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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1. चार धाम
2. महिला न्यायाधीश
3. पैसिफिक रिंग ऑफ फायर
सामान्य अध्ययन-II
1. लोक लेखा समित
2. इंडो-पैसिफिक
सामान्य अध्ययन-III
1. सह-ऋण मॉडल: बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा सह-ऋण
2. विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. कोन्याक नागा
2. मिस यूनिवर्स-2021
सामान्य अध्ययन–I
विषय: भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
चार धाम
संदर्भ:
हाल ही में, उच्चत्तम न्यायालय द्वारा, अपने पहले के आदेश को संशोधित करते हुए ‘चार धाम सड़क परियोजना’ के एक भाग के रूप में, तीन राजमार्गों पर चौपहिया वाहनों के मार्ग को 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दी गयी है। इसके पहले शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में इस चौड़ाई को 5.5 मीटर तक सीमित करने का निर्देश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- उच्चत्तम न्यायालय के तीन-न्यायाधीशों की एक पीठ ने, एक अन्य तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सितंबर, 2020 में जारी एक आदेश में संशोधन किया है, जिसमें निर्देश दिया गया था कि उत्तराखंड में 899 किलोमीटर के सड़क नेटवर्क के भाग के रूप में निर्मित किए जाने वाले तीन राजमार्गों पर चौपहिया वाहनों के मार्ग (Carriage–way) की चौड़ाई 5 मीटर तक रहना चाहिए।
- रक्षा मंत्रालय द्वारा अदालत के इस निर्णय की समीक्षा किए जाने की मांग की गयी थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अब केंद्र सरकार की मांग के अनुरूप सड़कों की चौड़ाई 10 मीटर तक किए जाने का फैसला सुनाया है, जिससे इन राजमार्गों को ‘डबल लेन’ बनाए जाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
- चीन सीमा से जोड़ने के लिए फीडर सड़कों के रूप में कार्य करने वाले इन तीन राजमार्गों के रणनीतिक महत्व को स्वीकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने पर्यावरणीय चिंताओं के साथ इस प्रकार की प्राथमिकताओं को संतुलित करने की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया है।
- शीर्ष अदालत ने, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए के सीकरी की अध्यक्षता में एक ‘निगरानी समिति’ के गठन का भी आदेश दिया, ताकि इस संबंध में ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ की सिफारिशों को शामिल करते हुए कार्यों का पर्यावरण के प्रति जागरूक तरीके से निष्पादन सुनिश्चित किया जा सके।
चारधाम परियोजना (Chardham Project) में अब तक का घटनाक्रम:
- चार धाम सड़क परियोजना की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिसंबर 2016 में रखी गयी थी।
- लेकिन, इस परियोजना को पर्यावरणीय आधार पर अदालतों में चुनौती दी गयी थी, जिसमे याचिकाकर्ताओं ने परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी में अनियमितताओं का आरोप लगाया और कहा कि मौजूदा मानदंडों के उल्लंघन करते हुए परियोजना पर कार्य किया जा रहा है।
- इस परियोजना को सितंबर 2018 में ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) द्वारा मंजूरी प्रदान की गयी थी, लेकिन, इसके आदेश को इस आधार पर अदालत में चुनौती दी गयी, कि यह आदेश, मामले की सुनवाई करने वाली पीठ बेंच से अलग अन्य पीठ बेंच द्वारा पारित किया गया है। जिस पर, सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2018 में NGT के आदेश पर रोक लगा दी।
- सितंबर 2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था, कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के 2018 के परिपत्र में निर्धारित ‘चार धाम परियोजना’ के लिए राजमार्गों की चौड़ाई 5 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन रक्षा मंत्रालय ने उसी वर्ष दिसंबर में, राजमार्गों की चौड़ाई 10 मीटर किए जाने की अनुमति देने के लिए, अदालत से आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया।
- जिसके बाद, शीर्ष अदालत ने एक ‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (High-Powered Committee – HPC) को राजमार्गों की चौड़ाई पर केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए तर्कों पर गौर करने के लिए कहा।
‘उच्चाधिकार प्राप्त समिति’ (HPC) द्वारा प्रस्तुत निष्कर्ष:
- इन राजमार्गों के सामरिक महत्व को देखते हुए चौड़ाई 10 मीटर करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
- राजमार्गों के जिन हिस्सों पर पहले से ही 10 मीटर चौड़ाई पर काम शुरू किया जा चुका है, वहां इसकी चौड़ाई 5 मीटर तक कम करने लिए फिर से काम करना “व्यवहारिक” नहीं होगा।
- सड़क निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए जिन हिस्सों में पेड़ काटे जा चुके हैं, उन पर फिर से वृक्षारोपण करना संभव नहीं होगा।
राजमार्गों की चौड़ाई 10 मीटर किए जाने मांग हेतु दिए गए तर्क:
इस क्षेत्र में कई ऐसे दुर्गम इलाके हैं, जहां सेना को भारी वाहनों, मशीनरी, हथियारों, मिसाइलों, टैंकों, सैनिकों और खाद्य आपूर्ति को लाने और लेजाने की आवश्यकता होती है।
संबंधित पर्यावरणीय चिंताएं:
- पर्वतीय इलाकों में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, आपदा के लिए एक नुस्खा होते है क्योंकि पेड़ों की कटाई किए जाने और चट्टानों के ढीले होने से भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- ‘अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी’ और ‘पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन’ (Environment Impact Assessment – EIA) प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए परियोजना को निष्पादित किया जा रहा है।
- परियोजना के तहत सड़क बनाने के लिए कथित तौर पर 25,000 से अधिक पेड़ काटे गए है, जोकि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
- चूंकि चौपहिया वाहनों के लिए चौड़े मार्ग बनाने के लिए ज्यादा उत्खनन और विस्फोटन करना होगा, जिससे इस क्षेत्र की स्थलाकृति फिसलन और भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगी, परिणामस्वरूप सभी मौसमों में चालू रहने वाले राजमार्ग बनाने का उद्देश्य प्रभावित हो सकता है।
‘चारधाम परियोजना’ (Chardham Project) के बारे में:
- चारधाम परियोजना में, हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री- को आपस में जोड़ने के लिए, 12,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 900 किलोमीटर लंबाई के राष्ट्रीय राजमार्गों को विकसित और चौड़ा किया जाना शामिल है।
- इस राजमार्ग को ‘चार धाम महामार्ग’ (चार धाम राजमार्ग) और ‘राजमार्ग निर्माण परियोजना’ को ‘चार धाम महामार्ग विकास परियोजना’ कहा जाएगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- परियोजना का अवलोकन
- इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
- इन स्थानों से बहने वाली महत्वपूर्ण नदियाँ
- राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के बीच अंतर
मेंस लिंक:
चारधाम परियोजना के महत्व की विवेचना कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
महिला न्यायाधीश
संदर्भ:
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण ने ‘अधिक महिला न्यायाधीशों को शामिल किए जाने’ की मांग को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष रखने का वादा किया है।
भारतीय न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति:
- सुप्रीम कोर्ट के 71 वर्षों के इतिहास में, अब तक केवल आठ महिला न्यायाधीश शीर्ष अदालत में नियुक्त की गयी हैं। सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला न्यायाधीश ‘फातिमा बीवी’ थीं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से 39 साल के लंबे अंतराल के बाद शीर्ष अदालत की पीठ में पदोन्नत किया गया था।
- उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में कुल स्वीकृत 1,113 न्यायाधीशों की संख्या में, केवल 80 महिला न्यायाधीश हैं।
- छह उच्च न्यायालयों – मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा, तेलंगाना और उत्तराखंड – में कोई महिला न्यायाधीश नहीं हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में विविधता और लैंगिक प्रतिनिधित्व के लाभ:
- महिला न्यायाधीशों का उन स्थानों में शामिल करना जहां से उन्हें ऐतिहासिक रूप से बाहर रखा गया था, न्यायपालिका को अधिक पारदर्शी, समावेशी और प्रतिनिधि रूप में समझे जाने, की दिशा में एक सकारात्मक कदम रहा है।
- अपनी उपस्थिति मात्र से, महिला न्यायाधीश अदालतों की वैधता में वृद्धि करती हैं, एक सशक्त संकेत भेजती हैं कि अदालतें, न्याय की शरण में आने वालों के लिए खुली है और सुलभ हैं।
- महिला न्यायाधीश, न्याय की संभावना में सुधार करने के अलावा कहीं अधिक योगदान कर सकती हैं: वे निर्णय लेने की गुणवत्ता में भी महत्वपूर्ण योगदान देकर न्याय की गुणवत्ता में भी योगदान देती हैं।
- कानून और निर्णय किस तरह लैंगिक रूढ़ियों पर आधारित हो सकते हैं, अथवा इनका महिलाओं और पुरुषों पर अलग-अलग प्रभाव किस तरह पड़ सकता है, इसको स्पष्ट करते हुए ‘लैंगिक परिप्रेक्ष्य’ न्यायनिर्णयन की निष्पक्षता में वृद्धि करता है।
- महिला न्यायाधीश, अपने साथ बीते हुए अनुभवों का अपने न्यायिक कार्यों के उपयोग में लाती हैं, ऐसे अनुभव, अधिक व्यापक और समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की ओर प्रवृत्त करते हैं।
- यौन हिंसा से जुड़े मामलों में, न्यायिक प्रक्रिया में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार, अधिक संतुलित और समानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण की दिशा में अति महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
न्यायपालिका में महिलाओं के प्रवेश संबंधी चुनौतियाँ:
- जिला न्यायाधीशों के रूप में महिलाओं की भर्ती में, प्रवेश परीक्षा देने के लिए पात्रता मानदंड एक प्रमुख बाधा हैं।
- न्यायाधीश बनने हेतु, वकीलों के लिए सात साल की निरंतर कानूनी प्रैक्टिस, और 35-45 की आयु वर्ग में होना आवश्यक होता है।
- यह शर्त, महिलाओं के लिए नुकसान-देह है, क्योंकि इस उम्र में कई महिलाओं की शादी हो जाती है।
- इसके अलावा, कानूनी क्षेत्र में लंबे और कड़े काम के घंटे, पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ, कई महिलाओं को कानूनी प्रैक्टिस छोड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं और जिससे वे निरंतर प्रैक्टिस की अनिवार्यता को पूरा करने में विफल रहती हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि वर्तमान में, सर्वोच्च न्यायालय के अब तक के इतिहास में सर्वाधिक महिला न्यायाधीश हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- कॉलेजियम क्या है?
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे की जाती है?
- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- शक्तियां और कार्य
मेंस लिंक:
न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान- अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं (जल-स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।
प्रशांत महासागरीय ज्वालावृत्त
(Pacific ring of fire)
संदर्भ:
हाल ही में, पूर्वी इंडोनेशिया में 7.3 तीव्रता का भूकंप आया था। इस भूकंप का केंद्र ‘पूर्वी नुसा तेंगारा प्रांत’ (East Nusa Tenggara province) के उत्तर में अवस्थित ‘फ्लोरेस सागर’ (Flores Sea) में था।
इंडोनेशिया के भूकंप के प्रति संवेदनशील होने के कारण:
- इंडोनेशिया, ज्वालावृत्त / रिंग ऑफ फायर (Ring of Fire) क्षेत्र में स्थित है, इस क्षेत्र में दुनिया में सर्वाधिक ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं। ‘रिंग ऑफ फायर’ क्षेत्र में, हाल के दिनों में व्यापक गतिविधियां देखी गयी है। इंडोनेशिया के विवर्तनिक प्लेटों (Tectonic Plates) के एक विस्तृत ग्रिड पर अवस्थित होने के कारण, इसे काफी नुकसान होता है।
- इंडोनेशिया, तीन प्रमुख महाद्वीपीय प्लेटों – प्रशांत, यूरेशियन और इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेटों – और एक लघु ‘फिलीपीन प्लेट’ के मिलन बिंदु पर स्थित है। नतीजतन, इंडोनेशियाई द्वीपों पर कई ज्वालामुखियों के प्रस्फोटन का खतरा मंडराता रहता है। इंडोनेशिया में लगभग 400 ज्वालामुखी पाए जाते है, जिनमें से 127 वर्तमान में सक्रिय हैं, जो दुनिया के सक्रिय ज्वालामुखियों का लगभग एक तिहाई है।
‘रिंग ऑफ फायर’ क्या है?
‘ज्वालावृत्त’ या ‘रिंग ऑफ फायर’ में 450 से अधिक ज्वालामुखी शामिल हैं; जिसमे विश्व के चार सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से तीन – संयुक्त राज्य अमेरिका में माउंट सेंट हेलेंस, जापान में माउंट फ़ूजी और फिलीपींस में माउंट पिनातुबो शामिल हैं। इसे कभी-कभी ‘परि-प्रशांत मेखला’ (Circum-Pacific Belt) भी कहा जाता है।
विश्व के लगभग 90% भूकंप, और 80% सबसे बड़े भूकंप ‘रिंग ऑफ फायर’ क्षेत्र में आते हैं।
अवस्थिति:
‘रिंग ऑफ फायर’ या ‘ज्वालावृत्त’, प्रशांत महासागर की तटीय रेखा के साथ फैला हुआ है। इस तटीय क्षेत्र में प्रशांत प्लेट, भू-पर्पटी की अन्य छोटी टेक्टोनिक प्लेटों जैसे, फिलीपीन सागर प्लेट तथा प्रशांत महासागर के किनारे पर स्थित कोकोस और नाज़का प्लेटों के साथ घर्षण करती है।
घोड़े की नाल के आकार का 40,000 किलोमीटर लंबा ‘रिंग ऑफ फायर’ न्यूजीलैंड से लेकर, एशिया और अमेरिका के तटों से होकर गुजरता हुआ चिली तक फैला हुआ है।
जोखिम:
अमेरिका के पश्चिमी तट, चिली, जापान और सोलोमन द्वीप सहित द्वीप राष्ट्रों की आबादी को ‘रिंग ऑफ फायर’ में होने वाली गतिविधियों से सर्वाधिक खतरा होता है। ये क्षेत्र अधःनिक्षेपण मंडल (subduction zones) में स्थित होने की वजह से सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्र हैं। अधःनिक्षेपण मंडल, पृथ्वी को दो विवर्तनिक प्लेटों के बीच टकराव का क्षेत्र होता है।
‘रिंग ऑफ फायर’ का निर्माण:
सागरीय विवर्तनिक प्लेटों के, कम घनत्व वाली अर्थात हल्की महाद्वीपीय प्लेटों के नीचे अधःक्षेपित (subduction) होने पर ‘रिंग ऑफ फायर’ का निर्माण होता है। जिस क्षेत्र में ये टेक्टोनिक प्लेट्स मिलती हैं, उसे अधःनिक्षेपण मंडल (subduction zones) कहा जाता है।
‘रिंग ऑफ फायर’ में भूकंप आने का कारण:
- दुनिया के सबसे गहरे भूकंप ‘अधःनिक्षेपण मंडल’ क्षेत्रों में आते हैं, क्योंकि इसी क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेट्स एक-दूसरे से टकराती हैं। विश्व के सर्वाधिक ‘अधःनिक्षेपण मंडल’ रिंग ऑफ़ फायर में पाए जाते है।
- पृथ्वी के पिघले हुए कोर से निसृत ऊर्जा की वजह से टेक्टोनिक प्लेटों में संचरण होता है, और वे एक-दूसरे से टकराती हैं, जिससे घर्षण होता है। इस घर्षण के परिणामस्वरूप और अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है, और अंततः जब यह ऊर्जा सतह की ओर निकलती है तो यह भूकंप का कारण बनती है। समुद्र में ऐसी स्थिति होने पर, यह विनाशकारी सुनामी का कारण बन सकती है।
- टेक्टोनिक प्लेट्स आमतौर पर प्रतिवर्ष औसतन कुछ सेंटीमीटर ही स्थानांतरित होते हैं, लेकिन भूकंप आने के दौरान, ये बड़े पैमाने पर गति करते हैं और कई मीटर प्रति सेकंड की गति से आगे बढ़ सकते हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- पैसिफिक रिंग ऑफ फायर
- दुनिया में सक्रिय ज्वालामुखी
- बैरन द्वीप
- भूकंप तरंगे
मेंस लिंक:
‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ क्या है? इंडोनेशिया में हाल ही में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के मामले में इसकी प्रासंगिकता की व्याख्या करें?
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
लोक लेखा समिति
संदर्भ:
हाल ही में संसदीय ‘लोक लेखा समिति’ (Public Accounts Committee – PAC) का शताब्दी समारोह आयोजित किया गया था।
लोक लेखा समिति के बारे में:
(Public Accounts Committee- PAC)
- लोक लेखा समिति का गठन प्रतिवर्ष किया जाता है। इसमें अधिकतम सदस्यों की संख्या 22 होती है, जिनमें से 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से चुने जाते हैं।
- सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है।
- समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है। वर्ष 1967 से, समिति के अध्यक्ष का चयन, विपक्ष के सदस्यों में से किया जाता है।
- इसका मुख्य कार्य नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (CAG) की ऑडिट रिपोर्ट को संसद में रखे जाने के बाद इसकी जांच करना है।
लोक लेखा समिति की सीमाएं:
- मोटे तौर पर, यह नीतिगत सवालों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
- यह व्यय होने के बाद ही, इन पर निगरानी कर सकती है। इसमें व्ययों को सीमित करने संबंधी कोई शक्ति नहीं होती है।
- यह दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
- समिति द्वारा की जाने वाली अनुशंसाएं मात्र परामर्शी होती है। मंत्रालयों द्वारा इन सिफारिशों की उपेक्षा भी की जा सकती है।
- इसके लिए विभागों द्वारा व्यय पर रोक लगाने की शक्ति नहीं होती है।
- यह मात्र एक कार्यकारी निकाय है और इसे कोई आदेश जारी करने की शक्ति नहीं है। इसके निष्कर्षों पर केवल संसद ही अंतिम निर्णय ले सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि लोक लेखा समिति, सदन की समितियों में सबसे पुरानी समिति है। पहली बार लोक लेखा समिति का गठन वर्ष 1921 में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के मद्देनजर किया गया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- संसदीय बनाम कैबिनेट समितियों के बीच अंतर
- स्थायी समितियों, चयन समितियों और वित्त समितियों के मध्य अंतर
- इन समितियों के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति कौन करता है?
- केवल लोकसभा सदस्यों से गठित समितियां
- लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित की जाने वाली समितियाँ
मेंस लिंक:
संसदीय स्थायी समितियां क्या होती हैं? इनकी आवश्यकता और महत्व को उजागर करने के लिए उनकी भूमिकाओं और कार्यों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
संदर्भ:
हाल ही में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा है कि भारत-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में चीन की बढ़ती हठधर्मिता के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका, एशिया में भागीदारों के साथ अपने सैन्य और आर्थिक संबंधों का विस्तार करेगा।
‘इंडो-पैसिफिक’ क्या है?
एकल रणनीतिक क्षेत्र के रूप में ‘इंडो-पैसिफिक’ (Indo- Pacific) की अवधारणा, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिणाम है। यह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के मध्य परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा और वाणिज्य के लिए महासागरों के महत्व का प्रतीक है।
‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ का महत्व:
- क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने हेतु।
- भारत की रणनीतिक स्थिति में बढ़त के लिए, अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों को एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।
- राष्ट्रीय हितों के लिए दीर्घकालिक परिकल्पना।
- हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की तेजी से बढ़ती उपस्थिति, व्यापार और सेना के माध्यम से एशिया त्तथा उससे आगे भूराजनीतिक पहुंच का विस्तार करने के चीनी प्रयास।
- नौ-परिवहन की स्वतंत्रता, क़ानून-आधारित व्यवस्था का पालन करने तथा व्यापार हेतु सुव्यवस्थित माहौल का निर्माण करने हेतु।
- मुक्त समुद्र एवं मुक्त हवाई मार्गो तथा कनेक्टिविटी के लिए; और अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों को बनाए रखने के लिए।
भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ की भूमिका एवं निहितार्थ:
- इंडो-पैसिफिक / हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जैसा कि, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में वर्णित है, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से गतिमान हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। यह, भारत के पश्चिमी तट से संयुक्त राज्य के पश्चिमी तट तक विस्तृत है।
- भारत, सदैव से गंभीर राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं वाला देश रहा है और “इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी” अवधारणा का सबसे महत्वपूर्ण पैरोकार है।
- मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ, भारत, हिंद महासागर में आने निकटवर्ती देशों और विश्व की प्रमुख समुद्री शक्तियों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘प्रशांत क्षेत्र’ के बारे में।
- ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ का अवलोकन।
- इन क्षेत्रों में अवस्थित महत्वपूर्ण जलडमरूमध्य, खाड़ियाँ और मार्ग।
मेंस लिंक:
भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ के सामरिक महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
सह-ऋण मॉडल: बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा सह-ऋण
(Co-Lending Model- Bank-NBFC co-lending)
संदर्भ:
सितंबर 2018 में, आरबीआई द्वारा बैंकों को पूर्व समझौते के आधार पर, प्राथमिकता वाले क्षेत्र को ऋण देने के लिए, एचएफसी सहित सभी पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के साथ सह-ऋण / साझे में ऋण (Co-Lending) प्रदान करने की अनुमति दी गयी थी।
इसके बाद से, कई बैंकों ने ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ के साथ सह- ऋण ‘मास्टर समझौते’ किए हैं, और कई ऐसे समझौते प्रक्रियाधीन हैं।
संबंधित चिंताएं:
- इन प्रकार के समझौतों से बैंकों और NBFCs के बीच असामान्य गठजोड़ हुआ है। उदाहरण के लिए, ‘स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया’ ने किसानों को ट्रैक्टर और कृषि उपकरण खरीदने में मदद करने के लिए सह-ऋण देने के लिए एक छोटी एनबीएफसी ‘अदानी कैपिटल’ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए है।
- सह-ऋण में जोखिम की संभावना अधिक: एनबीएफसी के लिए अपनी रिकॉर्ड पंजी पर व्यक्तिगत ऋण का कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सा रखना आवश्यक होता है। इसका मतलब है कि जोखिम का 80 प्रतिशत बैंकों के पास होगा। इससे डिफ़ॉल्ट होने के मामले में बैंकों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।
- बैंकिंग में कॉरपोरेट घराने: आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी है, लेकिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) – जोकि ज्यादातर कॉरपोरेट घरानों द्वारा शुरू की गई हैं – पहले से ही सार्वजनिक जमा स्वीकार कर रहे हैं। प्रत्यक्ष सह-ऋण व्यवस्था के माध्यम से अब उनके पास ऋण देने के अधिक अवसर मिलेंगे।
सह-ऋण / सह-उधार मॉडल क्या है?
सह-उधार मॉडल (Co-Lending Model) के अंतर्गत, दोनों साझेदार ऋणदाताओं को सुविधा स्तर पर संयुक्त रूप से ऋण देने की अनुमति होती है, साथ ही इसमें जोखिम और लाभ को भी साझा किया जाता है।
उद्देश्य: अर्थव्यवस्था के वंचित और अल्प वंचित क्षेत्र के लिए ऋण के प्रवाह में सुधार करना।
मॉडल का महत्व:
- बैंकों से कम लागत पर निधि, और ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ की अधिक पहुंच लाभार्थी को वहनीय लागत पर ऋण उपलब्ध कराएगी।
- इससे बैंकों को ग्राहक आधार का विस्तार करने में मदद मिलेगी और बैंक अंतिम छोर तक बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने में सक्षम होंगे।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम
संदर्भ:
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार:
- 2018 और 2020 के बीच ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ (Unlawful Activities (Prevention) Act – UAPA) के तहत देश में गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों में से लगभग 57 प्रतिशत 30 वर्ष से कम आयु के थे।
- उत्तर प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में ‘आतंकवाद रोधी कानून’ के तहत 30 वर्ष से कम उम्र वालों की सबसे अधिक (931) गिरफ्तारी हुई है। इसके अलावा इस अवधि में UAPA के तहत राज्य में की गई कुल गिरफ्तारियों में 70% व्यक्ति 30 वर्ष से कम आयु वर्ग के थे।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के बारे में:
1967 में पारित, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधि समूहों की प्रभावी रोकथाम करना है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके द्वारा केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैरकानूनी घोषित कर सकती है।
- इसके अंतर्गत अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
UAPA के तहत, भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को आरोपित किया जा सकता है।
- यह अधिनियम भारतीय और विदेशी अपराधियों पर समान रूप से लागू होता है, भले ही अपराध भारत के बाहर विदेशी भूमि पर किया गया हो।
- UAPA के तहत, जांच एजेंसी के लिए, गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल करने के लिए अधिकतम 180 दिनों का समय दिया जाता है, हालांकि, अदालत को सूचित करने के बाद इस अवधि को और आगे बढ़ाया जा सकता है।
वर्ष 2019 में किए गए संशोधनों के अनुसार:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को, एजेंसी द्वारा मामले की जांच के दौरान, आतंकवाद से होने वाली आय से निर्मित संपत्ति पाए जाने पर उसे ज़ब्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह अधिनियम राज्य में डीएसपी अथवा एसीपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के अतिरिक्त, आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करने हेतु ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को जांच का अधिकार प्रदान करता है।
- अधिनियम में किसी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में अभिहित करने का प्रावधान भी शामिल है।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित UAPA की रूपरेखा:
जून 2021 में, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (UAPA), 1967 की एक अन्य रूप से “अस्पष्ट” धारा 15 की रूपरेखा को परिभाषित करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा, अधिनियम की धारा 18, 15, 17 को लागू करने पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए गए थे।
UAPA की धारा 15, 17 और 18:
- अधिनियम की धारा 15, ‘आतंकवादी कृत्यों’ से संबंधित अपराधों को आरोपित करती है।
- धारा 17 के तहत आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने पर दण्डित करने का प्रावधान किया गया है।
- धारा 18, के अंतर्गत ‘आतंकवादी कृत्य करने हेतु साजिश आदि रचने’ या आतंकवादी कृत्य करने हेतु तैयारी करने वाले किसी भी कार्य’ संबंधी अपराधों के लिए आरोपित किया जाता है।
अदालत द्वारा की गई प्रमुख टिप्पणियां:
- “आतंकवादी अधिनियम” (Terrorist Act) को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
- अदालत ने ‘हितेंद्र विष्णु ठाकुर मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि, ‘आतंकवादी गतिविधियां’ वे होती है, जिनसे निपटना, सामान्य दंड कानूनों के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता से बाहर होता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम’ (UAPA) की धारा 3 (1) के तहत, “यदि केंद्र सरकार को इस बात का यकीन हो जाता है कि कोई भी संगठन एक गैरकानूनी एसोसिएशन है, या बन गया है, तो वह सरकारी राजपत्र में अधिसूचना जारी करके, ऐसे संगठन को गैर-कानूनी घोषित कर सकती है?
प्रीलिम्स लिंक:
- विधिविरूद्ध क्रियाकलाप की परिभाषा
- अधिनियम के तहत केंद्र की शक्तियां
- क्या ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा लागू है?
- 2004 और 2019 में संशोधन द्वारा किए गए बदलाव।
- क्या विदेशी नागरिकों को अधिनियम के तहत आरोपित किया जा सकता है?
मेंस लिंक:
क्या आप सहमत हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता का बलिदान करना न्यायसंगत है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
कोन्याक नागा
नागालैंड के ‘मोन’ जिले में रहने वाले कोन्याक नागा (Konyak Nagas) जनजाति के शीर्ष निकाय ‘कोन्याक संघ’ (Konyak Union – KU) ने सोमवार को कोन्याक की धरती पर सशस्त्र बलों के साथ अपने “असहयोग” को जारी रखने के लिए नए नियमों की घोषणा की है। यह निर्णय, हाल ही में, ओटिंग गांव में एक सुरक्षा मुठभेड़ में 14 नागरिकों की हत्या के बाद लिया गया।
‘कोन्याक नागा समुदाय’ के बारे में:
- ‘कोन्याक नागा’ (Konyak Nagas), सभी नागा जनजातियों में सबसे बड़ा समुदाय है।
- ये नागालैंड के मोन जिले में निवास करते हैं – जिसे ‘द लैंड ऑफ द आंग्स’ (The Land of The Anghs) के नाम से भी जाना जाता है।
- आंग/वांग (Anghs/Wangs) उनके पारंपरिक मुखिया होते हैं जिनका वे बहुत सम्मान करते हैं।
- इस जनजाति के लोग, किसी दुश्मन का सिर काटने के बाद अपने चेहरे पर टैटू बनवाते हैं।
- बन्दूक बनाने, लोहा पिघलाने, पीतल के काम, और बारूद बनाने जैसे कार्य इन्हें अन्य समुदायों से भिन्न बनाते हैं। ये लोग ‘जंगलौ’ (Machetes) और लकड़ी की मूर्तियां बनाने में भी माहिर होते हैं।
- त्यौहार: आओलेंग (Aoleng), वसंत का स्वागत करने और बीज बोने से पहले भूमि पर सर्वशक्तिमान (कहवांग) के आशीर्वाद का आह्वान करने के लिए अप्रैल (1-6) के पहले सप्ताह में मनाया जाने वाला त्योहार, कोन्याक समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार है।
- ‘लाओ ओंग मो’ अगस्त/सितंबर के महीनों में मनाया जाने वाला पारंपरिक फसल उत्सव, इनका एक अन्य त्योहार है।
मिस यूनिवर्स-2021
- चंडीगढ़ की हरनाज संधू ने 13 दिसंबर, 2021 को इज़राइल में आयोजित एक समारोह में 70वां मिस यूनिवर्स का खिताब जीता है।
- भारत को 21 साल बाद मिस यूनिवर्स का खिताब मिला है। इससे पहले यह सम्मान, भारत को वर्ष 1994 में अभिनेत्री सुष्मिता सेन और वर्ष 2000 में अभिनेत्री लारा दत्ता ने दिलाया था।
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