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विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. मुल्लापेरियार बांध विवाद
2. समायोजित सकल राजस्व
3. खाद्य संकट से जूझ रहा अफगान
4. इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद
सामान्य अध्ययन-III
1. कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन पर ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ की रिपोर्ट
2. रोहिंग्या- संकट का अवलोकन
प्रारम्भिक परिक्षा हेतु तथ्य
1. ट्रिगोनोप्टेरस कोरोना
2. दादा साहब फाल्के पुरस्कार
सामान्य अध्ययन- II
विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
मुल्लापेरियार बांध विवाद
संदर्भ:
केरल में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ‘मुल्लापेरियार बांध’ (Mullaperiyar dam) में अधिकतम जल स्तर बनाए रखने संबंधी विषय पर ‘पर्यवेक्षी समिति’ (Supervisory Committee) को तत्काल और ठोस निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में, मुल्लापेरियार बांध से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण करने हेतु एक स्थायी ‘पर्यवेक्षी समिति’ का गठन किया था। यह बांध तमिलनाडु और केरल के बीच टकराव का एक कारण है।
संबंधित प्रकरण:
केरल का कहना है कि, बाँध में ‘जल स्तर’ 139 फीट से ऊपर नहीं जाना चाहिए। जब वर्ष 2018 में राज्य बाढ़ की चपेट में था, उस समय 24 अगस्त, 2018 को अदालत ने भी अधिकतम जल-स्तर 139 फीट रखे जाने का आदेश दिया था। इसकी वजह यह है, कि यदि बाँध के जल स्तर में इससे अधिक की वृद्धि की जाती है, तो इससे 50 लाख लोगों की जान को खतरा हो सकता है।
हालांकि, तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए पिछले फैसलों का हवाला देते हुए, केरल के इस फैसले पर आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2006 और 2014 में दिए गए फैसलों में अधिकतम जल स्तर 142 फीट तय किया गया था।
आगे की कार्रवाई:
अदालत ने केरल और तमिलनाडु के अधिकारियों से जिम्मेदारी से बातचीत करने और जानमाल के किसी भी खतरे को टालने के लिए कहा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है, कि यह राजनीति करने का मुद्दा नहीं है।
अब, पर्यवेक्षी समिति को अधिकतम ‘जल स्तर’ के बारे में निर्णय लेना होगा और इसके बारे में न्यायालय को सूचित करना होगा।
मुल्लापेरियार बांध- महत्वपूर्ण तथ्य:
यद्यपि, मुल्लापेरियार बांध केरल में स्थित है, किंतु, वर्ष 1886 में त्रावणकोर के महाराजा तथा भारत के राज्य सचिव के मध्य, पेरियार सिंचाई कार्यों के लिए 999 वर्षों के लिए पट्टा अनुबंधपत्र (lease indenture), जिसे ‘पेरियार लेक लीज एग्रीमेंट’ भी कहा जाता है, पर हस्ताक्षर करने के बाद से इसका परिचालन तमिलनाडु द्वारा किया जाता है।
- इसका निर्माण वर्ष 1887 और 1895 के मध्य किया गया था, इस बाँध से अरब सागर की बहने वाली नदी की धारा को मोड़कर बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित किया गया था, इसका उद्देश्य मद्रास प्रेसीडेंसी में मदुरई शुष्क वर्षा क्षेत्र को सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध कराना था।
- यह बांध केरल के इडुक्की ज़िले में मुल्लायार और पेरियार नदियों के संगम पर स्थित है।
तमिलनाडु का पक्ष:
तमिलनाडु का कहना है कि, बाँध को बांध को मजबूत करने के उपाय किए जा चुके हैं, किंतु केरल सरकार जलाशय के जल स्तर को बढ़ाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर रही है, जिससे मदुरै के किसानों को नुकसान हो रहा है।
केरल का पक्ष:
केरल, बाँध के प्रवाह की दिशा में स्थिति इडुक्की के भूकंप-प्रवण जिले के निवासियों द्वारा तबाही की आशंकाओं को लेकर चिंतित है।
वैज्ञानिकों का कहना है, कि इस क्षेत्र में रिक्टर पैमाने पर छह माप से ऊपर भूकंप आने पर, तीन मिलियन से अधिक लोगों का जीवन गंभीर खतरे में पड़ जाएगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘रुल कर्व’ क्या होता है?
‘रुल कर्व’ (rule curve), किसी बांध के जलाशय में उतार-चढ़ाव के स्तर को तय करता है। बांध के गेट खोलने का कार्यक्रम ‘रुल कर्व’ पर आधारित होता है। यह किसी बांध के ‘मुख्य सुरक्षा’ तंत्र का हिस्सा होता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- मुल्लायार और पेरियार नदियो की अवस्थिति
- मुल्लापेरियार बांध की अवस्थिति?
- बांध का प्रबंधन कौन करता है?
- पेरियार लेक लीज एग्रीमेंट, 1886 के बारे में।
- अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (IRWD अधिनियम) के बारे में।
मेंस लिंक:
मुल्लापेरियार बांध का मुद्दा तमिलनाडु और केरल के बीच विवाद का कारण क्यों बन गया है, परीक्षण कीजिए। क्या केंद्र सरकार इस मुद्दे को हल करने में मदद कर सकती है? परीक्षण कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
समायोजित सकल राजस्व
संदर्भ:
भारती एयरटेल द्वारा ‘समायोजित सकल राजस्व’ (Adjusted Gross Revenue – AGR) और ‘स्पेक्ट्रम भुगतान’ पर ‘चार साल की मोहलत’ का विकल्प चुनने का फैसला किया गया है। इसके साथ ही भारती एयरटेल यह प्रस्ताव स्वीकार करने वाली ‘वोडाफोन आइडिया’ के बाद दूसरी कंपनी बन गयी है।
विदित हो कि, AGR और ‘स्पेक्ट्रम भुगतान’ करने के लिए ‘चार साल की मोहलत’ का विकल्प सरकार द्वारा हाल ही में घोषित घोषित दूरसंचार राहत पैकेज का हिस्सा है।
पृष्ठभूमि:
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में नकदी की तंगी से जूझ रहे दूरसंचार क्षेत्र में प्राण-फूंकने के लिए के लिए कई उपायों को मंजूरी दी थी। इन उपायों के तहत, दूरसंचार कंपनियों को ‘समायोजित सकल राजस्व’ (AGR) निर्णय के साथ-साथ पिछली नीलामी में खरीदे गए स्पेक्ट्रम के भुगतान हेतु, सरकार को बकाया चुकाने के लिए ‘चार साल की मोहलत’ दी गयी है।
सरकार ने दूरसंचार कंपनियों को बकाया चुकाने हेतु 29 अक्टूबर तक ‘चार साल की मोहलत’ के विकल्प पर अपने निर्णय से अवगत कराने के लिए कहा है। साथ ही, सरकार ने दूरसंचार कंपनियों को ‘अधिस्थगन अवधि’ (मोहलत अवधि) से संबंधित ब्याज राशि को शेयरों में परिवर्तित करने का विकल्प चुनने की इच्छा व्यक्त करने के लिए 90 दिनों का समय दिया था।
समायोजित सकल राजस्व (AGR) क्या होती है?
समायोजित सकल राजस्व (AGR), दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा दूरसंचार ऑपरेटरों से लिया जाने वाले उपयोग तथा लाइसेंस शुल्क है। इसे आवंटित स्पेक्ट्रम के उपयोग शुल्क तथा लाइसेंस शुल्क में विभाजित किया जाता है, जोकि क्रमशः 3-5 प्रतिशत और 8 प्रतिशत के बीच होता है।
दूरसंचार विभाग के अनुसार, AGR की गणना में दूरसंचार कंपनियों द्वारा अर्जित कुल राजस्व के आधार पर की जानी चाहिए – जिसमें गैर-दूरसंचार स्रोतों जैसे जमाराशियों पर ब्याज तथा परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय भी सम्मिलित होती है।
‘राहत पैकेज’ के बारे में:
- सरकार द्वारा गिये जाने वाले राहत पैकेज में, दूरसंचार कंपनियों को वैधानिक देय राशि के भुगतान के लिए चार साल की मोहलत दी गयी है, और साथ ही दूरसंचार क्षेत्र में, स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की भी अनुमति दी गयी है।
- विस्तृत उपायों में, बकाया राशि को चुकाने के लिए मोहलत, समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue – AGR) को उत्तरव्यापी प्रभाव से पुनर्परिभाषित करने, और ‘स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क’ में कटौती के माध्यम से ‘बीमार’ चल रहे दूरसंचार क्षेत्र में सुधार शामिल हैं।
‘राहत पैकेज’ में दूरसंचार क्षेत्र के लिए सहायता:
इसमें, दूरसंचार कंपनियों वोडाफोन आइडिया, रिलायंस जियो और भारती एयरटेल के लिए बहुत जरूरी छूटें प्रदान की गयी।
- इन छूटों से, रोजगार सृजन और रोजगार सुरक्षा, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन, उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा, दूरसंचार क्षेत्र में तरलता बढ़ाने, निवेश को प्रोत्साहित करने और ‘दूरसंचार सेवा प्रदाताओं’ (TSPs) पर नियामक-भार के कम होने की संभवना है।
- समायोजित सकल राजस्व (AGR) से संबंधित बकाया राशि पर मोहलत देने से, नकदी की तंगी से जूझ रही फर्मों को अपने कारोबार में सुधार करने का अवसर और बकाया चुकाने के लिए अधिक समय मिलेगा।
- ‘गैर-दूरसंचार राजस्व’ को को ‘करों’ के दायरे से बाहर रखने के लिए ‘समायोजित सकल राजस्व’ की परिभाषा बदल दी गई है। अब, ‘गैर-दूरसंचार’ गतिविधियों से अर्जित राजस्व को ‘AGR’ में शामिल नहीं किया जाएगा।
‘दूरसंचार कंपनियों की वित्तीय स्थिति’ ख़राब किस प्रकार हुई?
आइए, इसे तीन आसान चरणों में समझते हैं:
- इसकी शुरुआत, कुल मिलाकर ‘समायोजित सकल राजस्व’ (AGR) की अलग-अलग कानूनी व्याख्या किए जाने साथ हुई। इसे ठीक से समझने के लिए वर्ष 1999 में वापस जाना होगा, जब सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र के लिए, एक ‘निर्धारित राजस्व-साझाकरण मॉडल’ में बदलाव करने का निर्णय लिया था। नए मॉडल में, टेलीकॉम कंपनियों के लिए दूरसंचार और गैर-दूरसंचार राजस्व से अर्जित अपने ‘समायोजित सकल राजस्व’ का एक निश्चित प्रतिशत, ‘लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में’ भुगतान करना निर्धारित किया गया था।
- वर्ष 2003 में, दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से AGR भुगतान की मांग की गयी। दूरसंचार विभाग के अनुसार, ‘समायोजित सकल राजस्व’ की गणना में दूरसंचार कंपनियों द्वारा अर्जित कुल राजस्व के आधार पर गैर-दूरसंचार स्रोतों जैसे जमाराशियों पर ब्याज तथा परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त होने वाली आय शामिल की जाएगी।
- टेलीकॉम कंपनियों ने इसके खिलाफ ‘दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय अधिकरण (Telecom Disputes Settlement Appellate Tribunal – TDSAT) में अपील की, जिस पर अधिकरण ने जुलाई 2006 में फैसला देते हुआ कहा कि इस मामले को नए सिरे से परामर्श के लिए ‘भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण’ (TRAI) को वापस भेजा जाना चाहिए। TDSAT ने सरकार की दलील को खारिज कर दिया, और इसके बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। मामला अभी विचारधीन ही था, कि इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने, वर्ष 2012 में, 2-जी घोटाला मामले में 122 दूरसंचार लाइसेंस रद्द कर दिए। इसकी वजह से एक नया सुधार लागू किया गया, जिसमें अब स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के माध्यम से होने लगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
वर्ष 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पहला फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा निर्धारित की गयी ‘समायोजित सकल राजस्व’ (AGR) परिभाषा सही थी, और टेलीकॉम कंपनियों को समायोजित सकल राजस्व’ और ब्याज का भुगतान करना होगा और भुगतान न करने पर जुर्माना देना होगा।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि भारत में स्पेक्ट्रम की नीलामी किस प्रकार की जाती है?
प्रीलिम्स लिंक:
- समायोजित सकल राजस्व (AGR) क्या है? इसकी गणना कैसे की जाती है?
- इस विवाद पर उच्चत्तम नयायालय का क्या फैसला था?
- TRAI की संरचना?
- भारत में स्पेक्ट्रम का आवंटन कैसे किया जाता है?
मेंस लिंक:
वर्तमान में भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर चर्चा कीजिए। टेलीकॉम सेक्टर को बचाने के लिए भारत सरकार को क्या करना चाहिए?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
खाद्य संकट से जूझ रहा अफगान
संदर्भ:
‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (World Food Programme) के कार्यकारी निदेशक के अनुसार, अफगानिस्तान की आधे से अधिक आबादी ‘खाद्य सामग्री की अत्यधिक कमी’ का सामना कर रही है, जिसकी वजह से देश, विश्व के सबसे खराब मानवीय संकटों में से एक, भुखमरी के कगार पर पहुँच चुका है।
संबंधित प्रकरण:
अफगानिस्तान पर तालिबान का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो चुका है। लोगों के पास कोई नौकरी और आय नहीं है। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित सूखा पड़ने से उनके संकट और बढ़ गए हैं, जिसकी वजह से इस सर्दी के मौसम में 22 मिलियन से अधिक अफगानों को ‘खाद्य असुरक्षा’ का सामना करना पड़ेगा। इस तरह की परिस्थितियां, उनके लिए ‘प्रवास’ और ‘भुखमरी’ में से एक का चयन करने को मजबूर करेगीं।
अफ़गानिस्तान में स्थिरता का महत्व:
- अफ़गानिस्तान में तालिबान की बहाली का असर इसके पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान आदि में फैल सकता है।
- तालिबान के पुनरुत्थान से इस क्षेत्र में ‘उग्रवाद’ फिर से जिंदा हो जाएगा और यह क्षेत्र ‘लश्कर-ए-तैयबा’, आईएसआईएस आदि के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन सकता है।
- अफगानिस्तान में गृहयुद्ध होने से मध्य एशिया और उसके बाहर के देशों में शरणार्थी संकट उत्पन्न हो जाएगा।
- अफगानिस्तान की स्थिरता से मध्य एशियाई देशों को हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित बंदरगाहों तक – सबसे कम-दूरी वाले मार्ग से – पहुंचने में मदद मिलेगी।
- अफगानिस्तान, मध्य-एशिया और शेष विश्व के बीच एक पुल की भूमिका निभाने वाली, क्षेत्रीय व्यापार हेतु और सांस्कृतिक रूप से, एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
नए हालातों में, भारत के लिए तालिबान के साथ संपर्क स्थापित करना क्यों जरूरी है?
- अफ़ग़ानिस्तान में अब तालिबान की महत्वपूर्ण उपस्थिति है।
- भारत पहले से ही अफगानिस्तान में भारी निवेश कर चुका है। अपनी 3 अरब डॉलर की परिसंपत्तियों की सुरक्षा हेतु, भारत को अफगानिस्तान में सभी पक्षों के साथ संपर्क स्थापित करने चाहिए।
- तालिबान का पाकिस्तान के साथ गहन राज्य संबंध बनाना, भारत के हित में नहीं होगा।
- यदि भारत ने अभी संपर्क स्थापित नहीं किए, तो रूस, ईरान, पाकिस्तान और चीन, अफगानिस्तान के राजनीतिक और भू-राजनीतिक भाग्य-निर्माता के रूप में उभरेंगे, जो निश्चित रूप से भारतीय हितों के लिए हानिकारक होगा।
- अमेरिका ने क्षेत्रीय-संपर्को पर सबको चौंकाते हुए ‘अमेरिका-उजबेकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान’ के रूप में एक “क्वाड” (Quad) का गठन करने की घोषणा की है – जिसमें भारत को शामिल नहीं किया गया है।
- अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने संबधी भारत का प्रयास संकट में पड़ा हुआ है।
समय की मांग:
- तालिबान द्वारा की जा रही हिंसा पर रोक लगाकर, अफ़ग़ान नागरिकों की सुरक्षा हेतु सामूहिक रूप से कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है।
- अफगानिस्तान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मध्य एशियाई संगठन में पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
- अमरीका, ईरान, चीन और रूस को अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने के लिए भारत को सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए।
- शरणार्थी संकट उत्पन्न होने पर उसके लिए समेकित कार्रवाई की जानी चाहिए।
- निकटस्थ पड़ोसियों के साथ शांति बनाए रखने हेतु तालिबान के साथ भारत द्वारा संपर्क स्थापित किए जाने चाहिए।
इंस्टा जिज्ञासु:
अमेरिका-तालिबान शांति समझौते के बारे में जानिए।
प्रीलिम्स लिंक:
- तालिबान के बारे में
- अफगान संकट
- नाटो के बारे में
- अफगानिस्तान परियोजनाओं में भारत का निवेश
मेंस लिंक:
नये हालातों में भारत को अफगानिस्तान से क्यों और किस प्रकार के संबंध बनाने चाहिए? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद
संदर्भ:
इज़राइल सरकार ने अपने कब्जे वाले ‘वेस्ट बैंक’ क्षेत्र में 1,300 से अधिक नई मकानों की नई बस्ती के लिए मंजूरी दे दी है (इस क्षेत्र को ‘फिलिस्तीनी’ भविष्य में बनने वाले देश का हिस्से में शामिल करना चाहते हैं)।
इज़राइल का यह कदम, नई सरकार द्वारा ‘वैचारिक कारणों’ को एक तरफ रखने और फिलिस्तीनियों के साथ तनाव कम करने संबंधी प्रण के विपरीत प्रतीत होता है।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- जॉर्डन नदी और भूमध्य सागर के बीच भूमि के एक टुकड़े को लेकर यहूदियों और अरबों के बीच 100 वर्षों से भी अधिक समय से संघर्ष जारी है।
- साल 1882 से 1948 के बीच दुनिया भर के यहूदी फिलिस्तीन में एकत्र हुए थे। इतिहास में, इस घटना को अलियाह (Aliyahs) के नाम से जाना जाता है।
- फिर वर्ष 1917 में, प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्क साम्राज्य का पतन हो गया और फिलिस्तीन पर ब्रिटेन ने नियंत्रण कर लिया।
- इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब निवास करते थे।
- इस क्षेत्र पर ब्रिटेन का कब्ज़ा होने के बाद, फिलीस्तीन में यहूदियों को बसाने के उद्देश्य से बालफोर घोषणा (Balfour Declaration) जारी की गई। जबकि, उस समय फिलिस्तीन में बहुसंख्यक आबादी अरबों की थी।
- यहूदियों ने इस ‘बालफोर घोषणा’ का समर्थन किया जबकि फिलिस्तीनियों ने इसे मानने से अस्वीकार कर दिया। कुछ समय पहले यूरोप में हुए होलोकॉस्ट (Holocaust) में लगभग 6 मिलियन यहूदी मारे जा चुके थे, और इस कारण से एक पृथक यहूदी राज्य की मांग तेजी पर चल रही थी।
- यहूदियों ने फिलिस्तीन को अपना प्राकृतिक घर बताते हुए इस पर अपना दावा किया, और दूसरी और अरबों ने भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ा और अपना दावा कायम रखा।
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने यहूदियों का समर्थन किया।
- 1947 में, संयुक्त राष्ट्र द्वारा फिलिस्तीन को एक पृथक यहूदी देश और अरब देश में विभाजित करने के पक्ष में मतदान किया गया, जिसमें यरूशलेम एक अंतरराष्ट्रीय शहर बना दिया गया।
- विभाजन की इस योजना को यहूदी नेताओं ने स्वीकार कर लिया किंतु अरब पक्ष ने इसे खारिज कर दिया और कभी मान्यता नहीं दी।
इज़राइल का निर्माण और ‘तबाही’:
- वर्ष 1948 में ब्रिटेन ने इस क्षेत्र से अपना नियंत्रण वापस ले लिया और यहूदियों ने इज़राइल के निर्माण की घोषणा कर दी। हालांकि, फिलीस्तीनियों ने इसका विरोध किया, किंतु यहूदी पीछे नहीं हटे और इसके परिणामस्वरूप दोनों के मध्य सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया।
- इसी दौरान पड़ोसी अरब देशों ने भी इस क्षेत्र पर हमले किए, किंतु इजरायली सैनिकों ने इन्हें पराजित कर दिया। इस लड़ाई के बाद हजारों फिलिस्तीनियों को अपने घरों से पलायन करना पड़ा। इस घटना के लिए ‘अल-नकबा’ (Al-Nakba), या “विनाश” कहा जाता है।
- लड़ाई के समाप्त होने के बाद इस क्षेत्र के अधिकाँश भू-भाग को इज़राइल ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
- फिर, जॉर्डन का इज़राइल के साथ युद्ध हुआ जिसमे ‘वेस्ट बैंक’ कहे जाने वाले क्षेत्र पर जॉर्डन ने अपना कब्ज़ा कर लिया तथा गाजा पर मिस्र ने अपना अधिकार जमा लिया।
- यरुशलम शहर, दो हिस्सों में विभाजित हो गया, इसके पूर्व भाग पर जॉर्डन का अधिकार है, जबकि पश्चिमी भाग पर इज़राइल का नियंत्रण है। अभी तक, किसी भी औपचारिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए है और इस क्षेत्र में होने वाले तनाव के लिए प्रत्येक पक्ष एक-दूसरे को दोषी ठहराता रहता है, और इस क्षेत्र में लड़ाई होती रहती है।
- वर्ष 1967 में, इजरायली सेना ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक, सीरिया की ‘गोलन हाइट्स’, गाजा और मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था।
वर्तमान परिदृश्य:
- इज़राइल का अभी भी वेस्ट बैंक पर कब्जा है, हालांकि इसने गाजा पर अपना अधिकार छोड़ दिया है किंतु, संयुक्त राष्ट्र अभी भी भूमि के इस भाग को अधिकृत क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
- इज़राइल, पूरे यरुशलम को अपनी राजधानी होने का दावा करता है, जबकि फिलिस्तीनी, पूर्वी यरुशलम को भविष्य के फिलिस्तीनी राष्ट्र की राजधानी होने का दावा करते हैं।
- अमेरिका, पूरे यरुशलम शहर पर इज़राइल के दावे को मान्यता देने वाले गिने-चुने देशों में से एक है।
- पूर्वी यरुशलम में ‘अल-अस्का मस्जिद’ के संबंध में इज़राइल की कार्रवाइयों को लेकर हाल के महीने में तनाव बढ़ गया था।
‘वेस्ट बैंक’ (West Bank) की अवस्थिति:
यह पश्चिमी एशिया के भूमध्यसागरीय तट के पास एक स्थल-रुद्ध क्षेत्र है। पूर्व में इसकी सीमा जॉर्डन से मिलती है तथा यह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर में ‘ग्रीन-लाइन’ द्वारा इज़राइल से पृथक होता है। वेस्ट बैंक के अंतर्गत पश्चिमी मृत सागर तट का काफी हिस्सा भी आता है।
इस क्षेत्र की बस्तियाँ और विवाद:
- वर्ष 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के पश्चात् वेस्ट बैंक पर जॉर्डन द्वारा कब्जा कर लिया गया था।
- इजरायल ने वर्ष 1967 के छह दिवसीय युद्ध के पश्चात इसे वापस छीन लिया, और तब से वेस्ट बैंक पर इसका अधिकार है। इस लड़ाई में इजराइल ने मिस्र, सीरिया और जॉर्डन की संयुक्त सेनाओं को हराया था ।
- इजराइल ने वेस्ट बैंक में लगभग 130 औपचारिक बस्तियों का निर्माण किया है, तथा पिछले 20-25 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र में इसी तरह की कई छोटी, अनौपचारिक बस्तियां विकसित हो चुकी हैं।
- इस क्षेत्र में 4 लाख से अधिक इजरायल उपनिवेशी निवास करते है, उनमें से कई यहूदी धार्मिक लोग, इस भूमि पर बाइबिल के अनुसार अपने पैदाइशी हक़ का दावा करते हैं।
- इनके अतिरिक्त्त, इस क्षेत्र में 26 लाख फिलिस्तीनियों इस क्षेत्र में निवास करते है।
- जब 1967 में इज़राइल द्वारा इस भूमि पर कब्ज़ा किया गया था, तब इसने यहूदी लोगों को इस स्थान पर बसने की अनुमति दी। लेकिन फिलिस्तीनियों द्वारा ‘वेस्ट बैंक’ फ़िलिस्तीनी भूमि पर अवैध कब्जा माना जाता है।
इन बस्तियों की वैधानिक स्थिति:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अनुसार- वेस्ट बैंक में स्थित इजराइली बस्तियां, चतुर्थ जेनेवा अभिसमय (Fourth Geneva Convention) का उल्लंघन करती हैं।
- चौथे जिनेवा अभिसमय (1949) के अनुसार- किसी क्षेत्र पर कब्ज़ा करने वाली शक्ति, अपनी नागरिक आबादी के किसी भी हिस्से को अधिकृत क्षेत्र में निर्वासित या स्थानांतरित नहीं करेगी ।
- 1998 में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय की स्थापना करने वाले रोम अधिनियम (Rome Statute) के अनुसार- कब्ज़ा करने वाली शक्ति द्वारा इस तरह का कोई भी स्थानांतरण ‘युद्ध अपराध’ के समान होगा, जिसमे सैन्य बलों द्वारा अवैध और निर्दयतापूर्वक संपतियों का नुकसान व उन पर कब्ज़ा किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- इजरायल-फिलिस्तीन विवाद क्या है?
- दोनों के बीच विवादित सीमाएं
- वेस्ट बैंक बस्ती विवाद
- इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र, इज़राइल, फिलिस्तीन द्वारा लिया गया स्टैंड
- इस मुद्दे से उत्पन्न चुनौतियाँ
- भारत का रुख
मेंस लिंक:
मध्य एशिया क्षेत्र पर इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के प्रभाव तथा भारत के हितों पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन पर ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ की रिपोर्ट
संदर्भ:
हाल ही में ‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ (World Meteorological Organisation – WMO) द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन पर एक रिपोर्ट जारी की गयी है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- वर्ष 2019- 2020 के दौरान ‘कार्बन डाईऑक्साइड’ (CO2) में वृद्धि, वर्ष 2018 – 2019 की तुलना में थोड़ी कम रही, किंतु पिछले एक दशक के दौरान हुई औसत वार्षिक वृद्धि दर से अधिक रही।
- ‘कार्बन डाईऑक्साइड’ गैस की वृद्धि में यह कमी, महामारी से संबंधित लगाए गए प्रतिबंधों के कारण वर्ष 2020 में जीवाश्म ईंधनों से होने वाले CO2 उत्सर्जन में लगभग 5.6% की गिरावट के बाद हुई है।
- मीथेन गैस: वर्ष 2019- 2020 के दौरान ‘मीथेन’ गैस (CH4) में वृद्धि, वर्ष 2018 – 2019 की तुलना में अधिक रही और पिछले दशक के दौरान हुई ‘औसत वार्षिक वृद्धि दर’ से भी अधिक रही।
- इसी समयावधि में, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की वृद्धि अधिक रही और पिछले दशक में हुई औसत वार्षिक वृद्धि दर से भी अधिक रही।
- वर्ष 2020 में, सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस, ‘कार्बन डाइऑक्साइ’ड (CO2) की सांद्रता 413.2 भाग प्रति मिलियन तक पहुंच गई जोकि, पूर्व-औद्योगिक स्तर का 149% है। मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का स्तर क्रमशः 262% और 123% रहा।
- मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित CO2 का लगभग आधा हिस्सा, वर्तमान में वायुमंडल में बना हुआ है। शेष आधा भाग महासागरों और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
- वर्ष 1990 से 2020 तक, लंबे समय तक असितत्व में रहने वाली ग्रीनहाउस गैसों द्वारा ‘विकिरणकारी बल’- जलवायु पर वार्मिंग प्रभाव – में 47% की वृद्धि हुई, जिसमें से लगभग 80% वृद्धि के लिए CO2 जिम्मेदार है।
संबंधित चिंताएं:
- स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों और महासागरों की ‘सिंक’ (सोखने) के रूप में कार्य करने की क्षमता, भविष्य में कम प्रभावी हो सकती है। इस प्रकार, स्थलीय और महासागरीय पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा ‘कार्बन डाईऑक्साइड’ को अवशोषित करने और ‘तापमान वृद्धि’ के खिलाफ ‘बफर’ के रूप में कार्य करने की क्षमता कम हो जाएगी।
- ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि की वर्तमान दर पर, हमें इस सदी के अंत तक ‘पेरिस समझौते’ में निर्धारित पूर्व-औद्योगिक स्तर के 5 से 2 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के लक्ष्य से कहीं ज्यादा तापमान वृद्धि देखनी पड़ सकती है।
WMO के बारे में:
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization – WMO), मौसम विज्ञान (मौसम), जलवायु विज्ञान (जलवायु), परिचालन जल विज्ञान (जल) और ‘समुद्र विज्ञान’ एवं ‘वायुमंडलीय रसायन विज्ञान’ जैसे अन्य संबंधित ‘भूभौतिकीय विज्ञानों’ के लिए समर्पित ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशेष एजेंसी है।
- यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसे 23 मार्च, 1950 को ‘मौसम विज्ञान संगठन अभिसमय’ के अनुमोदन के साथ स्थापित किया गया है।
- इसके पूर्ववर्ती संगठन – अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) – को वर्ष 1873 में स्थापित किया गया था।
WMO द्वारा प्रकाशित की जाने वाली रिपोर्ट्स:
- ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन
- विश्व जलवायु स्थिति (Status of the World Climate)
‘विश्व मौसम विज्ञान संगठन’ के कार्य:
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 191 देशों और क्षेत्रों में ‘राष्ट्रीय मौसम विज्ञान’ और ‘जल विज्ञान’ सेवाओं संबंधी गतिविधियों का समन्वय किया जाता है। जिससे, इन देशों और क्षेत्रों में आवश्यकता पड़ने पर मौसम, जलवायु और जल संबंधी बुनियादी सेवाएं किसी भी व्यक्ति को उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
- WMO, मानव गतिविधियों जैसे विमानन, शिपिंग, जल प्रबंधन और कृषि के सभी पहलुओं के लिए ‘मौसम विज्ञान’ और ‘जल विज्ञान’ (जलवायु परिवर्तन और ओजोन की निगरानी और भविष्यवाणियों सहित) के अनुप्रयोगों हेतु सहायता प्रदान करता है तथा संबंधित प्रेक्षणों और आंकड़ों के प्रकाशन करता है।
- WMO, मौसम विज्ञान और जल विज्ञान और उनके संबंधित अनुप्रयोगों में अनुसंधान और प्रशिक्षण को भी प्रोत्साहित करता है और, बाढ़, सूखा, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, बवंडर और अन्य चरम घटनाओं पर नियमित, विश्वसनीय पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनियों के माध्यम से मौसम एवं जलवायु संबंधी खतरों के प्रभाव को कम करने में योगदान देता है।
- डब्ल्यूएमओ सदस्यों द्वारा, टिड्डियों के झुंड और प्रदूषकों (परमाण्विक, जहरीले पदार्थ, और ज्वालामुखी राख) के परिवहन और दिशा से संबंधित भविष्यवाणियां भी की जाती हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
किसी व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने वाला भारत का पहला ऐप ‘कार्बन वॉच’ क्या है?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत एवं इसके पड़ोसी- संबंध।
रोहिंग्या संकट का अवलोकन
संदर्भ:
कर्नाटक सरकार ने, एक साल के भीतर रोहिंग्याओं को “पहचानने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने” के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि उनके खिलाफ जबरदस्ती कार्रवाई करने या उन्हें तुरंत निर्वासित करने का कोई कारण नहीं है।
संबंधित प्रकरण:
देश में रोहिंग्याओं समेत अवैध अप्रवासियों और घुसपैठियों की मौजूदगी के खिलाफ शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने याचिका में “घुसपैठ” को एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनीय अपराध बनाए जाने की मांग की है।
‘रोहिंग्या समुदाय’ (Rohingya) के बारे में:
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस द्वारा ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों को, विश्व में सर्वाधिक नहीं, तो सबसे अधिक भेदभाव किये जाने वाले लोगों में से एक, के रूप में वर्णित किया गया है।
- वर्ष 2017 की शुरुआत में म्यांमार में ‘रोहिंग्या समुदाय के लोगों की संख्या लगभग एक मिलियन थी।
- उनकी अपनी भाषा और संस्कृति है और कहा जाता है, वे अरब व्यापारियों और अन्य समूहों के वंशज हैं, जो इस क्षेत्र में कई पीढ़ियों से बसे हुए हैं।
नागरिकता:
- म्यांमार, जोकि मुख्य रूप से बौद्ध देश है, की सरकार ने रोहिंग्या समुदाय को नागरिकता देने से इनकार कर दिया है, और यहाँ तक कि वर्ष 2014 की जनगणना में भी इन्हें सम्मिलित नहीं किया था।
- म्यांमार सरकार, इन्हें बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों के रूप में देखती है।
वर्तमान संकट का आरंभ:
अगस्त 2017 में, रोहिंग्या मुसलमानों पर म्यांमार की सेना द्वारा किए गए घातक हमले के परिणामस्वरूप सैकड़ों हज़ारों लोगों को बांग्लादेश की सीमा की ओर भागना पड़ा।
- इन्हें सैन्य हमले से बचने के लिए सब कुछ जोखिम में डाल कर समुद्र से होकर अथवा पैदल भागना पड़ा। जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाद में ‘नृजातीय-उन्मूलन का अध्ययन योग्य उदाहरण’ बताया गया।
- लेकिन म्यांमार (पूर्व में बर्मा) की सेना का कहना है कि, वह रोहिंग्या आतंकवादियों से लड़ रही थी, तथा उसने नागरिकों को निशाना बनाने से इनकार कर दिया।
- देश की नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi), जो कि कभी मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले लोगों के लिए एक प्रतिरूप (Icon) थी, कई बार नरसंहार के आरोपों से इनकार कर चुकी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) का कहना है कि म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार और दुर्व्यवहार किया गया है।
- अगस्त 2018 में संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में म्यांमार की सेना पर “नरसंहार के इरादे” से सामूहिक हत्याएं और बलात्कार करने का आरोप लगाया गया।
- पश्चिमी अफ्रीका के एक छोटे मुस्लिम बहुल राष्ट्र ‘गाम्बिया’ द्वारा, दर्जनों अन्य मुस्लिम देशों की ओर से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) में मामला दर्ज किया गया है, जिसमे म्यांमार की सेना, जिसे तत्मादाव (Tatmadaw) कहा जाता है, के खिलाफ जांच शुरू किए जाने तथा तब तक आपातकालीन कदम उठाने का आह्वान किया गया है।
वर्तमान में रोहिंग्या:
दक्षिणी बांग्लादेश में दुनिया के सबसे बड़े और सबसे घनी आबादी वाले शरणार्थी शिविर में लगभग 860,000 रोहिंग्या रहते हैं।
- म्यांमार और बांग्लादेश की सरकारों के मध्य रोहिंग्या शरणार्थियों के म्यांमार में प्रत्यावर्तन हेतु शर्तों पर वार्ता जारी हैं।
- गृह मंत्रालय के अनुसार, भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या रहते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
भासन चार (फ्लोटिंग आइलैंड), जिसे ‘चार पिया’ (Char Piya) या ‘थेंगर चार आइलैंड’ (Thengar Char Island) के नाम से भी जाना जाता है, बांग्लादेश के हटिया में स्थित एक द्वीप है। हाल ही में यह क्यों चर्चित था?
क्या भारत, रोहिंग्या संकट के ज्वार को मोड़ पाने में सक्षम है? इस बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- रोहिंग्या कौन हैं?
- ‘रखाइन प्रदेश’ की अवस्थिति।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बारे में।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) बनाम अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय।
मेंस लिंक:
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स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
ट्रिगोनोप्टेरस कोरोना
इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर ‘संग्रहालय के वैज्ञानिकों’ ने भृंगों (Beetles) की 28 नई प्रजातियों की खोज की है।
- इनमें से एक प्रजाति का नाम ट्रिगोनोप्टेरस कोरोना (Trigonopterus corona) रखा गया है।
- यह नामकरण, इस परियोजना पर कोविड-19 महामारी के व्यापक प्रभाव को दर्शाता है।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
यह “भारतीय सिनेमा के विकास और विकास में उत्कृष्ट योगदान” के लिए दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च फिल्म सम्मान है।
- ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ सरकार द्वारा वर्ष 1969 में शुरू किया गया था और यह पहली बार “भारतीय सिनेमा की पहली महिला” देविका रानी को प्रदान किया गया था।
- दादा साहब फाल्के, ने भारत की पहली फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (1913) का निर्देशन किया था। उन्हें “भारतीय सिनेमा के जनक” के रूप में जाना जाता है।
- हाल ही में, 51वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार ‘रजनीकांत’ को प्रदान किया गया है।
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