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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1. संविधान सभा की पहली बैठक के 75 वर्ष
2. अरब सागर में चक्रवातों की अधिक संख्या
सामान्य अध्ययन-II
1. सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने हेतु विधेयक
2. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019
3. बर्ड फ्लू
4. विश्व स्वर्ण परिषद
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. न्यूजीलैंड का आजीवन प्रतिबंध
2. ज्ञानपीठ पुरस्कार
सामान्य अध्ययन–I
विषय: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास- महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय।
संविधान सभा की पहली बैठक के 75 वर्ष
संदर्भ:
भारत की संविधान सभा (Constituent Assembly) की पहली बैठक 75 साल पहले 9 दिसंबर 1946 को हुई थी।
संविधान सभा में, भारत के अलग-अलग हिस्सों, भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमियों और यहां तक कि अलग-अलग विचारधाराओं के प्रतिष्ठित व्यक्ति, भारत के लोगों के लिए एक उपयुक्त संविधान प्रदान करने के उद्देश्य से एक साथ एकत्र हुए थे।
भारत की संविधान सभा के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:
- संविधान सभा का विचार, पहली बार ‘एम एन रॉय’ द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- वर्ष 1935 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा पहली बार आधिकारिक तौर पर भारत के लिए एक संविधान बनाने हेतु एक संविधान सभा की मांग की गयी थी।
- वर्ष 1938 में, जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के संबंध में जोरदार वक्तव्य देते हुए कहा – ‘स्वतंत्र भारत का संविधान बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के, वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित एक संविधान सभा द्वारा बनाया जाना चाहिए’
- संविधान सभा की मांग को पहली बार ब्रिटिश शासन द्वारा 1940 के ‘अगस्त प्रस्ताव’ के माध्यम से स्वीकार किया गया था।
- अंततः, ‘कैबिनेट मिशन योजना’ के प्रावधानों के तहत, वर्ष 1946 में एक ‘संविधान सभा’ गठित की गई।
संविधान सभा से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बिंदु:
- संविधान सभा में कुल सदस्य: 389
- ब्रिटिश भारत के लिए 296 सीटों और देशी रियासतों को 93 सीटों का आवंटन
- ब्रिटिश भारत के लिए आवंटित की गयी 296 सीटों में से 292 सदस्यों का चयन गवर्नर-शासित प्रांतों ग्यारह प्रांतों से और चार सदस्यों का चयन ‘मुख्य आयुक्त’-शासित प्रांतों से किया जाना था।
- सीटों का आवंटन, संबंधित प्रांतों की जनसंख्या के अनुपात के आधार पर किया गया था।
- प्रत्येक ब्रिटिश प्रांत को आवंटित सीटों का निर्धारण तीन प्रमुख समुदायों- मुस्लिम, सिख व सामान्य – के बीच किया जाना था।
- प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधियों का चुनाव प्रांतीय असेंबली में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाना था, और एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक तरीके से मतदान किया जाना था।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चयन इन रियासतों के प्रमुखों द्वारा किया जाना था।
संविधान सभा की संरचना के संबंध में संक्षिप्त अवलोकन:
- संविधान सभा आंशिक रूप से निर्वाचित और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी।
- सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों के द्वारा किया जाना था, जिनका चुनाव एक सीमित मताधिकार के आधार पर किया गया था।
- यद्यपि संविधान सभा का चुनाव भारत के व्यस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं हुआ था, तथापि इसमें समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल थे।
- संविधान सभा की पहली बैठक में मुस्लिम लीग ने भाग नहीं लिया।
- संविधान सभा द्वारा दो साल, 11 महीने और 18 दिनों की अवधि में 11 सत्र आयोजित किए गए।
- संविधान सभा का अंतिम सत्र 24 जनवरी 1950 को आयोजित किया गया था।
संविधान सभा द्वारा नयी विधायिका के गठन होने तक ‘अस्थायी विधायिका’ के रूप में कार्य किया किया गया। इस दौरान संविधान सभा द्वारा किए गए कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार थे:
- मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन।
- इसने 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
- इसने 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान को अपनाया।
- 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
- 24 जनवरी 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉ राजेंद्र प्रसाद को चुना।
संविधान सभा की आलोचना:
- संविधान सभा, प्रतिनिधि निकाय नहीं थी, क्योंकि सदस्य प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित नहीं किए गए थे।
- यह एक ‘संप्रभु निकाय’ नहीं था क्योंकि यह ब्रिटिश आदेश के आधार पर गठित की गयी थी।
- संविधान का निर्माण करने में अनावश्यक रूप से लंबा समय लगा।
- इसके सदस्यों में मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था।
- इसमें वकील-राजनेताओं का प्रभुत्व काफी अधिक था।
- इसमें मुख्य रूप से हिंदुओं का वर्चस्व था।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं, कि संविधान सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता सभा के “अस्थायी अध्यक्ष” सच्चिदानंद सिन्हा द्वारा की गयी थी? सच्चिदानंद सिन्हा, उस समय संविधान सभा में भारत के सबसे उम्रदराज सदस्य थे, और उन्होंने 1910 से 1920 तक इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य भी रह चुके थे।
प्रीलिम्स लिंक:
- संविधान सभा के बारे में
- गठन
- कार्य
- समितियां
- उद्देश्य प्रस्ताव
मेंस लिंक:
किस सीमा तक यह कहा जा सकता है कि ‘संविधान सभा’ एक दलीय निकाय थी? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान आदि।
अरब सागर में चक्रवातों की अधिक संख्या
संदर्भ:
वर्ष 1891 से 2020 की अवधि के दौरान उत्तरी हिंद महासागर (बंगाल की खाड़ी और अरब सागर) में आने वाले चक्रवातों (Cyclones) संबंधी पिछले आंकड़ों के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि:
- हाल के वर्षों में, अरब सागर के ऊपर “बहुत गंभीर चक्रवाती तूफानों” (Very Severe Cyclonic Storms) की आवृत्ति में वृद्धि हुई है। हालाँकि, इनके द्वारा भारत के पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्रों के लिए अधिक खतरा नहीं रहा है, क्योंकि इनमें से अधिकांश चक्रवात ओमान और यमन देशों के स्थलीय भागों तक आकर मद्धिम पड़ गए।
- पूर्वी तट, पश्चिमी तट की तुलना में “अत्यंत गंभीर चक्रवातों” के प्रति अधिक संवेदनशील रहा, लेकिन फिर भी अत्यधिक गंभीर चक्रवाती तूफानों (Extremely Severe Cyclonic Storms – ESCS) की आवृत्ति की “कोई महत्वपूर्ण प्रवृत्ति” नहीं रही।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के अधीन, ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) के ‘प्रारंभिक चेतावनी कौशल’ में सुधार के परिणामस्वरूप, चक्रवातों के कारण होने वाली मौतों की संख्या में काफी कमी आई है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिकरण (NDMA) और गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा, प्रभावी शमन उपायों और प्रतिक्रिया कार्यों में भी सुधार किया गया है।
- ग्लोबल वार्मिंग / वैश्विक उष्मन की वजह से, पिछली शताब्दी के दौरान, अरब सागर के सतहीय तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है। वर्तमान में अरब सागर का सतहीय तापमान, चार दशक पहले के तापमान से 2-1.4 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यह अधिक गर्म तापमान, ‘संवहन प्रक्रिया में तीव्रता, भारी वर्षा और तीव्र चक्रवातों के निर्माण में सहायक होता है।
- तापमान में होने वाली वृद्धि से, अरब सागर में विकसित होने वाले चक्रवातों की तीव्रता के लिए, पर्याप्त ऊर्जा की आपूर्ति होती है।
- अरब सागर, चक्रवातों के अनुकूल पवन- अपरूपण (wind shear) भी प्रदान कर रहा है। उदाहरण के लिए, उच्च स्तरीय पूर्वी पवनों की वजह से, चक्रवात ओखी का निम्नदाब क्षेत्र / गर्त, बंगाल की खाड़ी से अरब सागर की ओर सरक गया था।
चक्रवातों का नामकरण (Naming of Cyclones):
उष्णकटिबंधीय चक्रवात पर समिति (Panel on Tropical Cyclones – PTC) द्वारा, वर्ष 2000 में ओमान सल्तनत के मस्कट में आयोजित, WMO/ESCAP के 27 वें सत्र में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को नाम देने के लिए सैद्धांतिक तौर पर सहमति जताई गई थी।
- WMO/ESCAP का तात्पर्य ‘विश्व मौसम विज्ञान मौसम संगठन’ (World Meteorological Organisation- WMO) और ‘एशिया एवं प्रशांत हेतु संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग’ (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific) से है।
- उत्तरी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नामकरण की शुरुआत, सितंबर 2004 से, WMO/ESCAP पीटीसी के तत्कालीन आठ सदस्य देशों: बांग्लादेश, भारत, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड द्वारा प्रस्तावित किये गए नामों के साथ की गयी थी। इसके बाद से उष्णकटिबंधीय चक्रवात पर समिति (PTC) में पांच अन्य सदस्य शामिल हो चुके है।
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के ऊपर निर्मित होने वाले चक्रवाती तूफान, जब उपयुक्त तीव्रता हासिल कर लेते हैं, तब इनके नामकरण के लिए, ‘क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र’ (Regional Specialised Meteorological Centre- RSMC), नई दिल्ली जिम्मेदार होता है।
- ‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) तथा पांच उष्णकटिबंधीय चक्रवात चेतावनी केंद्रों सहित, विश्व भर में कुल छह ‘क्षेत्रीय विशिष्ट मौसम विज्ञान केंद्र’ (RSMC) हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप सुपरसेल (Supercell) और मेसोसायलोन (Mesocylone) में अंतर जानते हैं?
क्या आप जानते हैं कि एक ‘बहुत गंभीर चक्रवात’ को 220 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा की गति के साथ परिभाषित किया जाता है? यह “अत्यंत गंभीर चक्रवात” के ठीक बाद, चक्रवातों की चौथी उच्चतम श्रेणी है।
प्रीलिम्स लिंक:
- चक्रवातों के निर्माण के लिए उत्तरदायी कारक
- विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में चक्रवातों का नामकरण
- भारत के पूर्वी तट पर अधिक चक्रवात आने का कारण
- कोरिओलिस बल क्या है?
- संघनन की गुप्त ऊष्मा क्या है?
मेंस लिंक:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के निर्माण के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने हेतु विधेयक
संदर्भ:
विपक्ष द्वारा कड़ी आपत्ति व्यक्त किए जाने के बीच, लोकसभा में केंद्र सरकार के लिए ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) के निदेशकों के कार्यकाल को बढाने की शक्ति प्रदान करने वाले दो विधेयक पारित कर दिए गए हैं।
यह विधेयक पिछले महीने लाए प्रख्यापित किया गए अध्यादेशों की जगह लेंगे।
हाल ही केंद्र सरकार द्वारा दो अध्यादेश लाए गए हैं, जिनमे ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के निदेशकों के दो साल के निर्धारित कार्यकाल को बढ़ाकर अधिकतम पांच साल तक बढाए जाने का प्रावधान किया गया है।
शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुखों के कार्यकाल में ,एक बार में केवल एक वर्ष का विस्तार दिया जा सकता है। अर्थात, दो साल के एक निश्चित कार्यकाल के बाद उन्हें वार्षिक रूप से, तीन बार एक्सटेंशन मिल सकता है।
संशोधित किए गए कानून:
- सीबीआई निदेशक के कार्यकाल में परिवर्तन करने हेतु ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’, 1946 में संशोधन किया गया है।
- ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) निदेशक के कार्यकाल में परिवर्तन, हेतु ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम’, 2003 में संशोधन किया गया है।
इन अध्यादेशों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका:
केंद सरकार द्वारा लागू किए गए दो अध्यादेशों को रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। इन अध्यादेशों के द्वारा केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के निदेशकों के कार्यकाल को अलग-अलग चरणों में पांच साल तक बढ़ाने की शक्ति प्रदान की गयी है।
संबंधित मुद्दे:
- याचिकाकर्ताओं का कहना है कि, इन अध्यादेशों की वजह से दोनों शीर्ष जांच एजेंसियों के प्रमुख अपने कार्यकाल के बारे में असुरक्षित हो जाएंगे, और इससे उनकी पेशेवर स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
- इसके अलावा, इन अध्यादेशों में ‘सार्वजनिक हित’ के अस्पष्ट संदर्भ के अलावा कोई मानदंड प्रदान नहीं किया गया है। वास्तव में ये सरकार की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर आधारित है। इसका प्रत्यक्ष और स्पष्ट प्रभाव जांच एजेंसियों की स्वतंत्रता को नष्ट करने का है।
- सरकार के इस कदम की विपक्षी दलों ने भी कड़ी आलोचना की है। विपक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा है, आगामी संसद सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है, इसके बावजूद भी सरकार ने यह क़ानून लागू करने किए ‘अध्यादेश’ का मार्ग चुना है।
इन अध्यादेशों को किन आधारों पर चुनौती दी गई है?
- लगभग एक साल पहले, ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) निदेशक को दो साल का निश्चित कार्यकाल पूरा करने के बाद पूर्वव्यापी प्रभाव से एक साल का सेवा-विस्तार दिया गया था। सरकार के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी और इसमें अदालत ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, कि इस तरह के कड़े कदम कभी-कभार ही उठाए जाने चाहिए।
- याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले और ‘विनीत नारायण बनाम भारत संघ’ (1997) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए दोनों अध्यादेशों को मनमाना और असंवैधानिक बताया है। 1997 के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था, कि ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (Enforcement Directorate – ED) के प्रमुखों का न्यूनतम कार्यकाल दो साल का होना चाहिए।
इंस्टा जिज्ञासु:
- ‘प्रकाश सिंह मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विवरण और संबंधित आदेशों के बारे में आप क्या जानते हैं? जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- सीबीआई और इसकी स्थापना
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- आम सहमति क्या होती है?
- राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने के प्रभाव
मेंस लिंक:
क्या आम सहमति वापस लेने तात्पर्य यह हो सकता है कि सीबीआई अब किसी मामले की जांच नहीं कर सकती? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA)
(Citizenship (Amendment) Act)
संदर्भ:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (Citizenship (Amendment) Act, 2019) अर्थात CAA को संसद द्वारा पारित किए जाने के दो साल बाद भी, गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा अभी तक अधिनियम के विनियमन संबंधी नियमों को अधिसूचित नहीं किया गया है। नियमों को अधिसूचित किए बिना कानून को लागू नहीं किया जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA), 12 दिसंबर, 2019 को अधिसूचित किया गया था और इसे 10 जनवरी, 2020 से लागू किया गया।
- इस अधिनियम के माध्यम से नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 में नागरिकता प्राप्त करने हेतु विभिन्न तरीके निर्धारित किये गए हैं।
- इसके तहत, भारत में जन्म के आधार पर, वंशानुगत, पंजीकरण, प्राकृतिक एवं क्षेत्र समाविष्ट करने के आधार पर नागरिकता हासिल करने का प्रावधान किया गया है।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में:
CAA का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई – उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
- इन समुदायों के, अपने संबंधित देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़न का सामना करने वाले जो व्यक्ति 31 दिसंबर 2014 तक भारत में पलायन कर चुके थे, उन्हें अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
- अधिनियम के एक अन्य प्रावधान के अनुसार, केंद्र सरकार कुछ आधारों पर ‘ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया’ (OCI) के पंजीकरण को भी रद्द कर सकती है।
अपवाद:
- संविधान की छठी अनुसूची में शामिल होने के कारण यह अधिनियम त्रिपुरा, मिजोरम, असम और मेघालय के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होता है।
- इसके अलावा बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लिमिट’ के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों भी इस अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे।
इस कानून से संबंधित मुद्दे:
- यह क़ानून संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसके अंतर्गत धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों की पहचान की गयी है।
- यह क़ानून स्थानीय समुदायों के लिए एक जनसांख्यिकीय खतरा समझा जा रहा है।
- इसमें, धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को नागरिकता का पात्र निर्धारित किया गया है। साथ ही इससे, समानता के अधिकार की गारंटी प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
- यह किसी क्षेत्र में बसने वाले अवैध प्रवासियों की नागरिकता को प्राकृतिक बनाने का प्रयास करता है।
- इसके तहत, किसी भी कानून के उल्लंघन करने पर ‘ओसीआई’ पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति गी गई है। यह एक व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं।
कानून का विरोध:
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) की संवैधानिक और कानूनी वैधता को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। राजस्थान और केरल की सरकारों द्वारा अनुच्छेद 131 के तहत याचिकाएं दायर की गयी हैं । (भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच किसी भी विवाद में सर्वोच्च न्यायालय, किसी भी अन्य अदालत का अपवर्जन करते हुए, की मूल अधिकारिता होती है)।
- केंद्र सरकार के लिए मेघालय, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पंजाब की विधानसभाओं द्वारा अधिनियम के खिलाफ पारित प्रस्ताव भी प्राप्त हो चुके हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens- NRC), नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) से किस प्रकार भिन्न है? क्या दोनों में कोई समानता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के बारे में
- प्रमुख विशेषताएं
- अधिनियम में किन धर्मों को शामिल किया गया है?
- अधिनियम कवर किए गए देश?
- अपवाद
मेंस लिंक:
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
बर्ड फलू
संदर्भ:
हाल ही में, केरल के कुट्टनाड क्षेत्र में ‘बर्ड फ्लू’ (Bird Flu) के ताजा मामलों की पुष्टि हुई है। प्रभावित क्षेत्रों में पक्षियों को पकड़ने के लिए प्रतिक्रिया दल गठित किए गए हैं।
जांच हेतु लिए गए नमूनों में H5N1 इन्फ्लूएंजा वायरस पाया गया है।
बर्ड फ्लू के बारे में:
इसे एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian influenza-AI) भी कहा जाता है।
- यह विश्व भर में वन्य पक्षियों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले ‘एवियन इन्फ्लूएंजा टाइप ए’ वायरस के कारण होने वाली बीमारी है।
- इससे संक्रमित होने पर, हल्के से लेकर गंभीर इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी तक के लक्षण दिखाई देते हैं।
वर्गीकरण:
‘इन्फ्लूएंजा ए’ वायरस को दो प्रकार के प्रोटीन ‘हेमाग्लगुटिनिन’ (Hemagglutinin- HA) और ‘न्यूरोमिनिडेस’ (Neuraminidase- NA) के आधार पर उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
- इसके लगभग 18 HA उपप्रकार और 11 NA उपप्रकार पाए जाते हैं।
- इन दोनों प्रोटीनों के कई संयोजन संभव हैं जैसे, H5N1, H7N2, H9N6, H17N10, आदि।
संचरण:
- हाल ही में, मनुष्यों में एवियन और स्वाइन इन्फ्लूएंजा के संक्रमण की खबरें आई हैं।
- इनका संक्रमण काफी घातक होता है, क्योंकि इसमें मृत्यु दर लगभग 60% तक होती है।
- इस वायरस के संचरण का सबसे आम माध्यम सीधा संपर्क होता है। संक्रमित पोल्ट्री के समीप दूषित जगहों या हवा के संपर्क में आने से भी मनुष्य इस वायरस से संक्रमित हो सकता है।
क्या यह वायरस, इंसानों में ट्रांसफर हो सकता है?
- अब तक मनुष्यों में H5N8 विषाणु संक्रमण के मामले नहीं पाए गए है। आम जनता के लिए इसके संक्रमण का जोखिम काफी कम है।
- अभी तक, मुर्गी के मांस या अंडे के सेवन से मनुष्यों में वायरस पहुचने संबंधी कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। किंतु नियंत्रण और निवारण कार्यों के दौरान बीमार / मृत पक्षियों और दूषित पदार्थो के प्रबंधन करते समय आवश्यक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। उचित ढंग से पके हुए पोल्ट्री उत्पादों को खाने के लिए सुरक्षित माना जाता है।
नियंत्रण उपाय:
जानवरों में वायरस संक्रमण का पता चलने पर, सामान्यतः संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए इनको मारना (Culling) शुरू किया जाता है।
जानवरों की हत्या करने के अलावा, मारे गए सभी जानवरों तथा अन्य संबंधित उत्पादों का सुरक्षित निपटान भी महत्वपूर्ण होता है। अधिकारियों द्वारा संक्रमित परिसरों को सख्ती से परिशोधन कराया जाना और दूषित वाहनों और कर्मियों को संगरोध (Quarantine) किया जाना आवश्यक है।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत को 2019 में एवियन इन्फ्लुएंजा (H5N1) से मुक्त घोषित किया गया था। जब तक देश में एवियन इन्फ्लुएंजा के किसी अन्य प्रकोप की जानकारी नहीं मिलती है, तब तक ‘H5N1 मुक्त’ स्थिति बनी रहेगी। किसी देश के ’एवियन इन्फ्लुएंजा से मुक्त’ होने की घोषणा किसके द्वारा की जाती है?
प्रीलिम्स लिंक:
- बर्ड फ्लू के बारे में
- संचरण
- प्रकार
- लक्षण
मेंस लिंक:
भारतीय अर्थव्यवस्था पर ‘बर्ड फ्लू’ के प्रकोप के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
विश्व स्वर्ण परिषद
(World Gold Council)
संदर्भ:
विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council – WGC) की ‘भारत में बुलियन ट्रेड’ रिपोर्ट के अनुसार:
- 2016-2020 के बीच भारत की सोने की आपूर्ति का 86 फीसदी आयात हुआ है, और देश में ‘उच्च आयात शुल्क’ (Import Duty) के बावजूद सोने के आयात में वृद्धि जारी है।
- साल 2012 में पहली बार शुल्क वृद्धि के बाद से, भारत ने लगभग 6,581 टन सोने का आयात किया है, इस हिसाब से प्रति वर्ष 730 टन सोने का औसतन आयात किया गया है।
- 2020 में भारत ने 30 से भी ज्यादा देशों से 377 टन सोने का आयात किया। इनमें से 55 फीसदी आयात सिर्फ दो देशों, स्विट्जरलैंड (44 फीसदी) और संयुक्त अरब अमीरात (11 फीसदी) से किया गया।
- पिछले पांच सालों में, सोने के डोर का आयात (Gold Dore Imports) पीली धातु के कुल आधिकारिक आयात का 30 फीसदी हिस्सा था।
- मुद्रा के रूप में: 20 वीं शताब्दी के दौरान अधिकांश काल तक सोने को वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाता रहा। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वर्ष 1971 तक स्वर्ण-मानक (Gold Standard) का इस्तेमाल किया जाता रहा।
- मुद्रास्फीति के खिलाफ एक बचाव के रूप में: अंतर्निहित मूल्य और सीमित आपूर्ति के कारण मुद्रास्फीति के समय में सोने की मांग बढ़ जाती है। चूंकि, इसे पतला अथवा डाईल्यूट नहीं किया जा सकता है, इसलिए सोना, मुद्रा के अन्य स्वरूपों की तुलना में, बेहतर कीमत बनाए रखने में सक्षम होता है।
- मौद्रिक ताकत: जब कोई देश निर्यात से अधिक आयात करता है, तो उसकी मुद्रा के मूल्य में ह्रास हो जाता है। दूसरी ओर, यदि कोई देश शुद्ध निर्यातक होता है, तो उसकी मुद्रा के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार, जो देश सोने का निर्यात करते हैं अथवा उनके पास स्वर्ण भण्डार होते हैं, तो सोने की कीमतों में वृद्धि होने पर उनकी मौद्रिक शक्ति में वृद्धि हो जाती है, क्योंकि उनके सकल निर्यात का मूल्य बढ़ जाता है।
‘विश्व स्वर्ण परिषद’ (WGC) के बारे में:
- यह स्वर्ण उद्योग के लिए एक बाज़ार विकास संगठन है।
- यह सोने के खनन से लेकर निवेश तक उद्योग के सभी भागों में कार्य करती है, और इसका उद्देश्य सोने की मांग को प्रोत्साहित करना और बनाए रखना है।
- इसके सदस्यों में विश्व की सभी प्रमुख सोना खनन कंपनियां सम्मिलित हैं।
- यह अपने सदस्यों को एक जिम्मेदार तरीके से खनन करने तथा संघर्ष मुक्त स्वर्ण मानक विकसित करने में सहयोग करती है।
- इसका मुख्यालय यूनाइटेड किंगडम में है तथा भारत, चीन, सिंगापुर, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसके कार्यालय स्थित हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- सोने का आयात और निर्यात
- ‘विश्व स्वर्ण परिषद’ के बारे में
- भारत की सोने की खपत
- भारत में प्रमुख स्वर्ण उत्पादक स्थल
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
न्यूजीलैंड का आजीवन प्रतिबंध
न्यूजीलैंड ने वर्तमान में 14 वर्ष की आयु, अर्थात देश में वर्ष 2008 के बाद जन्मे किसी भी व्यक्ति को जीवन भर के लिए सिगरेट खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया है, अब कोई भी युवा सिगरेट या तंबाकू उत्पाद अपने पूरे जीवन में नहीं खरीद पाएगा।
- न्यूजीलैंड सरकार द्वारा साल 2022 के अंत तक इस बेहद कठोर कानून को लागू किए जाने की योजना है। यह प्रतिबंध तम्बाकू से होने वाली मौतों पर रोक लगाने के लिए विश्व में लागू सभी कानूनों में सबसे सख्त है, इसे देश के असमान रूप से प्रभावित माओरी आदिवासी आबादी पर केंद्रित व्यापक योजना का हिस्सा है।
- न्यूजीलैंड पहले से ही उन 17 देशों में शामिल है जहां बिना मसाले की सिगरेट की पैकेजिंग अनिवार्य की गयी है।
- न्यूजीलैंड में 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर पहले से ही प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन सरकार का मानना है कि 2025 तक राष्ट्रीय वयस्क धूम्रपान दर 5% से कम करने के लक्ष्य को हासित करने के लिए ये उपाय पर्याप्त नहीं हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार
हाल ही में, वर्ष 2021 और वर्ष 2022 के लिए क्रमश: 56वें और 57वें ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा की गयी है।
वर्ष 2021 के लिए असमिया साहित्यकार नीलमणि फूकन को तथा वर्ष 2022 के लिए कोंकणी साहित्यकार दामोदर मौउजो को प्रदान किया जाएगा।
- देश का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार- ‘ज्ञानपीठ’ लेखकों को ‘साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान’ के लिये दिया जाता है।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार, अंग्रेजी भाषा सहित भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में उल्लिखित भारतीय भाषाओं में लेखन के लिए दिया जाता है।
- यह पुरस्कार केवल भारतीय नागरिकों को दिया जाता है।
- पुरस्कार में, विजेता को 11 लाख रुपये नकद, एक प्रशस्ति पत्र, और विद्या की देवी वाग्देवी (सरस्वती) की कांस्य प्रतिकृति प्रदान की जाती है।
- यह पुरुस्कार, एक सांस्कृतिक संगठन ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ द्वारा दिया जाता है।
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