INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 9 August 2021 – INSIGHTSIAS

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विषयसूची

सामान्य अध्ययन-I

 1. संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाल विवाह की कड़ी आलोचना

2. अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण (AMOC)

 

सामान्य अध्ययन-II

1. दत्तक ग्रहण, धर्म की सीमाओं में सीमित नहीं है: दिल्ली उच्च न्यायालय

2. जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्रीय कानून की मांग

3. प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपन्न हितग्राही (पीएम-दक्ष) योजना

 

सामान्य अध्ययन-III

1. हाइड्रोजन ईंधन

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. एविया द्वीप

2. भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) बल

3. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA)

4. पेनसिलुंगपा ग्लेशियर

 


सामान्य अध्ययन- I


 

विषय: भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ, भारत की विविधता।

 संयुक्त राष्ट्र द्वारा बाल विवाह की कड़ी आलोचना


संदर्भ:

जिम्बाब्वे में 14 साल की बच्ची की कथित तौर पर प्रसव के दौरान मौत होने के बाद, संयुक्त राष्ट्र ने ‘कम उम्र में जबरन विवाह’ कराए जाने की निंदा की है।

इस मौत से सोशल मीडिया और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं में जोरदार गुस्सा देखा गया है।

ज़िम्बाब्वे में बाल विवाह संबंधी मामले:

ज़िम्बाब्वे में, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ ‘नाबालिगों के विवाह कराए जाने’ सहित हिंसा संबंधी मामले चिंता का विषय हैं।

आधिकारिक आंकड़े बताते हैं, कि जिम्बाब्वे में हर तीन लड़कियों में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है।

पूरे विश्व में बाल विवाह:

पूरे विश्व में, हर साल 12 मिलियन लड़कियों का उनके बचपन में ही विवाह कर दिया जाता है।

  • अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में, बाल विवाह का स्तर पूरे विश्व में सर्वाधिक है, यहाँ 35 प्रतिशत युवा महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है।
  • इसके बाद, दक्षिण एशिया का स्थान है, जहां लगभग 30 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है।
  • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका और पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में बाल विवाह का निम्न स्तर पाया जाता है।

बाल विवाह का अंत करने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय प्रयास:

  • संयुक्त राष्ट्र का महिलाओं के खिलाफ भेदभाव उन्मूलन अभिसमय, 1979 (Convention on the Elimination of Discrimination Against Women, 1979) के अंतर्गत, किसी बच्चे की सगाई और विवाह कानूनी रूप से मान्य नहीं होंगे।
  • विवाह, विवाह के लिए न्यूनतम आयु और विवाह के पंजीकरण पर सहमति अभिसमय, 1964 (1964 Convention on Consent to Marriage, Minimum Age for Marriage and Registration of Marriages) के अनुसार, अभिसमय के पक्षकार सदस्यों द्वारा ‘विवाह के लिए न्यूनतम आयु’ निर्दिष्ट करने हेतु विधायी कार्रवाई की जाएगी।
  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights– UDHR) के अंतर्गत, विवाह के लिए स्वतंत्र एवं पूर्ण’ सहमति के अधिकार को मान्यता दी गई है।
  • यद्यपि ‘संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय’ (UN Convention on the Rights of the Child CRC) में विवाह का सीधा उल्लेख नहीं किया गया है, किंतु बाल विवाह-  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, सभी प्रकार के दुर्व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार, और हानिकारक पारंपरिक प्रथाओं से सुरक्षित होने का अधिकार- जैसे अन्य अधिकारों से जुड़ा हुआ है।
  • वर्ष 2016 में, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund – UNICEF) और ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ (UNFPA) द्वारा संयुक्त रूप से ‘बाल विवाह’ को समाप्त करने के लिए एक वैश्विक कार्यक्रम शुरू किया गया।
  • बच्चों का कम आयु में और जबरन विवाह उन्मूलन, सतत विकास लक्ष्यों के लक्ष्य- 5 : लैंगिक समानता प्राप्त करना और सभी महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाना” का एक भाग है।

बाल विवाह से जुड़ी चिंताएं:

  1. 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह मानव अधिकारों का मूलभूत उल्लंघन है।
  2. हालांकि, यह प्रथा लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए अधिक आम है, यह लैंगिक भिन्नता के बावजूद मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है।
  3. बाल विवाह के परिणामस्वरूप, लड़कियों को कम आयु में गर्भावस्था और सामजिक अलगाव से गुजरना पड़ता है, जिससे उनकी स्कूली शिक्षा में बाधा उत्पन्न होती है और करियर और व्यावसायिक उन्नति के अवसरों को सीमित हो जाते है। कुल मिलाकर उनका संपूर्ण विकास संकट में पड़ जाता है।
  4. बाल विवाह से लड़कियों का बचपन छीन लिया जाता है और उनके जीवन और स्वास्थ्य को खतरा होता है। 18 वर्ष से पहले विवाहित लड़कियों को घरेलू हिंसा का सामना करने की अधिक तथा स्कूल में पढ़ाई जारी रखने की कम संभावना होती है।
  5. बाल वधू, अक्सर किशोरावस्था के दौरान गर्भवती हो जाती हैं, जब गर्भावस्था और प्रसव के दौरान, उनके लिए व उनके शिशु के लिए जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है।
  6. बाल विवाह, एक लड़की के स्वास्थ्य, भविष्य और परिवार को प्रभावित करता है, जिससे यह राष्ट्रीय स्तर पर भी, विकास और समृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने के साथ-साथ, पर्याप्त मात्रा में आर्थिक भार डालता है।
  7. बिना किसी और बढ़ोतरी के, वर्ष 2030 तक 120 मिलियन से अधिक अन्य लड़कियों की शादी उनके 18वें जन्मदिन से पहले हो जाएगी।

बाल विवाह के बढ़ते मामलों के कारण?

बच्चे को शादी के जोखिम में डालने के लिए कई कारक एक साथ काम करते है, जिसमें गरीबी, पारिवारिक सम्मान, सामाजिक मानदंड, प्रथागत या धार्मिक नियम, विवाह द्वारा बच्चे की सुरक्षा संबंधी धारणा, अपर्याप्त विधायी ढांचा और देश में सिविल पंजीकरण प्रणाली की स्थिति आदि शामिल हैं।

भारत में बाल विवाह को रोकने हेतु कानून:

  1. बाल विवाह प्रथा को प्रतिबंधित करने हेतु ‘बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम’ 1929 (Child Marriage Restraint Act of 1929)
  2. ‘बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम’ की कमियों को दूर करने और उन्हें सुधारने हेतु ‘बाल विवाह निषेध अधिनियम’, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006)

आवश्यकता:

  1. सामाजिक जागरूकता में वृद्धि। बच्चों को उनके मानवाधिकारों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है और इस प्रकार की घटना होने पर, बच्चों को मना करने और विरोध करने के लिए सिखाया जाना चाहिए।
  2. मीडिया को भी इस जघन्य प्रथा के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है।
  3. लड़कियों के प्रति सामाजिक मानदंड और दृष्टिकोण में बदलाव किया जाना चाहिए।
  4. एक सशक्त कानूनी और नीतिगत प्रणाली, सेवाओं में सुधार, सामाजिक मानदंडों में बदलाव और लड़कियों के सशक्तिकरण हेतु एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि बना सकती है।
  5. स्कूल में छात्रों को, शिक्षा के महत्व और कम उम्र में शादी के दुष्प्रभावों पर जोर देते हुए ‘मूल्य आधारित शिक्षा’ प्रदान की जानी चाहिए।
  6. सरकार, साक्षी मलिक, दीपा करमाकर और पीवी सिंधु जैसी शख्सियतों को भी इस कार्य में शामिल कर सकती है, इन महिला खिलाडियों ने अपने क्षेत्र में बड़ी सफलता अर्जित की है और बच्चों के माता-पिता और छात्र इनकी उपलब्धियों से प्रेरणा ले सकते हैं।
  7. बाल विवाह रोकने के लिए, सरकार द्वारा नामित, संबंधित बाल विकास परियोजना अधिकारियों को तत्काल सूचना दी जानी चाहिए।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

की आरटीई अधिनियम, 2009 के तहत, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ (NCPCR) की कुछ भूमिकाएं और कार्य निर्धारित किए गए हैं। इनके बारे में आप क्या जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. भारतीय संविधान के तहत बच्चों के अधिकारों के बारे में
  2. उपरोक्त अभिसमयों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अवलोकन
  3. भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून

मेंस लिंक:

भारत में बाल विवाह रोकने हेतु उपाय सुझाइए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखीय हलचल, चक्रवात आदि जैसी महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान।

 अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण (AMOC)


(Atlantic Meridional Overturning Circulation)

संदर्भ:

हाल ही किए गए एक अध्ययन के अनुसार, उत्तरी गोलार्ध के एक जलवायु-यंत्र, ‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ (Atlantic Meridional Overturning Circulation – AMOC) के काफी कमजोर होने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप विश्व के मौसम में व्यापक बदलाव हो सकते हैं।

  • जलवायु मॉडल्स के अनुसार, इस समय ‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ (AMOC), पिछले 1,000 से अधिक वर्षों में सबसे कमजोर स्थिति में है।
  • हालांकि, यह ज्ञात नहीं है, कि AMOC की यह कमजोरी ‘परिसंचरण’ में बदलाव के कारण या नियमितता में कमी होने कारण हुई है।

‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ (AMOC) क्या है?

यह समुद्री धाराओं की यह विस्तृत प्रणाली है, जिसमे, उत्तरी अटलांटिक में महासागरीय गर्म जल का प्रवाह उष्ण कटिबंध से उत्तर की ओर होता है, और गहरे समुद्र के माध्यम से ठंडे जल का प्रवाह वापस भूमध्यरेखा की ओर होता है।

AMOC किस प्रकार कार्य करता है?

  1. ‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ एक ‘वाहक पट्टिका’ (Conveyor Belt) की भांति महासागरीय धाराओं की एक वृहद प्रणाली है, जोकि तापमान और लवणता में भिन्नता (पानी का घनत्व) से संचालित होती है।
  2. जैसे-जैसे महासागरीय गर्म जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता है, यह ठंडा होता जाता है और इसी दौरन कुछ मात्रा में जल का वाष्पीकरण भी होता है, जिससे जल की लवणता में वृद्धि हो जाती है।
  3. निम्न तापमान और लवणता की उच्च मात्रा से जल का घनत्व बढ़ जाता है, और यह अधिक घनत्व वाला जल, गहरे समुद्र में बैठ जाता है।
  4. इस ठंडे और अधिक घनत्व वाले जल का महासागरीय सतह के नीचे कई किलोमीटर तक दक्षिण की ओर पानी धीरे-धीरे प्रवाह होने लगता है।
  5. अंत में, यह जल राशि भूमध्य रेखा के नजदीक ‘उद्देवलन’ प्रक्रिया के द्वारा वापस सतह पर आकर गर्म हो जाती है और परिसंचरण का चक्र पूरा हो जाता है।

AMOC के समाप्त होने जाने की स्थित में:

यदि ‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ (AMOC) का अंत हो जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप, उत्तरी गोलार्ध में तापमान काफी कमी, अटलांटिक क्षेत्र में समुद्र के स्तर में वृद्धि, यूरोप और उत्तरी अमेरिका की कुल वर्षा में गिरावट और दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के मानसून में परिवर्तन आदि घटनाएँ होंगी।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप महासागरीय धाराओं और जल-राशियों के मध्य अंतर के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ (AMOC) के बारे में
  2. महासागरीय धाराएँ क्या हैं
  3. महत्वपूर्ण महासागरीय धाराएँ
  4. इनकी उत्पत्ति संबंधी कारण
  5. प्रभाव

मेंस लिंक:

‘अटलांटिक भूमध्यरेखीय प्रतिवर्ती परिसंचरण’ के कमजोर होने पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

दत्तक ग्रहण, धर्म की सीमाओं में सीमित नहीं है: दिल्ली उच्च न्यायालय


संदर्भ:

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दत्तक ग्रहण संबंधी मामले में एक फैसला सुनाते हुए कहा कि, ‘किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act) के तहत गोद लेने हेतु आवेदन करने पर, बच्चे को गोद लेने में दिलचस्पी रखने वाले को व्यक्ति को उसके धर्म तक सीमित नहीं किया सकता है।

संबंधित प्रकरण:

  • अदालत ने उपरोक्त फैसला एक ऐसे मामले की सुनवाई करने के दौरान सुनाया, जिसमें एक ईसाई दंपति ने ‘हिंदू कानून’ के तहत एक बच्चे को गोद लिया था।
  • अदालत के अनुसार, ‘हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम’ (Hindu Adoptions and Maintenance Act HAMA) के तहत ईसाई और मुस्लिम दम्पति, सीधे ही किसी हिंदू बच्चे को गोद नहीं ले सकते और गोद लेने के लिए उन्हें ‘किशोर न्याय अधिनियम’ के तहत प्रक्रिया का पालन करना होता है।
  • अदालत ने कहा कि, चूंकि पालक माता-पिता और उनके परिवार द्वारा बच्चे की अच्छी तरह से देखभाल की जा रही है, इसलिए, बच्चे को उनके प्रभार और संरक्षण से हटाने का कोई कारण नहीं है।
  • चूंकि, बच्चे को ‘दत्त होमम’ (Datta Homam) नामक ‘हिंदू दत्तक ग्रहण समारोह’ के अनुसार गोद लिया गया है, अतः इस संबंध में, भविष्य में कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं हो सकती।

भारत में दत्तक ग्रहण कानूनों को नियंत्रित करने वाला विधिक ढांचा:

  1. भारत में, ‘गोद लेना’ निजी कानूनों (Personal Laws) के दायरे में आता है, और हमारे देश में प्रचलित विविध धार्मिक परम्पराओं के कारण, इस संदर्भ में मुख्य रूप से दो पृथक कानून लागू हैं।
  2. मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मों में औपचारिक रूप से गोद लेने की अनुमति नहीं है, अतः गोद लेने के सदर्भ में, इन धर्मो के लोगों पर ‘संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम’, 1890 ( Guardians and Wards Act, 1890) लागू होता है।
  3. दूसरी ओर, हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों पर, ‘हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956) लागू होता है।
  4. इसके अलावा, ‘किशोर न्याय अधिनियम’ भी गोद लेने से संबंधित है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप भावी दत्तक माता-पिता के लिए पात्रता मानदंडों के बारे में जानते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘केंद्रीय दत्तक ग्रहण नियामक प्राधिकरण’ (CARA) के बारे में
  2. भारत में गोद लेने की प्रक्रिया
  3. पात्रता
  4. ‘किशोर न्याय अधिनियम’ (जेजे एक्ट) के बारे में

मेंस लिंक:

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्रीय कानून की मांग


संदर्भ:

हाल ही में, विश्व हिंदू परिषद द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ केंद्रीय कानून बनाने की मांग की गई है।

पृष्ठभूमि:

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही जबरन धर्मांतरण के खिलाफ सख्त कानून लागू किए चुके हैं। हरियाणा और कर्नाटक द्वारा भी इस तरह के कानून बनाने के इरादे की घोषणा की जा चुकी है।

लेकिन, केंद्रीय कानून बनाने की मांग करने वालों का कहना है, कि देश में हाल की घटनाओं ने साबित कर दिया कि यह एक अखिल भारतीय रैकेट है, और इसलिए एक केंद्रीय कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।

‘धर्मांतरण विरोधी कानूनों के अधिनियमन’ के पीछे तर्क:

  1. जबरन धर्म परिवर्तन की धमकी
  2. उकसावा या प्रलोभन की समस्या
  3. ‘धर्म परिवर्तन’ मौलिक अधिकार नहीं है।

आलोचकों का पक्ष:

कई विधि-वेत्ताओं द्वारा इस प्रकार के कानूनों की कड़ी आलोचना की गई है, इनका तर्क है, कि ‘लव जिहाद’ की अवधारणा का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है।

  • इन्होने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहा है, संविधान, व्यक्तियों को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की गारंटी देता है।
  • साथ ही, अनुच्छेद 25 के तहत भी सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और अपनी पसंद के धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने, प्रचार करने, और किसी भी धर्म का पालन न करने के अधिकार की गारंटी दी गयी है।

विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने कई निर्णयों में यह कहा गया है, कि किसी वयस्क को अपना जीवन साथी चुनने संबंधी मामले में पूर्ण अधिकार होता है, और इस पर राज्य और अदालतों का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने, लिली थॉमस और सरला मुद्गल, दोनों मामलों में यह पुष्टि की है, कि धार्मिक विश्वास के बिना और कुछ कानूनी लाभ प्राप्त करने के एकमात्र उद्देश्य के लिए किए गए धर्म-परिवर्तन का कोई आधार नहीं है।
  3. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 2020 के ‘सलामत अंसारी-प्रियंका खरवार’ मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि, किसी साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ (अनुच्छेद 21) का भाग है।

समय की मांग:

  1. एकरूपता की आवश्यकता: मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 18 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है, जिसमे उनका धर्म परिवर्तन करने का अधिकार भी शामिल है। चूंकि यह राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार इस विषय पर, अनुबंध खेती पर मॉडल कानून आदि जैसा कोई एक मॉडल कानून बना सकती है।
  2. धर्मांतरण विरोधी कानून बनाते समय राज्यों को, अपनी इच्छा से धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के लिए कोई अस्पष्ट या अनेकार्थी प्रावधान नहीं करना चाहिए।
  3. धर्मांतरण विरोधी कानूनों में, अल्पसंख्यक समुदाय संस्थानों द्वारा धर्मांतरण के लिए कानूनी चरणों का उल्लेख करने संबंधी प्रावधान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
  4. लोगों को जबरदस्ती धर्मांतरण, प्रलोभन या प्रलोभन आदि से संबंधित प्रावधानों और तरीकों के बारे में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि ‘विशेष विवाह अधिनियम,’ 1954 (SMA) अलग-अलग धर्मों को मानने वाले जोड़ों के विवाह की सुविधा के लिए बनाया गया था?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. अनुच्छेद 21 के बारे में
  2. अनुच्छेद 25
  3. ‘विशेष विवाह अधिनियम’ (SMA) के बारे में
  4. किन राज्यों द्वारा धर्मांतरण रोधी कानून पारित किए जा चुके हैं।

मेंस लिंक:

जीवन साथी को चुनने का अधिकार अथवा अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, नागरिकों के ‘जीवन और स्वतंत्रता संबंधी मूल अधिकार’ का भाग है। चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।

प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही (पीएम-दक्ष) योजना


(Pradhan Mantri Dakshta Aur Kushalta Sampann Hitgrahi (PM-DAKSH) Yojana)

संदर्भ:

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और सफाई कर्मचारियों के लक्षित समूहों के लिए कौशल विकास योजनाओं को आसान बनाने के लिए ‘पीएम-दक्ष’ (PM-DAKSH) पोर्टल और मोबाइल ऐप का आज शुभारंभ किया गया है।

‘पीएम-दक्ष’ योजना के बारे में:

  1. प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही (पीएम-दक्ष) योजना, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020-21 से चलाई जा रही है।
  2. इस योजना के तहत पात्र लक्षित समूह को कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम (i) अप-स्किलिंग/री-स्किलिंग (ii) अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम (iii) दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और (iv) उद्यमिता विकास कार्यक्रम (Entrepreneurship Development Program – EDP) के जरिये उपलब्ध कराया जा रहा है।
  3. पात्रता: अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के वंचित व्यक्ति, आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, गैर-अधिसूचित जनजातियों, सफाई कर्मियों सहित कचरा बीनने वालों, हाथ से मैला ढोने वाले, ट्रांसजेंडर और इसी तरह की अन्य श्रेणियों के व्यक्ति।

योजना का महत्व और आवश्यकता:

  1. लक्षित समूह के अधिकांश व्यक्तियों के पास आर्थिक संपत्तियां न्यूनतम होती है; इसलिए, हाशिए पर रहने वाले इन लक्षित समूहों के आर्थिक सशक्तिकरण / उत्थान के लिए प्रशिक्षण का प्रावधान और उनकी दक्षताओं को बढ़ाना आवश्यक है।
  2. लक्षित समूह के अधिकाँश व्यक्ति, ग्रामीण कारीगरों की श्रेणी से संबंधित हैं जो बाजार में बेहतर तकनीकों के आने के कारण हाशिए पर चले गए हैं।
  3. लक्षित समूह में महिलाओं को सशक्त बनाने की भी आवश्यकता है, जो अपनी सकल घरेलू मजबूरियों के कारण, आम तौर पर लंबे समय तक चलने वाले काम और-कभी दूसरे शहरों में प्रवास करने की जरूरत वाली मजदूरी / रोजगार नहीं कर पाती हैं।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘पीएम-दक्ष’ योजना के लिए पात्रता
  2. प्रमुख विशेषताएं
  3. योजना के लाभ

मेंस लिंक:

‘पीएम-दक्ष’ योजना के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: बुनियादी ढाँचाः ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।

हाइड्रोजन ईंधन


(Hydrogen Fuel)

संदर्भ:

वर्ष 2030 तक रेलवे को शून्य कार्बन-उत्सर्जक बनाने के मिशन (Mission Net Zero Carbon Emission Railway) के तहत, भारतीय रेल, हाइड्रोजन ईंधन आधारित तकनीक पर ट्रेनें चलाने के लिए तैयार है। इसके लिए, मौजूदा ट्रेनों के पुनःसंयोजन करने / रेट्रोफिटिंग (Retrofitting) करने पर विचार किया जा रहा है।

‘हाइड्रोजन ईंधन’ क्या है?

हाइड्रोजन, आवर्त सारणी में सबसे हल्का और पहला तत्व है। चूंकि, हाइड्रोजन का भार, हवा के भार से कम होता है, इसलिए यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठ कर फ़ैल जाता है और यही कारण है, कि इसे अपने शुद्ध रूप ‘H2 में मुश्किल से ही कभी पाया जाता है।

  • मानक ताप और दाब पर, हाइड्रोजन, एक गैर-विषाक्त, अधात्विक, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक दहनशील द्विपरमाणुक गैस है।
  • हाइड्रोजन ईंधन, ऑक्सीजन के साथ दहन करने पर ‘शून्य-उत्सर्जन’ करने वाला ईंधन है। इसका उपयोग ईंधन सेलों अथवा आंतरिक दहन इंजनों में किया जा सकता है। अंतरिक्ष यान प्रणोदनों (spacecraft propulsion) के लिए ईंधन के रूप में भी हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है।

हाइड्रोजन की उत्पत्ति:

  • यह ब्रह्मांड में पाया जाने वाला सबसे प्रचुर तत्व है। सूर्य और अन्य तारे, व्यापक रूप से हाइड्रोजन से निर्मित होते हैं।
  • खगोलविदों का अनुमान है, कि ब्रह्मांड में पाए जाने वाले 90% परमाणु, हाइड्रोजन परमाणु हैं। किसी भी अन्य तत्व की तुलना में, हाइड्रोजन, सर्वाधिक योगिकों का एक घटक होता है।
  • पृथ्वी पर पाए जाने वाले हाइड्रोजन का सर्वाधिक प्रचुर यौगिक ‘जल’ है।
  • पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले जल-निकायों में आणविक हाइड्रोजन नहीं पाया जाता है।
  • पृथ्वी पर अधिकांशतः हाइड्रोजन, जल और ऑक्सीजन के साथ तथा जीवित या मृत अथवा या जीवाश्म जैवभार में, कार्बन के साथ युग्मित होती है। जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रूप में विखंडित करके हाइड्रोजन का निर्माण किया जा सकता है।

भंडारण:

  • हाइड्रोजन को भौतिक रूप से अथवा गैस या तरल के रूप में संग्रहीत किया जा सकता है।
  • गैस के रूप में हाइड्रोजन का भंडारण करने हेतु आमतौर पर उच्च दाब वाले टैंक की आवश्यकता होती है।
  • तरल के रूप में हाइड्रोजन का भंडारण करने के लिए क्रायोजेनिक तापमान की जरूरत होती है, क्योंकि हाइड्रोजन का क्वथनांक एक वायुमंडलीय दाब पर −8 ° C होता है।
  • हाइड्रोजन के लिए ठोस पदार्थों की सतह पर (adsorption / अधिशोषण द्वारा) अथवा ठोस पदार्थों के भीतर (absorption / अवशोषण द्वारा) संग्रहीत किया जा सकता है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में स्वच्छ हाइड्रोजन उद्योगों की क्षमता:

  • हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से उत्सर्जित होने वाला एकमात्र उप-उत्पाद ‘जल’ होता है – जिस कारण यह ईंधन 100 प्रतिशत स्वच्छ हो जाता है।
  • हाइड्रोजन को, शून्य-उत्सर्जन इलेक्ट्रिक वाहनों में ईंधन सेलों की शक्ति, घरेलू उत्पादन में इसकी क्षमता और ईंधन सेलों की उच्च दक्षता क्षमताओं के कारण, एक वैकल्पिक ईंधन माना जाता है।
  • वास्तव में, इलेक्ट्रिक मोटर के साथ फ्यूल सेल/ ईंधन सेल, गैस-चालित आंतरिक दहन इंजन की तुलना में दो से तीन गुना अधिक कुशल है।
  • इलेक्ट्रिक मोटर के साथ मिलकर एक ईंधन सेल दो से तीन गुना अधिक कार्यक्षम होते है।
  • हाइड्रोजन, आंतरिक दहन इंजनों के लिए ईंधन के रूप में भी काम कर सकता है।
  • 2 पाउंड (1 किलोग्राम) हाइड्रोजन गैस की ऊर्जा, 1 गैलन (6.2 पाउंड/ 2.8 किलोग्राम) गैसोलीन की ऊर्जा के बराबर होती है।

इस संबंध में किये जा रहे प्रयास:

  • हाल ही में, केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2020-21 के लिए औपचारिक रूप से ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ (NHM) की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन का उत्पादन करना है।
  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने स्पष्ट किया है कि ‘राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन’ के लिए इस महीने के अंत तक मसौदा नियमों को अंतिम रूप दे दिया जाएगा और इसके बाद मसौदा नियमों को मंत्रिमंडल के अनुमोदन हेतु भेजा जाएगा।

भारत के समक्ष चुनौतियां:

  1. हरित अथवा नीले हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक संधारणीयता, हाइड्रोजन का व्यावसायिक रूप से दोहन करने के लिए उद्योगों के सामने भारी चुनौतियों में से एक है।
  2. हाइड्रोजन के उपयोग तथा उत्पादन में प्रयुक्त होने वाली प्रौद्योगिकी, जैसेकि ‘कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS), अभी प्रारम्भिक चरण में हैं और काफी महंगी है, जिससे हाइड्रोजन की उत्पादन-लागत काफी अधिक हो जाती है।
  3. किसी संयंत्र के पूरा होने के बाद ईंधन सेलों (fuel cells) की रखरखाव लागत काफी महंगी हो सकती है, जैसाकि दक्षिण कोरिया में है।
  4. ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग हेतु, हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और मांग निर्माण के लिए अनुसंधान और विकास में भारी निवेश की आवश्यकता है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ग्रीन हाइड्रोजन के बारे में जानते है? इसके क्या फायदे हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. हाइड्रोजन ईंधन के बारे में
  2. इसे स्वच्छ ईंधन क्यों कहा जाता है?
  3. विशेषताएं
  4. लाभ
  5. उत्पादन और भंडारण

मेंस लिंक:

ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के महत्व की चर्चा कीजिए।

स्रोत: पीआईबी।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


एविया द्वीप

(Island of Evia)

  • इसे यूबोआ (Euboea) के नाम से भी जाना जाता है, यह क्षेत्रफल की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा यूनानी द्वीप है।
  • यह संकीर्ण यूरिपस जलडमरूमध्य (Euripus Strait) द्वारा ग्रीस की मुख्य भूमि के ‘बोईओटिया’ (Boeotia) से अलग होता है।
  • एविया द्वीप, हाल ही में, इसके जंगलों में लगी भयंकर आग की वजह से चर्चा में था।

 

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) बल

हाल ही में, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (Indo-Tibetan Border Police – ITBP) द्वारा अपनी पहली दो महिला अधिकारियों (प्रकृति और दीक्षा) को युद्धक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है।

  • आईटीबीपी ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय परीक्षा के माध्यम से 2016 से अपने संवर्ग में महिला युद्धक अधिकारियों की भर्ती शुरू की है। इससे पहले, आईटीबीपी में केवल कांस्टेबुलरी रैंक में युद्धक महिलाओं की भर्ती की जाती थी।
  • भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBPF) भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत एक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है।
  • यह चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से सटी भारतीय सीमा की निगरानी हेतु भारत का प्रमुख सीमा गश्ती संगठन है।
  • स्थापना: भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल अधिनियम, 1992 के तहत।

 

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA)

  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण / राष्ट्रीय जांच एजेंसी (National Investigation Agency – NIA) का गठन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम, 2008 के तहत किया गया था।
  • यह केंद्रीय आतंकवाद-रोधी क़ानून प्रवर्तन एजेंसी भी है।
  • इसके लिए, राज्यों की विशेष अनुमति के बगैर, राज्यों में आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने का अधिकार है।
  • यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती है।
  • वर्ष 2019 में किए गए संशोधन के बाद, एनआईए को विदेशों में भारतीयों और भारतीय हितों को लक्षित करने वाले आतंकी हमलों की जांच करने की शक्ति प्रदान की गयी है।

 

पेनसिलुंगपा ग्लेशियर

(Pensilungpa Glacier)

पेन्सिलुंगपा ग्लेशियर लद्दाख के ज़ांस्कर क्षेत्र में स्थित है।

  • तापमान में वृद्धि और सर्दियों में कम बर्फबारी होने के कारण यह ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
  • ज़ांस्कर रेंज, केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में स्थित एक पर्वत श्रृंखला है, जो ज़ांस्कर को लद्दाख से अलग करती है।
  • भूवैज्ञानिक रूप से, ज़ांस्कर रेंज टेथिस हिमालय का हिस्सा है।
  • लद्दाख को कश्मीर से जोड़ने वाले ‘मार्बल दर्रा’ और कई अन्य दर्रे इस क्षेत्र में स्थित हैं।
  • 13000 फीट ऊंचा जोजिला दर्रा, ज़ांस्कर रेंज के एकदम उत्तर-पश्चिम में स्थित है।

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