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विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ के लिए जांच हेतु सामान्य सहमति
2. उइगर
3. तुर्की भी FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल
4. सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र
सामान्य अध्ययन-III
1. भारत के लिए ‘नेट जीरो’ की व्यवहार्यता
2. सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति पहचान संख्या
2. बारबाडोस में ब्रिटिश राजतंत्र को हटाते हुए पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव
सामान्य अध्ययन- II
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ के लिए जांच हेतु सामान्य सहमति
संदर्भ:
हाल ही में, संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा भारत संघ के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है।
- राज्य सरकार ने ‘विविध मामलों में राज्य में एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के लिए, ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (Central Bureau of Investigation- CBI) के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी है।
- पश्चिम बंगाल का कहना है, राज्य सरकार ने वर्ष 2018 में ही सीबीआई को दी गयी “सामान्य सहमति” (General Consent) वापस ले ली थी।
पश्चिम बंगाल की चिंता का विषय:
राज्य सरकार का कहना है, कि सीबीआई द्वारा की जा रही कार्रवाई, शासन के संघीय ढांचे पर प्रत्यक्ष हमला है और इसका उद्देश्य राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को परेशान करना है।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया:
- राज्य सरकारों के पास ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (सीबीआई) को राज्य के अंदर अपराधों की जांच करने से रोकने की कोई “पूर्ण” शक्ति नहीं है।
- यहाँ तक कि, जांच करने संबंधी इस प्रमुख एजेंसी की स्वायत्तता में दखल देने का अधिकार केंद्र सरकार को भी नहीं है।
- साथ ही, जिन मामलों में ऐसा पाया जाता है कि ‘राज्य पुलिस प्रभावी रूप से निष्पक्ष और निष्पक्ष जांच नहीं करेगी’, संवैधानिक अदालतों द्वारा सीबीआई को ऐसे मामलों को सौंपने के रास्ते में, राज्य द्वारा ‘सामान्य सहमति’ को वापस लेना, बाधक नहीं होगा।
- इसके अलावा, सीबीआई को संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत ‘संघ सूची’ में सूचीबद्ध किसी भी केंद्रीय विषय से संबंधित मामलों की जांच करने का अधिकार है।
सहमति की आवश्यकता:
केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ (Delhi Special Police Establishment Act) के अंतर्गत कार्य करती है। अधिनियम के अनुसार- किसी राज्य में केंद्रीय जांच ब्यूरो के लिए किसी मामले की जांच करने हेतु, उस राज्य की सहमति अनिवार्य है।
‘सहमति’ दो प्रकार की होती है:
- केस-विशिष्ट सहमति (Case-specific consent)
- सामान्य या आम सहमति (General consent)
चूंकि, सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, हालांकि, यह किसी राज्य में राज्य सरकार के कर्मचारियों अथवा किसी हिंसक अपराध से जुड़े मामले की जांच उस राज्य द्वारा सहमति दिए जाने के पश्चात कर सकती है।
आम तौर पर, सीबीआई को राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जांच करने में मदद करने हेतु संबधित राज्य द्वारा आम सहमति (General consent) प्रदान की जाती है।
सहमति वापस लेने का तात्पर्य:
- इसका सीधा सा अर्थ है कि जब तक राज्य सरकार द्वारा अनुमति नहीं दी जायेगी, सीबीआई अधिकारी, राज्य में प्रवेश करने पर पुलिस अधिकारी के रूप में प्राप्त शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकेंगे।
- महाराष्ट्र सरकार के इस निर्णय का अर्थ है, कि पश्चिम बंगाल में दर्ज होने वाले प्रत्येक मामले की जांच के लिए सीबीआई को अब राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी।
किस प्रावधान के तहत आम सहमति वापस ली जा सकती है?
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत, राज्य सरकारें सीबीआई को दी जाने वाली ‘आम सहमति’ वापस ले सकती हैं।
आम सहमति की वापसी से सीबीआई की जांच पर प्रभाव:
- राज्य सरकार द्वारा ‘आम सहमति’ वापस लिए जाने से, पहले के मामलों में चल रही जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इसके अलावा, देश के अन्य राज्यों में मामला दर्ज होने पर, जिन राज्यों में ‘आम सहमति’ जारी है, तथा मामले से संबंधित व्यक्ति यदि उस राज्य में, जहाँ आम सहमति वापस ले ली गई है, ठहरे हुए है, तो सीबीआई इन राज्यों में भी अपनी जांच कर सकती है।
इंस्टा जिज्ञासु:
अनुच्छेद 131 के तहत कोई भी ‘वाद’- विशेष रूप से राज्यों के बीच या केंद्र और राज्य के बीच विवादों के संबंध में- सर्वोच्च न्यायालय में दायर किए जाते हैं। क्या आप ‘सर्वोच्च न्यायालय’ के मूल अधिकार क्षेत्र के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- सीबीआई और इसकी स्थापना
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- आम सहमति क्या होती है?
- राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने के प्रभाव
मेंस लिंक:
क्या आम सहमति वापस लेने तात्पर्य यह हो सकता है कि सीबीआई अब किसी मामले की जांच नहीं कर सकती? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।
उइगर
संदर्भ:
हाल ही में, पूरे विश्व से 43 देशों ने चीन से ‘शिनजियांग प्रांत’ में मुस्लिम ‘उइघुर’ / ‘उइगर’ समुदाय के लिए “कानून के शासन का पूर्ण सम्मान सुनिश्चित करने” की अपील की है।
इस घोषणापत्र में चीन पर उइगरों (Uighurs) के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है, जिसमें उइगरों को यातना देना, जबरन नसबंदी करना और जबरन गायब कर देना शामिल है।
घोषणापत्र में की गयी मांगें:
‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त’ और उनके कार्यालय सहित स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को ‘शिनजियांग’ में तत्काल, सार्थक और निर्बाध पहुंच उपलब्ध कराने हेतु चीन को तत्काल अनुमति देनी चाहिए।
संबंधित प्रकरण:
विश्वसनीय रिपोर्टों से संकेत मिलता है, कि शिनजियांग में एक लाख से अधिक लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है तथा उइगरों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों को अनुचित रूप से लक्षित करते हुए व्यापक निगरानी की जा रही है, और उइघुर संस्कृति तथा मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित किया गया है।
चीन की प्रतिक्रिया:
पर्याप्त सबूतों के बावजूद, चीन, उइगरों के साथ दुर्व्यवहार से इनकार करता है, और जोर देकर, केवल चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किए गए “व्यावसायिक प्रशिक्षण” केंद्र चलाने की बात करता है।
- उइगर (Uighurs) मुख्य रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक तुर्की नृजातीय समूह हैं, जिनकी उत्पत्ति के चिह्न ‘मध्य एवं पूर्वी एशिया’ में खोजे जा सकते हैं।
- उइगर समुदाय, तुर्की भाषा से मिलती-जुलती अपनी भाषा बोलते हैं, और खुद को सांस्कृतिक और नृजातीय रूप से मध्य एशियाई देशों के करीब मानते हैं।
- चीन, इस समुदाय को केवल एक क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देता है और इन्हें देश का मूल-निवासी समूह मानने से इंकार करता है।
- वर्तमान में, उइगर जातीय समुदाय की सर्वाधिक आबादी चीन के शिनजियांग क्षेत्र में निवास करती है।
- उइगरों की एक बड़ी आबादी पड़ोसी मध्य एशियाई देशों जैसे उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान में भी पाई जाती है।
दशकों से उइगर मुसलमानों पर चीनी सरकार द्वारा आतंकवाद और अलगाववाद के झूठे आरोपों के तहत, उत्पीड़न, जबरन हिरासत, गहन-जांच, निगरानी और यहां तक कि गुलामी जैसे दुर्व्यवहार किये जा रहे हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप चीन की ‘वन कंट्री टू सिस्टम पॉलिसी’ के बारे में जानते हैं? इस नीति के तहत किन क्षेत्रों का प्रशासन किया जाता है? इस बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़िए।
प्रीलिम्स लिंक:
- उइघुर कौन हैं?
- शिनजियांग कहाँ है?
- हान चीनी कौन हैं?
- शिनजियांग प्रांत की सीमा से लगे भारतीय राज्य।
मेंस लिंक:
उइघुर कौन हैं? हाल ही में इनके समाचारों में होने संबंधी कारणों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
तुर्की भी FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में शामिल
संदर्भ:
हाल ही में ‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ (Financial Action Task Force- FATF) ने ‘जॉर्डन’ और ‘माली’ के साथ तुर्की को भी “बढ़ी हुई निगरानी के तहत क्षेत्राधिकार” (Jurisdictions under increased monitoring) की संशोधित सूची में शामिल कर लिया है। इस सूची को FATF की ‘ग्रे सूची’ के रूप में भी जाना जाता है। अब, इस सूची में कुल 23 देश शामिल हो चुके हैं।
‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ द्वारा देशों को ‘ग्रे सूची’ में शामिल करने का कारण:
जब कोई देश ‘अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग’ और ‘आतंकवाद वित्तपोषण’ को रोकने में विफल रहते हैं, तो उन्हें इस सूची में रखा जाता है।
‘बढ़ी हुई निगरानी’ का तात्पर्य:
‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ (FATF) के अनुसार, किसी क्षेत्राधिकार को ‘बढ़ी हुई निगरानी’ (Increased Monitoring) में रखे जाने का तात्पर्य यह है, कि संबंधित देश एक सहमत समय सीमा के भीतर चिह्नित की गई रणनीतिक कमियों को तेजी से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है और ‘अतिरिक्त जांच’ के अधीन है।
हाल ही में ‘ग्रे सूची’ से बाहर किए गए देश:
हाल ही में ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (FATF) ने दो देशों – बोत्सवाना और मॉरीशस – को ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर कर दिया है। इन देशों द्वारा FATF द्वारा पहले से चिह्नित की गई और इससे संबंधित अपनी कार्य योजनाओं में व्याप्त ‘रणनीतिक ‘धन-शोधन रोधी/आतंकवाद वित्तपोषण का मुकाबला करने वाली’ (Anti-Money Laundering/Combating the Financing of Terrorism – AML/CFT) कमियों को दूर करने में महत्वपूर्ण प्रगति की गयी है।
ब्लैक लिस्ट तथा ग्रे लिस्ट:
ब्लैक लिस्ट (Black List): आतंकी वितपोषण तथा मनी लॉन्ड्रिंग संबंधित गतिविधियों का समर्थन करने वाले तथा इन गतिविधियों पर रोक लगाने संबंधी वैश्विक प्रावधानों के साथ सहयोग नहीं करने वाले देशों (Non-Cooperative Countries or Territories- NCCTs) को ‘ब्लैक लिस्ट’ में रखा जाता है।
FATF द्वारा नियमित रूप से ब्लैकलिस्ट में संशोधन किया जाता है, जिसमे नयी प्रविष्टियों को शामिल किया जाता है अथवा हटाया जाता है।
ग्रे लिस्ट (Grey List): जिन देशों को आतंकी वितपोषण तथा मनी लॉन्ड्रिंग संबंधित गतिविधियों के लिए सुरक्षित माना जाता है, उन्हें FATF द्वारा ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया जाता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ (FATF) के नियमों के अनुसार ‘ग्रे सूची’ और ‘ब्लैक सूची’ के मध्य एक अन्य प्रमुख चरण होता है, जिसे ‘डार्क ग्रे’ (Dark Grey) कहा जाता है। यह ‘डार्क ग्रे’ क्या है?
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘वित्तीय कार्रवाई कार्यबल’ (FATF) के बारे में
- ब्लैक लिस्ट बनाम ग्रे लिस्ट
- क्या FATF के फैसले सदस्य देशों के लिए बाध्यकारी हैं?
- FATF का प्रमुख कौन है?
- इसका सचिवालय कहाँ है?
मेंस लिंक:
फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) का अधिदेश तथा उद्देश्य क्या हैं? चर्चा कीजिए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।
विषय: महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, संस्थाएँ और मंच- उनकी संरचना, अधिदेश।
सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र
संदर्भ:
सिंगापुर स्थित मध्यस्थ, ‘सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ (Singapore International Arbitration Centre – SIAC) ने ‘फ्यूचर रिटेल लिमिटेड’ (FRL) और ‘रिलायंस रिटेल’ के मध्य 24,713 करोड़ रुपए के एक सौदे पर लगी अंतरिम रोक हटाने हेतु ‘फ्यूचर रिटेल’ द्वारा दायर की याचिका को खारिज कर दिया है।
SIAC के इस इस फैसले से ‘अमेज़ॅन’ कंपनी को एक बड़ी राहत मिली है। विदित हो कि, ‘अमेज़ॅन’ द्वारा इस सौदे का विरोध किया जा रहा था।
निहितार्थ:
सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) के इस आदेश के बाद, फ्यूचर ग्रुप द्वारा अपने खुदरा व थोक कारोबार, लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग इकाइयों को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और फैशनस्टाइल को बेचने पर रोक लग गयी है। फ्यूचर ग्रुप तथा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मध्य अगस्त में 24,713 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था।
अमेज़ॅन द्वारा SIAC में याचिका दायर करने का कारण
आमतौर पर, किसी सौदे में सभी पक्षकारों द्वारा एक अनुबंध समझौते (contractual agreement) पर हस्ताक्षर किये जाते हैं, जिसमे मुख्यतः निम्नलिखित विवरणों का उल्लेख होता है:
- मध्यस्थता करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण (The arbitral institution administering the arbitration) ।
- लागू होने वाले नियम (applicable rules) ।
- मध्यस्थता का स्थान (seat of arbitration) ।
इस मामले में, अमेज़ॅन और फ्यूचर ग्रुप के मध्य हुए एक समझौते के तहत, दोनों पक्षों के मध्य कोई विवाद होने पर, सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) द्वारा निर्णय कराने पर सहमति हुई थी।
SIAC के तहत प्रक्रिया
सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) में किसी विवाद को फैसले के लिए जाने के पश्चात, मध्यस्थ न्यायाधिकरण (arbitral tribunal) की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया शुरू होती है।
मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन: प्रायः, तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण होने पर, दोनों पक्षों द्वारा न्यायाधिकरण में एक-एक सदस्य की नियुक्ति की जाती हैं, तथा तीसरे सदस्य को दोनों पक्षों की सहमति से नियुक्त किया जाता है। सहमति नहीं होने पर, तीसरे सदस्य की नियुक्ति SIAC द्वारा की जाती है।
आपातकालीन मध्यस्थ की नियुक्ति:
आमतौर पर मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति में समय लगता है।
अतः, SIAC के नियमों के तहत, पक्षकारों द्वारा ‘सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ से अंतरिम राहत पाने हेतु आपातकालीन मध्यस्थ (Emergency Arbitrator) नियुक्त करने को कहा जा सकता है। इसके साथ ही मुख्य मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया जारी रहती है।
पक्षकारों द्वारा फैसला मानने से इंकार करने पर:
वर्तमान में भारतीय कानून के तहत, आपातकालीन मध्यस्थ (Emergency Arbitrator) के आदेशों के प्रवर्तन के लिए कोई अभिव्यक्त तंत्र नहीं है।
- हालांकि, पक्षकारों द्वारा आपातकालीन मध्यस्थ (इमरजेंसी आर्बिट्रेटर) के आदेशों का स्वेच्छा से अनुपालन किया जाता है।
- यदि, पक्षकारों द्वारा आदेशों का स्वेच्छा से अनुपालन नहीं किया जाता है, तो जिस पक्ष के हक़ में निर्णय दिया गया होता है, इस मामले में अमेज़ॅन, वह मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम (Arbitration & Conciliation Act), 1996 की धारा 9 के तहत, भारत में उच्च न्यायालय से सामान राहत पाने के लिए अपील कर सकता है।
सिंगापुर के ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता’ केंद्र बनने का कारण:
- भारत में निवेश करने वाले विदेशी निवेशक आमतौर पर भारतीय अदालतों की नीरस और निरर्थक प्रक्रिया से बचना चाहते हैं।
- विदेशी निवेशकों को लगता है, कि विवादों के समाधान में सिंगापुर तटस्थ रहने वाला देश है।
- समय के साथ सिंगापुर ने अंतरराष्ट्रीय मानकों और उच्च सत्यनिष्ठा सहित विधि के शासन द्वारा शासित क्षेत्राधिकार के रूप में एक उत्कृष्ट प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है। इससे निवेशकों को विश्वास होता है कि मध्यस्थता प्रक्रिया त्वरित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होगी।
SIAC की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत, मध्यस्थता केंद्र का शीर्ष उपयोगकर्ता था। भारत से वर्ष 2019 में 485 मामले निर्णय करवाने हेतु SIAC में भेजे गए। इसके पश्चात, फिलीपींस (122 मामले), चीन (76 मामले) और संयुक्त राज्य अमेरिका (65 मामले) का स्थान रहा।
भारत का निजी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र:
मुंबई में अब भारत का अपना अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र है।
सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) के बारे में:
यह सिंगापुर में स्थित एक गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन है। यह मध्यस्थता संबंधी अपने नियमों और UNCITRAL मध्यस्थता नियमों के तहत मध्यस्थता प्रबंधन करता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- मध्यस्थता न्यायाधिकरण क्या है?
- SIAC के बारे में
- मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 का अवलोकन
- UNCITRAL के बारे में
मेंस लिंक:
सिंगापुर, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र क्यों बन गया है? चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
भारत के लिए ‘नेट जीरो’ की व्यवहार्यता
संदर्भ:
1 नवंबर से ब्रिटेन के ‘ग्लासगो’ शहर में संयुक्त राष्ट्र के ‘पक्षकारों के सम्मेलन’ (Conference of Parties – CoP) की 26वीं बैठक शुरू हो रही हैं।
बैठक से पहले, इसे सफल बनाने के लिए सभी राष्ट्रों को ‘नेट जीरो’ (Net Zero) लक्ष्य पर प्रतिबद्धता व्यक्त करने, अथवा राष्ट्र द्वारा ‘जीवाश्म ईंधन’ के अधिकतम उत्सर्जन हेतु एक साल निश्चित करने, तथा वातावरण से अतिरिक्त कार्बन निकालकर ‘कार्बन- तटस्थ’ होने के लिए कोई सीमा निर्धारित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
‘नेट-ज़ीरो’ / ‘शुद्ध शून्य’ उत्सर्जन की आवश्यकता:
वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि सभी देशों द्वारा वर्ष 2050 तक उत्सर्जन में कटौती करके ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है, तो औसत वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक सीमित रखने का एक मौका होगा। इसके लिए उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक, वर्ष 2010 के स्तर से लगभग 45% तक कटौती करनी अनिवार्य होगी।
भारत के लिए चुनौतियां:
- ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य हासिल करने का अर्थ है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग में तीव्र और महत्वपूर्ण कटौती, जोकि भारत और अन्य विकासशील देशों के विकास पथ को प्रभावित कर सकती है।
- भारत के लिए वर्ष 2070 तक ‘नेट जीरो’ लक्ष्य प्राप्त करने हेतु, विशेष रूप से विद्युत् उत्पादन के लिए कोयले का उपयोग वर्ष 2040 तक चरम पर होना चाहिए और इसके बाद वर्ष 2040 और 2060 के बीच इसमें 99% तक कटौती की जानी चाहिए।
- इसके अलावा, सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को भी वर्ष 2050 तक चरम पर पहुंचने और वर्ष 2050 और 2070 के बीच इसमें 90% तक की कटौती करने की आवश्यकता होगी।
अब तक भारत का क्या रुख रहा है?
भारत का हमेशा से कहना है, कि वह जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कटौती करेगा, लेकिन धीरे-धीरे। क्योंकि भारत अभी मुख्य रूप से कोयले पर निर्भर है और वह विकास से समझौता नहीं कर सकता है।
इसके अलावा, ‘नेट जीरो’ का यह लक्ष्य ‘साझा किंतु विभेदित जिम्मेदारी’ (common but differentiated responsibility) के मूल सिद्धांत के खिलाफ है। इस सिद्धांत के तहत, जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार ‘विकसित देशों’ को ‘उत्सर्जन में अधिक कटौती करने’ तथा बढ़ते तापमान से पर्यावरणीय क्षति के लिए विकासशील देशों को भुगतान करने तथा इनके लिए ‘स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों’ को अपनाने के लिए वित्त पोषण करने के जरूरत है।
भारत के समक्ष विकल्प:
भले ही भारत अभी ‘नेट जीरो’ लक्ष्य की घोषणा नहीं कर सकता है, किंतु वह अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान’ (Nationally Determined Contributions – NDC) को अपडेट कर सकता है, या उच्च स्वच्छ-ऊर्जा लक्ष्य या उत्सर्जन की विशिष्ट श्रेणियों में कटौती संबंधी प्रतिबद्धताओं की घोषणा कर सकता है।
भारत का आईएनडीसी:
भारत ने पिछली बार वर्ष 2015 में अपने ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान’ (NDC) की घोषणा की थी। जिसके तहत, उसने गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की हिस्सेदारी को 40% तक बढ़ाने और जीडीपी की प्रति इकाई उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर के लगभग 33-35% तक कटौती करने और 2.5- 3 अरब टन CO2 के बराबर का कार्बन सिंक बनाने के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की थी।
आवश्यकता:
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए, विकसित देशों के लिए विकासशील देशों को सालाना 100 अरब डॉलर दिए जाने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा और मरणासन्न कार्बन क्रेडिट बाजारों को सक्रिय करने के लिए एक ठोस बाजार-आधारित तंत्र स्थापित करने जैसी पिछली प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की जरूरत है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते हैं कि भारत, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है? विश्व के शीर्ष तीन उत्सर्जक देशों के नाम बताएं?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम
संदर्भ:
हाल ही में, जम्मू और कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों की हत्याओं के बाद केंद्र शासित प्रदेश में लगभग 700 लोगों को हिरासत में लिया गया है, इनमे से कुछ लोगों को कड़े ‘सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम’ (Public Safety Act – PSA) के तहत हिरासत में लिया गया है।
‘सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम’ के तहत सरकार की शक्तियां:
- सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) को ‘जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम’, 1978 भी कहा जाता है।
- यह एक ‘निवारक निरोध कानून’ (Preventive Detention Law) है, जिसके तहत ‘राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने’ के लिए किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की आशंकापूर्ण गतिविधि करने से रोकने हेतु हिरासत में लिया जाता है।
प्रयोज्यता (Applicability):
- इस कानून के अंतर्गत सरकार को 16 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को बिना सुनवाई के दो साल तक हिरासत में रखने की शक्ति प्रदान की गयी है।
- इसके तहत, किसी व्यक्ति की गतिविधियों से ‘राज्य की सुरक्षा’ को खतरे की आशंका होने पर दो साल तक के लिए प्रशासनिक हिरासत, तथा ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ में खतरे की आशंका होने पर एक वर्ष तक के लिए प्रशासनिक हिरासत में रखने की अनुमति दी गयी है।
इसे किस प्रकार लागू किया जाता है?
- इस अधिनियम को संभागीय आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट के प्रशासनिक आदेश से लागू किया जाता है।
- हिरासत में लेने वाले अधिकारी के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने संबंधी कारण बताना आवश्यक नहीं है, क्योंकि कारणों का स्पष्टीकरण सार्वजनिक हित के विरुद्ध हो सकता है।
प्रवर्तक अधिकारियों का संरक्षण:
अधिनियम की धारा 22 के तहत, प्रवर्तक अधिकारियों को ‘अच्छे उद्देश्य’ के साथ की गई किसी भी कार्रवाई के लिए सुरक्षा प्रदान की गयी है: ‘इस अधिनयम के प्रावधानों के अनुकरण में ‘अच्छे उद्देश्यों’ के लिए की गयी किसी भी कार्यवाही के लिए संबधित व्यक्ति पर कोई कानूनी कार्यवाही, सुनवाई, अथवा मुकदमा नहीं किया जायेगा।‘
इस संबंध में नियम बनाने का अधिकार:
- अधिनियम की धारा 23 के तहत, सरकार को ‘इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप, उद्देश्य-सिद्धि के लिए आवश्यकतानुसार नियम बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है’।
- हालांकि, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के प्रावधानों के कार्यान्वयन हेतु प्रक्रियाओं को निर्धारित करने के लिए अभी तक कोई नियम नहीं बनाए गए हैं।
कानून से संबधित विवाद:
- इसके तहत, बिना सुनवाई के हिरासत में रखने की अनुमति दी गयी है।
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति को जमानत हेतु याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत हिरासत में लेने संबधी कारणों की भरमार है।
- मामूली और गंभीर प्रकृति के अपराधों के बीच कोई अंतर स्पष्ट नहीं किया गया है।
न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप:
- इस अधिनियम के तहत, प्रशासनिक निवारक निरोध के आदेश को केवल हिरासत में लिए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से न्ययालय में चुनौती दी जा सकती है।
- इस प्रकार की याचिकाओं पर केवल उच्चत्तम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय सुनवाई कर सकते है।
- यदि न्यायालय सरकार के प्रशासनिक निवारक निरोध आदेश को निरस्त कर देती है, तो सरकार, दोबारा से व्यक्ति को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत हिरासत में ले सकती है।
इंस्टा फैक्ट्स:
यदि किसी व्यक्ति को ‘निवारक निरोध’ के तहत गिरफ्तार अथवा हिरासत में लिया गया है तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त ‘गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण’ का अधिकार किस स्थिति में प्राप्त नहीं होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- अनुच्छेद 370 तथा 35A किससे संबंधित हैं?
- भारतीय संविधान के अंतर्गत निवारक निरोध से संबंधित प्रावधान
- सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम कब और क्यों लागू किया गया था?
- पब्लिक सेफ्टी एक्ट के सेक्शन 22 और 23 किससे संबंधित हैं?
- अधिनियम के प्रावधानों को कौन लागू करता है?
मेंस लिंक:
जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिए। इसे अक्सर ‘बेरहम’ (draconian) कानून के रूप में क्यों जाना जाता है?
स्रोत: द हिंदू।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति पहचान संख्या
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति पहचान संख्या (International Securities Identification Number – ISIN) 12-अंकीय अल्फ़ान्यूमेरिक कोड होता है, जो विशिष्ट रूप से सुरक्षा की पहचान करता है।
- ये संख्याएँ, किसी देश की संबंधित ‘राष्ट्रीय संख्यांकन एजेंसी’ (National Numbering Agency – NNA) द्वारा आवंटित किए जाते हैं।
- ‘आईएसआईएन’ का उपयोग समाशोधन और निपटान सहित कई प्रयोजनों में किया जाता है। ये संख्याएं संस्थागत निवेशकों की संपत्तियों (होल्डिंग्स) को दुनिया भर के बाजारों में लगातार ट्रैक करने हेतु एक सुसंगत प्रारूप सुनिश्चित करती हैं।
- ‘आईएसआईएन कोड’ एकमात्र सामान्य प्रतिभूति पहचान संख्या है जिसे सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त है।
बारबाडोस में ब्रिटिश राजतंत्र को हटाते हुए पहली बार राष्ट्रपति का चुनाव
- बारबाडोस ने कैरेबियाई द्वीप के औपनिवेशिक अतीत को खत्म करने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया है। जिसके तहत, बारबाडोस ने देश के प्रमुख के रूप में ‘यूनाइटेड किंगडम की महारानी एलिजाबेथ’ को हटाकर अपना पहला राष्ट्रपति चुना है।
- ‘बारबाडोस’ एक पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश है, जिसे वर्ष 1966 में स्वतंत्रता हासिल हुई थी। 300,000 से भी कम आबादी वाले राष्ट्र ने ब्रिटिश राजशाही के साथ लंबे समय तक संबंध बनाए रखा था। लेकिन हाल के वर्षों के दौरान देश में पूर्ण संप्रभुता और स्वदेशी नेतृत्व की मांग बढ़ी थी।
- बारबाडोस पर 1625 में अंग्रेजों ने दावा किया था। ब्रिटिश रीति-रिवाजों के प्रति वफादारी के लिए इसे कभी-कभी “लिटिल इंग्लैंड” कहा जाता है।
- यह कैरेबियन का सबसे पूर्वी द्वीप है।
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