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सामान्य अध्ययन– I
विषय: विश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप को शामिल करते हुए), विश्व (भारत सहित) के विभिन्न भागों में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगों को स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार कारक।
1. भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग के वितरण एवं बदलते पैटर्न पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: सरल
निर्देशक शब्द:
चर्चा कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तथ्यों के साथ उत्तर लिखें।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
स्वतंत्रता पूर्व भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग का एक संक्षिप्त ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
विषय वस्तु:
स्वतंत्रता के बाद भारत में लौह एवं इस्पात उद्योग का विकास कैसे हुआ, इस बारे में लिखिए। भारत में महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्रों को दर्शाने के लिए एक छोटे मानचित्र का उपयोग कीजिए।
समझाइए कि लौह एवं इस्पात के मुख्य उत्पादक मुख्य रूप से विकासशील देश हैं, जिन्होंने अपने विकसित समकक्षों का स्थान ले लिया है, जो हाल के वर्षों तक इस उद्योग में दबदबा रखते थे।
उपर्युक्त के कारणों की व्याख्या कीजिए।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त को सारांशित करते हुए निष्कर्ष निकालिए।
विषय: विश्व भर के मुख्य प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (दक्षिण एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप को शामिल करते हुए), विश्व (भारत सहित) के विभिन्न भागों में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र के उद्योगों को स्थापित करने के लिये ज़िम्मेदार कारक।
2. औद्योगिक अवस्थिति के वेबर के सिद्धांत एवं वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता की व्याख्या कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: कठिन
निर्देशक शब्द:
व्याख्या कीजिए- प्रश्न में पूछी गई जानकारी को सरल भाषा में व्यक्त कीजिए।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
औद्योगिक अवस्थित विभिन्न कारकों पर आधारित होती है। एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए।
विषय वस्तु:
वेबर द्वारा प्रतिपादित विभिन्न धारणाओं एवं बाजार अभिविन्यासों के बारे में लिखिए।
वेबर द्वारा अपने अध्ययन में उल्लिखित लागत के प्रकारों के बारे में लिखिए; जैसे-परिवहन लागत, श्रम लागत एवं संचय प्रभाव।
विश्व भर के उदाहरणों के साथ वर्तमान समय में इस मॉडल की प्रासंगिकता पर टिप्पणी कीजिए।
निष्कर्ष:
उपर्युक्त को सारांशित करते हुए निष्कर्ष निकालिए।
सामान्य अध्ययन– II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
3. भारतीय संविधान का निर्माण लोकतंत्र का आनंदोत्सव था। इस संदर्भ में, भारत की संवैधानिक नैतिकता के बदलते स्वरूप पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: मध्यम
सन्दर्भ: Live Mint
निर्देशक शब्द:
चर्चा कीजिए- ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए तथ्यों के साथ उत्तर लिखें।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
भारतीय संविधान के प्रारूपण एवं अंगीकरण की प्रक्रिया के सन्दर्भ में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
विषय वस्तु:
संवैधानिक नैतिकता की व्याख्या कीजिए।
भारत में संवैधानिक नैतिकता के स्रोतों पर चर्चा कीजिए।
अपने उत्तर के औचित्यीकरण के लिए उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
निष्कर्ष:
संवैधानिक नैतिकता के महत्व पर बल देते हुए निष्कर्ष निकालिए।
विषय: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।
4. पूर्व-विधान परामर्श नीति एक पारदर्शी सरकार की बढ़ती अपेक्षाओं का समर्थन करती है तथा उन विवादास्पद मुद्दों को हल करती है, जिन पर सरकार आम सहमति बनाने का प्रयत्न कर रही है। जांच कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: मध्यम
सन्दर्भ: The Hindu
निर्देशक शब्द:
जांच कीजिए- ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय उस कथन अथवा विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों का परीक्षण करते हुए सारगर्भित उत्तर लिखना चाहिए।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
पूर्व-विधान परामर्श नीति के उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
विषय वस्तु:
2014 में प्रस्तावित पूर्व-विधान परामर्श नीति में शामिल प्रक्रिया के बारे में लिखिए।
विवाद के मुद्दों पर पारदर्शिता बढ़ाने एवं आम सहमति बनाने में नीति के महत्व के बारे में लिखिए।
उपर्युक्त को सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
नीति के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं पर प्रकाश डालिए।
निष्कर्ष:
आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए।
विषय: गरीबी एवं भूख से संबंधित विषय।
5. सामुदायिक रसोई जरूरतमंदों को खाना खिलाने एवं पर्याप्त खाद्य सुरक्षा उपाय के रूप में एक अनुभवजन्य समाधान के रूप में उभरी है। सामुदायिक रसोई के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने का समय आ गया है। विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: सरल
सन्दर्भ: The Hindu
निर्देशक शब्द:
विश्लेषण कीजिए– ऐसे प्रश्नों के उत्तर देते समय सम्बंधित विषय / मामले के बहुआयामी सन्दर्भों जैसे क्या, क्यों, कैसे आदि पर ध्यान देते हुए उत्तर लेखन कीजिए।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
सामुदायिक रसोई की अवधारणा एवं सम्पूर्ण भारत में इसके उदाहरणों की व्याख्या करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिए।
विषय वस्तु:
सामुदायिक रसोई के विभिन्न लाभों के बारे में लिखिए।
भोजन की कमी एवं कुपोषण की व्यापकता के आलोक में अखिल भारतीय सामुदायिक रसोई नीति की आवश्यकता का उल्लेख कीजिए।
निष्कर्ष:
आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए।
सामान्य अध्ययन– III
विषय: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।
6. 26/11 के मुंबई हमलों के बाद से भारत के आतंकवाद विरोधी तंत्र में एक स्पष्ट सुधार हुआ है। हालाँकि, भारत द्वारा जटिल चुनौतियों का सामना करना जारी है। जांच कीजिए। (250 शब्द)
प्रश्न का स्तर: मध्यम
सन्दर्भ: Hindustan Times
निर्देशक शब्द:
जांच कीजिए- ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय उस कथन अथवा विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों का परीक्षण करते हुए सारगर्भित उत्तर लिखना चाहिए।
उत्तर की संरचना:
परिचय:
भारत पर 26/11 के घातक हमलों का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिए।
विषय वस्तु:
26/11 के बाद आतंकवाद विरोधी तंत्र में देखे गए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
आतंकवाद की उभरती हुई प्रकृति एवं इससे उत्पन्न खतरों पर प्रकाश डालिए।
उपरोक्त से निपटने के लिए आवश्यक उपायों का उल्लेख कीजिए।
निष्कर्ष:
आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष निकालिए।
सामान्य अध्ययन– IV
विषय: केस स्टडी।
7. ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से किसी भी समाज में मृत्युदंड का कोई स्थान नहीं होना चाहिए, कम से कम इसलिए नहीं कि यह जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। यह तर्क कि मृत्युदंड हिंसक अपराध को रोक सकता है, उन टिप्पणियों से संतुष्ट किया जा सकता है कि हाल के वर्षों में मृत्युदंड को समाप्त करने वाले ग्यारह देशों में से दस में हत्या की दर में कमी आई है। मृत्युदंड का सबसे गंभीर पहलू न्याय की विफलता का व्यापक साक्ष्य है, जो सबसे मजबूत न्यायिक प्रणालियों में भी उपस्थित होता है, जिससे एक निर्दोष व्यक्ति को अपरिवर्तनीय सजा दिए जाने का वास्तविक खतरा होता है।
मृत्युदंड के साथ भारत का इतिहास बहुत खराब रहा है। 2004 में एक नाबालिग लड़की के बलात्कार एवं हत्या के लिए धनंजय चटर्जी को फांसी दिए जाने तक, कई वर्षों तक देश एक वास्तविक उन्मूलनवादी राज्य था। तब से, लगभग 500 कैदियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। 2014 से नौ व्यक्तियों को फांसी दी गई है और विशेष रूप से यौन हिंसा के अपराधों के लिए मृत्युदंड का विधायी विस्तार हुआ है।
इस पृष्ठभूमि के विरुद्ध, मृत्युदंड एवं मानसिक स्वास्थ्य के मध्य संबंधों पर विगत माह जारी डेथवर्थी रिपोर्ट हमारे समाज को मृत्युदंड पर अपने द्वैधवृत्तिक स्वरुप पर पुनर्विचार करने का आह्वान करती है। रिपोर्ट NIMHANS, बैंगलोर के मानसिक स्वास्थ्य व्यवसायियों के मार्गदर्शन में NLU दिल्ली के प्रोजेक्ट 39A का परिणाम है। अध्ययन में मृत्युदंड की सजा पाने वाले 88 कैदियों और उनके परिवारों का साक्षात्कार शामिल था। इसके निष्कर्षों को दो व्यापक तरीकों से सारांशित किया जा सकता है: पहला, हिंसक व्यवहारों की उत्पत्ति क्या है, जिसके कारण आपराधिक कृत्य हुए एवं दूसरा, मृत्युदंड की सजा पर रहना कैदी के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर सकता है।
प्रतिकूल बचपन के अनुभव खराब शैक्षिक प्राप्ति, हिंसक व्यवहार एवं मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के सबसे महत्वपूर्ण निर्धारक हैं। इस साहचर्य को विविध संदर्भों में प्रदर्शित किया गया है तथा इसमें स्पष्ट रूप से परिभाषित जैविक तंत्र शामिल है। पोषणयुक्त वातावरण की कमी और विषाक्त तनाव के संपर्क में, जब कोई बच्चा भावनात्मक दुर्व्यवहार या उपेक्षा जैसी तीव्र, सतत अथवा दीर्घकालिक प्रतिकूल परिस्थितियों का अनुभव करता है, तो यह जीवन के प्रारंभिक वर्षों में एक स्वस्थ मस्तिष्क वास्तुकला के विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, जो पर्यावरण के प्रभावों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील होता है। इन प्रभावों से युवा वयस्कता में मनोवैज्ञानिक कठिनाइयों की एक श्रृंखला विकसित होती है, जैसे आवेग और निराशा के प्रति न्यून सहनशीलता, जो हिंसक व्यवहार और असामाजिक कृत्यों के अग्रगामी हैं।
द्वितीय अवलोकन, शायद, कम आश्चर्यजनक है: दो-तिहाई कैदियों में पाया गया कि वे मानसिक रोग के एक मौजूदा प्रकरण, विशेष रूप से अवसाद में हैं। लगभग आधे कैदियों का आकलन आत्महत्या के “जोखिम” के रूप में किया गया था। निस्संदेह, यह पीड़ा एक आसन्न, हिंसक मृत्यु के भय के साथ जीने का प्रत्यक्ष परिणाम है। अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि कैदियों की एक महत्वपूर्ण संख्या में संज्ञानात्मक क्षति के प्रमाण उपस्थित थे, अक्सर सिर की चोटों के कारण। इनमें से नौ व्यक्तियों में बौद्धिक अक्षमता पाई गई।
इसका तात्पर्य यह है कि इन व्यक्तियों में मानसिक कार्यप्रणाली में कमी आई थी, जो उत्तरदायी निर्णय निर्धारण एवं सामाजिक मानदंडों का पालन करने की क्षमताओं को प्रभावित करने के लिए अच्छी तरह से पहचाने जाते हैं। फिर भी, उनके किसी भी मामले में उनकी अक्षमता को न्यायालयों के ध्यान में नहीं लाया गया।
अंतत:, डेथवर्थी रिपोर्ट मृत्यु की पंक्ति में रहने वाले कैदियों द्वारा अनुभव किए गए विनाशकारी क्षति की पूर्णतः आश्चर्यजनक तस्वीर नहीं है, जो उनके हिंसक कृत्यों एवं मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित दर्द एवं मृत्यु की पंक्ति में रहने के परिणामस्वरूप पीड़ा की मध्यस्थता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। (250 शब्द)
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- क्या भारत में मृत्युदंड जरूरी है? विचार विमर्श कीजिए।
- बचपन की भावनात्मक अपर्याप्तता को संबोधित करके अपराधों को कैसे रोका जाए?
प्रश्न का स्तर: मध्यम
उत्तर की संरचना:
परिचय:
भारत में ‘दुर्लभतम’ मामलों में मृत्युदंड के प्रावधान का उल्लेख करते हुए उत्तर प्रारम्भ कीजिए।
विषय वस्तु:
भारत में मृत्युदंड से सम्बंधित कमियों का उल्लेख कीजिए। अपने उत्तर की पुष्टि के लिए तर्क एवं उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
भारत में मृत्युदंड की आवश्यकता के बारे में लिखिए। अपने उत्तर की पुष्टि के लिए तर्क एवं उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
बचपन की भावनात्मक कमियों को दूर करके अपराधों को रोकने के विभिन्न तरीकों के बारे में लिखिए।
निष्कर्ष:
भारत में मृत्युदंड के संबंध में एक निष्पक्ष एवं संतुलित राय प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालिए।
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