[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 13 December 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनII

1. परिसीमन पैनल

2. एस-400 और CAATSA

3. लॉजिस्टिक्स समझौते और उनके लाभ

4. G7 समूह

5. बैंक जमा बीमा कार्यक्रम

 

सामान्य अध्ययन-III

1. न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए विधेयक

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. एशियाई शक्ति सूचकांक, 2021

2. फिन बुनकर पक्षी

3. ‘विदेशी अधिकरण’

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

परिसीमन पैनल


संदर्भ:

हाल ही में, नेशनल कांफ्रेंस (NC) ने सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित ‘जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग’ (Jammu and Kashmir Delimitation Commission) से एक पत्र के माध्यम से ‘केंद्र शासित प्रदेश’ के राजनीतिक दलों के साथ होने वाली आगामी बैठक के एजेंडे का विवरण मांगा है।

पृष्ठभूमि:

‘जम्मू और कश्मीर परिसीमन आयोग’ के अनुसार- आयोग द्वारा अपनी अंतिम रिपोर्ट वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर तैयार की जाएगी और और रिपोर्ट में भौगोलिक स्थिति, दुर्गम इलाकों तथा वर्तमान में जारी ‘परिसीमन प्रक्रिया’ (Delimitation Exercise) हेतु संचार के साधनों और उपलब्ध सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाएगा।

आयोग को ‘केंद्र शासित प्रदेश’ की 83 सदस्यीय विधानसभा के लिए सात अतिरिक्त सीटों को निर्धारित करने का दायित्व सौंपा गया है।

Current Affairs

 

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया- घटनाक्रम:

  1. जम्मू-कश्मीर में पहली परिसीमन प्रक्रिया वर्ष 1951 में एक परिसीमन समिति द्वारा निष्पादित की गई थी, और इसके तहत, तत्कालीन राज्य को 25 विधानसभा क्षेत्रों में विभक्त किया गया था।
  2. इसके पश्चात, वर्ष 1981 में पहली बार एक पूर्ण परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन किया गया था और इस आयोग द्वारा वर्ष 1981 की जनगणना के आधार पर वर्ष 1995 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की गेन थी। इसके बाद से, राज्य में कोई अब तक कोई परिसीमन नहीं हुआ है।
  3. वर्ष 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए, वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन करने के लिए, एक ‘परिसीमन आयोग’ का गठन किया गया। इस आयोग को संघ-शासित प्रदेश में सात अन्य सीटों को जोड़ने तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों को आरक्षण देने का आदेश दिया गया।
  4. नए परिसीमन के पश्चात, जम्मू-कश्मीर में सीटों की कुल संख्या 83 से बढ़ाकर 90 कर दी जाएगी। ये सीटें ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) के लिए आरक्षित 24 सीटों के अतिरिक्त होंगी और इन सीटों को विधानसभा में खाली रखा जाएगा।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की आवश्यकता:

‘परिसीमन अधिनियम,’ 2002 (Delimitation Act, 2002) और अन्य जम्मू-कश्मीर-विशिष्ट विधेयकों के साथ अगस्त 2019 में केंद्र सरकार द्वारा पारित ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’, 2019 (Jammu and Kashmir Reorganisation Act, 2019) के प्रावधानों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल 6 मार्च को, केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के लिए ‘जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग’ का गठन किया गया था।

परिसीमन’ क्या होता है?

‘परिसीमन’ (Delimitation) का शाब्दिक अर्थ, ‘विधायी निकाय वाले किसी राज्य में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण प्रक्रिया’ होता है।

परिसीमन प्रक्रिया’ का निष्पादन:

  • परिसीमन प्रक्रिया, एक उच्च अधिकार प्राप्त आयोग द्वारा संपन्न की जाती है। इस आयोग को औपचारिक रूप से परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) या सीमा आयोग (Boundary Commission) कहा जाता है।
  • परिसीमन आयोग के आदेशों को ‘क़ानून के समान’ शक्तियां प्राप्त होती है, और इन्हें किसी भी अदालत के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।

आयोग की संरचना:

‘परिसीमन आयोग अधिनियम’, 2002 के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग में तीन सदस्य होते हैं: जिनमे अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, तथा पदेन सदस्य के रूप में मुख्य निर्वाचन आयुक्त अथवा इनके द्वारा नामित निर्वाचन आयुक्त एवं राज्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते है।

संवैधानिक प्रावधान:

  1. संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत, प्रत्येक जनगणना के पश्चात् भारत की संसद द्वारा एक ‘परिसीमन अधिनियम’ क़ानून बनाया जाता है।
  2. अनुच्छेद 170 के तहत, प्रत्येक जनगणना के बाद, परिसीमन अधिनियम के अनुसार राज्यों को भी क्षेत्रीय निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि अगस्त 2019 तक, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों का परिसीमन ‘जम्मू और कश्मीर संविधान’ और ‘जम्मू और कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम’, 1957 के अंतर्गत किया होता था?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. पूर्ववर्ती परिसीमन आयोग- शक्तियाँ और कार्य
  2. आयोग की संरचना
  3. आयोग का गठन किसके द्वारा किया जाता है?
  4. आयोग के अंतिम आदेशों में परिवर्तन की अनुमति?
  5. परिसीमन आयोग से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेंस लिंक:

निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किस प्रकार और क्यों किया जाता है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।

एस-400 और CAATSA


संदर्भ:

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस बात का संकेत देते हुए कहा कि, भले ही S-400 ट्रायम्फ एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम सौदे को मंजूरी नहीं दी जाए, फिर भी भारत के लिए कोई आम छूट (blanket waiver) नहीं दी जाएगी, और भारत और रूस के बीच होने वाले कोई अन्य ‘महत्वपूर्ण’ सैन्य एवं परमाणु सौदा होने पर भी ‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम‘ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act – CAATSA) के तहत भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

संबंधित चिंताएं:

वर्ष 2016 में भारत के द्वारा रूस के साथ इस सौदे की घोषणा किए जाने के बाद से वाशिंगटन में बेचैनी बनी हुई है। रूस अभी भी नई दिल्ली का सबसे बड़ा रक्षा भागीदार बना हुआ है।

S-400 सौदे पर अमेरिका के CAATSA कानून के तहत भारत पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। अमेरिका इसी तरह की खरीद पर पहले भी चीन और तुर्की पर प्रतिबंध लगा चुका है।

S-400 वायु रक्षा प्रणाली एवं भारत के लिए इसकी आवश्यकता:

S-400 ट्रायम्फ (Triumf) रूस द्वारा डिज़ाइन की गयी एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (surface-to-air missile system- SAM) है।

  • यह विश्व में सबसे खतरनाक, आधुनिक एवं परिचालन हेतु तैनात की जाने वाली लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली SAM (MLR SAM) है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित, ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ (Terminal High Altitude Area Defence – THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।

Current Affairs

 

CAATSA क्या है?

‘अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिबंधो के माध्यम से प्रत्युत्तर अधिनियम’ (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) का प्रमुख उद्देश्य दंडात्मक उपायों के माध्यम से ईरान, उत्तर कोरिया और रूस को प्रत्युत्तर देना है।

  • यह क़ानून वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था।
  • इसके तहत, रूस के रक्षा और ख़ुफ़िया क्षेत्रों में महत्वपूर्ण लेनदेन करने वाले देशों के खिलाफ लगाए जाने वाले प्रतिबंधो को शामिल किया गया है।

Current Affairs

 

लगाये जाने वाले प्रतिबंध:

  1. अभिहित व्यक्ति (sanctioned person) के लिए ऋणों पर प्रतिबंध।
  2. अभिहित व्यक्तियों को निर्यात करने हेतु ‘निर्यात-आयात बैंक’ सहायता का निषेध।
  3. संयुक्त राज्य सरकार द्वारा अभिहित व्यक्ति से वस्तुओं या सेवाओं की खरीद पर प्रतिबंध।
  4. अभिहित व्यक्ति के नजदीकी लोगों को वीजा से मनाही।

Current Affairs

 

सौदे का महत्व:

S-400 रक्षा प्रणाली समझौते संबंधी निर्णय इस बात का एक बहुत सशक्त उदाहरण है, कि अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को चुनने के लिए, विशेषकर राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों की बात आती है, तब हमारी रक्षा और रणनीतिक साझेदारी कितनी उन्नत है, और भारतीय संप्रभुता कितनी मजबूत है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘बुनियादी समझौतों’ (Foundational Agreements) के बारे में जानते हैं? तीन समझौतों को ‘बुनियादी समझौता’ कहा जाता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. CAATSA किससे संबंधित है?
  2. CAATSA के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति की शक्तियां।
  3. लगाये जाने वाले प्रतिबंधों के प्रकार।
  4. भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण रक्षा सौदे।
  5. ईरान परमाणु समझौते का अवलोकन।

मेंस लिंक:

CAATSA की विशेषताओं और महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

लॉजिस्टिक्स समझौते और उनके लाभ


(Logistics agreements and their benefits)

संदर्भ:

भारत सरकार द्वारा शीघ्र ही रूस के साथ एक द्विपक्षीय ‘लॉजिस्टिक्स समझौते, पारस्परिक लॉजिस्टिक्स विनियम समझौता’ (Reciprocal Exchange of Logistics Agreement – RELOS) को अंतिम रूप दिया जाएगा।

RELOS के बारे में:

पारस्परिक लॉजिस्टिक्स विनियम समझौता’ (Reciprocal Exchange of Logistics Agreement – RELOS) का उद्देश्य ‘लॉजिस्टिक्स’ (प्रचालन-तंत्र) के अंतर-संचालन और साझा करने को बढ़ावा देना है, अतः यह सैन्य क्षेत्र में संबंधों को प्रगाढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा।

लंबे समय से बिलंबित इस समझौते पर वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किए जाने थे, लेकिन कुछ शर्तों को अंतिम रूप दिए जाने तक इसे टाल दिया गया था।

भारत और अन्य देशों के मध्य इसी तरह के अन्य समझौते:

भारत द्वारा ‘चतुर्पक्षीय सुरक्षा वार्ता’ या ‘क्वाड’ साझेदारों अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया तथा सिंगापुर, फ्रांस और दक्षिण कोरिया सहित कुल छह देशों के साथ ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज’ समझौते किए जा चुके हैं।

लॉजिस्टिक्स समझौते’ क्या होते हैं?

लॉजिस्टिक्स समझौते (Logistics Agreements), संबंधित देशों के मध्य, ईंधन के आदान-प्रदान हेतु सैन्य सुविधाओं का उपयोग करने के लिए परस्पर समझौतों पर आधारित प्रशासनिक व्यवस्थाएं होती हैं।

  • इन समझौतों के माध्यम से, लॉजिस्टिक अर्थात सामरिक क्रियान्वयन या रसद संबंधी सहायता में आसानी होती है और भारत को अपनी सीमा से दूर सैन्य-कार्रवाइयों के दौरान, परिचालन संबंधी सामग्री तेजी से पहुंचाई और वापस लाई जा सकती है।
  • भारत द्वारा वर्ष 2016 में अमेरिका के साथ ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट’ (LEMOA) के साथ शुरुआत करते हुए सभी क्वाड देशों, फ्रांस, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के साथ कई लॉजिस्टिक्स समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।

लॉजिस्टिक्स समझौतों के लाभ:

इन प्रशासनिक व्यवस्थाओं का सर्वाधिक लाभ नौसेना के लिए मिला है। कई देशों के साथ हस्ताक्षरित ‘लॉजिस्टिक्स समझौतों’ की वजह से, परिचालन संबंधी सामग्री लाने और लेजाने की क्षमता में सुधार और, भारतीय सीमा से दूर गहरे समुद्रों में नौसेना की अंतर-संचालन क्षमता में वृद्धि हुई है।

LEMOA क्या है?

यह अमेरिका द्वारा कई सैन्य-सहयोगी संबंध रखने वाले देशों के साथ किए गए ‘लॉजिस्टिक्स सहयोग समझौता’ (Logistics Support Agreement – LSA) का भारत के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया संस्करण है।

  • ‘लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट’ (Logistics Exchange Memorandum of Agreement – LEMOA) भारत और अमेरिका के मध्य हस्ताक्षरित ‘तीन बुनियादी समझौतों’ में से एक है।
  • LEMOA के तहत दोनों देशों को ईंधन भरने और आवश्यक सामग्री की पुनःपूर्ति के उद्देश्य से दोनों ओर निर्दिष्ट सैन्य सुविधाओं का उपयोग करने अनुमति दी गयी है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

भारत और अमेरिका के मध्य हस्ताक्षरित ‘तीन बुनियादी समझौते’ कौन से हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. बुनियादी समझौते क्या होते हैं?
  2. LEMOA क्या है?
  3. लॉजिस्टिक्स समझौते क्या हैं।

मेंस लिंक:

द्विपक्षीय लॉजिस्टिक्स समझौतों के लाभों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

G7 समूह


संदर्भ:

हाल ही में, ब्रिटेन द्वारा उत्तरी इंग्लिश शहर ‘लिवरपूल’ में आयोजित विदेश मंत्रियों की बैठक में ‘G7 समूह’ द्वारा यूक्रेन की ओर रूसी आक्रामकता के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाए जाने का प्रस्ताव किया गया है।

  • यह निर्णय, ‘G7 समूह’ की हाल ही में आयोजित बैठक में लिया गया था। इस बैठक में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और फ्रांस, इटली, जर्मनी, जापान और कनाडा के उनके समकक्षों ने भी व्यक्तिगत रूप से भाग लिया था।
  • यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा रूस के यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने की संभावना पर की जा रही चिंता को देखते हुए किया गया है। यद्यपि रूस ने ऐसे किसी हमले की योजना से इनकार किया है।

संबंधित प्रकरण:

वर्तमान में यूक्रेन, पश्चिमी और पूर्वी यूरोप के बीच संबंधों में तनाव में केंद्र बिंदु बना हुआ है। हाल ही में, यूक्रेन द्वारा रूस पर इसकी सीमा के नजदीक संभावित सैन्य हमले की तैयारी के लिए हजारों सैनिकों को इकट्ठा करने का आरोप लगाया जा रहा है।

रूस ने यूक्रेन और संयुक्त राज्य अमेरिका पर भड़काने वाला व्यवहार करने का आरोप लगाया है, और कहा है कि उसे अपनी सुरक्षा के लिए ‘सुरक्षा गारंटी’ की आवश्यकता है।

G7 समूह के बारे में:

  • G7 की स्थापना वर्ष 1975 में मूलतः G8 के रूप में की गयी थी, यह विश्व के अग्रणी औद्योगिक देशों को एक साथ लाने वाला एक अनौपचारिक फोरम है।
  • संरचना: जी-7 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ (European Union -EU) तथा कनाडा, फ्रांस,जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनधि भाग लेते हैं।
  • जी -7 का प्रमुख उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर चर्चा और विचार-विमर्श करना है। समय-समय यह आर्थिक मुद्दों पर विशेष ध्यान देने के अलावा अन्य वैश्विक समस्याओं का समाधान करने के लिए सहमति से कार्य करता है।

G7 का G8 में रूपांतरण:

  • वर्ष 1998 में रूस को औपचारिक रूप से G-7 समूह में एक सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया था, इसके पश्चात G-7 समूह G-8 में परिवर्तित हो गया।
  • वर्ष 2014 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा पूर्वी उक्रेन में रूसी सैनिकों की तैनाती तथा क्रीमिया पर कब्जे को लेकर अन्य जी 8 राष्ट्रों ने इन कार्यवाहियों की कड़ी आलोचना की।
  • G-8 समूह के अन्य राष्ट्रों द्वारा रूस की इन कार्यवाहियों परिणामस्वरूप रूस को जी-8 समूह से निलंबित करने का निर्णय किया गया तथा वर्ष 2014 में पुनः जी-7 समूह बन गया।

 

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘चार एशियाई बाघों’ (Four Asian Tigers) के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. G7, G8, G10, G15, G20, G24 समूह देश।
  2. सदस्य देशों की भौगोलिक स्थिति

मेंस लिंक:

वर्तमान में जी-7 देशों की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिए। समूह को अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या सुधार आवश्यक हैं?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

बैंक जमा बीमा कार्यक्रम


संदर्भ:

केंद्र सरकार द्वारा बैंक बंद होने जैसी समस्याओं की स्थिति में ‘बैंक जमा बीमा’ (Bank Deposit Insurance) सुरक्षा को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। हाल ही में, प्रधानमंत्री द्वारा बैंक जमा राशि बीमा कार्यक्रम में जमाकर्ताओं को सम्बोधित किया गया।

पृष्ठभूमि:

पहले ‘जमा बीमा क्रेडिट गारंटी योजना’  (Deposit Insurance Credit Guarantee Scheme)के तहत 1 लाख रुपये या उससे अधिक की जमा राशि के लिए 1 लाख रुपये का ही ‘बैंक जमा बीमा कवर’ हुआ करता था।

जमा बीमा और भारत में इसका विनियमन:

  • जमा बीमा (Deposit Insurance), एक प्रीमियम प्राप्त करके जमाकर्ता के पैसे को बीमा सुरक्षा प्रदान करता है।
  • सरकार द्वारा किसी बैंक के विफल होने / डूब जाने पर जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए आरबीआई के अधीन ‘जमा बीमा एवं क्रेडिट गारंटी निगम (Deposit Insurance and Credit Guarantee Corporation – DICGC) की स्थापना की गयी है।
  • DICGC, बैंक द्वारा धारित 100 रुपये जमा पर 10 पैसे चार्ज करता है। बीमाकृत बैंकों द्वारा निगम को किया गया प्रीमियम भुगतान, बैंकों द्वारा किया जाता है, इसका कोई भी अंश जमाकर्ताओं से नहीं लिया जाता है।
  • DICGC द्वारा पिछली बार फरवरी, 2020 में ‘जमा बीमा कवर’ को संशोधित कर ₹5 लाख कर दिया गया था, जोकि वर्ष 1993 से ₹1 लाख था।

जमा बीमा- कवरेज:

  • जमा बीमा, भारत में कार्यरत सभी वाणिज्यिक बैंकों में सभी जमाओं जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती जमा आदि को कवर करता है।
  • इसके अंतर्गत, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में कार्यरत राज्य, केंद्रीय और प्राथमिक सहकारी बैंकों की जमाराशियां भी कवर की जाती हैं।

विफल हो चुकी बैंक से जमाकर्ताओं द्वारा अपनी राशि का दावा करने की प्रक्रिया:

  • ‘जमा बीमा एवं क्रेडिट गारंटी निगम’ (DICGC) सीधे जमाकर्ताओं के साथ कार्य-व्यवहार नहीं करता है।
  • किसी बैंक का परिसमापन करने (liquidate) का निर्देश दिए जाने पर, आरबीआई (या रजिस्ट्रार) द्वारा समापन प्रक्रिया की देखरेख के लिए एक आधिकारिक परिसमापक (Liquidator) नियुक्त किया जाता है।
  • DICGC अधिनियम के तहत, परिसमापक को प्रभार लेने के तीन महीने के भीतर सभी बीमित जमाकर्ताओं (उनके बकाया के साथ) की एक सूची DICGC को सौंपनी होती है।
  • DICGC द्वारा यह सूची प्राप्त होने के दो महीने के भीतर इन देय राशियों का भुगतान किया जाता है।

DICGC में निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियाँ शामिल नहीं होती हैं:

  1. विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ
  2. केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियां
  3. अंतर-बैंक जमा
  4. राज्य सहकारी बैंक के पास राज्य भूमि विकास बैंकों की जमा राशि
  5. भारत से बाहर प्राप्त किसी जमा राशि पर कोई देय राशि
  6. DICGC द्वारा, विशेष रूप से आरबीआई की पूर्व अनुमति सहित, छूट दी गई कोई भी राशि।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘जमा बीमा’ क्या है? वर्तमान सीमा क्या है?
  2. DICGC क्या है?
  3. RRB बनाम शहरी सहकारी बैंक
  4. बेसल मानदंड- महत्वपूर्ण लक्ष्य।
  5. ‘बेसल’ कहाँ स्थित है?
  6. CRAR बनाम लाभांश अनुपात
  7. ‘प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण’ क्या है?

मेंस लिंक:

जमा बीमा योजना पर एक टिप्पणी लिखिए और इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनIII


 

विषय: प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय; जन वितरण प्रणाली- उद्देश्य, कार्य, सीमाएँ, सुधार; बफर स्टॉक तथा खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय; प्रौद्योगिकी मिशन; पशु पालन संबंधी अर्थशास्त्र।

न्यूनतम समर्थन मूल्य


संदर्भ:

हाल ही में, भाजपा सांसद वरुण गांधी द्वारा संसद में फसलों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support PriceMSP) के लिए एक निजी विधेयक पेश किया गया है।

कृषि उपज के गारंटीकृत न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्ति का किसानों का अधिकार विधेयक, 2021 (The farmers right to guaranteed minimum support price realization of agri-produce Bill, 2021) का अवलोकन:

  1. ‘द फार्मर्स राइट टू गारंटीड मिनिमम सपोर्ट प्राइस रिएलाइजेशन ऑफ एग्री प्रोड्यूस बिल 2021’ में 1 लाख करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की कानूनी गारंटी दिए जाने का प्रस्ताव किया गया है।
  2. विधेयक का उद्देश्य 22 फसलों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ पर कानूनी गारंटी प्रदान करवाना है, जिसे उत्पादन की सकल लागत पर 50 प्रतिशत के लाभांश पर निर्धारित किया जाना चाहिए।
  3. यदि किसी किसान जो उपरोक्त घोषित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) से कम कीमत मिलती है, तो वह प्राप्त कीमत और गारंटीकृत MSP के बीच के अंतर के बराबर मुआवजे का हकदार होगा।
  4. विधेयक में कृषि-उपज लेनदेन के दो दिनों के भीतर, भुगतान सीधे किसानों के खातों में किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।

महत्व:

किसानों को गारंटीकृत न्यूनतम समर्थन मूल्य (Guaranteed MSP) की घोषणा के परिणामस्वरूप लगभग 93 मिलियन कृषि परिवारों के लिए बेहतर कृषि-उपज मूल्य प्राप्त होगा, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में फिर से उत्थान होगा।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या होता है?

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Support Prices -MSPs), किसी भी फसल का वह ‘न्यूनतम मूल्य’ होता है, जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है। वर्तमान में, आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति, खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में उगाई जाने वाली 23 फसलों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ निर्धारित करती है।

MSP की गणना किस प्रकार की जाती है?

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) की गणना, किसानों की उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना कीमत के आधार पर की जाती है।

  • 2018-19 के केंद्रीय बजट में की गई घोषणा के अनुसार, MSP को उत्पादन लागत के डेढ़ गुना के बराबर रखा जाएगा।
  • ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) का निर्धारण ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (Commission for Agricultural Costs and PricesCACP) की संस्तुति पर, एक वर्ष में दो बार किया जाता है।
  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (CACP) एक वैधानिक निकाय है, जो खरीफ और रबी मौसम के लिए कीमतों की सिफारिश करने वाली अलग-अलग रिपोर्ट तैयार करता है।

MSP निर्धारित करने में शामिल की जाने वाली उत्पादन लागतें: 

‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) का निर्धारण करते समय, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP), ‘A2+FL’ तथा ‘C2’ लागत, दोनों को ध्यान में रखता है।

  1. A2’ लागत में कि‍सान द्वारा सीधे नकद रूप में और बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई आदि पर किये गए सभी तरह के भुगतान को शामिल किया जाता है।
  2. A2+FL’ में ‘A2’ सहित अतिरिक्त अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक अनुमानित मूल्य शामिल किया जाता है।
  3. C2 लागत में, कुल नगद लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रामिक (A2+FL) के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।

MSP की सीमाएं:

  1. ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) के साथ प्रमुख समस्या गेहूं और चावल को छोड़कर अन्य सभी फसलों की खरीद के लिए सरकारी मशीनरी की कमी है। गेहूं और चावल की खरीद ‘भारतीय खाद्य निगम’ (FCI) के द्वारा ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ (PDS) के तहत नियमित रूप से की जाती है।
  2. चूंकि राज्य सरकारों द्वारा अंतिम रूप से अनाज की खरीद की जाती है और जिन राज्यों में अनाज की खरीद पूरी तरह से सरकार द्वारा की जाती हैं, वहां के किसानो को अधिक लाभ होता है। जबकि कम खरीद करने वाले राज्यों के किसान अक्सर नुकसान में रहते हैं।
  3. MSP-आधारित खरीद प्रणाली बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और APMC अधिकारियों पर भी निर्भर होती है, और छोटे किसानों के लिए इन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

MSP का वैधीकरण किए जाने संबंधी मांग के कारण:

किसानों को MSP से कम कीमतों की प्राप्ति: भारत के अधिकांश हिस्सों में उगाई जाने वाली अधिकांश फसलों के लिए, किसानों को विशेष रूप से फसल के समय प्राप्त होने वाली कीमतें आधिकारिक तौर पर घोषित ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) से काफी कम होती हैं। और चूंकि MSP के लिए कोई वैधानिक प्रतिभूति नहीं है, अतः इसकी अधिकार के रूप में मांग नहीं की जा सकती है।

सरकार द्वारा सीमित खरीद: साथ ही, सरकार द्वारा MSP पर वास्तविक खरीद काफी कम की जाती है, जोकि गेहूं और धान की केवल एक तिहाई फसल (जिसमें से आधी फसल केवल पंजाब और हरियाणा में खरीदी जाती है), और 10% -20% चुनिंदा दलहन और तिलहन फसलों तक ही सीमित है। शांता कुमार समिति की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 6% किसान परिवार सरकार को MSP दरों पर गेहूं और धान बेचते हैं।

MSP को वैध बनाने में क्या चुनौतियां हैं?

  1. वैधानिक MSP अरक्षणीय है: नीति आयोग में शामिल कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद द्वारा एक नीति-पत्र में ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ को वैध बनाने के खिलाफ तर्क दिया गया है। इनका तर्क है, कि मांग से अधिक उत्पादन होने पर, बाजार में वस्तु या उपज की कीमतों में गिरावट होगी, ऐसी स्थित ‘पूर्व-निर्धारित मूल्य’ होने की वजह से निजी व्यापारियों बाजार से दूर हट जाएंगे। जिसके परिणामस्वरूप MSP घोषित अधिकांश कृषि उपज मुख्य रूप से सरकार को खरीदनी पड़ेगी, जो कि गैर-संवहनीय / अरक्षणीय (unsustainable) है।
  2. गोदामों, राशन की दुकानों या परिवहन के दौरान गेहूं और चावल के पुनरावर्तन / रिसाव और भ्रष्टाचार की भारी गुंजाइश
  3. निपटान संबंधी समस्याएं: जहां अनाज और दालें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बेची जा सकती हैं, वहीं नाइजर बीज, तिल या कुसुम के मामले में निपटान प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है।
  4. मुद्रास्फीति: उच्च लागत पर खरीद किए जाने का अर्थ होगा खाद्यान्नों की कीमतों में वृद्धि, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जो अंततः गरीबों को प्रभावित करेगी।
  5. MSP के अंतरराष्ट्रीय बाजार में मौजूदा दरों से अधिक होने की स्थिति में, भारत के कृषि निर्यात पर भी प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान में कृषि निर्यात का कुल निर्यात मदों में 11% हिस्सा है।
  6. उच्च MSP को कानूनी रूप से गारंटीकृत किए जाने पर भारत को ‘विश्व व्यापार संगठन’ में कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा। अमेरिका ने 2019 में विश्व व्यापार संगठन में चीन के खिलाफ, ‘बाजार मूल्य समर्थन’ (Market Price Support – MPS) के रूप में कृषि को घरेलू सहायता दिए जाने से संबंधित एक मामला सफलतापूर्वक जीता था।
  7. इससे राजकोष पर भारी बोझ पड़ेगा, क्योंकि सरकार को निजी भागीदारी के अभाव में सभी बिक्री योग्य अधिशेष की खरीद करनी होगी।
  8. अन्य क्षेत्रों से मांगें: यदि केंद्र सरकार द्वारा ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ घोषित की जाने वाली सभी 23 फसलों की 100% खरीद की गारंटी देने के लिए कानून बनाता है, तो फल और सब्जियां, मसाले और अन्य फसलों की खेती करने वाले किसान भी इसकी मांग करेंगे।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

कृषि-वानिकी / ‘एग्रोफोरेस्ट्री’ क्या होती है? भारत को इसे बढ़ावा देने की आवश्यकता क्यों है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. CCEA की संरचना।
  2. CACP क्या है?
  3. MSP योजना में कितनी फसलें शामिल हैं?
  4. MSP की घोषणा कौन करता है?
  5. खरीफ और रबी फसलों के बीच अंतर

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


एशियाई शक्ति सूचकांक, 2021

‘एशियन पावर इंडेक्स’ (Asian Power Index) में 26 देशों और क्षेत्रों को श्रेणीबद्ध किया गया है। यह सूचकांक सिडनी स्थित ‘लोवी इंस्टीट्यूट’ (Lowy Institute) द्वारा जारी किया गया है।

हालिया रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक शक्ति के मामले में 26 देशों में 100 में से 7 के समग्र स्कोर के साथ चौथा सबसे शक्तिशाली देश माना गया है।
  • भारत के समग्र स्कोर में, 2020 की तुलना में 2 अंकों की गिरावट आई है। भारत 2021 में, फिर से एशिया की प्रमुख शक्ति बनने से कुछ पीछे रह गया।
  • भारत, 2021 में अपने समग्र स्कोर में नीचे की ओर प्रवृत्त होने वाले एशिया के 18 देशों में शामिल किया गया है।

समग्र शक्ति के मामले में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के शीर्ष 10 देश हैं:

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका
  2. चीन
  3. जापान
  4. भारत
  5. रूस
  6. ऑस्ट्रेलिया
  7. दक्षिण कोरिया
  8. सिंगापुर
  9. इंडोनेशिया
  10. थाईलैंड

 

फिन बुनकर पक्षी

फिन बुनकर पक्षी (Finn’s weaver bird), वैज्ञानिक नाम: प्लोसियस मेगरिंचस (Ploceus megarhynchus), की संख्या भारत में 500 से कम बची है।

  • यह पक्षी अब तक ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण’ (IUCN) की रेड लिस्ट में “संवेदनशील” (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध था। इसे अब, “लुप्तप्राय” (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह पक्षी मुख्य रूप से उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तराई घास के मैदानों, और इसके अलावा असम में कुछ इलाकों में में पाया जाता है।

Current Affairs

‘विदेशी अधिकरण’

यह ‘विदेशी (अधिकरण) आदेश’ [Foreigners (Tribunals) Order], 1964 के तहत स्थापित अर्ध-न्यायिक निकाय होते हैं।

  • ये अधिकरण, देश में अवैध रूप से रहने वाले व्यक्ति के बारे यह निर्धारित करते हैं, कि वह ‘”विदेशी” है अथवा नहीं।
  • संरचना: ‘विदेशी अधिकरण’ के सदस्यों में, असम न्यायिक सेवा के सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, न्यायिक अनुभव रखने वाले सिविल सेवक, (जो सचिव या अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे सेवानिवृत्त नहीं हुआ हो) तथा न्यूनतम सात वर्ष के वकालत अनुभव वाले 35 वर्ष से कम आयु के अधिवक्ता को शामिल किया जाता है।

विदेशी अधिकरणों को स्थापित करने की शक्ति:

  • गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा विदेशी (अधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन किए जाने के पश्चात सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ज़िला मजिस्ट्रेटों को ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • इसके पूर्व, ट्रिब्यूनल स्थापित करने की शक्तियाँ केवल केंद्र के पास निहित थीं।

 ‘विदेशी अधिकरणों’ में अपील करने का अधिकार

  • संशोधित आदेश [विदेशी (अधिकरण) संशोधन आदेश 2019] में सभी व्यक्तियों को अधिकरणों में अपील करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • इसके पूर्व, केवल राज्य प्रशासन ही किसी संदिग्ध के खिलाफ इन अधिकरणों में मामला दायर कर सकता था।

एक विदेशी न्यायाधिकरण क्या है?

फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल अर्ध-न्यायिक निकाय हैं जिन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ऑर्डर, 1964 और फॉरेनर्स एक्ट, 1946 के अनुसार स्थापित किया गया है।

रचना: कम से कम 7 साल के अभ्यास के साथ 35 वर्ष से कम आयु के अधिवक्ता (या) असम न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी (या) एसीएस अधिकारियों के सेवानिवृत्त आईएएस (सचिव/अतिरिक्त सचिव के पद से नीचे नहीं) अर्ध-न्यायिक कार्यों में अनुभव होना।

इन न्यायाधिकरणों की स्थापना कौन कर सकता है?

गृह मंत्रालय (एमएचए) ने विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश, 1964 में संशोधन किया है, और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जिला मजिस्ट्रेटों को यह तय करने के लिए ट्रिब्यूनल (अर्ध-न्यायिक निकाय) स्थापित करने का अधिकार दिया है कि कोई व्यक्ति भारत में अवैध रूप से रह रहा है या नहीं। विदेशी है या नहीं।

पहले, न्यायाधिकरणों के गठन की शक्तियाँ केवल केंद्र के पास थीं।

कौन संपर्क कर सकता है?

संशोधित आदेश (विदेशी (ट्रिब्यूनल) आदेश, 2019) भी व्यक्तियों को अधिकरणों से संपर्क करने का अधिकार देता है।

पहले, केवल राज्य प्रशासन ही एक संदिग्ध के खिलाफ ट्रिब्यूनल में जा सकता था।

 


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