[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 11 December 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनI

1. बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना

 

सामान्य अध्ययन-II

1. भारतीय संविधान की छठी अनुसूची

2. पूरक बाल पोषण

3. बलूचिस्तान बंदरगाह पर चीनी परियोजना

4. ‘सौर गठबंधन’ के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक’ का दर्जा

5. राजद्रोह कानून

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. रॉयल गोल्ड मेडल 2022

 


सामान्य अध्ययनI


 

विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।

बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना


संदर्भ:

‘महिला सशक्तिकरण’ पर गठित संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, कि सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (Beti Bachao, Beti Padhao – BBBP) योजना के तहत आवंटित धनराशि का 80 प्रतिशत मीडिया प्रचार पर व्यय किया गया है।

आवश्यकता:

  • पिछले छह वर्षों में, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ (BBBP) पर केंद्रित अभियान के माध्यम से यह कार्यक्रम बालिकाओं के महत्व के प्रति राजनीतिक नेतृत्व और राष्ट्रीय चेतना का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा है।
  • सरकार को अब इस रणनीति पर फिर से विचार करना चाहिए और लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर, माप-योग्य परिणाम हासिल करने हेतु, निवेश करना चाहिए।

बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ (BBBP) के बारे में:

लिंग-चयनात्मक गर्भपात और बाल लैंगिक अनुपात में कमी से निपटने के उद्देश्य से जनवरी 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ (Beti Bachao, Beti Padhao – BBBP) योजना का आरंभ किया गया था। वर्ष 2011 में बाल लैंगिक अनुपात 918 / 1,000 था।

  • 8 मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझुनू जिले में कार्यक्रम का विस्तार करते हुए, इसे देश के सभी 640 जिलों (जनगणना 2011 के अनुसार) में शुरू कर दिया गया था।
  • यह, तीन केंद्रीय मंत्रालयों, महिलाओं और बाल विकास, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों का संयुक्त प्रयास है।

योजना के परिणाम:

  1. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जन्म के समय लिंगानुपात में सुधार के आशाजनक रुझान दिखाई दे रहे हैं और इसमें वर्ष 2014-15 में 918 से 16 अंकों का सुधार होकर वर्ष 2019-20 में 934 हो चुका है।
  2. प्रसवपूर्व देखभाल की पहली तिमाही के दौरान स्वास्थ्य प्रतिशत में सुधार की प्रवृत्ति दिखाई देती गई, और यह वर्ष 2014-15 में 61 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 71 प्रतिशत हो गया है।
  3. माध्यमिक स्तर पर स्कूलों में लड़कियों के सकल नामांकन अनुपात भी वर्ष 2014-15 के 45 प्रतिशत से बढ़ कर वर्ष 2018-19 (अनंतिम आंकड़े) में 81.32 प्रतिशत हो गया है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ के बारे में जानते हैं? यह ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ अभियान के एक भाग के रूप में शुरू की गई बालिकाओं के लिए एक लघु बचत योजना है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में
  2. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ (BBBP) के बारे में
  3. उद्देश्य
  4. कार्यान्वयन
  5. पात्रता
  6. लाभ

मेंस लिंक:

‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ (BBBP) के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।

भारतीय संविधान की छठी अनुसूची


संदर्भ:

लद्दाख में विभिन्न नागरिक समाज समूहों द्वारा ‘लद्दाख’ को संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule of the Constitution) के अंतर्गत शामिल करने की मांग की जा रही है।

‘लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद’ (Ladakh Autonomous Hill Development Council – LAHDC) वर्तमान स्वरूप में आदिवासी हितों की रक्षा करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि इसके पास भूमि, नौकरी और संस्कृति जैसे विषयों पर कानून बनाने या नियम बनाने की शक्ति नहीं थी। इसे देखते हुए नागरिक समुदायों द्वारा छठी अनुसूची की मांग शुरू की गयी है।

आवश्यकता:

  1. लद्दाख की लगभग 90% से अधिक आबादी आदिवासी है। बलती (Balti), बेडा (Beda), बोट (Bot) या बोटो (Boto), ब्रोकपा (Brokpa), ड्रोकपा (Drokpa), डार्ड (Dard), शिन (Shin), चांगपा (Changpa), गर्रा (Garra), मोन (Mon) और पुरीगपा (Purigpa) लद्दाख की प्रमुख अनुसूचित जनजातियां हैं।
  2. इसलिए, लद्दाख क्षेत्र में इन समुदायों की कई विशिष्ट सांस्कृतिक विरासतों को संरक्षित और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

‘छठी अनुसूची’ के बारे में:

1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची भूमि, ‘स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों’ और ‘स्वायत्त ज़िला परिषदों’ (ADCs) के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान करती है।

  • इन परिषदों को सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और अन्य विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त होती है।
  • वर्तमान में छठी अनुसूची के अंतर्गत, चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की 10 स्वायत्त जिला परिषदें सम्मिलित हैं।
  • यह ‘विशेष प्रावधान’ संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है।

छठी अनुसूची के प्रमुख प्रावधान:

इसके अंतर्गत चार राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है, किंतु इन्हें संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के अधीन रखा गया है।

  1. राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
  2. यदि एक स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
  3. संरचना: प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
  4. कार्यकाल: निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
  5. प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
  6. परिषदों की शक्तियां: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि,वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, किंतु ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
  7. ग्राम सभाएँ: अपने क्षेत्रीय न्यायालयों के अंतर्गत ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘संविधान (125वां संशोधन) विधेयक, 2019’ के बारे में जानते हैं?

  • 6 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में पेश किए गए इस विधेयक में निर्वाचित ग्राम नगरपालिका परिषदों के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।
  • यह विधेयक अभी भी विचाराधीन है, और इसमें राज्य चुनाव आयोग द्वारा स्वायत्त परिषदों, ग्राम और नगर परिषदों के चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव किया गया है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के बीच अंतर
  2. 5 वीं अनुसूची के तहत राज्यपाल की शक्तियां
  3. 5 वीं के अंतर्गत क्षेत्रों को शामिल करने अथवा बाहर निकालने की शक्ति किसे प्राप्त है?
  4. अनुसूचित क्षेत्र क्या हैं?
  5. वन अधिकार अधिनियम- प्रमुख प्रावधान
  6. जनजातीय सलाहकार परिषद- रचना और कार्य

मेंस लिंक:

भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

पूरक बाल पोषण


संदर्भ:

सरकार द्वारा ‘पूरक बाल पोषण’ (Supplementary Child Nutrition) के लिए लॉकडाउन के दौरान उठाए गए निम्नलिखित कदमों को सूचीबद्ध किया गया है:

  • लाभार्थियों को निरंतर पोषण सहायता सुनिश्चित करने के लिए, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं ने कोविड-19 के दौरान 15 दिनों में एक बार लाभार्थियों के दरवाजे पर ‘पूरक पोषण’ (Supplementary Nutrition) वितरित किया गया, क्योंकि महामारी के प्रभाव को सीमित करने के लिए देश भर के सभी आंगनवाड़ी केंद्र बंद थे।
  • आंगनबाडी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा सामुदायिक निगरानी में स्थानीय प्रशासन की सहायता भी की गयी और इन्होने जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ समय-समय पर सौंपे गए अन्य कार्यों को भी पूरा किया।

आवश्यकता:

  • अध्ययनों से पता चला है कि महामारी की वजह से आजीविका के चले जाने, भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं में होने वाले व्यवधान के कारण कुपोषण में वृद्धि हो सकती है।
  • वर्ष 2019 की तुलना में, वर्ष 2022 में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या में अतिरिक्त 3 मिलियन की वृद्धि हो सकती है; जिसमे से लगभग 2.6 मिलियन अतिरिक्त बच्चों के ठिगने रहने और पांच साल से कम उम्र के लगभग 1,68,000 अतिरिक्त बच्चों की मौत होने की संभावना हो सकती है।

भारत में बच्चों में कुपोषण पर कोविड-19 का प्रभाव:

जहां कुपोषण की बिगड़ती स्थिति देश में गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है, वहीं कोविड-19 के फैलने से यह और भी खराब हो गयी है।

  • आंगनबाडी केंद्रों (AWCs) के आंशिक रूप से बंद होने और लॉकडाउन के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान आने के परिणामस्वरूप ‘मध्याह्न भोजन योजना’ को भी रोकना पड़ा, घर ले जाने के लिए राशन की उपलब्धता भी बाधित हुई और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए परिवहन भी सीमित हुआ।
  • ग्लोबल हेल्थ साइंस 2020 जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कोविड-19 से उत्पन्न चुनौतियों से चार मिलियन अन्य बच्चे तीव्र कुपोषण की स्थिति में पहुँच सकते हैं।
  • यह स्थिति ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ 2020 में भारत की खराब रैंकिंग से भी स्पष्ट होती है, जिसमे 107 देशों की सूची में भारत 94वें स्थान पर है।

कुपोषण का सामना करने हेतु सरकार के प्रयास:

  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
  • पोषण अभियान
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
  • मध्याह्न भोजन (MDM) योजना
  • एकीकृत बाल विकास सेवाएं (ICDS)
  • राष्ट्रीय पोषण रणनीति (NNS)

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

बलूचिस्तान बंदरगाह पर चीनी परियोजना


संदर्भ:

नवंबर के दूसरे सप्ताह से, ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ (China-Pakistan Economic Corridor – CPEC) के एक भाग के रूप में, ‘बंदरगाह शहर’ की मेगा विकास योजनाओं के खिलाफ बलूचिस्तान के ग्वादर में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

संबंधित प्रकरण:

स्थानीय लोगों द्वारा बंदरगाह के विकास में स्थानीय आबादी के हाशिए पर रखे जाने की ओर ध्यान दिए जाने की मांग की जा रही है। स्थानीय लोग इस बात से नाराज हैं कि इन परियोजनाओं से उन्हें न केवल बाहर किया जा रहा है, बल्कि उनकी वर्तमान आजीविका भी खतरे में पड़ रही है।

स्थानीय चिंताएं:

बलूचिस्तान, पाकिस्तान के चार प्रांतों में सबसे अधिक संसाधन संपन्न होने के बावजूद सबसे कम विकसित क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन मछली पकड़ना है। बलूचिस्तान में पीने के पानी, बिजली और यहां तक ​​कि गैस तक लोगों की सबसे कम पहुंच है, जोकि इस क्षेत्र का मुख्य संसाधन है।

भारत और पश्चिमी देशों की चिंताएं:

भारत इस बात से चिंतित है कि ‘ग्वादर बंदरगाह’ चीन को अरब सागर और हिंद महासागर तक रणनीतिक पहुंच प्रदान करता है। इसे एक व्यापार ‘पुनर्निर्यात पत्तन’ के रूप में विकसित किए जाने के साथ-साथ ‘चीनी नौसेना (PLAN) के उपयोग हेतु’ दोहरे उद्देश्य वाले बंदरगाह के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा, चीन का ‘ग्वादर बंदरगाह’ के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में, म्यांमार के क्याकप्यू और श्रीलंका के हंबनटोटा तक चीन की उपस्थिति का विस्तार करने का इरादा है।

पश्चिम एशिया में महत्वपूर्ण सैन्य हितों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका भी, ग्वादर में चीनी उपस्थिति के प्रति चिंतित है।

CPEC के बारे में:

  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), कई-अरब डॉलर की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) की प्रमुख परियोजना के तहत, पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबी एक वाणिज्यिक परियोजना हैl
  • यह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य चीन द्वारा वित्त पोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से दुनिया विश्व में बीजिंग के प्रभाव को बढ़ाना है।
  • इस लगभग 3,000 किलोमीटर लंबे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में राजमार्ग, रेलवे और पाइपलाइन का निर्माण किया जाना शामिल है।
  • इस प्रस्तावित परियोजना को भारी-सब्सिडी वाले ऋणों द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा। पाकिस्तान की सरकार के लिए यह ऋण चीनी बैंकिंग दिग्गजों, जैसे एक्जिम बैंक ऑफ चाइना, चीन डेवलपमेंट बैंक तथा चीन के औद्योगिक और वाणिज्यिक बैंक द्वारा प्रदान किया जाएगा।

Current Affairs

 

भारत की चिंताएं:

  • यह गलियारा ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ (POK) के गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान के विवादित क्षेत्र बलूचिस्तान से होते हुए गुजरेगा।
  • यह परियोजना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भारतीय संप्रुभता के लिए नुकसानदेय साबित होगी l
  • CPEC, ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से अपनी आपूर्ति लाइनों को सुरक्षित और छोटा करने के साथ-साथ हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बढ़ाने संबंधी चीनी योजना पर आधारित है। अतः यह माना जाता है कि CPEC के परिणामस्वरूप हिंद महासागर में चीनी मौजूदगी भारत के प्रभाव पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी।
  • यातायात और ऊर्जा की मिली-जुली इस परियोजना के तहत समुद्र में बंदरगाह को विकसित किए जाएंगे, जिससे भारतीय हिंद महासागर तक चीन की पहुंच का रास्ता खुलेगाl ग्वादर, बलूचिस्तान के अरब सागर तट पर स्थित हैl पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम का यह हिस्सा दशकों से अलगाववादी विद्रोह का शिकार हैl

Current Affairs

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ (PoK) में होने वाले चुनावों में शरणार्थियों के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. CPEC क्या है?
  2. BRI पहल क्या है?
  3. गिलगित- बाल्टिस्तान कहां है?
  4. पाकिस्तान और ईरान में महत्वपूर्ण बंदरगाह।

मेंस लिंक:

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) ढांचे पर भारत की चिंताओं पर चर्चा कीजिए। सुझाव दें कि भारत को इस गठबंधन से उत्पन्न चुनौतियों से कैसे निपटना चाहिए?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

‘सौर गठबंधन’ के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक’ का दर्जा


संदर्भ:

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन’ (International Solar Alliance – ISA) को ‘पर्यवेक्षक का दर्जा’ (Observer Status) प्रदान किया गया है। भारत ने इसे एक ऐतिहासिक निर्णय बताया है।

पर्यवेक्षक दर्जे का महत्व:

संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘अंतर्राष्‍ट्रीय सौर गठबंधन’ (ISA) को ‘पर्यवेक्षक का दर्जा’ (Observer Status) को पर्यवेक्षक का दर्जा दिए जाने से ‘सौर गठबंधन’ और ‘संयुक्त राष्ट्र’ के बीच नियमित और अच्छी तरह से परिभाषित सहयोग स्थापित करने में मदद मिलेगी जिससे वैश्विक स्तर पर ऊर्जा वृद्धि और विकास में लाभ होगा।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के बारे में:

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की परिकल्पना भारत और फ्रांस द्वारा ‘सौर ऊर्जा समाधानों’ के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रयासों को संगठित करने संबंधी संयुक्त प्रयास के रूप में की गई थी।

  • इसकी शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित COP-21 के दौरान की गई थी।
  • आईएसए (ISA)122 से अधिक देशों का गठबंधन है।
  • आईएसए, सौर ऊर्जा का उपयोग से ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने हेतु ‘कर्क रेखा’ और ‘मकर रेखा’ के बीच पूर्ण या आंशिक रूप से अवस्थित, सौर संसाधन समृद्ध देशों का गठबंधन है।
  • पेरिस घोषणापत्र में ‘आईएसए’ को अपने सदस्य देशों के मध्य सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित गठबंधन के रूप में घोषित किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मौजूदा सौर प्रौद्योगिकियों के बड़े पैमाने पर परिनियोजन की सुविधा प्रदान करता है, और सहयोगी सौर अनुसंधान एवं विकास और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है।

सचिवालय:

  • भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से ‘गुरुग्राम’ में ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ मुख्यालय की आधारशिला रखी गयी।
  • इनके द्वारा हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित ‘राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान परिसर’ में आईएसए के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया गया।

उद्देश्य:

  • ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के प्रमुख उद्देश्यों में 1,000GW से अधिक सौर उत्पादन क्षमता को वैश्विक रूप से परिनियोजित करना तथा वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा में 1000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश जुटाना शामिल है।
  • आईएसए के तहत, प्रौद्योगिकी, आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता और विकास, और भंडारण प्रौद्योगिकी के विकास, बड़े पैमाने पर विनिर्माण और नवाचार के लिए पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाने की परिकल्पना की गयी है।

हस्ताक्षरकर्ता:

  • कुल 80 देशों ने ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर और पुष्टि की है, और 101 देशों ने समझौते पर केवल हस्ताक्षर किए हैं।

आवश्यकता:

कम लागत की प्रौद्योगिकी से अधिक महत्वाकांक्षी सौर ऊर्जा कार्यक्रमों को शुरू किया जा सकता है।

सौर ऊर्जा, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। परियोजना का सफल कार्यान्वयन, सार्वभौमिक ऊर्जा पहुंच लक्ष्य (SDG 7) को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ के छह प्रमुख कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण के लिए एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकते हैं।

  1. कृषि उपयोग के लिए सौर अनुप्रयोग,
  2. व्यापक स्तर पर वहनीय वित्त,
  3. मिनी ग्रिड,
  4. सौर छत (Solar Rooftops)
  5. ‘सौर ई-गतिशीलता’ और भंडारण

solar

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप प्रथम ‘विश्व सौर प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन’ के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
  2. आईएसए सचिवालय
  3. OSOWOG पहल- उद्देश्य
  4. इसका आरंभ कब किया गया था?
  5. कार्यान्वयन एजेंसी।
  6. गैर-जीवाश्म ईंधन क्या हैं? उदाहरण दीजिए।

मेंस लिंक:

‘वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड’ (OSOWOG) पहल के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

देशद्रोह कानून


संदर्भ:

गृह मंत्रालय (MHA) ने स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘देशद्रोह’ (Sedition) से संबंधित भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को खत्म करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।

पृष्ठभूमि:

सरकार के कोविड-19 प्रबंधन के बारे में अपनी शिकायतों को आवाज देने पर अथवा महामारी की दूसरी लहर के दौरान, चिकित्सा सेवाओं तक पहुंच, उपकरण, दवाएं और ऑक्सीजन सिलेंडर हासिल करने के लिए मदद मांगने के लिए आलोचकों, पत्रकारों, सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और नागरिकों के खिलाफ राजद्रोह कानून का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है।

राजद्रोह’ / ‘देशद्रोह’ (Sedition) क्या होता है?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति के द्वारा, शब्दों द्वारा, लिखित अथवा बोलने के माध्यम से, अथवा संकेतों द्वारा, या दृश्य- प्रदर्शन द्वारा, या किसी अन्य तरीके से, विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ, घृणा या अवमानना दिखाने, उत्तेजित होने अथवा उत्तेजना भड़काने का प्रयास करने पर उसे, आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना, या तीन साल तक की कैद और साथ में जुर्माना, या मात्र जुर्माने का दंड दिया जा सकता है।

इसके दुरुपयोग संबंधी मुद्दे:

राजद्रोह कानून लंबे समय से विवादों में रहा है। अक्सर सरकारों के ‘भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124-A कानून का उपयोग करने पर, उनकी नीतियों के मुखर आलोचकों द्वारा आलोचना की जाती है।

इसलिए, इस धारा को व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध के रूप में देखा जाता है, और एक प्रकार से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाए जाने वाले उचित प्रतिबंधों संबंधी प्रावधानों के अंतर्गत आती है।

इस क़ानून को औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों द्वारा 1860 के दशक में लागू किया गया था, उस समय से लेकर आज तक यह क़ानून बहस का विषय रहा है। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सहित स्वतंत्रता आंदोलन के कई शीर्ष नेताओं पर राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज किए गए थे।

इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले:

केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामला (1962):

  1. आईपीसी की धारा 124A के तहत अपराधों से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान, उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले (1962) में कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किए थे।
  2. अदालत ने फैसला सुनाया था, कि सरकार के कार्यों की चाहें कितने भी कड़े शब्दों में नापसंदगी व्यक्त की जाए, यदि उसकी वजह से हिंसक कृत्यों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था भंग नहीं होती है, तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा।

बलवंत सिंह बनाम पंजाब राज्य (1995) मामला:

  1. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था, कि केवल नारे लगाना, इस मामले में जैसे कि ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, राजद्रोह नहीं है।

जाहिर है, राजद्रोह कानून को गलत तरीके से समझा जा रहा है और असहमति को दबाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।

समय की मांग:

शीर्ष अदालत के अनुसार, विशेष रूप से समाचार, सूचना को संप्रेषित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के अधिकार, और देश के किसी भी हिस्से में मौजूदा शासन की आलोचना करने के अधिकार के संदर्भ में “भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 124A, 153A और 505 के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या किए जाने की आवश्यकता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. राजद्रोह को किस क़ानून के तहत परिभाषित किया गया है?
  2. आईपीसी की धारा 124A किससे संबंधित है?
  3. आईपीसी की धारा 153 किससे संबंधित है?
  4. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक फैसले
  5. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19

मेंस लिंक:

भारत में देशद्रोह कानून लागू करने से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


रॉयल गोल्ड मेडल 2022

भारतीय वास्तुकार बालकृष्ण दोशी को वर्ष 2022 का ‘रॉयल गोल्ड मेडल’ प्रदान किया जाएगा। यह वास्तुकला के लिए विश्व के सर्वोच्च सम्मानों में से एक है।

  • रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (RIBA) के अनुसार, 70 साल के करियर और 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के साथ 94 वर्षीय दोशी ने अपने अभ्यास और अपने शिक्षण दोनों के माध्यम से भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में वास्तुकला की दिशा को प्रभावित किया है।
  • जीवन भर के कार्यों को मान्यता देते हुए, ‘रॉयल गोल्ड मेडल’ को व्यक्तिगत रूप से ‘क्वीन एलिजाबेथ II’ द्वारा अनुमोदित किया जाता है और इसे वास्तुकला की उन्नति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले व्यक्ति या किसी समूह को दिया जाता है।

Current Affairs

 


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