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विषय सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. ‘भुलाए जाने का अधिकार’
2. आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना
3. पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना
4. निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की खोज
5. मेनिन्जाइटिस के उन्मूलन हेतु वैश्विक रोडमैप
सामान्य अध्ययन-III
1. राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता योजना
2. भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रोजन के किफायती उत्पादन हेतु सौर-प्रकाश और पानी का उपयोग करके रिएक्टर का विकास
3. UNECE जल सम्मेलन और सेनेगलो-मॉरिटानियाई जलभृत बेसिन
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. मुंबई के एक कुएं में नई ईल प्रजाति की खोज
सामान्य अध्ययन- II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
‘भुलाए जाने का अधिकार’
संदर्भ:
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘भुलाए जाने का अधिकार’ (Right to be Forgotten) के तहत सात साल पहले दर्ज की गयी प्राथमिकी (FIR) के संबंध में एक फैसले और आदेश को हटाने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार, गूगल और ‘इंडिया कानून’ से जवाब मांगा है, और साथ ही अदालत ने पूछा है कि इस नियम कहां तक बढ़ाया जा सकता है।
पृष्ठभूमि:
अदालत द्वारा ‘सुखमीत सिंह आनंद’ नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें उसने, ‘आर्थिक अपराध शाखा’ द्वारा वर्ष 2014 में उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में वर्ष 2015 और 2018 में दिए गए फैसले और आदेश को हटाए जाने की मांग की है।
याचिका में इस साल अप्रैल में उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें अदालत ने संबंधित मामले में याचिकाकर्ता से संबंधित खोज परिणामों को हटाने का निर्देश दिया गया था।
भारतीय संदर्भ में ‘भुलाए जाने का अधिकार‘:
- ‘भुलाए जाने का अधिकार’ (Right to be Forgotten), व्यक्ति के ‘निजता के अधिकार’ के दायरे में आता है।
- वर्ष 2017 में, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने एक ऐतिहासिक फैसले (पुत्तुस्वामी मामले) में ‘निजता के अधिकार’ को एक ‘मौलिक अधिकार’ (अनुच्छेद 21 के तहत) घोषित कर दिया गया था।
- अदालत ने उस समय कहा था कि “निजता का अधिकार ‘अनुच्छेद 21’ के तहत ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार’ के अंतर्भूत हिस्से के रूप में, और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत ‘स्वतंत्रता’ के एक भाग के रूप में रक्षित है।”
इस संदर्भ में ‘निजी डेटा सुरक्षा विधेयक’ के अंतर्गत किए गए प्रावधान:
‘निजता का अधिकार’, ‘निजी डेटा सुरक्षा विधेयक’ (Personal Data Protection Bill) द्वारा प्रशासित होता है, यद्यपि यह विधेयक अभी संसद में लंबित है।
- इस ‘विधेयक’ में विशिष्ट रूप से “भुलाए जाने के अधिकार” के बारे में बात की गई है।
- मोटे तौर पर, ‘भुलाए जाने के अधिकार’ के तहत, उपयोगकर्ता ‘डेटा न्यासियों’ (data fiduciaries) द्वारा जमा की गई अपनी व्यक्तिगत जानकारी को डी-लिंक या सीमित कर सकते है तथा इसे पूरी तरह से हटा भी सकते है या जानकारी को सुधार के साथ दिखाए जाने के लिए इसे सही भी कर सकते हैं।
विधेयक में इस प्रावधान से संबंधित विवाद:
- इस प्रावधान के साथ मुख्य मुद्दा यह है, कि व्यक्तिगत डेटा और जानकारी की संवेदनशीलता को संबंधित व्यक्ति द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है, बल्कि ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (Data Protection Authority – DPA) द्वारा इसका निरीक्षण किया जाएगा।
- इसका मतलब यह है, कि हालांकि मसौदा विधेयक में किए गए प्रावधान के अनुसार, उपयोगकर्ता अपने निजी डेटा को इंटरनेट से हटाने की मांग कर सकता है, लेकिन उसका यह अधिकार ‘डेटा संरक्षण प्राधिकरण’ (DPA) के लिए काम करने वाले न्यायनिर्णायक अधिकारी की अनुमति के अधीन होगा।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘भुलाए जाने का अधिकार’ के बारे में।
- ‘निजता का अधिकार’ क्या है?
- ‘निजी डेटा संरक्षण विधेयक’ की मुख्य विशेषताएं।
मेंस लिंक:
‘भुलाए जाने का अधिकार’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: द हिंदू।
विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।
आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS)
(Emergency Credit Line Guarantee Scheme)
संदर्भ:
सरकार द्वारा ‘आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना’ (Emergency Credit Line Guarantee Scheme – ECLGS) को मार्च 2022 के अंत तक, या योजना के तहत 4.5 लाख करोड़ रुपये की गारंटी जारी होने तक, जो भी पहले हो, तक बढ़ा दिया गया है।
योजना के बारे में:
आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) को मई 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज के एक भाग के रूप में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य कोरोनोवायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन से उत्पन्न संकट को कम करने के लिए, विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को क्रेडिट प्रदान करना था।
- इसके अंतर्गत, राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (NCGTC) द्वारा 100% गारंटी कवरेज प्रदान की जाती है, जबकि बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) द्वारा ऋण उपलब्ध कराया जाता है।
- यह ऋण, एक ‘गारंटी युक्त आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ (Guaranteed Emergency Credit Line- GECL) सुविधा के रूप में प्रदान किया जाएगा।
- योजना के तहत भागीदार ऋण प्रदाता संस्थानों (Member Lending Institutions- MLI) से NCGTC द्वारा कोई गारंटी शुल्क नहीं लिया जाएगा।
- इस योजना के अंतर्गत बैंकों और वित्तीय संस्थानों (financial Institutions) के लिए 9.25% ब्याज दर तथा गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के लिए 14% ब्याज दर की सीमा निर्धारित की गई है।
पात्रता:
- 29 फरवरी, 2020 तक 50 करोड़ रुपए के बकाया ऋण वाले तथा 250 करोड़ रुपए तक का वार्षिक कारोबार करने वाले ऋणकर्ता इस योजना का लाभ उठाने हेतु पात्र होंगे।
- 1 अगस्त 2020 को सरकार द्वारा3 लाख-करोड़ रुपए की आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का दायरा विस्तृत कर दिया गया। इसके तहत बकाया ऋण की सीमा को दोगुना कर दिया गया तथा व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए डॉक्टरों, वकीलों और चार्टर्ड एकाउंटेंट जैसे पेशेवरों को एक निश्चित ऋण ऋण प्रदान करना शामिल किया गया है।
योजना के लाभ:
- इस योजना के माध्यम से इन क्षेत्रों को कम लागत पर ऋण प्रदान किया जाएगा, जिससे MSME अपने परिचालन दायित्वों को पूरा करने और अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने में सक्षम होंगे।
- वर्तमान अभूतपूर्व स्थिति के दौरान अपना कार्य जारी रखने के लिए MSMEs को सहयोग प्रदान करने से, इस योजना का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने और इसके पुनरुद्धार में सहायता मिलने की भी उम्मीद है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘अंतर्राष्ट्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सम्मेलन’ पहली बार वर्ष 2018 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। इसके उद्देश्य क्या थे?
प्रीलिम्स लिंक:
- MSMEs का वर्गीकरण- पुराना बनाम नया।
- MSMEs का जीडीपी में योगदान।
- NBFCs क्या हैं?
- GECL सुविधा क्या है?
- NCGTC क्या है?
मेंस लिंक:
आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।
पीएम पोषण शक्ति निर्माण योजना
(PM Poshan Shakti Nirman Scheme)
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा ‘छात्रों को सरकारी और सरकारी सहायता-प्राप्त स्कूलों में पका हुआ गर्म भोजन उपलब्ध कराने हेतु जारी वर्तमान ‘मध्याह्न भोजन योजना’ (Mid-Day Meal scheme) का नाम परिवर्तन कर ‘राष्ट्रीय प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना’ (National Scheme for PM Poshan Shakti Nirman) कर दिया गया है।
‘पीएम पोषण योजना’ में प्रमुख प्रस्ताव:
- पूरक पोषण (Supplementary nutrition): नई योजना में आकांक्षी जिलों और उच्च रक्ताल्पता वाले जिलों में बच्चों को पूरक पोषाहार सामग्री उपलब्ध कराने के लिए विशेष प्रावधान किया गया है।
- राज्य द्वारा आहार तय करने का निर्णय: इसके तहत मुख्यतः केंद्र की ओर से, केवल गेहूं, चावल, दाल और सब्जियों के लिए धन उपलब्ध कराने संबंधी प्रतिबंध को हटा दिया गया है। वर्तमान में, यदि कोई राज्य, आहार-सूची में दूध या अंडे जैसे किसी भी अन्य सामग्री को जोड़ने का निर्णय लेता है, तो केंद्र द्वारा अतिरिक्त लागत का वहन नहीं किया जाता है। नयी योजना के तहत अब यह प्रतिबंध हटा दिया गया है।
- पोषण उद्यान (Nutri-gardens): सरकार बच्चों को प्रकृति और बागवानी के साथ प्रत्यक्ष अनुभव देने के लिए स्कूलों में स्कूल पोषण उद्यानों के विकास को बढ़ावा दिया जाएगा। इन बगीचों की फसल का उपयोग मध्याह्न भोजन में अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है।
- महिलाएं और किसान उत्पादक संगठन (FPOs): आत्मनिर्भर भारत के लिए वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा देने के लिए मध्याह्न योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और महिला स्वयं-सहायता समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- सामाजिक लेखा परीक्षा: इस योजना के जमीनी स्तर पर निष्पादन हेतु कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों द्वारा योजना का सोशल ऑडिट अनिवार्य कर दिया गया है।
- तिथि-भोजन (Tithi-Bhojan): तिथि भोजन की अवधारणा को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाएगा। तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है, जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं।
- स्कूलों के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण: पारदर्शिता को बढ़ावा देने और धोखाधड़ी को कम करने के लिए अन्य प्रक्रियात्मक परिवर्तनों में, राज्यों को प्रत्येक स्कूल के खातों में खाना पकाने की लागत का प्रत्यक्ष लाभ नकद अंतरण करने के लिए कहा जाएगा, और मानदेय राशि रसोइयों और सहायकों के बैंक खातों में सीधे भेजी जाएगी।
- समग्र पोषण (Holistic nutrition): इस पुनर्नामित योजना का उद्देश्य “समग्र पोषण” लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना है। इसके तहत, स्कूली पोषण उद्यानों के साथ-साथ स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा।
‘मध्याह्न भोजन योजना’ के बारे में:
यह योजना, सरकारी विद्यालयों, सहायता प्राप्त स्कूलों तथा समग्र शिक्षा के अंतर्गत सहायता प्राप्त मदरसों में सभी बच्चों के लिए एक समय के भोजन को सुनिश्चित करती है।
- इस योजना के अंतर्गत, आठवीं कक्षा तक के छात्रों को एक वर्ष में कम से कम 200 दिन पका हुआ पौष्टिक भोजन प्रदान किया जाता है।
- इस योजना का कार्यान्वयन मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा किया जाता है।
- इस योजना को एक केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 15 अगस्त, 1995 को पूरे देश में लागू किया गया था।
- इसे प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पौषणिक सहायता कार्यक्रम (National Programme of Nutritional Support to Primary Education: NP– NSPE) के रूप में शुरू किया गया था।
- वर्ष 2004 में, इस कार्यक्रम को मिड डे मील योजना के रूप में फिर से शुरू किया गया था।
उद्देश्य:
भूख और कुपोषण को दूर करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना, विभिन्न जातियों के मध्य समाजीकरण में सुधार करना, जमीनी स्तर पर, विशेष रूप से महिलाओं को रोजगार प्रदान करना।
मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) नियम 2015 के अनुसार:
- बच्चों को केवल स्कूल में ही भोजन परोसा जाएगा।
- खाद्यान्नों की अनुपलब्धता अथवा किसी अन्य कारणवश, विद्यालय में पढाई के किसी भी दिन यदि मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।
- निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के अंतर्गत अधिदेशित स्कूल प्रबंधन समिति मध्याह्न भोजन योजना के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी।
पोषण संबंधी मानक:
- मध्याह्न भोजन योजना (MDMS) दिशानिर्देशों के अनुसार, निम्न प्राथमिक स्तर के लिये प्रतिदिन न्यूनतम 450 कैलोरी ऊर्जा एवं 12 ग्राम प्रोटीन दिए जायेंगे, तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिये न्यूनतम 700 कैलोरी ऊर्जा एवं 20 ग्राम प्रोटीन दिए जाने का प्रावधान है।
- MHRD के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के भोजन में, 100 ग्राम खाद्यान्न, 20 ग्राम दालें, 50 ग्राम सब्जियां और 5 ग्राम तेल और वसा सम्मिलित की जायेगी। उच्च-प्राथमिक स्कूलों के बच्चों के भोजन में, 150 ग्राम खाद्यान्न, 30 ग्राम दालें, 75 ग्राम सब्जियां और 7.5 ग्राम तेल और वसा को अनिवार्य किया गया है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप 2012: रियो +20 ‘जीरो हंगर चैलेंज’ के बारे में जानते हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- MDMS योजना कब शुरू हुई?
- इसका नाम-परिवर्तन कब किया गया था?
- केंद्र प्रायोजित और केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के बीच अंतर?
- MDMS किस प्रकार की योजना है?
- योजना के तहत वित्त पोषण
- पोषक मानदंड निर्धारित
- योजना के तहत कवरेज
- योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की जिम्मेदारी
मेंस लिंक:
मध्याह्न भोजन योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की खोज
संदर्भ:
राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (National Institute of Virology), पुणे द्वारा केरल के दो जिलों से एकत्र किए गए चमगादड़ों के नमूनों में ‘निपाह वायरस एंटीबॉडी’ (Nipah virus antibodies – IgG antibodies) की खोज की गयी है। कुछ समय पहले केरल में इन जगहों पर निपाह वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई थी।
इस खोज का महत्व:
वर्तमान साक्ष्यों को देखते हुए, यह तार्किक रूप से निष्कर्ष निकाला गया है कि ‘कोझीकोड’ में निपाह का प्रकोप चमगादड़ों से फैला था। हालांकि अधिकारी-गण, चमगादड़ से मनुष्यों में वायरस के संचरण-मार्ग के बारे में अभी भी अंधेरे में हैं।
भारत में निपाह वायरस का प्रकोप:
- भारत में अब तक चार बार ‘निपाह वायरस’ (NiV) का प्रकोप फ़ैल चुका है, और इनमे मृत्यु दर 65 प्रतिशत और 100 प्रतिशत के बीच रही है।
- ‘निपाह वायरस’ का सबसे हालिया प्रकोप, वर्ष 2018 में केरल राज्य में फैला था।
- दक्षिणी एशियाई देशों और कुछ भारतीय राज्यों को इस बीमारी के संभावित हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किया गया है।
वर्तमान चिंता का विषय:
निपाह वायरस के लिए काफी खतरनाक माना जाता है, क्योंकि इसकी रोकथाम के लिए अभी कोई दवा या टीका विकसित नहीं किया गया है, और इससे संक्रमित लोगों में मृत्यु दर काफी उच्च रहती है।
कोविड-19 से संक्रमित रोगियों में ‘मामला मृत्यु दर’ (Case Fatality Rate- CFR), 1-2% के बीच रहती है, जबकि निपाह संक्रमण के मामले में ‘सीएफआर’ (CFR), 65-100% तक पहुँच जाती है।
निपाह वायरस के बारे में:
- यह एक ‘जूनोटिक वायरस’ है, अर्थात यह जानवरों और मनुष्यों के मध्य फैल सकता है।
- निपाह वायरस एन्सेफेलाइटिस का कारण बनने वाले जीव, ‘पैरामाइक्सोविरिडे’ (Paramyxoviridae), जीनस हेनिपावायरस (genus Henipavirus) परिवार के RNA या राइबोन्यूक्लिक एसिड वायरस है, और यह हेंड्रा वायरस (Hendra virus) के साथ निकटता से संबंधित है।
- ‘फ्रूट बैट’ (Fruit bats), जिसे ‘फ्लाइंग फॉक्स’ भी कहा जाता है, के माध्यम से फैलता है, जो निपाह और हेंड्रा वायरस के प्राकृतिक स्रोत होते हैं।
- लक्षण: निपाह वायरस का संक्रमण ‘इंसेफेलाइटिस’ (मस्तिष्क की सूजन) से जुड़ा होता है, और यह संक्रमित व्यक्ति के लिए मामूली से लेकर गंभीर बीमारी और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘निपाह वायरस’ (NiV) को “अत्यधिक रोगजनक पैरामाइक्सोवायरस” (Highly Pathogenic Paramyxovirus) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस श्रेणी में और कौन से वायरस शामिल हैं?
प्रीलिम्स लिंक:
- निपाह वायरस के बारे में
- कारण
- लक्षण
- उपचार और रोकथाम
- ‘जूनोटिक रोग’ क्या हैं?
स्रोत: द हिंदू।
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
मेनिन्जाइटिस के उन्मूलन हेतु वैश्विक रोडमैप
संदर्भ:
हाल ही में, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (WHO) और इसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा वर्ष 2030 तक ‘मस्तिष्क ज्वर’ / ‘मेनिन्जाइटिस’ (Meningitis) महामारी के उन्मूलन हेतु एक वैश्विक रोडमैप जारी किया गया है।
- यह ‘मस्तिष्क ज्वर’ या दिमागी बुखार या मेनिन्जाइटिस का उन्मूलन करने के लिए पहली वैश्विक रणनीति है।
- इसका उद्देश्य जीवाणु-जनित मेनिन्जाइटिस महामारी अर्थात ‘बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस’ (Bacterial Meningitis) का अंत करना और इससे होने वाली मौतों को 70 प्रतिशत तक कम करना तथा संक्रमण के मामलों की संख्या को आधा करना है।
नए रोडमैप के लक्ष्य:
- उच्च टीकाकरण कवरेज, नए किफायती टीकों का विकास और बेहतर रोकथाम रणनीतियों और प्रकोप के लिए प्रतिक्रिया का निर्माण करना।
- संक्रमण की तत्काल पहचान और रोगियों के लिए इष्टतम उपचार।
- रोकथाम और नियंत्रण प्रयासों को दिशा-निर्देशित करने हेतु अच्छे आंकड़े।
- प्रभावित लोगों के लिए देखभाल और सहायता, बीमारी की शीघ्र पहचान और इसके बाद चिकित्सा देखभाल तक बेहतर पहुंच और सहायता पर ध्यान केंद्रित करना।
- मेनिन्जाइटिस के बारे में उच्च जागरूकता सुनिश्चित करने, राष्ट्रीय योजनाओं के लिए जवाबदेही तय करने, और रोकथाम, चिकित्सा-देखभाल और इसके बाद सेवाओं के अधिकार की अभिपुष्टि करने हेतु सिफारिश एवं अनुबंध करना।
महत्व:
यह रणनीति सालाना 200,000 से अधिक लोगों की जान बचा सकती है और इस बीमारी की वजह से होने वाली विकलांगता को काफी कम कर सकती है।
‘मेनिन्जाइटिस’ या ‘दिमागी बुखार’ के बारे में:
‘मेनिन्जाइटिस’, मुख्यतः मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारो ओर मौजूद सुरक्षात्मक झिल्लियों में आने सूजन होती है।
- यह बीमारी, मुख्य रूप से बैक्टीरिया और वायरल संक्रमण के कारण होती है।
- जीवाणु संक्रमण के कारण होने वाली मेनिन्जाइटिस बीमारी, एक वर्ष में लगभग 250,000 मौतों का कारण बन जाती है, और तेज़ी से फैलने वाली महामारी का रूप भी ले सकती है।
- इस रोग से प्रभावित प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, और प्रत्येक पाँचवाँ व्यक्ति दीर्घकालिक विकलांगता के शिकार जाता है, जिनमे से ज्यादातर बच्चे और युवा होते हैं।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आपने उप-सहारा अफ्रीका के 26 देशों में विस्तारित ‘मेनिन्जाइटिस बेल्ट’ (Meningitis Belt) के बारे में सुना है? संदर्भ: इसे पढ़ें।
स्रोत: डाउन टू अर्थ।
सामान्य अध्ययन- III
विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।
राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA) योजना
संदर्भ:
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता’ (National Export Insurance Account – NEIA) योजना को जारी रखने और 5 वर्ष से ज्यादा समय के लिए 1,650 करोड़ रुपये के सहायता अनुदान को मंजूरी दी है
इस निर्णय का महत्व:
- NEIA ट्रस्ट में पूंजी लगाने से भारतीय परियोजना निर्यातकों (आईपीई) को निर्धारित बाजार में परियोजना निर्यात की विशाल क्षमता का दोहन करने में मदद मिलेगी।
- देश भर से भारतीय स्रोतों से प्राप्त सामग्री के साथ परियोजना निर्यात की दिशा में किये गए इस समर्थन से भारत में विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
NEIA ट्रस्ट:
‘राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता’ ट्रस्ट (NEIA Trust) स्थापना वर्ष 2006 में रणनीतिक और राष्ट्रीय महत्त्व के दृष्टिकोण से भारत से ‘परियोजना निर्यात’ को प्रोत्साहन देने के लिये की गई थी।
NEIA ट्रस्ट, मध्यम और दीर्घावधि (medium and long term – MLT) / ‘परियोजना निर्यात’ को बढ़ावा देता है, जिसके तहत भारत से परियोजना निर्यात को (आंशिक/पूर्ण) सहायता देकर ‘निर्यात ऋण गारंटी निगम’ (Export Credit Guarantee Corporation- ECGC) द्वारा MLT / ‘प्रोजेक्ट एक्सपोर्ट’ और ‘एक्ज़िम बैंक फॉर बायर्स क्रेडिट’ (BC-NEIA) से जुड़े क्षेत्रों को मदद दी जाती है।
राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता (NEIA):
- राष्ट्रीय निर्यात बीमा खाता, पात्र निर्यातकों को कवर देने में ईसीजीसी लिमिटेड की सीमाओं, पुनर्बीमा की गैर-उपलब्धता पर विचार करते हुए, भारत सरकार द्वारा वाणिज्यिक रूप से व्यवहारिक ‘मध्यम और दीर्घावधि निर्यात’ की सुविधा के लिए स्थापित किया गया है।
- NEIA का उद्देश्य, राष्ट्रीय हित के दृष्टिकोण से वांछनीय परियोजनाओं और अन्य उच्च मूल्य वाले निर्यातों के लिए कुछ शर्तों के साथ ऋण जोखिम कवर की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार द्वारा शुरू की गईं निर्यात संबंधित योजनाएं और उपाय:
- विदेश व्यापार नीति (2015-20): कोविड-19 महामारी की स्थिति के चलते विदेश व्यापार नीति (2015-20) को 30 सितम्बर 2021 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। इसका उद्देश्य वर्ष 2019-20 तक विदेशी बिक्री को दोगुना कर 900 बिलियन डॉलर करना था।
- कोविड-19 के दौर में तरलता उपलब्ध कराने के लिए सभी स्क्रिप्ट आधारित योजनाओं के अंतर्गत पूरा लंबित बकाया चुकाने के लिए सितंबर, 2021 में 56,027 करोड़ रुपये जारी किए गए।
- एक नई योजना-‘रिमिशन ऑफ ड्यूटीज एंड टैक्सेस एंड एक्सपोर्ट प्रोडक्ट्स’ (RoDTEP) शुरू की गई। वित्तीय वर्ष 2021-22 में योजना के लिए 12,454 करोड़ रुपये अनुमोदित किए गए हैं। यह उन करों/शुल्कों/ लेवी की प्रतिपूर्ति के लिए डब्ल्यूटीओ अनुकूल तंत्र है, जिसका केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर पर किसी अन्य व्यवस्था के तहत रिफंड नहीं किया जा रहा है।
- ROSCTL योजना के माध्यम से केंद्रीय/राज्य करों से छूट के द्वारा वस्त्र क्षेत्र के लिए समर्थन बढ़ाया गया, जिसे अब मार्च, 2024 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
- व्यापार को सुगम बनाने और निर्यातकों द्वारा एफटीए उपयोगिता बढ़ाने के उद्देश्य से सर्टिफिकेट ऑफ ओरिजिन के लिए कॉमन डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया।
- व्यापारिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और विपणन को प्रोत्साहन देने के लिए ‘ट्रेड इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर एक्सपोर्ट स्कीम’ (TIES), मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (MAI) स्कीम और ‘ट्रांसपोर्ट एंड मार्केटिंग असिस्टैंस’ (TMA) योजनाएं।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रोजन के किफायती उत्पादन हेतु सौर-प्रकाश और पानी का उपयोग करके रिएक्टर का विकास
संदर्भ:
वैज्ञानिकों की एक टीम ने पहली बार एक बड़े पैमाने का रिएक्टर विकसित किया है जो सूर्य के प्रकाश और पानी जैसे स्थायी स्रोतों का उपयोग करके पर्याप्त मात्रा में हाइड्रोजन का उत्पादन करता है, जो एक किफायती और लंबे समय तक कायम रह सकने वाली प्रक्रिया है।
- वैज्ञानिकों ने इसके लिए पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कार्बन नाइट्राइड नामक रसायन का उपयोग उत्प्रेरक के रूप में किया है।
- यह कार्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की NATDP परियोजना द्वारा समर्थित है।
रिएक्टर की कार्यविधि:
- वैज्ञानिकों की टीम ने कार्बन नाइट्राइड्स में कम लागत वाले ऑर्गेनिक सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल किया, जिसे इसके सस्ते पूर्ववर्ती, जैसे यूरिया और मेलामाइन, का उपयोग करके बड़े पैमाने पर आसानी से तैयार किया जा सकता है।
- जब इस अर्धचालक पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तो इलेक्ट्रॉन और छिद्र (Holes) उत्पन्न होते हैं।
- इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन को कम कर हाइड्रोजन का उत्पादन करते हैं, वहीं रासायनिक एजेंटों, जिन्हें सेक्रेफिशल एजेंट (Sacrificial Agents) कहते हैं, के द्वारा छिद्रों को भरा जाता है।
- अगर इन छिद्रों को भरा नहीं जाये तो, वे इलेक्ट्रॉनों के साथ फिर से जुड़ जाएंगे।
- रिएक्टर लगभग 1 वर्ग मीटर का है, और जहां पर जल प्रवाह बनाये रखा जाता है, प्रकाश उत्प्रेरक का पैनलों के रूप में लेप किया गया।
- प्राकृतिक रुप से प्राप्त सूर्य के प्रकाश के विकिरण पर, हाइड्रोजन का उत्पादन होता है और गैस क्रोमैटोग्राफी के माध्यम से इसकी मात्रा निर्धारित की जाती है।
इस उपलब्धि का महत्व:
- इस तरह से उत्पन्न हाइड्रोजन का उपयोग कई रूपों में किया जा सकता है, जैसेकि उदहारण के तौर पर, दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में ‘फ्यूल सेल’ के माध्यम से बिजली उत्पादन, हाइड्रोजन स्टोव और छोटे गैजेट्स को बिजली देना आदि।
- आने वाले समय में, इसके माध्यम से ट्रांसफॉर्मर और ई-वाहनों को ईधनजा सकता है, जो कि जारी अनुसंधान के दीर्घकालिक लक्ष्य है।
आगे की राह:
अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान, पीएम ने नवीकरणीय ऊर्जा से कार्बन मुक्त ईंधन उत्पन्न करने की योजना में तेजी लाने के लिए एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन शुरू करने की घोषणा की थी क्योंकि उन्होंने देश के लिए ऊर्जा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए वर्ष 2047 का लक्ष्य निर्धारित किया था।
भारत ने वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है। इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए, वर्तमान परिदृश्य में, दुनिया भर के शोधकर्ता ऐसे अक्षय ऊर्जा समाधानों की दिशा में काम कर रहे हैं जो सीमित कार्बन उत्सर्जन के साथ लंबे समय तक जारी रखे जा सकें।
‘हाइड्रोजन ईंधन’ क्या है?
हाइड्रोजन, आवर्त सारणी में सबसे हल्का और पहला तत्व है। चूंकि, हाइड्रोजन का भार, हवा के भार से कम होता है, इसलिए यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठ कर फ़ैल जाता है और यही कारण है, कि इसे अपने शुद्ध रूप ‘H2’ में मुश्किल से ही कभी पाया जाता है।
- मानक ताप और दाब पर, हाइड्रोजन, एक गैर-विषाक्त, अधात्विक, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक दहनशील द्विपरमाणुक गैस है।
- हाइड्रोजन ईंधन, ऑक्सीजन के साथ दहन करने पर ‘शून्य-उत्सर्जन’ करने वाला ईंधन है। इसका उपयोग ईंधन सेलों अथवा आंतरिक दहन इंजनों में किया जा सकता है। अंतरिक्ष यान प्रणोदनों (spacecraft propulsion) के लिए ईंधन के रूप में भी हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है।
हाइड्रोजन की उत्पत्ति:
- यह ब्रह्मांड में पाया जाने वाला सबसे प्रचुर तत्व है। सूर्य और अन्य तारे, व्यापक रूप से हाइड्रोजन से निर्मित होते हैं।
- खगोलविदों का अनुमान है, कि ब्रह्मांड में पाए जाने वाले 90% परमाणु, हाइड्रोजन परमाणु हैं। किसी भी अन्य तत्व की तुलना में, हाइड्रोजन, सर्वाधिक योगिकों में एक घटक के रूप में शामिल होता है।
- पृथ्वी पर उपस्थित हाइड्रोजन का, सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला यौगिक ‘जल’ है।
- पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जल-निकायों में आणविक हाइड्रोजन नहीं पाया जाता है।
- पृथ्वी पर अधिकांशतः हाइड्रोजन, जल और ऑक्सीजन के साथ तथा जीवित या मृत अथवा या जीवाश्म जैवभार में, कार्बन के साथ युग्मित होती है। जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रूप में विखंडित करके हाइड्रोजन का निर्माण किया जा सकता है।
भंडारण:
- हाइड्रोजन को भौतिक रूप से अथवा गैस या तरल के रूप में संग्रहीत किया जा सकता है।
- गैस के रूप में हाइड्रोजन का भंडारण करने हेतु आमतौर पर उच्च दाब वाले टैंक की आवश्यकता होती है।
- तरल के रूप में हाइड्रोजन का भंडारण करने के लिए क्रायोजेनिक तापमान की जरूरत होती है, क्योंकि हाइड्रोजन का क्वथनांक एक वायुमंडलीय दाब पर −252.8 ° C होता है।
- हाइड्रोजन के लिए ठोस पदार्थों की सतह पर (adsorption / अधिशोषण द्वारा) अथवा ठोस पदार्थों के भीतर (absorption / अवशोषण द्वारा) संग्रहीत किया जा सकता है।
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में ‘स्वच्छ हाइड्रोजन उद्योग’ की क्षमता:
- हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से उत्सर्जित होने वाला एकमात्र उप-उत्पाद ‘जल’ होता है – जिस कारण यह ईंधन 100 प्रतिशत स्वच्छ हो जाता है।
- हाइड्रोजन को, शून्य-उत्सर्जन इलेक्ट्रिक वाहनों में ईंधन सेलों की शक्ति, घरेलू उत्पादन में इसकी क्षमता और ईंधन सेलों की उच्च दक्षता क्षमताओं के कारण, एक वैकल्पिक ईंधन माना जाता है।
- वास्तव में, इलेक्ट्रिक मोटर के साथ फ्यूल सेल/ ईंधन सेल, गैस-चालित आंतरिक दहन इंजन की तुलना में दो से तीन गुना अधिक कुशल है।
- इलेक्ट्रिक मोटर के साथ मिलकर एक ईंधन सेल दो से तीन गुना अधिक कार्यक्षम होते है।
- हाइड्रोजन, आंतरिक दहन इंजनों के लिए ईंधन के रूप में भी काम कर सकता है।
- 2 पाउंड (1 किलोग्राम) हाइड्रोजन गैस की ऊर्जा, 1 गैलन (6.2 पाउंड/ 2.8 किलोग्राम) गैसोलीन की ऊर्जा के बराबर होती है।
इस संबंध में किये जा रहे प्रयास:
- हाल ही में, केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2020-21 के लिए औपचारिक रूप से ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ (NHM) की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
- नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने स्पष्ट किया है कि ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ के लिए इस महीने के अंत तक मसौदा नियमों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा और इसके बाद मसौदा नियमों को मंत्रिमंडल के अनुमोदन हेतु भेजा जाएगा।
नीतिगत चुनौतियां:
- हरित अथवा नीले हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक संधारणीयता, हाइड्रोजन का व्यावसायिक रूप से दोहन करने के लिए उद्योगों के सामने भारी चुनौतियों में से एक है।
- हाइड्रोजन के उपयोग तथा उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी, जैसेकि ‘कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS), अभी प्रारम्भिक चरण में हैं और काफी महंगी है, जिससे हाइड्रोजन की उत्पादन-लागत काफी अधिक हो जाती है।
- किसी संयंत्र के पूरा होने के बाद ईंधन सेलों (fuel cells) की रखरखाव लागत काफी महंगी हो सकती है, जैसाकि दक्षिण कोरिया में है।
- ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग हेतु, हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और मांग निर्माण के लिए अनुसंधान और विकास में भारी निवेश की आवश्यकता है।
इंस्टा जिज्ञासु:
क्या आप जानते है, कि ‘हाइड्रोजन निष्कर्षण’ के कई तरीके होते हैं और विधि के आधार पर उत्पादित हाइड्रोजन को ‘ग्रे’, ‘ब्लू’ या ‘ग्रीन’ हाइड्रोजन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- हाइड्रोजन ईंधन के बारे में।
- इसे स्वच्छ ईंधन क्यों कहा जाता है?
- विशेषताएं।
- लाभ।
- उत्पादन और भंडारण।
मेंस लिंक:
ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के महत्व की चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी।
विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।
UNECE जल सम्मेलन और सेनेगलो-मॉरिटानियाई जलभृत बेसिन
(UNECE Water Convention and Senegalo-Mauritanian Aquifer Basin)
हाल ही में, चार पश्चिम अफ्रीकी देशों- गाम्बिया, गिनी बिसाऊ, मॉरिटानिया और सेनेगल- द्वारा ‘सेनेगल-मॉरिटानिया एक्वीफर बेसिन’ (Senegal-Mauritanian Aquifer Basin – SMAB) में सीमा पार सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
- ये देश SMAB पर सहयोग के लिए एक ‘कानूनी और संस्थागत ढांचा’ स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।
- यह, पश्चिम अफ्रीका में इस तरह का पहला तंत्र होगा और विश्व भर में साझा भूजल संसाधनों पर सशक्त सहयोग का मार्ग प्रशस्त करेगा।
SMAB के बारे में:
‘सेनेगल-मॉरिटानिया एक्वीफर बेसिन’ (Senegal-Mauritanian Aquifer Basin – SMAB), उत्तर-पश्चिम अफ्रीका के अटलांटिक किनारे पर सबसे बड़ा बेसिन है, और इसका क्षेत्रफल 350,000 वर्ग किलोमीटर है।
इस क्षेत्र में रहने वाली 24 मिलियन से अधिक आबादी पेयजल और अन्य जरूरतों के लिए इस बेसिन पर निर्भर हैं।
आवश्यकता:
सेनेगल द्वारा वर्ष 2018 में ‘संयुक्त राष्ट्र यूरोपीय आर्थिक आयोग’ (United Nations Economic Commission for Europe – UNECE) जल अभिसमय (UNECE Water Convention) में शामिल होने पर, इस तरह की घोषणा के लिए अनुरोध किया था।
इसके बाद ‘जल अभिसमय’ सचिवालय ने ‘जिनेवा वाटर हब’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय भूजल संसाधन आंकलन केंद्र’ (International Groundwater Resources Assessment Centre) के साथ मिलकर, SMAB घोषणा में सहयोग प्रदान किया है।
‘जल अभिसमय’ के बारे में:
- ‘सीमापारीय जलधाराओं एवं अंतर्राष्ट्रीय झीलों के संरक्षण और उपयोग पर अभिसमय’, अर्थात ‘जल अभिसमय’ (Convention on the Protection and Use of Transboundary Watercourses and International Lakes – Water Convention) वर्ष 1992 में हेलसिंकी में अपनाया गया था और वर्ष 1996 में लागू हुआ था।
- यह अभिसमय साझा जल संसाधनों के स्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देने, सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन, संघर्षों की रोकथाम और शांति एवं क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने वाला एक अद्वितीय कानूनी रूप से बाध्यकारी उपकरण है।
कार्यान्वयन:
- जल अभिसमय के तहत, भागीदार सदस्यों के लिए सीमा पार से पड़ने वाले प्रभावों को रोकने, नियंत्रित और कम करने, उचित और न्यायसंगत तरीके से सीमा-पारीय जल का उपयोग करने और उनके स्थायी प्रबंधन को सुनिश्चित करने को अनिवार्य किया गया है।
- सीमा-पारीय जल-निकायों की सीमा साझा करने वाले अभिसमय के सदस्य देशों को विशिष्ट समझौतों और संयुक्त निकायों का गठन करके परस्पर सहयोग करना होगा।
- एक फ्रेमवर्क समझौते के रूप में, ‘जल अभिसमय’ किसी विशिष्ट बेसिन या एक्वीफर्स के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों की जगह नहीं लेता है; बल्कि, यह उनकी स्थापना और कार्यान्वयन, साथ ही साथ आगे के विकास को बढ़ावा देता है।
सदस्य:
सितंबर 2018 तक, ‘जल अभिसमय’ (Water Convention) को 42 राष्ट्रों और यूरोपीय संघ सहित कुल 43 पक्षकारों द्वारा अनुमोदित किया जा चुका था। यूनाइटेड किंगडम द्वारा इस ‘अभिसमय’ पर हस्ताक्षर किए गए हैं लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की गई है।
इंस्टा जिज्ञासु:
‘जल अभिसमय’ UNECE द्वारा समझौता वार्ता के माध्यम से की गई पांच पर्यावरण संधियों में से एक है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ।
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
मुंबई के एक कुएं में नई ईल प्रजाति की खोज
भारत के लिए स्थानिक ‘रक्थमिच्थिस प्रजाति (Rakthamicthys Genus) से संबंधित दलदली क्षेत्र में पायी जाने वाली ईल मछली (Swamp Eel) की एक नई प्रजाति को मुंबई के एक कुएं में खोजा गया है।
- इस नयी प्रजाति का नाम ‘रक्थमिच्थिस मुंबा’ (Rakthamichthys mumba) रखा गया है।
- अपने जीनस की अन्य प्रजातियों के विपरीत, ‘रक्थमिच्थिस मुंबा’ ईल में आँखे, पंख और शल्क नहीं पाए जाते हैं, और इसके शरीर के अगले भाग में बाहर की ओर निकले हुए जबड़े, भिन्न प्रकार के गलफड़े (gill aperture) और अर्धचंद्राकार आकार का सिर होता है।
- यह प्रजाति भारत के पश्चिमी घाट में पायी जाने वाली अपनी सह-प्रजातियों से भिन्न होती है।
- वर्तमान में इस प्रजाति का ज्ञात आवास मुंबई का एकमात्र कुआं है।
सिनब्रान्चिडे (Synbranchidae) परिवार के सदस्य बहुत ही अजीबोगरीब होते हैं। ये ईल जैसी मछलियों के समान आकार के ‘पर्कोमोर्फ’ (Percomorphs) वंश से संबंधित है, तथा ये अंटार्कटिका को छोड़कर सभी देशों में पाए जाते हैं। वर्तमान में, इस परिवार में 26 प्रजातियां शामिल हैं, और बिना आँखों, पंखों तथा शल्कों के अनोखे जीव होते है।
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