अपना काम समाप्त कर लेती हैं तथा अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर देती हैं, तब उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
संवैधानिक प्रावधान:
संसदीय समितियां, अनुच्छेद 105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकार) तथा अनुच्छेद 118 (संसदीय प्रक्रिया तथा कार्यवाही के संचालन के लिए नियम बनाने हेतु संसद की शक्ति) से अपनी शक्तियां प्राप्त करती हैं।
विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (DRSCs) की संरचना:
विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों की संख्या 24 है जिनके क्षेत्राधिकार में भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग आते हैं।
- 13 वीं लोकसभा तक प्रत्येक DRSC में 45 सदस्य होते थे – जिनमे से 30 सदस्यों को लोकसभा से तथा 15 सदस्यों को राज्यसभा से नाम-निर्दिष्ट किया जाता था।
- जुलाई 2004 में विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों के पुनर्गठन के पश्चात, इनमें से प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं – 21 लोक सभा से तथा 10 राज्य सभा से जिन्हें क्रमश: लोक सभा के अध्यक्ष तथा राज्य सभा के सभापति द्वारा नाम-निर्दिष्ट किया जाता है।
- इन समितियों को एक वर्ष की अधिकतम अवधि के लिए गठित किया जाता है और समितियों के पुनर्गठन में प्रतिवर्ष सभी दलों के सदस्यों को सम्मिलित किया जाता है।
संसदीय समिति प्रणाली का महत्व:
- अंतर-मंत्रालयी समन्वय
- विस्तृत संवीक्षा हेतु उपकरण
- लघु-संसद के रूप में कार्यकारी निकाय
प्रीलिम्स लिंक:
- जया जेटली समिति का गठन किस उद्देश्य के लिए किया गया था?
- भारत में पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु से संबंधित कानूनी प्रावधान
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रमुख प्रावधान
- बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का अवलोकन
- संसदीय समिति तथा मंत्रिमंडलीय समिति के मध्य अंतर
- स्थायी बनाम तदर्थ बनाम वितीय समितियां
- इन समितियों के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है?
- मात्र लोकसभा सदस्यों से गठित की जाने वाली समितियां
- सदन के अध्यक्ष द्वारा अध्यक्षता की जाने वाली समितियां
मेंस लिंक:
क्या आपको लगता है कि पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु सीमा में वृद्धि की जानी चाहिए? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय। संघ और राज्यों के कार्य और उत्तरदायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ।
महाराष्ट्र और कर्नाटक के मध्य बेलगावी सीमा विवाद
संदर्भ:
स्वतंत्रता के समय तथा 1956 में ‘भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन’ के बाद से, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच चले आ रहे एक ‘अंतर-राज्यीय विवाद’ ने कर्नाटक के बेलागवी क्षेत्र में फिर से अपना सिर उठा लिया है।
हाल ही में हुई छोटी-छोटी घटनाओं की वजह से इस विवाद को तेज कर दिया है, और सीमा के दोनों ओर कन्नड़ समर्थक और मराठी समर्थक भावनाएं भड़क उठी हैं।
विवाद की उत्पत्ति:
पूर्ववर्ती बॉम्बे प्रेसीडेंसी एक एक बहुभाषी प्रांत था, जिसमे वर्तमान कर्नाटक राज्य के बीजापुर, बेलागवी, धारवाड़ और उत्तर-कन्नड़ जिले सम्मिलित थे। बॉम्बे प्रेसीडेंसी में मराठी, गुजराती और कन्नड भाषाएं बोलने वाले लोग रहा करते थे।
- वर्ष 1948 में, बेलगाम नगरीय निकाय ने अनुरोध किया था कि मुख्य रूप से मराठी भाषी जनसँख्या वाले जिले को प्रस्तावित महाराष्ट्र राज्य में शामिल कर दिया जाए।
- हालाँकि, भाषाई और प्रशासनिक आधार पर राज्यों को विभाजित करने वाले राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत बेलगाम और बॉम्बे प्रेसीडेंसी के 10 अन्य तालुकों को तत्कालीन मैसूर राज्य (जिसे 1973 में कर्नाटक का नाम दिया गया था) का एक हिस्सा बना दिया गया।
महाजन आयोग की रिपोर्ट:
राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा, राज्यों का सीमांकन करते हुए, 50 प्रतिशत से अधिक कन्नड़ भाषी आबादी वाले तालुकों को मैसूर राज्य में शामिल कर दिया गया।
- इस क्षेत्र के मैसूर में शामिल किए जाने का काफी विरोध किया गया। विरोध करने वालों का कहना था, कि इस क्षेत्र में मराठी भाषियों की संख्या 1956 में यहाँ रहने वाले कन्नड़ भाषियों से अधिक हो गयी है।
- सितंबर 1957 में, बॉम्बे सरकार द्वारा इनकी मांग को आवाज दी गयी और केंद्र के समक्ष विरोध दर्ज कराया गया, जिसके परिणामस्वरूप अक्टूबर 1966 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में महाजन आयोग का गठन किया गया।
आयोग की सिफारिश:
अगस्त 1967 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश के अनुसार- 264 गांवों को महाराष्ट्र (जिसका 1960 में गठन किया गया) में स्थानांतरित किया जाएगा तथा बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक में रखे जाएंगे।
बाद का घटनाक्रम:
- महाराष्ट्र द्वारा इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया तथा इसे पक्षपाती और अतार्किक बताते हुए इसकी समीक्षा किए जाने की मांग की गई।
- कर्नाटक ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया और इसके कार्यान्वयन हेतु दबाव देता रहा है, हालांकि इसे केंद्र द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है।
- महाराष्ट्र, बेलगाम शहर, जो वर्तमान में कर्नाटक का हिस्सा है, सहित सीमा पर स्थित 814 से अधिक गाँवों पर दावा करता है।
- महाराष्ट्र की सरकारों द्वारा इन क्षेत्रों को राज्य में सम्मिलित किये जाने की मांग की जाती रही है- जबकि कर्नाटक के द्वारा इन दावों का विरोध किया जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1950 में संविधान में भारतीय संघ के राज्यों का चार श्रेणियों- श्रेणी ए, श्रेणी बी, श्रेणी सी और श्रेणी डी- में वर्गीकरण किया गया था?
प्रीलिम्स लिंक:
- महाजन आयोग के बारे में
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के बारे में
मेंस लिंक:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
मेकेदातु विवाद
संदर्भ:
हाल ही में, कर्नाटक ने ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) द्वारा अपनी अगली बैठक में ‘मेकेदातु संतुलन जलाशय परियोजना’ (Mekedatu Balancing Reservoir Project) पर ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) को मंजूरी दिए जाने की मांग की है।
संबंधित प्रकरण:
तमिलनाडु द्वारा ‘मेकेदातु’ (Mekedatu) में कावेरी नदी पर कर्नाटक द्वारा जलाशय बनाने के कदम का विरोध किया जा रहा है। हालांकि, कर्नाटक सरकार का कहना है, कि ‘मेकेदातु परियोजना’ से कोई “खतरा” नहीं है और राज्य द्वारा इस परियोजना को शुरू किया किया जाएगा।
समाधान हेतु उपाय:
इस बीच, केंद्र सरकार ने कहा है, कि इस परियोजना के लिए ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) की अनुमति लेना आवश्यक है।
- कर्नाटक द्वारा भेजी गई ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (Detail Project Report – DPR) को अनुमोदन के लिए CWMA के समक्ष कई बार पेश किया चुका है, किंतु संबधित राज्यों, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो सकी है।
- साथ ही, ‘कावेरी जल विवाद प्राधिकरण’ के अंतिम निर्णय, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, के अनुसार, ‘जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (DPR) पर विचार करने के लिए पहले CWMA की स्वीकृति लेना आवश्यक है।
चूंकि, यह परियोजना एक अंतर-राज्यीय नदी के पार प्रस्तावित की गई है, अतः इसे ‘अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम’ (Interstate Water Dispute Act) के अनुसार, परियोजना के लिए नदी के निचले तटवर्ती राज्यों की मंजूरी लेना भी आवश्यक है।
‘मेकेदातु परियोजना’ के बारे में:
‘मेकेदातु’ एक बहुउद्देशीय (जल एवं विद्युत्) परियोजना है।
- परियोजना के तहत, कर्नाटक के रामनगर जिले में कनकपुरा के पास एक ‘संतोलन जलाशय’ (Balancing Reservoir) का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है।
- इस परियोजना का उद्देश्य, बेंगलुरू शहर और इसके निकटवर्ती क्षेत्रों के लिए पीने के प्रयोजन हेतु पानी (75 टीएमसी) का भंडारण और आपूर्ति करना है। इस परियोजना के माध्यम से लगभग 400 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
- परियोजना की अनुमानित लागत 9,000 करोड़ रुपये है।
तमिलनाडु द्वारा इस परियोजना का विरोध करने के कारण:
- तमिलनाडु का कहना है, कि ‘उच्चतम न्यायालय’ और ‘कावेरी जल विवाद अधिकरण’ (CWDT) के अनुसार ‘कावेरी बेसिन में उपलब्ध मौजूदा भंडारण सुविधाएं, जल भंडारण और वितरण के लिए पर्याप्त है, अतः कर्नाटक का यह प्रस्ताव पूर्व-दृष्टया असमर्थनीय है और इसे सीधे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
- तमिलनाडु के अनुसार- प्रस्तावित जलाशय का निर्माण केवल पीने के पानी के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसके द्वारा सिंचाई की सीमा बढाया जाएगा, जोकि ‘कावेरी जल विवाद निर्णय’ का स्पष्ट उल्लंघन है।
अधिकरण तथा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय:
‘कावेरी जल विवाद अधिकरण’ (CWDT) का गठन वर्ष 1990 में की गयी थी और वर्ष 2007 में दिए गए अपने अंतिम फैसले में, तमिलनाडु को 419 टीएमसी फीट, कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट, केरल को 30 टीएमसी फीट और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी का बटवारा किया था। अधिकरण ने, बारिश की कमी वाले वर्षों में, सभी राज्यों के लिए जल-आवंटन की मात्रा कम कर दी जाएगी।
- हालांकि, तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों द्वारा इस बटवारे पर अप्रसन्नता व्यक्त की और जल बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों में विरोध और हिंसा के प्रदर्शन हुए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले पर सुनवाई की गई और वर्ष 2018 के फैसले में, बंटवारा करते हुए तमिलनाडु के पूर्व निर्धारित हिस्से में से 14.75 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक को दे दिया।
- इस प्रकार, नया बटवारे के अनुसार, तमिलनाडु के लिए 404.25 टीएमसी फीट पानी मिला और कर्नाटक को 284.75 टीएमसी फीट पानी दिया गया। केरल और पुडुचेरी का हिस्सा अपरिवर्तित रहा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के लिए ‘कावेरी प्रबंधन योजना’ अधिसूचित करने का निर्देश दिया था? इस योजना के प्रमुख घटक कौन से हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- कावेरी की सहायक नदियाँ।
- बेसिन में अवस्थित राज्य।
- नदी पर स्थित महत्वपूर्ण जलप्रपात तथा बांध।
- मेकेदातु कहाँ है?
- प्रोजेक्ट किससे संबंधित है?
- इस परियोजना के लाभार्थी।
मेंस लिंक:
मेकेदातु परियोजना पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
शिनजियांग विवाद
संदर्भ:
चीन द्वारा, देश के उत्तर-पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में दुर्व्यवहार की शिकायतों को लेकर चीनी अधिकारियों पर लगाए गए दंड के प्रत्युत्तर में अमेरिकी सरकार के ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग’ के चार सदस्यों पर प्रतिबंधों की घोषणा की गयी है।
पृष्ठभूमि:
अमेरिका ने ‘शिनजियांग प्रांत’ में की जा रही कार्रवाई के लिए कई चीनी बायोटेक और निगरानी कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। चीन के पश्चिमी क्षेत्र में ‘उइगर मुसलमानों’ के मानवाधिकारों के हनन पर बीजिंग के खिलाफ अमेरिका का यह नवीनतम कदम है।
संबंधित प्रकरण:
कई देशों ने ‘शिनजियांग’ (Xinjiang) में मुस्लिम उइगर समुदाय के लिए चीन से “कानून के शासन का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने” की मांग की है।
विश्वसनीय रिपोर्टों से संकेत मिलता है, कि शिनजियांग में एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है तथा उइगरों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को अनुचित रूप से लक्षित करते हुए व्यापक निगरानी की जा रही है, और उइघुर संस्कृति तथा मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया गया है।
चीन की प्रतिक्रिया:
पर्याप्त सबूतों के बावजूद, चीन, उइगरों के साथ दुर्व्यवहार से इनकार करता है, और जोर देकर, केवल चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किए गए “व्यावसायिक प्रशिक्षण” केंद्र चलाने की बात करता है।
- उइगर (Uighurs) मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्की नृजातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति के चिह्न ‘मध्य एवं पूर्वी एशिया’ में खोजे जा सकते हैं।
- उइगर समुदाय, तुर्की भाषा से मिलती-जुलती अपनी भाषा बोलते हैं, और खुद को सांस्कृतिक और नृजातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं।
- चीन, इस समुदाय को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और इन्हें देश का मूल-निवासी समूह मानने से इंकार करता है।
- वर्तमान में, उइगर जातीय समुदाय की सर्वाधिक आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में निवास करती है।
- उइगरों की एक बड़ी आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान में भी पाई जाती है।
दशकों से उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार द्वारा आतंकवाद और अलगाववाद के झूठे आरोपों के तहत, उत्पीड़न, जबरन हिरासत, गहन-जांच, निगरानी और यहां तक कि गुलामी जैसे दुर्व्यवहार किये जा रहे हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप चीन की ‘वन कंट्री टू सिस्टम पॉलिसी’ के बारे में जानते हैं? इस नीति के तहत किन क्षेत्रों का प्रशासन किया जाता है? इस बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- उइघुर कौन हैं?
- शिनजियांग कहाँ है?
- हान चीनी कौन हैं?
- शिनजियांग प्रांत की सीमा से लगे भारतीय राज्य।
मेंस लिंक:
उइघुर कौन हैं? हाल ही में इनके समाचारों में होने संबंधी कारणों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरुकता।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप
हाल ही में, नासा (NASA) ने 24 दिसंबर को ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (James Webb Space Telescope – JWST) को प्रक्षेपित करने की घोषणा की है।
विश्व की प्रमुख अंतरिक्ष विज्ञान वेधशाला JWST, तीन दशकों से अधिक समय से कार्यरत नासा के प्रमुख टेलीस्कोप ‘हबल स्पेस टेलीस्कोप’ का स्थान लेगी।
‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (JWST) के बारे में:
जेडब्लूएसटी, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency) और केनेडियन अंतरिक्ष एजेंसी (Canadian Space Agency) का एक संयुक्त उपक्रम है।
- ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’, अंतरिक्ष में परिक्रमा करती हुए एक अवरक्त वेधशाला (Infrared Observatory) है, जो लंबी तरंग दैर्ध्य कवरेज और बहुत बेहतर संवेदनशीलता के साथ ‘हबल स्पेस टेलिस्कोप’ (Hubble Space Telescope) के कार्यों में सहायक होगी तथा इसकी खोजों का विस्तार करेगी।
- इससे पूर्व, जेडब्ल्यूएसटी (JWST) को एनजीएसटी (New Generation Space Telescope – NGST) के नाम से जाना जाता था, फिर वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर नासा के पूर्व प्रशासक ‘जेम्स वेब’ के नाम पर कर दिया गया|
- यह 6.5 मीटर प्राथमिक दर्पण युक्त एक बड़ी अवरक्त दूरबीन होगी।
दूरबीन के उद्देश्य और कार्य:
‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ (JWST) को बिग बैंग के पश्चात् बनने वाले प्रथम तारों और आकाशगंगाओं की खोज करने तथा तारों के चारों ओर के ग्रहों के परिवेश का अध्ययन करने संबंधी कार्य करने के उद्देश्य से निर्मित किया गया है|
- यह दूरबीन, ब्रह्मांड में गहराई से अवलोकन करेगी और ‘हबल स्पेस टेलीस्कोप’ के साथ कार्य करेगी।
- दूरबीन में 22 मीटर (टेनिस कोर्ट के आकार की) की लम्बाई वाले सौर-सुरक्षाकवच (Sunshield) और 6.5 मीटर चौड़ाई के दर्पण और इन्फ्रारेड क्षमताओं से लैस उपकरण लगे होंगे।
- वैज्ञानिकों को उम्मीद है, कि यह ‘सेट-अप’ ब्रह्मांड 13.5 अरब साल पहले घटित हुई बिग बैंग की घटना के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली प्रथम आकाशगंगाओं को भी देख सकने में सक्षम होगी।
कक्षीय परिक्रमा:
- ‘हबल स्पेस टेलीस्कॉप’ लगभग 570 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है।
- ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ वास्तव में पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करेगा, बल्कि यह 1.5 मिलियन किमी दूर पृथ्वी-सूर्य लेगरेंज़ बिंदु 2 (Earth-Sun Lagrange Point 2) पर स्थापित किया जाएगा।
- लेगरेंज़ बिंदु 2 (L 2) पर ‘जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप’ का सौर-कवच, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा से आने वाले प्रकाश को अवरुद्ध कर देगा, जिससे दूरबीन को ठंडा रहने में मदद मिलगी। किसी ‘अवरक्त दूरबीन’ के लिए ठंडा रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
हबल स्पेस टेलीस्कोप के बारे में जानने के लिए पढ़िए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
उड़ान योजना एवं इससे संबंधित समस्याएं
संदर्भ:
‘भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण’ (Airports Authority of India – AAI) द्वारा अब तक उड़ान (UDAN) योजना के तहत 948 हवाई मार्गों को मंजूरी दी जा चुकी है, जिनमें से 65 हवाई अड्डों और 8 हेलीपोर्ट को जोड़ते हुए 403 मार्गों पर कार्य जारी हो चुका है। हालांकि, शुरू किए गए कुछ हवाई मार्गों को बंद भी कर दिया गया है।
- इसका प्रमुख कारण, जमीन के अभाव की वजह से हवाईअड्डों की स्थापना में विफलता, एयरलाइनों को अपना निर्वाह करने योग्य ‘मार्ग’ खोजने में कठिनाई और कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव आदि थे।
- कई छोटे, क्षेत्रीय विमान वाहकों की खराब वित्तीय स्थिति इस योजना के लिए अभिशाप रही है।
उड़े देश का आम नागरिक (UDAN – उड़ान) योजना के बारे में:
इस योजना का उद्देश्य देश के दूरस्थ और क्षेत्रीय क्षेत्रों से संपर्क बढ़ाना और हवाई यात्रा को वहनीय बनाना है।
- यह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति का एक प्रमुख घटक है और इसे जून 2016 में लॉन्च किया गया था।
- चूंकि, इस योजना का उद्देश्य अप्रयुक्त और कम उपयोग वाले हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से टियर -2 और टियर -3 शहरों के लिए हवाई संपर्क में सुधार करना है, अतः इसे ‘क्षेत्रीय संपर्क योजना’ (Regional Connectivity Scheme – RCS) के रूप में भी जाना जाता है।
- इस योजना के तहत, UDAN की फ्लाइट्स में लगभग आधी सीटें रियायती किराए पर दी जाती हैं, और भाग लेने वाले कैरीएर्स को एक निश्चित राशि की ‘व्यवहार्यता अंतराल निधि’ (viability gap funding– VGF) प्रदान की जाती है, जोकि केंद्र और संबंधित राज्यों के मध्य साझा की जाती है।
- इस योजना को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित किया जाएगा।
- यह योजना 10 साल तक जारी रहेगी और बाद में इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- एयरलाइंस को बोली प्रक्रिया के माध्यम से कार्यक्रम के तहत संचालन हेतु ‘मार्ग’ प्रदान किए जाते हैं और उन्हें हवाई किराया, उड़ान के प्रति घंटे 2,500 रुपये की दर से रखना होगा।
- एक विमान में कुल सीटों में कम से कम 50% सीटें सस्ती दरों पर दी जाएंगी।
- एयरलाइनों को किफायती किराए की पेशकश करने में सक्षम बनाने के लिए उन्हें सरकार की ओर से तीन साल की अवधि के लिए सब्सिडी दी जाती है।
- सरकार द्वारा पहले तीन वर्षों में 50 हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के लिए 4,500 करोड़ रुपये भी निर्धारित किए गए हैं।
उड़ान 4.0:
उड़ान के चौथे दौर (UDAN 4.0) को दिसंबर 2019 में पूर्वोत्तर क्षेत्रों, पहाड़ी राज्यों और द्वीपों पर विशेष ध्यान देने के साथ शुरू किया गया था।
- भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (AAI) द्वारा पहले ही विकसित किए गए हवाई अड्डों को इस योजना के तहत व्यवहार्यता अंतराल निधि (VGF) के लिए उच्च प्राथमिकता दी गई है।
- उड़ान 0 के तहत, हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन के संचालन को भी शामिल किया गया है।
चुनौतियां:
- कई छोटे, क्षेत्रीय वाहकों की खराब वित्तीय स्थिति इस योजना के लिए अभिशाप रही है।
- योजना के कई भागीदारों के पास एक या दो से अधिक विमान नहीं होते हैं और उनका रखरखाव अक्सर खराब रहता है। इन छोटे भागीदारों के लिए नए विमान बहुत महंगे पड़ते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘विमानन टरबाइन ईंधन’ (ATF) वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में नहीं आताहै? जीएसटी के दायरे में नहीं आने वाली वस्तुओं के बारे में अधिक जानकारी हेतु पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- UDAN योजना कब शुरू की गई थी?
- योजना का कार्यान्वयन और वित्त पोषण
- राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति का अवलोकन
- इस योजना के तहत, हवाई किरायों के लिए सब्सिडी देने के लिए व्यवहार्यता अंतराल निधि (VGF) कौन प्रदान करता है?
- योजना के तहत राज्य सरकारों की भूमिका
मेंस लिंक:
UDAN योजना के प्रदर्शन पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
शिरोमणि अकाली दल
शिरोमणि अकाली दल के गठन को 100 वर्ष हो गए हैं।
- गुरुद्वारों को महंतों के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए 14 दिसंबर 1920 को एक ‘स्वयंसेवी संगठन’ के रूप में इसका गठन किया गया था।
- इसके द्वारा एक शांतिपूर्ण संघर्ष का आरंभ किया गया जो चार साल तक चला। इस संघर्ष के दौरान महंतों और ब्रिटिश प्रशासन, दोनों के हमलों से लगभग 4,000 प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
- मोर्चा ने अंततः ‘सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925’ को लागू करवाने में सफलता हासिल की, जिसके तहत गुरुद्वारों का नियंत्रण ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी’ (SGPC) के अधीन आ गया।
- बाद में, इसने ‘कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन का मार्ग प्रशस्त करते हुए, औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए राजनीतिक पार्टी को खड़ा किया।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31D
हाल ही में, सरकार ने संसद में स्पष्ट करते हुए कहा है, कि किसी भी कानून में ‘राष्ट्र-विरोधी’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
- वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान संविधान में ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधि’ को शामिल किया गया था लेकिन बाद में इसे हटा दिया गया था।
- संविधान (चालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 को संविधान के अनुच्छेद 31D (आपातकाल के दौरान) में शामिल किया गया, जिसमे ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ को परिभाषित किया गया था। इस अनुच्छेद 31D को बाद में, संविधान (चालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1977 द्वारा निरसित कर दिया गया था।
चिल्ले / चिल्लाई- कलां
21 दिसंबर को कश्मीर घाटी के ऊपरी क्षेत्रों में कठोर शीत ऋतु के पारंपरिक 40 दिन की अवधि शुरू हो गई है। इस अवधि को ‘चिल्ले/चिल्लाई- कलां’ (Chillai kalan) कहा जाता है ।
- ‘चिल्लई कलां’ एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है ‘बड़ी सर्दी’।
- कहा जाता है, कि इस अवधि में कश्मीर के पहाड़ों में हफ्तों तक बर्फ से ढक जाते हैं और शीत लहर अपने चरम पर पहुंच जाती है। प्रसिद्ध डल झील भी जनवरी के अंत तक हिमांक बिंदु तक पहुंच जाती है।
- चिल्लाई- कलां के बाद 20 दिनों को चिल्ले/चिल्लाई- खुर्द (Chillai Khurd) तथा उसके बाद के 10 दिनों को चिल्ले/चिल्लाई- बच्चा (Chillai Baccha) के नाम से जाना जाता है।
एल्बिनो इंडियन फ्लैपशेल कछुआ
हाल ही में तेलंगाना के निजामाबाद के सिरनापल्ली जंगल में पर्वतारोहियों द्वारा ‘एल्बिनो इंडियन फ्लैपशेल कछुए’ (Albino Indian Flapshell turtle) की एक दुर्लभ प्रजाति देखी गई।
- ‘इंडियन फ्लैपशेल कछुआ’ आमतौर पर पाकिस्तान, श्रीलंका, भारत, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे दक्षिण एशियाई देशों में पाया जाता है।
- कछुए का दुर्लभ पीला रंग, सरीसृपों में उच्च मात्रा में मौजूद रहने वाले ‘टाइरोसिन’ नामक वर्णक की कमी के कारण हो सकता है। टाइरोसिन की कमी के लिए, संभवतः आनुवंशिक उत्परिवर्तन या संभावित जन्मजात विकार जिम्मेदार हो सकता है।
- इंडियन फ्लैपशेल कछुए, आमतौर पर केवल 9 से 14 इंच (22 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर) लंबे होते हैं, और मेंढक, घोंघे और जलीय वनस्पति खाना पसंद करते हैं।
संरक्षण स्थिति:
- IUCN रेड लिस्ट: संवेदनशील
- CITES: परिशिष्ट II
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: अनुसूची I
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