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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1. महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन
सामान्य अध्ययन–III
1. भारतीय रिजर्व बैंक की नई पहलें
2. केंद्र सरकार द्वारा सात राज्यों को अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति
3. महामारी के दौरान साइबर अपराधों में 500% की वृद्धि
4. निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2019
5. सुप्रीम कोर्ट में हेट स्पीच पर याचिका
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा
2. COP27 जलवायु शिखर सम्मेलन की मेजबानी
3. काशी कॉरिडोर परियोजना
सामान्य अध्ययन–I
विषय: महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन, जनसंख्या एवं संबद्ध मुद्दे, गरीबी और विकासात्मक विषय, शहरीकरण, उनकी समस्याएँ और उनके रक्षोपाय।
महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘भारतीय सेना’ पर अवमानना की कार्रवाई किए जाने की चेतावनी दिए जाने के पश्चात, केंद्र सरकार ने अदालत के लिए ‘सभी पात्र महिला सेना अधिकारियों के लिए ‘स्थायी कमीशन’ (Permanent Commission – PC) का विकल्प आरंभ किए जाने का आश्वासन दिया है।
संबंधित प्रकरण:
उच्चत्तम न्यायालय ने, फरवरी 2020 में सरकार से सशस्त्र बलों में पात्र महिला अधिकारियों को ‘स्थायी कमीशन’ के साथ-साथ, युद्ध के अलावा, अन्य सभी सेवाओं में ‘कमांड पोस्टिंग’ दिए जाने को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।
‘लेफ्टिनेंट कर्नल नीतीशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया’ मामला: 25 मार्च 2021 को, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना की ‘चयनात्मक मूल्यांकन प्रक्रिया’ में ‘स्थायी कमीशन’ की मांग करने वाली महिला अधिकारियों के साथ भेदभाव किया जाता है और जिससे ये महिला अधिकारी असंगत रूप से प्रभावित होती है।
‘स्थायी कमीशन’ का क्या अर्थ है?
‘स्थायी कमीशन’ (Permanent Commission) का मतलब होता है, सेना में सेवानिवृत्ति होने तक कार्यकाल। जबकि, ‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’ में कार्यकाल की अवधि 10 साल की होती है, और इसमें 10 साल की सेवा के अंत में ‘स्थायी कमीशन’ छोड़ने या चुनने का विकल्प होता है। यदि किसी अधिकारी को ‘स्थायी कमीशन’ नहीं मिल पाता है तो वह अधिकारी अपने कार्यकाल में ‘चार साल’ के विस्तार का विकल्प चुन सकता है।
सेना में महिलाएं: मामले की पृष्ठभूमि
सेना में ‘महिला अधिकारियों’ को शामिल किए जाने की शुरुआत 1992 में हुई थी।
- ‘महिला अधिकारियों’ को ‘सेना शिक्षा कोर’, सिग्नल कोर, इंटेलिजेंस कोर, और कोर ऑफ इंजीनियर्स जैसी कुछ चुनी हुई शाखाओं में पांच साल की अवधि के लिए कमीशन किया गया था। ‘महिला विशेष भर्ती योजना’ (Women Special Entry Scheme – WSES) के तहत रंगरूटों के लिए, शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) योजना के तहत भर्ती पुरुष समकक्षों की तुलना में, कमीशन देने से पहले दिए जाने वाले प्रशिक्षण की अवधि कम होती थी।
- वर्ष 2006 में, WSES योजना को SSC योजना में परिवर्तित कर दिया गया था, और इसे महिला अधिकारियों के लिए विस्तारित कर दिया गया। इसके तहत, महिला अधिकारियों को 10 साल की अवधि के लिए कमीशन किया जाता था, जिसे कुल 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
- सेवारत WSES अधिकारियों को नई SSC योजना में जाने या पूर्ववर्ती WSES के तहत सेवा जारी रखने का विकल्प दिया गया। हालांकि, उनके लिए पहले निर्दिष्ट की गयी शाखाओं में दी गयी भूमिकाओं तक ही सीमित रखा गया – इसमें ‘पैदल सेना’ और आर्मर्ड कोर जैसी लड़ाकू शाखाओं को शामिल नहीं किया गया था।
वर्तमान में मुख्य मुद्दा क्या है?
वर्तमान में, पुरुष SSC अधिकारी 10 साल की सेवा के अंत में ‘स्थायी कमीशन’ का विकल्प चुन सकते हैं, जबकि महिला अधिकारियों के लिए यह विकल्प उपलब्ध नहीं है। इसी तरह, महिला अधिकारियों को ‘कमांड पोस्टिंग’ से भी बाहर रखा जाता है। इसके अलावा, ‘सरकारी पेंशन’ पाने के लिए अधिकारी के रूप में न्यूनतम 20 साल की सेवा आवश्यक होती है, और चूंकि, महिला अधिकारियों को अधिकतम 14 साल के सेवाकाल के पश्चात् सेना से सेवानिवृत कर दिया जाता है, जिसकी वजह से महिला अधिकारी, सरकारी पेंशन के लिए अर्हक भी नहीं हो पाती हैं।
सरकार द्वारा महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिए जाने के खिलाफ दिए गए तर्क:
- मातृत्व, बच्चे की देखभाल, मनोवैज्ञानिक सीमाओं आदि का, सेना में महिला अधिकारियों की नौकरी पर असर पड़ता है।
- परिवार से अलग रहना, जीवनसाथी के करियर की संभावनाएं, बच्चों की शिक्षा, गर्भावस्था के कारण लंबे समय तक अनुपस्थिति, मातृत्व आदि, सैन्य सेवाओं की जरूरतों को पूरा करने हेतु महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती होते हैं।
- शारीरिक सीमाएँ: सैनिकों को दुर्गम इलाकों, अलग-थलग एवं वियुक्त चौकियों, तथा प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों में काम करना पड़ सकता है। अधिकारियों को सामने से नेतृत्व करना होता है। लड़ाकू कार्यों के लिए उन्हें उत्कृष्ट शारीरिक रूप स्थिति में होना चाहिए। सरकार के अनुसार, महिलाएं जमीनी युद्धक भूमिकाओं में काम करने के लायक नहीं होती हैं।
- व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ: आर्मी यूनिट्स में “सभी पुरुषों का एक विशिष्ट माहौल” होता है। यूनिट्स में महिला अधिकारियों की उपस्थिति के लिए “संयमपूर्ण व्यवहार” की आवश्यकता होगी। सेना में पुरुष-सैनिक मुख्य रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं,और हो सकता है कि वे किसी महिला नेता के आदेश को स्वीकार करने की स्थिति में न हो।
इंस्टा जिज्ञासु:
भारत में महिला सशक्तिकरण से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- SSC क्या है?
- स्थायी कमीशन क्या है?
- अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 16।
- उच्चत्तम न्यायालय के निर्णय का अवलोकन।
- WSES क्या है?
मेंस लिंक:
पुरुषों के समान महिलाओं को स्थायी कमीशन देने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सेना में समानता की दिशा में एक “बड़ी छलांग” के रूप में देखा जा रहा है। टिप्पणी कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।
भारतीय रिजर्व बैंक की नई पहलें
संदर्भ:
हाल ही में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की दो अभिनव ग्राहक केंद्रित पहलों का शुभारंभ किया।
- ‘भारतीय रिज़र्व बैंक – खुदरा प्रत्यक्ष (आरबीआई-आरडी) योजना’ (RBI – Retail Direct Scheme) और
- रिजर्व बैंक- एकीकृत लोकपाल योजना (Reserve Bank-Integrated Ombudsman Scheme – RB-IOS)
दोनों योजनाएं देश में निवेश के दायरे का विस्तार करेंगी और निवेशकों के लिए पूंजी बाजार तक पहुंच को आसान और अधिक सुरक्षित बनाएंगी।
‘भारतीय रिज़र्व बैंक – खुदरा प्रत्यक्ष (आरबीआई-आरडी) योजना’ क्या है?
आरबीआई-आरडी (RBI – Retail Direct Scheme) योजना का उद्देश्य, खुदरा निवेशकों के लिए सरकारी प्रतिभूति बाजार तक पहुंच में वृद्धि करना है।
- खुदरा प्रत्यक्ष योजना से देश के छोटे निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का सरल और सुरक्षित माध्यम प्राप्त होगा।
- इसके तहत, निवेशक आसानी से आरबीआई के पास अपना सरकारी प्रतिभूति खाता नि:शुल्क खोल सकेंगे और उसका रख-रखाव कर सकेंगे।
- यह योजना, केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों, राज्य विकास ऋणों और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGBs) में निवेश करने के लिए एक पोर्टल की सुविधा प्रदान करती है।
- इस योजना के लागू होने के बाद, भारत ऐसी सुविधा प्रदान करने वाले कुछ चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा।
‘रिजर्व बैंक-एकीकृत लोकपाल योजना’ के बारे में:
रिजर्व बैंक- एकीकृत लोकपाल योजना (Reserve Bank-Integrated Ombudsman Scheme) का उद्देश्य केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित संस्थाओं के खिलाफ ग्राहकों की शिकायतों के समाधान हेतु शिकायत निवारण तंत्र में और सुधार करना है।
- इस योजना का मुख्य विषय ‘एक राष्ट्र-एक लोकपाल’ पर आधारित है, जिसमें एक पोर्टल, एक ईमेल और ग्राहकों को अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए एक पता होगा।
- रिज़र्व बैंक ने तीन लोकपाल योजनाओं को एक योजना में समेकित करने का निर्णय लिया है, और प्रक्रिया दक्षता बढ़ाने हेतु शिकायतों की प्राप्ति और प्रारंभिक जांच को केंद्रीकृत करके, सेवा में खामियों से संबंधित सभी शिकायतों को कवर करते हुए योजना को सरल बनाया है।
- रिजर्व बैंक- एकीकृत लोकपाल योजना (RB-IOS) के तहत, क्षेत्राधिकार संबंधी सीमाओं के साथ-साथ शिकायत करने के सीमित आधारों की समस्या को दूर किया गया है। आरबीआई द्वारा ग्राहकों को दस्तावेज जमा करने, दर्ज की गई शिकायतों की स्थिति को ट्रैक करने, और फीडबैक देने हेतु, ‘एकल संदर्भ बिंदु उपलब्ध कराया जाएगा।
कृपया ध्यान दें कि:
केंद्रीय बैंक के वैकल्पिक शिकायत निवारण तंत्र में, आरबीआई की मौजूदा तीन लोकपाल योजनाओं अर्थात्, बैंकिंग लोकपाल योजना, 2006; गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए लोकपाल योजना, 2018; और डिजिटल लेनदेन के लिए लोकपाल योजना, 2019 को एकीकृत किया गया है।
इन योजनाओं का महत्व:
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जब बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण आरबीआई पर दरों में वृद्धि किए जाने का दबाव बढ़ रहा है।
- सख्त मौद्रिक नीति लागू किए जाने से बॉन्ड की मांग कमजोर होने की संभावना है, जिससे सरकार के लिए अपने आगामी रिकॉर्ड स्तर पर शुरू किए जाने वाले ऋण-कार्यक्रम को निष्पादित करना चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
- फिलीपींस जैसे, एशिया के अन्य उभरते बाजार वाले देशों ने भी महामारी से लड़ने के लिए नागरिकों से धन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि फाइन पेपर (Fine Paper) क्या होता है?
प्रीलिम्स लिंक:
- सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं?
- अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रतिभूतियां
- G-Secs जारी करने के लिए केंद्र और राज्यों की शक्तियां
- RBI की भूमिका।
- इन प्रतिभूतियों की कीमतों को प्रभावित करने वाले कारक
मेंस लिंक:
सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) क्या होती हैं? इनके महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय।
केंद्र सरकार द्वारा सात राज्यों को अतिरिक्त ऋण लेने की अनुमति
संदर्भ:
सात राज्यों यथा छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय, पंजाब, राजस्थान और तेलंगाना ने वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही तक पूंजीगत व्यय के लिए वित्त मंत्रालय द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है।
इसे ध्यान में रखते हुए प्रोत्साहन के तौर पर इन राज्यों को व्यय विभाग द्वारा 16,691 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि उधार लेने की अनुमति दे दी गई है।
पृष्ठभूमि:
वृद्धिशील उधारी के लिए उपयुक्त पात्र बनने हेतु, राज्यों के लिए वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के आखिर तक अपने पूंजीगत व्यय लक्ष्यों का कम से कम 45 प्रतिशत करना आवश्यक था।
छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय, पंजाब, राजस्थान और तेलंगाना राज्यों ने वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा कर लिया है।
राज्यों को ऋण लेने हेतु केंद्र से अनुमति की आवश्यकता:
संविधान के अनुच्छेद 293 (3) के अनुसार, राज्यों पर केंद्र सरकार का पिछला बकाया होने के मामले में, राज्यों को ऋण लेने हेतु केंद्र की सहमति प्राप्त करना आवश्यक होता है।
- अनुच्छेद 293 (4) के तहत राज्यों को केंद्र द्वारा कुछ शर्तों के अधीन भी ऋण लेने हेतु सहमति दी जा सकती है।
- व्यवहार में, केंद्र इस शक्ति का प्रयोग वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार कर रहा है।
वर्तमान में, प्रत्येक राज्य, केंद्र का ऋणी है और इस प्रकार, सभी राज्यों को ऋण लेने के लिए केंद्र की सहमति लेना आवश्यक है।
क्या केंद्र को इस प्रावधान के तहत शर्तें लागू करने हेतु निर्बाध शक्ति प्राप्त है?
- इस विषय पर उपर्युक्त प्रावधान ही कोई दिशा-निर्देश नहीं देता है, और अनुकरण करने हेतु केंद्र द्वारा निर्बाध रूप से शर्ते लागू करने संबंधी पूर्व में भी को उदहारण नहीं है।
- दिलचस्प बात यह है कि इस प्रश्न को 15 वें वित्त आयोग की संदर्भ-शर्तों में सम्मिलित किया गया था, किंतु वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट में इसे संबोधित नहीं किया गया था।
केंद्र द्वारा राज्यों के लिए शर्तें कब लगायी जा सकती है?
केंद्र द्वारा राज्यों के लिए शर्तें, ऋण लेने हेतु सहमति देते समय लगायी जा सकती हैं, तथा यह सहमति राज्यों के केंद्र सरकार के प्रति ऋणी होने पर ही दी जा सकती है।
इन प्रतिबंधों की आवश्यकता
- केंद्र को इस शक्ति प्रदान करने का एक संभावित उद्देश्य किसी ऋण लेने वाले राज्य की क्षमताओं को देखते हुए अपने हितों की रक्षा करना था।
- एक अन्य व्यापक उद्देश्य ‘समष्टि आर्थिक स्थिरता’ सुनिश्चित करने का भी प्रतीत होता है, क्योंकि राज्य की ऋणग्रस्तता पूरे देश के वित्तीय स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
प्रीलिम्स लिंक:
- अनुच्छेद 293 किससे संबंधित है?
- क्या राज्यों को बाजार से ऋण लेने हेतु अनुमति की आवश्यकता होती है?
- वित्त आयोग- संरचना
- वित्त आयोग के कार्य
मेंस लिंक:
राज्यों को उधार लेते समय केंद्र की अनुमति की आवश्यकता क्यों है? क्या यह सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
महामारी के दौरान साइबर अपराधों में 500% की वृद्धि
संदर्भ:
वार्षिक साइबर सुरक्षा और हैकिंग कांफ्रेंस ‘c0c0n’ के 14वें संस्करण का आयोजन केरल पुलिस द्वारा किया जा रहा है।
इस आयोजन में, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने देश में बढ़ रहे साइबर हमलों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया है।
साइबर सुरक्षा की आवश्यकता:
महामारी के दौरान कई फर्मों द्वारा कर्मचारियों को अपने घरों से काम करने की अनुमति देने के परिणामस्वरूप, डेटा धीरे-धीरे खुले डोमेन में पहुँचता जा रहा है, जिसकी वजह से संवेदनशील जानकारी, सुरक्षा कमजोरियों के लिए अतिसंवेदनशील हो गई है। डिजिटल भुगतान में वृद्धि होने से जटिल साइबर अपराध भी बढ़े हैं।
- इसके अलावा, वैश्विक महामारी के दौरान भारत में साइबर अपराध लगभग 500 प्रतिशत बढ़ गए हैं।
- ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम’, 2000 (Information Technology Act, 2000) के प्रावधान, व्यवसायों के कामकाज संबंधी बदलते तौर-तरीकों और साइबर स्पेस में अपराधों के नए युग के बदलावों पर विचार करने हेतु पर्याप्त रूप से उपयुक्त नहीं हैं।
समय की मांग:
यद्यपि, देश में एक नयी ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति’ (National Cybersecurity Strategy) लागू होने के लिए तैयार है, किंतु, महामारी के बाद के युग में, साइबर अपराधियों द्वारा ‘डेटा’ को राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, इसे देखते हुए देश को एक ‘डेटा सुरक्षा कानून’ की भी सख्त जरूरत है।
हमें ड्रोन, रैंसमवेयर, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) उपकरणों जैसी नई तकनीकों से उभरते खतरों और ऐसे साइबर हमलों में राज्य की भूमिका पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
साइबर अपराधों के बारे में जागरूकता फैलाने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- एक ऑनलाइन साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल की शुरुआत की गयी है, ताकि शिकायतकर्ता बाल पोर्नोग्राफी/बाल यौन शोषण सामग्री, बलात्कार/सामूहिक बलात्कार की तस्वीरों या यौन स्पष्ट सामग्री से संबंधित शिकायतों की रिपोर्ट कर सकें।
- देश में साइबर अपराध से संबंधित मुद्दों को व्यापक और समन्वित तरीके से हल करने हेतु भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre – I4C) का गठन करने की योजना बनायी गई है।
- देश में महत्वपूर्ण सूचना ढाँचे की सुरक्षा हेतु ‘राष्ट्रीय अति-संवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र’ (National Critical Information Infrastructure Protection Centre- NCIIPC) की स्थापना।
- डिजिटल सेवा प्रदान करने वाले सभी संगठनों के लिए साइबर सुरक्षा की घटनाओं को CERT-In में शीघ्रता से रिपोर्ट करने के लिए अनिवार्य किया गया है।
- दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम और फ्री टूल्स का पता लगाने और हटाने के लिए साइबर स्वच्छता केंद्र (Cyber Swachhta Kendra) शुरू किया गया है।
- साइबर हमलों और साइबर आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संकट प्रबंधन योजना (Crisis Management Plan) तैयार की गयी है।
आगे क्या करने की जरूरत है?
- नियमित रूप से अलर्ट/परामर्श जारी किए जाएँl
- कानून प्रवर्तन कर्मियों/अभियोजकों/न्यायिक अधिकारियों का क्षमता निर्माण/प्रशिक्षण।
- साइबर फोरेंसिक सुविधाओं आदि में सुधार करना।
- जांच में तेजी लाइ जाए।
अंत में, ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ भारत के संविधान के अनुसार राज्य के विषय हैं। राज्य/केंद्र शासित प्रदेश अपने कानून प्रवर्तन तंत्र के माध्यम से अपराधों की रोकथाम, पता लगाने, जांच और अभियोजन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के बारे में
- राष्ट्रीय अति-संवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC)
- CERT-In
- साइबर स्वच्छ्ता केन्द्र
मेंस लिंक:
डिजिटल इंडिया में साइबर सुरक्षा की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
निजी डेटा संरक्षण विधेयक 2019
संदर्भ:
हाल ही में, ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ (Personal Data Protection Bill) पर विमर्श करने हेतु गठित ‘संसदीय समिति’ द्वारा निम्नलिखित सिफारिशें की गयी हैं:
- विधेयक के मौजूदा मसौदे में ‘सरकार के लिए दी गयी छूटों’ के संदर्भ में, इन छूटों का लाभ उठाए जाने पर उचित प्रतिबंध लगाकर सीमित किया जाए।
- सरकार को केवल “न्यायसंगत, निष्पक्ष, उचित और यथोचित प्रक्रिया” के तहत छूट दी जानी चाहिए।
- सरकार, “अनाम डेटा सहित” गैर-निजी डेटा को ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ के दायरे से बाहर रख सकती है।
पृष्ठभूमि:
‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ 2019 के मसौदे को वर्ष 2019 में एक ‘संयुक्त संसदीय समिति’ (JPC) के लिए भेजा गया था। इस समिति को विधेयक के विभिन्न प्रावधानों पर अपनी रिपोर्ट एवं सिफारिश देने का कार्य सौंपा गया था।
संबंधित प्रकरण:
वर्तमान में, ड्राफ्ट डेटा प्रोटेक्शन बिल के विवादास्पद अनुच्छेद 35 में, सरकार और उसकी एजेंसियों को विधेयक के किसी भी और सभी प्रावधानों का पालन करने से, बगैर किसी रोक-टोक के, पूरी छूट दिए जान का प्रावधान है।
आधार प्राधिकरण UIDAI और आयकर विभाग जैसी एजेंसियां, पहले ही इस विधेयक के प्रावधानों से छूट दिए जाने की मांग कर रही हैं।
निजी डेटा संरक्षण (PDP) विधेयक 2019:
- इस विधेयक की उत्पत्ति का स्रोत, न्यायमूर्ति बी.एन. श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में देखा जा सकता है।
- ‘निजता के अधिकार’ संबंधी मामले (जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ) में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के दौरान, सरकार द्वारा इस समिति का गठन किया गया था।
निजी डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 में डेटा विनियमन:
विधेयक में तीन प्रकार की निजी जानकारी को शामिल किया गया हैं:
- गंभीर
- संवेदनशील
- सामान्य
अन्य प्रमुख प्रावधान:
- डेटा स्वामी: विधेयक के अनुसार, डेटा स्वामी (Data principal) वह व्यक्ति है जिसका डेटा संग्रहीत और संसाधित किया जा रहा है।
- सोशल मीडिया कंपनियां: जिन सोशल मीडिया कंपनियों को डेटा की मात्रा और संवेदनशीलता के साथ-साथ उनके कारोबार जैसे कारकों के आधार पर महत्वपूर्ण डेटा न्यासी माना जाता है, उन्हें अपना स्वयं का उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र विकसित करना होगा।
- एक स्वतंत्र नियामक ‘डेटा प्रोटेक्शन एजेंसी’ (DPA) द्वारा आकलन और ऑडिट की देखरेख की जाएगी।
- प्रत्येक कंपनी में एक डेटा संरक्षण अधिकारी (DPO) होगा, जो लेखा परीक्षा, शिकायत निवारण, रिकॉर्डिंग रखरखाव और अधिक के लिए DPA के साथ संपर्क करेगा।
- विधेयक के अंतर्गत, व्यक्तियों को डेटा पोर्टेबिलिटी का अधिकार, और अपने स्वयं के डेटा तक पहुंचने और स्थानांतरित करने की अधिकार भी प्रदान किया गया है।
- भुलाए जाने का अधिकार: इस अधिकार के तहत, किसी व्यक्ति को डेटा संग्रह और इसके प्रकाशित करने के संबंध में सहमति को हटाने की अनुमति दी गयी है।
अपवाद एवं छूट:
निजी डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक 2019 में, एक विवादास्पद अनुच्छेद 35 शामिल किया गया है, जिसके तहत “भारत की संप्रभुता और अखंडता,” “सार्वजनिक व्यवस्था”, “विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध” और “राज्य की सुरक्षा” संबंधी मामले का हवाला देकर केंद्र सरकार को सरकारी एजेंसियों के लिए इस अधिनियम के सभी या किसी भी प्रावधान को निलंबित करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
विधेयक से संबंधित चिंताएं:
यह विधेयक दोधारी तलवार की तरह है। एक ओर यह विधेयक, भारतीयों को डेटा-स्वामित्व का अधिकार देकर उनके निजी डेटा की रक्षा करता है, वहीं दूसरी ओर, विधेयक में केंद्र सरकार को छूट दी गयी है, जोकि निजी डेटा को संसाधित करने के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
सरकार द्वारा, जरूरत पड़ने पर ‘डेटा-स्वामियों’ की स्पष्ट अनुमति के बगैर संवेदनशील निजी डेटा को भी संसाधित किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, साइबर सुरक्षा की बुनियादी बातें, धन-शोधन और इसे रोकना।
‘हेट स्पीच’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
संदर्भ:
हाल के दिनों में नफरत भरे भाषणों (Hate Speeches) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई हैं।
- एक याचिका में अदालत से ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गयी है। और,
- दूसरी याचिका में ‘हेट स्पीच’ के संबंध में विशेष प्रावधान बनाए जाने की मांग की गई है। इस याचिका में जोर देकर कहा गया है कि ‘हेट स्पीच’ और ‘अफवाह फैलाने’ से निपटने के लिए ‘भारतीय दंड संहिता’ के प्रावधान पर्याप्त नहीं है।
दोनों याचिकाएं ‘अमीश देवगन मामले’ में 2020 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आधारित है, जिसमे “‘द्वेषपूर्ण भाषण’ (Hate Speech)” को, एकता और बंधुत्व के खिलाफ और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार’ का एक अनिवार्य पहलू, ‘मानवीय गरिमा’ का उल्लंघन बताया गया था।
संबंधित प्रकरण:
याचिकाकर्ताओं ने, रैलियों और नफरत भरे भाषणों की एक श्रृंखला के माध्यम से मुसलमानों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार को लक्षित करने वाली संगठित घटनाओं से चिंतित होकर शीर्ष अदालत में याचिकाएं दायर की हैं।
याचिकाकर्ताओं ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘हेट स्पीच’ पर, और ‘भीड़ द्वारा हिंसा एवं लिंचिंग की घटनाओं’ पर वर्ष 2018 में जारी किए गए दिशानिर्देशों को लागू करने की मांग की है।
‘द्वेषपूर्ण भाषण’ (Hate Speech) क्या है?
‘द्वेषपूर्ण भाषण’, धार्मिक विश्वासों, यौन अभिविन्यास, लिंग आदि के आधार पर हाशिए पर स्थित व्यक्तियों के विशेष समूह के खिलाफ नफरत के लिए उकसाना है।
विधि आयोग द्वारा ‘हेट-स्पीच’ पर अपनी 267 वीं रिपोर्ट में कहा कि इस तरह के बयानों में व्यक्तियों और समाज को आतंकवाद, नरसंहार और जातीय हिंसा करने के लिए भड़काने की क्षमता होती है।
‘हेट स्पीच’ पर लगाम लगाने की आवश्यकता के कारण:
- आंतरिक सुरक्षा: वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे एक झूठे वीडियो के कारण फैले थे, इसके द्वारा जिसने सांप्रदायिक जुनून भडकाया गया था।
- ‘द्वेषपूर्ण भाषण’ उग्रवादी भावनाओं को भड़काते है।
- मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) ।
- झूठी ख़बरें तथा भ्रामक जानकारी: दिल्ली दंगे।
उपाय:
- फेसबुक, गूगल, ट्विटर और बाइटडांस सहित विश्व की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां, भारत में अपने प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों को रोकने के लिए एक उद्योग-व्यापी गठबंधन तैयार करने पर विचार कर रही हैं।
- भारत के निर्वाचन आयोग के लिए फर्जी खबरों को तैयार करने वालों पहचान करने के लिए तकनीकी कंपनियों के साथ गठजोड़ करना चाहिए।
- अंतिम उपयोगकर्ताओं को शिक्षित करना चाहिए।
- सरकार के लिए इंटरनेट मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म के कारण होने वाले संभावित नुकसानों से गहन स्तर पर निपटने हेतु पर नीतिगत रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।
- जर्मनी में, यदि सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफ़ॉर्म अनुचित सामग्री हटाने में निरंतर असफल रहती हैं तो उन पर € 50 मिलियन तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसी भांति भारत में भी जुर्माना लागू किया जा सकता है।
समय की मांग:
- हेट स्पीच, हाशिए पर रहने वाले समूहों को समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों से बाहर धकेलने की एक विवाद-जनक प्रक्रिया है, जो नफरत के प्रचार प्रसार और भेदभाव को बढ़ावा देती है। अपने सबसे खतरनाक रूप में, इसे व्यापक रूप से ‘जातीय-संहार’ का प्रणेता माना जाता है।
- लोक अधिकारियों को ‘निगरानी के कर्तव्य की अवहेलना करने’ के लिए और अदालत के आदेशों का पालन न करने तथा सतर्कता समूहों’ (vigilante groups) को सांप्रदायिक विद्वेष भड़काने, देश के नागरिकों के खिलाफ नफरत फैलाने, और कानूनों को अपने हाथों में लेने से रोकने के लिए कार्रवाई नहीं करने के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के बारे में
- अधिनियम की धारा 66A
- भारत के विधि आयोग के बारे में
- आईटी अधिनियम के तहत ‘हेट स्पीच’ का विनियमन
मेंस लिंक:
‘द्वेषपूर्ण भाषण’ (हेट स्पीच) क्या है? इस पर किस प्रकार अंकुश लगाया जा सकता है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा
हाल ही में, भारत द्वारा एक क्षेत्रीय सुरक्षा शिखर सम्मेलन की मेजबानी की गई थी। इस शिखर सम्मेलन में ईरान और रूस सहित आठ देशों ने भाग लिया।
- यह ‘क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता’ (Regional Security Dialogue) की तीसरी बैठक थी, (इससे पहले की दो बैठकें ईरान में 2018 और 2019 में आयोजित की गई थीं)।
- इस सम्मेलन में प्रत्येक देश का प्रतिनिधित्व उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों द्वारा किया गया था।
- सम्मेलन के दौरान, यह घोषणा की गई घोषणा के अनुसार, अफगानिस्तान और उसके क्षेत्रों का इस्तेमाल आतंकवादियों को पनाह देने या प्रशिक्षित करने, या आतंकवाद के किसी भी कार्य को वित्तपोषित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
- देशों ने एक संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसे “अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा” (Delhi Declaration on Afghanistan) का नाम दिया गया है।
- घोषणापत्र में, “सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान, आतंकवाद की निंदा, मौलिक अधिकार सुनिश्चित करना, सामूहिक सहयोग और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका” पर जोर दिया गया है।
COP27 जलवायु शिखर सम्मेलन की मेजबानी
- COP26, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन-2021, हाल ही में यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में संपन्न हुआ।
- सम्मेलन के अंत में, यह निर्णय लिया गया कि वर्ष 2022 में COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का आयोजन मिस्र के ‘शर्म अल-शेख’ (Sharm El-Sheikh) में किया जाएगा और COP28 का आयोजन, वर्ष 2023 में ‘संयुक्त अरब अमीरात’ में आयोजित किया जाएगा।
काशी कॉरिडोर परियोजना
- इस परियोजना के तहत, काशी के मंदिरों को, लगभग 320 मीटर लंबे और 20 मीटर चौड़े एक पक्के पैदल मार्ग से, गंगा के घाटों से जोड़ा गया है।
- परियोजना में, एक संग्रहालय, पुस्तकालय, तीर्थयात्रियों के लिए एक सुविधा केंद्र और एक मुमुक्ष भवन (मुक्ति गृह) का भी निर्माण किया जाएगा।
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