[Mission 2022] INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 24 November 2021 – PuuchoIAS


 

 

विषयसूची

 

सामान्य अध्ययनII

1. दोषसिद्ध व्यक्तियों के चुनाव में भाग लेने पर सवाल

2. श्रमिक संघों द्वारा ‘श्रम संहिता’ को निरस्त किए जाने की मांग

3. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण

4. डिजिटल टैक्स समझौता

5. अफगानिस्तान के ‘लिथियम’ पर चीनी कंपनियों की नजर

6. अफ्रीकन स्वाइन फीवर

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. तवांग

2. ‘दोस्ती’ युध्याभ्यास

 


सामान्य अध्ययनII


 

विषय: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ।

दोषसिद्ध व्यक्तियों के चुनाव में भाग लेने पर सवाल


संदर्भ:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है, कि क्या सरकार अपराधों के लिए दोषसिद्ध व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के पक्ष में है।

संबंधित प्रकरण:

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर एक याचिका में, चुनाव लड़ने के लिए एक समान अवसर दिए जाने की मांग की गयी है। याचिकाकर्ता का कहना है, यदि कोई दोषी व्यक्ति सरकारी क्लर्क नहीं बन सकता है, तो राजनेता पर भी यही नियम लागू होना चाहिए।

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया:

कानून मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2020 में अदालत में दायर एक हलफनामे में, सरकार ने दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने या किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के विचार को खारिज कर दिया था।

केंद्र सरकार द्वारा आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने के विरोध में दिए गए तर्क:

विधि मंत्रालय ने तर्क देते हुए कहा है, कि सांसद और विधायक विशिष्ट “सेवा शर्तों” से नहीं बंधे होते हैं। राजनेता, नागरिकों और देश की सेवा करने की शपथ से बंधे होते हैं। वे सुचरित्र, अच्छे अंतःकरण और राष्ट्र हित से बंधे होते हैं।

  • 2019 के ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन मामले’ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, “हालांकि राजनीति का अपराधीकरण स्पष्टतः एक कड़वा सत्य है, जो लोकतंत्र के मजबूत दुर्ग के लिए एक दीमक की तरह है, लेकिन जैसा भी हो, अदालत इस विषय पर कानून नहीं बना सकती है”।
  • सरकार का कहना है, कि ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951’ के तहत कारावास अवधि और उसके बाद छह साल की निर्हरता, की सजा विधि-निर्माताओं के लिए पर्याप्त है।

सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज अपराधों संबंधी चिंताएं:

विभिन्न राज्यों में ‘पूर्व एवं मौजूदा सांसदों / विधायकों’ के खिलाफ बड़ी संख्या में आपराधिक मामले लंबित हैं। इस प्रकार के मामलों की सर्वाधिक संख्या ‘उत्तर प्रदेश’ में है।

निर्वाचन आयोग का मत:

भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा, वर्ष 2017 में, शीर्ष अदालत में चुनाव लड़ने के लिए आजीवन प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता का समर्थन किया गया था।

  • निर्वाचन आयोग ने तर्क देते हुए कहा था, कि इस तरह के कदम से “राजनीति के गैर-अपराधीकरण” में सहायता मिलेगी।
  • उस समय, भारत के निर्वाचन आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी सहमति व्यक्त करते हुए कहा था, कि इस तरह के प्रतिबंध, संविधान में उल्लखित ‘समानता के अधिकार’ और ‘मौलिक अधिकारों’ की भावना के अनुरूप होंगे।

समय की मांग:

देश भर में सांसदों / विधायकों के खिलाफ काफी समय से लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई को तेज करने हेतु उच्च न्यायालयों द्वारा विशेष सत्र और मजिस्ट्रियल अदालतों का गठन किए जाने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुपालन में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।

मतदाताओं के ‘सूचना के अधिकार’ को “अधिक प्रभावी और सार्थक” बनाने हेतु शीर्ष अदालत ने कई निर्देश जारी किए हैं; जिनके अनुपालन में-

  • भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं के लिए एक विशिष्ट मोबाइल ऐप लॉन्च की गयी है, जिसमे मात्र एक बटन के स्पर्श से उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का विवरण प्राप्त किया जा सकता है।
  • निर्वाचन आयोग ने ‘अदालत के फैसले के अनुपालन’ किए जाने हेतु राजनीतिक दलों की निगरानी के लिए एक अलग प्रकोष्ठ (सेल) का गठन किया है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8
  2. उच्चत्तम न्यायालय दिशानिर्देश।
  3. ECI – रचना और कार्य।
  4. CEC- नियुक्ति।
  5. उम्मीदवारों के चुनाव से संबंधित मामलों पर निर्वाचन आयोग की शक्तियां।

मेंस लिंक:

राजनीति के अपराधीकरण से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए और इन चिंताओं को दूर करने के लिए उच्चत्तम न्यायालय ने क्या कदम उठाये हैं?

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

श्रमिक संघों द्वारा ‘श्रम संहिता’ को निरस्त किए जाने की मांग


संदर्भ:

संसद द्वारा ‘मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा और औद्योगिक संबंधों’ पर “चार श्रम संहिताओं” (labour codes on wages, social security, occupational safety and industrial relations) को पारित किए हुए एक साल से अधिक समय बीत चुका है, किंतु केंद्र सरकार अभी तक इन कानूनों को लागू करने के लिए नियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया में है, और इनके लागू किए जाने संबंधी कोई तारीख निर्धारित नहीं की गयी है।

यद्यपि, तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी सरकार के फैसले के मद्देनजर, ट्रेड यूनियनों ने इस सप्ताह इन श्रम संहिता के खिलाफ अपने आंदोलन को तेज करने की योजना बनाई है।

ट्रेड यूनियनों की मांगें:

ट्रेड यूनियनों का कहना है कि, मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा पर बनाए गई सहिंताओं (Codes) को हम स्वीकार करते है, और इन्हें तत्काल लागू किया जाए।

ट्रेड यूनियनों द्वारा ‘औद्योगिक संबंध’ (Industrial Relations) और ‘व्यावसायिक सुरक्षा’ (Occupational Safety) पर बनाए गई सहिंताओं पर आपत्ति वयक्त करते हुए इनकी समीक्षा किए जाने की मांग की जा रही है।

‘श्रम संहिताओं’ (labour codes) के बारे में:

कानूनों के इस नवीन सेट में 44 श्रम कानूनों को ‘चार संहिताओं’ में समेकित किया गया है: मजदूरी संहिता (Wage Code), सामाजिक सुरक्षा संहिता (Social Security Code), ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code) और औद्योगिक संबंध संहिता (Industrial Relations Code)।

संसद द्वारा पहले ही इन चारों संहिताओं को पारित किया जा चुका है और, इनके लिए राष्ट्रपति की सहमति भी मिल चुकी है।

ये चार संहिताएँ हैं:

  1. मजदूरी संहिता, 2019 (The Code on Wages, 2019): यह संहिता संगठित और असंगठित क्षेत्र के सभी कर्मचारियों पर लागू होती है। इसका उद्देश्य सभी रोजगारों में ‘वेतन’ / ‘मजदूरी’ और बोनस भुगतान को विनियमित करना है, तथा हर उद्योग, पेशे, व्यवसाय या विनिर्माण में समान प्रकृति के काम करने वाले कर्मचारियों को समान पारिश्रमिक प्रदान करना है।
  2. ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य दशाएं संहिता’ 2020 (Occupational Safety, Health & Working Conditions Code, 2020): इसका उद्देश्य 10 या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों और सभी खदानों और बंदरगाहों / गोदी (Docks) में कम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की स्थिति को विनियमित करना है।
  3. सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 (Social Security Code, 2020): इसके अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा और मातृत्व लाभ से संबंधित नौ कानूनों को समेकित किया गया है।
  4. औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 (Industrial Relations Code, 2020): इसके तहत, तीन श्रम कानूनों अर्थात; ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926, औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) अ‎धिनियम, 1946 और औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 को समेकित किया गया है। इसका उद्देश्य, उद्योगों पर श्रम कानूनों के अनुपालन बोझ को काफी हद तक कम करके, देश में कारोबारी माहौल में सुधार करना है।

इन संहिताओं के साथ समस्याएं:

  • नियमित कामगारों के लिए कार्य-घंटा प्रावधानों में ‘दिन में आठ घंटे से अधिक काम के घंटे तय करने संबंधी’ कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
  • इन संहिताओं में अंशकालिक कर्मचारियों के लिए समान प्रावधान निर्धारित नहीं किए गए हैं।
  • कर्मचारियों के वेतन को प्रभावित करने वाले प्रावधान भी शामिल किए गए हैं।
  • श्रम संहिताओं में, प्रावधानों का पालन न करने और दूसरी बार अपराध करने पर, व्यवसायों पर जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान किया गया है। वर्तमान महामारी की स्थिति में, अधिकांश छोटे व्यवसाय, श्रम संहिताओं में किए गए परिवर्तनों को अपनाने और लागू करने की स्थिति में नहीं हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘श्रम’ (labour) संबंधी विषय संविधान की समवर्ती सूची में शामिल है और इसलिए, केंद्र और राज्यों दोनों को इन चार संहिताओं के तहत अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में कानून बनाने के लिए नियमों को अधिसूचित करना होगा?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. श्रम संहिता के बारे में
  2. प्रमुख प्रावधान
  3. समवर्ती सूची के एक विषय के रूप में श्रम।

मेंस लिंक:

चारो श्रम संहिताओं से जुड़ी चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण


संदर्भ:

देश में सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य संकेतकों पर सबसे व्यापक सर्वेक्षण ‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’–5 (National Family and Health Survey-5) अर्थात NFHS-5 के तथ्यपत्रक (फैक्टशीट) जारी किया गया है।

‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS) के पिछले चार चरण, क्रमशः वर्ष 1992-93, 1998-99, 2005-06 और 2015-16 में आयोजित किए गए थे।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक, प्रजनन क्षमता में कमी आई है, और भारत में वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। वर्ष 2019-2021 में, देश में 1000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं थीं। यह किसी भी ‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS) में और वर्ष 1881 में आयोजित पहली आधुनिक समकालिक जनगणना के बाद से, उच्चतम लिंगानुपात है।
  • सकल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) में कमी आयी है, और यह उस सीमा से नीचे आ गई है जिस पर जनसंख्या के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रतिस्थापित होने की उम्मीद होती है। 2019-2021 में सकल प्रजनन दर (TFR) मात्र 2 थी, जोकि ‘प्रतिस्थापन प्रजनन दर’ (2.1) से ठीक नीचे थी।
  • बच्चों के पोषण-स्तर में सुधार हुआ है, लेकिन इसकी गति काफी धीमी रही है। 2015-16 में आयोजित पिछले ‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ के बाद से बौनापन अर्थात ‘आयु के हिसाब से कम ऊंचाई’ (stunting), निर्बलता (ऊंचाई के हिसाब से कम वजन), और ‘भार में कमी’ (उम्र के हिसाब से कम वजन) वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है।
  • भारत ‘खाद्य सुरक्षित’ हो सकता है, लेकिन पर्याप्त पोषण वयस्कों के लिए भी एक समस्या है। यद्यपि, भारत ‘खाद्य सुरक्षा’ हासिल कर चुका है, लेकिन 60% भारतीय पौष्टिक आहार नहीं लेने की स्थित में नहीं हैं।

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‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS) के बारे में:

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey – NFHS) बड़े पैमाने पर किया जाने वाला एक बहु-चरणीय सर्वेक्षण है, जिसे पूरे भारत में परिवारों के प्रतिनिधि प्रतिदर्शों (नमूनों) में आयोजित किया जाता है।

  • सभी ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’, भारत सरकार के ‘स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय’ नेतृत्व में किए जाते है, और इसमें, मुंबई स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान’ (International Institute for Population Sciences- IIPS) नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • NFHS-5 में विशेष ध्यान वाले कुछ नए क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जैसे मृत्यु पंजीकरण, पूर्व-विद्यालय शिक्षा, बाल टीकाकरण के विस्तारित क्षेत्र, बच्चों के लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों के घटक, मासिक धर्म स्वच्छता, शराब एवं तंबाकू के उपयोग की आवृत्ति, गैर-संक्रामक रोगों (एनसीडी) के अतिरिक्त घटक रोग, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों में उच्च रक्तचाप और मधुमेह को मापने के लिए विस्तारित आयु सीमा। इन सभी से, मौजूदा कार्यक्रमों को मजबूत करने तथा नीतिगत हस्तक्षेप के लिए नई रणनीति विकसित करने के लिए आवश्यक विवरण प्राप्त होगा।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के प्रत्येक क्रमिक चरण के दो विशिष्ट लक्ष्य होते हैं:

  1. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य एजेंसियों द्वारा नीति निर्माण व कार्यक्रम के अन्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर अपेक्षित आवश्यक विवरण प्रदान करना।
  2. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर जानकारी प्रदान करना।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. NFHS 5 के बारे में
  2. सकल प्रजनन दर (TFR) के बारे में
  3. ‘रक्ताल्पता’ क्या है?
  4. NFHS 5 के प्रमुख निष्कर्ष

मेंस लिंक

भारत में बाल स्वास्थ्य पर ‘राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण’–5 द्वारा उजागर की गई चिंताओं के बारे में चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।

डिजिटल टैक्स समझौता


संदर्भ:

हाल ही में, भारत और अमेरिका ने सरकार द्वारा लगाए जाने वाले ‘डिजिटल सेवा करों’ (Digital Services Tax) के लिए एक ‘परिवर्ती पद्धति’ (transitional approach) के संबंध में एक निर्णय लिया है।

  • इसके तहत, समझौते की शर्ते, पिछले सप्ताह अमेरिका और ऑस्ट्रिया, फ्रांस, इटली, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम के बीच तय हुई शर्तों के समान होगी।
  • इस समझौते में, अमेरिका द्वारा प्रस्तावित जवाबी कार्रवाई से राहत प्रदान की गयी है, जबकि अमेज़ॅन, गूगल और फेसबुक जैसे तकनीकी दिग्गजों को भी करारोपण से राहत मिलेगी।

संबंधित प्रकरण:

अमेरिका ने इस साल जनवरी में, भारत की समकारी लेवी (Equalisation Levy) को भेदभावपूर्ण और कार्रवाई योग्य बताया था, और मार्च में भारत से आयातित झींगा, लकड़ी के फर्नीचर, सोना, चांदी और आभूषण वस्तुओं और बासमती चावल सहित लगभग 40 उत्पादों पर 25 प्रतिशत ‘प्रतिशोधी शुल्क’ (Retaliatory Tariffs) लगाए जाने की बात कही थी।

USTR द्वारा की गई गणना के अनुसार, इस शुल्क के तहत करारोपित राशि लगभग 55 मिलियन डॉलर तक हो सकती है। और लगभग इतनी ही राशि गूगल, अमेज़न, लिंकेडिन जैसी अमेरिका-स्थित कंपनियों द्वारा भारत के लिए DST के रूप में देय हो सकती है।

पृष्ठभूमि:

अंतरराष्ट्रीय कर प्रणाली में किए जाने वाले एक बड़े सुधार में, इस साल 8 अक्टूबर को, भारत सहित 136 देशों ने ‘वैश्विक कर मानदंडों’ में बदलाव के लिए सहमति व्यक्त की है। यह बदलाव सुनिश्चित करते हैं कि, बहुराष्ट्रीय कंपनियां जहां कहीं भी काम करती हैं, उन्ही स्थानों पर न्यूनतम 15% की दर से करों का भुगतान करेंगी।

हालांकि, इस समझौते के तहत, भागीदार देशों को, सभी डिजिटल सेवा करों और अन्य इसी तरह के एकतरफा उपायों को हटाने और भविष्य में इस तरह के उपायों को लागू नहीं करने के लिए प्रतिबद्ध  होना अनिवार्य किया गया है।

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महत्व:

यह समझौता एक व्यावहारिक समाधान का उदहारण पेश करता है, जिसके तहत यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है, कि सभी भागीदार देश ‘एक नई बहुपक्षीय कर व्यवस्था पर  ‘आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ / G20 टैक्स संबंधी समावेशी समझौता रूपरेखा’ (OECD-G20 inclusive framework deal) के सफल कार्यान्वयन हेतु अपने सामूहिक प्रयासों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

समझौता फ्रेमवर्क के दो घटक:

  1. अंतरराष्ट्रीय और डिजिटल कंपनियों के साथ काम करना। पहला घटक यह सुनिश्चित करता है, कि डिजिटल कंपनियों सहित बड़े बहुराष्ट्रीय उद्यमों द्वारा कारोबार करने व लाभ अर्जित करने वाले स्थान पर करों का भुगतान किया जाए।
  2. लाभ का सीमा-पार अंतरण और ‘ट्रीटी शॉपिंग’ (treaty shopping) का समाधान करने करने हेतु निम्न-कर क्षेत्राधिकारों से निपटना। इस घटक का उद्देश्यवैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर-दर’ के माध्यम से देशों के बीच प्रतिस्पर्धा-स्तर निर्धारित करना है। वर्तमान में प्रस्तावित ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर-दर’ (Global Minimum Corporate Tax Rate) 15% है।

अपेक्षित परिणाम:

यदि यह समझौता लागू किया जाता है, तो नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग जैसे देशों, जहाँ करों की दर काफी कम है और बहामास और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह जैसे तथाकथित टैक्स हेवन की चमक फीकी पड़ सकती है।

भारत पर प्रभाव / निहितार्थ:

इस प्रकार की वैश्विक कर व्यवस्था लागू होने पर, भारत के लिए गूगल, अमेज़न और फेसबुक जैसी कंपनियों पर लगाए जाने वाली ‘समकारी लेवी’ (Equalisation Levy) को वापस लेना होगा।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘देश-दर-देश’ (Country-by-Country: CbC) रिपोर्ट के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. OECD – सदस्यों की भौगोलिक स्थिति के उद्देश्य, संरचना और अवलोकन।
  2. OECD बनाम WEF
  3. किसी समझौते पर हस्ताक्षर (signing) और अनुसमर्थन (ratification) के बीच अंतर।
  4. BEPS क्या है?

मेंस लिंक:

‘देश-दर-देश’ (Country-by-Country: CbC) रिपोर्ट क्या हैं? इसके महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।

अफगानिस्तान के ‘लिथियम’ पर चीनी कंपनियों की नजर


संदर्भ:

तालिबान शासन द्वारा कई चीनी कंपनियों को अफगानिस्तान के ‘लिथियम निक्षेपों’ (lithium deposits) का दोहन करने के लिए संभावित परियोजनाओं का “ऑन-साइट निरीक्षण” करने के लिए हरी बत्ती दे दी गयी है, और चीनी कंपनियों ने अपना काम शुरू कर दिया है।

पृष्ठभूमि:

‘लिथियम’ अफगानिस्तान में बड़ी मात्रा में मौजूद संसाधनों में से एक है, लेकिन मुख्यतः राजनीतिक अस्थिरता और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण अभी तक इसका दोहन नहीं किया गया है।

आगे की चुनौतियां:

अफगानिस्तान मे सुरक्षा स्थिति, भोजन की कमी, गंभीर आर्थिक संकट समेत कई चुनौतियों में से एक है।

लिथियम (Lithium) के बारे में:

यह एक नरम तथा चांदी के समान सफेद धातु होती है तथा मानक परिस्थितियों में, यह सबसे हल्की धातु और सबसे हल्का ठोस तत्व है।

  • यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील और ज्वलनशील होती है अत: इसे खनिज तेल में संगृहित किया जाना चाहिये।
  • यह एक क्षारीय एवं दुर्लभ धातु है।

प्रमुख विशेषताएं एवं गुण:

  • इसमें किसी भी ठोस तत्व की तुलना में उच्चतम विशिष्ट ऊष्मा क्षमता होती है।
  • लिथियम का सिंगल बैलेंस इलेक्ट्रॉन इसे विद्युत् का अच्छा संवाहक बनाता है।
  • यह ज्वलनशील होता है तथा हवा एवं पानी के संपर्क में आने पर विस्फोटित भी हो सकता है।

उपयोग:

  1. लिथियम, नई प्रौद्योगिकियों के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है और इसका उपयोग सिरेमिक, शीशा, दूरसंचार और अंतरिक्ष संबंधी उद्योगों में किया जाता है।
  2. लिथियम का सर्वाधिक उपयोग मुख्य रूप से, लिथियम आयन बैटरी निर्माण में, लूब्रिकैटिंग ग्रीस, एल्युमिनियम के साथ विमान के पुर्जे बनाने में, रॉकेट प्रणोदकों के लिए उच्च ऊर्जा योजक, मोबाइल फोन के लिए ऑप्टिकल मॉड्यूलेटर तथा थर्मोन्यूक्लियर अभिक्रियाओं में किया जाता है।

नियत पदार्थ (Prescribed substance):

थर्मोन्यूक्लियर अनुप्रयोगों के कारण, लिथियम को परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत “नियत पदार्थ” के रूप में घोषित किया गया है। अधिनियम के अंतर्गत, देश के विभिन्न भूवैज्ञानिक क्षेत्रों में लिथियम की खोज के लिए AMD को अनुमति प्रदान की गई है।

परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के तहत, “नियत पदार्थ” का तात्पर्य, केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित उन पदार्थों से होता है, जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उसके उपयोग अथवा इससे संबंधित पदार्थो जैसे कि, यूरेनियम, प्लूटोनियम, थोरियम, बेरिलियम, ड्यूटेरियम या उनके यौगिकों के अनुसंधान में उपयोग किये जा सकते है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. लिथियम के बारे में
  2. गुण
  3. उपयोग
  4. भारत में लिथियम का भंडार
  5. विश्व में लिथियम का भंडार

मेंस लिंक:

‘लिथियम आयन बैटरी’ के लाभों पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

अफ्रीकन स्वाइन फीवर


संदर्भ:

वियतनाम में ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ (African swine fever – ASF) व्यापक रूप से फैल रहा है। इसकी वजह से स्थानीय कृषि उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है और पिछले साल मारे गए सूअरों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है।

सरकार के अनुसार, इस वर्ष ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ का प्रकोप, देश के 63 शहरों और 57 प्रांतों के 2,275 क्षेत्रों में फैल चुका है। इस साल अब तक 230,000 सूअरों को मार जा चुका है।

अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:

  • ASF एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित होते है।
  • इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
  • इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है, और इस बुखार का कोई इलाज नहीं है।
  • इसके लिए अभी तक किसी मान्यता प्राप्त टीके की खोज नहीं की गयी है, इसी वजह से, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए, संक्रमित जानवरों को मार दिया जाता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘अफ्रीकन स्वाइन फीवर’ और ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ में अंतर जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. क्या स्वाइन फीवर मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है?
  2. क्या यह एक वायरल बीमारी है?
  3. इसकी खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी?
  4. 2020 में कौन से देश इससे प्रभावित हुए हैं?
  5. क्या इसके खिलाफ कोई टीका उपलब्ध है?

मेंस लिंक:

अफ्रीकी स्वाइन स्वाइन फीवर, इसके लक्षण और प्रसरण पर एक टिप्पणी लिखिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


तवांग

ऐतिहासिक रूप से ‘तवांग’ (Tawang) तिब्बत का एक भाग था।

  • वर्ष 1914 में हुए ‘शिमला समझौते’ के तहत ‘मैकमोहन रेखा’ को ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच नई सीमा के रूप में माना गया था। इस संधि के तहत तिब्बत ने तवांग सहित अपने कुछ क्षेत्रों को अंग्रेजों के लिए दे दिया था। लेकिन, चीन ने इसके लिए मान्यता नहीं दी।
  • वर्ष 1950 में, तिब्बत की वास्तविक स्वतंत्रता ख़त्म हो गयी और चीन ने इसे नव स्थापित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना में शामिल किया।
  • बाद में, वर्ष 1959 में, वर्तमान दलाई लामा तिब्बत से पलायन करने के दौरान ‘तवांग’ के रास्ते भारत आए थे।
  • 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान, तवांग पर कुछ समय के लिए चीन का कब्ज़ा हो गया था, लेकिन युद्ध के अंत में चीन ने स्वेच्छा से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया।
  • इसके बाद, तवांग फिर से भारतीय प्रशासन के अधीन आ गया, लेकिन चीन ने तवांग सहित अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना दावा नहीं छोड़ा है।

‘दोस्ती’ युध्याभ्यास

मालदीव में, भारत, मालदीव और श्रीलंका के मध्य ‘द्विवार्षिक त्रिपक्षीय तट रक्षक युध्याभ्यास ‘दोस्ती’  (Biennial Trilateral Coast Guard Exercise ‘DOSTI’) का 15 वां संस्करण जारी है। वर्ष 2021 में, इस युध्याभ्यास की शुरुआत को 30 वर्ष हो गए हैं।


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