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विषयसूची
सामान्य अध्ययन–I
1.आदि शंकराचार्य की 12 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण
सामान्य अध्ययन–II
1. तमिलनाडु द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का विरोध
2. हरियाणा निजी क्षेत्र आरक्षण कानून 15 जनवरी से प्रभावी
सामान्य अध्ययन–III
1. उत्तर भारत में तेंदुओं के विलुप्त होने का खतरा
2. वैश्विक मीथेन संकल्प
3.विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अबू धाबी में ‘गैर-मुस्लिम नागरिक विवाह’ के लिए स्वीकृति
सामान्य अध्ययन–I
विषय:भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।
आदि शंकराचार्य की 12 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण
संदर्भ:
प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा उत्तराखंड के केदारनाथ में ‘आदि शंकराचार्य’ (Adi Shankaracharya) की एक 12 फुट ऊँची प्रतिमा का अनावरण किया गया है। ऐसा माना जाता है, कि नौवीं शताब्दी में इसी स्थान पर ‘आदि शंकराचार्य’ ने 32 वर्ष की आयु में समाधि ग्रहण की थी।
‘आदि शंकराचार्य’ के बारे में:
- ‘आदि शंकराचार्य’ का जन्म केरल राज्य में बहने वाली सबसे बड़ी नदी ‘पेरियार’ के तट पर स्थित ‘कलाड़ी’ (Kaladi) नामक गांव में हुआ था।
- वे प्रसिद्ध विद्वान ‘गोविंदाचार्य’ के शिष्य थे।
- शंकराचार्य, आजीवन अद्वैत वेदांत का ध्वज लेकर निरतंर आगे बढ़ते हुए, बौद्ध और जैन धर्म सहित प्रचलित दार्शनिक परंपराओं को चुनौती देते रहे।
- ऐसा माना जाता है, कि उन्होंने बद्रीनाथ और केदारनाथ धामों में अनुष्ठान प्रथाओं की स्थापना की थी।
साहित्यिक रचनाएँ:
- आदि शंकराचार्य को आम तौर पर 116 रचनाओं के सृजक के रूप में जाना जाता है – इनमें दस उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र और गीता पर प्रसिद्ध भाष्य, और विवेकचूड़ामणि, मनीषा पंचकम, और सौंदर्यलाहिरी आदि काव्य रचनाएँ शामिल हैं।
- उन्होंने शंकरस्मृति जैसे ग्रंथों की भी रचना की, जिसमे ‘नंबूदरी ब्राह्मणों’ को सामाजिक तौर पर शीर्ष स्थान पर स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
‘अद्वैत वेदांत’ क्या है?
अद्वैत वेदांत में ‘कट्टर अद्वैतवाद’ के दर्शन को सुस्पष्ट किया गया है। इस संशोधनवादी विश्व दर्शन का स्रोत प्राचीन उपनिषद ग्रंथों में प्राप्त होता है।
- अद्वैत वेदांतियों के अनुसार, उपनिषदों में ‘अद्वैत’ के एक मौलिक सिद्धांत के बारे में बताया गया है, जिसे ‘ब्राह्मण’ कहा जाता है और यही सभी चीजों की वास्तविकता है।
- अद्वैतवादी ‘ब्रह्म’ को पारलौकिक सत्ता और अनुभवजन्य अनेक्य के रूप में मानते हैं।
- इनके अनुसार, व्यक्ति की अहं (आत्मा) का मूल तत्व ‘ब्रह्म’ होता है। अद्वैत वेदांत में मूल बल इस बात पर दिया जाता है, कि आत्मा एक विशुद्ध इच्छा रहित चेतना होती है।
- यह अद्वितीय, अद्वैत, अनंत जीव और संख्यात्मक रूप से ‘ब्रह्म’ के समान होती है।
‘शंकर’ की विवादित परंपरा:
आदि शंकराचार्य के दर्शन का सार, इस अनेकों बार उद्धृत सूत्रीकरण में निहित है: “ब्रह्मा सत्यं जगन-मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः” (अर्थात, केवल ब्रह्म ही सत्य है, यह दुनिया एक भ्रम है / और जीव ब्रह्म से पृथक नहीं है)।
- जाति व्यवस्था के संरक्षको द्वारा असमान और अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को सही ठहराने के लिए ‘शंकर’ की टीका-टिप्पणियों का हवाला दिया जाता है, जबकि अन्य विद्वानों द्वारा इसे ‘वाग्विस्तार’ बताया जाता है और ये आचार्य शंकर के दृष्टिकोण के दूसरे पहलू को समझने के लिए ‘मनीषा पंचकम’ जैसी रचनाओं को पढ़ने का सुझाव देते हैं।
- शंकर के दर्शन की व्याख्या करने वालों में ‘श्री नारायण गुरु’ सहित अन्य विद्वान् भी शामिल है, जो कहते हैं कि ‘अद्वैत वेदांत’ में ‘बौद्ध विचारकों’ की कोटियों को उधार लिया गया है, और इस दर्शन को ‘प्रछन्न बुद्ध’ बताते हैं। ‘श्री नारायण गुरु’ ने 20वीं शताब्दी में ‘जाति के सिद्धांत और प्रथाओं को खत्म करने के लिए ‘अद्वैत वेदांत’ के मूल स्वरूप को पड़े जाने का प्रस्ताव दिया था।
प्रीलिम्स लिंक:
- आदि शंकराचार्य के बारे में
- साहित्यिक कृतियाँ
- उनका दर्शन
- अद्वैत वेदांत क्या है?
- दर्शन के विभिन्न संप्रदाय
मेंस लिंक:
आदि शंकराचार्य की देन के बारे में चर्चा कीजिए।
सामान्य अध्ययन–II
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
तमिलनाडु द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ का विरोध
संदर्भ:
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ‘एम के स्टालिन’ ने हाल ही में कहा है, कि राज्य में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ 2020 (National Education Policy – NEP 2020) लागू नहीं की जाएगी और प्रदेश की नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिए शीघ्र ही एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा।
तमिलनाडु द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के विरोध का कारण:
तमिलनाडु सरकार द्वारा दिए जा रहे तर्क:
- केंद्र सरकार द्वारा अनुशंसित ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ (NEP 2020) “कुलीन वर्ग के लिए” उपयुक्त है और इसके लागू होने पर शिक्षा ‘कुछ वर्गों तक ही सीमित’ होकर रह जाएगी।
- राज्य द्वारा NEP में प्रस्तावित त्रिभाषा नीति का विरोध किए जाने के अलावा, तमिल और अन्य भाषाओं के ऊपर संस्कृत को दी जाने वाली प्रमुखता पर भी सवाल उठाया है।
- और सबसे पहले, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ राज्य के महत्वपूर्ण विषयक्षेत्र –‘शिक्षा’- में हस्तक्षेप करती है।
इसलिए, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ (एनईपी) को सामाजिक न्याय, संघवाद, बहुलवाद और समानता के विरुद्ध नीति के रूप में देखा जा रहा है।
क्या तमिलनाडु के लिए NEP को लागू नहीं करना और अपनी शिक्षा नीति तैयार करना संभव नहीं है?
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में अंतर्निहित ‘नीति’ शब्द ही इंगित करता है, कि यह केवल एक सिफारिश है, और किसी के लिए या किसी पर बाध्यकारी नहीं है।
- साथ ही ‘शिक्षा’ समवर्ती सूची का विषय है, और संघ सूची में शामिल नहीं है।
इससे पहले, जब राजीव गांधी 1986 में दूसरी ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ लाए थे, तो कई दलों ने इसका विरोध किया था। ‘कृषि नीति’ भी एक केंद्रीय नीति है, और संसद द्वारा कानून पारित होने के बाद भी, जिसके खिलाफ कई विधानसभाओं द्वारा प्रस्ताव पारित किए गए हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘प्रथम कोठारी आयोग’ (first Kothari Commission) के बारे में जानते हैं? इसकी सिफारिशें क्या थीं?
प्रीलिम्स लिंक:
- नई शैक्षणिक संरचना के अंतर्गत 5 + 3 + 3 + 4 डिजाइन का अवलोकन।
- नई नीति के अनुसार ‘विशेष शैक्षिक क्षेत्र’ क्या हैं?
- पॉलिसी के अनुसार ‘लैंगिक समावेशी कोष’ की स्थापना कौन करेगा?
- प्रस्तावित अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट की भूमिका।
- उच्च शिक्षा में ‘सकल नामांकन अनुपात’ लक्ष्य?
- प्रस्तावित ‘राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच’ के बारे में।
मेंस लिंक:
हाल ही में घोषित नई शिक्षा नीति 2020 के महत्व पर चर्चा कीजिए।
विषय:सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
हरियाणा निजी क्षेत्र आरक्षण कानून 15 जनवरी से प्रभावी
संदर्भ:
हरियाणा सरकार द्वारा ‘निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण प्रदान करने हेतु बनाया गया कानून (‘हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोजगार विधेयक’, 2020) 15 जनवरी, 2022 से लागू करने का आदेश दिया गया है।
विधान के प्रमुख बिंदु:
- इस कानून के तहत ‘निवास प्रमाण पत्र’ (अधिवास) प्रस्तुत करने वाले लोगों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75% आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- यह कानून 10 वर्ष की अवधि तक लागू होगा।
- 30,000 रुपये से कम सकल मासिक वेतन वाली नौकरियों के लिए स्थानीय उम्मीदवारों में से भर्ती की जाएंगी।
इस विधान के पीछे तर्क:
उद्योगों की प्रगति और अर्थव्यवस्था के बीच सही संतुलन बनाने के साथ-साथ उद्योग और युवाओं के लिए एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण का निर्माण करना।
विधेयक से संबंधित चिंताएं:
- इस क़ानून के लागू होने से, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ राज्य से बाहर जा सकती हैं।
- इस प्रकार का आरक्षण, उत्पादकता और उद्योग प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करता है।
इस प्रकार के विधानों से संबंधित कानूनी विवाद:
- नौकरियों में अधिवास के आधार पर आरक्षण का सवाल: हालांकि, शिक्षा में अधिवास के आधार पर आरक्षण काफी सामान्य है, लेकिन, अदालतों द्वारा इसे लोक रोजगार संबंधित मामलों में लागू करने के खिलाफ रही हैं। यह नागरिकों को प्राप्त ‘समानता के मौलिक अधिकार’ से संबंधित प्रश्न खड़े करता है।
- निजी क्षेत्र के लिए रोजगार में आरक्षण का पालन करने को विवश करने का मुद्दा: लोक रोजगार में आरक्षण लागू करने के लिए, राज्य को संविधान के अनुच्छेद 16 (4) से शक्ति प्राप्त होती है। लेकिन, संविधान में, निजी क्षेत्र के लिए रोजगार रोजगार में आरक्षण लागू करने हेतु राज्य की शक्तियों के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है।
- यह क़ानून अनुच्छेद 19(1)(g) के मापदंडो पर न्यायिक परीक्षण का सामना करने में विफल हो सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- विधेयक के प्रमुख प्रावधान
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 किससे संबंधित है?
- आरक्षण बनाम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15।
मेंस लिंक:
हरियाणा द्वारा 75% निजी नौकरियों को आरक्षित करने के निर्णय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए।
सामान्य अध्ययन–III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
उत्तर भारत में तेंदुओं के विलुप्त होने का खतरा
संदर्भ:
हाल ही में, दुनिया भर में जानवरों की आबादी के अस्तित्व के लिए ‘सड़कों’ से उत्पन्न होने वाले खतरे को निर्धारित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन किया गया है।
भारत से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष:
- सड़कों से होने वाली मौतों के कारण, उत्तर भारत में तेंदुए के विलुप्त होने का खतरा 83 प्रतिशत बढ़ गया है।
- यदि सड़कों से होने वाली मौतों का यही स्तर बना रहता है, तो अगले 50 वर्षों में विलुप्त होने वाली सबसे संवेदनशील के रूप में चिह्नित किए गई चार पशु-प्रजातियों की आबादी में, उत्तर भारत के तेंदुओं की आबादी सर्वाधिक संकट में है।
- सर्वाधिक संकटमय प्रजातियों में तेंदुए के बाद ब्राजील में पाए जाने वाली ‘मॉनेड वुल्फ’ (Maned Wolf) और छोटी चित्तीदार बिल्ली (little spotted cat) और दक्षिणी अफ्रीका में पाया जाने वाला भूरे लकड़बग्घा (Brown Hyena) का स्थान है।
- अध्ययन के अनुमानुसार – 83% की जोखिम-दर पर, उत्तर भारतीय तेंदुए की आबादी 33 वर्षों में विलुप्त हो जाएगी।
अगस्त 2021 में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ‘तेंदुओं, सह-परभक्षियों और शाकभक्षियों की स्थिति – 2018’ (Status of Leopards, Co-predators and Megaherbivores-2018) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गयी थी।
यह रिपोर्ट 29 जुलाई, 2021 – ‘विश्व बाघ दिवस’ पर जारी की गई।
रिपोर्ट के अनुसार:
- भारत में आधिकारिक रूप से तेंदुओं की संख्या में वर्ष 2014-2018 के बीच 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में देश में 12,852 तेंदुए थे, जबकि वर्ष 2014 में इनकी संख्या मात्र 7,910 थी।
- अनुमानित रूप से तेंदुओं की सर्वाधिक संख्या, मध्य प्रदेश (3,421) में है, इसके बाद कर्नाटक (1,783) और महाराष्ट्र (1,690) का स्थान है।
‘तेंदुए’ (Leopard) के बारे में:
- वैज्ञानिक नाम- पेंथेरा पर्दुस (Panthera pardus)
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची- I में सूचीबद्ध
- CITES के परिशिष्ट- I में शामिल
- IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध
- तेंदुए की नौ उप-प्रजातियों को पहचान की जा चुकी है, और ये प्रजातियाँ पूरे अफ्रीका और एशिया में पाई जाती हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ’ (IUCN) द्वारा ‘सड़कों से होने वाली मौतों’ (Roadkill) को 10 स्तनधारी प्रजातियों के लिए खतरे के रूप में घोषित किया गया है?
प्रीलिम्स लिंक:
- तेंदुए की IUCN स्थिति
- CITES क्या है?
- तेंदुए की उप-प्रजातियां।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत विभिन्न अनुसूचियां।
- भारत में बाघों की गणना किसके द्वारा की जाती है?
- IUCN की रेड लिस्ट के तहत विभिन्न श्रेणियां
मेंस लिंक:
भारत में तेंदुओं की संख्या का आकलन करने हेतु एक अलग पशु-गणना क्यों आवश्यक है? चर्चा कीजिए।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
वैश्विक मीथेन संकल्प
संदर्भ:
हाल ही में, यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित ‘संयुक्त राष्ट्र COP26 जलवायु सम्मेलन’ में ‘वैश्विक मीथेन संकल्प’ / ‘ग्लोबल मीथेन प्लेज’ (Global Methane Pledge) की शुरुआत की गयी थी।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के संयुक्त नेतृत्व में शुरू किया गया एक प्रयास है।
- इस संकल्प पर अब तक 90 से अधिक देशों द्वारा हस्ताक्षर किए जा चुके हैं।
‘वैश्विक मीथेन संकल्प’ के बारे में:
- इस संकल्प की घोषणा पहली बार सितंबर में अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा की गई थी। यह मुख्यतः इस दशक के अंत तक मीथेन उत्सर्जन में एक तिहाई की कटौती करने हेतु एक समझौता है।
- इस समझौते का एक मुख्य उद्देश्य वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को, वर्ष 2020 के स्तर से 30 प्रतिशत तक कम करना है।
मीथेन उत्सर्जन को सीमित करने की आवश्यकता:
मीथेन (Methane- CH4), ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ के बाद वातावरण में सबसे प्रचुर मात्रा में पायी जाने वाले दूसरी ग्रीनहाउस गैस है, और इसलिए, मीथेन उत्सर्जन को कम करने से संबंधित संकल्प काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से वैश्विक औसत तापमान में हुई 1.0 डिग्री सेल्सियस शुद्ध वृद्धि में लगभग आधी वृद्धि ‘मीथेन’ की वजह से हुई है।
- मीथेन उत्सर्जन में तेजी से कटौती का किया जाना, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों पर की जाने वाली कार्रवाई का एक पूरक है, और इसे निकट भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबसे प्रभावी रणनीति के रूप में माना जाता है।
‘जलवायु परिवर्तन’ के लिए मीथेन से निपटना क्यों महत्वपूर्ण है?
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, यद्यपि ‘मीथेन’ का वायुमंडलीय जीवनकाल (CO2 के सदियों के जीवनकाल तुलना में 12 वर्ष) बहुत कम होता है, फिर भी यह बहुत अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, और वातावरण में रहने के दौरान काफी अधिक मात्रा में ऊर्जा को अवशोषित करती है।
- मीथेन से संबंधित अपनी तथ्य-तालिका में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘मीथेन’ को शक्तिशाली प्रदूषक के रूप में दर्ज किया गया है, इसके अलावा वायुमंडल में छोड़े जाने के लगभग 20 साल बाद भी इसमें ग्लोबल वार्मिंग क्षमता ‘कार्बन डाइऑक्साइड’ से 80 गुना अधिक होती है।
- महत्वपूर्ण रूप से, 2.3 प्रतिशत की औसत मीथेन रिसाव दर “कोयले की बजाय गैस से होने वाले अधिकांश जलवायु लाभ को नष्ट कर देती है”।
- IEA के अनुसार, 75 प्रतिशत से अधिक मीथेन उत्सर्जन को वर्तमान मौजूदा तकनीकों से समाप्त किया जा सकता है, और इसमें से 40 प्रतिशत तक उत्सर्जन की सामप्ति बिना किसी अतिरिक्त लागत के की जा सकती है।
मानव जनित मीथेन उत्सर्जन के स्रोत:
मानव-निर्मित मीथेन का अधिकांश उत्सर्जन तीन क्षेत्रों से होता है: जीवाश्म ईंधन, अपशिष्ट और कृषि।
- जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में, तेल और गैस निष्कर्षण, प्रसंस्करण और वितरण, 23 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। कोयला खनन में 12 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन होता है।
- अपशिष्ट क्षेत्र में, अपशिष्ट भरावक्षेत्र और अपशिष्ट जल से लगभग 20 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन होता है।
- कृषि क्षेत्र में, मवेशियों के गोबर और आंत्रिक किण्वन से लगभग 32 प्रतिशत तथा धान की खेती से 8 प्रतिशत मीथेन उत्सर्जन होता है।
विभिन्न देशों की उत्सर्जन कटौती क्षमता में अंतर:
- यूरोप में खेती, जीवाश्म ईंधन परिचालन और अपशिष्ट प्रबंधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने की सर्वाधिक क्षमता है।
- भारत के पास, अपशिष्ट क्षेत्र से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम करने की सर्वाधिक क्षमता है।
- कोयला उत्पादन और पशुधन से होने वाले मीथेन उत्सर्जन का शमन करने में चीन, पशुधन और तेल एवं गैस से होने वाले मीथेन उत्सर्जन का शमन करने में अफ्रीका की क्षमता सर्वाधिक है।
- जीवाश्म ईंधन उद्योग में कम लागत वाली मीथेन कटौती करने की सर्वाधिक क्षमता है।
सुझाव:
- जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिए मानव जनित मीथेन उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कटौती की जानी चाहिए।
- इस तरह की कटौती से वर्ष 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग में 3 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि रोकी जा सकती है।
- इससे वार्षिक रूप से होने वाली 260,000 असामयिक मौतों, 775,000 अस्थमा से संबंधित अस्पताल के दौरों तथा 25 मिलियन टन फसल-हानि को भी रोका जा सकता है।
व्यवहार में किए जाने वाले तीन परिवर्तन – खाद्य अपशिष्ट और भोजन-सामग्री के नुकसान को कम करना, पशुधन प्रबंधन में सुधार और स्वस्थ आहार (शाकाहारी या कम मांस और डेयरी उत्पाद) को अपनाना – अगले कुछ दशकों में प्रति वर्ष 65-80 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकते है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप ‘एंटी-मेथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट: हरित धारा’ के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- मीथेन क्या है? इसका उत्पादन किस प्रकार किया जाता है?
- मीथेन हाइड्रेट क्या है?
- कोलबेड मीथेन बनाम शेल गैस।
- कोयलाकरण क्या है?
- कोलबेड मीथेन निष्कर्षण के दौरान उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसें?
मेंस लिंक:
मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिए।
विषय:आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA)
संदर्भ:
‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (EGI) ने त्रिपुरा पुलिस द्वारा पत्रकारों सहित 102 लोगों को ‘विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम’ (Unlawful Activities (Prevention) Act) के तहत आरोपित करने की कार्रवाई पर संक्षोभ व्यक्त किया है। यह कार्रवाई राज्य में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर रिपोर्टिंग और लेखन के लिए की गयी थी।
विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के बारे में:
1967 में पारित, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act-UAPA) का उद्देश्य भारत में गैरकानूनी गतिविधि समूहों की प्रभावी रोकथाम करना है।
- यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके द्वारा केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैरकानूनी घोषित कर सकती है।
- इसके अंतर्गत अधिकतम दंड के रूप में मृत्युदंड तथा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
UAPA के तहत, भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों को आरोपित किया जा सकता है।
- यह अधिनियम भारतीय और विदेशी अपराधियों पर समान रूप से लागू होता है, भले ही अपराध भारत के बाहर विदेशी भूमि पर किया गया हो।
- UAPA के तहत, जांच एजेंसी के लिए, गिरफ्तारी के बाद चार्जशीट दाखिल करने के लिए अधिकतम 180 दिनों का समय दिया जाता है, हालांकि, अदालत को सूचित करने के बाद इस अवधि को और आगे बढ़ाया जा सकता है।
वर्ष 2019 में किए गए संशोधनों के अनुसार:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को, एजेंसी द्वारा मामले की जांच के दौरान, आतंकवाद से होने वाली आय से निर्मित संपत्ति पाए जाने पर उसे ज़ब्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- यह अधिनियम राज्य में डीएसपी अथवा एसीपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के अतिरिक्त, आतंकवाद संबंधी मामलों की जांच करने हेतु ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को जांच का अधिकार प्रदान करता है।
- अधिनियम में किसी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में अभिहित करने का प्रावधान भी शामिल है।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित UAPA की रूपरेखा:
जून 2021 में, विधिविरूद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act- UAPA), 1967 की एक अन्य रूप से “अस्पष्ट” धारा 15 की रूपरेखा को परिभाषित करते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा, अधिनियम की धारा 18, 15, 17 को लागू करने पर कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांत निर्धारित किए गए थे।
UAPA की धारा 15, 17 और 18:
- अधिनियम की धारा 15, ‘आतंकवादी कृत्यों’ से संबंधित अपराधों को आरोपित करती है।
- धारा 17 के तहत आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाने पर दण्डित करने का प्रावधान किया गया है।
- धारा 18, के अंतर्गत ‘आतंकवादी कृत्य करने हेतु साजिश आदि रचने’ या आतंकवादी कृत्य करने हेतु तैयारी करने वाले किसी भी कार्य’ संबंधी अपराधों के लिए आरोपित किया जाता है।
अदालत द्वारा की गई प्रमुख टिप्पणियां:
- “आतंकवादी अधिनियम” (Terrorist Act) को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
- अदालत ने ‘हितेंद्र विष्णु ठाकुर मामले’ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि, ‘आतंकवादी गतिविधियां’ वे होती है, जिनसे निपटना, सामान्य दंड कानूनों के तहत कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता से बाहर होता है।
क्या आप जानते हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) की धारा 3(1) के तहत, “यदि केंद्र सरकार को इस बात का यकीन हो जाता है, कि कोई एसोसिएशन / या संस्था, एक गैरकानूनी एसोसिएशन है, या बन गई है, तो वह सरकारी राजपत्र में ‘अधिसूचना’ के माध्यम से, ऐसे संगठनों को गैर-कानूनी घोषित कर सकती है?
प्रीलिम्स लिंक:
- विधिविरूद्ध क्रियाकलाप की परिभाषा
- अधिनियम के तहत केंद्र की शक्तियां
- क्या ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा लागू है?
- 2004 और 2019 में संशोधन द्वारा किए गए बदलाव।
- क्या विदेशी नागरिकों को अधिनियम के तहत आरोपित किया जा सकता है?
मेंस लिंक:
क्या आप सहमत हैं कि विधिविरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) संशोधन अधिनियम मौलिक अधिकारों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वतंत्रता का बलिदान करना न्यायसंगत है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अबू धाबी में ‘गैर-मुस्लिम नागरिक विवाह’ के लिए स्वीकृति
हाल ही में, अबू धाबी के शासक द्वारा जारी एक नए फरमान के अनुसार, अब से अमीरात में गैर-मुसलमानों को नागरिक कानून के तहत शादी, तलाक और बच्चों के संयुक्त संरक्षण हासिल करने की अनुमति होगी।
- इस नए क़ानून उद्देश्य “अमीरात को ‘प्रतिभा और कौशल के लिए सबसे आकर्षक स्थल’ बनाना तथा इसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को वृद्धि करना है।
- यह, क्षेत्रीय वाणिज्यिक केंद्र के रूप में अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए संयुक्त अरब अमीरात का नवीनतम कदम है। इससे पहले यहाँ अन्य खाड़ी देशों के समान, शादी और तलाक पर व्यक्तिगत स्थिति कानून इस्लामी शरिया सिद्धांतों पर आधारित थे।
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