INSIGHTS करेंट अफेयर्स+ पीआईबी नोट्स [ DAILY CURRENT AFFAIRS + PIB Summary in HINDI ] 3 August 2021 – PuuchoIAS


 

विषयसूची

सामान्य अध्ययन-II

1. ‘निवारक निरोध’ का प्रयोग केवल सार्वजनिक अव्यवस्था को रोकने के लिए: सुप्रीमकोर्ट

2. गोवा में भूमिपुत्र का दर्जा

3. जीका वायरस

4. ‘गोगरा’ और ‘हॉट स्प्रिंग’ पर अभी कोई समझौता नहीं

 

सामान्य अध्ययन-III

1. विशेषज्ञों द्वारा ‘फूड फोर्टिफिकेशन को अनिवार्य’ किए जाने पर चेतावनी

2. भारत में तेंदुओं की संख्या

 

प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य

1. ई-रुपी (e-RUPI)

2. कुथिरन सुरंग

 


सामान्य अध्ययन- II


 

विषय: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।

 ‘निवारक निरोध’ का प्रयोग केवल सार्वजनिक अव्यवस्था को रोकने के लिए: सुप्रीमकोर्ट


संदर्भ:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय द्वारा ‘निवारक निरोध’ (Prevention Detention) के प्रयोग एवं प्रयोज्यता पर एक आदेश पारित किया गया है।

पृष्ठभूमि:

धोखाधड़ी के एक मामले में जमानत मिलने के कुछ ही समय बाद तेलंगाना खतरनाक गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Telangana Prevention of Dangerous Activities Act) के तहत ‘निवारक निरोध’ में रखे गए एक व्यक्ति की पत्नी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करने के दौरान उच्चतम न्यायालय द्वारा यह फैसला सुनाया गया।

शीर्ष अदालत द्वारा की गई टिप्पणियाँ:

  • ‘निवारक निरोध’ का प्रयोग केवल सार्वजनिक अव्यवस्था को रोकने के लिए किया जा सकता है।
  • राज्य को सभी और छोटी-मोटी “कानून और व्यवस्था” समस्याओं, जिन्हें देश के सामान्य कानूनों द्वारा निपटाया जा सकता है, से निपटने हेतु मनमाने ढंग से “निवारक निरोध” का सहारा नहीं लेना चाहिए।
  • साथ ही, अदालतों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनके समक्ष प्रस्तुत किए गए तथ्य, सीधे और अनिवार्यतः आम जनता या किसी भी वर्ग के मध्य अनिष्ट, खतरा, बेचैनी या असुरक्षा की भावना पैदा करने वाले हैं।
  • ‘निवारक निरोध’, अनुच्छेद 22 (मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ सुरक्षा) सहित अनुच्छेद 21 (विधिसम्मत प्रक्रिया) की चारो सीमाओं और विचाराधीन क़ानून के अंतर्गत होना चाहिए।

समय की मांग:

‘नागरिक-स्वतंत्रता’, हमारे पूर्वजों द्वारा काफी लंबे, ऐतिहासिक और कठिन संघर्षों के बाद हासिल किया गया सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। अतः, हमें ‘निवारक निरोध’ क़ानून की शक्ति को बहुत संकीर्ण सीमाओं तक सीमित रखना चाहिए, अन्यथा हमारे देश और संविधान के संस्थापक पुरखों, जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानी के रूप में लंबे और कठिन संघर्षों के बाद ‘स्वतंत्रता का महान अधिकार’ हासिल किया था, वह निरर्थक हो जाएगा।

‘निवारक निरोध’ क्या है?

  • निवारक निरोध (Preventive Detention) के अंतर्गत, किसी व्यक्ति को, उसके लिए भविष्य में अपराध करने से रोकने और/या उसके भविष्य में अभियोजन से बच कर भागने से रोकने हेतु, हिरासत में (कैद करना) रखा जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 22 (3) (b) में, राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था संबंधी कारणों से ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ पर निवारक निरोध और प्रतिबंध लगाने की अनुमति का प्रावधान किया गया है।

इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को कब तक कैद किया जा सकता है?

  • अनुच्छेद 22(4) के अनुसार, निवारक निरोध का उपबंध करने वाली कोई विधि किसी व्यक्ति का तीन मास से अधिक अवधि के लिए तब तक निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जब तक कि— एक सलाहकार बोर्ड, तीन मास की उक्त अवधि के निरोध को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त कारणों का प्रतिवेदन नहीं करता है।
  • 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा ‘सलाहकार बोर्ड’ की राय प्राप्त किए बिना नजरबंदी की अवधि को तीन महीने से घटाकर दो महीने कर दिया गया है। हालाँकि, यह प्रावधान अभी तक लागू नहीं किया गया है, इसलिए, तीन महीने की मूल अवधि का प्रावधान अभी भी जारी है।

‘निवारक निरोध’ का उद्देश्य:

  1. ‘मरियप्पन बनाम जिला कलेक्टर एवं अन्य’ मामले में, अदालत के फैसलेके अनुसार, ‘नजरबंदी’ और इसके कानूनों का उद्देश्य किसी को दंडित करना नहीं है, बल्कि कुछ अपराधों को होने से रोकना है।
  2. ‘यूनियन ऑफ इंडिया बनाम पॉल नानिकन एवं अन्य’ मामले में, उच्चतम न्यायालय के अनुसार, इस तरह की ‘नजरबंदी’ का तर्क, वैध प्रमाण द्वारा उचित ठहराए गए किसी आपराधिक दोषसिद्धि पर आधारित होने के बजाय मात्र संदेह या पर्याप्त संभावना पर आधारित है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि यदि किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के तहत गिरफ्तार या हिरासत में लिए जाने पर, उसे अनुच्छेद 22 (1) और 22(2) के तहत गिरफ्तारी और हिरासत से सुरक्षा उपलब्ध नहीं होती है? इस प्रकार से हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को कौन से अन्य अधिकार उपलब्ध नहीं होते हैं?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. निवारक निरोध क्या है?
  2. निवारक निरोध से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
  3. ‘निवारक निरोध’ लागू करने वाले कानून
  4. अनुच्छेद 22 और इसके उपबंधों का अवलोकन
  5. 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 – सिंहावलोकन।

मेंस लिंक:

देश में ‘निवारक निरोध कानून’ के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों और चिंताओं पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय।

गोवा में भूमिपुत्र का दर्जा


संदर्भ:

हाल ही में, गोवा विधानसभा द्वारा ‘गोवा भूमिपुत्र अधिकारिणी विधेयक, 2021’ (Goa Bhumiputra Adhikarini Bill, 2021) पारित कर दिया गया है।

विधेयक के प्रमुख बिंदु:

  1. विधेयक में, 30 साल या उससे अधिक समय से राज्य में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को ‘भूमिपुत्र (मिट्टी का पुत्र)’ के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है।
  2. इसके तहत, यदि किसी व्यक्ति का अपने ‘छोटे आवास’ पर मालिकाना हक़ अब तक अनिश्चित था, तो उसे अपने आवास पर मालिकाना हक़ देने का प्रावधान किया गया है।
  3. एक बार ‘भूमिपुत्र’ (Bhumiputra) के रूप में मान्यता प्राप्त होने के बाद, कोई व्यक्ति 1 अप्रैल, 2019 से पहले निर्मित 250 वर्ग मीटर तक क्षेत्रफल वाले अपने घर पर ‘स्वामित्व’ का दावा कर सकता है।

कार्यान्वयन:

  1. विधेयक में ‘भूमिपुत्र अधिकारिणी’ नामक एक समिति के गठन का प्रावधान किया गया है। इस समिति की अध्यक्षता उप-जिलाधिकारी द्वारा की जाएगी और ‘टाउन एंड कंट्री प्लानिंग’, ‘वन और पर्यावरण विभागों’ के अधिकारी और संबंधित तालुकों के मामलातदार (Mamlatdars) समिति के सदस्य के रूप में शामिल होंगे।
  2. कोई भी भूमिपुत्र – यदि उसका घर निर्धारित तिथि से पहले निर्मित किया गया है – समिति के समक्ष अपने घर पर मालिकाना हक़ प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकता है।
  3. ‘भूमिपुत्र अधिकारिणी’ समिति द्वारा संबधित भूमि के मालिक को – जो एक स्थानीय निकाय भी हो सकता है –आपत्तियां दर्ज करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा, और इसके बाद समिति ‘भूमिपुत्र’ को उस भूमि का स्वामित्व देने का निर्णय लेगी।
  4. भूमिपुत्र अधिकारी के फैसले के खिलाफ, 30 दिनों के भीतर प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष अपील दायर की जा सकती है।

इस मामले में अदालत का हस्तक्षेप:

इस अधिनियम के तहत, किसी भी अदालत के पास “भूमिपुत्र अधिकारिणी और प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले किसी भी प्रश्न पर विचार करने, निर्णय लेने या समाधान करने’ का क्षेत्राधिकार नहीं होगा”।

इन उपायों की आवश्यकता:

  • पिछले कई सालों से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमे किसी व्यक्ति या उसके माता-पिता द्वारा घर का निर्माण किया गया था, लेकिन घर की जमीन उसके नाम पर नहीं है। इसकी वजह से इनके सिर पर हमेशा तलवार लटकी रहती है कि कोई उनके खिलाफ (स्वामित्व को लेकर) केस दर्ज कर देगा।
  • प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य, एक छोटे आवासीय घर पर, उसमें रहने वाले को मालिकाना हक़ प्रदान करना है, ताकि वह गरिमा और आत्म-सम्मान के साथ अपने घर में रह सके और अपने ‘जीवन के अधिकार’ का प्रयोग कर सके।

संबंधित चिंताएं:

सबसे बड़ी चिंता यह है, कि इस विधेयक के लागू होने के बाद ‘अवैध रूप से बनाए गए मकानों’ के नियमितीकरण संबंधी मामले सामने आ सकते है। इस विधेयक से, गोवा के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में गैर-कानूनी तरीके से रह रही प्रवासी आबादी के लिए वैधता हासिल करने का अवसर मिल सकता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. ‘गोवा भूमिपुत्र अधिकारिणी विधेयक’ का अवलोकन
  2. पात्रता
  3. कार्यान्वयन
  4. लाभ

मेंस लिंक:

‘गोवा भूमिपुत्र अधिकारिणी विधेयक’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस।

 

विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।

जीका वायरस


(Zika Virus)

संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा महाराष्ट्र में ‘जीका वायरस’ की स्थिति पर नजर रखने और संक्रमण-प्रबंधन में राज्य सरकार की सहायता करने हेतु एक बहुविषयी टीम भेजी गयी है। महाराष्ट्र के पुणे जिले में जीका वायरस का पहला मामला सामने आया है।

‘जीका वायरस’ के बारे में:

  • ‘जीका वायरस’ (Zika virus) मुख्य रूप से एडीज प्रजाति (Aedes genus) के संक्रमित मच्छरों, मुख्यतः एडीज एजिप्टी (Aedes aegypti) के द्वारा फैलता है। इन एडीज मच्छरों की वजह से डेंगू, चिकनगुनिया और ‘पीला बुखार’ (Yellow Fever) भी फैलता है।
  • इस वायरस को सबसे पहले वर्ष 1947 में युगांडा के बंदरों में देखा गया था।

संचरण:

मच्छरों के अलावा, यह वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति के द्वारा भी फैल सकता है। जीका वायरस, किसी गर्भवती महिला से उसके भ्रूण में, यौन संपर्क से, रक्त एवं रक्त उत्पादों के आधान (Transfusion) से और अंग प्रत्यारोपण के माध्यम से भी फ़ैल सकता है।

जीका वायरस संक्रमण के लक्षण:

  • इसके लक्षणों में, आम तौर पर, बुखार, दाने, आँखों में जलन और सूजन (conjunctivitis) , मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द या सिरदर्द की शिकायत होती है। यह लक्षण दो से सात दिनों तक रहते हैं। कभी-कभी संक्रमित होने वाले अधिकांश लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं होते हैं।
  • गर्भावस्था के दौरान ‘जीका वायरस ‘के संक्रमण से शिशु ‘माइक्रोसेफली’ (Microcephaly अर्थात ‘शिशु के सिर का आकार सामान्य से छोटा’) और अन्य जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा हो सकते हैं। इनके लिए जन्मजात जीका सिंड्रोम कहा जाता है।
  • जीका वायरस का अभी कोई इलाज या टीका उपलब्ध नहीं है। WHO द्वारा इस बीमारी से शीघ्र से ठीक होने के लिए दर्द और बुखार की दवाओं के साथ-साथ बहुत सारे तरल पदार्थों का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि 2019 में ब्राजील के कुछ इलाकों में ट्रांसजेनिक मच्छरों को छोड़ा गया था। इस प्रयोग का उद्देश्य क्या था?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जीका वायरस के बारे में
  2. प्रसार
  3. लक्षण
  4. रोकथाम

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।

‘गोगरा’ और ‘हॉट स्प्रिंग’ पर अभी कोई समझौता नहीं


संदर्भ:

भारत, पिछले वर्ष शुरू हुए चीन के साथ गतिरोध का अंत करने हेतु, पूर्वी लद्दाख में स्थिति को व्यापक रूप से सामान्य करने के लिए दबाव बना रहा है, जिसमे टकराव के सभी बिंदुओं से सेनाओं की वापसी, युद्ध की तीव्रता में कमी और गश्त के लिए एक नए प्रोटोकॉल पर विचार करना शामिल है। इस प्रक्रिया  तहत भारत-चीन के मध्य विभिन्न स्तरों पर बैठकें की जा रही हैं।

अब तक की प्रगति:

  • अब तक, ‘पैंगोंग त्सो’ के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर पूरी तरह से सैन्य-वापसी हो चुकी है।
  • हालांकि, पूर्वी लद्दाख के ‘गोगरा’ (Gogra) और ‘हॉट स्प्रिंग्स’ (Hot Springs) में सैन्य-वापसी हेतु, दोनों पक्ष अभी तक किसी समझौते पर नहीं पहुंचे हैं।

भारत-चीन सीमा:

  1. भारत और चीन परस्पर 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। दुर्भाग्य से, यह पूरी सीमा विवादित है। दोनों देशों के मध्य सीमांकन करने वाली रेखा को, सर हेनरी मैकमोहन के नाम पर ‘मैकमोहन रेखा’ (McMahon line) कहा जाता है
  2. वर्ष 1913 में, ब्रिटिश-भारत सरकार ने एक त्रिपक्षीय सम्मेलन बुलाया गया था, जिसमें भारतीय और तिब्बतियों के बीच वार्ता के पश्चात् भारत और तिब्बत के बीच की सीमा को औपचारिक रूप दिया गया था। इस सम्मलेन में एक अभिसमय भी लागू किया गया था, जिसके तहत भारत-तिब्बत सीमा का परिसीमन किया गया। हालाँकि, चीन द्वारा इस सीमा को अवैध बताया जाता है, और इसे विवादित करार दिया गया है।
  3. वर्ष 1957 में चीन ने ‘अक्साई चिन’ पर कब्जा कर लिया और इस क्षेत्र से होकर एक सड़क का निर्माण किया। इस प्रकरण के बाद से, सीमा पर कई बार झड़पें हुईं, जो अंततः 1962 के सीमा-युद्ध में परिणत हुईं। युद्ध के बाद बनी सीमा को ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control – LAC) के रूप में जाना जाने लगा। इस सीमा-रेखा पर सेना का कब्ज़ा रहता है।

‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) का अवलोकन:

इस रेखा को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: यह, पूर्वी क्षेत्र में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम (1346 किमी), मध्य क्षेत्र में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश (545 किमी), और पश्चिमी क्षेत्र में लद्दाख (1597 किमी) तक विस्तृत है।

  • पूर्वी क्षेत्र में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’, 1914 की मैकमोहन रेखा के साथ संरेखित है।
  • मैकमोहन रेखा द्वारा ब्रिटेन और तिब्बत के बीच पहले से गैर-दावा युक्त / अपरिभाषित सीमाओं को चिह्नित किया गया था।
  • भारत-चीन के बीच ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ का मध्य क्षेत्र सबसे कम विवादित क्षेत्र है, जबकि पश्चिमी क्षेत्र में दोनों पक्षों के बीच सीमा-रेखा का सर्वाधिक उल्लंघन किया गया है।

समय की मांग:

  1. दोनों पक्षों द्वारा ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (LAC) को स्वीकार और इसका सम्मान किया जाना चाहिए।
  2. किसी भी पक्ष द्वारा, यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
  3. दोनों पक्षों द्वारा सभी समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं ‘चुशुल’ कहाँ अवस्थित है? इसके नामकरण का क्या इतिहास है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. LoC क्या है और इसे किस प्रकार निर्धारित किया गया है? इसका भौगोलिक विस्तार और महत्व?
  2. LAC क्या है?
  3. नाथू ला कहाँ है?
  4. पैंगोंग त्सो कहाँ है?
  5. अक्साई चिन का प्रशासन कौन करता है?
  6. ‘नाकू ला’ कहाँ है?
  7. पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र पर किसका नियंत्रण है?

मेंस लिंक:

भारत और चीन के लिए ‘पैंगोंग त्सो’ के महत्व पर चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 


सामान्य अध्ययन- III


 

विषय: भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग- कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व, स्थान, ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएँ, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन।

 विशेषज्ञों द्वारा ‘फूड फोर्टिफिकेशन को अनिवार्य’ किए जाने पर चेतावनी


संदर्भ:

हाल ही में, विशेषज्ञों द्वारा ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ अर्थात ‘खाद्यान्न को पोषणयुक्त बनाने’ (Food Fortification) के कारण मानव स्वास्थ्य और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के संबंध में आगाह किया गया है।

संबंधित प्रकरण:

केंद्र सरकार द्वारा चावल और खाद्य तेलों को विटामिन एवं खनिजों से पोषणयुक्त बनाने (fortify) को अनिवार्य करने पर विचार किया जा रहा है।

  • किंतु, विशेषज्ञों का कहना है कि इन खाद्य सामग्रियों में कृत्रिम सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाने से उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच सकता है।
  • इसके बजाय, आहार में विविधता और प्रोटीन की खपत अधिक किए जाने से, भारत में कुपोषण की समस्या को हल किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि:

चावल को पोषणयुक्त बनाने (Fortification of Rice) तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए इसके वितरण को मजबूत करने हेतु केन्द्र प्रायोजित पायलट योजना लागू करने के लिए 15 राज्यों की पहचान की गई है।

इस पायलट योजना को 2019-2020 से आरंभ होकर तीन साल की अवधि के लिए मंजूरी दी गई है।

‘फ़ूड फोर्टिफिकेशन’ से जुड़े मुद्दे:

  • वर्तमान में, ‘फ़ूड फोर्टिफिकेशन’ का समर्थन करने वाले साक्ष्य अधूरे है, और निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नीति लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
  • ‘फ़ूड फोर्टिफिकेशन’ को बढ़ावा देने के लिए ‘भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ (Food Safety and Standards Authority of India – FSSAI) जिन स्टडी-रिपोर्ट्स का हवाला देता है, उनमे से अधिकाँश अध्ययन, ‘फ़ूड फोर्टिफिकेशन’ से लाभ उठाने वाली ‘खाद्य कंपनियों’ द्वारा प्रायोजित किए गए थे।
  • ‘फ़ूड फोर्टिफिकेशन’ को अनिवार्य किए जाने से तेल और चावल की स्थानीय मिलों सहित भारतीय किसानों और खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं की व्यापक अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को भी नुकसान होगा, और बहुराष्ट्रीय निगमों के केवल एक छोटे से समूह को लाभ होगा।
  • साथ ही, खाद्य पदार्थों के रासायनिक पोषणकरण करने के साथ एक बड़ी समस्या यह है, कि पोषक तत्व पृथक रूप से कार्य नहीं करते हैं, बल्कि इष्टतम अवशोषण के लिए इन तत्वों का एक साथ होना आवश्यक होता है।

आवश्यकता:

भारत में अल्पपोषणता का एक कारण, यहाँ के लोगों की सदैव एक जैसी अनाज-आधारित खुराक भी है, जिसमे सब्जियों और पशु-आधारित प्रोटीन की मात्रा काफी कम होती है। अतः खाद्य सामग्री को पोषणयुक्त बनाने की बजाय, ‘आहार में विवधता’ कुपोषण से निपटने हेतु एक अधिक स्वस्थ और लागत प्रभावी तरीका है।

‘फूड फोर्टिफिकेशन’ क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के द्वारा, किसी खाद्यान्न को पोषणयुक्त बनाने हेतु उसमे सावधानी से आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों अर्थात् विटामिन और खनिज तत्वों की मात्रा में वृद्धि की जाती है। इसका उद्देश्य आपूर्ति किए जाने वाले खाद्यान्न की पोषण गुणवत्ता में सुधार करना तथा न्यूनतम जोखिम के साथ उपभोक्ताओं को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करना है।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप ‘कृषि-विज्ञानी जैव संवर्धन’ (Agronomic biofortification) ‘एग्रोनॉमिक बायोफोर्टिफिकेशन’ के बारे में जानते हैं? जैव संवर्धन’ (बायो-फोर्टिफिकेशन) और ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ में क्या अंतर है?

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. जैव फोर्टिफिकेशन बनाम आनुवंशिक परिवर्तन
  2. सूक्ष्म पोषक बनाम वृहद पोषक तत्व
  3. भारत में जैव उर्वरक और जीएम फसलों के लिए स्वीकृति
  4. भारत में अनुमति प्राप्त जीएम फसलें

मेंस लिंक:

किसी खाद्यान्न को पोषणयुक्त बनाने से आप क्या समझते हैं? इसके फायदों के बारे में चर्चा कीजिए।

स्रोत: द हिंदू।

 

विषय: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।

भारत में तेंदुओं की संख्या


संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा ‘तेंदुओं, सह-परभक्षियों और शाकभक्षियों की स्थिति – 2018’ (Status of Leopards, Co-predators and Megaherbivores-2018) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गयी है।

यह रिपोर्ट 29 जुलाई, 2021 – ‘विश्व बाघ दिवस’ पर जारी की गई।

रिपोर्ट के अनुसार:

  • भारत में आधिकारिक रूप से तेंदुओं की संख्या में वर्ष 2014-2018 के बीच 63 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2018 में देश में 12,852 तेंदुए थे, जबकि वर्ष 2014 में इनकी संख्या मात्र 7,910 थी।
  • अनुमानित रूप से तेंदुओं की सर्वाधिक संख्या, मध्य प्रदेश (3,421) में है, इसके बाद कर्नाटक (1,783) और महाराष्ट्र (1,690) का स्थान है।

‘तेंदुए’ (Leopard) के बारे में:

  1. वैज्ञानिक नाम- पेंथेरा पर्दुस (Panthera pardus)
  2. भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची- I में सूचीबद्ध
  3. CITES के परिशिष्ट- I में शामिल
  4. IUCN रेड लिस्ट में संवेदनशील (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध
  5. तेंदुए की नौ उप-प्रजातियों को पहचान की जा चुकी है, और ये प्रजातियाँ पूरे अफ्रीका और एशिया में पाई जाती हैं।

CA|TS मान्यता प्राप्त बाघ अभयारण्य:

सरकार द्वारा भारत के 14 बाघ अभयारण्यों को ‘ग्लोबल कंजर्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स’ (CA|TS) की मान्यता प्राप्त होने के बारे में जानकारी दी गई है। जिन 14 बाघ अभयारण्यों को CA|TS द्वारा मान्यता प्रदान की गयी हैं उनमे शामिल है:

  1. असम के मानस, काजीरंगा और ओरंग,
  2. मध्य प्रदेश के सतपुड़ा, कान्हा और पन्ना,
  3. महाराष्ट्र के पेंच,
  4. बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व,
  5. उत्तर प्रदेश के दुधवा,
  6. पश्चिम बंगाल के सुंदरबन,
  7. केरल में परम्बिकुलम,
  8. कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व और
  9. तमिलनाडु के मुदुमलई और अनामलई टाइगर रिजर्व

कंजर्वेशन एश्योर्ड | टाइगर स्टैंडर्ड्स (CA|TS) क्या है?

CA|TS को को टाइगर रेंज कंट्रीज (TRCs) के वैश्विक गठबंधन द्वारा मान्यता संबंधी उपकरण के रूप में स्वीकार किया गया है और इसे बाघों एवं संरक्षित क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा विकसित किया गया है।

  • इसे आधिकारिक तौर पर वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था।
  • यह मानक लक्षित प्रजातियों के प्रभावी प्रबंधन के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित करता है और प्रासंगिक संरक्षित क्षेत्रों में इन मानकों के मूल्यांकन को प्रोत्साहित करता है।
  • CA|TS, विभिन्न मानदंडों का एक सेट है, जो बाघ से जुड़े स्थलों को इस बात को जांचने का मौका देता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघों का सफल संरक्षण संभव होगा।

बाघ संरक्षण पर काम करने वाला एक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘ग्लोबल टाइगर फोरम’ (GTF), और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड इंडिया, भारत में CA|TS मूल्यांकन के लिए ‘राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण’ के दो कार्यान्वयन भागीदार हैं।

 

इंस्टा जिज्ञासु:

क्या आप जानते हैं कि भारत में तेंदुए के लिए अलग से कोई जनगणना नहीं की जाती है? प्रति चार वर्ष में किया जाने वाले ‘बाघ सर्वेक्षण’ कैमरा-ट्रैप छवियों के आधार पर तेंदुओं सहित अन्य जानवरों की आबादी का भी अनुमान लगाया जाता है।

 

प्रीलिम्स लिंक:

  1. तेंदुए की IUCN स्थिति
  2. CITES क्या है?
  3. तेंदुए की उप-प्रजातियां।
  4. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत विभिन्न अनुसूचियां।
  5. भारत में बाघों की गणना किसके द्वारा की जाती है?
  6. IUCN की रेड लिस्ट के तहत विभिन्न श्रेणियां

मेंस लिंक:

भारत में तेंदुओं की संख्या का आकलन करने हेतु एक अलग पशु-गणना क्यों आवश्यक है? चर्चा कीजिए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ।

 


प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य


ई-रुपी (e-RUPI)

ई-रुपी, व्यक्ति-विशिष्ट और उद्देश्य-विशिष्ट डिजिटल पेमेंट सॉल्‍यूशन है।

  • यह डिजिटल भुगतान के लिए एक कैशलेस और संपर्क रहित माध्यम है।
  • ई-रुपी बिना किसी फिजिकल इंटरफेस के डिजिटल तरीके से लाभार्थियों और सेवा प्रदाताओं के साथ सेवाओं के प्रायोजकों को जोड़ता है।
  • इसे नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने अपने यूपीआई प्लेटफॉर्म पर वित्तीय सेवा विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सहयोग से विकसित किया है।

कार्यविधि: यह मूल रूप से एक प्रीपेड वाउचर है जिसे मोबाइल नंबर और पहचान सत्यापित करने के बाद सीधे नागरिकों को जारी किया जा सकता है।

  • e-RUPI वाउचर को क्यूआर कोड या एसएमएस स्ट्रिंग-आधारित ई-वाउचर के रूप में लाभार्थी के मोबाइल नंबर पर पहुंचाया जाएगा।
  • उपयोगकर्ता अपने सेवा प्रदाता के केंद्र पर कार्ड, डिजिटल भुगतान एप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस के बगैर ही वाउचर की राशि को प्राप्‍त कर सकते हैं।

 

कुथिरन सुरंग

(Kuthiran Tunnel)

  • यह भारत में केरल राज्य के त्रिशूर जिले के कुथिरन में बनाई गई ‘ट्विन-ट्यूब’ सुरंग है।
  • यह राष्ट्रीय राजमार्ग 544 पर स्थित है, जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के पास है।
  • यह सड़क परिवहन हेतु केरल राज्य की पहली सुरंग है और दक्षिण भारत की सर्वाधिक लंबी 6-लेन सड़क सुरंग है।
  • 1.6 किमी लंबी यह सुरंग पीची-वजहानी वन्यजीव अभयारण्यसे होकर गुजरती है।

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